http://spiritualworld.co.in कुरुक्षेत्र में पंडित नानू को भ्रम से निकालना:
सज्जन ठग को सच्चा ठग बनाकर गुरु जी पाकपटन शेख ब्रह्म के साथ ज्ञान चर्चा करके कुरुक्षेत्र पहुंच गए| उस समय लोग सूर्यग्रहण के मेले के लिए दूर-दूर से आए थे| गुरु जी सुनहरी सरोवर के दूसरी ओर डेरा डाल कर बैठ गए| एक राजकुमार हिरण का शिकार करके भेंट स्वरूप में हिरण को लाया व इसकी खाल से गुरु जी को आसन बनाने को कहा| परन्तु गुरु जी ने अपने सच्चे मिशन के प्रचार के लिए हिरण को देग में डालकर पकने के लिए रख दिया| उधर लोग आग में पकती चीज को देखकर इकट्ठा हो गए|
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2. सज्जन ठग को सच्चा ठग बनाकर गुर जी
पाकपटन शेख ब्रह के साथ ज्ञान चर्चर्ार करके
कुरक्षेत पहुंचर् गए| उस समय लोग सूर्यरग्रहण
के मेले के िलए दूर्र-दूर्र से आए थे| गुर जी
सुनहरी सरोवर के दूर्सरी ओर डेरा डाल कर
बैठ गए| एक राजकुमार िहरण का िशकार
करके भेंट स्वरूप में िहरण को लाया व इसकी
खाल से गुर जी को आसन बनाने को कहा|
परन्तु गुर जी ने अपने सच्चे िमशन के प्रचर्ार के
िलए िहरण को देग में डालकर पकने के िलए
रख िदया| उधर लोग आग में पकती चर्ीज को
देखकर इकट्ठा हो गए|
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3. नानू पण्डित ण्डित जो िक उनकी अगवाई कर रहे थे,
पण्डता लगने पण्डर देग मे मांस पण्डक रहा है, कई
प्रकार के प्रश करने शुर कर िदए| आपण्डका
साधु धमर है और इस सूयगरग्रहण के पण्डित वत समयग
पण्डर आपण्डने मांस जैसी बुरी वस्तु को अित ग पण्डर
क्यगो रखा हुआ है? गुर जी ने वहां शब्द का
उच्चारण िकयगा
सलोकम : १||
पण्डित हलां मासहु ित नित मआ मासै अंदिर वासु ||
जीउ पण्डाइ मासु मुित ह ित मित लआ हडिु चंमु तनु
मासु||
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4. मासह बाहरिर कढिढिआ मंमा मासु िगिरासु||
(श्री गिुर ग्रन्थ सािहरब प.१२८१)
यहर शब्द सुनकढर पंिडित नानू ने गिुर जी कढो
नमस्कढार कढरकढे सबकढो बताया िकढ यहर
कढिलियुगि कढे अवतार हरै| इन्हरे नमस्कढार कढरनी
बनती हरै| अब इस स्थान पर एकढ साधारण
गिुरद्वारा पहरलिी पातशाहरी कढरकढे प्रसिसद हरै|
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