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3. प्रस्तािना
• श्रेवणयोों का अस्तस्तत्व = प्राचीन
• श्रेणी = समान व्यिसाय करने िाले व्यस्तियोों का समूह
• विल्पकारोों एिों व्यापाररयोों का सोंगठन
• सोंगठन की वनयमािली एिों अविकार
• व्यापार-िावणज्य में महती भूवमका
• आवथिक सोंपन्नता हेतु कारक तत्व
• कालाोंतर में प्रिासन से भी सम्बद्ध
• मुहरे एिों वसक्क
े वनगित
• दान परक सोंस्था
• उत्पाद, वितरण एिों बदलौन की प्रवियाओों से जुड़ी
5. श्रेणी: पररभाषा
• अष्टाध्यायी क
े टीकाकार क
ै य्यट :वकसी एक विल्प ये एक ही िस्तु क
े व्यापार द्वारा जीिन
यापन करने िाले लोगोों का सोंगठन
• महाभारत : श्रेणी िवणकोों का सोंगठन है
• वमताक्षरा : एक ही विल्प या व्यिसाय में सोंलग्न विवभन्न जावतयोों या एक ही जावत क
े लोगोों
का सोंगठन श्रेणी है
• पूििमध्य काल
• भटतोत्पल : श्रेणी एक ही जावत क
े लोगोों का सोंगठन
• देिण्णभट्ट : श्रेणी = 18 वनम्न जावतयााँ
• 12 िी सदी क
े बाद श्रेणी सोंगठन विघवटत होकर jaatiyon मे पररिवतित हो गए
6. श्रेणी की उत्पवि
• प्राचीनता िैवदक कालीन
• श्रेणी सोंगठन की जड़े िणि व्यिस्था से जुड़ी
• िणि व्यिस्था क
े अोंतगित कायि विभाजन = श्रेणी का मूल
• िैश्ोों का व्यिसाय = क
ृ वष, पिुपालन, व्यापार, िावणज्य = िाताि
• िाताि की वनयमािली एिों अविकार
• विल्पकारोों एिों व्यापाररयोों ने अपने वहतोों की रक्षा हेतु श्रेणी सोंगठन बनाये
• नैगम िब्द की प्रास्ति
• नैगम = व्यापारी बाहुल्य नगर
• िम्मकोस : नैगम = विदेिी यात्रा हेतु साथ में जाता व्यापारी समूह
7. श्रेणी सोंगठन की आिश्कता क्ूाँ?
• लोंबी दू री की यात्रा
• पररिहन क
े तरीक
े में कवठनाई
• सड़क नेटिक
ि : बोंदरगाह और भीतरी इलाक
े
• िनाच्छावदत भूवम
• खाली पड़ी जमीन
• भाषा में विवििता
• चोरोों और डक
ै तोों से सुरक्षा
• वििीय सुरक्षा का प्राििान
• ब्याज पर ऋण की पेिकि
• समुद्री व्यापार और आने िाली कवठनाइयााँ
8. श्रेवणयोों का विकास
• नगरीकरण का आना
• स्तस्थर राजनीवतक पररिेि
• विस्तृत राज्योों का उदय
• पररिहन पर राजकीय दृवष्ट
• लेखनकला
• व्यिसायोों का आनुिोंविक होना
• आनुिाोंविक व्यिसायोों क
े वनवहत फायदे
• व्यिहाररक अनुभि + तकनीकी अनुभि
• दक्ष विल्पकारोों-व्यापाररयोों की क्षेत्र वििेष में सुगम उपलब्धता
• स्थानीय व्यापार में िृस्तद्ध
9. श्रेणी क
े कतिव्य
1. अपने सदस्ोों को सुरक्षा प्रदान करना
2. सदस्ोों क
े व्यापाररक वहतोों की सुरक्षा
3. सदस्ोों क
े बनाए विल्प की सुरक्षा
4. आवथिक आपदाओों से बचाि क
े प्रयत्न करना
5. मुद्राोंक वनगित करना
6. श्रेणी का प्रिासन देखना
7. सदस्ता देन एिों खाररज करना
8. व्यापार में िृस्तद्ध हेतु योजनाओों का वियान्वयन
9. सूदखोरी एिों बैंवक
ों ग
10. श्रेणी का स्वरूप
श्रेणी एिों समाज
• सम्मानपात्र उद्योग
• बौद्ध गुफाओों का वनमािण
• िावमिक गवतविवियााँ
श्रेणी एिों प्रिासन
• राजा क
े साथ बैठक
ें
• नगर पररषदोों का प्रिासन
• न्यायािीि क
े रूप में कायि करना
• मुहरें जारी करना (तक्षविला, कौिाोंबी)
• बौद्ध मठोों भूवमदान देना
•
श्रेणी एिों बैंवक
ों ग
• अपनी प्रवतष्ठा क
े कारण िे विश्वसनीय
• बैंक क
े रूप में कायि
• ऋषभदि का नावसक गुफा विलालेख
• हुविष्क मथुरा विलालेख
प्रिासन
बैंवक
ों ग
व्यापार
सामावजक योगदान
11. श्रेणी सोंगठन एिों िमि
• श्रेणी सोंगठनोों का उन क्षेत्रोों में बाहुल्य जहा बौद्ध-जैन िमि का प्रसार
• बौद्ध-जैन िमि क
े प्रसार से व्यापाररक गवतविवियोों को बल प्राि
• समुद्रीय व्यापार सोंबोंिी मान्यताएाँ पर आघात
• बौद्ध-जैन िमि व्ययसाध्य अनुष्ठानोों क
े विरोिी
• अनुष्ठानोों को ना करने से बचा पैसा , व्यापार में उपयोगी
• बौद्ध जैन िमि में व्यापाररयोों का वििेष महत्व
• कई व्यापारीयोों ने स्वयों प्रिजया ली
• व्यापार क
े विकास हेतु पयािि प्रोत्साहन
12. श्रेवणयोों का िवमक विकास
1. वसोंिु घाटी सभ्यता
2. िैवदक और उिर िैवदक काल
3. 6 िीोंिताब्दी ईसा पूिि क
े दौरान
4. मौयि काल (320-200 ईसा पूिि)
5. मौयि काल क
े बाद (200 ईसा पूिि -300 सीई)
6. गुि काल (300 - 600 सीई)
7. प्रारोंवभक मध्यकालीन काल (600 - 1200 सीई)
13. वसोंिु घाटी सभ्यता
1. िहरी प्रक
ृ वत
2. सुवनयोवजत समाज
3. मुद्रा एिों मुद्राोंक
4. मेसोपोटावमया से सामग्री अििेष
5. मेल्लुहा से पहचान
6. लोथल में गोदीबाड़ा
7. पविमी तट पर बोंदरगाह
• श्रेणी का प्रमाण अज्ञात
• वलवप अपठनीय
• व्यािहाररक रूप में सोंभि
14. िैवदक काल में श्रेणी
•िैवदक अथिव्यिस्था = ग्रामीण अथि व्यिस्था
•ऋग्वेद : पवण िब्द का उल्लेख = व्यापारी
•उिर िैवदक सावहि : पूग, गण, व्रात, साथि, श्रेवष्ठन , श्रेवष्ठय
•बृहदारण्यक उपवनषद : गणक
•R.C.Majumdar + R.k.Mukherjee: गणक, िाताि, श्रेवष्ठन , श्रेवष्ठय = श्रेणी
का अस्तस्तत्व
•अन्य : श्रेणी से इतर अथि = कतार में चलने क
े अथि में प्रयुि
•िैवदक सावहि क
े वकसी भी सोंदभि में व्यािसावयक सोंगठन का बोि
नहीों
15. छठी िताब्दी ईसा पूिि में श्रेणी
• नगरीकरण
• 16 महाजनपदोों का उदय
• वसक्कोों का प्रयोग
• लेखन कला का अविक प्रयोग
• विल्पोों का विकास
• वििेष क
ें द्रोों का उदय
• िाताि एिों िोंिानुगत व्यिसाय
• श्रेणी हेतु अनुक
ू ल पररदृश्
• श्रेवणयोों क
े विकास क
े प्रचुर अिसर
16. छठी िताब्दी ईसा पूिि में श्रेणी
1. बढ़ई
2. िातु कार
3. मोची
4. वचत्रकार
5. मूवतिकार
6. बुनकर
7. क
ु म्हार
8. हाथीदाोंत क
े श्रवमक
9. कपड़े की रोंगाई करने िाले
10. मोती वनमािता
11. वफिसि
12. कसाई
13. विकारी
14. रसोइया
15. नाई
16. नाविक
17. माला वनमािता
18. बाोंस क
े कारीगर
• अष्टाध्यायी : श्रेणी का प्रयोग आयुिजीिी जावतयोों हेतु
• महाभाष्य : श्रेणी का अथि अष्टाध्यायी अनुसार
• अोंगुिर वनकाय : पूग = आवथिक सोंगठन
• जातक : 18 प्रकार की श्रेवणयोों क
े उल्लेख
17. छठी िताब्दी ईसा पूिि में श्रेवणयोों का विकास
1. सुस्थावपत सोंगठन
2. जातक कथाओों मे अनेकानेक उदाहरण : साथििाह , साथि
3. क
ु लीनवचत्र जातक : िाराणसी क
े पास िडकीग्राम जहाों 500 बढ़ई रहते थे.
4. बौद्ध सावहि : श्रेणी राजकीय जीिन व्यतीत करते थे
5. राजनीवतक अिसरोों पर श्रेणी प्रमुख उपस्तस्थत
6. क
ु छ श्रेणीयााँ प्रिासन में भी सविय
7. एरोंग जातक : 2 जेिक महामात्र रूप मे काविराज द्वारा वनयुि
8. वनग्रोि जातक : मगि क
े राजा ने पोविक को भोंडारगररक क
े रूप में वनयुि वकया
9. भोंडारगररक = श्रेणी सोंगठन की देख रेख करने िाला
10. बाबेरु जातक : लाभ हेतु व्यापारी समूहोों की यात्रा बाबेरु तक
11. समुद्रिवनक जातक: बनारस क
े 500 बढ़ई ऑडिर लेकर आिी रात को भाग गए
12. क
ु छ श्रेवणयााँ न्यावयक विम्मेदाररयााँ भी वनििहन करती थी
19. मौयि काल में श्रेवणयााँ
• प्रमुख उद्योग एिों व्यिसाय राज्य क
े प्रिक्ष वनयोंत्रण में
• श्रेणी सोंगठनोों की स्वतोंत्रता एिों स्वायिता सोंक
ु वचत
• नगर क
े एक ही भाग में श्रेवणयोों क
े सदस्ोों को एक साथ
रहते है
• राज्य द्वारा उनक
े कायि एिों गवतविवियोों पर वनगरानी एिों
वनयोंत्रण
• अक्षपटलाध्यक्ष : श्रेणी क
े कायों,कानूनोों को लेखबद्ध
करना
• कौवटल्य : आवथिक सोंकट क
े समय विविि उपायोों द्वारा
श्रेवणयोों से अविकाविक सोंपवि प्राि करे
• श्रेणी सोंगठनोों क
े वनयमोों को राज्य ने मान्यता दी
• अिहेलना करने पर राजकीय दोंड का वििान
20. मौयि काल में श्रेवणयााँ
• राज्य द्वारा क
ु छ सुवििाएों प्रदान की गईों।
• उनक
े व्यापार और विल्प को चलाने क
े वलए िहर में अलग क्षेत्र था।
• बैंकोों क
े रूप में कायि वकया
• उिार वलया और पैसे उिार वदए
• क
ु छ श्रेवणयााँ यात्रा की सुरक्षा क
े वलए अलग सेना का प्रबोंि करते थे ।
• लोंबी दू री क
े रास्ते (मुख्य रूप से पाटवलपुत्र से पुष्कलािती तक, तक्षविला क
े माध्यम से)
का वनमािण और रखरखाि राज्य द्वारा वकया जाता है।
• माल क
े आसान पररिहन क
े वलए प्राििान।
• भीटा एिों कौिाम्बी में प्राि मुद्रायें
21. मौयोिर काल में श्रेवणयााँ
• इस अिवि में भारत क
े उिर-पविमी और पविमी भाग इोंडो-ग्रीक, िक, क
ु षाण और पावथियन िासक राज कर
रहे थे।
• सातिाहन दवक्षणी भारत में राज कर रहे थे
• श्रेवणयोों ने अविक िस्ति और प्रभाि ग्रहण वकया।
• रोमन साम्राज्य क
े साथ अोंतरराष्टर ीय व्यापार सोंबोंि विकवसत हुए
• इस काल में भारतीय व्यापाररक गवतविवि मध्य एविया और चीन तक फ
ै ल गई।
• वसक्कोों की उपलब्धता मुद्रा-अथिव्यिस्था क
े अविक प्रचलन को इोंवगत करती है।
• श्रेवणयोों ने एक महत्वपूणि भूवमका वनभाई है।
• श्रेवणयोों ने अपने वनयमोों को सोंवििान का रूप वदया वजसे राज्य ने मान्यता दी
• श्रेणी क
े वनयमोों की रक्षा राज्य क
े कतिव्य में िावमल
• श्रेवणयोों पर लगे प्रवतबोंि हटे
• राजकीय वनयोंत्रण कम
• स्मृवतकारोों ने मुखर होकर श्रेवणयोों का पक्ष वलया
22. मौयोिर काल में श्रेवणयााँ
• नैगम िब्द का प्रयोग श्रेणी हेतु
• नावसक अवभलेख में नैगम को श्रेणी से सम्बद्ध बताया
• साोंची, भरहुत, बुद्धगया, मथुरा और पविमी दक्कन क
े स्थलोों क
े अवभलेख
विवभन्न प्रकार क
े श्रेवणयोों द्वारा कई दान का उल्लेख करते हैं।
• महािस्तु: 18 श्रेवणयााँ
• श्रेवणयााँ ने प्रिासन में सविय रूप से भाग वलया
• श्रेवणयााँ न्यावयक कायों में भी लगे हुए थे।
• याज्ञिल्क्य: श्रेवणयााँ क
े वनयमोों का पालन सदस्ोों द्वारा राज्य क
े वनयमोों की
तरह वकया जाना था।
• थापडयाल: इस समय में श्रेणी सोंगठन का बहुत अविक विकवसत रूप था।
23. इस अिवि क
े मुख्य श्रेवणयााँ
• आटा बनाने िालोों क
े श्रेवणयााँ,
• बुनकर
• तेल वनमािता,
• क
ु म्हार
• मकई डीलरोों,
• बाोंस का काम करने िाले,
• मोती वनमािता
• िातुकार
• इत्र लगाने िाले
24.
25. गुि काल
• भारत-रोम व्यापार का पतन : दवक्षण पूिी देिोों क
े साथ विदेिी व्यापार
• आोंतररक व्यापार अविक प्रचलन में
• पररष्क
ृ त विल्प उत्पादोों की व्यापाररक माोंग
• श्रेणी सोंगठनोों क
े माध्यम से उत्पाद की प्रास्ति, वितरण एिों व्यापार
• िराहवमवहर : श्रेणी प्रमुख = श्रेष्ठी
• सावहस्तिक + पुरातास्तत्वक प्रमाण : श्रेणी सोंगठनोों की गवतविवियोों एिों समाज में उनक
े स्थान में िृस्तद्ध .
• श्रेणी बैंक तथा न्यायालय क
े रूप में भी कायििील
• िावमिक-सामावजक अनुदानोों में श्रेवणयोों का योगदान
• नगर प्रिासन से भी सम्बद्ध
• श्रेणी प्रमुख नगर प्रिासन सवमवत का मनोनीत सदस्
26. गुि काल
• श्रेणी वनयमोों का पुनर् अिलोकन एिों अपेवक्षत सुिार
• श्रेणी वनयमोों को राज्य द्वारा मान्यता
• अमरकोि : श्रेणी को राज्य क
े अोंगोों में िावमल वकया गया
• कािायन : राज्य श्रेणी क
े वनयमोों को मान्यता प्रदान करे
• नारद : श्रेणी क
े वनयमोों का वियान्वयन भी राज्य सुवनवित करे
• बृहस्पवत : श्रेणी क
े रीवत-ररिाजोों को ना मानने िाले िासक से प्रजा विरि
27. श्रेवणयोों की स्वायिा में असीम प्रगवत
मुद्रा, मुहर निर्गत करिे का अनिकार
िर्र मे श्रेणी हेतु निशेष स्थाि निर्देनशत
श्रेनणय ों क
े स्वयों क
े ध्वज
श्रेनणय ों क
े स्वयों क
े सभार्ार
28. ऐवतहावसक प्रमाण
• गढ़िा अवभलेख चन्द्रगुि वद्वतीय : श्रेणी मुख्य मातृदास
• इोंदौर ताम्रपत्र : तैलीक श्रेणी का प्रमुख जीिोंत
• मोंदसौर अवभलेख : तोंतुिाय श्रेणी का प्रिजन
• मुद्राराक्षस : जौहररयोों की श्रेणी
• कावलदास : श्रेणी का उल्लेख वजन्होने राजा क
ु ि क
े आदेि से अयोध्या को नया रूप
वदया
• िाोंवतपिि : श्रेणी प्रमुखोों को सलाह वक िे आपस में वमलकर श्रेणी वहतोों की रक्षा करे
• िराहवमवहर : ज्योवतष अनुसार श्रेणी क
े अच्छे बुरे वदनोों की गणना
• श्रेवणयोों की मुद्राएाँ : भीटा, राजघाट, क
ु मराहार, िैिाली, उज्जैनी
• बसाढ़ से सोंयुि श्रेणी क
े 274 मुद्राोंक
• िैिाली : लेख युि मुद्राोंक = श्रेष्ठीवनगम, क
ु वलका वनगम, श्रेष्ठीक
ु वलक वनगम, श्रेष्ठीिाह
क
ु वलक वनगम
31. प्रारोंवभक मध्यकालीन काल
• राजनीवतक स्तस्थवतयाों: भ्रम और अराजकता
• हषििििन को छोड़कर कोई बड़ा िासक नहीों।
• सामोंती राज्योों का उदय
• वनरोंतर सोंघषि
• विदेिी आिमण: गजनी।
• व्यापार और उद्योग की क्षवत।
• राजनीवतक उथल-पुथल ने श्रेणी सोंगठन पर बुरा प्रभाि डाला।
• व्यापार और उद्योग सुस्त पड़ गया था।
• आवथिक स्तस्थवत में वगरािट
• बौद्ध िमि का पतन
32. प्रारोंवभक मध्ययुगीन काल में श्रेवणया
• विज्ञानेश्वर + जैन ग्रोंथ : श्रेणी न्यायलयोों क
े रूप में कायिरत
• दिक
ु मारचररत : िमिान की सुरक्षा हेतु श्रेणी द्वारा एक व्यस्ति वनयुि वजसने चोरी की। चोर क
े पक्ष मे
श्रेणी का वनणिय वजसे राज्य ने भी स्वीकार वकया
• जैन ग्रोंथोों में 5 प्रकार क
े साथि का िणिन
• अल-बेरूनी: पक्षी-विकारी, मोची, टोकरी बुनकर, नाविक, मछु आरे, बुनकर प्रमुख श्रेवणया हैं।
• South India: guilds known as “Vantrja” िाणत्र्ज
1. मवणग्रामन:
a) 9 िीोंसे 13 िीोंिताब्दी तक दवक्षण भारत में सविय श्रेणी सोंगठन
b) वहोंदू और ईसाई िवमिय व्यापारी श्रेणी सोंगठन क
े सदस्
c) समुद्री व्यापार में सहभावगता
d) नानादेि।:
e) चोल काल क
े दौरान सबसे बड़े श्रेणी सोंगठनोों में से एक
f) 11-12 िीोंिताब्दी में दवक्षण-पूिि एविया (सुमात्रा, बमाि) क
े साथ व्यापार
g) 1500 सदस् (वहोंदू , िैष्णि, िैि, जैन)
h) उनकी अपनी अलग सेना थी
33. पूिि मध्य काल :
श्रेणी में हुए
पररितिन
• श्रेवणयोों की सोंख्या में िृस्तद्ध
• श्रेवणयोों की आवथिक स्तस्थवत सुदृढ़ नहीों
• अिाविक कर से श्रेणी प्रभावित
• क
ु छ बड़े श्रेणी सोंगठन विघवटत होकर छोटे सोंगठनोों मे विभि
• भाष्यकारोों ने श्रेवणयोों की व्याख्या हीों जावतयोों क
े रूप में की
• प्रिासन, न्याय , दान में अभी भी भागीदारी
• मोंवदरोों की बढ़ती िस्ति
34. पूिि मध्य काल
• श्रेणी को जावत से सम्बद्ध वकया जाने लगा
• विज्ञानेश्वर : पूग = वभन्न व्यिसाय करने िाले वकन्तु एक ही ग्राम क
े रहने िाले, वभन्न जावत क
े लोगोों का
सोंगठन
• श्रेवणयोों द्वारा मोंवदरोों को दान, उनक
े जीणोद्धार, एिों अन्य िावमिक कायों में सहयोग
• चालुक् वििमावदि वद्वतीय का अवभलेख : ठठे रोों की एक श्रेणी को अपने नगर से कर िाससोलने
का अविकार प्रदान
• अथिव्यिस्था मोंवदरोों की बढ़ती भागीदारी
• Siyadoni inscription of 912 CE: Nagaka, a merchant withdrew his amount from the guild and
deposited the money in the temple.
• As a result, the temples became gradually the richest institutions of the time greatly affecting the
guilds’ finance and prestige.
• Consequently, the guilds lost their grounds to the temples during early medieval India.
35. श्रेणी एिों बैंवक
ों ग
• श्रेणी सोंगठन पूरी ईमानदारी, वनष्ठा एिों क
ु िलता से कायि करते थे
• राजा और प्रजा दोनोों क
े बीच श्रेवणयोों की अच्छी एिों प्रवतवष्ठत साख
• बैंकोों का भी काम करती थी ि इस रूप में रुपया जमा करती तथा ब्याज पर िन उिार देती थी।
• विवभन्न कायों हेतु लोग श्रेणी का पास िन जमा करते थे
• श्रेवणयोों को वििेष वनदेि वदए गए िन से कायि सम्पन्न कराने हेतु
• अपने पास जमा िन पर श्रेवणयााँ ये तो ब्याज देती थी या ब्याज की िनरावि से उस कायि को सम्पन्न
करती थी वजस हेतु िन जमा वकया गया था
• दानदाता द्वारा प्रदि िनरावि की ितों क
े अनुसार श्रेवणयोों द्वारा मूलिन या उससे अवजित ब्याज की
िनरावि का िावमिक या लोकोपकारी कायों में उपयोग
• इसी काल में श्रणीयोों ने बैंक क
े रूप में कायि करना प्रारोंभ वकया
36. उपसोंहार
•श्रेवणयााँ प्राचीन भारत क
े समृद्ध अतीत पर प्रकाि डालते हैं
• व्यापार और िावणज्य िास्ति में एक अनुक
ू ल व्यिसाय था।
• आवथिक लाभ क
े कारण प्राचीन भारत में श्रेवणयोों का सम्मान वकया
जाता था।
• श्रेवणयोों को समाज में उच्च प्रवतष्ठा प्राि थी।
• श्रेवणयोों ने पैसे भी दान वकए और कई स्मारकोों का वनमािण वकया।
• श्रेवणयााँ विश्वसनीय थे और बैंकोों क
े रूप में काम करते थे।
• िहर में उनकी उपस्तस्थवत आवथिक समृस्तद्ध का प्रवतवबोंब है।
•श्रेवणयोों ने प्रिासन में सविय रूप से भाग वलया