1. प्राची विराग सोनटक्क
े
सहायक प्राध्यापक
प्राचीन भारतीय इततहास,संस्कृ तत एिं पुरातत्ि विभाग,
बनारस हहंदू विश्िविद्यालय
1
प्राचीन भारत में भू-राजस्ि
एिं
करों की प्रमुख विशेषतायें
3. प्रस्तािना
• आर्थिक समृद्र्ि राज्य की अभभिृद्र्ि का प्रमुख आिार
• भू-राजस्ि = सम्पूर्ि भारतीय इततहास में राज्य की आय का
मुख्य स्रोत
• भारत हमेशा से कृ वषप्रिान राष्ट्र रहा है, इसीलए भू-राजस्ि हर
युग में महत्िपूर्ि था।
• भू-राजस्ि की िृद्र्ि क
े भलए राज्य व्यिस्थाएँ
• भूभम से संबंर्ित अनेक कर
3
4. भू-राजस्ि का उगम
• प्रारंभ में जब समाज में अराजकता थी तब लोगों ने प्रजा की रक्षा
करनेिाले िीर पुरुष को राजा चुना, और उसक
े बदले कर देने का
आरम्भ ककया।
• राजा जो कर िसूल करता था िह प्रजा की रक्षा करने का पाररश्रभमक
था।
• गौतम िमिसूर : प्रजा राजा को इसभलए कर देती है क्योंकक राजा प्रजा
की रक्षा करता है।
• नारद : प्रजा जो कर देती है िह राजा का पाररश्रभमक है।
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6. ऋगिैहदक काल
• कर-व्यिस्था का प्रथम साहहत्त्यक प्रमार् ऋगिैहदक काल में
• प्रजा अपनी इच्छा क
े अनुरूप राजा को कर देती थी।
• राजा द्िारा िसूल ककए गए कर क
े अततररक्त देिताओं को देय
पूजन सामग्री पशुबभल / विविि राजाओं से प्राप्त उपहार भेंट बभल
कहलाती थी।
• बभल = नगद िनराभश में ना होकर, अनाज और पशु क
े रूप में
भलया जाता था।
• राजा की उपार्ि क
े रूप में बभलहृत शब्द का प्रयोग
• ब्राह्मर् एिं क्षरीय : कर-मुक्त थे।
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7. उत्तर-िैहदक काल
• ऋग्िेहदक काल में स्िेच्छा से हदया जाने िाला कर (बभल)
उत्तर-िैहदक काल में अतनिायि हो गया।
• अथिििेद : घोडों और भूभम पर राजा को “भाग” देय
• ककसानो से “भाग” नाम का कर तथा व्यापाररयों से “शुल्क”
नाम का कर
• उत्तर-िैहदक काल में संभितः कर अनाज, पशु आहद क
े रूप
में होता था।
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8. महाजनपद काल
• प्रजा को तनयभमत कर देना अतनिायि
• पाणर्तन : भू-राजस्ि, फसल की उपज १/६ से १/१२ भाग तक
• गौतम : भू-राजस्ि की तीन दरे: १/६ भाग, १/८ भाग तथा १/१०
भाग
• जातक : कर संग्राहक अर्िकारी का उल्लेख
१) बभलप्रततग्राहक
२) राजकत्म्मक
• साहहत्य : भागदूि और समाहताि का उल्लेख । इनकी पहचान कर-
संग्राहक से की गयी है।
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9. मौयि काल
• भू-राजस्ि क
े भलए भाग, बभल, कर तथा हहरण्य शब्द का वििरर्
• अथिशास्र : भाग, बभल और कर शब्द का उल्लेख
• डायोडोरस : ककसान उपज का चौथाई भाग भू-राजस्ि क
े रूप में देते
थे।
• भाग का सन्दभि भूभम की उपज से िसूल ककए जाने िाले १/६ हहस्से
क
े रूप में भी ज्ञात
• रुद्रदामन का जूनागढ़ अभभलेख : भाग (भूभमकर) का उल्लेख
• विष्ट्र्ुपुरार् : राजा को षडभार्गन अथिा षंडशिृवत्त कहा गया है।
• गोप नामक अर्िकारी गाँि क
े घरों की सूची तैयार करता था और
भलखता था कक ककससे ककतना कर िसूल करना है।
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10. गुप्त काल
• भू-राजस्ि से प्राप्त करों की दरे पूिििती काल से कम थी।
• काभलदास और कामन्दक : राजा को प्रजा की भलाई क
े भलए कर
िसूलना चाहहए।
• गुप्त कालीन अभभलेख : राजा प्रजा से उपज का छटा भाग भू-राजस्ि
क
े रूप में लेता था।
• राजस्ि क
े सन्दभि में भाग, भोग, और कर का उल्लेख
• भाग: भू-राजस्ि जो उपज का १/६
• भोग: फल, फ
ु ल, दूि, ईंिन क
े रूप में कर, जो प्रजा समय-समय पर
राजा को देती थी।
• कर: इसक
े विषय में मतभेद है, यह शायद तनत्श्चत समय पर िसूल
ककए जाने िाला टैक्स था।
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11. • मौखरी,गाहडिाल, पाल, गुजिर- प्रततहार, परमार, चालुक्य,
कलचुरी, चंदेल अभभलेख : भाग, भोग, हहरण्य और कर शब्दों
का उल्लेख
• भाग = तनत्श्चत तौर पर भू-राजस्ि था त्जसका अनुपात १/६
था।
• कर की अत्यर्िक दर का भार
• करों क
े प्रकारों में भी िृद्र्ि
६०० से १२०० ईस्िी )
11
13. भाग
• उल्लेख प्राचीन काल से मध्ययुगीन काल तक प्राप्त
• भाग = भूभम की उपज पर लगाए जाने िाला प्रमुख कर
• भाग, प्रायः १/६ षंडंश: िृवत्त थी।
• महाभारत : राजा प्रजा से १/१० से लेकर १/६ भाग तक कृ वष कर लेता था।
• कौहटल्य : राजा को उपज का छटा भाग कर क
े रूप में लेना चाहहए।
• मेगस्थनीज़ : राजा भूभम की उपज का चौथा भाग कृ षक से प्राप्त करता था।
• रुत्म्मनदेई अभभलेख : लुत्म्बनी ग्राम बभल से पूर्ितः मुक्त और भाग को
षडभाग (१/६) से कम करक
े अष्ट्टभाग (१/८) ककया
• जूनागढ अभभलेख : कर, वित्ष्ट्ट, प्रर्य और शुल्क , भाग का उल्लेख
• सोमेश्िर : भूभम की उििरता क
े आिार पर १/६, १/८ या १/१२ भाग राजा को
प्राप्त
• भाग का सािारर् अनुपात १/६ राजा को षडभाऱ्िन अथिा षंडशिृवत्त कहा
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14. बभल
• बभल राजस्ि क
े भलए उल्लेणखत प्राचीनतम शब्द
• दीघिकालीन व्यात्प्त का प्रमार्
• ऋग्िेद : राजा द्िारा िसूल ककए गए कर क
े अततररक्त देिताओं को देय पूजन सामग्री
पशुबली/ विविि राजाओं से प्राप्त उपहार भेंट = बभल
• प्रारम्भ में बभल प्रजा की स्िेच्छा पर तनभिर थी, जो बाद में अतनिायि हो गयी।
• अथिशास्र : भाग क
े अततररक्त भूभम से प्राप्त कर बभल कहलाता था.समाहताि बभल का
संग्रहर्कताि
• जातक : भूभम क
े उपज क
े सन्दभि में राजा को प्रततिषि हदया जाने िाले कर = बभल
• रुत्म्मनदेई स्तंभलेख : बभल का उल्लेख़ एक प्रकार क
े कर क
े रूप में
• भमभलंदपन्हो : बभल = आपातकालीन कर
• महाभारत , मनुस्मृतत, िभसष्ट्ठस्मृतत, बृहस्पततस्मृतत ,अमरकोश : बभल = भूभमकर
• कालांतर में बभल िाभमिक कर माना गया और इसका उल्लेख क
े िल िाभमिक अनुष्ट्ठानों से
सम्बंर्ित रह गया। 14
15. कर
• “कर” क
े उल्लेख प्राचीन काल से मध्ययुगीन काल तक विविि
स्िरूपों में प्राप्त
• गौतम िमिसूर : “कर” शब्द का प्रयोग
• पाणर्तन की अष्ट्टाध्यायी : कर शब्द का उल्लेख
• समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशत्स्त : “कर” का उल्लेख है।
• िासुदेि शरर् अग्रिाल : कर का उल्लेख खेतों को नापकर
कृ वषयोग्य करने िाले भूभममापक अर्िकारी क
े सन्दभि में प्राप्त
• कततपय विद्िान : कर = संपवत्त पर लगने िाला िावषिक कर
• कर = उत्पीडक ?
• जूनागढ अभभलेख : रुद्रादामन ने प्रजा से कभी भी कर, वित्ष्ट्ट
या प्रर्य जैसा कोई कर िसूल नहीं ककया
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16. हहरण्य
• हहरण्य = भूभम से संबंर्ित कोई तनयभमत कर न होकर एक अतनयभमत
देय था, जो शायद कभी-कभी लगाया जाता रहा होगा।
• महाभारत और अथिशास्र : इसका अनुपात १/१०
• स्मृततया : १/५० का अनुपात बताती है।
• अथिशास्र : समाहताि नामक अर्िकारी अलग-अलग करों क
े साथ
हहरण्य कर का वििरर् भलखे।
• गुप्तकाल में यह तनयभमत कर हो गया।
• उपेन्द्रनाथ घोषाल : हहरण्य ऐसा कर था जो सभी फसलो पर ना लेते
हुए क
े िल विशेष (बहुमूल्य) प्रकार की फसलो पर भलया जाता था”।
• यह कर नगद िन क
े रूप में िसूल ककया जाता था?
• हहरण्य कर क
े उल्लेख प्राचीन काल से मध्ययुग तक प्राप्त
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17. िान्य
• िान्य = कृ वष की उपज में राजा का हहस्सा।
• गुप्तकाल क
े क
ु छ अभभलेखों में िान्य शब्द प्रयुक्त
• गुजरात का माभलया ताम्रपट्ट (छठी शती ईस्िी ) : िान्य कर का
उल्लेख भूभम-कर का क
ु छ अंश िान्य क
े रूप में भलया जाता था।
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18. भू-राजस्ि
• अथिशास्र : ग्राम की भूभम को ३ श्रेणर्यो में बाँटा गया था।
1. ऊ
ँ ची भूभम (स्थल)
2. नीची भूभम (क
े दार)
3. अन्य
िमिसूर : उपजाऊ भमट्टी िाले खेतों पर अर्िक तथा कम उपजाऊ िाले
खेतों पर कम कर भलया जाए।
बृहस्पतत : राजा को भूभम क
े अनुसार कर लेना चाइए, जैसे परती भूभम से
१/१० भाग, िषाि क
े जल से भसंची जाने िाली ज़मीन से १/८ तथा जो फसल
िसंत ऋतु में काटी गयी है उससे १/६ भाग लेना चाहहए।
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अलग-अलग प्रकार की भूभम क
े भलए अलग-
अलग प्रकार का भू राजस्ि
19. भू-राजस्ि की िृद्र्ि हेतु राजकीय प्रबंि
• भू-राजस्ि = राज्य की आय का मुख्य स्रोत
• िृद्र्ि हेतु राजकीय प्रबंि
• मौयि काल : बंजर ज़मीन में खेती करने िाले लोगों/ककसानो को कई प्रकार
की छ
ू ट
• अथिशास्र : नया तालाब अथिा सेतुबंद बनाने पर ५ िषों तक करमुक्ती
पुराने तालाबों का पुनरुद्िार करनेिाले को ४ िषों तक करमुक्ती
• भसंचाई व्यिस्था का प्रबंि : राज प्रसाशन द्िारा
• जूनागढ़ अभभलेख : चँद्रगुप्त मौयि क
े राज्यपाल पुष्ट्यगुप्त िैश्य द्िारा
सुदशिन झील का तनमािर्
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20. भू-राजस्ि में छ
ू ट
• जब फसल ख़राब हो
• नैसर्गिक आपदा आने पर
• जब ककसान बंजर ज़मीन जोत रहा हों
• अशोक ने लुत्म्बनी ग्राम को बभल से पूर्ितः मुक्त कर हदया था।
• ब्राम्हर् को भू-राजस्ि से छ
ू ट थी।
• मनु : राजा को आपातकाल में १/४ तथा सामान्य त्स्थतत में १/८ क
े
अनुपात में कर लेना चाहहए।
• अथिशास्र :आपातकालीन त्स्थतत में राज्य १/६ भाग क
े स्थान पर
१/४ से १/३ भाग तक कर ले सकता है।
• त्जस खेत की उपज िषाि पर तनभिर ना हो िहाँ पर १/४ से १/३ भाग
तक कर ले सकते है।
20
भू-राजस्ि में छ
ू ट
21. कर तनिािरर् पद्ितत
• शा स्र : कर की दर का तनिािरर् नीततसंगत हो
• महाभारत : कर का तनिािरर् आय और खचि का हहसाब लगाकर करना
चाहहए।
• क
ु रु िम्म जातक : खडी फसल का अनुमान लगाकर भू-राजस्ि
तनत्श्चत ककया जाए
• मनुमृतत क
े टीकाकार क
ु ल्लूक भट्ट : फसल पर ककसान को जो लाभ
हुआ है, उस पर कर लगाया जाए
• भूभम कर क
े तनिािरर् में ककसान की उपज का १/६ भाग सििमान्य
हदखाई देता है। 21
23. भू-राजस्ि क
े अलािा अन्य करों क
े प्रकार
1. िाणर्ज्य कर:
a) शुल्क,
b) घाटकर,
c) मद्यकर इत्याहद
• अन्य कर:
1. प्रर्य,
2. वित्ष्ट्ट,
3. उद्रंग,
4. हभलकाकर,
5. मेय/तुल्यमेय,
6. हदत्य,
7. विमुत्क्त,
8. पररहार,
9. दशापराि,
10. चौरोंद्िरर्,
11. दशापराि,
12. हत्स्तदंड इत्याहद
24. िैहदक काल से गुप्त काल तक अन्य महत्िपूर्ि कर
• अथिििेद : ककसानो से “भाग” नाम का तथा व्यापाररयों से “शुल्क”
नाम का कर भलए जाने क
े उल्लेख
• विनय वपटक :पिित, नदी और नगर द्िार पर चुंगीगृह होते थे जहां
पर आयात की िस्तुओं पर चुंगी लगती थी।
• गुप्तकालीन अभभलेख : भाग, भोग और कर शब्दों का प्रयोग
• अिल्गक: सेना और राजा को आक्रमर् क
े समय प्रजा द्िारा दी
जाने िाली खाद्य सामग्री तथा िस्तुएँ।
• उपररकर और उद्रंग नामक करों का प्रथमत: उल्लेख प्राप्त
24
25. अथिशास्र अनुसार कर क
े प्रकार
1. वपण्डकर: सम्पूर्ि ग्राम द्िारा हदया जानेिाला कर
2. उत्संग : राजा को प्रजा द्िारा दी जानेिाली भेंट
3. सीता : राजकीय भूभम से प्राप्त कर
4. सेना-भक्त: गाँिों से गुजरने पर सेना को प्रद्दत्त कर
5. औपायतनक: उपहार
6. पाश्िि :अर्िक लाभ पर अततररक्त कर
7. मरहहनक : पशुओं द्िारा की गयी हातन की क्षतत पूततिहेतु कर
8. इसक
े अलािा कोष्ट्टेयक, राष्ट्र, दुगि, खानें,सेतु, िन, िज्र (पशुिन),
िणर्कपथ, शुल्क (सामान्य कर), दण्ड जैसे अनेक कर थे।
26. ईसिी ६०० -१२००
• राज्य क
े स्थान पर करों का अर्िग्रहन का अर्िकार सामंतों को
प्राप्त
• अततररक्त करों क
े भार एिं दबाि में िृद्र्ि
• कृ षक िगि की दयनीय त्स्थतत।
• अभिलेखीय प्रमाण : विविध प्रकार क
े कर
27. करों क
े प्रकार
1. हभलकाकर: हल की जुती हुई ज़मीन या हलों की संख्याओ पर
2. मेय/तुल्यमेय: िस्तुओं क
े तौल क
े आिार पर
3. िान्य: अन्न का भाग जो १/६, १/८, १/१० और १/१२ था।
4. हदत्य: इसक
े बारे में तनत्श्चत पता नहीं
5. विमुत्क्त: राजा क
े स्थान पर सामंत को हदया जानेिाला कर।
6. पररहार: राजा क
े स्थान पर सामंत को हदया जानेिाला कर।
7. दशापराि कर: दण्ड क
े रूप में लगाए गए कर।
8. चौरोंद्िरर्: पुभलस द्िारा चोरों से सुरक्षा क
े बदले भलया जानेिाला कर।
9. हत्स्तदंड:हार्थयों को रखने पर लगनेिाला िार।
10. िरिली: बैलो को रखने का कर।
11. मद्यकर: मद्य (शराब) पर लगने िाला कर
12. कारुकर: भशत्ल्पयों से भलया जाने िाला कर।
13. उद्रंग: पुभलस या सुरक्षा कर होता था।
14. उपररकर: अततररक्त कर
15. शुल्क: िाणर्त्ज्यक कर था 27
29. शुल्क
• शुल्क = िाणर्त्ज्यक कर था, जो व्यापाररयों से िसूला जाता था।
• शुल्क आंतररक और बाह्य दोनो प्रकार क
े व्यापारों में लगता था।
• यह कर राज्यों की सीमाओं पे, नहदयों क
े आर-पार, शहरों क
े मुख्य द्िारों पर,
पत्तनो और बंदरगाहो में, बाज़ारों में िसूल ककया जाता था।
• महाभारत का शांततपिि : िस्तुओं क
े लाभांश का बीसिाँ भाग शुल्क क
े रूप में
िसूला जाता था
• अथिशास्र : शुल्क = चुंगी क
े रूप में
• अथिशास्र : अलग-अलग िस्तुओं पर अलग-अलग अंशो में शुल्क लगाना
चाहहए।
• अथिशास्र : इसकी िसूली अर्िकारी को ”शुल्काध्यक्ष” कहते थे।
• मनु : शुल्क िसूल ककए जाने िाली जगह को “शुल्कस्थान” कहते थे।
• शुक्रनीतत : जो व्यापारी बबना कर क
े चोरी-तछपे बाज़ार में पहुँचते थे, उन्हें
शुल्क से आठ गुना ज़्यादा दण्ड देना होता था
• शुक्र नीतत : िस्तुओं पर शुल्क क
े िल एक बार लगाया जाए, दुबारा नही।
• बबहार स्तंभ अभभलेख : शुल्क इक्कठा करने िाले अर्िकारी =“शौत्ल्कक”
30. वित्ष्ट्ट
• वित्ष्ट्ट = बेगार = अत्यंत प्राचीन और व्यापक कर
• महाभारत में उल्लेख
• एररयन : भशल्पी और कारीगर कर क
े स्थान पर बेगारी करते थे।
• अथिशास्र : इस प्रकार की सेिाओं का उपयोग राज्य द्िारा
• मनु : शूद्र, भशल्पी और कारीगर अपनी सेिाओं क
े रूप में राज्य
को कर दे सकते थे, उसे वित्ष्ट्ट कहते थे। मनु वित्ष्ट्ट की
अनुशंसा करते है।
• तनश्चय ही वित्ष्ट्ट एक कष्ट्टदायक कर था ईसीभलए, इसे
अततररक्त करों की सूची में रखा गया था।
• जूनागढ अभभलेख : प्रजा से वित्ष्ट्ट कर िसूल ककए बबना
“सुदशिन झील” का तनमािर्
• वित्ष्ट्ट शायद महीने में एक हदन की मज़दूरी होती थी।
31. उत्संग
• ककसी उत्सि क
े समय प्रजा राजा को जो भेंट देती थी = उत्संग
• जातक : राजक
ु मार क
े जन्म पर प्रजा-जन में से प्रत्येक जन
एक-एक काषापिर् लाया था।
• राज्याभभषेक क
े अिसर पर बहुत भेंटे राजा को प्राप्त
• विदेशों से आए राज्यपाल भी बहुत भेंटे लाया करते थे
• उत्सि कर अतनिायि या एत्च्छक?
• वििरर् अप्राप्त है।
32. उपररकर
• उपररकर गुप्त युग और उसक
े बाद क
े कालों में िणर्ित है।
• गुप्तपूिि काल में इसका िर्िन या उल्लेख प्राप्त नहीं होता।
• उपररकर का क्या तात्पयि था इसक
े विषय विद्िानो में मतभेद
• उपरर शब्द का संस्कृ त में अथि होता है अततररक्त, इसीभलए ये
संभितः अन्य करों से अलग अततररक्त कर रहा होगा।
33. उद्रंग
• उद्रंग का तात्पयि = मतभेद का विषय
• राजतरंर्गर्ी : उद्रंग पुभलस चौकी क
े अथि में प्रयुक्त
• एस मैती : उद्रंग कर = पुभलस कर या सुरक्षा कर
• गुप्त पूिि काल में इसका िर्िन या उल्लेख प्राप्त नहीं
• तनत्य उल्लेख गुप्त युग और उसक
े बाद क
े कालों में िणर्ित है।
34. हभलकाकर
• मध्य भारत में छटी शती में प्राप्त ताम्रपरों में हभलकाकर का
उल्लेख
• घोषाल : इसका अथि हल पर लगाया हुआ कर हो सकता है।
• मैती : हल द्िारा जोती गयी ज़मीन पर लगनेिाला कर।
• यह अततररक्त कर भी हो सकता है जो उस क्षेर पर लगाया जाता
था, त्जसकी जुताई हल द्िारा एक ऋतु में की जाती थी।
• , मु़िल काल तक हल पर “कर” लगता था।
35. घाटकर
• नदी को पार करने क
े भलये भलए जाने िाले कर = घाटकर
• स्मृतत ग्रन्थ और अथिशास्र : घाटकर को महत्िपूर्ि राजकीय आय का स्रोत कहा
गया है।
• ऊषिदत्त का नाभसक गुहा अभभलेख : ऊषिदत्त ने तनशु:ल्क नदी पार करने की
व्यिस्था की थी।
• विष्ट्र्ुसेन क
े छठी शती ईस्िी का ताम्रलेख : नािों द्िारा नदी घाटों पर सामग्री क
े
उतारने का दर तनम्नभलणखत प्रकार से है।
1. नाि भर िातु क
े बतिनो की उतराई १२ रजत मुद्रा थी, लेककन उद्देश िाभमिक
होने पर मार ११/४ रजत मुद्रा थी।
2. भैंस तथा ऊ
ँ ट से भरी नाि का कर ५ १/४
36. करािान क
े भसद्िांत
1. अथिशास्र :जै से बैल पर िीरे-िीरे बोझ बढ़ाते है, िैसे ही कर
को िीरे –िीरे बढ़ाना चाहहए।
2. मिुमक्खी जैसे थोडा-थोडा रस छत्ते क
े भलए इकट्ठा करती है,
िैसे ही राजा को प्रजा पर थोडा-थोडा कर लगाना चाहहए।
3. मनु : कर शास्रानुसार िसूले जाने चाहहए।
4. कामन्दक : राजा को कर ग्िाले या माली जैसे िसूलना चाहहए।
5. नाभसक गुहा अभभलेख : गौतभमपुर सातकर्ी को िमािनुसार
कर लेनेिाला कहा गया है।
6. रुद्रदामन क
े जूनागढ़ अभभलेख : उसने सुदशिन झील क
े बांि
का तनमािर् प्रजा पे अततररक्त कर लगाए बबना कराया था।
7. प्राचीन भारत में करों की दरे प्रजाहहत ध्यान में रखकर
तनिािररत की जाती थी।
37. करों का तनिािरर् और दरें
• राज्यशात्स्रयों + अथिशात्स्रयों + िमि शात्स्रयों ने करों अथिा
देयकों की स्पष्ट्ट व्यिस्था दी
• प्रजारक्षर् को राजिमि का पयाियिाची कहा गया
• अथिशास्र : कर तनिािरर् से पहले अर्िकाररयों द्िारा िस्तु का
प्रचभलत मूल्य,पूतति और माँग का उत्पन व्यय आहद अनेक बातों
पर विचार ककया जाता था।
• मनुस्मृतत : उत्पाहदत िस्तुओं का क्रयमूल्य, विक्रयमूल्य, राह क
े
खचे, कारार्गरो क
े खचे आहद का आकलन करक
े करो का
तनिािरर् होना चाहहए।
• भाग: यह भू-राजस्ि प्रमुखता से १/६ भाग होता था, कभी -कभी
१/८, १/१०, १/१२ होता था।
• शुल्क: १/२० से १/५० तक होती थी।
• वित्ष्ट्ट: महीने में एक हदन की मज़दूरी।
38. तनष्ट्कषि
• राज्य की आय का मुख्य स्रोत भू-राजस्ि था।
• भूभम की गुर्ित्ता, उपज क्षमता क
े आिार पर भू-राजस्ि का
तनिािरर् ककया जाता था।
• व्यापार- िाणर्ज्य क
े कर भी राज्य की आय का महत्िपूर्ि
स्रोत थे।
• करों क
े बदले क
ें हदय व्यिस्था सुरक्षा, शांतत और प्रजा को
सुवििाए प्रदान करती थी।
• रुद्रदामन और गौतमीपुर सातकर्ी जैसे राजा प्रजा का हहत
ध्यान में रखकर िैि कर ही िसूल करते थे।
• सातिी शती तक करों की प्रिृवत्त न्यायसंगत हदखाई देती है
• इस काल क
े पश्चात कर उत्पीडक हो गए।
38
39. सन्दभि ग्रन्थ
• िमिशास्र का इततहास (द्वितीय खंड)
• लेखक : भारतरत्न डॉ पाण्डुरंग िामन कार्े
• प्राचीन भारत की आर्थिक संस्कृ तत
लेखक : डॉ विशुद्िानंद पाठक
• प्राचीन भारत का आर्थिक इततहास
लेखक : डॉ विशुद्िानंद पाठक
• प्राचीन भारत का समात्जक एिं आर्थिक इततहास
लेखक : ओम प्रकाश
• प्राचीन भारत की अथिव्यिस्था
लेखक : डॉ काल ककशोर भमश्र
• भारत में कर सुिार
लेखक : डॉ डी क
े नेमा
• Perspectives in Social and Economic History of Early India
Author: R. S. Sharma
• The Economic Life of Northern India C.AD 700-1200
Author: Lallanji Gopal 39