3. महत्वपूर्ण गद्यांश
1 ककसानों का गााँव था, मेहनती आदमी के भलए पर्ास काम थे। मगर इन दोनों को उसी वक्त बुलाते,
जब दो आदभमर्ों से एक का काम पाकर िी सन्तोष कर लेने के भसवा और कोई र्ारा न होता। अगर
दोनो साधु होते, तो उन्हें सन्तोष और धैर्च के भलए, सॉंर्म और ननर्म की बबलकु ल जरूरत न होती।
र्ह तो इनकी प्रकृ नत थी।
4. महत्वपूर्ण गद्यांश
2 ववचर्त्र जीवन था इनका! घर में भमट्टी के दो-र्ार बतचन के भसवा कोई सम्पवि नहीॉं। फटे
र्ीथडों से अपनी नग्नता को ढााँके हुए जजर्े जाते थे। सॉंसार की चर्न्ताओॉं से मुक्त कजच से
लदे हुए। गाभलर्ााँ िी खाते, मार िी खाते, मगर कोई गम नहीॉं। दीन इतने कक वसूली की
बबलकु ल आशा न रहने पर िी लोग इन्हें कु छ-न-कु छ कजच दे देते थे।
5. महत्वपूर्ण गद्यांश
3 घीसू ने इसी आकाश-वृवि से साठ साल की उम्र काट दी और माधव िी सपूत बेटे की तरह बाप
ही के पद-चर्ह्नों पर र्ल रहा था, बजकक उसका नाम और िी उजागर कर रहा था। इस वक्त िी
दोनों अलाव के सामने बैठकर आलू िून रहे थे, जो कक ककसी खेत से खोद लार्े थे। घीसू की स्त्त्री
का तो बहुत ददन हुए, देहान्त हो गर्ा था। माधव का ब्र्ाह वपछले साल हुआ था। जब से र्ह औरत
आर्ी थी, उसने इस खानदान में व्र्वस्त्था की नीॉंव डाली थी और इन दोनों बे-गैरतों का दोजख
िरती रहती थी।
6. महत्वपूर्ण गद्यांश
4 जजस समाज में रात-ददन मेहनत करने वालों की हालत उनकी
हालत से कु छ बहुत अच्छी न थी, और ककसानों के मुकाबले में
वे लोग, जो ककसानों की दुबचलताओॉं से लाि उठाना जानते थे,
कहीॉं ज्र्ादा सम्पन्न थे, वहााँ इस तरह की मनोवृवि का पैदा
हो जाना कोई अर्रज की बात न थी। हम तो कहेंगे, घीसू ककसानों से कहीॉं ज्र्ादा ववर्ारवान् था और
ककसानों के ववर्ार-शून्र् समूह में शाभमल होने के बदले बैठकबाजों की कु जससत मण्डली में जा भमला था।
7. महत्वपूर्ण गद्यांश
5 दोनों एक-दूसरे के मन की बात ताड रहे थे। बाजार में इधर-उधर घूमते रहे। किी इस बजाज की
दूकान पर गर्े, किी उसकी दूकान पर! तरह-तरह के कपडे, रेशमी और सूती देखे, मगर कु छ जाँर्ा
नहीॉं। र्हााँ तक कक शाम हो गर्ी। तब दोनों न जाने ककस दैवी प्रेरणा से एक मधुशाला के सामने जा
पहुाँर्े। और जैसे ककसी पूवच ननजचर्त व्र्वस्त्था से अन्दर र्ले गर्े। वहााँ जरा देर तक दोनों असमॉंजस में
खडे रहे। कफर घीसू ने गद्दी के सामने जाकर कहा-साहूजी, एक बोतल हमें िी देना।
8. महत्वपूर्ण गद्यांश
6 वहााँ के वातावरण में सरूर था, हवा में नशा। ककतने तो र्हााँ आकर एक र्ुकलू में मस्त्त हो
जाते थे। शराब से ज्र्ादा र्हााँ की हवा उन पर नशा करती थी। जीवन की बाधाएाँ र्हााँ खीॉंर्
लाती थीॉं और कु छ देर के भलए र्ह िूल जाते थे कक वे जीते हैं र्ा मरते हैं। र्ा न जीते हैं, न
मरते हैं।
9. महत्वपूर्ण गद्यांश
7 घीसू खडा हो गर्ा और जैसे उकलास की लहरों में तैरता हुआ बोला-हााँ, बेटा बैकु ण्ठ में
जाएगी। ककसी को सतार्ा नहीॉं, ककसी को दबार्ा नहीॉं। मरते-मरते हमारी जजन्दगी की सबसे
बडी लालसा पूरी कर गर्ी। वह न बैकु ण्ठ जाएगी तो क्र्ा र्े मोटे-मोटे लोग जाएाँगे, जो
गरीबों को दोनों हाथों से लूटते हैं, और अपने पाप को धोने के भलए गॉंगा में नहाते हैं और
मजन्दरों में जल र्ढाते हैं?
10. दहॉंदी कथा सादहसर् - सॉंपादक ड . ससर्िामा आडडल
आधुननक दहॉंदी कथासादहसर् और मनोववज्ञान - डा0 देवराज उपाध्र्ार्
कथाकार प्रेमर्न्द - जजतेन्रनाथ पाठक
कहानी कला और प्रेमर्न्द - श्रीपनत शमाच
प्रेमर्न्द एक वववेर्न - डा0 इन्रनाथ मदान
प्रेमर्न्द और उनका र्ुग - डा0 रामववलास शमाच
https://hindihelp.org/kafan-story-by-munshi-premchand/
https://eduwritings.wordpress.com/2018/03/25/%E0%A4%95%E0%A5%9E%E0%A4%A8-
%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B6/
https://www.youtube.com/watch?v=16b_RBbROTs
https://www.youtube.com/watch?v=CY15uJ_4aGI
https://www.youtube.com/watch?v=ff4rMfY7LeQ