A theatre set design for a short story "Boodhi Kaaki" written by "Premchand".
When I started reading the short story for the maquette, it was fairly simple. The main thing in my mind then was that whatever the audience sees, it is sort of in the form of 2D as we can’t really see much of what is happening behind. So to fit the room, the house, the kitchen, dining area and the outdoor seating in a linear manner became a little difficult. After receiving the feedback, before I started making the scaled down model for the theatre, I got more clarity on how to make it less linear and more playful. I realized that I did not have to show everything from the script; it could be small depictions or metaphors. Making the maquette was incredible fun and seeing the finish I got after I painted on foam board was brilliant.
2. Premchand Munshi
Premchand (31 July 1880 – 8 October 1936), better known as Munshi Premchand, is one of the most
celebrated writers of the Indian subcontinent, and is regarded as one of the foremost Hindustani writers of
the early twentieth century. Born Dhanpat Rai Srivastav, he began writing under the pen name "Nawab Rai",
but subsequently switched to "Premchand". A novel writer, story writer and dramatist, he has been referred
to as the "Upanyas Samrat" ("Emperor among Novelists") by some Hindi writers. His works include more
than a dozen novels, around 250 short stories, several essays and translations of a number of foreign literary
works into Hindi.
In 1909, Premchand was transferred to Mahoba, and later posted to Hamirpur as the Sub-deputy Inspector of
Schools.Around this time, Soz-e-Watan was noticed by the British Government officials, who banned it as a
seditious work. The British collector of the Hamirpur District ordered a raid on Premchand's house, where
around five hundred copies of Soz-e-Watan were burnt. Subsequently, Dhanpat Rai had to change his
pseudonym from "Nawab Rai" to "Premchand".
In 1914, Premchand started writing in Hindi (Hindi and Urdu are considered different registers of a single
language Hindustani, with Hindi drawing much of its vocabulary from Sanskrit and Urdu being more
influenced by Persian). By this time, he was already reputed as a fiction writer in Urdu. His first Hindi story
Saut was published in the magazine Saraswati in December 1915, and his first short story collection Sapta
Saroj was published in June 1917.
Premchand is considered the first Hindi author whose writings prominently featured realism. His novels
describe the problems of the poor and the urban middle-class.His works depict a rationalistic outlook, which
views religious values as something that allows the powerful hypocrites to exploit the weak. He used
literature for the purpose of arousing public awareness about national and social issues and often wrote
about topics related to corruption, child widowhood, prostitution, feudal system, poverty, colonialism and on
the India's freedom movement.
3. Boodhi Kaaki
बुढ़ाप़ा बहुध़ा बचपन क़ा पुनऱागमन हुआ करत़ा है। बूढ़ी क़ाकी में जिह्व़ा-स्व़ाद के सिव़ा और कोई चेष्ट़ा शेष न थी
और न अपने कष्टों की ओर आकर्षित करने क़ा, रोने के अततररक्त कोई दूिऱा िह़ाऱा ह़ी। िमस्त इजरिय़ााँ, नेत्र,
ह़ाथ और पैर िव़ाब दे चुके थे। पृथ्वी पर पडी रहतीीं और घर व़ाले कोई ब़ात उनकी इच्छ़ा के प्रततकू ल करते,
भोिन क़ा िमय टल ि़ात़ा य़ा उिक़ा पररण़ाम पूणि न होत़ा अथव़ा ब़ाज़ार िे कोई वस्तु आती और न समलती तो
ये रोने लगती थीीं। उनक़ा रोऩा-सििकऩा ि़ाध़ारण रोऩा न थ़ा, वे गल़ा फ़ाड-फ़ाडकर रोती थीीं।
उनके पततदेव को स्वगि सिध़ारे क़ाल़ाींतर हो चुक़ा थ़ा। बेटे तरुण हो-होकर चल बिे थे। अब एक भतीिे के अल़ाव़ा
और कोई न थ़ा। उिी भतीिे के ऩाम उरहोंने अपनी ि़ाऱी िम्पजतत सलख द़ी। भतीिे ने ि़ाऱी िम्पजतत सलख़ाते
िमय खूब लम्बे-चौडे व़ादे ककए, ककरतु वे िब व़ादे के वल कु ल़ी-डिपो के दल़ालों के ददख़ाए हुए िब्जजब़ाग थे।
यद्यर्प उि िम्पजतत की व़ार्षिक आय िेढ-दो िौ रुपए िे कम न थी तथ़ार्प बूढ़ी क़ाकी को पेट भर भोिन भी
कदिऩाई िे समलत़ा थ़ा। इिमें उनके भतीिे पींडित बुर्िऱाम क़ा अपऱाध थ़ा अथव़ा उनकी अध़ाांगगनी श्रीमती रूप़ा
क़ा, इिक़ा तनणिय करऩा िहि नह़ीीं। बुर्िऱाम स्वभ़ाव के िज्िन थे, ककीं तु उिी िमय तक िब कक उनके कोष पर
आाँच न आए। रूप़ा स्वभ़ाव िे तीव्र थी िह़ी, पर ईश्वर िे िरती थी। अतएव बूढ़ी क़ाकी को उिकी तीव्रत़ा उतनी न
खलती थी जितनी बुर्िऱाम की भलमनि़ाहत।
बुर्िऱाम को कभी-कभी अपने अतय़ाच़ार क़ा खेद होत़ा थ़ा। र्वच़ारते कक इिी िम्पजतत के क़ारण मैं इि िमय
भल़ाम़ानुष बऩा बैि़ा हूाँ। यदद भौततक आश्व़ािन और िूखी िह़ानुभूतत िे जस्थतत में िुध़ार हो िकत़ा हो, उरहें
कद़ागचत् कोई आपजतत न होती, पररतु र्वशेष व्यय क़ा भय उनकी िुचेष्ट़ा को दब़ाए रखत़ा थ़ा। यह़ााँ तक कक यदद
द्व़ार पर कोई भल़ा आदमी बैि़ा होत़ा और बूढ़ी क़ाकी उि िमय अपऩा ऱाग अल़ापने लगतीीं तो वह आग हो ि़ाते
और घर में आकर उरहें िोर िे ि़ााँटते। लडकों को बुड्ढों िे स्व़ाभ़ार्वक र्वद्वेष होत़ा ह़ी है और कफर िब म़ात़ा-
र्पत़ा क़ा यह रींग देखते तो वे बूढ़ी क़ाकी को और ित़ाय़ा करते। कोई चुटकी क़ाटकर भ़ागत़ा, कोई इन पर प़ानी
की कु ल्ल़ी कर देत़ा। क़ाकी चीख म़ारकर रोतीीं पररतु यह ब़ात प्रसिि थी कक वह के वल ख़ाने के सलए रोती हैं,
अतएव उनके िींत़ाप और आतिऩाद पर कोई ध्य़ान नह़ीीं देत़ा थ़ा। ह़ााँ, क़ाकी क्रोध़ातुर होकर बच्चों को ग़ासलय़ााँ देने
लगतीीं तो रूप़ा घटऩास्थल पर आ पहुाँचती। इि भय िे क़ाकी अपनी जिह्व़ा कृ प़ाण क़ा कद़ागचत् ह़ी प्रयोग करती
थीीं, यद्यर्प उपिव-श़ाजरत क़ा यह उप़ाय रोने िे कह़ीीं अगधक उपयुक्त थ़ा।
4. िम्पूणि पररव़ार में यदद क़ाकी िे ककिी को अनुऱाग थ़ा, तो वह बुर्िऱाम की छोट़ी लडकी ल़ािल़ी थी। ल़ािल़ी अपने
दोनों भ़ाइयों के भय िे अपने दहस्िे की समि़ाई-चबैऩा बूढ़ी क़ाकी के प़ाि बैिकर ख़ाय़ा करती थी। यह़ी उिक़ा
रक्ष़ाग़ार थ़ा और यद्यर्प क़ाकी की शरण उनकी लोलुपत़ा के क़ारण बहुत मींहगी पडती थी, तथ़ार्प भ़ाइयों के
अरय़ाय िे िुरक्ष़ा कह़ीीं िुलभ थी तो बि यह़ीीं। इिी स्व़ाथ़ािनुकू लत़ा ने उन दोनों में िह़ानुभूतत क़ा आरोपण कर
ददय़ा थ़ा।
ऱात क़ा िमय थ़ा। बुर्िऱाम के द्व़ार पर शहऩाई बि रह़ी थी और ग़ााँव के बच्चों क़ा झुींि र्वस्मयपूणि नेत्रों िे ग़ाने
क़ा रि़ास्व़ादन कर रह़ा थ़ा। च़ारप़ाइयों पर मेहम़ान र्वश्ऱाम करते हुए ऩाइयों िे मुजक्कय़ााँ लगव़ा रहे थे। िमीप खड़ा
भ़ाट र्वरुद़ावल़ी िुऩा रह़ा थ़ा और कु छ भ़ावज्ञ मेहम़ानों की 'व़ाह, व़ाह' पर ऐि़ा खुश हो रह़ा थ़ा म़ानो इि 'व़ाह-
व़ाह' क़ा यथ़ाथि में वह़ी अगधक़ाऱी है। दो-एक अींग्रेजी पढे हुए नवयुवक इन व्यवह़ारों िे उद़ािीन थे। वे इि गाँव़ार
मींिल़ी में बोलऩा अथव़ा िजम्मसलत होऩा अपनी प्रततष्ि़ा के प्रततकू ल िमझते थे।
आि बुर्िऱाम के बडे लडके मुखऱाम क़ा ततलक आय़ा है। यह उिी क़ा उतिव है। घर के भीतर जस्त्रय़ााँ ग़ा रह़ी थीीं
और रूप़ा मेहम़ानों के सलए भोिन में व्यस्त थी। भदियों पर कड़ाह चढ रहे थे। एक में पूडडय़ााँ-कचौडडय़ााँ तनकल रह़ी
थीीं, दूिरे में अरय पकव़ान बनते थे। एक बडे हींिे में मि़ालेद़ार तरक़ाऱी पक रह़ी थी। घी और मि़ाले की
क्षुध़ावधिक िुगींगध च़ारों ओर फै ल़ी हुई थी।
बूढ़ी क़ाकी अपनी कोिऱी में शोकमय र्वच़ार की भ़ााँतत बैिी हुई थीीं। यह स्व़ाद समगश्रत िुगींगध उरहें बेचैन कर रह़ी
थी। वे मन-ह़ी-मन र्वच़ार कर रह़ी थीीं, िींभवतः मुझे पूडडय़ााँ न समलेंगीीं। इतनी देर हो गई, कोई भोिन लेकर नह़ीीं
आय़ा। म़ालूम होत़ा है िब लोग भोिन कर चुके हैं। मेरे सलए कु छ न बच़ा। यह िोचकर उरहें रोऩा आय़ा, पररतु
अपशकु न के भय िे वह रो न िकीीं।
'आह़ा... कै िी िुगींगध है? अब मुझे कौन पूछत़ा है। िब रोदटयों के ह़ी ल़ाले पडे हैं तब ऐिे भ़ाग्य कह़ााँ कक भरपेट
पूडडय़ााँ समलें?' यह र्वच़ार कर उरहें रोऩा आय़ा, कलेिे में हूक-िी उिने लगी। परींतु रूप़ा के भय िे उरहोंने कफर
मौन ध़ारण कर सलय़ा।
बूढ़ी क़ाकी देर तक इरह़ी दुखद़ायक र्वच़ारों में िूबी रह़ीीं। घी और मि़ालों की िुगींगध रह-रहकर मन को आपे िे
ब़ाहर ककए देती थी। मुाँह में प़ानी भर-भर आत़ा थ़ा। पूडडयों क़ा स्व़ाद स्मरण करके हृदय में गुदगुद़ी होने लगती
थी। ककिे पुक़ारूाँ , आि ल़ािल़ी बेट़ी भी नह़ीीं आई। दोनों छोकरे िद़ा ददक ददय़ा करते हैं। आि उनक़ा भी कह़ीीं पत़ा
नह़ीीं। कु छ म़ालूम तो होत़ा कक क्य़ा बन रह़ा है।बूढ़ी क़ाकी की कल्पऩा में पूडडयों की तस्वीर ऩाचने लगी। खूब
ल़ाल-ल़ाल, फू ल़ी-फू ल़ी, नरम-नरम होंगीीं। रूप़ा ने भल़ी-भ़ााँतत भोिन ककय़ा होग़ा। कचौडडयों में अिव़ाइन और
इल़ायची की महक आ रह़ी होगी। एक पूडी समलती तो िऱा ह़ाथ में लेकर देखती। क्यों न चल कर कड़ाह के
5. ि़ामने ह़ी बैिूाँ। पूडडय़ााँ छन-छनकर तैय़ार होंगी। कड़ाह िे गरम-गरम तनक़ालकर थ़ाल में रखी ि़ाती होंगी।
फू ल हम घर में भी िूाँघ िकते हैं, पररतु व़ादटक़ा में कु छ और ब़ात होती है। इि प्रक़ार तनणिय करके बूढ़ी क़ाकी
उकडूाँ बैिकर ह़ाथों के बल िरकती हुई बडी कदिऩाई िे चौखट िे उतऱीीं और धीरे-धीरे रेंगती हुई कड़ाह के प़ाि ि़ा
बैिीीं। यह़ााँ आने पर उरहें उतऩा ह़ी धैयि हुआ जितऩा भूखे कु तते को ख़ाने व़ाले के िम्मुख बैिने में होत़ा है।
रूप़ा उि िमय क़ायिभ़ार िे उद्र्वग्न हो रह़ी थी। कभी इि कोिे में ि़ाती, कभी उि कोिे में, कभी कड़ाह के प़ाि
ि़ाती, कभी भींि़ार में ि़ाती। ककिी ने ब़ाहर िे आकर कह़ा--'मह़ाऱाि िींिई म़ाींग रहे हैं।' िींिई देने लगी। इतने में
कफर ककिी ने आकर कह़ा--'भ़ाट आय़ा है, उिे कु छ दे दो।' भ़ाट के सलए िीध़ा तनक़ाल रह़ी थी कक एक तीिरे
आदमी ने आकर पूछ़ा--'अभी भोिन तैय़ार होने में ककतऩा र्वलम्ब है? िऱा ढोल, मिीऱा उत़ार दो।' बेच़ाऱी अके ल़ी
स्त्री दौडते-दौडते व्य़ाकु ल हो रह़ी थी, झुींझल़ाती थी, कु ढती थी, पररतु क्रोध प्रकट करने क़ा अविर न प़ाती थी।
भय होत़ा, कह़ीीं पडोसिनें यह न कहने लगें कक इतने में उबल पडीीं। प्य़ाि िे स्वयीं कीं ि िूख रह़ा थ़ा। गमी के म़ारे
फुाँ की ि़ाती थी, पररतु इतऩा अवक़ाश न थ़ा कक िऱा प़ानी पी ले अथव़ा पींख़ा लेकर झले। यह भी खटक़ा थ़ा कक
िऱा आाँख हट़ी और चीजों की लूट मची। इि अवस्थ़ा में उिने बूढ़ी क़ाकी को कड़ाह के प़ाि बैिी देख़ा तो िल
गई। क्रोध न रुक िक़ा। इिक़ा भी ध्य़ान न रह़ा कक पडोसिनें बैिी हुई हैं, मन में क्य़ा कहेंगीीं। पुरुषों में लोग
िुनेंगे तो क्य़ा कहेंगे। जिि प्रक़ार मेंढक कें चुए पर झपटत़ा है, उिी प्रक़ार वह बूढ़ी क़ाकी पर झपट़ी और उरहें
दोनों ह़ाथों िे झटक कर बोल़ी-- ऐिे पेट में आग लगे, पेट है य़ा भ़ाड? कोिऱी में बैिते हुए क्य़ा दम घुटत़ा थ़ा?
अभी मेहम़ानों ने नह़ीीं ख़ाय़ा, भगव़ान को भोग नह़ीीं लग़ा, तब तक धैयि न हो िक़ा? आकर छ़ाती पर िवर हो
गई। िल ि़ाए ऐिी िीभ। ददन भर ख़ाती न होती तो ि़ाने ककिकी ह़ाींिी में मुाँह ि़ालती? ग़ााँव देखेग़ा तो कहेग़ा
कक बुदढय़ा भरपेट ख़ाने को नह़ीीं प़ाती तभी तो इि तरह मुाँह ब़ाए कफरती है। ि़ायन न मरे न म़ाींच़ा छोडे। ऩाम
बेचने पर लगी है। ऩाक कटव़ा कर दम लेगी। इतनी िूाँिती है न ि़ाने कह़ाीं भस्म हो ि़ात़ा है। भल़ा च़ाहती हो तो
ि़ाकर कोिऱी में बैिो, िब घर के लोग ख़ाने लगेंगे, तब तुम्हे भी समलेग़ा। तुम कोई देवी नह़ीीं हो कक च़ाहे ककिी
के मुाँह में प़ानी न ि़ाए, पररतु तुम्ह़ाऱी पूि़ा पहले ह़ी हो ि़ाए।
बूढ़ी क़ाकी ने सिर उि़ाय़ा, न रोईं न बोल़ीीं। चुपच़ाप रेंगती हुई अपनी कोिऱी में चल़ी गईं। आव़ाज ऐिी किोर थी
कक हृदय और मजष्तष्क की िम्पूणि शजक्तय़ााँ, िम्पूणि र्वच़ार और िम्पूणि भ़ार उिी ओर आकर्षित हो गए थे। नद़ी
में िब कग़ार क़ा कोई वृहद खींि कटकर गगरत़ा है तो आि-प़ाि क़ा िल िमूह च़ारों ओर िे उिी स्थ़ान को पूऱा
करने के सलए दौडत़ा है।
भोिन तैय़ार हो गय़ा है। आींगन में पततलें पड गईं, मेहम़ान ख़ाने लगे। जस्त्रयों ने िेवऩार-गीत ग़ाऩा आरम्भ कर
ददय़ा। मेहम़ानों के ऩाई और िेवकगण भी उिी मींिल़ी के ि़ाथ, ककीं तु कु छ हटकर भोिन करने बैिे थे, पररतु
िभ्यत़ानुि़ार िब तक िब-के -िब ख़ा न चुकें कोई उि नह़ीीं िकत़ा थ़ा। दो-एक मेहम़ान िो कु छ पढे-सलखे थे,
6. िेवकों के द़ीघ़ािह़ार पर झुींझल़ा रहे थे। वे इि बींधन को व्यथि और बेक़ार की ब़ात िमझते थे।
बूढ़ी क़ाकी अपनी कोिऱी में ि़ाकर पश्च़ात़ाप कर रह़ी थी कक मैं कह़ााँ-िे-कह़ााँ आ गई। उरहें रूप़ा पर क्रोध नह़ीीं थ़ा।
अपनी िल्दब़ाजी पर दुख थ़ा। िच ह़ी तो है िब तक मेहम़ान लोग भोिन न कर चुकें गे, घर व़ाले कै िे ख़ाएींगे।
मुझ िे इतनी देर भी न रह़ा गय़ा। िबके ि़ामने प़ानी उतर गय़ा। अब िब तक कोई बुल़ाने नह़ीीं आएग़ा, न
ि़ाऊीं गी।
मन-ह़ी-मन इि प्रक़ार क़ा र्वच़ार कर वह बुल़ाने की प्रतीक्ष़ा करने लगीीं। पररतु घी की रुगचकर िुव़ाि बडी धैर्यि-
पऱीक्षक प्रतीत हो रह़ी थी। उरहें एक-एक पल एक-एक युग के िम़ान म़ालूम होत़ा थ़ा। अब पततल बबछ गई होगी।
अब मेहम़ान आ गए होंगे। लोग ह़ाथ पैर धो रहे हैं, ऩाई प़ानी दे रह़ा है। म़ालूम होत़ा है लोग ख़ाने बैि गए।
िेवऩार ग़ाय़ा ि़ा रह़ा है, यह र्वच़ार कर वह मन को बहल़ाने के सलए लेट गईं। धीरे-धीरे एक गीत गुनगुऩाने लगीीं।
उरहें म़ालूम हुआ कक मुझे ग़ाते देर हो गई। क्य़ा इतनी देर तक लोग भोिन कर ह़ी रहे होंगे। ककिी की आव़ाज
िुऩाई नह़ीीं देती। अवश्य ह़ी लोग ख़ा-पीकर चले गए। मुझे कोई बुल़ाने नह़ीीं आय़ा है। रूप़ा गचढ गई है, क्य़ा ि़ाने
न बुल़ाए। िोचती हो कक आप ह़ी आवेंगीीं, वह कोई मेहम़ान तो नह़ीीं िो उरहें बुल़ाऊाँ । बूढ़ी क़ाकी चलने को तैय़ार
हुईं। यह र्वश्व़ाि कक एक समनट में पूडडय़ााँ और मि़ालेद़ार तरक़ाररय़ाीं ि़ामने आएींगीीं, उनकी स्व़ादेजरियों को
गुदगुद़ाने लग़ा। उरहोंने मन में तरह-तरह के मींिूबे ब़ाींधे-- पहले तरक़ाऱी िे पूडडय़ााँ ख़ाऊीं गी, कफर दह़ी और शक्कर
िे, कचौररय़ााँ ऱायते के ि़ाथ मजेद़ार म़ालूम होंगी। च़ाहे कोई बुऱा म़ाने च़ाहे भल़ा, मैं तो म़ाींग-म़ाींगकर ख़ाऊीं गी। यह़ी
न लोग कहेंगे कक इरहें र्वच़ार नह़ीीं? कह़ा करें, इतने ददन के ब़ाद पूडडय़ााँ समल रह़ी हैं तो मुाँह झूि़ा करके थोडे ह़ी
उि ि़ाऊीं गी ।
वह उकडूाँ बैिकर िरकते हुए आींगन में आईं। पररतु ह़ाय दुभ़ािग्य! असभल़ाष़ा ने अपने पुऱाने स्वभ़ाव के अनुि़ार
िमय की समथ्य़ा कल्पऩा की थी। मेहम़ान-मींिल़ी अभी बैिी हुई थी। कोई ख़ाकर उींगसलय़ााँ च़ाटत़ा थ़ा, कोई ततरछे
नेत्रों िे देखत़ा थ़ा कक और लोग अभी ख़ा रहे हैं य़ा नह़ीीं। कोई इि गचींत़ा में थ़ा कक पततल पर पूडडय़ााँ छू ट़ी ि़ाती
हैं ककिी तरह इरहें भीतर रख लेत़ा। कोई दह़ी ख़ाकर चटक़ारत़ा थ़ा, पररतु दूिऱा दोऩा म़ाींगते िींकोच करत़ा थ़ा कक
इतने में बूढ़ी क़ाकी रेंगती हुई उनके बीच में आ पहुाँची। कई आदमी चौंककर उि खडे हुए। पुक़ारने लगे-- अरे, यह
बुदढय़ा कौन है? यह़ााँ कह़ााँ िे आ गई? देखो, ककिी को छू न दे।
पींडित बुर्िऱाम क़ाकी को देखते ह़ी क्रोध िे ततलसमल़ा गए। पूडडयों क़ा थ़ाल सलए खडे थे। थ़ाल को जमीन पर
पटक ददय़ा और जिि प्रक़ार तनदियी मह़ािन अपने ककिी बेइम़ान और भगोडे कजिद़ार को देखते ह़ी उिक़ा टेंटुआ
पकड लेत़ा है उिी तरह लपक कर उरहोंने क़ाकी के दोनों ह़ाथ पकडे और घिीटते हुए ल़ाकर उरहें अींधेऱी कोिऱी में
धम िे पटक ददय़ा। आश़ारूपी वदटक़ा लू के एक झोंके में र्वनष्ट हो गई।
7. मेहम़ानों ने भोिन ककय़ा। घरव़ालों ने भोिन ककय़ा। ब़ािे व़ाले, धोबी, चम़ार भी भोिन कर चुके , पररतु बूढ़ी क़ाकी
को ककिी ने न पूछ़ा। बुर्िऱाम और रूप़ा दोनों ह़ी बूढ़ी क़ाकी को उनकी तनलिज्ित़ा के सलए दींि देने क तनश्चय कर
चुके थे। उनके बुढ़ापे पर, द़ीनत़ा पर, हतज्ञ़ान पर ककिी को करुण़ा न आई थी। अके ल़ी ल़ािल़ी उनके सलए कु ढ रह़ी
थी।
ल़ािल़ी को क़ाकी िे अतयींत प्रेम थ़ा। बेच़ाऱी भोल़ी लडकी थी। ब़ाल-र्वनोद और चींचलत़ा की उिमें गींध तक न थी।
दोनों ब़ार िब उिके म़ात़ा-र्पत़ा ने क़ाकी को तनदियत़ा िे घिीट़ा तो ल़ािल़ी क़ा हृदय ऎींिकर रह गय़ा। वह झुींझल़ा
रह़ी थी कक हम लोग क़ाकी को क्यों बहुत-िी पूडडय़ााँ नह़ीीं देते। क्य़ा मेहम़ान िब-की-िब ख़ा ि़ाएींगे? और यदद
क़ाकी ने मेहम़ानों िे पहले ख़ा सलय़ा तो क्य़ा बबगड ि़ाएग़ा? वह क़ाकी के प़ाि ि़ाकर उरहें धैयि देऩा च़ाहती थी,
पररतु म़ात़ा के भय िे न ि़ाती थी। उिने अपने दहस्िे की पूडडय़ााँ बबल्कु ल न ख़ाईं थीीं। अपनी गुडडय़ा की र्पट़ाऱी
में बरद कर रखी थीीं। उन पूडडयों को क़ाकी के प़ाि ले ि़ाऩा च़ाहती थी। उिक़ा हृदय अधीर हो रह़ा थ़ा। बूढ़ी
क़ाकी मेऱी ब़ात िुनते ह़ी उि बैिेंगीीं, पूडडय़ााँ देखकर कै िी प्रिरन होंगीीं! मुझे खूब प्य़ार करेंगीीं।
ऱात को ग्य़ारह बि गए थे। रूप़ा आींगन में पडी िो रह़ी थी। ल़ािल़ी की आाँखों में नीींद न आती थी। क़ाकी को
पूडडय़ााँ खखल़ाने की खुशी उिे िोने न देती थी। उिने गु ु़डडयों की र्पट़ाऱी ि़ामने रखी थी। िब र्वश्व़ाि हो गय़ा कक
अम्म़ा िो रह़ी हैं, तो वह चुपके िे उिी और र्वच़ारने लगी, कै िे चलूाँ। च़ारों ओर अींधेऱा थ़ा। के वल चूल्हों में आग
चमक रह़ी थी और चूल्हों के प़ाि एक कु तत़ा लेट़ा हुआ थ़ा। ल़ािल़ी की दृजष्ट ि़ामने व़ाले नीम पर गई। उिे
म़ालूम हुआ कक उि पर हनुम़ान िी बैिे हुए हैं। उनकी पूाँछ, उनकी गद़ा, वह स्पष्ट ददखल़ाई दे रह़ी है। म़ारे भय
के उिने आाँखें बींद कर ल़ीीं। इतने में कु तत़ा उि बैि़ा, ल़ािल़ी को ढ़ाढि हुआ। कई िोए हुए मनुष्यों के बदले एक
भ़ागत़ा हुआ कु तत़ा उिके सलए अगधक धैयि क़ा क़ारण हुआ। उिने र्पट़ाऱी उि़ाई और बूढ़ी क़ाकी की कोिऱी की ओर
चल़ी।
बूढ़ी क़ाकी को के वल इतऩा स्मरण थ़ा कक ककिी ने मेरे ह़ाथ पकडकर घिीटे, कफर ऐि़ा म़ालूम हुआ कक िैिे कोई
पह़ाड पर उड़ाए सलए ि़ात़ा है। उनके पैर ब़ार-ब़ार पतथरों िे टकऱाए तब ककिी ने उरहें पह़ाड पर िे पटक़ा, वे
मूतछित हो गईं।
िब वे िचेत हुईं तो ककिी की जऱा भी आहट न समलती थी। िमझी कक िब लोग ख़ा-पीकर िो गए और उनके
ि़ाथ मेऱी तकद़ीर भी िो गई। ऱात कै िे कटेगी? ऱाम! क्य़ा ख़ाऊाँ ? पेट में अजग्न धधक रह़ी है। ह़ा! ककिी ने मेऱी
िुगध न ल़ी।
8. क्य़ा मेऱा पेट क़ाटने िे धन िुड ि़ाएग़ा? इन लोगों को इतनी भी दय़ा नह़ीीं आती कक न ि़ाने बुदढय़ा कब मर
ि़ाए? उिक़ा िी क्यों दुख़ावें? मैं पेट की रोदटय़ााँ ह़ी ख़ाती हूाँ कक और कु छ? इि पर यह ह़ाल। मैं अींधी, अप़ादहि
िहऱी, न कु छ िुनूाँ, न बूझूाँ। यदद आींगन में चल़ी गई तो क्य़ा बुर्िऱाम िे इतऩा कहते न बनत़ा थ़ा कक क़ाकी
अभी लोग ख़ाऩा ख़ा रहे हैं कफर आऩा। मुझे घिीट़ा, पटक़ा। उरह़ी पूडडयों के सलए रूप़ा ने िबके ि़ामने ग़ासलय़ााँ
द़ीीं। उरह़ीीं पूडडयों के सलए इतनी दुगितत करने पर भी उनक़ा पतथर क़ा कलेि़ा न पिीि़ा। िबको खखल़ाय़ा, मेऱी ब़ात
तक न पूछी। िब तब ह़ी न द़ीीं, तब अब क्य़ा देंगे? यह र्वच़ार कर क़ाकी तनऱाश़ामय िींतोष के ि़ाथ लेट गई।
ग्ल़ातन िे गल़ा भर-भर आत़ा थ़ा, पररतु मेहम़ानों के भय िे रोती न थीीं। िहि़ा क़ानों में आव़ाज आई-- 'क़ाकी
उिो, मैं पूडडय़ाीं ल़ाई हूाँ।' क़ाकी ने ल़ाडल़ी की बोल़ी पहच़ानी। चटपट उि बैिीीं। दोनों ह़ाथों िे ल़ािल़ी को टटोल़ा
और उिे गोद में बबि़ा सलय़ा। ल़ािल़ी ने पूडडय़ााँ तनक़ालकर द़ीीं।
क़ाकी ने पूछ़ा-- क्य़ा तुम्ह़ाऱी अम्म़ा ने द़ी है?
ल़ािल़ी ने कह़ा-- नह़ीीं, यह मेरे दहस्िे की हैं।
क़ाकी पूडडयों पर टूट पिीीं। प़ााँच समनट में र्पट़ाऱी ख़ाल़ी हो गई। ल़ािल़ी ने पूछ़ा-- क़ाकी पेट भर गय़ा।
िैिे थोडी-िी वष़ाि िींिक के स्थ़ान पर और भी गमी पैद़ा कर देती है उि भ़ााँतत इन थोडी पूडडयों ने क़ाकी की क्षुध़ा
और इक्ष़ा को और उततेजित कर ददय़ा थ़ा। बोल़ीीं-- नह़ीीं बेट़ी, ि़ाकर अम्म़ा िे और म़ाींग ल़ाओ।
ल़ाडल़ी ने कह़ा-- अम्म़ा िोती हैं, िग़ाऊीं गी तो म़ारेंगीीं।
क़ाकी ने र्पट़ाऱी को कफर टटोल़ा। उिमें कु छ खुचिन गगऱी थी। ब़ार-ब़ार होंि च़ाटती थीीं, चटख़ारे भरती थीीं।
हृदय मिोि रह़ा थ़ा कक और पूडडय़ााँ कै िे प़ाऊाँ । िींतोष-िेतु िब टूट ि़ात़ा है तब इच्छ़ा क़ा बह़ाव अपररसमत हो
ि़ात़ा है। मतव़ालों को मद क़ा स्मरण करऩा उरहें मद़ाींध बऩात़ा है। क़ाकी क़ा अधीर मन इच्छ़ाओीं के प्रबल प्रव़ाह
में बह गय़ा। उगचत और अनुगचत क़ा र्वच़ार ि़ात़ा रह़ा। वे कु छ देर तक उि इच्छ़ा को रोकती रह़ीीं। िहि़ा ल़ािल़ी
िे बोल़ीीं-- मेऱा ह़ाथ पकडकर वह़ााँ ले चलो, िह़ााँ मेहम़ानों ने बैिकर भोिन ककय़ा है।
ल़ािल़ी उनक़ा असभप्ऱाय िमझ न िकी। उिने क़ाकी क़ा ह़ाथ पकड़ा और ले ि़ाकर झूिे पततलों के प़ाि बबि़ा
ददय़ा। द़ीन, क्षुध़ातुर, हत् ज्ञ़ान बुदढय़ा पततलों िे पूडडयों के टुकडे चुन-चुनकर भक्षण करने लगी। ओह... दह़ी
ककतऩा स्व़ाददष्ट थ़ा, कचौडडय़ााँ ककतनी िलोनी, खस्त़ा ककतने िुकोमल। क़ाकी बुर्िह़ीन होते हुए भी इतऩा ि़ानती
थीीं कक मैं वह क़ाम कर रह़ी हूीं, िो मुझे कद़ार्प न करऩा च़ादहए।
मैं दूिरों की झूिी पततल च़ाट रह़ी हूाँ। पररतु बुढ़ाप़ा तृष्ण़ा रोग क़ा अींततम िमय है, िब िम्पूणि इच्छ़ाएाँ एक ह़ी
के रि पर आ लगती हैं। बूढ़ी क़ाकी में यह के रि उनकी स्व़ादेजरिय थी।
9. िीक उिी िमय रूप़ा की आाँख खुल़ी। उिे म़ालूम हुआ कक ल़ाडल़ी मेरे प़ाि नह़ीीं है। वह चौंकी, च़ारप़ाई के इधर-
उधर त़ाकने लगी कक कह़ीीं नीचे तो नह़ीीं गगर पडी। उिे वह़ााँ न प़ाकर वह उिी तो क्य़ा देखती है कक ल़ाडल़ी िूिे
पततलों के प़ाि चुपच़ाप खडी है और बूढ़ी क़ाकी पततलों पर िे पूडडयों के टुकडे उि़ा-उि़ाकर ख़ा रह़ी है। रूप़ा क़ा
हृदय िरन हो गय़ा। ककिी ग़ाय की गरदन पर छु ऱी चलते देखकर िो अवस्थ़ा उिकी होती, वह़ी उि िमय हुई।
एक ब्ऱाह्मणी दूिरों की झूिी पततल टटोले, इििे अगधक शोकमय दृश्य अिींभव थ़ा। पूडडयों के कु छ ग्ऱािों के सलए
उिकी चचेऱी ि़ाि ऐि़ा तनष्कृ ष्ट कमि कर रह़ी है। यह वह दृश्य थ़ा जििे देखकर देखने व़ालों के हृदय क़ााँप उिते
हैं। ऐि़ा प्रतीत होत़ा म़ानो जमीन रुक गई, आिम़ान चक्कर ख़ा रह़ा है। िींि़ार पर कोई आपजतत आने व़ाल़ी है।
रूप़ा को क्रोध न आय़ा। शोक के िम्मुख क्रोध कह़ााँ? करुण़ा और भय िे उिकी आाँखें भर आईं। इि अधमि क़ा
भ़ागी कौन है? उिने िच्चे हृदय िे गगन मींिल की ओर ह़ाथ उि़ाकर कह़ा-- परम़ातम़ा, मेरे बच्चों पर दय़ा करो।
इि अधमि क़ा दींि मुझे मत दो, नह़ीीं तो मेऱा ितय़ाऩाश हो ि़ाएग़ा।
रूप़ा को अपनी स्व़ाथिपरत़ा और अरय़ाय इि प्रक़ार प्रतयक्ष रूप में कभी न ददख पडे थे। वह िोचने लगी-- ह़ाय!
ककतनी तनदिय हूाँ। जििकी िम्पतत िे मुझे दो िौ रुपय़ा आय हो रह़ी है, उिकी यह दुगितत। और मेरे क़ारण। हे
दय़ामय भगव़ान! मुझिे बडी भ़ाऱी चूक हुई है, मुझे क्षम़ा करो। आि मेरे बेटे क़ा ततलक थ़ा। िैकडों मनुष्यों ने
भोिन प़ाय़ा। मैं उनके इश़ारों की द़ािी बनी रह़ी। अपने ऩाम के सलए िैकडों रुपए व्यय कर ददए, पररतु जििकी
बदौलत हज़ारों रुपए ख़ाए, उिे इि उतिव में भी भरपेट भोिन न दे िकी। के वल इिी क़ारण तो, वह वृि़ा
अिह़ाय है।
रूप़ा ने ददय़ा िल़ाय़ा, अपने भींि़ार क़ा द्व़ार खोल़ा और एक थ़ाल़ी में िम्पूणि ि़ामगग्रय़ाीं िि़ाकर बूढ़ी क़ाकी की
ओर चल़ी।
आधी ऱात ि़ा चुकी थी, आक़ाश पर त़ारों के थ़ाल ििे हुए थे और उन पर बैिे हुए देवगण स्वगीय पद़ाथि िि़ा रहे
थे, पररतु उिमें ककिी को वह परम़ानींद प्ऱाप्त न हो िकत़ा थ़ा, िो बूढ़ी क़ाकी को अपने िम्मुख थ़ाल देखकर
प्ऱाप्त हुआ। रूप़ा ने कीं ि़ारुि स्वर में कह़ा---क़ाकी उिो, भोिन कर लो। मुझिे आि बडी भूल हुई, उिक़ा बुऱा न
म़ानऩा। परम़ातम़ा िे प्ऱाथिऩा कर दो कक वह मेऱा अपऱाध क्षम़ा कर दें।
भोले-भोले बच्चों की भ़ााँतत, िो समि़ाइय़ााँ प़ाकर म़ार और ततरस्क़ार िब भूल ि़ात़ा है, बूढ़ी क़ाकी वैिे ह़ी िब
भुल़ाकर बैिी हुई ख़ाऩा ख़ा रह़ी थी। उनके एक-एक रोंए िे िच्ची िददच्छ़ाएाँ तनकल रह़ी थीीं और रूप़ा बैिी स्वगीय
दृश्य क़ा आनरद लेने में तनमग्न थी।
13. Kaki’s room when she’s first thinking about how amazing the experience of smelling flowers is in a
garden than just being next to one, so she decides to go to the kitchen and enjoy the experience of all
the delicacies prepared for the “tilak”.
15. Scene in the kitchen when Roopa is yelling at Kaki and starts dragging her out.
16. Kaki is back in her room after Roopa drags her there.
Kaki starts thinking about the dinner again and feels that since she’s not a guest nobody will call her
separately for dinner so she should probably help herself.
She imagines the entire marriage scene happening outside and then gets ready to leave her
room again.
17. Kaki reaches the marriage scene where the guests are sitting and having dinner. They start
snickering on seeing her.
Kaki’s nephew, Budhiram, sees her at the dinner area and gets furious.
He embarrasses her in front of everyone and then drags her out of the scene and locks her in
the closet, “kothri”.
18. Budhiram, leaves Kaki to her hunger and misery in the closet.
Kaki is really upset and full of self pity. She’s starving, but can’t get the courage to go outside again.
While she’s fantasizing about the mouth-watering dinner, Ladli enters her room and offers Kaki, her
share of food.
19. Last scene- outside the house, where Roopa has served Kaki the entire dinner and regrets her
actions towards Kaki earlier. She prays to God for forgiveness and asks Kaki to forgive her as well.