प्लेटो का काव्य सिद्धांत.PPT केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखण्ड, राँची
1. झारखंड क
ें द्रीय विश्वविद्यालय,राँची
हिन्दी विभाग –(2022-2024)
प्लेटो का काव्य सिद्धांत
निर्देशि
डॉ. उपेंद्र कुमार ‘सत्यार्थी’
(सहायक प्राध्यापक ,नहन्र्दी निभाग )
प्रस्तुतकताा
1-आयशा मक़्सूर
2-अिानमका कुमारी
3-अरुण कुमार
सरोजनी नायडू समूह
2. पररचय
नाम - प्लेटो (अंग्रेजी)
जन्म - 427 ईसा पूर्व (एथेंस,यूनान )
मृत्यु - 347 ईसा पूर्व
मूलनाम – अरिस्तोक्लीस
सुकिात द्वािा नाम - प्लातोन
➢ प्लेटो ‘सुकिात’ क
े मेधार्ी छात्र थे |
➢ प्लेटो को भाित में ‘अफलातून’ कहा गया है |
➢ प्लेटो को आदर्वर्ाद का जनक कहा जाता है |
➢ प्लेटो संस्काि औि स्वभार् से ‘कवर्’ तथा शर्क्षा औि परिस्थिवत से ‘दार्ववनक’ थे। र्े सत्य क
े
उपासक औि तक
व का हहमायती थे। र्ास्तवर्कता यह है कक प्लेटो ने ‘सुकिात’ क
े वर्चािों को
‘संर्ाद र्ैली’ में शलवपबद्ध ककया। मूलतः प्लेटो का लक्ष्य ‘काव्य शसद्धांत’ का सृजन किना नहीं
बल्कि ‘आदर्व गणिाज्य’ की िापना किना था।
3. प्रमुख रचनाएँ
➢ प्लेटो क
े क
ु ल 36 ग्रंथों का शजक्र ममलता है,शजनमे 23 संर्ाद औि 13 आलेख पत्र क
े रूप में हैं।
➢ इओन (काव्य), क्र
े रटलुस, प्रोटोगोिस, गोवगियास, शसम्पोशजयम, रिपस्थिक (काव्य), फ्र
े दुस,
कफलेबुस, द लॉज, हद रिपस्थिक (पोशलरटया, गणतंत्र), हद स्टेट्समैन, हद लॉज (नोमोइ),
शसम्पोशजयम औि इयोन इनक
े प्रमुख ग्रन्थ है।
1.‘दि ररपब्लिक’ (आिर्श गणराज्य िंबंधी)-
➢ रिपस्थिक ग्रंथ िाजनीवत मचिंतन औि आदर्व िाज्य का एक महत्वपूणव दस्तार्ेज है।
➢ यह कवर्ता औि नाटकीय र्ैली में शलखी गई है।
➢ प्लेटो ने ‘रिपस्थिक’ में शलखा है कक, “गुलामी मृत्यु से भी भयार्ह है।”
2. ‘दि स्टेट्िमैन’ (आिर्श राजनेता िंबंध)
3. ‘दि लॉज’ (विधध िंबंधी)
उपर्युक्त ग्रंथों में उन्होंने प ाँच द र्ुननक निषर्ों क ननरूपप ककर् है–
1. आदर्व िाज्य
2. आत्मा की अमित्व
3. प्रत्यय शसद्धांत
4. सृमि का र्ास्त्र
5. ज्ञान मीमांसा
4. काव्य सिद्धांत
प्लेटो क व्य क
े दो सिद् ंत ददर्े-
I. काव्य की उत्पवि शसद्धांत ( दैर्ीय प्रेिणा का शसद्धांत )
II. अनुकिण शसद्धांत
I. क व्य की उत्पत्ति सिद् ंत ( दैिीर् प्रेर क सिद् ंत )
I. काव्य सृजन एक प्रकाि से ईश्विीय उन्माद का परिणाम है |
II. कवर् की काव्य चेतना एक बांसुिी है शजसमें स्वि फ
ु कने का काम ईश्वि किता है अथर्ा
काव्य एक र्ीणा है शजसक
े ताि ईश्वि क
े स्पर्व से झंक
ृ त हो उठते है | कवर् क
े र्ल माध्यम
है र्ास्तवर्क िचमयता ईश्वि है|
III. प्लेटो ने काव्य को नैवतकता एर्ं उपयोगर्ादी दृमिकोण से देखा है
प्लेटो ने क व्य और कनि पर तीन गंभीर आरोप लग ए है-
I. काव्य अनुक
ृ वत का अनुक
ृ वत है |
II. कवर् स्वयं अज्ञानी होने क
े साथ-साथ अज्ञानता का प्रचािक है |
III. कवर् समाज में अनाचाि का पोषण किने र्ाला अपिाधी है |
5. प्लेटो ने क व्य क
े तीन प्रमयख भेद स्वीक र ककए हैं -
1. अनयकर त्मक क व्य-
I. प्रहसन ( व्यंग/हास्य )
II. दुखांत
2. ि ुत्मक क व्य-
I. र्ब्द
II. माधुयव
III. लय
3. त्तमश्र (मह क व्य )-
ऐसा काव्य शजसमें कवर् क
ु छ अंर् तक अपने माध्यम से औि क
ु छ अंर् पात्रो क
े
माध्यम से अपनी बात कहता है -
प्लेटो क
े क व्य सिद् ंत क
े निर्ेष तथ्य -
➢ प्लेटो ने काव्य की देर्ी को ‘म्युजेज़’कहा है –
➢ प्लेटो ने त्रासदी को दूवषत वर्चािों का पोषण कि व्यवि उन्माद ग्रस्त किनेर्ाली िचना
माना है -
6. ➢ प्लेटो काव्य को जला देनेर्ाली बात कहते है –
➢ प्लेटो ‘मोची’ का महत्व ‘कवर्’ की तुलना में अमधक देते है-
➢ प्लेटो स्वंम एक कवर् थे | उनकी काव्य िचना ‘ऑक्सफोर्व बुक ऑफ र्सव’ में संकशलत है -
2. अनयकर सिद् ंत
➢ कला की अनुकिण मूलकता की उद्भार्ना का श्रेय प्लेटो को हदया जाता है-
➢ प्लेटो आदर्व िाज्य से कवर् र् साहहत्यकाि क
े वनष्कासन की र्कालत किते है | क्योंकक
कवर् सत्य क
े अनुकिण का अनुकिण किता है –
➢ प्लेटो की दृमि से अनुकिण का अथव ‘हु-बहु’ नकल है -
प्लेटो क
े अनयि र िस्तय क
े तीन रूपप होते है -
1. आदर्ु रूपप - ईश्वि बनाता है (यह सत्य है)
2. ि स्तनिक रूपप – कािीगि बनाता है ( सत्य से दुगुना दूि है)
3. अनयक
ृ नत रूपप – कलाकाि बनाता है (सत्य से वतगुना है )
7. उद हर -
ईश्वि ने पलंग का रूप बनाया अतः यह सत्य है | कािीगि ने आदर्व का नकल किते हुए
र्ास्तवर्क पलंग बनाया औि कलाकाि ने उसका मचत्र बनाया |
➢ र्स्तु जगत एर्ं कला जगत दोनों को असत्य इसीशलए माना है कक ईश्वि द्वािा वनममित पलंग
की नकल किक
े ही दूसिे पलंग का वनमावण होगा | इस आधाि पि प्लेटो ने ‘कला नकल
का कला’ है ‘छाया की छाया’ कहा है |
➢ काव्य एर्ं अन्य कलाएं सत्य से वतगुना दूि होने क
े कािण ‘त्याज्य’ है |
➢ प्लेटो का मत था कक कवर् यर् औि कीवति चाहता है | इसक
े शलए र्ह पाठको र् श्रोताओं
कक र्ासनाओ को उिेशजत कि लोकवप्रय बनता है |
प्लेटो क
े अनयि र िद्क व्य क
े गय -
➢ काव्य में सिलता पि बल देते है |
➢ काव्य में उद्देश्य की एकता तथा आध्यात्मत्मकता होनी चाहहए |
➢ काव्य क
े वर्षय का संबंध धमव औि नीवत से होना चाहहए |
➢ प्लेटो ने काव्य में कल्पना का वर्िोध ककया है |
8. प्लेटो क
े मत की िमीक्ष -
➢ प्लेटो ने अपनी आदर्वर्ाहदता क
े कािण का पूणव बहहष्काि ककया ,ककन्तु यह भी
उल्लेखनीय है कक उसकी दृमि एकांगी थी |
➢ र्स्तुतः र्ह काव्य मीमांसक न होकि दार्ववनक एर्ं िाजनीवतज्ञ था |
➢ प्लेटो का लक्ष्य आदर्व गणिाज्य कक प्रवतष्ठा किना था ऐसी स्थिवत में कवर्ता का अपमान
यहद उसक
े द्वािा हुआ तो इसमें क्या आश्चयव ?
➢ प्लेटो का मचिंतन दूवषत एर्ं पूर्ावग्रह से युि था |
➢ र्ह उपयोवगता क
े अवतरिि सौंदयव बोध एर्ं आनंद को महत्व देता है |
➢ कला क
े दो भेद माने माने लशलत कलाएं एर्ं उपयोगी कलाएं |
➢ कवर् को मोची से तुच्छ मानना प्लेटो की वर्र्ेकहीनता ही है |
➢ प्लेटो का यह कथन भी नही है कक कवर्ता अनुपयोगी है | कवर्ता मनोिंजन क
े साथ–साथ
जो नैवतक संदेर् देती है,र्ह ककसी से मछपा नही है | काव्य का सत्यम,शर्र्म,सुंदिम से
समत्मित होता है,अतः कवर्ता हि समाज में सदा से है औि सदा िहेगी,हााँ जानर्िो को
इसकी जरूित नही है |
9. प्लेटो क
े मत क ि र -
समग्रतः प्लेटो ने काव्य क
े संबंध में जो वर्चाि व्यि ककए उनका साि इस प्रकाि है |
➢ कवर्ता जगत की अनुक
ृ वत है | जगत स्वंय अनुक
ृ वत है अतः सत्य से दुगुनी दूि है |
➢ कवर्ता भार्ों का उद्वेलन कि व्यवि को क
ु मागवगामी बनाती है |
➢ कवर्ता अनुपयोगी है | कवर् का महत्व एक मोची से कम है |
➢ काव्य की कसौटी सदाचाि औि उपयोवगता है |
➢ प्लेटो क
े अनुसाि काव्य क
े प्रयोजन है – सत्य का उद्घाटन,मानर् कल्याण औि िाष्ट्रोत्थान |
➢ कवर्ता को अनुकिण मानता हुआ कहता है – “कलाकाि र्ास्तवर्क जीर्न क
े पदाथो को
उत्पन्न नही किते,र्े क
े र्ल उनकी छायाओ वबम्बों का ही वनमावण किते है” काव्य का
अनुकिण का अनुकिण होने से सत्य से दुगुना दूि है |
➢ स्पि ही प्लेटो उच्च नैवतक मूल्यों का पक्षधि था र्ह कहता है- “यहद कवर्ता क
े प्रर्ंसक
यह शसध्द किे कक कवर्ता न क
े र्ल आनंदप्रद है ,र्िन र्ह समाज औि मानर्जावत क
े शलए
उपयोगी भी है, तो र्ास्तर् में यह हमािे शलए महान हहत की बात होगी |”
10. प्लेटो क
े महत्वपू ु कथन -
➢ “पहली औि सर्वश्रेष्ठ जीत स्वयं पि वर्जय प्राप्त किना है।”
➢ “कवर्ता भार्ों औि संर्ेगो को उद्दीप्त किती है औि तक
व एर्ं वर्चाि र्ून्यता को प्रोत्साहन है”
➢ “आदर्व गणिाज्य में कवर्यों का कोई िान नही है”
➢ “काव्य समाज क
े शलए हावनकािक है शजसका आधाि ही ममथ्या है र्ह उपयोगी क
ै से हो सकता
है”
➢ “र्ुरुआत काम का सबसे महत्वपूणव हहस्सा है।”
➢ “मैं जीवर्त सबसे बुमद्धमान व्यवि हं,क्योंकक मैं एक बात जानता हं, औि र्ह यह है कक मैं क
ु छ
भी नहीं जानता।”
➢ “प्रेम एक गंभीि मानशसक िोग है।”
➢ “एक खाली बतवन सबसे तेज आर्ाज किता है, इसशलए शजनक
े पास सबसे कम बुमद्ध होती है र्े
सबसे बडे प्रलाप किने र्ाले होते हैं।”
➢ “अन्याय की वनन्दा इसशलए की जाती है क्योंकक वनन्दा किने र्ाले कि से र्िते हैं, न कक ककसी
ऐसे भय से जो उन्हें अन्याय किने से होता है।”
11. ननष्कषु -
➢ ऐसा प्रतीत होता है कक प्लेटो कवर्ता क
े प्रवत आसहहष्णु था | र्ास्तर् में र्ह दार्ववनक
एर्ं िाजनीवतज्ञ अमधक था | अतः कवर्ता क
े प्रवत न्याय नही कि सका | यही कािण है
कक उसकी मान्यताओ का खंर्न उसक
े ही वर्द्वान शर्ष्य अिस्तु ने ककया औि काव्यकला
को सर्ोच्च िान प्रदान ककया |
िंदभु -
➢ पाश्चात्य साहहत्य-मचिंतन – वनमवला जैन
➢ पश्चात्य काव्यर्ास्त्र - र्ॉ. तािक नाथ बाली
➢ Abhivyakti.life
➢ Hindisarang.Com
➢ Hindibestnotes.Com