SlideShare a Scribd company logo
1 of 12
Download to read offline
झारखंड क
ें द्रीय विश्वविद्यालय,राँची
हिन्दी विभाग –(2022-2024)
प्लेटो का काव्य सिद्धांत
निर्देशि
डॉ. उपेंद्र कुमार ‘सत्यार्थी’
(सहायक प्राध्यापक ,नहन्र्दी निभाग )
प्रस्तुतकताा
1-आयशा मक़्सूर
2-अिानमका कुमारी
3-अरुण कुमार
सरोजनी नायडू समूह
पररचय
नाम - प्लेटो (अंग्रेजी)
जन्म - 427 ईसा पूर्व (एथेंस,यूनान )
मृत्यु - 347 ईसा पूर्व
मूलनाम – अरिस्तोक्लीस
सुकिात द्वािा नाम - प्लातोन
➢ प्लेटो ‘सुकिात’ क
े मेधार्ी छात्र थे |
➢ प्लेटो को भाित में ‘अफलातून’ कहा गया है |
➢ प्लेटो को आदर्वर्ाद का जनक कहा जाता है |
➢ प्लेटो संस्काि औि स्वभार् से ‘कवर्’ तथा शर्क्षा औि परिस्थिवत से ‘दार्ववनक’ थे। र्े सत्य क
े
उपासक औि तक
व का हहमायती थे। र्ास्तवर्कता यह है कक प्लेटो ने ‘सुकिात’ क
े वर्चािों को
‘संर्ाद र्ैली’ में शलवपबद्ध ककया। मूलतः प्लेटो का लक्ष्य ‘काव्य शसद्धांत’ का सृजन किना नहीं
बल्कि ‘आदर्व गणिाज्य’ की िापना किना था।
प्रमुख रचनाएँ
➢ प्लेटो क
े क
ु ल 36 ग्रंथों का शजक्र ममलता है,शजनमे 23 संर्ाद औि 13 आलेख पत्र क
े रूप में हैं।
➢ इओन (काव्य), क्र
े रटलुस, प्रोटोगोिस, गोवगियास, शसम्पोशजयम, रिपस्थिक (काव्य), फ्र
े दुस,
कफलेबुस, द लॉज, हद रिपस्थिक (पोशलरटया, गणतंत्र), हद स्टेट्समैन, हद लॉज (नोमोइ),
शसम्पोशजयम औि इयोन इनक
े प्रमुख ग्रन्थ है।
1.‘दि ररपब्लिक’ (आिर्श गणराज्य िंबंधी)-
➢ रिपस्थिक ग्रंथ िाजनीवत मचिंतन औि आदर्व िाज्य का एक महत्वपूणव दस्तार्ेज है।
➢ यह कवर्ता औि नाटकीय र्ैली में शलखी गई है।
➢ प्लेटो ने ‘रिपस्थिक’ में शलखा है कक, “गुलामी मृत्यु से भी भयार्ह है।”
2. ‘दि स्टेट्िमैन’ (आिर्श राजनेता िंबंध)
3. ‘दि लॉज’ (विधध िंबंधी)
उपर्युक्त ग्रंथों में उन्होंने प ाँच द र्ुननक निषर्ों क ननरूपप ककर् है–
1. आदर्व िाज्य
2. आत्मा की अमित्व
3. प्रत्यय शसद्धांत
4. सृमि का र्ास्त्र
5. ज्ञान मीमांसा
काव्य सिद्धांत
प्लेटो क व्य क
े दो सिद् ंत ददर्े-
I. काव्य की उत्पवि शसद्धांत ( दैर्ीय प्रेिणा का शसद्धांत )
II. अनुकिण शसद्धांत
I. क व्य की उत्पत्ति सिद् ंत ( दैिीर् प्रेर क सिद् ंत )
I. काव्य सृजन एक प्रकाि से ईश्विीय उन्माद का परिणाम है |
II. कवर् की काव्य चेतना एक बांसुिी है शजसमें स्वि फ
ु कने का काम ईश्वि किता है अथर्ा
काव्य एक र्ीणा है शजसक
े ताि ईश्वि क
े स्पर्व से झंक
ृ त हो उठते है | कवर् क
े र्ल माध्यम
है र्ास्तवर्क िचमयता ईश्वि है|
III. प्लेटो ने काव्य को नैवतकता एर्ं उपयोगर्ादी दृमिकोण से देखा है
प्लेटो ने क व्य और कनि पर तीन गंभीर आरोप लग ए है-
I. काव्य अनुक
ृ वत का अनुक
ृ वत है |
II. कवर् स्वयं अज्ञानी होने क
े साथ-साथ अज्ञानता का प्रचािक है |
III. कवर् समाज में अनाचाि का पोषण किने र्ाला अपिाधी है |
प्लेटो ने क व्य क
े तीन प्रमयख भेद स्वीक र ककए हैं -
1. अनयकर त्मक क व्य-
I. प्रहसन ( व्यंग/हास्य )
II. दुखांत
2. ि ुत्मक क व्य-
I. र्ब्द
II. माधुयव
III. लय
3. त्तमश्र (मह क व्य )-
ऐसा काव्य शजसमें कवर् क
ु छ अंर् तक अपने माध्यम से औि क
ु छ अंर् पात्रो क
े
माध्यम से अपनी बात कहता है -
प्लेटो क
े क व्य सिद् ंत क
े निर्ेष तथ्य -
➢ प्लेटो ने काव्य की देर्ी को ‘म्युजेज़’कहा है –
➢ प्लेटो ने त्रासदी को दूवषत वर्चािों का पोषण कि व्यवि उन्माद ग्रस्त किनेर्ाली िचना
माना है -
➢ प्लेटो काव्य को जला देनेर्ाली बात कहते है –
➢ प्लेटो ‘मोची’ का महत्व ‘कवर्’ की तुलना में अमधक देते है-
➢ प्लेटो स्वंम एक कवर् थे | उनकी काव्य िचना ‘ऑक्सफोर्व बुक ऑफ र्सव’ में संकशलत है -
2. अनयकर सिद् ंत
➢ कला की अनुकिण मूलकता की उद्भार्ना का श्रेय प्लेटो को हदया जाता है-
➢ प्लेटो आदर्व िाज्य से कवर् र् साहहत्यकाि क
े वनष्कासन की र्कालत किते है | क्योंकक
कवर् सत्य क
े अनुकिण का अनुकिण किता है –
➢ प्लेटो की दृमि से अनुकिण का अथव ‘हु-बहु’ नकल है -
प्लेटो क
े अनयि र िस्तय क
े तीन रूपप होते है -
1. आदर्ु रूपप - ईश्वि बनाता है (यह सत्य है)
2. ि स्तनिक रूपप – कािीगि बनाता है ( सत्य से दुगुना दूि है)
3. अनयक
ृ नत रूपप – कलाकाि बनाता है (सत्य से वतगुना है )
उद हर -
ईश्वि ने पलंग का रूप बनाया अतः यह सत्य है | कािीगि ने आदर्व का नकल किते हुए
र्ास्तवर्क पलंग बनाया औि कलाकाि ने उसका मचत्र बनाया |
➢ र्स्तु जगत एर्ं कला जगत दोनों को असत्य इसीशलए माना है कक ईश्वि द्वािा वनममित पलंग
की नकल किक
े ही दूसिे पलंग का वनमावण होगा | इस आधाि पि प्लेटो ने ‘कला नकल
का कला’ है ‘छाया की छाया’ कहा है |
➢ काव्य एर्ं अन्य कलाएं सत्य से वतगुना दूि होने क
े कािण ‘त्याज्य’ है |
➢ प्लेटो का मत था कक कवर् यर् औि कीवति चाहता है | इसक
े शलए र्ह पाठको र् श्रोताओं
कक र्ासनाओ को उिेशजत कि लोकवप्रय बनता है |
प्लेटो क
े अनयि र िद्क व्य क
े गय -
➢ काव्य में सिलता पि बल देते है |
➢ काव्य में उद्देश्य की एकता तथा आध्यात्मत्मकता होनी चाहहए |
➢ काव्य क
े वर्षय का संबंध धमव औि नीवत से होना चाहहए |
➢ प्लेटो ने काव्य में कल्पना का वर्िोध ककया है |
प्लेटो क
े मत की िमीक्ष -
➢ प्लेटो ने अपनी आदर्वर्ाहदता क
े कािण का पूणव बहहष्काि ककया ,ककन्तु यह भी
उल्लेखनीय है कक उसकी दृमि एकांगी थी |
➢ र्स्तुतः र्ह काव्य मीमांसक न होकि दार्ववनक एर्ं िाजनीवतज्ञ था |
➢ प्लेटो का लक्ष्य आदर्व गणिाज्य कक प्रवतष्ठा किना था ऐसी स्थिवत में कवर्ता का अपमान
यहद उसक
े द्वािा हुआ तो इसमें क्या आश्चयव ?
➢ प्लेटो का मचिंतन दूवषत एर्ं पूर्ावग्रह से युि था |
➢ र्ह उपयोवगता क
े अवतरिि सौंदयव बोध एर्ं आनंद को महत्व देता है |
➢ कला क
े दो भेद माने माने लशलत कलाएं एर्ं उपयोगी कलाएं |
➢ कवर् को मोची से तुच्छ मानना प्लेटो की वर्र्ेकहीनता ही है |
➢ प्लेटो का यह कथन भी नही है कक कवर्ता अनुपयोगी है | कवर्ता मनोिंजन क
े साथ–साथ
जो नैवतक संदेर् देती है,र्ह ककसी से मछपा नही है | काव्य का सत्यम,शर्र्म,सुंदिम से
समत्मित होता है,अतः कवर्ता हि समाज में सदा से है औि सदा िहेगी,हााँ जानर्िो को
इसकी जरूित नही है |
प्लेटो क
े मत क ि र -
समग्रतः प्लेटो ने काव्य क
े संबंध में जो वर्चाि व्यि ककए उनका साि इस प्रकाि है |
➢ कवर्ता जगत की अनुक
ृ वत है | जगत स्वंय अनुक
ृ वत है अतः सत्य से दुगुनी दूि है |
➢ कवर्ता भार्ों का उद्वेलन कि व्यवि को क
ु मागवगामी बनाती है |
➢ कवर्ता अनुपयोगी है | कवर् का महत्व एक मोची से कम है |
➢ काव्य की कसौटी सदाचाि औि उपयोवगता है |
➢ प्लेटो क
े अनुसाि काव्य क
े प्रयोजन है – सत्य का उद्घाटन,मानर् कल्याण औि िाष्ट्रोत्थान |
➢ कवर्ता को अनुकिण मानता हुआ कहता है – “कलाकाि र्ास्तवर्क जीर्न क
े पदाथो को
उत्पन्न नही किते,र्े क
े र्ल उनकी छायाओ वबम्बों का ही वनमावण किते है” काव्य का
अनुकिण का अनुकिण होने से सत्य से दुगुना दूि है |
➢ स्पि ही प्लेटो उच्च नैवतक मूल्यों का पक्षधि था र्ह कहता है- “यहद कवर्ता क
े प्रर्ंसक
यह शसध्द किे कक कवर्ता न क
े र्ल आनंदप्रद है ,र्िन र्ह समाज औि मानर्जावत क
े शलए
उपयोगी भी है, तो र्ास्तर् में यह हमािे शलए महान हहत की बात होगी |”
प्लेटो क
े महत्वपू ु कथन -
➢ “पहली औि सर्वश्रेष्ठ जीत स्वयं पि वर्जय प्राप्त किना है।”
➢ “कवर्ता भार्ों औि संर्ेगो को उद्दीप्त किती है औि तक
व एर्ं वर्चाि र्ून्यता को प्रोत्साहन है”
➢ “आदर्व गणिाज्य में कवर्यों का कोई िान नही है”
➢ “काव्य समाज क
े शलए हावनकािक है शजसका आधाि ही ममथ्या है र्ह उपयोगी क
ै से हो सकता
है”
➢ “र्ुरुआत काम का सबसे महत्वपूणव हहस्सा है।”
➢ “मैं जीवर्त सबसे बुमद्धमान व्यवि हं,क्योंकक मैं एक बात जानता हं, औि र्ह यह है कक मैं क
ु छ
भी नहीं जानता।”
➢ “प्रेम एक गंभीि मानशसक िोग है।”
➢ “एक खाली बतवन सबसे तेज आर्ाज किता है, इसशलए शजनक
े पास सबसे कम बुमद्ध होती है र्े
सबसे बडे प्रलाप किने र्ाले होते हैं।”
➢ “अन्याय की वनन्दा इसशलए की जाती है क्योंकक वनन्दा किने र्ाले कि से र्िते हैं, न कक ककसी
ऐसे भय से जो उन्हें अन्याय किने से होता है।”
ननष्कषु -
➢ ऐसा प्रतीत होता है कक प्लेटो कवर्ता क
े प्रवत आसहहष्णु था | र्ास्तर् में र्ह दार्ववनक
एर्ं िाजनीवतज्ञ अमधक था | अतः कवर्ता क
े प्रवत न्याय नही कि सका | यही कािण है
कक उसकी मान्यताओ का खंर्न उसक
े ही वर्द्वान शर्ष्य अिस्तु ने ककया औि काव्यकला
को सर्ोच्च िान प्रदान ककया |
िंदभु -
➢ पाश्चात्य साहहत्य-मचिंतन – वनमवला जैन
➢ पश्चात्य काव्यर्ास्त्र - र्ॉ. तािक नाथ बाली
➢ Abhivyakti.life
➢ Hindisarang.Com
➢ Hindibestnotes.Com
धन्यिाि

More Related Content

What's hot

समास
समाससमास
समास
vivekvsr
 
पद परिचय
पद परिचयपद परिचय
पद परिचय
Mahip Singh
 
वाक्य विचार
वाक्य विचारवाक्य विचार
वाक्य विचार
ARSHITGupta3
 
Sawaiya by raskhan
Sawaiya by raskhanSawaiya by raskhan
Sawaiya by raskhan
RoyB
 

What's hot (20)

Alankar
AlankarAlankar
Alankar
 
समास
समाससमास
समास
 
अलंकार
अलंकारअलंकार
अलंकार
 
हिन्दी भाषा एवं उसका विकास
हिन्दी भाषा एवं उसका विकास हिन्दी भाषा एवं उसका विकास
हिन्दी भाषा एवं उसका विकास
 
Alankar
AlankarAlankar
Alankar
 
Sandhi ppt
Sandhi pptSandhi ppt
Sandhi ppt
 
Vaaky rachna ppt
Vaaky rachna pptVaaky rachna ppt
Vaaky rachna ppt
 
ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत
ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत
ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोत
 
ALANKAR.pptx
ALANKAR.pptxALANKAR.pptx
ALANKAR.pptx
 
Natural Resources of Orissa
Natural Resources of Orissa Natural Resources of Orissa
Natural Resources of Orissa
 
Hindi Project - Alankar
Hindi Project - AlankarHindi Project - Alankar
Hindi Project - Alankar
 
कारक(karak)
कारक(karak)कारक(karak)
कारक(karak)
 
समास
समाससमास
समास
 
पद परिचय
पद परिचयपद परिचय
पद परिचय
 
वाक्य विचार
वाक्य विचारवाक्य विचार
वाक्य विचार
 
Sandhi
SandhiSandhi
Sandhi
 
alankar
alankaralankar
alankar
 
Sawaiya by raskhan
Sawaiya by raskhanSawaiya by raskhan
Sawaiya by raskhan
 
Ppt on nationalism in india...
Ppt on nationalism in india...Ppt on nationalism in india...
Ppt on nationalism in india...
 
सर्वनाम एवं उनके भेद (भाग -1)
सर्वनाम एवं उनके भेद (भाग -1)सर्वनाम एवं उनके भेद (भाग -1)
सर्वनाम एवं उनके भेद (भाग -1)
 

Similar to प्लेटो का काव्य सिद्धांत.PPT केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखण्ड, राँची (11)

PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्रPAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
PAMCHA TANTRA - पंच तंत्र
 
पल्लवन
पल्लवनपल्लवन
पल्लवन
 
Pallvan
Pallvan Pallvan
Pallvan
 
Narrative Technique in Midnight's Children
Narrative Technique in Midnight's ChildrenNarrative Technique in Midnight's Children
Narrative Technique in Midnight's Children
 
Drama f 11 d el ed
Drama f 11 d el edDrama f 11 d el ed
Drama f 11 d el ed
 
Karl popper ke rajnitik vichar
Karl popper ke rajnitik vicharKarl popper ke rajnitik vichar
Karl popper ke rajnitik vichar
 
chhayavad-4.pptx
chhayavad-4.pptxchhayavad-4.pptx
chhayavad-4.pptx
 
सृष्टि की मानवीय दर्शन
सृष्टि की मानवीय दर्शनसृष्टि की मानवीय दर्शन
सृष्टि की मानवीय दर्शन
 
सृष्टि की मानवीय दर्शन
सृष्टि की मानवीय दर्शनसृष्टि की मानवीय दर्शन
सृष्टि की मानवीय दर्शन
 
SAANKHYA-4.odp
SAANKHYA-4.odpSAANKHYA-4.odp
SAANKHYA-4.odp
 
Hegel ka rajnitik darshan
Hegel ka rajnitik darshanHegel ka rajnitik darshan
Hegel ka rajnitik darshan
 

प्लेटो का काव्य सिद्धांत.PPT केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखण्ड, राँची

  • 1. झारखंड क ें द्रीय विश्वविद्यालय,राँची हिन्दी विभाग –(2022-2024) प्लेटो का काव्य सिद्धांत निर्देशि डॉ. उपेंद्र कुमार ‘सत्यार्थी’ (सहायक प्राध्यापक ,नहन्र्दी निभाग ) प्रस्तुतकताा 1-आयशा मक़्सूर 2-अिानमका कुमारी 3-अरुण कुमार सरोजनी नायडू समूह
  • 2. पररचय नाम - प्लेटो (अंग्रेजी) जन्म - 427 ईसा पूर्व (एथेंस,यूनान ) मृत्यु - 347 ईसा पूर्व मूलनाम – अरिस्तोक्लीस सुकिात द्वािा नाम - प्लातोन ➢ प्लेटो ‘सुकिात’ क े मेधार्ी छात्र थे | ➢ प्लेटो को भाित में ‘अफलातून’ कहा गया है | ➢ प्लेटो को आदर्वर्ाद का जनक कहा जाता है | ➢ प्लेटो संस्काि औि स्वभार् से ‘कवर्’ तथा शर्क्षा औि परिस्थिवत से ‘दार्ववनक’ थे। र्े सत्य क े उपासक औि तक व का हहमायती थे। र्ास्तवर्कता यह है कक प्लेटो ने ‘सुकिात’ क े वर्चािों को ‘संर्ाद र्ैली’ में शलवपबद्ध ककया। मूलतः प्लेटो का लक्ष्य ‘काव्य शसद्धांत’ का सृजन किना नहीं बल्कि ‘आदर्व गणिाज्य’ की िापना किना था।
  • 3. प्रमुख रचनाएँ ➢ प्लेटो क े क ु ल 36 ग्रंथों का शजक्र ममलता है,शजनमे 23 संर्ाद औि 13 आलेख पत्र क े रूप में हैं। ➢ इओन (काव्य), क्र े रटलुस, प्रोटोगोिस, गोवगियास, शसम्पोशजयम, रिपस्थिक (काव्य), फ्र े दुस, कफलेबुस, द लॉज, हद रिपस्थिक (पोशलरटया, गणतंत्र), हद स्टेट्समैन, हद लॉज (नोमोइ), शसम्पोशजयम औि इयोन इनक े प्रमुख ग्रन्थ है। 1.‘दि ररपब्लिक’ (आिर्श गणराज्य िंबंधी)- ➢ रिपस्थिक ग्रंथ िाजनीवत मचिंतन औि आदर्व िाज्य का एक महत्वपूणव दस्तार्ेज है। ➢ यह कवर्ता औि नाटकीय र्ैली में शलखी गई है। ➢ प्लेटो ने ‘रिपस्थिक’ में शलखा है कक, “गुलामी मृत्यु से भी भयार्ह है।” 2. ‘दि स्टेट्िमैन’ (आिर्श राजनेता िंबंध) 3. ‘दि लॉज’ (विधध िंबंधी) उपर्युक्त ग्रंथों में उन्होंने प ाँच द र्ुननक निषर्ों क ननरूपप ककर् है– 1. आदर्व िाज्य 2. आत्मा की अमित्व 3. प्रत्यय शसद्धांत 4. सृमि का र्ास्त्र 5. ज्ञान मीमांसा
  • 4. काव्य सिद्धांत प्लेटो क व्य क े दो सिद् ंत ददर्े- I. काव्य की उत्पवि शसद्धांत ( दैर्ीय प्रेिणा का शसद्धांत ) II. अनुकिण शसद्धांत I. क व्य की उत्पत्ति सिद् ंत ( दैिीर् प्रेर क सिद् ंत ) I. काव्य सृजन एक प्रकाि से ईश्विीय उन्माद का परिणाम है | II. कवर् की काव्य चेतना एक बांसुिी है शजसमें स्वि फ ु कने का काम ईश्वि किता है अथर्ा काव्य एक र्ीणा है शजसक े ताि ईश्वि क े स्पर्व से झंक ृ त हो उठते है | कवर् क े र्ल माध्यम है र्ास्तवर्क िचमयता ईश्वि है| III. प्लेटो ने काव्य को नैवतकता एर्ं उपयोगर्ादी दृमिकोण से देखा है प्लेटो ने क व्य और कनि पर तीन गंभीर आरोप लग ए है- I. काव्य अनुक ृ वत का अनुक ृ वत है | II. कवर् स्वयं अज्ञानी होने क े साथ-साथ अज्ञानता का प्रचािक है | III. कवर् समाज में अनाचाि का पोषण किने र्ाला अपिाधी है |
  • 5. प्लेटो ने क व्य क े तीन प्रमयख भेद स्वीक र ककए हैं - 1. अनयकर त्मक क व्य- I. प्रहसन ( व्यंग/हास्य ) II. दुखांत 2. ि ुत्मक क व्य- I. र्ब्द II. माधुयव III. लय 3. त्तमश्र (मह क व्य )- ऐसा काव्य शजसमें कवर् क ु छ अंर् तक अपने माध्यम से औि क ु छ अंर् पात्रो क े माध्यम से अपनी बात कहता है - प्लेटो क े क व्य सिद् ंत क े निर्ेष तथ्य - ➢ प्लेटो ने काव्य की देर्ी को ‘म्युजेज़’कहा है – ➢ प्लेटो ने त्रासदी को दूवषत वर्चािों का पोषण कि व्यवि उन्माद ग्रस्त किनेर्ाली िचना माना है -
  • 6. ➢ प्लेटो काव्य को जला देनेर्ाली बात कहते है – ➢ प्लेटो ‘मोची’ का महत्व ‘कवर्’ की तुलना में अमधक देते है- ➢ प्लेटो स्वंम एक कवर् थे | उनकी काव्य िचना ‘ऑक्सफोर्व बुक ऑफ र्सव’ में संकशलत है - 2. अनयकर सिद् ंत ➢ कला की अनुकिण मूलकता की उद्भार्ना का श्रेय प्लेटो को हदया जाता है- ➢ प्लेटो आदर्व िाज्य से कवर् र् साहहत्यकाि क े वनष्कासन की र्कालत किते है | क्योंकक कवर् सत्य क े अनुकिण का अनुकिण किता है – ➢ प्लेटो की दृमि से अनुकिण का अथव ‘हु-बहु’ नकल है - प्लेटो क े अनयि र िस्तय क े तीन रूपप होते है - 1. आदर्ु रूपप - ईश्वि बनाता है (यह सत्य है) 2. ि स्तनिक रूपप – कािीगि बनाता है ( सत्य से दुगुना दूि है) 3. अनयक ृ नत रूपप – कलाकाि बनाता है (सत्य से वतगुना है )
  • 7. उद हर - ईश्वि ने पलंग का रूप बनाया अतः यह सत्य है | कािीगि ने आदर्व का नकल किते हुए र्ास्तवर्क पलंग बनाया औि कलाकाि ने उसका मचत्र बनाया | ➢ र्स्तु जगत एर्ं कला जगत दोनों को असत्य इसीशलए माना है कक ईश्वि द्वािा वनममित पलंग की नकल किक े ही दूसिे पलंग का वनमावण होगा | इस आधाि पि प्लेटो ने ‘कला नकल का कला’ है ‘छाया की छाया’ कहा है | ➢ काव्य एर्ं अन्य कलाएं सत्य से वतगुना दूि होने क े कािण ‘त्याज्य’ है | ➢ प्लेटो का मत था कक कवर् यर् औि कीवति चाहता है | इसक े शलए र्ह पाठको र् श्रोताओं कक र्ासनाओ को उिेशजत कि लोकवप्रय बनता है | प्लेटो क े अनयि र िद्क व्य क े गय - ➢ काव्य में सिलता पि बल देते है | ➢ काव्य में उद्देश्य की एकता तथा आध्यात्मत्मकता होनी चाहहए | ➢ काव्य क े वर्षय का संबंध धमव औि नीवत से होना चाहहए | ➢ प्लेटो ने काव्य में कल्पना का वर्िोध ककया है |
  • 8. प्लेटो क े मत की िमीक्ष - ➢ प्लेटो ने अपनी आदर्वर्ाहदता क े कािण का पूणव बहहष्काि ककया ,ककन्तु यह भी उल्लेखनीय है कक उसकी दृमि एकांगी थी | ➢ र्स्तुतः र्ह काव्य मीमांसक न होकि दार्ववनक एर्ं िाजनीवतज्ञ था | ➢ प्लेटो का लक्ष्य आदर्व गणिाज्य कक प्रवतष्ठा किना था ऐसी स्थिवत में कवर्ता का अपमान यहद उसक े द्वािा हुआ तो इसमें क्या आश्चयव ? ➢ प्लेटो का मचिंतन दूवषत एर्ं पूर्ावग्रह से युि था | ➢ र्ह उपयोवगता क े अवतरिि सौंदयव बोध एर्ं आनंद को महत्व देता है | ➢ कला क े दो भेद माने माने लशलत कलाएं एर्ं उपयोगी कलाएं | ➢ कवर् को मोची से तुच्छ मानना प्लेटो की वर्र्ेकहीनता ही है | ➢ प्लेटो का यह कथन भी नही है कक कवर्ता अनुपयोगी है | कवर्ता मनोिंजन क े साथ–साथ जो नैवतक संदेर् देती है,र्ह ककसी से मछपा नही है | काव्य का सत्यम,शर्र्म,सुंदिम से समत्मित होता है,अतः कवर्ता हि समाज में सदा से है औि सदा िहेगी,हााँ जानर्िो को इसकी जरूित नही है |
  • 9. प्लेटो क े मत क ि र - समग्रतः प्लेटो ने काव्य क े संबंध में जो वर्चाि व्यि ककए उनका साि इस प्रकाि है | ➢ कवर्ता जगत की अनुक ृ वत है | जगत स्वंय अनुक ृ वत है अतः सत्य से दुगुनी दूि है | ➢ कवर्ता भार्ों का उद्वेलन कि व्यवि को क ु मागवगामी बनाती है | ➢ कवर्ता अनुपयोगी है | कवर् का महत्व एक मोची से कम है | ➢ काव्य की कसौटी सदाचाि औि उपयोवगता है | ➢ प्लेटो क े अनुसाि काव्य क े प्रयोजन है – सत्य का उद्घाटन,मानर् कल्याण औि िाष्ट्रोत्थान | ➢ कवर्ता को अनुकिण मानता हुआ कहता है – “कलाकाि र्ास्तवर्क जीर्न क े पदाथो को उत्पन्न नही किते,र्े क े र्ल उनकी छायाओ वबम्बों का ही वनमावण किते है” काव्य का अनुकिण का अनुकिण होने से सत्य से दुगुना दूि है | ➢ स्पि ही प्लेटो उच्च नैवतक मूल्यों का पक्षधि था र्ह कहता है- “यहद कवर्ता क े प्रर्ंसक यह शसध्द किे कक कवर्ता न क े र्ल आनंदप्रद है ,र्िन र्ह समाज औि मानर्जावत क े शलए उपयोगी भी है, तो र्ास्तर् में यह हमािे शलए महान हहत की बात होगी |”
  • 10. प्लेटो क े महत्वपू ु कथन - ➢ “पहली औि सर्वश्रेष्ठ जीत स्वयं पि वर्जय प्राप्त किना है।” ➢ “कवर्ता भार्ों औि संर्ेगो को उद्दीप्त किती है औि तक व एर्ं वर्चाि र्ून्यता को प्रोत्साहन है” ➢ “आदर्व गणिाज्य में कवर्यों का कोई िान नही है” ➢ “काव्य समाज क े शलए हावनकािक है शजसका आधाि ही ममथ्या है र्ह उपयोगी क ै से हो सकता है” ➢ “र्ुरुआत काम का सबसे महत्वपूणव हहस्सा है।” ➢ “मैं जीवर्त सबसे बुमद्धमान व्यवि हं,क्योंकक मैं एक बात जानता हं, औि र्ह यह है कक मैं क ु छ भी नहीं जानता।” ➢ “प्रेम एक गंभीि मानशसक िोग है।” ➢ “एक खाली बतवन सबसे तेज आर्ाज किता है, इसशलए शजनक े पास सबसे कम बुमद्ध होती है र्े सबसे बडे प्रलाप किने र्ाले होते हैं।” ➢ “अन्याय की वनन्दा इसशलए की जाती है क्योंकक वनन्दा किने र्ाले कि से र्िते हैं, न कक ककसी ऐसे भय से जो उन्हें अन्याय किने से होता है।”
  • 11. ननष्कषु - ➢ ऐसा प्रतीत होता है कक प्लेटो कवर्ता क े प्रवत आसहहष्णु था | र्ास्तर् में र्ह दार्ववनक एर्ं िाजनीवतज्ञ अमधक था | अतः कवर्ता क े प्रवत न्याय नही कि सका | यही कािण है कक उसकी मान्यताओ का खंर्न उसक े ही वर्द्वान शर्ष्य अिस्तु ने ककया औि काव्यकला को सर्ोच्च िान प्रदान ककया | िंदभु - ➢ पाश्चात्य साहहत्य-मचिंतन – वनमवला जैन ➢ पश्चात्य काव्यर्ास्त्र - र्ॉ. तािक नाथ बाली ➢ Abhivyakti.life ➢ Hindisarang.Com ➢ Hindibestnotes.Com