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आधार पाठ्यक्रम - ह िंदी भाषा
पल्लवन
द्वारा
ड िं.अर्चना झा
ववभागाध्यक्ष
श्री शिंकरार्ायच म ाववद्यालय जुनवानी भभलाई
(छ.ग.)
ववर्ार-ववमशच Discussion Points
पल्लवन का
अर्थ
पल्लवन की
परिभाषा
पल्लवन का
अन्य िचना
रूपो में अंति
कु शल ववस्तािक
के गुण
पल्लवन के कु छ
सामान्य ननयम
पल्लवन के
ववभभन्न उदाहिण
https://www.youtube.com
/watch?v=w77zPAtVTuI
पल्लव का अर्थ :
नया एवं कोमल पत्ता
पल्लवन का अर्च
पल्लव का अर्च : नया एविं कोमल पत्ता
पल्लवन का अर्च : ववकास करना, बढ़ाना
बीज से वृक्ष बनने की स ज प्रक्रक्रया ै।
पल्लवन का अर्च ै- 'क्रकसी भाव का ववस्तार करना'।
पल्लवन एक ऐसी लघु िचना को कहा जाता है जजसमें ककसी सूत्र, काव्य-पंजतत, कहावत
अर्वा लोकोजतत के मुख्य भाव को ववस्ताि रूप ददया जाता हैं।
पल्लवन की पररभाषा
ड वासुदेव निंदन प्रसाद
क्रकसी सुगहित एविं गुम्फित ववर्ार अर्वा भाव के ववस्तार को 'पल्लवन' क ते ै।
प्रोिे सर राजेंद्र प्रसाद भसिं
पल्लवन का अर्च ोता ै- पल्लव उत्पन्न करना अर्ाचत ववषय का ववस्तार करना ।
क्रकसी ननधाचररत ववषय जैसे सूत्र-वाक्य, उम्क्त या वववेच्य-बबन्दु को
उदा रण, तकच आहद से पुष्ट करते ुए प्रवा मयी, स ज अभभव्यम्क्त-शैली में मौभलक, सारगभभचत
ववस्तार देना पल्लवन क लाता ै। इसे ववस्तारण, भाव-ववस्तारण, भाव-पल्लवन आहद भी क ा जाता
ै।
व्याख्या
स्पष्टीकिण
भावार्थ
अनुच्छेद
लेखनआश्य
अन्य िचना रूप में
अंति
स्पष्टीकिण पल्लवन
दोनों में ववस्ताि मूलाधाि है
स्पष्टीकरण मुख्य रूप से अवतरण में आई दुरू
पिंम्क्तयों का या म्क्लष्ट वाक्यों का क्रकया जाता ै।
पल्लवन मे अर्च की दुरु ता सुलझाने का उपक्रम
मुख्य न ीिं ोता अवपतु मुख्य ोता ै हदए गए
सिंदभच के कें द्र बबिंदु या भाव का प्रसार करना ै।
उनमें जो दुरू ता अग्मयता और दुबोधता ै, उसे
ववश्लेषण, व्याख्या उपमान, दृष्टािंतो द्वारा स्पष्ट
क्रकया जाता ै।
पल्लवन मे उसके सभी माभमचक प लुओिं का
उद्घाटन क्रकया जाता ै।
अंति
व्याख्या पल्लवन
इन दोनों का भी मूलाधाि ववस्ताि है
व्याख्या में क्रकसी गद्यािंश और पद्यािंश की पिंम्क्तयों
की सभी ववशेषताओिं को इस प्रकार उद्घाहटत क्रकया
जाता ै क्रक उस में अभभव्यक्त ववर्ार स्पष्ट और
प्रािंजल रूप में पािक के सामने उपम्स्र्त ो जाते ैं।
पल्लवन में म क्रकसी गद्यािंश पद्यािंश की
ववशेषताओिं या सौष्िव का उद्घाटन न ीिं करते अवपतु
वाक्य के मूल भाव का ी पल्लवन उसका ववषय क्षेत्र
ै।
व्याख्या का कायच क्रकसी गद्यािंश या पद्यािंश का
भाव पल्लवन करना ै।
पल्लवन का कायच क्रकसी गद्यािंश या पद्यािंश का
भाव पल्लवन करना न ीिं ै ।
व्याख्या में प्रसिंग ननदेश और वववेचर्त ववषय की
अनुकू ल- प्रनतकू ल समीक्षा भी ो सकती ै।
पर पल्लवन में इसका प्रश्न ी न ीिं उिता।
अंति
भावार्थ पल्लवन
इन दोनों के आकार -प्रकार के सिंबिंध में कोई सीमा रेखा ननम्श्र्त न ीिं की जा सकती
भावार्च के भलए क्रकसी अवतरण या अपेक्षा बडी रर्ना
की आवश्यकता ै
पल्लवन के भलए वाक्य मात्र यर्ेष्ट ै
भावार्च में समस्त अवतरण के भाव को स्पष्ट करना
उद्देश र ता ै
जबक्रक पल्लवन में मूल भाव का सिंयुम्क्तक ववस्तार
अपेक्षक्षत ै ।
अंति
आश्य पल्लवन
आश्य में लेखक का ध्यान स्पष्टता पर र ता ै। पल्लवन का उद्देश्य मूल भाव को स्पष्ट करना ोता
ै।
यहद मूल छोटा ै तो आशय उस से बडा ो सकता
ै। यहद मूल बडा ै तो आश्य छोटा ो सकता ै
आश्य की आधार सीमा ननम्श्र्त न ीिं ो सकती।
पल्लवन तो र म्स्र्नत में मूल से बडा ी ोता ै।
अंति
अनुच्छेद लेखन पल्लवन
अनुच्छेद क्रकसी भी रर्ना का एक भाग ोता ै जबक्रक पल्लवन प्राय: प्रभसद्ध सूत्र,मु ावरे,लोकोम्क्त,
काव्य पिंम्क्त आहद का क्रकया जाता ै
कु शल
ववस्तारक
के गुण
मेधावी ोना
व्याख्या शम्क्तसिंपन्न
ोना
भाषाचधकार
ग न अध्ययनशीलता
सूक्ष्म ननरीक्षण दृम्ष्ट
ताक्रकच कता
तटस्र्ता
पल्लवन के कु छ सामान्य ननयम
(1) पल्लवन के भलए मूल अवतरण के वाक्य, सूम्क्त, लोकोम्क्त अर्वा क ावत को ध्यानपूवचक पहढ़ए,
ताक्रक मूल के सफपूणच भाव अच्छी तर समझ में आ जायँ।
(2) मूल ववर्ार अर्वा भाव के नीर्े दबे अन्य स ायक ववर्ारों को समझने की र्ेष्टा कीम्जए।
3) मूल और गौण ववर्ारों को समझ लेने के बाद एक-एक कर सभी ननह त ववर्ारों को एक-एक
अनुच्छेद में भलखना आरफभ कीम्जए, ताक्रक कोई भी भाव अर्वा ववर्ार छू टने न पाय।
(4) अर्च अर्वा ववर्ार का ववस्तार करते समय उसकी पुम्ष्ट में ज ाँ-त ाँ ऊपर से कु छ उदा रण और
तथ्य भी हदये जा सकते ैं।
5) भाव और भाषा की अभभव्यम्क्त में पूरी स्पष्टता, मौभलकता और सरलता ोनी र्ाह ए। वाक्य छोटे-छोटे
और भाषा अत्यन्त सरल ोनी र्ाह ए। अलिंकृ त भाषा भलखने की र्ेष्टा न करना ी श्रेयस्कर ै।
(6) पल्लवन के लेखन में अप्रासिंचगक बातों का अनावश्यक ववस्तार या उल्लेख बबलकु ल न ीिं ोना र्ाह ए।
(7) पल्लवन में लेखक को मूल तर्ा गौण भाव या ववर्ार की टीका-हटप्पणी और आलोर्ना न ीिं करनी
र्ाह ए। इसमें मूल लेखक के मनोभावों का ी ववस्तार और ववश्लेषण ोना र्ाह ए।
(8) पल्लवन की रर्ना र ालत में अन्यपुरुष में ोनी र्ाह ए।
(9) पल्लवन व्यासशैली की ोनी र्ाह ए, समासशैली की न ीिं। अतः इसमें बातों को ववस्तार से भलखने का
अभ्यास क्रकया जाना र्ाह ए।
पल्लवन का शम्ददक अर्च ै-ववस्तार, िै लावा
पल्लवन वाक्यों के उस समू को क ते ैं, म्जसमें क्रकसी एक ववषय के मुख्य
ववर्ार या भसद्धािंत को तकच एिंव उदा रण द्वारा ववस्तृत रूप हदया जाता ै और
तको का प्रयोग करते ुए कथ्य को स्पष्ट क्रकया जाता ै।
पल्लवन प्रायः क्रकसी सूत्र, मु ावरे, लोकोम्क्त, काव्य पिंम्क्त आहद का ी क्रकया जाता
ैं। क्रकसी ववर्ार को भाव को अपनी बौद्चधक क्षमता और ज्ञान से पल्लववत क्रकया
जाना ी पल्लवन ैं।
ननष्कषच
पल्लवन के ववभभन्न उदाहिण
1 प्रकृ नत पररवतचनशील ै / सबै हदन ोत न एक समान
2 साह त्य समाज का दपचण ै / कवव अपने युग का प्रनतननचध ोता ै
3 एक एक दो ग्यार / सिंगिन ी शम्क्त ै
4 पर उपदेश कु शल ब ुतेरे
5 आत्मननभचरता ी देश की सच्र्ी स्वाधीनता ै
6 आत्मववश्वास सिलता का प ला र स्य ै
7 मन के ारे ार ै मन के जीते जीत
8 क्रकसान देश की रीढ़
9 ववपवत्तयािं मनुष्य की सवचश्रेष्ि गुरु ै
10 अधजल गगरी छलकत जाए
11 का वषाच जब कृ वष सुखानी
12 तेते पािंव पसाररए जेती लािंबी सौर
13 र्िंदन ववष व्यापत न ीिं भलपटे र त भुजिंग
14 ननिंदक ननयरे राखखए आिंगन कु टी छवाय
15 ज ािं सुमनत त ािं सिंपवत्त नाना
16 जैसी ब ै बयार पीि तब तैसी दीजे
17 तरुण भववष्य को वतचमान में लाना र्ा ते ैं और वृद्ध अतीत को खीिंर्कर
वतचमान में देखना र्ा ते ैं
18 स्वावलिंबन की झलक पर न्योछावर कु बेर का कोष
19 वृद्ध मनुष्य के अनुभव जीवन की खुली पुस्तक के समान ै
20 पुरुषार्च ी जीवन ै
21 बैर क्रोध का अर्ार या मुरदबा ै / क्रोध एक तर का पागलपन ै
22 तुच्छ मनुष्य के वल अतीत का स्वामी ै
23 अज्ञान र्ा े अपना ो, र्ा े पराया सब हदन रक्षा न ीिं कर सकता / अज्ञान
अिंधकार स्वरूप ै
24 वीर ह्रदय युद्ध का नाम सुनकर नार् उिता ै
25 गािंधी टोपी की उमिंग और ै, गािंधीत्व की गिंध और।
संदभथ ग्रंर्
1 भारतीयता के अमर स्वर- प्रोिे सर धनिंजय वमाच
2 ह िंदी व्याकरण: कामता प्रसाद गुरु
3 आधुननक ह न्दी व्याकरण और रर्ना:ड वासुदेव निंदन प्रसाद
4 सामान्य ह िंदी: ड रदेव बा री
5 http://hindigrammar.in/pllvan.html
6
पल्लवन

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पल्लवन

  • 1. आधार पाठ्यक्रम - ह िंदी भाषा पल्लवन द्वारा ड िं.अर्चना झा ववभागाध्यक्ष श्री शिंकरार्ायच म ाववद्यालय जुनवानी भभलाई (छ.ग.)
  • 2. ववर्ार-ववमशच Discussion Points पल्लवन का अर्थ पल्लवन की परिभाषा पल्लवन का अन्य िचना रूपो में अंति कु शल ववस्तािक के गुण पल्लवन के कु छ सामान्य ननयम पल्लवन के ववभभन्न उदाहिण
  • 3. https://www.youtube.com /watch?v=w77zPAtVTuI पल्लव का अर्थ : नया एवं कोमल पत्ता
  • 4. पल्लवन का अर्च पल्लव का अर्च : नया एविं कोमल पत्ता पल्लवन का अर्च : ववकास करना, बढ़ाना बीज से वृक्ष बनने की स ज प्रक्रक्रया ै। पल्लवन का अर्च ै- 'क्रकसी भाव का ववस्तार करना'। पल्लवन एक ऐसी लघु िचना को कहा जाता है जजसमें ककसी सूत्र, काव्य-पंजतत, कहावत अर्वा लोकोजतत के मुख्य भाव को ववस्ताि रूप ददया जाता हैं।
  • 5. पल्लवन की पररभाषा ड वासुदेव निंदन प्रसाद क्रकसी सुगहित एविं गुम्फित ववर्ार अर्वा भाव के ववस्तार को 'पल्लवन' क ते ै। प्रोिे सर राजेंद्र प्रसाद भसिं पल्लवन का अर्च ोता ै- पल्लव उत्पन्न करना अर्ाचत ववषय का ववस्तार करना । क्रकसी ननधाचररत ववषय जैसे सूत्र-वाक्य, उम्क्त या वववेच्य-बबन्दु को उदा रण, तकच आहद से पुष्ट करते ुए प्रवा मयी, स ज अभभव्यम्क्त-शैली में मौभलक, सारगभभचत ववस्तार देना पल्लवन क लाता ै। इसे ववस्तारण, भाव-ववस्तारण, भाव-पल्लवन आहद भी क ा जाता ै।
  • 7. स्पष्टीकिण पल्लवन दोनों में ववस्ताि मूलाधाि है स्पष्टीकरण मुख्य रूप से अवतरण में आई दुरू पिंम्क्तयों का या म्क्लष्ट वाक्यों का क्रकया जाता ै। पल्लवन मे अर्च की दुरु ता सुलझाने का उपक्रम मुख्य न ीिं ोता अवपतु मुख्य ोता ै हदए गए सिंदभच के कें द्र बबिंदु या भाव का प्रसार करना ै। उनमें जो दुरू ता अग्मयता और दुबोधता ै, उसे ववश्लेषण, व्याख्या उपमान, दृष्टािंतो द्वारा स्पष्ट क्रकया जाता ै। पल्लवन मे उसके सभी माभमचक प लुओिं का उद्घाटन क्रकया जाता ै। अंति
  • 8. व्याख्या पल्लवन इन दोनों का भी मूलाधाि ववस्ताि है व्याख्या में क्रकसी गद्यािंश और पद्यािंश की पिंम्क्तयों की सभी ववशेषताओिं को इस प्रकार उद्घाहटत क्रकया जाता ै क्रक उस में अभभव्यक्त ववर्ार स्पष्ट और प्रािंजल रूप में पािक के सामने उपम्स्र्त ो जाते ैं। पल्लवन में म क्रकसी गद्यािंश पद्यािंश की ववशेषताओिं या सौष्िव का उद्घाटन न ीिं करते अवपतु वाक्य के मूल भाव का ी पल्लवन उसका ववषय क्षेत्र ै। व्याख्या का कायच क्रकसी गद्यािंश या पद्यािंश का भाव पल्लवन करना ै। पल्लवन का कायच क्रकसी गद्यािंश या पद्यािंश का भाव पल्लवन करना न ीिं ै । व्याख्या में प्रसिंग ननदेश और वववेचर्त ववषय की अनुकू ल- प्रनतकू ल समीक्षा भी ो सकती ै। पर पल्लवन में इसका प्रश्न ी न ीिं उिता। अंति
  • 9. भावार्थ पल्लवन इन दोनों के आकार -प्रकार के सिंबिंध में कोई सीमा रेखा ननम्श्र्त न ीिं की जा सकती भावार्च के भलए क्रकसी अवतरण या अपेक्षा बडी रर्ना की आवश्यकता ै पल्लवन के भलए वाक्य मात्र यर्ेष्ट ै भावार्च में समस्त अवतरण के भाव को स्पष्ट करना उद्देश र ता ै जबक्रक पल्लवन में मूल भाव का सिंयुम्क्तक ववस्तार अपेक्षक्षत ै । अंति
  • 10. आश्य पल्लवन आश्य में लेखक का ध्यान स्पष्टता पर र ता ै। पल्लवन का उद्देश्य मूल भाव को स्पष्ट करना ोता ै। यहद मूल छोटा ै तो आशय उस से बडा ो सकता ै। यहद मूल बडा ै तो आश्य छोटा ो सकता ै आश्य की आधार सीमा ननम्श्र्त न ीिं ो सकती। पल्लवन तो र म्स्र्नत में मूल से बडा ी ोता ै। अंति अनुच्छेद लेखन पल्लवन अनुच्छेद क्रकसी भी रर्ना का एक भाग ोता ै जबक्रक पल्लवन प्राय: प्रभसद्ध सूत्र,मु ावरे,लोकोम्क्त, काव्य पिंम्क्त आहद का क्रकया जाता ै
  • 11. कु शल ववस्तारक के गुण मेधावी ोना व्याख्या शम्क्तसिंपन्न ोना भाषाचधकार ग न अध्ययनशीलता सूक्ष्म ननरीक्षण दृम्ष्ट ताक्रकच कता तटस्र्ता
  • 12. पल्लवन के कु छ सामान्य ननयम (1) पल्लवन के भलए मूल अवतरण के वाक्य, सूम्क्त, लोकोम्क्त अर्वा क ावत को ध्यानपूवचक पहढ़ए, ताक्रक मूल के सफपूणच भाव अच्छी तर समझ में आ जायँ। (2) मूल ववर्ार अर्वा भाव के नीर्े दबे अन्य स ायक ववर्ारों को समझने की र्ेष्टा कीम्जए। 3) मूल और गौण ववर्ारों को समझ लेने के बाद एक-एक कर सभी ननह त ववर्ारों को एक-एक अनुच्छेद में भलखना आरफभ कीम्जए, ताक्रक कोई भी भाव अर्वा ववर्ार छू टने न पाय। (4) अर्च अर्वा ववर्ार का ववस्तार करते समय उसकी पुम्ष्ट में ज ाँ-त ाँ ऊपर से कु छ उदा रण और तथ्य भी हदये जा सकते ैं।
  • 13. 5) भाव और भाषा की अभभव्यम्क्त में पूरी स्पष्टता, मौभलकता और सरलता ोनी र्ाह ए। वाक्य छोटे-छोटे और भाषा अत्यन्त सरल ोनी र्ाह ए। अलिंकृ त भाषा भलखने की र्ेष्टा न करना ी श्रेयस्कर ै। (6) पल्लवन के लेखन में अप्रासिंचगक बातों का अनावश्यक ववस्तार या उल्लेख बबलकु ल न ीिं ोना र्ाह ए। (7) पल्लवन में लेखक को मूल तर्ा गौण भाव या ववर्ार की टीका-हटप्पणी और आलोर्ना न ीिं करनी र्ाह ए। इसमें मूल लेखक के मनोभावों का ी ववस्तार और ववश्लेषण ोना र्ाह ए। (8) पल्लवन की रर्ना र ालत में अन्यपुरुष में ोनी र्ाह ए। (9) पल्लवन व्यासशैली की ोनी र्ाह ए, समासशैली की न ीिं। अतः इसमें बातों को ववस्तार से भलखने का अभ्यास क्रकया जाना र्ाह ए।
  • 14. पल्लवन का शम्ददक अर्च ै-ववस्तार, िै लावा पल्लवन वाक्यों के उस समू को क ते ैं, म्जसमें क्रकसी एक ववषय के मुख्य ववर्ार या भसद्धािंत को तकच एिंव उदा रण द्वारा ववस्तृत रूप हदया जाता ै और तको का प्रयोग करते ुए कथ्य को स्पष्ट क्रकया जाता ै। पल्लवन प्रायः क्रकसी सूत्र, मु ावरे, लोकोम्क्त, काव्य पिंम्क्त आहद का ी क्रकया जाता ैं। क्रकसी ववर्ार को भाव को अपनी बौद्चधक क्षमता और ज्ञान से पल्लववत क्रकया जाना ी पल्लवन ैं। ननष्कषच
  • 15. पल्लवन के ववभभन्न उदाहिण 1 प्रकृ नत पररवतचनशील ै / सबै हदन ोत न एक समान 2 साह त्य समाज का दपचण ै / कवव अपने युग का प्रनतननचध ोता ै 3 एक एक दो ग्यार / सिंगिन ी शम्क्त ै 4 पर उपदेश कु शल ब ुतेरे 5 आत्मननभचरता ी देश की सच्र्ी स्वाधीनता ै 6 आत्मववश्वास सिलता का प ला र स्य ै 7 मन के ारे ार ै मन के जीते जीत 8 क्रकसान देश की रीढ़ 9 ववपवत्तयािं मनुष्य की सवचश्रेष्ि गुरु ै 10 अधजल गगरी छलकत जाए
  • 16. 11 का वषाच जब कृ वष सुखानी 12 तेते पािंव पसाररए जेती लािंबी सौर 13 र्िंदन ववष व्यापत न ीिं भलपटे र त भुजिंग 14 ननिंदक ननयरे राखखए आिंगन कु टी छवाय 15 ज ािं सुमनत त ािं सिंपवत्त नाना 16 जैसी ब ै बयार पीि तब तैसी दीजे 17 तरुण भववष्य को वतचमान में लाना र्ा ते ैं और वृद्ध अतीत को खीिंर्कर वतचमान में देखना र्ा ते ैं 18 स्वावलिंबन की झलक पर न्योछावर कु बेर का कोष 19 वृद्ध मनुष्य के अनुभव जीवन की खुली पुस्तक के समान ै 20 पुरुषार्च ी जीवन ै
  • 17. 21 बैर क्रोध का अर्ार या मुरदबा ै / क्रोध एक तर का पागलपन ै 22 तुच्छ मनुष्य के वल अतीत का स्वामी ै 23 अज्ञान र्ा े अपना ो, र्ा े पराया सब हदन रक्षा न ीिं कर सकता / अज्ञान अिंधकार स्वरूप ै 24 वीर ह्रदय युद्ध का नाम सुनकर नार् उिता ै 25 गािंधी टोपी की उमिंग और ै, गािंधीत्व की गिंध और।
  • 18. संदभथ ग्रंर् 1 भारतीयता के अमर स्वर- प्रोिे सर धनिंजय वमाच 2 ह िंदी व्याकरण: कामता प्रसाद गुरु 3 आधुननक ह न्दी व्याकरण और रर्ना:ड वासुदेव निंदन प्रसाद 4 सामान्य ह िंदी: ड रदेव बा री 5 http://hindigrammar.in/pllvan.html 6