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अलंकार
जिस प्रकार एक सुन्दरी
विभिन्न आिूषणों द्िारा अपने शरीर
को सिाती िै, उसी प्रकार कवि िी
अपनी कविता को विविध शब्द ि
अर्थ योिनाओं से सिाता िै। िे
सुसजजित शब्द ि अर्थ योिनाएँ िी
काव्य में अलंकार किलाती िैं।
राम नाम मनन द्िीप
बरू िीि-देिरी द्िार।
माटी किे कु म्िार से, तू
क्या रोंदे मोय।
एक हदन ऐसा आएगा, मैं
रोंदोंगी तोय।।
पायो जी मैंने राम
रतन धन पायो।
ककतनी करुणा ककतने संदेश।
पर् में बबछ िाते बन पराग।।
आओ अलंकारों सिे
िाििाषा िुिन में।
अनप्राश्लेषयमकोपमा,
रूपकोत्प्प्रेक्षा मानिीकरण
के चमन में।।
अलंकार के दो िेद िैं
१. शब्द अलंकार
२. अर्थ अलंकार
शब्दालंकर
शब्दालंकर शब्द द्वारा काव्य
में चमत्कार उत्पन्न करते हैं। यदद
जजस शब्द द्वारा चमत्कार उत्पन्न
हो रहा है, उसे हटाकर अन्य समान
शब्द वहााँ रख ददया जाए, तो वहााँ
अलंकार नह ं रहता।
शब्दालंकर के तीन िेद।
2. यमक
1. अनुप्रास
3. श्लेष
1. अनुप्रास
* जहााँ व्यंजनों की आवृत्ति ध्वनन-
सौंदयय को बढाए, वहााँ अनुप्रास
अलंकार होता है। व्यंजनों की आवृत्ति
एक त्तवशेष क्रम से होनी चादहए।
सौंदयय-वधयक व्यंजन शब्दों के प्रारंभ
, मध्य, या अंत में आने चादहए।
उदािरण
1. मोिन की मधुर मुरली
मेरे मन मयूर को मस्त
करती िै।
2. चारू चंद्र की चंचल
ककरणें खेल रिी िैं िल
र्ल में।
इस काव्य में ‘म’ की आिृवि
बार-बार िुई िैं।
इस काव्य में ‘च,ल’ की
आिृवि बार-बार िुई िैं।
2.यमक
जहााँ पर एक शब्द की
बार-बार आवृत्ति होती है और
उतनी ह बार उसका अर्य
अलग- अलग होता है, वहााँ
यमक अलंकार होता है।
उदािरण
काली घटा का घमंड घटा।
इस दोिें में प्रर्म घटा का अर्थ िैं काले
बादल
और दूसरे घटा क अर्थ िैं कम िोना।
श्लेष
ििाँ एक िी शब्द के
द्िारा एक से अधधक
अर्थ का बोध िो, ििाँ
श्लेष अलंकर िोता िै।
इस काव्य मे पानी के तीन अर्थ िै
1.समान्य िल
2.मोती की चमक
3.मनुष्य का सम्मान
अर्ाथलंकार
अर्ाथलंकार में सौंदयथ 'िाि' से
संबंधधत िोता िै, 'शब्द्' से निीं।
अर्ाथलंकार चमत्प्कार की बिाय िाि
की अनुिूनत में तीव्रता लाते िैं
अर्िा िाि संबंधी चमत्प्कार
उत्प्पन्न करते िैं।
सिी िीिों में भिन्न-भिन्न प्रकार के
िाि िोते िैं।
अर्ाथलंकार के िेद।
उपमा
रूपक
उत्प्प्रेक्षा
मानिीकरण
उपमा
ििाँ पर दो िस्तुओं की
तुलना उनके रुप, रंग ि
गुण के अनुसार की िाए
उसको उपमा अलंकार किते
िैं।
उपमेय
जिसकी उपमा दी िाए अर्ाथत
जिसका िणथन िो रिा िै, उसे
उपमेय या प्रस्तुत किते िैं।
उपमान
िि प्रभसदॄ िस्तु या प्राणी जिससे
उपमेय की समानता प्रकट की िाए,
उपमान किलाता िै। उसे अप्रस्तुत
िी किते िैं।
साधारण धमथ
उपमेय और उपमान के समान
गुण या विशेषता व्यक्त करने
िाले शब्द साधारण धमथ किलाते
िैं।
िाचक शब्द
जजन शब्दों की सहायता से उपमेय और
उपमान में समानता प्रकट की जाती है
उपमा अलंकार की पहचान होती है उन्हें
वाचक शब्द कहते हैं। सा, सी, सम, जैसी,
ज्यों, के समान-आदद शब्द कहलते हैं।
चाँद सा सुन्दर मुख'
'
उपमेय ‘मुख’
उपमान ‘चाँद’
साधारण धमथ ‘सुंदर’
िाचक शब्द ‘सा’
जह ाँ उपमेय पर उपम न क आरोप
ककय ज य,वह ाँ रूपक अलंक र होत है
, य नी उपमेय और उपम न में कोई
अन्तर न किख ई पडे ।
2.रूपक अलंकार
पायो जी मैंने राम
रतन धन पायो।
मीरा ने प्रिु राम को आत्प्मा
से अपने िीिन मे रतन रूपी
धन माना िै
बीती वििािरी िागरी
अंबर पनघट में डुबो रिी
तारा-घट ऊषा-नागरी।
प्रातः काल के समय आकाश की
छाया पनघट में हदखाई देती िैं।
जह ाँ उपमेय को ही उपम न म न
कलय ज त है य नी अप्रस्तुत को
प्रस्तुत म नकर वर्णन ककय ज त है।
वह उत्प्प्रेक्ष अलंक र होत है। यह ाँ
किन्नत में अकिन्नत किख ई ज ती है।
3.उत्प्रेक्षा अलंकार
किती िुई यों उिरा के
,नेत्र िल से िर गए।
हिम के कणों से पूणथ
मानो ,िो गए पंकि नए।।
आँसू से िरे उिरा के नेत्र मानो ओस िरे कमल लग रिे
िैं।
ििाँ ककसी अचेतन
िस्तु को मानि की तरि
गनतविधध करता हदखाया
िाए ,ििाँ मानिीकरण
अलंकार िोता िै।
मेघ आए बड़े बन-ठन
के सँिर के ।
इस काव्य मे मेघों को मनुष्य
की तरि सिे संिरे किाँ गया
िै।
हदिसािसन का समय
मेघमय आसमान से उतर रिी
संध्या-सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे।
इस काव्य मे संध्या के समय के डूबते सूरि की
तुलना आकाश से उतरती परी से की िै।
शब्दार्य गहनों गान भूत्तषत काव्य
का संसार सुंदर।
साकार शब्दों रचचत काया,
भावार्य सजेपद बाहर-अंदर।।
अलंकार कत्तव चमत्कार है,
चमत्कार को नमस्कार है।
समापन सम आपन, काव्यगत ये
अलंकार हैं।।
Alankar

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  • 2. जिस प्रकार एक सुन्दरी विभिन्न आिूषणों द्िारा अपने शरीर को सिाती िै, उसी प्रकार कवि िी अपनी कविता को विविध शब्द ि अर्थ योिनाओं से सिाता िै। िे सुसजजित शब्द ि अर्थ योिनाएँ िी काव्य में अलंकार किलाती िैं।
  • 3.
  • 4.
  • 5. राम नाम मनन द्िीप बरू िीि-देिरी द्िार। माटी किे कु म्िार से, तू क्या रोंदे मोय। एक हदन ऐसा आएगा, मैं रोंदोंगी तोय।।
  • 6. पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। ककतनी करुणा ककतने संदेश। पर् में बबछ िाते बन पराग।।
  • 7. आओ अलंकारों सिे िाििाषा िुिन में। अनप्राश्लेषयमकोपमा, रूपकोत्प्प्रेक्षा मानिीकरण के चमन में।।
  • 8. अलंकार के दो िेद िैं १. शब्द अलंकार २. अर्थ अलंकार
  • 9. शब्दालंकर शब्दालंकर शब्द द्वारा काव्य में चमत्कार उत्पन्न करते हैं। यदद जजस शब्द द्वारा चमत्कार उत्पन्न हो रहा है, उसे हटाकर अन्य समान शब्द वहााँ रख ददया जाए, तो वहााँ अलंकार नह ं रहता।
  • 10. शब्दालंकर के तीन िेद। 2. यमक 1. अनुप्रास 3. श्लेष
  • 11. 1. अनुप्रास * जहााँ व्यंजनों की आवृत्ति ध्वनन- सौंदयय को बढाए, वहााँ अनुप्रास अलंकार होता है। व्यंजनों की आवृत्ति एक त्तवशेष क्रम से होनी चादहए। सौंदयय-वधयक व्यंजन शब्दों के प्रारंभ , मध्य, या अंत में आने चादहए।
  • 12. उदािरण 1. मोिन की मधुर मुरली मेरे मन मयूर को मस्त करती िै। 2. चारू चंद्र की चंचल ककरणें खेल रिी िैं िल र्ल में। इस काव्य में ‘म’ की आिृवि बार-बार िुई िैं। इस काव्य में ‘च,ल’ की आिृवि बार-बार िुई िैं।
  • 13. 2.यमक जहााँ पर एक शब्द की बार-बार आवृत्ति होती है और उतनी ह बार उसका अर्य अलग- अलग होता है, वहााँ यमक अलंकार होता है।
  • 14. उदािरण काली घटा का घमंड घटा। इस दोिें में प्रर्म घटा का अर्थ िैं काले बादल और दूसरे घटा क अर्थ िैं कम िोना।
  • 15. श्लेष ििाँ एक िी शब्द के द्िारा एक से अधधक अर्थ का बोध िो, ििाँ श्लेष अलंकर िोता िै।
  • 16. इस काव्य मे पानी के तीन अर्थ िै 1.समान्य िल 2.मोती की चमक 3.मनुष्य का सम्मान
  • 17. अर्ाथलंकार अर्ाथलंकार में सौंदयथ 'िाि' से संबंधधत िोता िै, 'शब्द्' से निीं। अर्ाथलंकार चमत्प्कार की बिाय िाि की अनुिूनत में तीव्रता लाते िैं अर्िा िाि संबंधी चमत्प्कार उत्प्पन्न करते िैं।
  • 18. सिी िीिों में भिन्न-भिन्न प्रकार के िाि िोते िैं।
  • 20. उपमा ििाँ पर दो िस्तुओं की तुलना उनके रुप, रंग ि गुण के अनुसार की िाए उसको उपमा अलंकार किते िैं।
  • 21. उपमेय जिसकी उपमा दी िाए अर्ाथत जिसका िणथन िो रिा िै, उसे उपमेय या प्रस्तुत किते िैं। उपमान िि प्रभसदॄ िस्तु या प्राणी जिससे उपमेय की समानता प्रकट की िाए, उपमान किलाता िै। उसे अप्रस्तुत िी किते िैं।
  • 22. साधारण धमथ उपमेय और उपमान के समान गुण या विशेषता व्यक्त करने िाले शब्द साधारण धमथ किलाते िैं। िाचक शब्द जजन शब्दों की सहायता से उपमेय और उपमान में समानता प्रकट की जाती है उपमा अलंकार की पहचान होती है उन्हें वाचक शब्द कहते हैं। सा, सी, सम, जैसी, ज्यों, के समान-आदद शब्द कहलते हैं।
  • 23. चाँद सा सुन्दर मुख' ' उपमेय ‘मुख’ उपमान ‘चाँद’ साधारण धमथ ‘सुंदर’ िाचक शब्द ‘सा’
  • 24. जह ाँ उपमेय पर उपम न क आरोप ककय ज य,वह ाँ रूपक अलंक र होत है , य नी उपमेय और उपम न में कोई अन्तर न किख ई पडे । 2.रूपक अलंकार
  • 25. पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। मीरा ने प्रिु राम को आत्प्मा से अपने िीिन मे रतन रूपी धन माना िै
  • 26. बीती वििािरी िागरी अंबर पनघट में डुबो रिी तारा-घट ऊषा-नागरी। प्रातः काल के समय आकाश की छाया पनघट में हदखाई देती िैं।
  • 27. जह ाँ उपमेय को ही उपम न म न कलय ज त है य नी अप्रस्तुत को प्रस्तुत म नकर वर्णन ककय ज त है। वह उत्प्प्रेक्ष अलंक र होत है। यह ाँ किन्नत में अकिन्नत किख ई ज ती है। 3.उत्प्रेक्षा अलंकार
  • 28. किती िुई यों उिरा के ,नेत्र िल से िर गए। हिम के कणों से पूणथ मानो ,िो गए पंकि नए।। आँसू से िरे उिरा के नेत्र मानो ओस िरे कमल लग रिे िैं।
  • 29. ििाँ ककसी अचेतन िस्तु को मानि की तरि गनतविधध करता हदखाया िाए ,ििाँ मानिीकरण अलंकार िोता िै।
  • 30. मेघ आए बड़े बन-ठन के सँिर के । इस काव्य मे मेघों को मनुष्य की तरि सिे संिरे किाँ गया िै।
  • 31. हदिसािसन का समय मेघमय आसमान से उतर रिी संध्या-सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे। इस काव्य मे संध्या के समय के डूबते सूरि की तुलना आकाश से उतरती परी से की िै।
  • 32. शब्दार्य गहनों गान भूत्तषत काव्य का संसार सुंदर। साकार शब्दों रचचत काया, भावार्य सजेपद बाहर-अंदर।। अलंकार कत्तव चमत्कार है, चमत्कार को नमस्कार है। समापन सम आपन, काव्यगत ये अलंकार हैं।।