फुफ्फुस कर्कट रोग ( Lung Cancer)
फुफ्फुस या फेफड़ें का कैंसर एक आक्रामक, व्यापक, कठोर, कुटिल और घातक रोग है जिसमें फेफड़े के ऊतकों की अनियंत्रित संवृद्धि होती है। 90%-95% फेफड़े के कैंसर छोटी और बड़ी श्वास नलिकाओं (bronchi and bronchioles) के इपिथीलियल कोशिकाओं से उत्पन्न होते हैं। इसीलिए इसे ब्रोंकोजेनिक कारसिनोमा भी कहते हैं। फुफ्फुसावरण (प्लूरा) से उत्पन्न होने वाले कैंसर को मीजोथालियोमा कहते हैं। फेफड़े के कैंसर का स्थलान्तर बहुत तेजी होता है यानि यह बहुत जल्दी फैलता है। हालांकि यह शरीर के किसी भी अंग में फैल सकता है। यह बहुत जानलेवा रोग माना जाता है। इसका उपचार भी बहुत मुश्किल है।
पौरुष ग्रंथि Prostate
मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है। शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीर्य सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है, वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही सुन्दरता है। शरीर में वीर्य ही प्रधान वस्तु है। वीर्य ही आँखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान, वीर्य ही प्रकाश है, वीर्य ही वेद हैं और वीर ही ब्रह्म है। वीर्य का संचय करना ही ब्रह्मचर्य है। वीर्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य ही आनन्द-प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद-प्रमोद मना सकता है और सौ वर्ष तक जी सकता है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है। जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी और जटिल है, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न होती है। इस बारे में श्री सुश्रुताचार्य ने लिखा है :
रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते ।
मेदस्यास्थिः ततो मज्जा मज्जाया: शुक्रसंभवः ।।
कहते हैं कि वीर्य बनने में करीब 30 दिन व 4 घंटे लग जाते हैं। वैज्ञानिक लोग कहते हैं कि 32 किलोग्राम भोजन से 700 ग्राम रक्त बनता है और 700 ग्राम रक्त से लगभग 20 ग्राम वीर्य बनता है। ग्रीक भाषा में भी प्रोस्टेट का मतलब होता है "One who stands before" यानि "Protector" या "Guardian" अर्थात यह पूरे शरीर का संरक्षक या पालनहार है। प्रोस्टेट के बारे में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सन् 2002 में फेडरल इंटरनेशनल कमेटी ऑन टर्मिनोलोजी ने स्त्रियों की पेरा
क्या होता है स्ट्रोक या दौरा या ब्रेन अटेक?
मस्तिष्क और नाड़ियों को जीवित और सक्रिय रहने के लिए भरपूर ऑक्सीजन और पौषक तत्वों की निरंतर आवश्यकता रहती है जो रक्त द्वारा प्राप्त होते हैं। मस्तिष्क और नाड़ी-तंत्र के सभी हिस्सों में विभिन्न रक्त-वाहिकाऐं निरंतर रक्त पहुँचाती है। जब भी इनमें से कोई रक्त-वाहिका क्षतिग्रस्थ या अवरुद्ध हो जाती है तो मस्तिष्क के कुछ हिस्से को रक्त मिलना बन्द हो जाता है। यदि मस्तिष्क के किसी हिस्से को 3-4 मिनट से ज्यादा रक्त की आपूर्ति बन्द हो जाये तो मस्तिष्क का वह भाग ऑक्सीजन व पौषक तत्वों के अभाव में नष्ट होने लगता है, इसे ही स्ट्रोक या दौरा कहते हैं।
सबसे अच्छी बात यह है कि चिकित्सा-विज्ञान ने इस रोग के उपचार में बहुत तरक्की कर ली है और आज हमारे न्यूरोलोजिस्ट पूरा ताम-झाम लेकर बैठे हैं और उनके पिटारे में इस रोग के बचाव और उपचार के लिए क्या कुछ नहीं है। इसीलिए पिछले कई वर्षों में स्ट्रोक से मरने वाले रोगियों का प्रतिशत बहुत कम हुआ है। बस यह जरुरी है कि रोगी बिना व्यर्थ समय गंवाये तुरन्त अच्छे चिकित्सा-कैंन्द्र पहुँचे ताकि उसका उपचार जितना जल्दी संभव हो सके शुरू हो सके। समय पर उपचार शुरू हो जाने से मस्तिष्क में होने वाली क्षति और दुष्प्रभावों को काफी हद तक रोका जा सकता है।
मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है। शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीर्य सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है, वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही सुन्दरता है। शरीर में वीर्य ही प्रधान वस्तु है। वीर्य ही आँखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान, वीर्य ही प्रकाश है, वीर्य ही वेद हैं और वीर ही ब्रह्म है। वीर्य का संचय करना ही ब्रह्मचर्य है। वीर्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य ही आनन्द-प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद-प्रमोद मना सकता है और सौ वर्ष तक जी सकता है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है। जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी और जटिल है, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न होती है।
THIS presentation EXPLAINS biomedical waste management IN EASY WAY
Important links- NOTES- https://mynursingstudents.blogspot.com/
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ANATOMY AND PHYSIOLOGY-https://www.youtube.com/playlist?list...
COMMUNITY HEALTH NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list...
CHILD HEALTH NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list...
FIRST AID- https://www.youtube.com/playlist?list...
HCM- https://www.youtube.com/playlist?list...
FUNDAMENTALS OF NURSING- https://www.youtube.com/playlist?list...
COMMUNICABLE DISEASES- https://www.youtube.com/playlist?list...
ENVIRONMENTAL HEALTH- https://www.youtube.com/playlist?list...
MSN- https://www.youtube.com/playlist?list...
HINDI ONLY- https://www.youtube.com/playlist?list...
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पौरुष ग्रंथि Prostate
मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है। शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीर्य सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है, वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही सुन्दरता है। शरीर में वीर्य ही प्रधान वस्तु है। वीर्य ही आँखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान, वीर्य ही प्रकाश है, वीर्य ही वेद हैं और वीर ही ब्रह्म है। वीर्य का संचय करना ही ब्रह्मचर्य है। वीर्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य ही आनन्द-प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद-प्रमोद मना सकता है और सौ वर्ष तक जी सकता है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है। जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी और जटिल है, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न होती है। इस बारे में श्री सुश्रुताचार्य ने लिखा है :
रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते ।
मेदस्यास्थिः ततो मज्जा मज्जाया: शुक्रसंभवः ।।
कहते हैं कि वीर्य बनने में करीब 30 दिन व 4 घंटे लग जाते हैं। वैज्ञानिक लोग कहते हैं कि 32 किलोग्राम भोजन से 700 ग्राम रक्त बनता है और 700 ग्राम रक्त से लगभग 20 ग्राम वीर्य बनता है। ग्रीक भाषा में भी प्रोस्टेट का मतलब होता है "One who stands before" यानि "Protector" या "Guardian" अर्थात यह पूरे शरीर का संरक्षक या पालनहार है। प्रोस्टेट के बारे में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सन् 2002 में फेडरल इंटरनेशनल कमेटी ऑन टर्मिनोलोजी ने स्त्रियों की पेरा
क्या होता है स्ट्रोक या दौरा या ब्रेन अटेक?
मस्तिष्क और नाड़ियों को जीवित और सक्रिय रहने के लिए भरपूर ऑक्सीजन और पौषक तत्वों की निरंतर आवश्यकता रहती है जो रक्त द्वारा प्राप्त होते हैं। मस्तिष्क और नाड़ी-तंत्र के सभी हिस्सों में विभिन्न रक्त-वाहिकाऐं निरंतर रक्त पहुँचाती है। जब भी इनमें से कोई रक्त-वाहिका क्षतिग्रस्थ या अवरुद्ध हो जाती है तो मस्तिष्क के कुछ हिस्से को रक्त मिलना बन्द हो जाता है। यदि मस्तिष्क के किसी हिस्से को 3-4 मिनट से ज्यादा रक्त की आपूर्ति बन्द हो जाये तो मस्तिष्क का वह भाग ऑक्सीजन व पौषक तत्वों के अभाव में नष्ट होने लगता है, इसे ही स्ट्रोक या दौरा कहते हैं।
सबसे अच्छी बात यह है कि चिकित्सा-विज्ञान ने इस रोग के उपचार में बहुत तरक्की कर ली है और आज हमारे न्यूरोलोजिस्ट पूरा ताम-झाम लेकर बैठे हैं और उनके पिटारे में इस रोग के बचाव और उपचार के लिए क्या कुछ नहीं है। इसीलिए पिछले कई वर्षों में स्ट्रोक से मरने वाले रोगियों का प्रतिशत बहुत कम हुआ है। बस यह जरुरी है कि रोगी बिना व्यर्थ समय गंवाये तुरन्त अच्छे चिकित्सा-कैंन्द्र पहुँचे ताकि उसका उपचार जितना जल्दी संभव हो सके शुरू हो सके। समय पर उपचार शुरू हो जाने से मस्तिष्क में होने वाली क्षति और दुष्प्रभावों को काफी हद तक रोका जा सकता है।
मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है। शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीर्य सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है, वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही सुन्दरता है। शरीर में वीर्य ही प्रधान वस्तु है। वीर्य ही आँखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान, वीर्य ही प्रकाश है, वीर्य ही वेद हैं और वीर ही ब्रह्म है। वीर्य का संचय करना ही ब्रह्मचर्य है। वीर्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य ही आनन्द-प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद-प्रमोद मना सकता है और सौ वर्ष तक जी सकता है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है। जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी और जटिल है, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न होती है।
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गुर्दों की गीता
गुर्दों का आर्थिक और सामाजिक महत्व
गुर्दा या वृक्क शरीर का बहुत मँहगा और दुर्लभ अंग है। आदमी का रौब, रुतबा, शान-शौकत, बाज़ुओं की ताकत सब कुछ गुर्दे के दम से ही होती है। आपके गुर्दे में दम-खम है तो दुनिया डरती है, सलाम करती है। गुर्दे के दम पर कई बिना पढ़े या कम पढ़े लोग भी नेता, मुख्य मंत्री या बड़े-बड़े ओहदों पर पहुँच जाते हैं। फिर गुर्दों की देख-भाल और सुरक्षा में हम कोई कोताही क्यों बरतें। देख लीजियेगा समय आने पर गुर्दे के मामले में सगे-संबन्धी तथा इष्ट-मित्र किनारा कर लेंगे और तन-मन न्यौछावर करने वाली आपकी अंकशायिनी या चाँद-सितारे तोड़ कर लाने वाला आपका बलमा भी धोखा दे जायेगा। गुर्दा खरीदना भी आसान काम नहीं है। बाज़ार में गुर्दे सिमित हैं, कीमतें आसमान को छू रही हैं और खरीदने वालों की कतार बड़ी लम्बी है। भारत गुर्दे के रोगों में भी विश्व की राजधानी है।
corona is a viral effect on human being ,which affect the people all over the world. we can prevent it to become immune to it and by following some preventive measures.
होजकिन्स लिन्फोमा (Hodgkin's lymphoma)
होजकिन्स लिम्फोमा या HL (जिसे पहले होजकिन्स रोग के नाम से जाना जाता था) श्वेतरक्त-कोशिकाओं का कैंसर (lymphoid malignancy) है, इस कैंसर की संरचना और लक्षण विशिष्ट हैं और इसका पूर्णतः उपचार संभव है। सबसे पहले सन् 1832 में थॉमस हॉजकिन्स ने इस रोग का विस्तार से अध्ययन किया और इसे होजकिन्स रोग नाम से परिभाषित किया था। एक लाख लोगों में 2-3 इस रोग के शिकार बनते हैं।
बायोप्सी द्वारा लसिका-ग्रंथि को निकाल कर (excisional lymph node biopsy) उसकी सूक्ष्म-संरचना को देख कर ही इसका निदान किया जाता है। सी.टी.स्केन, एम.आर.आई.तथा अन्य जांच के आधार पर इसे विभिन्न चरणों में वर्गीकृत किया जाता है।
गुर्दों की गीता
गुर्दों का आर्थिक और सामाजिक महत्व
गुर्दा या वृक्क शरीर का बहुत मँहगा और दुर्लभ अंग है। आदमी का रौब, रुतबा, शान-शौकत, बाज़ुओं की ताकत सब कुछ गुर्दे के दम से ही होती है। आपके गुर्दे में दम-खम है तो दुनिया डरती है, सलाम करती है। गुर्दे के दम पर कई बिना पढ़े या कम पढ़े लोग भी नेता, मुख्य मंत्री या बड़े-बड़े ओहदों पर पहुँच जाते हैं। फिर गुर्दों की देख-भाल और सुरक्षा में हम कोई कोताही क्यों बरतें। देख लीजियेगा समय आने पर गुर्दे के मामले में सगे-संबन्धी तथा इष्ट-मित्र किनारा कर लेंगे और तन-मन न्यौछावर करने वाली आपकी अंकशायिनी या चाँद-सितारे तोड़ कर लाने वाला आपका बलमा भी धोखा दे जायेगा। गुर्दा खरीदना भी आसान काम नहीं है। बाज़ार में गुर्दे सिमित हैं, कीमतें आसमान को छू रही हैं और खरीदने वालों की कतार बड़ी लम्बी है। भारत गुर्दे के रोगों में भी विश्व की राजधानी है।
आज उदरदर्शी पित्ताशय-उच्छेदन (Laparoscopic Cholecystectomy) सबसे प्रचलित शल्यक्रिया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इस तकनीक ने उदरदर्शी शल्य-चिकित्सा के एक नये युग की शुरूवात की है। इस तकनीक ने शल्य-विज्ञान को एक नई दिशा दी है और शोधकर्ताओं को नई राह बतलाई है। जहां किसी जमाने में पित्ताशय-उच्छेदन एक जोखिम भरी, कष्टदायक और भयभीत कर देने वाली शल्यक्रिया थी वहीं आज यह एक रोमांचकारी अनुभव बन कर रह गयी है। इसके बाद चिकित्सकों ने पित्तपथरी के पुराने जुगाड़ू उपचार जैसे पित्त-लवण, लिथोट्रिप्सी आदि को अपने पिटारे से अलग कर दिया है। (विच्छेदन = चीर-फाड़ करना और उच्छेदन = किसी अंग को काट कर शरीर से अलग करना)
उदरदर्शी पित्ताशय-उच्छेदन के फायदे
• उदरदर्शी तकनीक से की गई पित्ताशय-उच्छेदन शल्यक्रिया में रोगी को कोई वेदना या कष्ट नहीं होता है और सामान्यतः दर्द निवारक दवाओं की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है।
• रोगी को लंबे समय तक भरती रहने की जरूरत नहीं होती है। प्रायः शल्यक्रिया के दूसरे दिन उसे घर भेज दिया जाता है और एक सप्ताह बाद वह अपने सारे कार्य सुचारु रूप से करने लगता है।
• इस विधि में पेट में बड़ा चीरा न लगा कर सिर्फ चार छोटे छिद्र किये जाते हैं। जिनके घाव बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं और कुछ हफ्तों में इनके निशान भी पूरी तरह मिट जाते हैं।
• रोगी को टांके पकने, टूटने, पेट फट जाने या हर्निया जैसी तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है।
• रोगी के पेट पर घावों के कोई निशान नहीं होने से पेट की सुन्दरता बनी रहती है और स्त्रियों को साड़ी पहनने में कोई शर्म या झिझक नहीं होती है।
मधुमेह नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी
जैसे ही डायन डायबिटीज शरीर पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है, उत्पाती और उधमी ग्लूकोज शरीर की नाड़ियों को नुकसान पहुँचाने लगता है। 60-70 प्रतिशत मधुमेही अपने जीवन काल में किसी न किसी प्रकार के नाड़ी-दोष का शिकार हो ही जाते हैं। मधुमेह के कारण नाड़ियों के क्षतिग्रस्त होने को नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी (न्यूरो=नाड़ी और पैथी=रोग) कहते हैं। यह एक गम्भीर रोग है जो मधुमेही के शरीर पर भले देर से हमला करता है परन्तु चुपचाप और दबे पाँव करता है, जैसे-जैसे यह अपने पर फैलाता है रोगी के जीवन को असहनीय कष्ट, वेदना और अपंगता से भर देता है।
रोगी के जीवन में इस रोग में होने वाले लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि शरीर की कौन सी नाड़ियों को क्षति पहुँची है, रोगी को मधुमेह कितने समय से है, रोगी का रक्तशर्करा नियंत्रण कैसा है, क्या वह धूम्रपान व मदिरापान करता है या उसकी जीवनशैली कैसी है। वैसे तो हाथ-पैरों में दर्द, चुभन, जलन तथा स्पंदन, तापमान या स्पर्श की अनुभूति न होना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं, पर रोगी को पाचनतंत्र, उत्सर्जन-तंत्र, प्रजनन-तंत्र, हृदय एवम् परिवहन-तंत्र आदि से संबन्धित कोई भी लक्षण हो सकते हैं। नाड़ीरोग में कुछ रोगियों को बहुत मामूली सी तकलीफ होती है तो कई बार लक्षण इतने प्रचण्ड और कष्टदायक होते हैं कि जीवन अपाहिज और असंभव सा लगने लगता है।
आखिर ये नाड़ियाँ क्या होती हैं?
मोटे तौर पर नाड़ियों की तुलना हम बिजली की केबल्स से कर सकते हैं। इनके मध्य में भी एक तार होता है जिसमें संदेश, आदेश या संवेदनाएं प्रवाहित होती हैं। इसे एक्सोन कहते हैं। जिसके बाहर एक रक्षात्मक खोल होता है जिसे माइलिन शीथ कहते हैं। ये नाड़ियाँ हमारे मस्तिष्क, सुषुम्ना (Spinal Cord) और नाड़ी-तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है
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Linomel Muesli
“Muesli" should be eaten regularly, prepared as follows:
Put 2 tablespoons of LINOMEL in a glass bowl. Cover this with a layer of fresh fruit in season, (i.e.: berries, cherries, apricots, peaches, grated apples). Now prepare a mixture made with Quark and Flax Seed Oil.
Add 3 tablespoons Flax Seed Oil to 100 - 125 g Quark, a little milk (2 Tblsp) and mix thoroughly until the oil has been totally absorbed. Lastly, add 1 tablespoon honey. In order to give it a new flavor every day, rosehip pulp, buckthorn juice, other fruit juices or ground nuts may be added. Butter is not recommended. Only herb teas should be served, but a cup of black tea is permitted on occasion.
अभी तक हुए 1500 से अधिक शोधों से यह साबित होता है कि नारियल तेल (कोकोस न्युसिफेरा) हमारी धरा पर विद्यमान एक स्वास्थ्यप्रद और उत्कृष्ट तेल है। सेहत से लेकर सुंदरता तक नारियल तेल प्रकृति का नायाब और अनमोल उपहार है। इसके करिश्माई फायदे आपको चौंका देंगे। गर्म करने पर यह खराब नहीं होता। इसकी शैल्फ लाइफ दो वर्ष से अधिक है। हमें अनरिफाइंड, अनहीटेड, ऑर्गेनिक, कॉल्ड-प्रेस्ड और एक्स्ट्रावर्जिन तेल प्रयोग में लेना चाहिए।
विश्वविख्यात फैट और ऑयल्स एक्सपर्ट और जर्मनी के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च की चीफ एक्सपर्ट डॉ जॉहाना बडविग ने साबित किया है कि नारियल तेल फ्राइंग और डीप फ्राइंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। गर्म करने पर इसमें ट्रांसफैट नहीं बनते। कैंसर के रोगी भी इस तेल को प्रयोग कर सकते हैं।
पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में नारियल एक शुद्ध, सात्विक, पवित्र, फलदायी एवं लक्ष्मी माता से मनुष्य को जोड़ने वाला फल है, इसीलिए इसे संस्कृत में श्रीफल कहते हैं, श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। किसी भी धार्मिक एवं शुभ कार्य में हुई पूजा में नारियल रखने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है। घर में नारियल रखने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। मंदिरों में आमतौर पर इसे पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति के सामने फोड़ा जाता है। फोड़ने के बाद यह नारियल प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।
गुर्दों की गीता
गुर्दों का आर्थिक और सामाजिक महत्व
गुर्दा या वृक्क शरीर का बहुत मँहगा और दुर्लभ अंग है। आदमी का रौब, रुतबा, शान-शौकत, बाज़ुओं की ताकत सब कुछ गुर्दे के दम से ही होती है। आपके गुर्दे में दम-खम है तो दुनिया डरती है, सलाम करती है। गुर्दे के दम पर कई बिना पढ़े या कम पढ़े लोग भी नेता, मुख्य मंत्री या बड़े-बड़े ओहदों पर पहुँच जाते हैं। फिर गुर्दों की देख-भाल और सुरक्षा में हम कोई कोताही क्यों बरतें। देख लीजियेगा समय आने पर गुर्दे के मामले में सगे-संबन्धी तथा इष्ट-मित्र किनारा कर लेंगे और तन-मन न्यौछावर करने वाली आपकी अंकशायिनी या चाँद-सितारे तोड़ कर लाने वाला आपका बलमा भी धोखा दे जायेगा। गुर्दा खरीदना भी आसान काम नहीं है। बाज़ार में गुर्दे सिमित हैं, कीमतें आसमान को छू रही हैं और खरीदने वालों की कतार बड़ी लम्बी है। भारत गुर्दे के रोगों में भी विश्व की राजधानी है।
corona is a viral effect on human being ,which affect the people all over the world. we can prevent it to become immune to it and by following some preventive measures.
होजकिन्स लिन्फोमा (Hodgkin's lymphoma)
होजकिन्स लिम्फोमा या HL (जिसे पहले होजकिन्स रोग के नाम से जाना जाता था) श्वेतरक्त-कोशिकाओं का कैंसर (lymphoid malignancy) है, इस कैंसर की संरचना और लक्षण विशिष्ट हैं और इसका पूर्णतः उपचार संभव है। सबसे पहले सन् 1832 में थॉमस हॉजकिन्स ने इस रोग का विस्तार से अध्ययन किया और इसे होजकिन्स रोग नाम से परिभाषित किया था। एक लाख लोगों में 2-3 इस रोग के शिकार बनते हैं।
बायोप्सी द्वारा लसिका-ग्रंथि को निकाल कर (excisional lymph node biopsy) उसकी सूक्ष्म-संरचना को देख कर ही इसका निदान किया जाता है। सी.टी.स्केन, एम.आर.आई.तथा अन्य जांच के आधार पर इसे विभिन्न चरणों में वर्गीकृत किया जाता है।
गुर्दों की गीता
गुर्दों का आर्थिक और सामाजिक महत्व
गुर्दा या वृक्क शरीर का बहुत मँहगा और दुर्लभ अंग है। आदमी का रौब, रुतबा, शान-शौकत, बाज़ुओं की ताकत सब कुछ गुर्दे के दम से ही होती है। आपके गुर्दे में दम-खम है तो दुनिया डरती है, सलाम करती है। गुर्दे के दम पर कई बिना पढ़े या कम पढ़े लोग भी नेता, मुख्य मंत्री या बड़े-बड़े ओहदों पर पहुँच जाते हैं। फिर गुर्दों की देख-भाल और सुरक्षा में हम कोई कोताही क्यों बरतें। देख लीजियेगा समय आने पर गुर्दे के मामले में सगे-संबन्धी तथा इष्ट-मित्र किनारा कर लेंगे और तन-मन न्यौछावर करने वाली आपकी अंकशायिनी या चाँद-सितारे तोड़ कर लाने वाला आपका बलमा भी धोखा दे जायेगा। गुर्दा खरीदना भी आसान काम नहीं है। बाज़ार में गुर्दे सिमित हैं, कीमतें आसमान को छू रही हैं और खरीदने वालों की कतार बड़ी लम्बी है। भारत गुर्दे के रोगों में भी विश्व की राजधानी है।
आज उदरदर्शी पित्ताशय-उच्छेदन (Laparoscopic Cholecystectomy) सबसे प्रचलित शल्यक्रिया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इस तकनीक ने उदरदर्शी शल्य-चिकित्सा के एक नये युग की शुरूवात की है। इस तकनीक ने शल्य-विज्ञान को एक नई दिशा दी है और शोधकर्ताओं को नई राह बतलाई है। जहां किसी जमाने में पित्ताशय-उच्छेदन एक जोखिम भरी, कष्टदायक और भयभीत कर देने वाली शल्यक्रिया थी वहीं आज यह एक रोमांचकारी अनुभव बन कर रह गयी है। इसके बाद चिकित्सकों ने पित्तपथरी के पुराने जुगाड़ू उपचार जैसे पित्त-लवण, लिथोट्रिप्सी आदि को अपने पिटारे से अलग कर दिया है। (विच्छेदन = चीर-फाड़ करना और उच्छेदन = किसी अंग को काट कर शरीर से अलग करना)
उदरदर्शी पित्ताशय-उच्छेदन के फायदे
• उदरदर्शी तकनीक से की गई पित्ताशय-उच्छेदन शल्यक्रिया में रोगी को कोई वेदना या कष्ट नहीं होता है और सामान्यतः दर्द निवारक दवाओं की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है।
• रोगी को लंबे समय तक भरती रहने की जरूरत नहीं होती है। प्रायः शल्यक्रिया के दूसरे दिन उसे घर भेज दिया जाता है और एक सप्ताह बाद वह अपने सारे कार्य सुचारु रूप से करने लगता है।
• इस विधि में पेट में बड़ा चीरा न लगा कर सिर्फ चार छोटे छिद्र किये जाते हैं। जिनके घाव बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं और कुछ हफ्तों में इनके निशान भी पूरी तरह मिट जाते हैं।
• रोगी को टांके पकने, टूटने, पेट फट जाने या हर्निया जैसी तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है।
• रोगी के पेट पर घावों के कोई निशान नहीं होने से पेट की सुन्दरता बनी रहती है और स्त्रियों को साड़ी पहनने में कोई शर्म या झिझक नहीं होती है।
मधुमेह नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी
जैसे ही डायन डायबिटीज शरीर पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है, उत्पाती और उधमी ग्लूकोज शरीर की नाड़ियों को नुकसान पहुँचाने लगता है। 60-70 प्रतिशत मधुमेही अपने जीवन काल में किसी न किसी प्रकार के नाड़ी-दोष का शिकार हो ही जाते हैं। मधुमेह के कारण नाड़ियों के क्षतिग्रस्त होने को नाड़ीरोग या डायबीटिक न्यूरोपेथी (न्यूरो=नाड़ी और पैथी=रोग) कहते हैं। यह एक गम्भीर रोग है जो मधुमेही के शरीर पर भले देर से हमला करता है परन्तु चुपचाप और दबे पाँव करता है, जैसे-जैसे यह अपने पर फैलाता है रोगी के जीवन को असहनीय कष्ट, वेदना और अपंगता से भर देता है।
रोगी के जीवन में इस रोग में होने वाले लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि शरीर की कौन सी नाड़ियों को क्षति पहुँची है, रोगी को मधुमेह कितने समय से है, रोगी का रक्तशर्करा नियंत्रण कैसा है, क्या वह धूम्रपान व मदिरापान करता है या उसकी जीवनशैली कैसी है। वैसे तो हाथ-पैरों में दर्द, चुभन, जलन तथा स्पंदन, तापमान या स्पर्श की अनुभूति न होना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं, पर रोगी को पाचनतंत्र, उत्सर्जन-तंत्र, प्रजनन-तंत्र, हृदय एवम् परिवहन-तंत्र आदि से संबन्धित कोई भी लक्षण हो सकते हैं। नाड़ीरोग में कुछ रोगियों को बहुत मामूली सी तकलीफ होती है तो कई बार लक्षण इतने प्रचण्ड और कष्टदायक होते हैं कि जीवन अपाहिज और असंभव सा लगने लगता है।
आखिर ये नाड़ियाँ क्या होती हैं?
मोटे तौर पर नाड़ियों की तुलना हम बिजली की केबल्स से कर सकते हैं। इनके मध्य में भी एक तार होता है जिसमें संदेश, आदेश या संवेदनाएं प्रवाहित होती हैं। इसे एक्सोन कहते हैं। जिसके बाहर एक रक्षात्मक खोल होता है जिसे माइलिन शीथ कहते हैं। ये नाड़ियाँ हमारे मस्तिष्क, सुषुम्ना (Spinal Cord) और नाड़ी-तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है
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अभी तक हुए 1500 से अधिक शोधों से यह साबित होता है कि नारियल तेल (कोकोस न्युसिफेरा) हमारी धरा पर विद्यमान एक स्वास्थ्यप्रद और उत्कृष्ट तेल है। सेहत से लेकर सुंदरता तक नारियल तेल प्रकृति का नायाब और अनमोल उपहार है। इसके करिश्माई फायदे आपको चौंका देंगे। गर्म करने पर यह खराब नहीं होता। इसकी शैल्फ लाइफ दो वर्ष से अधिक है। हमें अनरिफाइंड, अनहीटेड, ऑर्गेनिक, कॉल्ड-प्रेस्ड और एक्स्ट्रावर्जिन तेल प्रयोग में लेना चाहिए।
विश्वविख्यात फैट और ऑयल्स एक्सपर्ट और जर्मनी के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च की चीफ एक्सपर्ट डॉ जॉहाना बडविग ने साबित किया है कि नारियल तेल फ्राइंग और डीप फ्राइंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। गर्म करने पर इसमें ट्रांसफैट नहीं बनते। कैंसर के रोगी भी इस तेल को प्रयोग कर सकते हैं।
पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में नारियल एक शुद्ध, सात्विक, पवित्र, फलदायी एवं लक्ष्मी माता से मनुष्य को जोड़ने वाला फल है, इसीलिए इसे संस्कृत में श्रीफल कहते हैं, श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। किसी भी धार्मिक एवं शुभ कार्य में हुई पूजा में नारियल रखने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है। घर में नारियल रखने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। मंदिरों में आमतौर पर इसे पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति के सामने फोड़ा जाता है। फोड़ने के बाद यह नारियल प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।
What is the Black Seed?
Its botanical name is Nigella sativa. It is believed to be indigenous to the Mediterranean region but has been cultivated into other parts of the world including the Arabian peninsula, northern Africa and parts of Asia.
The Black seeds originate from the common fennel flower plant (Nigella sativa) of the buttercup (Ranunculaceae) family. It is sometimes mistakenly confused with the fennel herb plant (Foeniculum vulgare).
The plant has finely divided foliage and pale bluish purple or white flowers. The stalk of the plant reaches a height of twelve to eighteen inches as its fruit, the black seed, matures.
The Black Seed forms a fruit capsule which consists of many white trigonal seeds. Once the fruit capsule has matured, it opens up and the seeds contained within are exposed to the air, becoming black in color.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. The seeds have little bouquet, though when rubbed, their aroma resembles oregano. They have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture.
The Black Seed is also known by other names, varying between places. Some call it black caraway, others call it black cumin, onion seeds or even coriander seeds. The plant has no relation to the common kitchen herb, cumin.
Muslims’ use of the Black Seed:
Muslims have been using and promoting the use of the Black Seed for hundreds of years, and hundreds of articles have been written about it. The Black Seed has also been in use worldwide for over 3000 years. It is not only a prophetic herb, but it also holds a unique place in the medicine of the Prophet .
It is unique in that it was not used profusely before the Prophet Muhammad made its use popular. Although there were more than 400 herbs in use before the Prophet Muhammad and recorded in the herbals of Galen and Hippocrates, the Black Seed was not one of the most popular remedies of the time. Because of the way Islam has spread, the usage and popularity of the Black Seed is widely known as a "remedy of the Prophet ." In fact, a large part of this herbal preparation's popularity is based on the teachings of the Prophet .
The Black Seed has become very popular in recent years and is marketed and sold by many Muslim and non-Muslim
Sauerkraut Health Benefits
Professor of Probiotics including rare Lactobacillus Plantarum
Digests everything
High in Vitamin B group and C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
benefits of Cottage Cheese
sulfur containing protein
bonds and carries flax oil into the cells
Makes healthy and electron rich cell wall
Detoxify the body
dextro rotating lactic acid
alkalize the body
Neutralize the killer levo rotating lactic acid
lactoferrin and lactoferricin
anti-bacterial and anti-viral
builds lymphocytes, monocytes & macrophage
boosts immunity
FOCC is mixture of Flax oil and cottage or quark. It is full of electron rich omega-3 fats, has power to attract healing photons from sun and other celestial bodies through resonance. These fats are full of high energy pi-electrons, which attract oxygen into the cells and are capable of healing cell membranes.
As “Om” is divine word and synonym of God in India. According to Hindu mythology, the whole universe is located inside “Om”, so the name Omkhand has been given to this wonderful recipe.
Black Seed – Cures every disease except death Om Verma
Nigella sativa or Black Seed is an annual flowering plant, native to southwest Asia, eastern coastal countries of Mediterranean region and North Africa. Nigella is a derived from Latin word Niger (black). It grows to 20–30 cm tall, with finely divided, linear leaves. The flowers are delicate and usually coloured pale blue and white, with five to ten petals. The fruit is a large and inflated capsule composed of three to seven united follicles, each containing numerous seeds.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. Black seed has a peculiar aromatic and pungent smell, while onion seeds don’t have this smell. Black seeds have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture. The seed is used as a spice, medicine, cosmetic and flavoring agent.
Sour cabbage – Professor of Probiotics
The first and most overlooked reason that our digestive tract is crucial to our
health is because 80 percent of our entire immune system is located in your
digestive tract. In addition, our digestive system is the second largest part of our
neurological system, called enteric nervous system or the second brain.
Probiotics are live beneficial bacteria, which hold the master key for healing
digestive issues, better health, stronger immune system, mental and neurological
disorders. Sour cabbage is the best probiotic food (Germans call it Sauerkraut), It
is produced by lacto-fermentation of the cabbage.
Wild Oregano (Origanum Vulgare ) is a perennial herb that has purple flowers and spade-shaped, olive-green leaves. The whole plant has a strong, peculiar, fragrant, balsamic odour and a warm, bitterish, aromatic taste, both of which properties are preserved when the herb is dry. The oregano sold as a spice is either Sweet Marjoram (Origanum majorana) or Mexican Sage.
There are over 40 oregano species, but the most therapeutically beneficial is the wild oregano or Origanum vulgare that's native to Mediterranean mountains. To obtain oregano oil, the dried flowers and leaves of the plant are harvested when the oil content of the plant is at its highest, and then distilled.
Mayo Dressing
This is part of Budwig Protocol proposed to cure cancer developed by Dr. Budwig.
Delicious mayo salad dressing can be prepared by mixing together 2 Tbsp (30 ml) Flax Oil, 2 Tbsp (30 ml) milk, and 2 Tbsp (30 ml) cottage cheese. Then add 2 tablespoons (30 ml) of Lemon juice (or Apple Cider Vinegar) and add some herbs of your choice.
Health Benefits
Ocean of Probiotics including rare
Lactobacillus Plantarum
Digests everything
Very high in B Vitamins and Vitamin C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)Om Verma
Definitively Budwig Protocol is a miracle cure for cancer with documented 90% success if you follow this treatment perfectly and religiously. This treatment targets on prime cause of cancer. Prime cause of Cancer is oxygen deficiency in the cells. Two factors are essential to attract oxygen in the cells: 1- Sulfur containing protein (found in cottage cheese) and 2- some unknown fat which nobody could identify until 1949 when Dr. Budwig developed paperchromatography technique to identify fats. These fats were Alpha-linolenic acid and linoleic acid found abundantly in FLAX OIL. Thus she developed Cancer therapy based on Flax oil and cottage cheese.
पिछले महीने हमें बॉक्सर प्रजाति का एक श्वेत “पप” प्राप्त हुआ, जिसे हम मिनी बुलाने लगे थे। हम सब बहुत खुश थे। पूरे परिवार में खुशी की लहर थी।
परंतु 4 मई की रात को अचानक मुई बिजली गुल हो गई। मिनी अंधेरे में नीचे उतर गई और नीचे किसी लड़के ने गलती से अपना पैर मिनी के पैर पर रख दिया। बस बेचारी असहाय मिनी की जोर से चीख निकली। हम सब उसकी चीख सुन कर नीचे भागे। वह दर्द के मारे चीखती ही जा रही थी। हमारी समझ में आ चुका था कि मामला अत्यंत गंभीर है और जरूर इसकी फीमर का फ्रेक्चर हुआ है। हमारी सारी श्वेत और उज्वल खुशियों पर यह काली रात कालिख पोत चुकी थी। पूरी रात हम सो भी न सके। कभी मैं, तो कभी मेरी पत्नि उसे गोद में लेकर रात भर बैठे रहे।
सुबह कोटा के कई वेट चिकित्सकों से परामर्श ले लिया गया। कोई ठीक से बता नहीं पा रहा था कि मिनी के पैर का उपचार किस प्रकार होगा, रोड डलेगी, सर्जरी होगी या प्लेटिंग करनी होगी। हमें लगा कि कोटा में समय बर्बाद नहीं करना व्यर्थ है और तुरंत मिनी को जयपुर या दिल्ली के किसी बड़े वेट सर्जन को दिखाना चाहिये।
मैंने मेरे एक मित्र अनिल, जो जयपुर में रहते हैं, से बात की। उन्होंने मुझे पूरा आश्वासन दिया व कहा कि उनके ब्रदर-इन-लॉ विख्यात वेट चिकित्सक हैं और वे सब व्यवस्था करवा देंगे। तब जाकर मन को थोड़ा सकून मिला। 10 मिनट बाद ही उनके ब्रदर-इन-लॉ ड
After the advent of "lipid hypothesis", which linked the consumption of dietary fat with increased risk of heart disease and other health problems, fat was highly defamed by the medical establishment that many people started thinking that the best answer to the "fat problem" is to stay away from it as far as possible. Food processing companies quickly took advantage of this era of “fat phobia”, and soon flooded the market with "low fat" and "no fat" products, promising to put an end to heart disease and obesity, but the incidence of these diseases is still skyrocketing.
The truth is that not all fats are equal. While the consumption of some bad fats (trans-fats) are, really, a risk factor for many health problems, some other fats, including alpha-linolenic acid ALA and linoleic acid LA, are so important for health that they have been termed "essential fatty acids" (EFAs). Our body needs them to perform vitally important functions, but our body is unable to produce them. Therefore, we must get them from our food. That's why any attempt to indiscriminately reduce or eliminate all fats from our diet inevitably leads to an EFA deficiency, which may be very dangerous to health.
For all the good it does, fat is often blamed to cause obesity, because it contains 9 calories per gram, in contrast to carbohydrate and protein which contain only 4 calories. Yet, it's a mistake to relate dietary fat with body fat. You can get fat by eating carbs and protein, even if you eat little dietary fat.
In 1956, Hugh Sinclair, one of the world's greatest researchers in the field of nutrition, suggested that an upsurge in the so-called "diseases of civilization" e.g. coronary heart disease, strokes, type-2 diabetes, arthritis and cancer - was caused by modern diets being extremely poor in essential fatty acids (EFA) and full of processed foods rich in trans-fatty acids. Although Sinclair's opinion was not supported by his pears, and he was even criticized by some of them for his bold hypothesis; later research convincingly showed that he was, indeed, correct. In fact, he is now praised for insights that were far ahead of his time.
Fat gives us beauty, shape and protection. A thin fat layer located under the skin helps to insulate and maintain the proper body temperature. Fat is used as a source of backup energy when carbohydrates are not available. Vitamin A, D, E and K are known as fat-soluble vitamins, need fat in order to be absorbed and stored. Fats are also responsible for making sex hormones, cell membranes and prostaglandins.
आपने पोर्नोग्राफिक वेब साइट्स और सेक्स पत्रिकाओं में जी-स्पॉट के बारे में अक्सर पढ़ा होगा। जहाँ कुछ लोग इसको लेकर बहुत उत्सुक हैं और इसका आनंद भी उठा रहे हैं, वहीं कुछ नकारात्मक विचारधारा वाले लोग इसे महज़ किसी सिरफिरे व्यक्ति के दिमाग की उपज मानते हैं। वे मानते हैं कि जी-स्पॉट नाम की कोई चीज है ही नहीं। जी-स्पॉट पर इतना हल्ला होने के बाद भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इसलिए मैं आज रहस्य के सारे परदे उठा कर सच्चाई को उजागर कर देना चाहता हूँ। तो चलिए सबसे पहले हम इतिहास के पन्नों को पलटने की कौशिश करते हैं।
1950 के दशक में विख्यात गायनेकोलोजिस्ट डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग ने इंटरनेशनल जरनल ऑफ सेक्सोलोजी में The Role of Urethra in Female Orgasm नाम से एक प्रपत्र प्रकाशित किया था। इन्होंने स्त्रियों की यूरेथ्रा के चारो तरफ कोर्पोरा केवर्नोजा की तरह एक स्पंजी और इरेक्टाइल टिश्यू को चिन्हित किया, जिसे यूरीथ्रल स्पंज कहा जाता है। इसके बाद 1980 के दशक में सेक्स एजूकेटर और काउंसलर बेवर्ली व्हिपल और सायकोलोजिस्ट और सेक्सोलोजिस्ट जॉन पेरी ने डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग की शोध को आगे बढ़ाया और अंततः डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग के नाम पर इस इस रहस्यमय स्पॉट का नाम जी-स्पॉट रखा।
आज हम सभी के लिए खुशी और उल्हास का अवसर है, हमारे कुंवर निशिपाल का परिणय बंधन सौ.कां. निधि के साथ होने जा रहा है। हम सब इनके सुखी और आनंदमय वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं। इस अवसर पर मैंने यह सत्यपाल गीता तैयार की है। अलसी के नीले फूलों से सजी यह गीता में हमारे आदरणीय पिताजी ठाकुर सत्यपाल सिंह जी के चरणों में समर्पित करता हूँ।
डाॅ. ओ.पी.वर्मा श्रीमती उषा वर्मा
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फु फ्फुस ककर्ट रो( Lung Cancer)
फु फ्फुस या फ ेफड़� का क�सर एक आ�ाम, �ापक, कठोर, कु�टल और घातक रोग है िजसम� फे फड़े के ऊतक� क�
अिनयंि�त संवृि� होती है। 90%-95% फे फड़े के क�सर छोटी और बड़ी �ास निलका� (bronchi and
bronchioles) के इिपथीिलयल कोिशका� से उत्प� होते ह�। इसीिलए इसे ��कोजेिनक कारिसनोमा भी कहते ह�।
फु फ्फुसावरण(प्लूर) से उत्प� होने वाले क�सर को मीजोथािलयोमा कहते ह�। फ ेफड़े के क�सर का स्थलान्तर ब�त ते
होता है यािन यह ब�त जल्दी फैलता है। हालां�क यह शरीर के �कसी भी अंग म� फैल सकता है। यह ब�त जानलेवा
रोग माना जाता है। इसका उपचार भी ब�त मुिश्कल है।
फे फड़� क� संरचना(फे फड़� क� संरचना डॉ. मनोहर भंडारी के आलेख �ाणायाम का वैज्ञािनक रहस्य से साभार ली गई)
हमारा �सन तं� नािसका से शु� होकर फे फड़� म� िस्थ
वायुकोष� तक फै ला �आ है। फे फड़� आकार म� शंकु क� तरह
ऊपर से सँकरे और नीचे से चौड़े होते ह�। छाती के दो ितहाई
िहस्स म� समाए फे फड़े स्पं क� तरह लचीले होते ह�। नाक से ली
गई साँस स्व यं� और �सनी (फै �रक्) से होते �ए �ास नली
(�ै�कया) म� प�ँचती है। गदर् के नीचे छाती म� यह पहले दाएँ-
बाएँ दो भाग� म� िवभािजत होती है और पेड़ क� शाखा�-
�शाखा� क� तरह स�ह-अठारह बार िवभािजत होकर �सन
वृक बनाती है। यहाँ तक का �सन वृक वायु संवाहक क्ष
(एयर कंड�क्ट झोन) कहलाता है। इसक� अंितम शाखा जो �क
ट�मनल �ां�कओल कहलाती है, वह भी 5-6 बार िवभािजत
होकर उसक� अंितम शाखा पं�ह से बीस वायुकोष� म� खुलती
है। वायुकोष अँगूर के गुच्छ क� तरह �दखाई देते ह�। ट�मनल
�ां�कओल से वायुकोष� तक का िहस्स �सन ��या को संप�
करने म� अपनी मुख् भूिमका िनभाता है। इसे �सन क्ष
(रेिस्परेटर झोन) कहते ह�।
�ास नली के इस वृक क� सभी शाखा�-�शाखा� के साथ र� लाने और ले जाने वाली र� वािहिनयाँ भी होती ह�।
साँस लेने पर फू लने और छोड़ने पर िपचकने वाले इन वायुकोष� और घेरे रखनेवाली सू�म र� निलका� (कैिपलरीज)
के बीच इतने पतले आवरण होते ह� �क ऑक्सीज और काबर् डाई ऑक्साइ का लेन-देन आसानी से और पलक झपकते
हो जाता है। पल्मोनर धमनी �दय से अशु� र� फे फड़े तक लाती है और वायुकोष� म� शु� �आ र� छोटी िशरा� से
पल्मोरनर िशरा के माध्य से पुन �दय तक प�ँच जाता है।
�ापकता
फे फड़े का क�सर �ी और पु�ष दोन� म� मृत्य का सबसे बड़ा कारण है। सन् 2010 म� अमे�रका म� इस क�सर के 222,520
नये रोगी िमले और 157,300 रोिगय� क� मृत्य �ई। नेशनल क�सर इिन्स्ट� के अनुसार हर 14 �ी और पु�ष म� से एक
को जीवन म� कभी न कभी फे फड़े का क�सर होता है।
फे फड़े का क�सर �ायः वृ�ावस्थ का रोग है। लगभग 70% रोगी िनदान के समय 65 वषर से बड़े होते ह�, िसफर 3% रोगी
45 वषर से छोटे होते ह�। 1930 से पहले यह रोग ब�त कम होता था। ले�कन जैसे जैसे धू�दिण्डक धू�पान का �चलन
बढ़ता गया, इस रोग क� �ापकता म� नाटक�य वृि� होती चली गई। इन �दन� कई देश� म� धू�पान िनषेध सम्बन्
स्वास्-िशक्, �चार और सावर्जिन स्थान पर धू�पान िनषेध के कड़े िनयम� के कारण इस क�सर क� �ापकता म�
िगरावट आई है। �फर भी फे फड़े का क�सर पूरे िव� म� �ी और पु�ष दोन� म� मृत्य का सबसे बड़ा कारण बना �आ है।
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कारण
धू�पान
िसगरेट धू�पान फे फड़े के क�सर का सबसे बड़ा कारण है। यह देखा गया है �क इस क�सर के 90% रोगी िनि�त तौर पर
तम्बकू सेवन करते ह�। फे फड़े के क�सर का जोिखम इस बात पर िनभर् करता है �क वह �दन भर म� �कतनी िसगरेट पीता
है और �कतने समय से िसगरेट पी रहा है। इससे िच�कत्स रोगी के धू�पान इितहास के पैक इयर क� गणना करता ह�।
मान लीिजये कोई �ि� 10 वषर से िसगरेट के 2 पैकेट रोज पी रहा है तो उसका धू�पान इितहास 20 पैक-इयर �आ।
�ि� म� 10 पैक-इयर का धू�पान इितहास भी फे फड़े के क�सर का जोिखम रहता है, ले�कन 30 पैक-इयर म� फे फड़े के
क�सर का जोिखम ब�त ही ज्याद होता है। 2 पैकेट से ज्याद िसरगरेट पीने वाले 14% लोग फे फड़े के क�सर से मरते ह�।
बीड़ी, पाइप और िसगार पीने वाले लोग� को फे फड़े के क�सर का जोिखम धू�पान नह� करने वाले �ि� से पांच गुना
अिधक रहता है। जब�क िसगरेट पीने वाल� म� यह जोिखम 25 गुना अिधक होता है।
तम्बाक म� िनकोटीन समेत 400 क�सरकारी पदाथर होते ह�, िजनम� �मुख ह� नाइ�ासेमीन् और पॉलीिसिस्ट ऐरोमे�टक
हाइ�ोकाबर्न् िसगरेट छोड़ने वाल� के िलए एक अच्छ खबर यह है �क िसगरेट छोड़ने के बाद क�सर का जोिखम साल
दर साल कम होता जाता है और 15 वषर् बाद उनके बराबर हो जाता है िजन्ह�ने कभी िसगरेट पी ही नह� है। क्य�
उनके फे फड़� म� नई कोिशकाएँ बनने लगती है और पुरानी न� होती जाती ह�।
परोक्ष धू�पा
धू�पान करने वाल� के साथ रहने वाले या उनके साथ लम्बा समय िबताने वाले लोग� म� भी इस क�सर का जोिखम
सामान्य �ि�य� से24 % अिधक होता है। अमे�रका म� हर साल फे फड़े के क�सर से मरने वाले रोिगय� म� से 3000
रोगी इस �ेणी के होते ह�।
ऐसबेस्टस
ऐस्बेस् कई �कार के खिनज िसलीकेट� के रेश� को कहते ह�। इसके तापरोधी और िव�ुतरोधी गुण� के कारण कई
उ�ोग� म� इसका �योग �कया जाता है। यहाँ सांस लेने से ये रेशे फे फड़� म� प�ँच जाते ह� और एकि�त होते रहते ह�।
इन उ�ोग� म� काम करने वाले लोग� म� फे फड़े के क�सर और मीजोथेिलयोमा (फे फड़� के बाहरी आवरण प्लूरा का
क�सर) का जोिखम सामान्य लोग� से5 गुना अिधक रहता है। य�द ये धू�पान भी करते ह� तो जोिखम 50-90 गुना हो
जाता है। इसिलए आजकल अिधकतर उ�ोग� म� ऐसबेस्टस का �योग या तो �ितबंिधत कर �दया है या िसिमत कर
�दया गया है।
राडोन गैस
राडोन एक �ाकृितक, अदृष्, गंधहीन
एवम् िनिष्�य गैस है जो यूरेिनयम के
िवघटन से बनती है। यूरेिनयम के िवघटन
से राडोन समेत कई उत्पाद बनते ह� जो
आयॉनाइ�जग िव�करण छोड़ते ह�। ले�कन
राडोन एक ज्ञात क�सरकारी है औ
अमे�रका म� फे फड़े के क�सर के 20000
लोग� क� मृत्यु के िलए िजम्मेदार है
अथार्त राडोन फ ेफड़े के क�सर का दूसरा
बड़ा कारण है। राडोन गैस जमीन के
अन्दर फैलती रहती है और घर� क� न�,
नािलय�, पाइप� आ�द म� पड़ी दरार� से
घर� म� �वेश कर जाती है। अमे�रका के
हर 15 म� से एक घर म� राडोन क� मा�ा
खतरनाक स्तर पर अिधक आंक� गई है।
भारत के भी अिधकांश इलाक� म� (िवशेष
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तौर पर ऐटानगर, गौहाटी, िशल�ग, आसाम, हमीरपुर, नागपुर, हादराबाद, िसकंदराबाद, पालमपुर, उ�राकाशी,
पुरी, कुलु, कोटा, केरेला, रांची, बंगलु� आ�द) राडोन क� िस्थित �चताजनक है।
फे फड़े के रोग
फे फड़े के कुछ रोग जैसे टी.बी., सी.ओ.पी.डी. आ�द क� उपिस्थित भी क�सर का जोिखम बढ़ती है।
वायु �दूषण
गािड़य�, उ�ोग� और ऊजार् इकाइय� से िनकला धुँआ और �दूषण भी फ ेफड़े के कैसर का जोिखम बढ़ाता है।
आनुवंिशक
हाल ही म� �ए एक अध्ययन से संकेत िमले ह� �क फ ेफड़े के क�सर के रोगी के करीबी �रश्तेदोर(चाहे वे धू�पान करते
हो या न करते ह�) म� फे फड़े के क�सर का जोिखम अपेक्षाकृत अिधक रहता है
वग�करण
फे फड़े का क�सर को मुख्यतः दो �जाित के होते है।1-
स्मॉल सेल क�सर(SCLC) और 2- नोन स्मॉल सेल क�सर
(NSCLC)। यह वग�करण क�सर क� सू�म संरचना के
आधार पर �कया गया है। इन दोन� तरह के क�सर क�
संवृि�, स्थलांतर और उपचार भी अल-अलग होता है।
इसिलए भी यह वग�करण ज�री माना गया है।
20% फे फड़े के क�सर स्मॉल सेल क�सर (SCLC)
�जाित के होते ह�। यह ब�त आ�ामक होता ह� और बड़ी
तेजी से फै लता है। यह हमेशा धू�पान करने से होता है।
स्मॉल सेल क�सर के िसफर1% रोगी ही धू�पान नह� करने
वाले होते ह�। यह शरीर के दूरस्थ अंग� म� तेजी से
स्थलांतर करता है। �ायः िनदान के समय भी ये शरीर के कई िहस्स� म� फैल चुका होता है। अपनी िविश� सू�
संरचना के कारण इसे ओट सेल का�सनोमा भी कहते ह�।
नोन स्मॉल सेल क�सर(NSCLC) सबसे �ापक �जाित है। 80% फे फड़े के क�सर नोन स्मॉल सेल क�सर �जाित के
होते ह�। इन्ह� सू�म संरचना के आधार पर िन� उ-�जाितय� म� िवभािजत �कया गया है।
ऐडीनोका�सनोमा – यह सबसे �ापक ( 50%
तक) उपजाित है। यह धू�पान से सम्बिन्धत ह
ले�कन धू�पान नह� करने वाल� को भी हो सकता
है। �ायः यह फे फड़े के बाहरी िहस्से म� उत्प
होता है। इस उपजाित म� एक िवशेष तरह का
���कयोऐलिवयोलर का�सनोमा
(Bronchioloalveolar carcinoma) भी
शािमल �कया गया है जो फे फड़े म� कई जगह
उत्प� होता है और वायु कोष� क� िभि�य� के
सहारे फै लता है।
स्�ेमस सेल का�सनोम पहले ऐडीनोका�सनोमा
से अिधक �ापक था, ले�कन आजकल इस �जाित
क� �ापकता घट कर ऐडीनोका�सनोमा क� मा�ा
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30 % रह गई है। इसे इिपडरमॉ यड का�सनोमा भी कहते ह�। �ायः यह फे फड़े के मध्य क� �कसी �ास नली से उत्प
होता है।
लाजर् सेल का�सनोमा – इसे अिवभे�दत का�सनोमा (undifferentiated carcinomas) भी कहते ह�। यह सबसे
कम पाया जाता है।
िमि�त का�सनोमा कभी-कभी इस उपजाित के कई क�सर साथ भी पाये जा सकते ह�।
अन्य क�सर- फे फड़े म� उपरो� दो मुख्य �जाितय� के अलावा भी अन्य �कार के क�सर हो सकते ह�। इनक� �ापकत
5-10 % होती है।
���कयल का�सनॉयड - 5% फे फड़े के क�सर इस �जाित के होते ह�। िनदान के समय यह अबुर्द �ायः छोटा(3-4
स�.मी. या छोटा) रहता है और रोगी क� उ� 40 वषर् से कम होती है। यह धू�पान से सम्बिन्धत नह� होता है। कई ब
यह अबुर्द हाम�न जैसे पदाथर् का �ाव करता है िजससे कुछ िवशेष लक्षण देखे जाते ह�। यह -धीरे बढ़ता और फै लता
है, इसिलए िनदान के समय उपचार के पयार्� िवकल्(शल्य ��य) रहते ह�। ।
स्थलांतर क�सर– शरीर के कई अंग� के मूल क�सर क� कोिशकाएं र�-वािहका� या लिसका-वािहका� �ारा चल
कर फे फड़े म� प�ँच कर स्थलांतर क�सर उत्प� कर सकती ह�। समीप के अंग� से तो क�सर कोिशकाएं चल कर सीध
फे फड़े म� पहँच सकती ह�। स्थलांतर क�सर म� �ायः फ ेफड़े के बाहरी िहस्से कई अबुर्द बन जाते ह�।
लक्षण और संक
इस रोग म� िविवध �कार के लक्षण होते ह� जो अबुर्द क� िस्थित और स्थलांतर पर िनभर्र करते ह�। �ारंिभक अवस
सामान्यतः क�सर के स्प� और गंभीर लक्षण नह� होते
लक्षणही– फे फड़े के क�सर के 25% रोिगय� का िनदान �कसी अन्य �योजन से करवाये गये एक्सरे या .टी स्केन
से होता है। �ायः एक्सरे या सीटी म� एक िस�े के आकार क� एक छाया क�सर को इंिगत करती है। अक्सर इन रोिगय
को इससे कोई लक्षण नह� होता है
अबुर्द से सम्बिन्धत ल– अबुर् क� संवृि� और फे फड़े म� उसके फै लाव के कारण �सन लेने म� बाधा उत्प होती है,
िजससे खांसी, �ासक� ( Dyspnoea), सांस म� घरघराहट (wheezing), छाती म� ददर, खांसी म� खून आना
(hemoptysis) जैसे लक् हो सकते ह�। य�द अबुर् �कसी नाड़ी का अिभभक् कर लेता है तो कंधे म� ददर जो बांह के पृ�
भाग तक फै ल जाता है (called Pancoast's syndrome) या ध्विनयं (vocal cords) म� लकवे के कारण आवाज म�
ककर्शत (hoarseness) आ जाती है। य�द अबुर् ने भोजन नली पर आ�मण कर �दया है तो खाना िनगलने म� �द�त
(dysphagia) हो सकती है। य�द अबुर् �कसी बड़ी �ास नली को अव�� कर देता है तो फे फड़े का वह िहस्स िसकुड़
जाता है, उसम� सं�मण (abscesses, pneumonia) हो सकता है।
स्थलांतर से सम्बिन्धत ल– फे फड़े का क�सर तेजी से र�-वािहका� या लिसका-विहका� �ारा दूरस्थ अंगो म�
प�ँच जाता है। अिस्, एडरीनल �ंिथ, मिस्तष्क और यकृत स्थलान्तर के मुख्य स्थान ह�। इसे याद रखने का-सू�
Babul (Bone, Adrenal glands, Brain and Liver) है। य�द इस क�सर का स्थलांतर हि�य� म� हो जाता है तो
उस स्थान पर ब�त तेज ददर् होता है। य�द क�सर मिस्तष्क म� प�ँच जाता है तो िसर, दौरा, नजर म� धुँधलापन,
स्�ोक के लक्षण जैसे शरीर के कुछ िहस्स� म� कमजोरी या सु�ता आ�द लक्षण हो सकत
पेरानीओप्लािस्टक लक- इस क�सर म� कई बार क�सर कोिशकाएं हाम�न क� तरह कुछ रसायन� का �ाव करती
ह�, िजनके कारण कुछ िवशेष लक्षण होते ह�। ये पेरानीओप्लािस्टक लक्षण �ायः स्माल सेल का�सनोमा म� , परन्तु
�कसी भी �जाित के क�सर म� हो सकते ह�। कुछ स्माल सेल का�सनोमा( NSCL) ऐडीनोको�टको�ो�फक हाम�न
(ACTH) का �ाव करते ह�, िजसके फलस्व�प ऐडरीनल �ंिथयाँ अिधक को�टजोल हाम�न का �ाव करती ह� और
रोगी म� क�शग िसन्�ोम रोग के लक्षण हो सकते ह�। इसी तरह कुछ नस्मा सेल का�सनोमा (NSCLC) पेराथायरॉयड
हाम�न जैसा रसायन बनाते ह� िजससे र� म� कैिल्शयम का स्तर बढ़ जाता है
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अन्य लक्– जैसे कमजोरी, वजन कम होना, थकावट, अवसाद और मनोदशा िवकार (Mood swing) हो सकते ह�।
िच�कत्सक से परामशर् के संके–
य�द रोगी को िन� लक्षण ह� तो तुरन्त िच�कत्सक से सम्पकर् करना चा
• तेज खांसी आती हो या पुरानी खांसी अचानक बढ़ जाये।
• खांसी म� खून आना।
• छाती म� ददर्।
• तेज ��काइ�टस या बार-बार �सन पथ म� सं�मण हो रहा हो।
• अचानक वजन कम �आ हो या थकावट होती हो।
• �ासक� या सांस लेने म� घरघराहट होती हो।
िनदान
इितहास और िच�कत्सक�यपरीक्ष– पूछताछ और रोगी के परीक्षण से िच�कत्सक को अक्सर कुछ लक्
संकेत िमल जाते ह� जो क�सर क� तरफ इँिगत करते ह�। वह धू�पान, खांसी, सांस लेने म� कोई तकलीफ, �सनपथ म�
कोई �कावट, सं�मण आ�द के बारे िवस्तार से जान लेता है। त्वचा य �ेष्मकलाका नीला पड़ना र� म� ऑक्सीजन
क� कमी का संकेत देता है। नाखुन� के आधार का फू ल जाना िचरकारी फे फड़े के रोग को दशार्ता है।
छाती का एक्सर -
फे फड़े सम्बन्धी �कसी भी नये लक्षण के िलए छाती का एक्सरे पहली सुगम जांच कई बार फे फड़े के एक्सरे म�
�दखाई देने वाली छाया क�सर का संदेह मा� पैदा करती है। ले�कन एक्सरे से यह िस� नह� होता है �क यह छाया
क�सर क� ही है। इसी तरह फे फड़े म� अिस्थकृत प�वका( calcified nodules) या सुगम अबुर्द जैसे हेमट�म एक्सरे म�
क�सर जैसे ही �दखाई देते ह�। इसिलए अंितम िनदान हेतु अन्य परीक्षण �कये जाते ह
सी.टी. स्केन(computerized tomography, computerized axial tomography, or CAT)
फेफड़े के क�सर तथा स्थलांतर क�सर के िनदान हेतु छात, उदर और मिस्तष्क का .टी. स्केन �कया जाता है। य�द छाती के
एक्सरे म� क�सर के संकेत स्प� �दखाई नह� द� या गांठ के आकार और िस्थित क� पूरी जानकारी नह� िमल पाये तो.टी.
स्केन �कया जाता है। स.टी. स्केन म� मशीन एक बड़े छल्ले के आकार क� होती ह जो कई �दशा� से एक्सरे लेती है और
कम्प्यूटर इन सूचना� का िव�ेषण क संरचना� को अनु�स्थ काट के �प द�शत करता है। सी.टी. स्केन�ारा ली गई
तस्वीर� सामान्य एक्सरे से अिधक स्प� और िनणार्यक होती ह.टी. �ायः उन छोटी गाठ� को भी पकड़ लेता है जो
एक्सरे म� �दखाई नह� देती ह�। �ायः स.टी. स्केन करने के पहले रोगी क� िशरा म� रेिडयो ओपैक कॉन्�ास्ट दवा छ
दी जाती है िजससे अंदर के अवयव और ऊतक और उनक� िस्थित ज्यादा साफ और उभर कर �दखाई देती है। कॉन्�ा
दवा देने के पहले सेिन्स�टिवटी टेस्ट �कया जाता है। कई बार इससे हािनकारक �ित��या के लक्षण जैसे ख,
िपश्त, त्वचा म� चक�े आ�द हो सकते ह�। ले�कन इससे जानलेवा ऐनाफाईलेिक्टक �ित��य(Anaphylactic
reaction) िवरले रोगी म� ही होती है। पेट के सी.टी. स्केन से यकृत और ऐडरीनल �ंिथ के स्थलांतर क�सर का पत
चलता है। िसर के सी.टी.स्केन से मिस्तष्क के स्थलांतर क�सर का पता चलता
एम.आर.आई. (Magnetic resonance imaging )
एम.आर.आई. अबुर्द(Tumor) क� स्प� और िवस्तृत छायांकन के िलए अिधक उपयु� है। .आर.आई. चुम्ब,
रेिडयो तरंग� और कम्प्यूटर क� मदद से शरीर के अंग� का छायांकन करती है। .टी.स्केन क� तरह ही रोगी को एक
चिलत शैया पर लेटा �दया जाता है और छल्लाकार मशीन म� से गुजारा जाता है। इसके कोई पाष्वर् �भाव नह� ह�
िव�करण का जोिखम भी नह� है। इसक� तस्वीर� अिधक िवस्तृत होती ह� और यह छोटे सी गांठ� को भी पकड़ लेती है
�दय म� पेसमेकर, धातु के इम्प्लांट या �दय के कृि�म कपाट धारण �कये �ि� के िलए .आर.आई. उपयु� नह�
है क्य��क यह इसका चुम्बक�य बल धातुसे बनी संरचना� को खराब कर सकता है
पोिज�ोन इिमशन टोमो�ोफ� (PET Scaning)
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यह सबसे संवेदनशील, िविश� और मंहगी जांच
है। इसम� रेिडयोएिक्टव लेबल्ड मेटाबोलाइट्
जैसे फ्लोरीनेटेड ग्लूक [18 FDG] का �योग
�कया जाता है और अबुर्द के चयापच ,
वािहकावधर्न( vascularization), ऑक्सीजन
क� खपत और अबुर्द क� अिभ�हण िस्थि
(receptor status) क� सटीक , िवस्तृ,
ब�रंगी और ि�आयामी तस्वीर� और जानकारी
िमलती है। जहाँ सी.टी. और एम.आर.आई.
िसफर् अबुर्द क� संरचना क� जानकारी देते ,
वह� पी.ई.टी. ऊतक� क� चयापचय गितिविध
और ��याशीलता क� भी सूचनाएं देता है।
पी.ई.टी. स्केन अबुर्द क� संवृि� क� जानकार
भी देता है और यह भी बता देता है �क अबुर्द �कस �कार क� क�सर कोिशकाएं से बना है।
रोगी को क्षिणक अधजीवी रेिडयोधम( short half-lived radioactive drug) दवा दी जाती है, और दो छाती के
एक्सरे िजतना रेिडयेशन �दया जाता है। यह दवा अन्य ऊतक� क� अपेक्षा अमुक ऊ(जैसे क�सर) म� अिधक एकि�त
होती है, जो दी गई दवा पर िनभर्र करता है। रेिडयेशन के �भाव से यह दवा पोिज�ोन नामक कण छोड़ती ह, जो
शरीर म� िव�मान इलेक्�ोन्स से ��या कर गामा रेज़ बनाते ह�। मशीन का स्केनर इन गामा रेज़ को �रकॉडर् कर ल
है और रेिडयोधम� दवा को �हण करने वाले ऊतक� को �द�शत कर देता है। उदाहरण के िलए ग्लूकोज(सामान्य ऊजार
का �ोत) िमली रेिडयोधम� दवा बतलायेगी �क �कन ऊतक� ने ग्लूकोज का तेजी से उपभोग �कया जैसे िवकासशील
और स��य अबुर्द। प.ई.टी. स्केन को स.टी. स्केन से जोड़ कर संयु� मशीन प.ई.टी. - सी.टी. भी बना दी गई है।
यह तकनीक क�सर का चरण िनधार्रणपी.ई.टी. से अिधक बेहतर करती है और क�सर के िनदान म� एक वरदान सािबत
�ई है।
बोन स्के
बोन स्केन �ारा हि�य� के िच� कम्प्यूटर के पटल या �फल्म पर िलए जाते ह�। िच�कत्सक बोन स्केन यह जानने क
करवाते ह� �क फे फड़े का क�सर हि�य� तक तो नह� प�ँच गया है। इसके िलए रोगी क� िशरा म� एक रेिडयोधम� दवा
छोड़ी जाती है। यह दवा हि�य� म� उस जगह एकि�त हो जाती है जहाँ स्थलांतर क�सर ने जगह बना ली है। मशीन का
स्केनर रेिडयोधम� दवा को �हण कर लेता है और ह�ी का िच� �फल्म पर उतार लेता है
बलगम क� कोिशक�य जांच –
फे फड़े के क�सर का अंितम िनदान तो रोगिवज्ञानी अबुर्द या क�सर कोिशका� क� सू�मदश� जांच के बाद ही करता ह
इसके िलए एक सरल तरीका बलगम क� सू�मदश� जाँच करना है। य�द अबुर्द फ ेफड़े के मध्य म� िस्थत है
�ासनली तक बढ़ चुका है तो बलगम म� क�सर कोिशकाएं �दखाई पड़ जाती ह�। यह सस्ती और जोिखमरिहत जाँच है।
ले�कन इसका दायरा िसिमत है क्य��क बलगम म� हमेशा क�सर कोिशकाएँ नह� �दखाई देती है। कई बार साधारण
कोिशकाएं भी सं�मण या आघात के कारण क�सर कोिशका� क� तरह लगती ह�।
��कोस्कोपी –
नाक या मुँह �ारा �ासनली म� �काश �ोत से जुड़ी पतली और कड़ी या लचीली फाइबरओिप्टक नली(��कोस्को)
डाल कर �सनपथ और फे फड़े का अवलोकन �कया जाता है। अबुर्द �दखाई दे तो उसके ऊतक� का नमूना ले िलया
जाता है। ��कोस्कोपी से �ायः बड़ी �सनिलय� और फ ेफड़े के मध्य म� िस्थत अबुर्द आसानी से देखे जा सकते ह�।
जाँच ओ.पी.डी. कक, शल्य कक्ष या वाडर् म� क� जा सकती है। इसम� रोगी को तकलीफ और ददर् होता है इसिलए
या बेहोशी क� सुई लगा दी जाती है। यह जाँच अपेक्षाकृत सुरिक्षत है �फर भी अनुभवी िवशेषज्ञ �ारा क�
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चािहये। य�द अबुर्द �दखाई दे जाये और उसका नमूना ले िलया जाये तो क�सर का िनदान संभव हो जाता है। इस जाँच
के बाद कुछ रोिगय� को 1 या 2 �दन तक खांसी म�
गहरा भूरा खून आ सकता है। इसक� गंभीर
ज�टलता� म� र��ाव होना, र� म� ऑक्सीजन
कम होना, हाटर् ऐ�रदिमया आ�द हो सकते ह�।
सुई �ारा कोिशक�य जाँच Fine needle
aspiration Cytology (FNAC) –
यह सबसे सामान्य जाँच है िजसम� सोनो�ाफ� या
सी.टी. स्केन के �दशा िनद�श म� सुई फ ेफड़े म� क�सर
क� गाँठ तक घुसाई जाती है और सू�मदश� जाँच
हेतु कोिशका� के नमूने ले िलए जाते ह�। य�द
क�सर क� गाँठ फे फड़े के बाहरी िहस्स� म� िस्थत ह
और जहाँ ��कोस्कोप नह� प�ँच पाता है तब यह
तकनीक ब�त उपयोगी सािबत होती है। इसके
िलए छाती क� त्वचा म� सु� करने क� सुई लगाई
जाती है। उसके बाद छाती म� एक लम्बी सुई क�सर
क� गाँठ तक घुसाई जाती है। सोनो�ाफ� या
सी.टी. स्केन क� मदद अबुर्द तक सुई घुसाना आसान हो जाता है और �फर सुई म� िस�रज लगा कर कोिशका� क
ख�च िलया जाता है। ले�कन कभी कभी रोगिवज्ञानी सही जगह से ऊतक लेने म� कामयाब नह� हो पाता है। इ
तकनीक म� न्यूमोथोरेक्स होने का जोिखम रहता है
थोरेको�सटेिसस -
कभी कभी क�सर फे फड़े के बाहरी आवरण, िजसे प्लूरा कहते ह, तक भी प�ँच जाता है और इस कारण फे फड़े और
छाती के बीच के स्थान म� तरल (called a pleural effusion) इक�ा हो जाता है। इस तरल को सुई �ारा िनकाल
कर उसम� सू�मदश� से क�सर कोिशका� क� जाँच क� जाती है। इस तकनीक म� भी न्यूमोथोरेक्स का थोड़ा जोिख
रहता है।
बड़ी शल्य ��या-
य�द उपरो� सभी तरीक� से भी क�सर का िनदान नह� हो पाये तो शल्य ही अिन्तम िवकल्प बचता है। पहला िवक
मीिडयािस्टनोस्कोपी , िजसम� दोन� फे फड़� के बीच म� शल्य �ारा एक �ोब घुसा कर अबुर्द या लिसकापवर्
कोिशका� के नमूने ले िलए जाते ह�। दूसरा िवकल्प थोरेकोटोमी है िजसम� छाती को खोल कर क�सर कोिशका� के
नमूने ले िलए जाते ह�। इन शल्य ��या� के �ारा अबुर्द को पूरी तरह िनकालना संभव नह� हो पाता है। इसके िल
रोगी को भत� �कया जाता है और शल्य ��या शल्य कक्ष म� ही क� जाती है। साथ ही र, सं�मण, िन�ेतन और
अन्य दवा� के कु�भाव� का जोिखम रहता है।
र� परीक्ष-
वैसे तो अकेले खून के सामान्य परीक्षण से क�सर का िनदान संभव नह�, ले�कन इनसे क�सर के कारण पैदा �ए
रसायिनक या चयापचय िवकार� क� जानकारी िमल जाती है। जैसे कैिल्शयम और एंजाइम अल्कलाइन फोस्फेटेज
स्तर का बढ़ना अिस्थ म� स्थलांतर क�सर के संकेत देता है। इसी तरह ऐस्पाट�ट अमाइनो�ांसफ (SGOT) और
एलेनाइन अमाइनो�ांसफरेज (SGPT) का बढ़ना यकृत क� �ग्णता को दशार्ता है िजसका संभवतः कारण यकृत म
स्थलांतर क�सर होना चािहये। इस क�सर के िनदान हेतु र� के िन� परीक्षण �कये जाने चािहय
• सी.बी.सी.
• इलेक्�ोलाइट
• पेराथायरॉयड हाम�न
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• ऐस्पाट�ट अमाइनो�ांसफरे, एलेनाइन अमाइनो�ांसफरेज, एल्केलाइन फोस्फेट, �ो�ोिम्बन टाइम
• यू�रया, ��ये�टनीन, केिल्शय, मेगनीिशयम
�ूमर माकर्सर
नॉन स्मॉल सेल दोन� �जाित के क�सर म� स.ए.125 और सी.ई.ए. �ूमर माकर्सर् क� जांच क� जानी चािहये
चरण िनधार्रण
क�सर क� गांठो के आकार, िनकटस्थ संरचना , लिसकापव� (Lymph nodes) और दूरस्थ अंग� म� क�सर के फैलाव
तथा िवस्तार के आधार पर फ ेफड़े के क�सर को िविभ� चरण� म� वग�कृत �कया जाता है। चरण िनधार्रण उपचार औ
फलानुमान क� दृि� से भी ब�त महत्वपूणर् है। हर चरण के िलए अलग तरह के उपचार �दये जाते ह�। िच�कत्सक
तरह क� जांच जैसे र� के परीक्, एक्सर, सी.टी.स्के, बोन स्के, एम.आर.आई.स्के, पी.ई.टी.स्केन आ�द करता है
और उनके आधार पर चरण िनधार्रण करता है।
स्मॉल सेल का�सनोम
स्मॉल सेल का�सनोमा को दो चरण� म� बांटा गया है।
िसिमत चरण Limited-stage (LS) SCLC – इसम� क�सर छाती के भीतर ही िसिमत रहता है।
िवस्तृत चर extensive-stage (ES) SCLC इसम� क�सर छाती से बाहर शरीर के कई अंग� तक फै ल चुका होता
है।
नॉन स्मॉल सेल का�सनोम टी.एन.एम. वग�करण
मूल गाँठ T
TX मूल गाँठ का आंकलन नह� हो सका है, या बलगम अथवा �ास नली से िलए गये नमून� म� भले क�सर कोिशकाएं
देखी गई हो ले�कन ��कोस्कोपी या छायांकन परीक्षण म� गाँठ नह� पाई गई हो
T0 मूल क�सर के कोई सा�य िव�मान नह� ह�।
Tis स्वस्थानी क�स(Carcinoma in situ)
T गाँठ ≤ 3 स�मी. अिधकतम माप म�, जो फे फड़े या िवसरल प्लूरा से िघरी ह, ��कोस्कोपी म� क�सर के कोई
संकेत नह� िमले ह�
T1 T1a गाँठ ≤ 2 स�मी. अिधकतम माप म�
T1b गाँठ > 2 स�मी. ले�कन ≤ 3 स�मी. अिधकतम माप म�
T2 गाँठ > 3 स�मी. ले�कन ≤ 7 स�मी. अिधकतम माप म�, या गांठ जो िन� जगह फै ल चुक� हो।
• िवसरल प्लूरा म� फैल चुक� हो।
• मुख्य ��कस क� गांठ करीन* से < 2 से.मी. दूर
• साथ म� एटीलेक्टेिस/ओब्स�िक्टन्यूमोनाइ�ट हाइलार क्षे� तक फैला हो ले�कन पूरे फेफड़े म
नह� फै ला हो।
T2a गाँठ > 3 स�मी. ले�कन ≤ 5 स�मी. अिधकतम माप म�
T2b गाँठ > 5 स�मी. ले�कन ≤ 7 स�मी. अिधकतम माप म�
T3 गांठ > 7 स�मी. अिधकतम माप म� या क�सर इन जगह फै ल चुका हो।
• छाती क� िभि� (सुपी�रयर सल्कस �ूमर समे), डाय�ाम, �ेिनक नवर, मीिडयािस्टनल प्लूरा य
पेराइटल पेरीका�डयम
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स्थािनक लिसकापवर् स्थला N
N0 स्थािनक लिसकापवर(Local Lymph nodes) म� कोई स्थलांतर नह� �आ ह
N1 समपाष्व� (ipsilateral) प�र�ासनिलका (peribronchial) और/या िवदर (hilar) और अंतरफु फ्फुसीय
(intrapulmonary) लिसकापवर् म� स्थलांतर �आ हो
N2 समपाष्व� मध्यस्थाि (ipsilateral mediastinal) और या सबके�रना लिसकापवर् म� स्थलांतर �आ हो
N3 �ितपक्ष(contralateral) मध्यस्थािन (mediastinal) , िवदर (hilar) या अिधज�ुक�य
(supraclavicular) लिसकापवर् म� स्थलांतर �आ हो
दूरस्थ स्थलां M
M0 दूरस्थ स्थलांतर नह� �आ ह
M1 दूरस्थ स्थलांतर �आ हो(Distant metastasis)
M1a �ितपक्ष(contralateral) फे फड़े के �कसी खण्ड म� गांठ ह, गांठ के साथ प्लूरा म� कोई नो�ूल हो या दुदर्
फु फ्फुसावरणीय िनःसरण{malignant pleural (or pericardial) effusion} �आ हो
N1b दूरस्थ स्थलांतर �आ हो
* In anatomy, the carina is a cartilaginous ridge within the trachea that runs anteroposteriorly between the two
primary bronchi at the site of the tracheal bifurcation at the lower end of the trachea
* For Lung Cancer Staging Calculator click this wonderful link http://staginglungcancer.org/calculator
उपचार
ऐलोपेथी म� फे फड़े के क�सर का मुख्य उपचार शल्य �ारा क�सर का उच्छ, क�मोथेरेपी, रेिडयोथेरेपी या इनका
संयु� उपचार है। उपचार सम्बन्धी िनणर्य क�सर के आ, िस्थि, संवृि�, िवस्ता, स्थलांतर और रोगी क� उ�
तथा उसके स्वास्थ्य पर िनभर्र करता
अन्य क�सर क� तरह ही फ ेफड़े के क�सर का उपचार भी उपचारात्म(क�सर का उच्छेदन या रेिडयेश) या �शामक
(palliative य�द क�सर का उपचार संभव नह� हो तो ददर् और तकलीफ कम करने हेतु �दये जाने वाले उपचार को
�शामक उपचार कहते ह�) हो सकता है। �ायः एक से अिधक तरह के उपचार �दये जाते ह�। जब कोई उपचार मुख्य
उपचार के �भाव को बढ़ाने के िलए �दया जाता है तो उसे सहायक उपचार ( adjuvant therapy) कहते ह�। जैसे
शल्-��या के बाद बचे �ई क�सर कोिशका� को मारने के िलए क�मोथेरेपी या रेिडयोथेरेपी सहायक उपचार के �प
म� दी जाती है। य�द उपचार शल्य के पहले अबुर्द को छोटा करने के िलए �दया जाता है तो उसे नव सहायक उपचा
(Neo adjuvant therapy) कहते ह�।
शल्-��या –
क�सर का उच्छेदन सबसे उपयु� उपचार है य�द क�सर फ ेफड़े के बाहर नह� फैल सका है। क�सर का उच्छेदन नो
स्माल सेल क�सर के कुछ चरण�(चरण I या कभी कभी चरण II) म� �कया जाता है। अमूमन इस क�सर के 10%-35%
रोिगय� म� शल्य ��या क� जाती ह, ले�कन रोगी को पूरी राहत नह� िमल पाती है क्य��क क�सर िनदान के समय ही
• मुख्य ��कस क� गांठ केरीना से< 2 से.मी. क� दूरी तक
• साथ म� एटीलेक्टेिस/ओब्स�िक्ट न्यूमोनाइ�ट पूरे फे फड़े म� या फे फड़े के उसी खण्ड म� अन्य गांठ
T4 �कसी भी नाप क� गांठ जो मीिडयािस्टन, �दय, बड़ी र� वािहयाएँ, �े�कया, ले�रिजयल नवर, भोजन नली,
वट��ल बॉडी, केरीना या फे फड़े के उसी खण्ड म� अन्य गांठ म� से �कसी एक संरचना म� फैल चुक� हो।
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क�सर ब�त फै ल चुका होता है और शल्-��या के बाद क�सर कभी भी दोबारा उत्प� हो जाता है। िजन रोिगय� म�
धीमी गित से बढ़ने वाले एकाक� क�सर का शल्य �कया जाता ह, उनम� से 25%-40% रोगी पांच साल जी ही लेते ह�।
कई बार रोगी का क�सर संरचनात्मक दृि� से तो शल्य योग्य होता है ले�कन रोगी क� गंभीर हा(जैसे �दय या
फे फड़े का कोई बड़ा रोग हो) के कारण शल्य करना जोिखम
भरा काम हो सकता है। स्माल सेल क�सर म� शल-��या क�
संभावना अपेक्षाकृत कम रहती है। क्य��क यह तेजी से फैलता
और फे फड़े के एक िहस्से म� िसिमत हो कर नह� रह पाता है।
शल्य ��या अबुर्द के आमाप और िस्थित पर िनभर्र करती
यह बड़ी शल्य ��या ह, रोगी को भत� करना पड़ता है और
शल्य के बाद भी लम्बे समय तक देखभाल हेतु अस्पताल म�
रखना पड़ता है। इसम� रोगी को बेहोश �कया जाता है और
छाती को खोलना पड़ता है। इसके बाद शल्-कम� फे फड़े का
एक िहस्सा( wedge resection), फे फड़े का एक खण्ड
(lobectomy ) या पूरा फे फड़ा ( pneumonectomy) िनकाल
लेता है। कभी-कभी फे फड़े म� िस्थत लिसकापवर
(lymphadenectomy) भी िनकाले जाते ह�। शल्य के बाद
रोगी को �ास क�, सांस उखड़ना, ददर् और कमजोरी रहती है।
र� �ाव, सं�मण और िन�ेतन के कु�भाव शल्य के मुख्
खतरे ह�।
रेिडयेशन –
रेिडयोथेरेपी स्मॉल सेल और नॉन स्मॉल सेल दोन� �जाित के क�सर म� दी जाती है। रेिडयेशन उपचार म� शि�शाल
एक्सरे या अन्य �कार के रेिडयेशन �ारा िवकासशील क�सर कोिशका� को मारा जाता है। रेिडयोथेरेपी उपचारात
(Curative), �शामक (Palliative) या अन्य उपचार(शल्य या क�म) के साथ सहायक उपचार के �प �दया जाता
है। रेिडयेशन या तो बाहर से मशीन को क�सर पर क���त करके �दया जाता है या रेिडयोधम� पदाथर् से भरे छोटे से
केप्स्यूल शरीर म� क�सर क� गांठ के पास अविस्थत करके �दया जाता है। �ेक�थेरेपी म� ��कोस्कोप �ारा रेिडयो
पदाथर् से भरे छोटे से पेलेट को क�सर क� गांठ म� या पास क� �कसी �ासनली म� अविस्थत कर �दया जाता है। इसम
पेलेट से रेिडयेशन छोटी सी दूरी तय करता है इसिलए यह आसपास के स्वस्थ ऊतक� को नुकसान ब�त कम करता है
�ेक�थेरेपी क�सर का गाँठ को छोटा करने और �ासनली म� िस्थत क�सर के कारण उत्प� लक्षण के उपचार के
�चिलत है।
य�द रोगी शल्-��या के िलए मना कर देता है, उसका क�सर लिसकापवर् या �ासनली तक इतना फैल चुका है �क
शल्-��या संभव ही नह� है या �कसी अन्य गंभीर रोग के कारण उसक� शल-��या करना मुनािसब नह� है तो उसे
रेिडयोथेरेपी दी जाती है। रेिडयेशन जब मुख्य उपचार के �प म� �दया जाता है तो यह िसफर् गांठ को छोटी करता ह
या उसके िवकास को िसिमत रखता है, िजससे रोगी कुछ समय तक स्वस्थ बना रहता है। 10%-15% रोगी लम्बे
समय तक स्वस्थ जीवन जी लेते ह�। रेिडयोथेरेपी के साथ क�मोथेरेपी भी दी जाती है तो जीने क� आस थोड़ी और ब
जाती है। बाहर से दी जाने वाली रेिडयोथेरेपी ओ.पी.डी.िवभाग म� दी जाती है, ले�कन आंत�रक रेिडयोथेरेपी देने के
िलए रोगी को एक या दो �दन के िलए भत� करना पड़ता है। य�द रोगी को क�सर के अलावा कोई अन्य गंभीर फ ेफड़े
का रोग है तो रेिडयोथेरेपी नह� दी जा सकती है क्य��क फ ेफड़े क� हालत और अिधक खराब होने का खतरा रहता है।
एक िवशेष तरह क� गामा नाइफ नामक बा� रेिडयोथेरेपी मिस्तष्क म� एकाक� स्थलांतर क�सर के िलए दी जाती ह
इसम� िसर को िस्थर करके रेिडयेशन के कई पुंज� को क�सर पर क���त करके कुछ िमनट या घन्ट� के िलए रेिडयेश
�दया जाता है। इसम� स्वस्थ ऊतक� को रेिडयेशन क� अपेक्षाकृत कम मा�ा िमलती है।
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बा� रेिडयेशन थेरेपी म� उपचार से पहले सी.टी.स्के, कम्प्यूटर और सही नाप के मदद से िसमुलेशन �ारा यह पत
कर िलया जाता है �क रेिडयेशन �कस जगह क���त हो रहा है। इसम� 30 िमनट से दो घन्टे का समय लगता है। बाहरी
रेिडयेशन स�ाह म� 4 या 5 �दन कई स�ाह क� अविध तक �दया जाता है।
रेिडयेशन थेरेपी म� शल्-��या क� तरह बड़े जोिखम नह� रहते ह�, ले�कन कुछ अि�य कु�भाव जैसे थकावट और
कमजोरी तो होते ही ह�। �ेत र� कण कम होना (इससे सं�मण होने का खतरा रहता है) या �बबाणु (Platelets) कम
होना (इससे र��ाव का खतरा रहता है) भी रेिडयेशन के कु�भाव ह�। य�द रेिडयेशन पाचन अंग� पर भी पड़ता है तो
िमचली, उबकाई आना या दस्त लग सकते ह�। त्वचा म� खुजली और जलन हो सकती है।
क�मोथेरेपी –
स्मॉल सेल और नॉन स्मॉल सेल दोन� �जाित के क�सर म� क�मोथेरेपी दी जाती है। क�मोथेरेपी म� दवाएं क�स
कोिशका� को मारने या उनके तेजी होने वाले िवभाजन को रोकने के िलए दी जाती ह�। क�मोथेरेपी को
उपचारात्म, शल्-��या या रेिडयोथेरेपी के साथ सहायक उपचार के �प म� दी जाती है। वैसे तो आजकल ब�त
सारी क�मो दवाएँ �चिलत ह� ले�कन फे फड़े के क�सर म� प्ले�टनमयु� दवाएं जैसे िससप्ले�टन या काब�प्ले�टन सब
�भावशाली सािबत �ई ह�।
लगभग सभी स्मॉल सेल क�सर म� क�मोथेरेपी ही सबसे मुफ�द इलाज ह, क्य��क िनदान के समय ही यह �ायः पूरे
शरीर म� फै ल चुका होता है। स्मॉल सेल क�सर के िसफर् आधे रोगी ही क�मोथेरेपी के िबना चार महीने जी पाते ह�
ले�कन क�मो के बाद उनका जीवन लम्बा तो होता ही है। नॉन स्मॉल सेल क�सर म� अकेली क�मो इतनी असरदा
सािबत नह� �ई है, ले�कन य�द क�सर का स्थलांतर हो चुका है तो कई रोिगय� का जीवन काल तो बढ़ता ही है।
क�मोथेरेपी गोिलय�, िशरा मागर् या दोन� तरीके से दी जाती है। क�मो �ायः .पी.डी. िवभाग म� दी जाती है। एक
च� म� पूवर् िनधार्�रत िनयमानुसार कुछ दवाएँ दी जाती , इसके बाद थोड़े समय के िलए रोगी के िवराम �दया जाता
है। इस दौरान वह क�मो के कु�भाव� के क� पाता है और �फर धीरे-धीरे उन से मु� हो जाता है तो अगला च� �दया
जाता है। इस तरह क�मो के कई च� �दये जाते ह�। दुभार्ग्यवश क�मो म� दी जाने वाली दवाएँ स्वस्थ कोिशका�
भी क्षित�स्त करता है िजससे कई अि�य और क�दायक कु�भाव होते ह�। �ेत र� कण कम हो(इससे सं�मण होने
का खतरा रहता है) या �बबाणु कम होना (इससे र��ाव का खतरा रहता है) क�मो के �मुख कु�भाव ह�। थकावट,
बाल झड़ना, िमचली, उबकाई, दस्, मुँह म� छाले पड़ जाना आ�द अन्य कु�भाव ह�। क�मो के कु�भाव दवा क� मा�,
िम�ण म� दी जाने वाली अन्य दवा और रोगी के स्वास्थ्य पर िनभर्र करता है। दवा के कु�भाव के िलए भी कुछ ि
दवाएं दी जाती ह�।
स्मॉ सेल फे फड़े के क�सर म� क�मोथेरेपी के �चिलत �रजीम िन� िलिखत ह�।
• PE �रजीम
िससप्ले�टन25 mg/m2 IV days 1-3
इटोपोसाइड 100 mg/m2 IV days 1-3
• PEC �रजीम
पेिक्लटेक्स 200 mg/m2 IV day 1
इटोपोसाइड 50 mg/d PO alternating with
100 mg/d PO from days 1-10
कारेबोप्ले�टनAUC 6 IV day 1
• CAV �रजीम
साइक्लोफोस्फेमा 1000 mg/m2 IV day 1
डोक्सो�बीिस 50 mg/m2 IV day 1
िवन��स्टी 2 mg IV
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• CAVE
साइक्लोफोस्फेमा 1000 mg/m2 IV day 1
डोक्सो�बीिस 50 mg/m2 IV day 1
िवन��स्टी 2 mg IV
इटोपोसाइड 100 mg/m2 IV day 1
• एक दवा वाली �रजीम
टोपोटेकॉन 1.5 mg/m2
IV day 1-5
इटोपोसाइड 50 mg PO bid days 1-14
पुनरावृि� क�सर म� िन� क�मोथेरेपी दी जाती है।
• ACE (डोक्सो�बीिस, साइक्लोफोस्फेमा और इटोपोसाइड) या
• CAV (साइक्लोफोस्फेमा, डोक्सो�बीिस और िवन��स्टी)
टोपोटेकॉन य�द रोगी को �दयरोग हो और डोक्सो�बीिस देना संभव नह� हो क्य�� �दय को नुकसान प�ँचाती है।
AUC = area under the concentration curve; bid = twice daily; IV = administered intravenously; PO = administered orally.
नॉन स्मा सेल फे फड़े के क�सर म� क�मोथेरेपी ब�त ज्यादा �भावशाली सािबत नह� �ई है।
�ायः िससप्ले�ट या काब�प्ले�ट (Paraplatin) के साथ िन� म� से कोई एक दवा दी जाती है।
• वाइनोरेबाइन
• जेमिसटेबाइन
• पेिक्लटेक्स (Taxol)
• डोसीटेक्से (Taxotere)
• डोक्सो�बीिस
• इटोपोसाइड
• पेमे�ेक्से
• इफोस्फ ेमाइ
• माइटोमाइिसन
• टोपोटेकॉन
क�मोथेरेपी क� पूरी जानकारी के िलए इस कड़ी पर चटका कर�।
http://chemoregimen.com/Lung-Cancer-c-43-54.html
मिस्तष्क का सुरक्षात्मक रेिड–
स्मॉल सेल क�सर �ायः मिस्तष्क म� भी फैलता है। इसिलए कई बार स्मॉल सेल क�सर के रोगी को मिस्तष्क म�
चुक� क�सर कोिशका� ( called micrometastasis) को मारने के िलए सुरक्षात्मक रेिडयोथेरेपी दी जाती, भले
मिस्तष्क म� स्थलांतर सम्बन्धी कोई लक्षण नह� हो और .टी. या एम.आर.आई. �ारा स्थलांतर के कोई सुराग
िमले ह�। मिस्तष्क को रेिडयेशन देने के कुछ अल्पकालीन कु�भाव जैसे अल्पकालीन स-लोप (Short term
memory loss), थकावट, िमचली आ�द होते ह�।
पुनरावृि� क�सर का उपचार –
य�द क�सर क� शल्-��या, क�मोथेरेपी और /या रेिडयेशन �ारा उपचार करने के बाद क�सर दोबारा आ�मण कर देता
है तो इसे आवत� या पुनरावृि� क�सर कहते ह�। य�द पुनरावृि� क�सर फे फड़े म� �कसी एक जगह अविस्थत है तो शल्
�कया जा सकता है। पुनरावृि� क�सर म� �ायः क�मो क� वे दवाएं काम नह� करती ह� जो पहले दी जा चुक� ह�। इसिलए
अन्य दवाएं दी जाती ह�।
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फोटोडायनेिमक उपचार (PDT) –
य�द फे फड़े और कई अन्य क�सर का नया उपचार है। सभी �जाित और चरण� म� �दया जा सकता है। इसम� एक
फोटो�सथेसाइ�जग पदाथर्(ज�से पोरफाइ�रन जो शरीर म� �ाकृितक �प से पाया जाता है) शल्-��या के कुछ घन्टे
पहले िशरा म� छोड़ �दया जाता है। यह पदाथर् तेजी से िवभािजत हो रही कोिशका�(जैसे क�सर कोिशकाएँ) म� फै ल
जाता है। मुख्य ��या म� िच�कत्सक अमुक वैवल�थ का �काश क�सर पर डालता हैयह �काश ऊजार् फोटो�सथेसाइ�जग
पदाथर् को स��य कर देती ह, िजसके असर से क�सर कोिशकाएँ एक टॉिक्सन बनाती ह�। यह टॉिक्सन क�सर कोिशका
को मार डालता है। इस उपचार का फायदा यह है �क यह शल्-��या से कम आ�ामक है और इसे दोबारा भी �दया
जा सकता है। यह उपचार उन्ह� क�सर म� �दया जा सकता ह, िजन पर आप सुगमता से �काश डाल सकते ह� और यह
कई जगह फै ले आ�ामक क�सर म� नह� �दया जा सकता है। एफ.डी.ए. ने पोरफमर्र सोिडयम (Photofrin) नामक
फोटो�सथेसाइ�जग पदाथर् को नॉन स्मॉल से(फे फड़े के क�सर) और भोजननली के क�सर के िलए �मािणत �कया है।
रेिडयो ����सी ऐबलेशन (RFA) –
रेिडयो ����सी ऐबलेशन उपचार फे फड़े के �ारंिभक क�सर के िलए शल्-��या के िवकल्प के �प म� उभरा है। इस
तकनीक म� त्वचा म� एक लम्बीसुई को सी.टी. क� मदद और �दशा-िनद�श म� क�सर तक घुसाया जाता है। इस सुई क�
नोक तक रेिडयो����सी �वािहत क� जाती है। इससे सुई क� नोक गमर् होकर क�सर को जला देती है और क�सर को र�
क� आपू�त करने वाली नस� को अव�� कर देती है। यह अमूमन ददर्रिहत उपचार है और ए.डी.ए. �ारा फे फड़े के
क�सर समेत कई क�सर के िलए �मािणत है। यह उपचार शल्य��या िजतना ही �भावशाली है और जोिखम ब�त कम
है।
�योगात्मक उपचार(clinical trials) –
फे फड़े के क�सर के िलए ऐलोपेथी म� अभी तक कोई भी सफल उपचार नह� है। इसिलए रोगी नये �योगात्मक उपचार
(clinical trials) भी ले सकता है। क्य��क ये उपचार अभी �योगात्मक दौर म� है और िच�कत्सक� के पास पया
जानका�रयाँ नह� है �क ये उपचार �कतने िनरापद और असरदार ह�। इसिलए रोगी जोिखम उठाते �ए यह उपचार
चाहे तो ले सकता है।
टारगेटेड थेरेपी–
नॉन स्मॉल सेल क�सर के िजन रोिगय� म� क�मो काम नह� कर पाती ह, उन्ह� आजकल टारगेटेड थेरेपी दी जाती है।
ऐलोपेथी के बड़े बड़े क�सर िवशेषज्ञ उत्सािहत होकर इस टारगेटेड थेरेपी क�सर उपचार म� खुशी क� नई लहर बता
कर उत्सव मना रहे ह�। वे कह रहे ह� �क हर क�सर म� एक ही दवा देने क� मानिसकता अब खत्म �ई समझो। टारगेटेड
थेरेपी लेने से पहले क�सर के नमूने लेकर जांच क� जाती है और पता लगाया जाता है �क अमुक क�सर म� कौन सा
म्यूटेशन�आ है। इसी के आधार पर टारगेटेड दवा का चयन �कया जाता है। अमे�रका क� 14 संस्थाएं यह जांच मुफ्
म� कर रही है। हालां�क अभी तक कई म्यूटेशन िचिन्हत �कये जा चुके , ले�कन सभी के िलए अभी टारगेटेड दवा
िवकिसत नह� हो पाई ह�। आजकल �ायः तीन म्यूटेशनEGFR, ALK और KRAS क� जांच क� जाती है।
नॉन स्मॉल सेल क�सर क� उप�जाित ऐडीनोका�सनोमा के 20% से 30% रोिगय� म� EGFR म्यूटेशन होता है।
इसम� इरलो�टिनब (Tarceva) और जे�फ�टिनब (Iressa) टारगेट दवाएं दी जाती ह�। ये टाइरोसीन काइनेज
इिन्हबीटर �ेणी म� आती ह�। टारगेटेड थेरेपी िवशेष तौर पर क�सर कोिशका� पर अिभलिक्षत होती, िजससे
सामान्य कोिशका� क� क्षित अपेक्षाकृत कम होती है। अरलो� और जे�फ�टिनब इिपडमर्ल �ोथ फ ेक्टर �रसेप
(EGFR) �ोटीन पर अिभलिक्षत होती ह�। यह �ोटीन कोिशका� के िवभाजन का बढ़ाने म� सहायता करता है। य
�ोटीन कई क�सर कोिशका� जैसे नॉन स्मॉल सेल क�सर कोिशका� के सतह पर बड़ी मा�ा म� िव�मान रहता है। ह
गािलय� के �प म� दी जाती ह�। ये EGFR म्यूटेशन वाले क�सर रोिगय� का जीवनकाल बढ़ाती ह, ले�कन कुछ समय
बाद रोगी को इस दवा से �ितरोध (resistance) हो जाता है। �फर भी इरलो�टिनब क� एक गोली रोगी क� जेब पर
4800 �पये का फटका है।
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नॉन स्मॉल सेल क�सर के लगभग 2% से 7% रोिगय� म� ALK (anaplastic lymphoma kinase) म्यूटेशन होता
है। ये रोगी �ायः युवा होते ह� और धू�पान (1-2% का छोड़ कर) नह� करते ह�। इसके िलए एक नई टारगेटेड दवा
��जो�टिनब (crizotinib) अनुमो�दत क� गई है। यह ALK को िनिष्�य करती है और क�सर क� संवृि� को रोकती है।
यह गांठ को छोटा करती है और लगभग 6 महीने तक तो िस्थर रखती है। फाइज़र कम्पनी �ारा िन�मत यह दव
ज़लकोरी नाम से उपलब्ध है। एक महीने क� दवा का खचार् िसफ पांच लाख �पये है। आिखर फे फड़े का कैसर एक
शाही बीमारी है।
टारगेटेड थेरेपी म� �टीएंिजयोजेनेिसस दवाएं भी शािमल क� गई ह�, जो क�सर म� नई र�-वािहका� के िवकास को
रोकती है। िबना र�-वािहका� के क�सर मर जायेगा। िबवेिसजुमेब (Avastin) नामक �टीएंिजयोजेनेिसस दवा को
य�द क�मो के साथ �गितशील क�सर म� �दया जाता है तो यह रोगी का जीवनकाल बढ़ाती है। इसे िशरा म� हर दो से
तीन स�ाह म� �दया जाता है। इस दवा से
र��ाव का जोिखम रहता है, इसिलए उन
रोिगय� को नह� देना चािहये िजनको खांसी
के साथ खून आ रहा हो, जो
ऐन्टकोएगुल�शन दवा ले रहा हो या उसका
क�सर मिस्तष्क म� भी फैल गया हो। इस
स्�ेमस सेल का�सनोमा म� भी नह� देना
चािहये क्य��क इस म� र��ाव का खतरा
रहता है।
सेटुिक्समेब एक एंटीबॉडी है जो इिपडमर्
�ोथ फे क्टर �रसेप्टर से जुड़ जाती है। नॉ
स्मॉल सेल क�सर क� सतह पर य�द यह
EGFR �ा� है तो सेटुिक्समेब से लाभ हो
सकता है।
वैकिल्पक उपचार
• बुडिवग �ोटोकोल
• आयुव�द और पंचकमर
• होम्योपेथ
• क्यूपंक्
• शािन्, ध्यान यो
• मािलश
• िशवाम्बु िच�कत्
फलानुमान
फे फड़े के क�सर म� फलानुमान का मतलब रोगी का उपचार ( cure) या उसके जीवनकाल बढ़ने क� संभावना से है। यह
क�सर के आमाप, �जाित, स्थलांतर और रोगी के स्वास्थ्य पर िनभर्र करता
स्मॉल सेल �जाित का क�सर सबसे आ�ामक और तेजी से फैलने वाला क�सर है और य�द उपचार नह� �कया जाये तो
रोगी दो चार महीने ही जी पाता है। अथार्त दो से चार महीने म� आधे रोगी मर जाते ह�। स्मॉल सेल क�सर म� रेिडयेश
और क�मोथेरेपी अपेक्षाकृत अिधक असरदार मानी जाती है। क्य��क यह क�सर बड़ी तेजी से फैलता है और िनदान
समय ही शरीर म� कई जगह स्थलांतर हो चुका होता ह, इसिलए शल्य या स्थािनक रेिडयेशन उपचार का कोई खा
महत्व नह� है। य�द क�मोथेरेपी अकेले या अन्य उपचार के साथ दी जाती है तो रोगी का जीवन का4-5 गुना बढ़ने
क� संभावना रहती है। ले�कन सारे �पंच के उपरांत भी 5%-10% रोगी ही पांच वषर् जी पाते ह�।
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नॉन स्मॉल सेल क�सर का फलानुमान िनदान के समय उसके चरण stage पर िनभर्र करता है। य�द पहले चरण के
रोगी क� गांठ शल्य �ारा िनकाल दी जाती है तो 75% रोगी क� पांच वषर् जी लेते ह�। कुछ रोिगय� को रेिडयेशन
उपचार से थोड़ी राहत िमलती है। इस क�सर म� क�मो से रोगी के जीवन काल पर िवशेष फकर् नह� पड़ता है।
अन्य क�सर क� अपेक्षा फेफड़े के क�सर का फलानुमान ब�त खराब है। एलोपेथी के सारे उपचार और तामझाम
बावजूद िसफर्16% रोगी पांच वषर् ही जी पाते ह�।
धू�पान - कांट� भरी डगर
जीवन म� अच्छे प�रवतर्न लाय!
• धू�पान छोड़ द�। अमे�रका
जैसे िबगड़ेल देश म� भी
4.48 करोड़ लोग� ने
धू�पान छोड़ �दया है तो
आप क्य� नह� छोड़ सकते।
• िसगरेट छोड़ने का एक
िनि�त �दन तय करे और
उसे उत्सव क� तरह मनाय�।
• अच्छी सोच िवकिसत कर�।
“म� धू�पान नह� छोड़
सकता �ँ ” या “मुझे िसगरेट
तो चािहये ही ” जैसे िवचार
�दमाग म� न लाकर सोिचये,
“मुझे स्वस्थ रहना ” और “म� अपना जीवन सुधार कर र�ँगा”
• अपनी आदत� म� कुछ बदलाव लाइये। खाने के बाद थोड़ा घूमने िनकल�। च्यूइंग ग, फल और सिब्जयाँ
खाइये। मािलश करवाइये, खेल-कूद और तैराक� क�रये।
• उन िस्थितय, जगह� और िम�� से दूर रहने क� कौिशश क�िजये, जहाँ या िजनके साथ आप अक्सर धू�पान
करते थे।
• अपने प�रवार के अन्य सदस्य� को कह दीिजये �क आप धू�पान छोड़ रहे ह�। वे भी आपको धू�पान छोड़ने म
सहयोग कर�गे और आपका मनोबल बढ़ाय�गे।
• धू�पान को अपना इितहास बना दीिजये। घर से िसगरेट, लाइटर, ऐश�े आ�द उठा कर बाहर फ�क दीिजये।
कपड़े, घर और दाँत साफ करवा लीिजये। आपक� कार और घर को धू�पान रिहत बना दीिजये। इन्सान चाहे
तो क्या नह� कर सकता है।
धू�पान छोड़ने हेतु सहायक उपचार
दवाएं
िसगरेट छोड़ने के िलए कुछ दवाएं ब�त �भावशाली सािबत �ई ह�। इनम� िनको�टन नह� होता है। ले�कन ये मिस्तष्
म� जाकर उन �रसेप्टसर् से िचपकती , जहाँ िनको�टन िचपक कर नशे और ताज़गी का झूँठा अहसास देती है। इससे
�दमाग को �म होता है �क शरीर को िनको�टन िमल रहा है और िसगरेट क� तलब नह� होती है। य�द �ि� िसगरेट
सुलगा भी लेता है तो उसे मजा नह� आता है क्य��क िनको�टन के �रसेप्टसर् तो पहले से ही तृ� होते (दवा के �भाव
के कारण) और िनको�टन �दमाग म� इधर उधर घूम कर समय िबताता है। ये दवाएं िसगरेट छोड़ने के एक या दो हफ्ते
पहले कम मा�ा म� ली जाती है और एक स�ाह बाद मा�ा बढ़ा दी जाती है। अमुक िनि�त �दन िसगरेट छोड़ दी
जाती है। इस उपचार को लगभग 3 महीने बाद बंद कर �दया जाता है। �ायः तब तक आपक� िसगरेट पीने क� आदत
16. 16 | P a g e
छूट चुक� होती है। इस हेतु बू�ोिपयोन (बू�ोन एस. आर. 150) और वरेिनक्लीन(चेिम्पक) महत्पूणर् है। वरिनक्ल
बू�ोिपयोन से जादा �भावशाली है। इन दवा� के म�ने जादुई असर देखे ह�। इनक� मा�ा इस �कार है।
बू�ोिपयोन (बू�ोन एस. आर.) पहले स�ाह 150 िम.�ाम. क� रोज क� एक गोली, दूसरे स�ाह से मा�ा बढ़ा कर
रोजाना दो गोली एक सुबह और एक शाम को 7-12 स�ाह तक देकर बंद कर द�।
वरेिनक्लीन(चेिम्पक) पहले स�ाह 0.5 िम.�ाम. क� रोज एक गोली सुबह एक गोली शाम को, दूसरे स�ाह से मा�ा
बढ़ा कर 1 िम.�ाम. क� रोज एक गोली सुबह एक गोली शाम को 12 स�ाह तक देकर बंद कर द�।
िनकोटीन च्यूइंग गम या पे
िसगरेट छोड़ने के साथ ही िनको�टन का पेच 16-24 घन्टे िचपका कर रख�। पेच क� जगह िनको�टन का च्यूइंग ग
(यह गुटखा के नाम से िमलता है) या इनहेलर भी �योग कर सकते ह�। इससे आपके िसगरेट क� तलब नह� होगी
क्य��क शरीर को िनको�टन तो िमल ही रहा है। �ायः3-6 महीने बाद जब आपको लगे �क िसगरेट क� आदत पूरी
तरह छूट गई है तो इसे बन्द कर द�।
काउंस�लग मनोिच�कत्सक से समूह म� या अकेले म� ले सकते ह�।
http://www.drugs.com/quit-smoking.html
http://www.drugsupdate.com/brand/showavailablebrands/674
http://www.unitedpharmacies-uk.com/product.php?productid=1373&cat=13&page=7
िसगरेट छोड़ने से कैसे सुधरता है आपका भावी जीवन
िसगरेट छोड़ने
क� अविध
आ�यर्जनक प�रणा
20 िमनट र�-चाप और �दय गित कम हो जाती है और हाथ-पैर� म� र� का �वाह बढ़ जाता है।
12 घंटे आपके र� म� काबर्न मोनोऑक्साइड का स्तर सामान्य हो जाता
2 स�ाह – 3 महीने आपका र� संचार सुधरता है और फे फड़े भली भांित कायर् करने लगते ह�।
1 – 9 महीने खांसी और �ास क� काफ� कम हो जाता है, �ास निलय� क� आंत�रक सतह पर िस्थत रोम
(cilia) अपना कायर् सुचा� �प से करने लगते ह, फे फड़� म� जमा �ेष्म(mucus) साफ हो जाता है
और सं�मण का खतरा कम हो जाता है।
1 वषर कोरोनरी �दय रोग का जोिखम पहले से आधा रह जाता है।
5 वषर मुँह, गला, भोजन नली और मू�ाशय के क�सर का पहले से जोिखम आधा रह जाता है, गभार्शय
�ीवा (Cervix) के क�सर का जोिखम घट कर धू�पान न करने वालो के बराबर हो जाता है और
स्�ोक का जोिखम2-3 साल म� घट कर धू�पान न करने वालो के बराबर हो जाता है।
10 वषर फे फड़े के क�सर के कारण होने वाली मृत्यु दर उन लोग� से आधी रह जाती है जो अभी भी िसगरेट
पी रहे ह� और स्वर यं�( larynx) और अग्न्याश( pancreas) के क�सर का जोिखम भी कम हो
जाता है।
15 वषर कोरोनरी �दय रोग का जोिखम धू�पान नह� करने वाले �ि� के बराबर रह जाता है।
लंग क�सर पर जोक
एक बार सुपर स्टार शाह�ख खान िनमर्ल बाबा से उपाय मांगने गये और बोले बाबा लंग क�सर का खतरा ह
िसगरेट कैसे छोड़ूँ। बाबा बोले िजस हाथ से िसगरेट पीते हो उसक� त�जनी और मध्यमा अंगुली मुझे दिक्ष
म� दे दो। कृपा हो जायेगी और िसगरेट छूट जायेगी और हर िपक्चर का साइ�नग अमाउंट हमारे अकाउंट म�
जमा करवा �दया करो।