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Kas chikitsa
- 5. संम्प्राप्ति
अर्:प्रतिहिो वायुरुर्ध्वृस्त्रोि: समातिि: ।
उदानभावमापन्न: कण्ठे सक्तस्िथोरतस ॥
आतवश्य तशरस: खातन सवाृतण प्रतिपूरयन।
आभञ्जनातक्षपनदेहं हनुमन्ये िथाऽतक्षणी ॥
नेत्रे पनष्ठमुर:पार्श्वे तनभुृज्य स्िम्भयंस्िि:।
शुष्को वा सकफो वाऽतप कसनात्कास उच्यिे ॥ च.तच.18/6-8
प्राणोह्युदानानुगत: प्रदुष्ट: संभिन्नकांस्यस्वनतुल्यघोष: ।
ननरेनत वक्त्रात सहसा सदोष: कास: स ववद्वनिरुदाह्र्तस्तु॥
सु.उ.तं .52/5
- 6. अधः प्रनतहतो वायु (अपान वायु) अवरुद्ध
उर्धवव स्रोतसां मर्धये आचित
उदान सह
कण्ठ उर भिर प्रदेि व्याप्त
हनु, मन्या, नेर, स्थानी अक्षेप
तथा पृष्ठ, उर, पार्शवव स्थानी आक्षेप
िुष्क कफ़युक्त्त कास
- 12. क्षयज कास
ननदान
ववषमासात्म्यिोज्यानतव्यवायाद्वेगननग्रहात ।
घृणणनां िोचतां नॄणां व्यापन्नेऽननौ रयो मला:॥
कु वपता: क्षयजं कासं कु युवदेहक्ष्यप्रदम ।
च.चच.18/23-24
लक्षणे
दुगवस्त्न्ध, हररत रक्त्त वणीय पुययुक्त्त कफ ष्ठीवन
ह्रदयं मन्यते च्युतम अकस्मात उष्ण िीत स्पिव ननर्वल
कृ ि
स्त्स्ननध अच्छ मुख वणव पाणणपादतल र्शलष्णता ज्वर पार्शवव
उर वेदना अरुचच
भिन्नसंहतवचवस स्वरिेद
- 13. चचककत्सा-
वातज कास-
रुक्षस्याननलजं कासमादौ स्नेहैरुपाचरेत ।
सवपवभिवर्वस्त्स्तभि: पेयायूषक्षीररसाहदभि: ॥
वातघ्नभसद्धै: स्नेहाद्यैधूवमैलैहेर्शच युस्त्क्त्तत:।
अभ्यङ्गै: पररषेकै र्शच स्त्स्ननधै: स्वेदैर्शच र्ुवद्धमान ॥
र्स्त्स्तभिर्वद्धववडवातं िुष्कोर्धवं चोर्धवविस्त्क्त्तकै : ।
घृतै: सवपतं सकफं जयेत स्नेहववरेचनै: ॥
च.चच.18/32-34
कण्टकारी घृत वपप्पल्यादी घृत
त्र्युषणाद्य घृत रास्ना घृत
ववडंगाहद चुणव दुरलिहद लेह
अगस्त्यहरीतकी मन:भिलादी धूम
- 14. रुक्षाचधक्त्य- स्नेहप्रयोग उदा. वातघ्न घृत ,र्स्त्स्त,पेया,
युष, क्षीर ,मांसरस,स्त्स्ननध धूम,अवलेह, अभ्यंग,पररषेक
मल,वायु अवरोध- र्स्त्स्तप्रयोग
मलिुष्कता, अपान वायु उर्धववगनत- िोजन पर्शचात घृतपान
वपत्त,कफ अनुर्ंध-स्नेह ववरेचन
- 15. प्तपत्तज कास
पैस्त्त्तके सकफे कासे वमनं सवपवषा हहतम ।
तथा मदनकार्शमयवमधुकक्त्वचथतैजवलै: ॥
च.चच.18/83
वपत्तज कास- कफ अनुर्ंध - वमन
अल्प कफानुर्ंध- ववरेचन त्ररवृत्त + भसता
घन कफ-ननिोत्तर+ नतक्त्त द्रव्य
तनु कफ- स्त्स्ननध िीतवीयव स्नेह अवलेह
घन कफ़- रुक्ष िीत स्नेह अवलेह
त्वगाहद लेह
वपप्पल्याहद लेह
कासहर गुहटका
- 16. कफज कास
र्भलनं वमनैरादौ िोचधतं कफकाभसनम ।
यवान्नै : कटुरुक्षोष्णै: कफघ्नैर्शचाप्युपाचरेत ॥
च.चच.18/108
वमन
कफ़घ्न ,कटु,रुक्ष,उष्ण आहर
पाठाहद पेय
नागराहद पेय
- 17. क्षतज कास
कासमात्यनयकं मत्वा क्षतजं त्वरया जयेत ।
मधुरैजीवनीयैर्शच र्लमांसवववधवनै: ॥ च.चच.18/134
क्षतकासाभििूतानां वृस्त्त्त: स्यात वपत्तकाभसकी।
क्षीरसवपवमवधुप्राया संसगे तु वविेषणम ॥च.चच.18/138
द्ववदोषज संसगव -वातवपत्त्ज कास- घृत अभ्यंग
वात वृवद्धजन्य वेदना- तैल अभ्यंग
रक्त्तष्ठीवन- जीवणीय गण साचधतपान घृत,नस्य
स्तंि,आयाम- अचधक माराघृतपान
- 18. क्षयज कास
तस्मै र्ृंहणमेवादौ कु यावदननेर्शच दीपनम ।
र्हुदोषाय सस्नेहं मृदु दद्याद्ववरेचनम ॥
च.चच.18/150
मृदु ववरेचन,
रक्त्तस्राव- अनुवासन र्स्त्स्त