11 effective yoga pose to increase energy and stamina
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1. तत्र रसादिनाां शुक्रान्तानाां धातुनाां यत्परां तेजस्तत् खल्व्-ओजस्त्-िेव बलम्-इत्युच्यते । (सु.
सू. १५/२४)
रस धातु से लेकर शुक्र पर्यन्त सप्त धातुओ का जो उत्क
ृ ष्ट तेज रुप सार भाग होता हैं वह औज
कहलाता हैं उसी को बल भी कहते हैं ।
तत्र बलेन स्थिरोपदित माांसता सवव िेष्टा-स्वर-प्रदतघातः स्वर वर्व प्रसािो ब्राहानाम-
अभन्तरार्ाां ि करर्ानामात्म कायव प्रदतपदिभववदत । (सु. सू. १५/२५)
इस बल से माांस धातु स्थिर तिा पुष्ट होती हैं पुरुष सवय प्रकार क
े कार्ो को करने में समिय होता हैं
तिा उसका स्वर और वर्य प्रसन्न रहता हैं एवां ब्राहा और आभ्यान्तररक मन बुस्दि आदि कमय और
ज्ञानस्िर्ाां अपने -अपने कार्य को करने में उत्त्म रुप से प्रवृत रहती हैं ।
ओजः सोमात्मक
ां दिगधां शुक्लां शीतां स्थिरां सरम् । दवदवक्तां मृिु मृत्स्नां ि प्रार्-आयतनम्-
उिमम् ॥ ( सु. सू. १५/२६)
ओजः
2. प्राक
ृ तस्तु बलां श्लेष्मा दवक
ृ तो मल उच्यते। स िैवौजः स्मृतः काये स ि पाप्मोपदिश्यते ॥
(ि. सू. १७/११७)
ओज प्रकार -
थिान - हृिर् ( रक्त वह धमदनर्ा से सवय शरीर में वहन
१. पर ओज - हृिर् - अष्ट दबन्िु - नास से मृत्यु - प्रधान ओज।
२. अपर ओज - अधायन्जली - सवय शरीर व्यापी- नास से िुबयलता (कालान्तर से
मृत्यु भी) - मधुमेह में मूत्र मागय से इसी ओज का क्षर् होता हैं ।
ओज की दवक
ृ ती -
१. दवस्त्रांस
२. व्यापि
३. क्षर्
3. १. दवस्त्रांस:-
दवश्लेषसािौ गात्रार्ाां िोष-दवस्त्रांसनां श्रमः । अप्रािुयव दक्रयार्ाां ि बलदवस्त्रांस-लक्षर्ां ।
( सु. सू. १५)
• सांदधर्ो का दवश्लेष
• शरीर क
े अांगो में पीडा
• शरीर शौदिल्य
• वातादि िोषोां का अपने थिान से च्युत होना
• शरीररक, मानदशक एवां वादिक दक्रर्ाऔ का साम्यक न होना
• ज्ञानेस्िर्ो, कमेस्िर्ो, और मल मूत्र का , श्वास एवां रक्त, रस सांवहन का सम्यक न होना
4. २. व्यापि
गुरुतवां स्तब्धता-अड्गे.षु ग्लानी-वर्वस्य भेिनम् । तन्द्रा-दनन्द्रा वात-शोफो बल-व्यापदि
लक्षर्म् । ( सु. सू. १५)
• शरीर अांगो मे स्तब्धता
• शरीर अांगो में गौरव
• वादतक शोि
• िेह वर्य का बिलना
• ग्लादन, तिा, अदत दनिा
• दवदशष्ट रुप से शोि