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वैनगंगा �ेत्र में बसे �ित्रय पंवार(पोवार) क� गौरवगाथा
मालवा राजपुताना से नगरधन होकर वैनगंगा �ेत्र में आकर बसने वाले पोवारों का इितहास बह�त
ही गौरवशाली है। किठन चुनौितयों के बावजूद अपने अदम्य साहस और वीरता के साथ सैकड़ो वषोर्ं का
सफर अपनी पहचान और संस्कृित को बचाते ह�ए पूरा िकया है। छ�ीस �ित्रय कुलों के इस संघ ने अपने
�ित्रय धमर् का सदैव पालन िकया और आज भी इनके वंशजों के मुखमंडल से ही वैभवशाली अतीत के
दशर्न हो जाते है। मालवा में पंवार राजवंश ने सवर्श्रे� शासन िदया था। खुद को उज्जैन नरेश िवक्रमािदत्य
के वंशज मानने वाले पंवार(परमार) राजाओंिजसमें राजा उपेंद्र, राजा िशयाक, राजा मुंजदेव, राजा भोजदेव,
राजा उिदयािदत्य, राजा जगदेव पँवार, राजा महलकदेव आिद प्रमुख हैं, के द्वारा अपने महान कायोर्ं से �ित्रय
वंश क� ग�रमा को िशखर पर पंह�चा िदया था।
मालवा सिहत कई �ेत्रों पर मुिस्लमों के िनयंत्रण के बाद राजपूतों को अनेक संघषोर्ं का सामना
करना पड़ा और िफर हमारे पूवर्जों ने अनेक �ित्रयों के साथ अपने दुश्मनों से बदला लेने के िलये दूसरे
भारतीय राजाओंका सहयोग िकया था। इन्होंने मुगलों से भी संघषर् िकया और उन्हें बुंदेलखंड और देवगढ़
में मुगलों को िशकस्त दी थी। राजपूतों क� संयु� सेना िजसे िवदभर् में सयुं� �प से पंवार(पोवार) राजपूत
कहा गया, ने औरंगजेब क� शि�शाली सेना को भी िशकस्त देकर देवगढ़ राजा बुलंद बख्त का सहयोग
िकया था। बाद में इन्ही राजपूतों ने नागपुर के भोसले मराठाओंका भी सैन्य और प्रशासिनक सहयोग कर
उन्हें छ�ीसगढ़ से लेकर कटक और बंगाल तक जीतने में सहयोग िकया था।
अठारवीं शदी के शु�वात में नगरधन आकर बसे इन राजपूतों को इन स्थानीय राजाओंने अपने �ेत्र
में बसाने के िलए वैनगंगा के �ेत्र दे िदए साथ में सैिनक छावनी और िकलों का िनयंत्रण भी िदया। नगरधन,
आम्बागढ़, प्रतापगढ़, सानगढ़ी, रामपायली, लांजी आिद प्रमुख िकलों के िकलेदार और सैन्यबल के
िनयंत्रण क� िजम्मेदारी भी पोंवार राजपूतों को दी गयी। साथ में कई जागीरों के जागीरदार भी बनाये गए
िजनमें रोशना, ितरखेड़ी, चंदनपुर, महगांव, ितरोड़ा, तुमसर, देवगांव-कोथुरना, उगली-केवलारी, कामठा,
मेंढक�, धोबीसरार् आिद प्रमुख है।
कई िवचारकों ने वैनगंगा �ेत्र में बसे पंवार(पोवार) �ित्रयों को मुिस्लम आक्रमण के कारण भागकर
आया ह�आ बताया है जो क� पूरी तरह से गलत है। छ�ीस कुल का यह �ित्रय समूह औंरगजेब के िव�द्ध
संघषर् में देवगढ़ के राजा शाह बुलंद बख्त के िनवेदन पर मालवा, राजपुताना और बुंदेलखंड से सहयोग हेतु
इधर आये थे और सैन्य तथा प्रशासन में सहयोग करते ह�ए इधर ही बस गए थे। बाद में मराठा काल में सैन्य-
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प्रशासन में भी पोवारों क� महत्वपूणर् भूिमका रही थी। स्थानीय राजाओंने उन्हें इधर स्थाई �प से बसने के
िलए प्रे�रत िकया था इसीिलए ये पंवार राजपूत अपने प�रवार के साथ इधर आकर स्थायी �प से बस गए
थे। इन्होंने अपने प�रवार साथ लाये थे और वें छ�ीस कुलों के िविभन्न कुलों में ही िववाह िकया करते थे।
इसके पूवर् भी बुंदेलखंड सिहत राजपुताना के कई सैन्य अिभयान में ये सभी कुल एक साथ रहते थे इसीिलए
इनक� साझा संस्कृित और एक बोली िजसे पोवारी(पंवारी) कहा जाता है बोलते थे। आज भी पोवारी बोली
को िसफर् छ�ीस कुल के इन पोवारों के द्वारा बोला जाना इसका प्रमाण है क� यह बोली शिदयों से पोवारों
क� अपनी भाषा रही है।
कई िवचारकों ने वैनगंगा �ेत्र में आकर बसे पंवारों के गौरवशाली इितहास को ठीक से नहीं िलखा
या तोड़-मरोड़कर िलखा है िजसके कारण आज समाज अपने इस वैभवशाली इितहास को सही �प में नहीं
जान पाया है, जबिक समाज के गौरवशाली इितहास क� गाथा मराठा काल से लेकर िब्रिटश काल के अनेक
लेखों, दस्तावेजों और िकताबों में दजर् है।
राजपूतों क� गौरवगाथा से इितहास भरा पढ़ा है और इन्होंने अपनी पहचान और �ित्रय वैभव को
कभी भी नहीं खोया। महाराणा प्रताप, राजाभोजदेव, पृथ्वीराज चौहान और ऐसे ही हजारों �ित्रयों क�
गौरवगाथा िकसी से भी नहीं छुपी तो भला हमारे पुरखे अपनी पहचान को क्यों छुपाते। उन्होंने अपने मूल
वंशनाम और संस्कृित को कभी भी नहीं छोड़ा। वैनगंगा �ेत्र इनके िलए नया था और इस �ेत्र में बसने के
बाद अपने शौयर्, पराक्रम और मेहनत से इस �ेत्र को धन-धान्य से भर िदया। आज आवश्यकता इस बात
क� है क� अपने पूवर्जों के सही और गौरवशाली इितहास से समाज के हर सदस्य को अवगत कराया जाय
तािक वें अपने इस वैभवशाली इितहास और समृद्ध संस्कृित से प�रिचत हो सके और इससे प्रेरणा लेकर
वतर्मान को भी बेहतर बनाने हेतु पुरे मनोयोग से जुट जाए तथा वे अपने संस्कारों को आगे क� पीिढ़यों तक
ले जायेंगे।
लेखक : ऋिष िबसेन
�ित्रय पंवार(पोवार) समाजोत्थान संस्थान, बालाघाट

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वैनगंगा क्षेत्र में बसे क्षत्रिय पंवार(पोवार) की गौरवगाथा

  • 1. 1 वैनगंगा �ेत्र में बसे �ित्रय पंवार(पोवार) क� गौरवगाथा मालवा राजपुताना से नगरधन होकर वैनगंगा �ेत्र में आकर बसने वाले पोवारों का इितहास बह�त ही गौरवशाली है। किठन चुनौितयों के बावजूद अपने अदम्य साहस और वीरता के साथ सैकड़ो वषोर्ं का सफर अपनी पहचान और संस्कृित को बचाते ह�ए पूरा िकया है। छ�ीस �ित्रय कुलों के इस संघ ने अपने �ित्रय धमर् का सदैव पालन िकया और आज भी इनके वंशजों के मुखमंडल से ही वैभवशाली अतीत के दशर्न हो जाते है। मालवा में पंवार राजवंश ने सवर्श्रे� शासन िदया था। खुद को उज्जैन नरेश िवक्रमािदत्य के वंशज मानने वाले पंवार(परमार) राजाओंिजसमें राजा उपेंद्र, राजा िशयाक, राजा मुंजदेव, राजा भोजदेव, राजा उिदयािदत्य, राजा जगदेव पँवार, राजा महलकदेव आिद प्रमुख हैं, के द्वारा अपने महान कायोर्ं से �ित्रय वंश क� ग�रमा को िशखर पर पंह�चा िदया था। मालवा सिहत कई �ेत्रों पर मुिस्लमों के िनयंत्रण के बाद राजपूतों को अनेक संघषोर्ं का सामना करना पड़ा और िफर हमारे पूवर्जों ने अनेक �ित्रयों के साथ अपने दुश्मनों से बदला लेने के िलये दूसरे भारतीय राजाओंका सहयोग िकया था। इन्होंने मुगलों से भी संघषर् िकया और उन्हें बुंदेलखंड और देवगढ़ में मुगलों को िशकस्त दी थी। राजपूतों क� संयु� सेना िजसे िवदभर् में सयुं� �प से पंवार(पोवार) राजपूत कहा गया, ने औरंगजेब क� शि�शाली सेना को भी िशकस्त देकर देवगढ़ राजा बुलंद बख्त का सहयोग िकया था। बाद में इन्ही राजपूतों ने नागपुर के भोसले मराठाओंका भी सैन्य और प्रशासिनक सहयोग कर उन्हें छ�ीसगढ़ से लेकर कटक और बंगाल तक जीतने में सहयोग िकया था। अठारवीं शदी के शु�वात में नगरधन आकर बसे इन राजपूतों को इन स्थानीय राजाओंने अपने �ेत्र में बसाने के िलए वैनगंगा के �ेत्र दे िदए साथ में सैिनक छावनी और िकलों का िनयंत्रण भी िदया। नगरधन, आम्बागढ़, प्रतापगढ़, सानगढ़ी, रामपायली, लांजी आिद प्रमुख िकलों के िकलेदार और सैन्यबल के िनयंत्रण क� िजम्मेदारी भी पोंवार राजपूतों को दी गयी। साथ में कई जागीरों के जागीरदार भी बनाये गए िजनमें रोशना, ितरखेड़ी, चंदनपुर, महगांव, ितरोड़ा, तुमसर, देवगांव-कोथुरना, उगली-केवलारी, कामठा, मेंढक�, धोबीसरार् आिद प्रमुख है। कई िवचारकों ने वैनगंगा �ेत्र में बसे पंवार(पोवार) �ित्रयों को मुिस्लम आक्रमण के कारण भागकर आया ह�आ बताया है जो क� पूरी तरह से गलत है। छ�ीस कुल का यह �ित्रय समूह औंरगजेब के िव�द्ध संघषर् में देवगढ़ के राजा शाह बुलंद बख्त के िनवेदन पर मालवा, राजपुताना और बुंदेलखंड से सहयोग हेतु इधर आये थे और सैन्य तथा प्रशासन में सहयोग करते ह�ए इधर ही बस गए थे। बाद में मराठा काल में सैन्य-
  • 2. 2 प्रशासन में भी पोवारों क� महत्वपूणर् भूिमका रही थी। स्थानीय राजाओंने उन्हें इधर स्थाई �प से बसने के िलए प्रे�रत िकया था इसीिलए ये पंवार राजपूत अपने प�रवार के साथ इधर आकर स्थायी �प से बस गए थे। इन्होंने अपने प�रवार साथ लाये थे और वें छ�ीस कुलों के िविभन्न कुलों में ही िववाह िकया करते थे। इसके पूवर् भी बुंदेलखंड सिहत राजपुताना के कई सैन्य अिभयान में ये सभी कुल एक साथ रहते थे इसीिलए इनक� साझा संस्कृित और एक बोली िजसे पोवारी(पंवारी) कहा जाता है बोलते थे। आज भी पोवारी बोली को िसफर् छ�ीस कुल के इन पोवारों के द्वारा बोला जाना इसका प्रमाण है क� यह बोली शिदयों से पोवारों क� अपनी भाषा रही है। कई िवचारकों ने वैनगंगा �ेत्र में आकर बसे पंवारों के गौरवशाली इितहास को ठीक से नहीं िलखा या तोड़-मरोड़कर िलखा है िजसके कारण आज समाज अपने इस वैभवशाली इितहास को सही �प में नहीं जान पाया है, जबिक समाज के गौरवशाली इितहास क� गाथा मराठा काल से लेकर िब्रिटश काल के अनेक लेखों, दस्तावेजों और िकताबों में दजर् है। राजपूतों क� गौरवगाथा से इितहास भरा पढ़ा है और इन्होंने अपनी पहचान और �ित्रय वैभव को कभी भी नहीं खोया। महाराणा प्रताप, राजाभोजदेव, पृथ्वीराज चौहान और ऐसे ही हजारों �ित्रयों क� गौरवगाथा िकसी से भी नहीं छुपी तो भला हमारे पुरखे अपनी पहचान को क्यों छुपाते। उन्होंने अपने मूल वंशनाम और संस्कृित को कभी भी नहीं छोड़ा। वैनगंगा �ेत्र इनके िलए नया था और इस �ेत्र में बसने के बाद अपने शौयर्, पराक्रम और मेहनत से इस �ेत्र को धन-धान्य से भर िदया। आज आवश्यकता इस बात क� है क� अपने पूवर्जों के सही और गौरवशाली इितहास से समाज के हर सदस्य को अवगत कराया जाय तािक वें अपने इस वैभवशाली इितहास और समृद्ध संस्कृित से प�रिचत हो सके और इससे प्रेरणा लेकर वतर्मान को भी बेहतर बनाने हेतु पुरे मनोयोग से जुट जाए तथा वे अपने संस्कारों को आगे क� पीिढ़यों तक ले जायेंगे। लेखक : ऋिष िबसेन �ित्रय पंवार(पोवार) समाजोत्थान संस्थान, बालाघाट