2. संपादकीय.......
नोव्हेंबर मयना बहुत बातलक खास रव्हसे. एकतं ददवारीकी सुट्दिकी मज्या येनं मयनामा
ममलंसे. ठंडीको कडाका येनं मयनामा अनुभवनला ममलंसे. भारत देशका पयला पंतप्रधान पं. जवाहरलाल
नेहरू इनकी जयंती बालददवस मुहून मनायेव जासे. ददवारी सुट्दिको बाद शाळा सुरू होसेत. शाळामाबी
अलग माहोल रव्हंसे. दुसरो आंगं गाव खेळामा नवतरी सुरू रव्हंसे. जजतंउतं धान धनसीकी आवक जावक
सुरू रव्हंसे. एक अर्थलक चौफ
े र आनंदकी अनुभुती देनारो येव मयना.
येनच समयामा शाळा, इस्क
ू लकी शैक्षणिक सहल प्रेक्षणिय, ऐततहामसक, सांस्कृ तीक दठकाि
देखनला सहल काहाळेव जासेत. असो सहलमा ममलेव अनुभव िुरूपोिुनला भावी जजविकी मशदोरी बन
जासे. सहलमा ममल्या प्रत्यक्ष अनुभव अववस्मरिीय बनजासेत. ये अनुभव ववद्यार्ी दशामा ममलनो
जरूरीभी से. असो अनुभवसाती सब तयार रहेतच, मुहून आमरं बाल बाचकईनला शाळाक
ं अलग अलग
उपक्रसाती हाददथक शुभकामना!
झुंझुरकाको येव अंक तुमला सबला पसंद आयेच. तुमरी प्रततक्रक्रया आमंत्रित सेती.
- गुलाब त्रबसेन
संपादक - झुंझुरका पोवारी बाल ई मामसक
मो. नं. 9404235191
संपादक मंडल
श्री गुलाब त्रबसेन, संपादक
श्री रिदीप त्रबसने, उपसंपादक
श्री महेंद्रकु मार पिले, उपसंपादक
श्री महेंद्र रहांगडाले, उपसंपादक
श्री उमेन्द्द्र त्रबसेन, उपसंपादक
तनममथती
महेंद्र रहांगडाले
3. मंडई
गावगावमा मंडईक्रक आस रवसे
समाजशील मन वक्रक बाि देखसे।।
श्री पामलकचंद त्रबसने मसंदीपार (लाखनी)
िुरुपोिू आइमाई सजावसेत घर
बोलका होसेत सारा,चहलपहल गावभर
दंडार,नौिंकी,संगीत नािक मंडईला रवसे।।१।।
समाजशील मन वक्रक----
नवानवा णखलोना,गाडी मोिार फ
ु गा
मसंघाडा,जलेत्रब,डुपदि ना झगा
भाजीपालाक्रकत् एक लाइनच रवसे।।२।।
समाजशील मन वक्रक बाि देखसे
पावना रवसेत गावभर,वरकसेत एकमेकला
नातो जुळावसेत एकमेकसंग
एकता समाजला
होनहार िुरायकन, सबक्रक नजर रवसे।।३।।
समाजशील मन वक्रक, बाि देखसे
समाजजकरन होसे मनको, मंडई से साधन।
झुलो झुला,लेवो आनंद मंडई से सांस्कृततक धन।
मंडईलका आमरी, संस्कृती जजती रवसे।।४।।
समाजशील मन वक्रक बाि देखसे
नवोनवो धान खेतमा् लहऱ्या मारसे
क्रकसान वला देखस्यान मनमा् हाससे
समाजजकरन होसे मनको, मंडई से साधन।
झुलो झुला,लेवो आनंद मंडई से सांस्कृततक धन।
मंडईलका आमरी, संस्कृती जजती रवसे।।४।।
समाजशील मन वक्रक बाि देखसे
नवोनवो धान खेतमा् लहऱ्या मारसे
क्रकसान वला देखस्यान मनमा् हाससे
मंडईमा् दोस्तायसंग मस्त भज्या खासे।।५।।
समाजशील मन वक्रक बाि देखसे
मंडईमा् मायबोलीको मोठोच जागर होसे।
जेला नइ आव् ,वुत्रब बोलन लगसे।
मायबोलीलका पुरो गाव आपलोच लगसे।।६।।
समाजशील मन वक्रक बाि देखसे
4. तनसगथ
श्री पामलकचंद त्रबसने
मसंदीपार(लाखनी)
संत तुका ज्ञानोबा वु
बावकवीत्रब जंगलमाच!
अरण्यपुि रयेव बनमाच
सादहत्य आवसे वहानलकाच!।।
तनसगथ आमरी से माता
नोको करो वको दोहन।
बड वपपर पशु पाकरु
रवनदेव उनला खेलन।।
नोको कािो आंबा जांबुर
पवारी नाळ से वहान
भोजको भक्त नाहाय वु
जो करे खेतला त्रबरान।।
तनसगथ से शोभा धरतीक्रक
तनसगथ धरतीक्रक स्यान।
सारा जीव सेजन पुि
तनसगथ मोठो महान।।
क
े तरा जीव झाड सेती
मनमा त्रबचार आवसे।
वु कारागीर कसो रहे
वकोच ध्यान लगसे।।
तनसगथमा जो रहे
वक्रक प्रततभा फलेफ
ु ले
ववशालता वक्रक देकस्यानी
वाजल्मकी मनमा् आये खेले।।
संत तुका ज्ञानोबा वु
बावकवीत्रब जंगलमाच!
अरण्यपुि रयेव बनमाच
सादहत्य आवसे वहानलकाच!।।
तनसगथ आमरी से माता
नोको करो वको दोहन।
बड वपपर पशु पाकरु
रवनदेव उनला खेलन।।
5.
6. मोरो बालगनेशा
तोरी जय हो मोरो बालगनेशा,
देवजोस मोला येत्तो वरदान।
करम को पथ परा चल सक
ू ,
बनावजो मोला असो धममवान।
- श्री ऋवि त्रबसेन, बालाघाि
दुननया मा जासु सैर करन ला,
असो सपन ददस जासेत मोला।
रॉक
े ट होना जानलाई नवगृह,
धरकन संगमा मा देवा तोला।
दुननया का होहेत रोग ख़तम,
बनाय देहु मी असी मीठी दवा।
वैद्य बन् तुमरी ककरपा लक़,
कर देहु मी सबला सदा जवााँ।
ऊ
ं च नींच ला करबीन् खतम,
ऊभो करनोसे या नवी दुननया।
सबला ममलहे मनका खखलौना,
नयी रोहे इतन् कोनी मुननया।
सबला देव जीनुस सपन का,
बबनती सुन मोरी बाल गनेशा।
देवो प्रभु तुमही यव बरदान,
ऊ
ं च नींच ला करबीन् खतम,
ऊभो करनोसे या नवी दुननया।
सबला ममलहे मनका खखलौना,
नयी रोहे इतन् कोनी मुननया।
सबला देव जीनुस सपन का,
बबनती सुन मोरी बाल गनेशा।
देवो प्रभु तुमही यव बरदान,
तुमरो लकसे यव मोरी आशा।
7. ससा
क
े तरो गोरो गोरों सुंदर
जसो कापूस भरेव अंदर
जासू बात करन येको संग
िुनिुन परासे येव त्रबलंदर
सौ छाया सुरेंद्र पारधी
लहानसी पुस्िी जसो मखमल
गवत अना गाजर खासे लपलप
त्रबलाई क
ु िा सामने होसे धकधक
लुकाय जासे त्रबलमा ससा फिकन
लंबा कान जसा चम्पाका पान
लाललाल डोरा ददस पाचू समान
चलन को येको अलगच र्ाि
फ
ु दक फ
ु दक क्रफरसे सारो रान
िुरूपोिू को येव जजवलग खेला
ससा को मंग लगसे रोज मेला
िुनिुन परासे त्रबचारो तरतरा
चाबयाथ नाहाय सबको भेवं येला
ससा प्रकृतत को जीव अतत सुंदर
जंगल आय इनको असली घर
मारो नोकों, धरो नोकों इनला
खेलेती क
ु देती जगेत मनभर
8. पोवारी प्रश्नमंजुिा
ववषय- ददनववशेष
१) जागततक एड्स तनमूथलन ददवस कब्रव्से? 1 डडसेंम्बर
२) भारतीय नौसेना ददवस कब्रव्से? 4 डडसेंबर
३) जागततक ददव्यांग ददन कब्रव्से? 3 डडसेंबर
४) जागततक मानवी हक्क ददन कब्रव्से? 10 डडसेंबर
५) राष्ट्रीय मशक्षि ददन कब्रव्से? 11 नोव्हेंबर
६) राष्ट्रीय पिकाररता ददन कब्रव्से? 16 नोव्हेंबर
७) राष्ट्रीय एकात्मता ददन कब्रव्से? 19 नोव्हेंबर
८) मानमसक आरोग्य ददन कब्रव्से? 10 ऑक्िोबर
९) राष्ट्रीय एकात्मता ददन कब्रव्से? 20 ऑक्िोबर
१०) जागततक किथबधधर ददन कब्रव्से? 24 सप्िेंबर
संकलन- श्री महेंद्र रहांगडाले
9. झुंझुरका
भयी झुंझुरका
तनकलेव ददवस
आब रातकी
िाक देवो अवस
श्री शेिराव येळेकर
मसंदीपार
जमीन पर आया
सोनेरी क्रकरि
उठकन करकमल ला
जावो तुमी शरि
चहूबाजू पक्षींकी
गुंजसे क्रकलत्रबल
ताजी ताजी हवा मा
ताजो करो ददल
रांगोली अना सरा
आंगि की शोभा
शांत मशतल शोभसे
पररमंडल की आभा
प्रकृती झुंझुरका
रोज खोलसे रहस्य
आवन देव चेहरा पर
धचरस्र्ायी हास्य
10. *स्कू ल का ददवस*
****
स्क
ू ल का ददन होता
बहूतच यादगार।
असो लगसे आवता
लौटकर बारबार।।
श्री उमेंद्र युवराज त्रबसेन (प्रेरीत)
गोंददया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे)
पाटी, ककताब,कलम
होती दफ्तर की शान।
स्क
ू ल को मशक्षामा होतो
गुरूजीला मोठो मान।।
ज्ञान ववज्ञान को पाठ
ममलं स्क
ू ल मंददरमा।
मशस्त लगन बढीया
लग टुरूपोट्टूनमा।।
स्क
ू ल को आखरी तास
खेलक
ू द को अभ्यास।
खोखो कबड्डी को चल
मस्त सराव भी खास।।
याद आवसेत आता
स्क
ू ल का वय ददवस।
मज्जा मस्ती खेलक
ू द
नहीं आवत वापस।।
11. 🌷🌷🌷हाददथक अमभनंदन🌷🌷🌷
पोवारी को पयलो बालकर्ा संग्रह "खोपळीमाकी ददवारी"ला बालकु मार सादहत्य सभा
कोल्हापूरको २०२०-२१ को उत्कृ ष्ट्ठ बालसादहत्य तनममथती पुरस्कार जादहर भयेव. येक
ं साती
लेखक, झुंझुरका मामसकका संपादक गुलाबजी त्रबसेन इनको हाददथक अमभनंदन.......उनक
ं भावी
लेखन कायथसाती हाददथक शुभकामना!
संपादक मंडळ
झुंझुरका
12. कसो ना मुसोच ्
अजपासुन रामू की स्कू ल चालू होनकी होती।पर अज ओको पोटमा सकारपासुनच दुखत
होतो। आपलो आईंला घडी घडी
बुलावत होतो *"आई मोरो पोटमा कसो ना मुसोच लगसे।*
अजी रामू का बाबूजी देखो ना ,मी डॉक्टर ला बुलाई सेव।
रामू की आई भी मोठ्यानं चचंता मा होती.बाबूजी भी बीचारन बस्या कसो लगसे ,गुद्गुड
लगसे?, का मुडडा मारख्यान आवसे?, त रामू बस , कसो ना मुसोच लगसे की रट लगावत
रहेव.
वोत्तो माच डॉक्टर आया ना बीचारन बस्या .पर उनको काई समझ मा नहीं आयेव.
तब बाहर लक रामू को मास्तर जी की आवाज आई. रामू को बाबूजी न ऊनला अंदर बुलाईन.
तब मास्तर जी न भी रामू ला बीचाररन,पर ओको एकच उत्तर….*कसो ना मूसोच लगसे* तब
मास्तर जी को ध्यान मा आायेव, उनन रामू ला बीचारीन, तोरो गृह कायम भयेव का स्कू ल को
….. अना रामू घबरानेव,ना सांगीस,,,,,नहीं, नहीं पुरो नहीं भयेव….
मास्तर जी न सांचगन,रामू न छ
ु ट्टी को ददनमा मस्त खेलीस कु ददस,ना गृह कायम नहीं
करीस,,,, अज पासून स्कू ल चालू होनकी से …..मून भेव को माऱ्या एको पोटमा कसोना ना
मुसोचं लगण बसेवं…..सब हासण बस्या……
सौ. छाया सुरेंद्र पारधी