34. भारतेंदु युग क
े काव्य की प्रवृत्तियााँ (त्तवशेषताएाँ)
भारतेंदु युग ने ह िंदी कविता को रीततकाल क
े शिंगारपूर्ण और राज-आश्रय क
े िातािरर् से तनकाल
कर राष्ट्रप्रेम, समाज-सुधार आहद की स्िस्थ भािनाओिं से ओत-प्रेत कर उसे सामान्य जन से
जोड़ हदया।इस युग की काव्य प्रिवियााँ तनम्नानुसार ैं:-
1. देशप्रेम की व्यिंजना :अिंग्रेजों क
े दमन चक्र क
े आतिंक में इस युग क
े कवि प ले तो विदेशी
शासन का गुर्गान करते नजर आते ैं-
परम दुखमय ततममर जबै भारत में छायो,
तबह िं कपा करर ईश ब्रिहिश सूरज प्रकिायो॥
ककिं तु शीघ्र ी य प्रिवि जाती र ी।मननशील कवि समाज राष्ट्र की िास्तविक पुकार को शीघ्र ी
समझ गया और उसने स्िदेश प्रेम क
े गीत गाने प्रारम्भ कर हदए-
ब ुत हदन बीते राम, प्रभु खोयो अपनो देस।
खोित ै अब बैठ क
े , भाषा भोजन भेष ॥
(बालमुक
ु न्द गुप्त)
विदेशी िस्तुओिं क
े बह ष्ट्कार,ईश्िर से स्ितिंत्रता की प्राथणना आहद रूपों में भी य भािना व्यक्त
ुई।इस युग की राष्ट्रीयता सािंस्कततक राष्ट्रीयता ै, जजसमें ह िंदू राष्ट्रीयता का स्िर प्रधान ै।
35. देश-प्रेम की भािना क
े कारर् इन कवियों ने एक ओर तो अपने देश की अिनतत का िर्णन करक
े
आिंसू ब ाए तो दूसरी ओर अिंग्रेज सरकार की आलोचना करक
े देशिामसयों क
े मन में स्िराज्य की
भािना जगाई। अिंग्रेजों की क
ू िनीतत का पदाण फाश करते ुए भारतेंदु ररश्चिंद्र ने मलखा-
सत्रु सत्रु लड़िाइ दूर रह लखखय तमाशा।
प्रबल देखखए जाह ताह मममल दीजै आसा॥
इसी प्रकार जब काबुल पर अिंग्रेजों की विजय ोने पर भारत में हदिाली मनाई गई तो भारतेंदु ने
उसका विरोध करते ुए मलखा -
आर्ययण गनन कों ममल्यौ, जो अतत प्रफ
ु मलत गात।
सबै क त जै आजु क्यों, य नह िं जान्यौ जात॥
सुजस ममलै अिंग्रेज को, ोय रूस की रोक।
बढै ब्रिहिश िाखर्ज्य पै, मको क
े िल सोक॥
36. 2. सामाजजक चेतना और जन-काव्य : समाज-सुधार इस युग की कविता का प्रमुख स्िर
र ा।इन् ोंने ककसी राजा या आश्रयदाता को सिंतुष्ट्ि करने क
े मलए काव्य-रचना न ीिं की, बजल्क
अपने हृदय की प्रेरर्ा से जनता तक अपनी भािना प ुिंचाने क
े मलए काव्य रचना की।ये
कवि पराधीन भारत को जगाना चा ते थे, इसमलए समाज-सुधार क
े विमभन्न मुद्दों जैसे स्त्री-
मशक्षा,विधिा-वििा ,विदेश-यात्रा का प्रचार, समाज का आर्थणक उत्थान और समाज में एक दूसरे
की स ायता आहद को मुखररत ककया; यथा -
तनज धमण भली विर्ध जानैं, तनज गौरि को पह चानैं।
स्त्री-गर् को विद्या देिें, करर पततव्रता यज्ञ लेिैं ॥
(प्रताप नारायर् ममश्र)
े धतनयो क्या दीन जनों की नह िं सुनते ो ा ाकार।
जजसका मरे पड़ोसी भूखा, उसक
े भोजन को र्धक्कार॥
37. 3. भजक्त-भािना : इस युग क
े कवियों में भी भजक्त-भािना हदखाई पड़ती ै,लेककन इनकी भजक्त-
भािना का लक्ष्य अिश्य बदल गया।अब िे मुजक्त क
े मलए न ीिं, अवपतु देश-कल्यार् क
े मलए
भजक्त करते हदखाई देते ैं -
क ााँ करुर्ातनर्ध क
े शि सोए।
जगत नाह िं अनेक जतन करर भारतिासी रोए।
( भारतेंदु ररश्चिंद्र)
4.ह िंदू-सिंस्कतत से प्यार: वपछले युगों की प्रततकक्रया स्िरूप इस युग क
े कवि-मानस में अपनी
सिंस्कतत क
े अनुराग का भाि जाग उठा। यथा -
सदा रखें दृढ ह य माँ तनज सााँचा ह न्दूपन।
घोर विपत ूाँ परे हदगै नह िं आन और मन ॥
(बालमुक
ु न्द गुप्त)
38. 5. प्राचीनता और निीनता का समन्िय: इन कवियों ने एक ओर तो ह िंदी-काव्य की पुरानी
परम्परा क
े सुिंदर रूप को अपनाया, तो दूसरी ओर नयी परम्परा की स्थापना की। इन कवियों क
े
मलए प्राचीनता ििंदनीय थी तो निीनता अमभनिंदनीय।अत: ये प्राचीनता और निीनता का समन्िय
अपनी रचनाओिं में करते र े।भारतेंदु अपनी "प्रबोर्धनी" शीषणक कविता में "प्रभाती" क
े रूप में
प्राचीन पररपािी क
े अनुसार कष्ट्र् को जगाते ैं और निीनता का अमभनिंदन करते ुए उसमें
राष्ट्रीयता का समन्िय करक
े क ते ैं :-
डूबत भारत नाथ बेर्ग जागो अब जागो.
6. तनज भाषा प्रेम : इस काल क
े कवियों ने अिंग्रेजों क
े प्रतत विद्रो क
े रूप में ह िंदी-प्रचार को
विशेष म त्त्ि हदया और क ा -
क) तनज-भाषा उन्नतत अ ै, सब उन्नतत को मूल।
(भारतेंदु)
ख) जपो तनरिंतर एक जबान, ह िंदी,ह िंदू, ह िंदुस्तान।
(प्रताप नारायर् ममश्र)
यद्यवप इस काल का अर्धकतर साह त्य िजभाषा में ी ै, ककिं तु इन कवियों ने िजभाषा को भी
सरल और सुव्यिजस्थत बनाने का प्रयास ककया।खड़ी बोली में भी क
ु छ रचनाएाँ की गई, ककिं तु िे
कथात्मकता और रुक्षता से युक्त ैं।
39. 7. शिंगार और सौंदयण िर्णन : इस युग क
े कवियों ने सौंदयण और प्रेम का िर्णन भी ककया ै,ककिं तु
उसमें क ीिं भी कामुकता और िासना का रिंग हदखाई न ीिं पड़ता।इनक
े प्रेम-िर्णन में सिणत्र
स्िच्छता एििं गिंभीरता ै। भारतेंदु ररश्चिंद्र क
े काव्य से एक उदा रर् दृष्ट्िव्य ै:-
म कौन उपाय करै इनको ररचन्द म ा ठ ठानती ैं।
वपय प्यारे तत ारे तन ारे ब्रबना अाँककयााँ दुखखयााँ नह िं मानती ैं॥
8. ास्य-व्यिंग्य: भारतेंदु ररश्चिंद्र एििं उनक
े स योगी कवियों ने ास्य-व्यिंग्य की प्रिवि भी ममलती
ै। उन् ोंने अपने समय की विमभन्न बुराइयों पर व्यिंग्य-बार् छोड़े ैं। भारतेंदु की कविता से दो
उदा रर् प्रस्तुत ैं:-
क) भीतर भीतर सब रस चूसै
िंमस- िंमस क
ै तन-मन-धन मूसै
जाह र बातन में अतत तेज,
क्यों सखख सज्जन नह िं अिंगरेज॥
ख) इनकी उनकी खखदमत करो,
रुपया देते-देते मरो ।
तब आिैं मोह िं करन खराब,
क्यों सखख सज्जन न ीिं खखताब॥
40. 9. प्रकतत-र्चत्रर् : इस युग क
े कवियों ने पूिणिती युगों की अपेक्षा प्रकतत क
े स्ितिंत्र रुपों का
विशेष र्चत्रर् ककया ै। भारतेंदु क
े "गिंगा-िर्णन" और "यमुना-िर्णन" इसक
े तनदशणन ैं। ठाक
ु र
जगमो न मसिं क
े स्ितिंत्र प्रकतत क
े िर्णन भी उत्कष्ट्ि बन पड़े ैं। प्रकतत क
े उद्दीपन रूपों का
िर्णन भी इस काल की प्रिवि क
े रूप जीवित र ा।
10. रस : इस काल में शिंगार, िीर और करुर् रसों की अमभव्यजक्त की प्रिवि प्रबल र ी, ककिं तु
इस काल का शिंगार रीततकाल क
े शिंगार जैसा नग्न शिंगार न ोकर पररष्ट्कत रुर्च का शिंगार
ै।देश की दयनीय दशा क
े र्चत्रर् में करुर् रस प्रधान र ा ै।
11. भाषा और काव्य-रूप : इन कवियों ने कविता में प्राय: सरल िजभाषा तथा मुक्तक शैली का
ी प्रयोग अर्धक ककया।ये कवि पद्य तक ी सीममत न ीिं र े बजल्क गद्यकार भी बने। इन् ोंने
अपनी कलम तनबिंध, उपन्यास और नािक क
े क्षेत्र में भी चलाई। इस काल क
े कवि मिंडल में
कवि न क
े िल कवि था बजल्क ि सिंपादक और पत्रकार भी था।
इस प्रकार भारतेंदु-युग साह त्य क
े नि जागरर् का युग था, जजसमें शताजददयों से सोये
ुए भारत ने अपनी आाँखें खोलकर अिंगड़ाई ली और कविता को राजम लों से तनकालकर जनता
से उसका नाता जोड़ा।उसे कब्रत्रमता से मुक्त कर स्िाभाविक बनाया,शिंगार को पररमाजजणत रूप
प्रदान ककया और कविता क
े पथ को प्रशस्त ककया।भारतेंदु और उनक
े स योगी लेखकों क
े
साह त्य में जजन नये विषयों का समािेश ुआ ,उसने आधुतनक काल की प्रिवियों को जन्म
हदया। इस प्रकार भारतेंदु युग आधुतनक युग का प्रिेश द्िार मसद्ध ोता ै।