SlideShare a Scribd company logo
1 of 41
भारतेंदु युग क
े काव्य की प्रवृत्तियााँ (त्तवशेषताएाँ)
भारतेंदु युग ने ह िंदी कविता को रीततकाल क
े शिंगारपूर्ण और राज-आश्रय क
े िातािरर् से तनकाल
कर राष्ट्रप्रेम, समाज-सुधार आहद की स्िस्थ भािनाओिं से ओत-प्रेत कर उसे सामान्य जन से
जोड़ हदया।इस युग की काव्य प्रिवियााँ तनम्नानुसार ैं:-
1. देशप्रेम की व्यिंजना :अिंग्रेजों क
े दमन चक्र क
े आतिंक में इस युग क
े कवि प ले तो विदेशी
शासन का गुर्गान करते नजर आते ैं-
परम दुखमय ततममर जबै भारत में छायो,
तबह िं कपा करर ईश ब्रिहिश सूरज प्रकिायो॥
ककिं तु शीघ्र ी य प्रिवि जाती र ी।मननशील कवि समाज राष्ट्र की िास्तविक पुकार को शीघ्र ी
समझ गया और उसने स्िदेश प्रेम क
े गीत गाने प्रारम्भ कर हदए-
ब ुत हदन बीते राम, प्रभु खोयो अपनो देस।
खोित ै अब बैठ क
े , भाषा भोजन भेष ॥
(बालमुक
ु न्द गुप्त)
विदेशी िस्तुओिं क
े बह ष्ट्कार,ईश्िर से स्ितिंत्रता की प्राथणना आहद रूपों में भी य भािना व्यक्त
ुई।इस युग की राष्ट्रीयता सािंस्कततक राष्ट्रीयता ै, जजसमें ह िंदू राष्ट्रीयता का स्िर प्रधान ै।
देश-प्रेम की भािना क
े कारर् इन कवियों ने एक ओर तो अपने देश की अिनतत का िर्णन करक
े
आिंसू ब ाए तो दूसरी ओर अिंग्रेज सरकार की आलोचना करक
े देशिामसयों क
े मन में स्िराज्य की
भािना जगाई। अिंग्रेजों की क
ू िनीतत का पदाण फाश करते ुए भारतेंदु ररश्चिंद्र ने मलखा-
सत्रु सत्रु लड़िाइ दूर रह लखखय तमाशा।
प्रबल देखखए जाह ताह मममल दीजै आसा॥
इसी प्रकार जब काबुल पर अिंग्रेजों की विजय ोने पर भारत में हदिाली मनाई गई तो भारतेंदु ने
उसका विरोध करते ुए मलखा -
आर्ययण गनन कों ममल्यौ, जो अतत प्रफ
ु मलत गात।
सबै क त जै आजु क्यों, य नह िं जान्यौ जात॥
सुजस ममलै अिंग्रेज को, ोय रूस की रोक।
बढै ब्रिहिश िाखर्ज्य पै, मको क
े िल सोक॥
2. सामाजजक चेतना और जन-काव्य : समाज-सुधार इस युग की कविता का प्रमुख स्िर
र ा।इन् ोंने ककसी राजा या आश्रयदाता को सिंतुष्ट्ि करने क
े मलए काव्य-रचना न ीिं की, बजल्क
अपने हृदय की प्रेरर्ा से जनता तक अपनी भािना प ुिंचाने क
े मलए काव्य रचना की।ये
कवि पराधीन भारत को जगाना चा ते थे, इसमलए समाज-सुधार क
े विमभन्न मुद्दों जैसे स्त्री-
मशक्षा,विधिा-वििा ,विदेश-यात्रा का प्रचार, समाज का आर्थणक उत्थान और समाज में एक दूसरे
की स ायता आहद को मुखररत ककया; यथा -
तनज धमण भली विर्ध जानैं, तनज गौरि को पह चानैं।
स्त्री-गर् को विद्या देिें, करर पततव्रता यज्ञ लेिैं ॥
(प्रताप नारायर् ममश्र)
े धतनयो क्या दीन जनों की नह िं सुनते ो ा ाकार।
जजसका मरे पड़ोसी भूखा, उसक
े भोजन को र्धक्कार॥
3. भजक्त-भािना : इस युग क
े कवियों में भी भजक्त-भािना हदखाई पड़ती ै,लेककन इनकी भजक्त-
भािना का लक्ष्य अिश्य बदल गया।अब िे मुजक्त क
े मलए न ीिं, अवपतु देश-कल्यार् क
े मलए
भजक्त करते हदखाई देते ैं -
क ााँ करुर्ातनर्ध क
े शि सोए।
जगत नाह िं अनेक जतन करर भारतिासी रोए।
( भारतेंदु ररश्चिंद्र)
4.ह िंदू-सिंस्कतत से प्यार: वपछले युगों की प्रततकक्रया स्िरूप इस युग क
े कवि-मानस में अपनी
सिंस्कतत क
े अनुराग का भाि जाग उठा। यथा -
सदा रखें दृढ ह य माँ तनज सााँचा ह न्दूपन।
घोर विपत ूाँ परे हदगै नह िं आन और मन ॥
(बालमुक
ु न्द गुप्त)
5. प्राचीनता और निीनता का समन्िय: इन कवियों ने एक ओर तो ह िंदी-काव्य की पुरानी
परम्परा क
े सुिंदर रूप को अपनाया, तो दूसरी ओर नयी परम्परा की स्थापना की। इन कवियों क
े
मलए प्राचीनता ििंदनीय थी तो निीनता अमभनिंदनीय।अत: ये प्राचीनता और निीनता का समन्िय
अपनी रचनाओिं में करते र े।भारतेंदु अपनी "प्रबोर्धनी" शीषणक कविता में "प्रभाती" क
े रूप में
प्राचीन पररपािी क
े अनुसार कष्ट्र् को जगाते ैं और निीनता का अमभनिंदन करते ुए उसमें
राष्ट्रीयता का समन्िय करक
े क ते ैं :-
डूबत भारत नाथ बेर्ग जागो अब जागो.
6. तनज भाषा प्रेम : इस काल क
े कवियों ने अिंग्रेजों क
े प्रतत विद्रो क
े रूप में ह िंदी-प्रचार को
विशेष म त्त्ि हदया और क ा -
क) तनज-भाषा उन्नतत अ ै, सब उन्नतत को मूल।
(भारतेंदु)
ख) जपो तनरिंतर एक जबान, ह िंदी,ह िंदू, ह िंदुस्तान।
(प्रताप नारायर् ममश्र)
यद्यवप इस काल का अर्धकतर साह त्य िजभाषा में ी ै, ककिं तु इन कवियों ने िजभाषा को भी
सरल और सुव्यिजस्थत बनाने का प्रयास ककया।खड़ी बोली में भी क
ु छ रचनाएाँ की गई, ककिं तु िे
कथात्मकता और रुक्षता से युक्त ैं।
7. शिंगार और सौंदयण िर्णन : इस युग क
े कवियों ने सौंदयण और प्रेम का िर्णन भी ककया ै,ककिं तु
उसमें क ीिं भी कामुकता और िासना का रिंग हदखाई न ीिं पड़ता।इनक
े प्रेम-िर्णन में सिणत्र
स्िच्छता एििं गिंभीरता ै। भारतेंदु ररश्चिंद्र क
े काव्य से एक उदा रर् दृष्ट्िव्य ै:-
म कौन उपाय करै इनको ररचन्द म ा ठ ठानती ैं।
वपय प्यारे तत ारे तन ारे ब्रबना अाँककयााँ दुखखयााँ नह िं मानती ैं॥
8. ास्य-व्यिंग्य: भारतेंदु ररश्चिंद्र एििं उनक
े स योगी कवियों ने ास्य-व्यिंग्य की प्रिवि भी ममलती
ै। उन् ोंने अपने समय की विमभन्न बुराइयों पर व्यिंग्य-बार् छोड़े ैं। भारतेंदु की कविता से दो
उदा रर् प्रस्तुत ैं:-
क) भीतर भीतर सब रस चूसै
िंमस- िंमस क
ै तन-मन-धन मूसै
जाह र बातन में अतत तेज,
क्यों सखख सज्जन नह िं अिंगरेज॥
ख) इनकी उनकी खखदमत करो,
रुपया देते-देते मरो ।
तब आिैं मोह िं करन खराब,
क्यों सखख सज्जन न ीिं खखताब॥
9. प्रकतत-र्चत्रर् : इस युग क
े कवियों ने पूिणिती युगों की अपेक्षा प्रकतत क
े स्ितिंत्र रुपों का
विशेष र्चत्रर् ककया ै। भारतेंदु क
े "गिंगा-िर्णन" और "यमुना-िर्णन" इसक
े तनदशणन ैं। ठाक
ु र
जगमो न मसिं क
े स्ितिंत्र प्रकतत क
े िर्णन भी उत्कष्ट्ि बन पड़े ैं। प्रकतत क
े उद्दीपन रूपों का
िर्णन भी इस काल की प्रिवि क
े रूप जीवित र ा।
10. रस : इस काल में शिंगार, िीर और करुर् रसों की अमभव्यजक्त की प्रिवि प्रबल र ी, ककिं तु
इस काल का शिंगार रीततकाल क
े शिंगार जैसा नग्न शिंगार न ोकर पररष्ट्कत रुर्च का शिंगार
ै।देश की दयनीय दशा क
े र्चत्रर् में करुर् रस प्रधान र ा ै।
11. भाषा और काव्य-रूप : इन कवियों ने कविता में प्राय: सरल िजभाषा तथा मुक्तक शैली का
ी प्रयोग अर्धक ककया।ये कवि पद्य तक ी सीममत न ीिं र े बजल्क गद्यकार भी बने। इन् ोंने
अपनी कलम तनबिंध, उपन्यास और नािक क
े क्षेत्र में भी चलाई। इस काल क
े कवि मिंडल में
कवि न क
े िल कवि था बजल्क ि सिंपादक और पत्रकार भी था।
इस प्रकार भारतेंदु-युग साह त्य क
े नि जागरर् का युग था, जजसमें शताजददयों से सोये
ुए भारत ने अपनी आाँखें खोलकर अिंगड़ाई ली और कविता को राजम लों से तनकालकर जनता
से उसका नाता जोड़ा।उसे कब्रत्रमता से मुक्त कर स्िाभाविक बनाया,शिंगार को पररमाजजणत रूप
प्रदान ककया और कविता क
े पथ को प्रशस्त ककया।भारतेंदु और उनक
े स योगी लेखकों क
े
साह त्य में जजन नये विषयों का समािेश ुआ ,उसने आधुतनक काल की प्रिवियों को जन्म
हदया। इस प्रकार भारतेंदु युग आधुतनक युग का प्रिेश द्िार मसद्ध ोता ै।
भारतेन्दु कालीन विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए.pptx

More Related Content

What's hot

What's hot (20)

Meera bhai
Meera bhaiMeera bhai
Meera bhai
 
Difference between Shwetamber and Digambar Sects
Difference between Shwetamber and Digambar SectsDifference between Shwetamber and Digambar Sects
Difference between Shwetamber and Digambar Sects
 
Buddhist Councils
Buddhist CouncilsBuddhist Councils
Buddhist Councils
 
सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय
 
Panchdevopasana
PanchdevopasanaPanchdevopasana
Panchdevopasana
 
Prehistoric economy
Prehistoric economy Prehistoric economy
Prehistoric economy
 
ganpatya.pdf
ganpatya.pdfganpatya.pdf
ganpatya.pdf
 
Economic progress in mauryan period
Economic progress in mauryan period Economic progress in mauryan period
Economic progress in mauryan period
 
Avatarvad
AvatarvadAvatarvad
Avatarvad
 
व्रत एवं दान
व्रत एवं दान व्रत एवं दान
व्रत एवं दान
 
Early Medieval Economy.pdf
Early Medieval Economy.pdfEarly Medieval Economy.pdf
Early Medieval Economy.pdf
 
Vedic economy
Vedic economyVedic economy
Vedic economy
 
प्रयाग तीर्थ
प्रयाग तीर्थ प्रयाग तीर्थ
प्रयाग तीर्थ
 
Difference between Shwetamber and Digambar Sects (Updated)
Difference between Shwetamber and Digambar Sects (Updated)Difference between Shwetamber and Digambar Sects (Updated)
Difference between Shwetamber and Digambar Sects (Updated)
 
Concept of aatma and bramha
Concept of aatma and bramhaConcept of aatma and bramha
Concept of aatma and bramha
 
Meaning and aim and objectives of marriage in Ancient India
Meaning and aim and objectives of marriage in Ancient IndiaMeaning and aim and objectives of marriage in Ancient India
Meaning and aim and objectives of marriage in Ancient India
 
Later vedic religion
Later vedic religion Later vedic religion
Later vedic religion
 
Avatarvaada
AvatarvaadaAvatarvaada
Avatarvaada
 
shaiva pdf.pdf
shaiva pdf.pdfshaiva pdf.pdf
shaiva pdf.pdf
 
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptxDifference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
Difference between Shwetamber and Digambar Sects.pptx
 

Similar to भारतेन्दु कालीन विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए.pptx

1704 Prof Ramesh vasuniya ppt.pdf
1704 Prof Ramesh vasuniya ppt.pdf1704 Prof Ramesh vasuniya ppt.pdf
1704 Prof Ramesh vasuniya ppt.pdfVikasVikas97
 
Munshi premchand ppt by satish
Munshi premchand ppt by  satishMunshi premchand ppt by  satish
Munshi premchand ppt by satishsatiishrao
 
प्रश्न 1. सूफी काव्य की विशेषताएँ को स्पस्ट् कीजिए.pptx
प्रश्न 1. सूफी काव्य की विशेषताएँ को स्पस्ट् कीजिए.pptxप्रश्न 1. सूफी काव्य की विशेषताएँ को स्पस्ट् कीजिए.pptx
प्रश्न 1. सूफी काव्य की विशेषताएँ को स्पस्ट् कीजिए.pptxUdhavBhandare
 
Rabindranath Tagore
Rabindranath TagoreRabindranath Tagore
Rabindranath TagoreTHILLU007
 
प्रेमचंद
प्रेमचंद प्रेमचंद
प्रेमचंद Simran Saini
 
Mahadevi Varma in hindi
Mahadevi Varma in hindiMahadevi Varma in hindi
Mahadevi Varma in hindiRamki M
 
रविंदर नाथ ठाकुर PPT
रविंदर नाथ ठाकुर   PPTरविंदर नाथ ठाकुर   PPT
रविंदर नाथ ठाकुर PPTDSZHSGHDSYGSBH
 
हिंदी भाषा का स्वरुप। (कालखंड की दृष्टीसे )आदिकाल,मध्यकाल, आधुनिककाल ।
हिंदी भाषा का स्वरुप।  (कालखंड की दृष्टीसे )आदिकाल,मध्यकाल, आधुनिककाल । हिंदी भाषा का स्वरुप।  (कालखंड की दृष्टीसे )आदिकाल,मध्यकाल, आधुनिककाल ।
हिंदी भाषा का स्वरुप। (कालखंड की दृष्टीसे )आदिकाल,मध्यकाल, आधुनिककाल । Dr.Amol Ubale
 
हिन्दु
हिन्दुहिन्दु
हिन्दुchikitsak
 
SHIVNA SAHITYIKI JANUARY MARCH 2023.pdf
SHIVNA SAHITYIKI JANUARY MARCH 2023.pdfSHIVNA SAHITYIKI JANUARY MARCH 2023.pdf
SHIVNA SAHITYIKI JANUARY MARCH 2023.pdfShivna Prakashan
 
Random 141001114917-phpapp02
Random 141001114917-phpapp02Random 141001114917-phpapp02
Random 141001114917-phpapp02akcsigma
 
आधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँ
आधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँआधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँ
आधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँKnowittoday
 
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसादजयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसादArushi Tyagi
 
Poets from Chhattisgarh in Hindi!!!!
Poets from Chhattisgarh in Hindi!!!!Poets from Chhattisgarh in Hindi!!!!
Poets from Chhattisgarh in Hindi!!!!SHLOKKHANDELWAL3
 
ek kutta or ek maina
ek kutta or ek mainaek kutta or ek maina
ek kutta or ek mainaPurav77
 
ajay hindi project.pptx
ajay hindi project.pptxajay hindi project.pptx
ajay hindi project.pptxManishNeopane
 
ramdhari sinh dinkar
ramdhari sinh dinkarramdhari sinh dinkar
ramdhari sinh dinkarrazeen001
 

Similar to भारतेन्दु कालीन विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए.pptx (20)

1704 Prof Ramesh vasuniya ppt.pdf
1704 Prof Ramesh vasuniya ppt.pdf1704 Prof Ramesh vasuniya ppt.pdf
1704 Prof Ramesh vasuniya ppt.pdf
 
Munshi premchand ppt by satish
Munshi premchand ppt by  satishMunshi premchand ppt by  satish
Munshi premchand ppt by satish
 
प्रश्न 1. सूफी काव्य की विशेषताएँ को स्पस्ट् कीजिए.pptx
प्रश्न 1. सूफी काव्य की विशेषताएँ को स्पस्ट् कीजिए.pptxप्रश्न 1. सूफी काव्य की विशेषताएँ को स्पस्ट् कीजिए.pptx
प्रश्न 1. सूफी काव्य की विशेषताएँ को स्पस्ट् कीजिए.pptx
 
Rabindranath Tagore
Rabindranath TagoreRabindranath Tagore
Rabindranath Tagore
 
प्रेमचंद
प्रेमचंद प्रेमचंद
प्रेमचंद
 
Bahd 06-block-04 (1)
Bahd 06-block-04 (1)Bahd 06-block-04 (1)
Bahd 06-block-04 (1)
 
Mahadevi Varma in hindi
Mahadevi Varma in hindiMahadevi Varma in hindi
Mahadevi Varma in hindi
 
रविंदर नाथ ठाकुर PPT
रविंदर नाथ ठाकुर   PPTरविंदर नाथ ठाकुर   PPT
रविंदर नाथ ठाकुर PPT
 
हिंदी भाषा का स्वरुप। (कालखंड की दृष्टीसे )आदिकाल,मध्यकाल, आधुनिककाल ।
हिंदी भाषा का स्वरुप।  (कालखंड की दृष्टीसे )आदिकाल,मध्यकाल, आधुनिककाल । हिंदी भाषा का स्वरुप।  (कालखंड की दृष्टीसे )आदिकाल,मध्यकाल, आधुनिककाल ।
हिंदी भाषा का स्वरुप। (कालखंड की दृष्टीसे )आदिकाल,मध्यकाल, आधुनिककाल ।
 
हिन्दु
हिन्दुहिन्दु
हिन्दु
 
Gajazal.docx
Gajazal.docxGajazal.docx
Gajazal.docx
 
SHIVNA SAHITYIKI JANUARY MARCH 2023.pdf
SHIVNA SAHITYIKI JANUARY MARCH 2023.pdfSHIVNA SAHITYIKI JANUARY MARCH 2023.pdf
SHIVNA SAHITYIKI JANUARY MARCH 2023.pdf
 
Random 141001114917-phpapp02
Random 141001114917-phpapp02Random 141001114917-phpapp02
Random 141001114917-phpapp02
 
आधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँ
आधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँआधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँ
आधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँ
 
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसादजयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद
 
Romantism
RomantismRomantism
Romantism
 
Poets from Chhattisgarh in Hindi!!!!
Poets from Chhattisgarh in Hindi!!!!Poets from Chhattisgarh in Hindi!!!!
Poets from Chhattisgarh in Hindi!!!!
 
ek kutta or ek maina
ek kutta or ek mainaek kutta or ek maina
ek kutta or ek maina
 
ajay hindi project.pptx
ajay hindi project.pptxajay hindi project.pptx
ajay hindi project.pptx
 
ramdhari sinh dinkar
ramdhari sinh dinkarramdhari sinh dinkar
ramdhari sinh dinkar
 

More from UdhavBhandare

नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdf
नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdfनाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdf
नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdfUdhavBhandare
 
आत्मकथा का उद्भव एवं विकास.pdf
आत्मकथा का उद्भव एवं विकास.pdfआत्मकथा का उद्भव एवं विकास.pdf
आत्मकथा का उद्भव एवं विकास.pdfUdhavBhandare
 
नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdf
नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdfनाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdf
नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdfUdhavBhandare
 
इकाई-4-अलंकार.pptx
इकाई-4-अलंकार.pptxइकाई-4-अलंकार.pptx
इकाई-4-अलंकार.pptxUdhavBhandare
 
इकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptxइकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptxUdhavBhandare
 
इकाई - १ -शबदशक्ति.pptx
इकाई - १ -शबदशक्ति.pptxइकाई - १ -शबदशक्ति.pptx
इकाई - १ -शबदशक्ति.pptxUdhavBhandare
 
निबन्ध अर्थ स्वरूप एवं सामान्य विशेषताएं.docx
निबन्ध अर्थ स्वरूप एवं सामान्य विशेषताएं.docxनिबन्ध अर्थ स्वरूप एवं सामान्य विशेषताएं.docx
निबन्ध अर्थ स्वरूप एवं सामान्य विशेषताएं.docxUdhavBhandare
 
हिन्दी साहित्य के हेतु.pptx
हिन्दी साहित्य के हेतु.pptxहिन्दी साहित्य के हेतु.pptx
हिन्दी साहित्य के हेतु.pptxUdhavBhandare
 
हिन्दी साहित्य के हेतु.pdf
हिन्दी साहित्य के हेतु.pdfहिन्दी साहित्य के हेतु.pdf
हिन्दी साहित्य के हेतु.pdfUdhavBhandare
 
साहित्या के प्रयोजण.pptx
साहित्या के प्रयोजण.pptxसाहित्या के प्रयोजण.pptx
साहित्या के प्रयोजण.pptxUdhavBhandare
 
साहित्या के प्रयोजण.pdf
साहित्या के प्रयोजण.pdfसाहित्या के प्रयोजण.pdf
साहित्या के प्रयोजण.pdfUdhavBhandare
 
साहित्य के तत्व.pptx
साहित्य के तत्व.pptxसाहित्य के तत्व.pptx
साहित्य के तत्व.pptxUdhavBhandare
 
साहित्य के तत्व.pdf
साहित्य के तत्व.pdfसाहित्य के तत्व.pdf
साहित्य के तत्व.pdfUdhavBhandare
 
साहित्य कि पारिभाषा एव् स्वरुप.pptx
साहित्य कि पारिभाषा एव् स्वरुप.pptxसाहित्य कि पारिभाषा एव् स्वरुप.pptx
साहित्य कि पारिभाषा एव् स्वरुप.pptxUdhavBhandare
 
मुक्तक काव्य.pptx
मुक्तक काव्य.pptxमुक्तक काव्य.pptx
मुक्तक काव्य.pptxUdhavBhandare
 
महाकाव्य.pptx
महाकाव्य.pptxमहाकाव्य.pptx
महाकाव्य.pptxUdhavBhandare
 
छंद का सामान्य परिचय
छंद का सामान्य परिचय छंद का सामान्य परिचय
छंद का सामान्य परिचय UdhavBhandare
 
गीतिकाव्य.pptx
गीतिकाव्य.pptxगीतिकाव्य.pptx
गीतिकाव्य.pptxUdhavBhandare
 

More from UdhavBhandare (20)

नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdf
नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdfनाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdf
नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdf
 
आत्मकथा का उद्भव एवं विकास.pdf
आत्मकथा का उद्भव एवं विकास.pdfआत्मकथा का उद्भव एवं विकास.pdf
आत्मकथा का उद्भव एवं विकास.pdf
 
नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdf
नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdfनाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdf
नाटक के तत्व पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार.pdf
 
इकाई-4-अलंकार.pptx
इकाई-4-अलंकार.pptxइकाई-4-अलंकार.pptx
इकाई-4-अलंकार.pptx
 
इकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptxइकाई -३ रस.pptx
इकाई -३ रस.pptx
 
इकाई - १ -शबदशक्ति.pptx
इकाई - १ -शबदशक्ति.pptxइकाई - १ -शबदशक्ति.pptx
इकाई - १ -शबदशक्ति.pptx
 
निबन्ध अर्थ स्वरूप एवं सामान्य विशेषताएं.docx
निबन्ध अर्थ स्वरूप एवं सामान्य विशेषताएं.docxनिबन्ध अर्थ स्वरूप एवं सामान्य विशेषताएं.docx
निबन्ध अर्थ स्वरूप एवं सामान्य विशेषताएं.docx
 
हिन्दी साहित्य के हेतु.pptx
हिन्दी साहित्य के हेतु.pptxहिन्दी साहित्य के हेतु.pptx
हिन्दी साहित्य के हेतु.pptx
 
हिन्दी साहित्य के हेतु.pdf
हिन्दी साहित्य के हेतु.pdfहिन्दी साहित्य के हेतु.pdf
हिन्दी साहित्य के हेतु.pdf
 
साहित्या के प्रयोजण.pptx
साहित्या के प्रयोजण.pptxसाहित्या के प्रयोजण.pptx
साहित्या के प्रयोजण.pptx
 
साहित्या के प्रयोजण.pdf
साहित्या के प्रयोजण.pdfसाहित्या के प्रयोजण.pdf
साहित्या के प्रयोजण.pdf
 
साहित्य के तत्व.pptx
साहित्य के तत्व.pptxसाहित्य के तत्व.pptx
साहित्य के तत्व.pptx
 
साहित्य के तत्व.pdf
साहित्य के तत्व.pdfसाहित्य के तत्व.pdf
साहित्य के तत्व.pdf
 
साहित्य कि पारिभाषा एव् स्वरुप.pptx
साहित्य कि पारिभाषा एव् स्वरुप.pptxसाहित्य कि पारिभाषा एव् स्वरुप.pptx
साहित्य कि पारिभाषा एव् स्वरुप.pptx
 
मुक्तक काव्य.pptx
मुक्तक काव्य.pptxमुक्तक काव्य.pptx
मुक्तक काव्य.pptx
 
महाकाव्य.pptx
महाकाव्य.pptxमहाकाव्य.pptx
महाकाव्य.pptx
 
छंद.pptx
छंद.pptxछंद.pptx
छंद.pptx
 
छंद का सामान्य परिचय
छंद का सामान्य परिचय छंद का सामान्य परिचय
छंद का सामान्य परिचय
 
गीतिकाव्य.pptx
गीतिकाव्य.pptxगीतिकाव्य.pptx
गीतिकाव्य.pptx
 
गज़ल.pptx
गज़ल.pptxगज़ल.pptx
गज़ल.pptx
 

भारतेन्दु कालीन विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए.pptx

  • 1.
  • 2.
  • 3.
  • 4.
  • 5.
  • 6.
  • 7.
  • 8.
  • 9.
  • 10.
  • 11.
  • 12.
  • 13.
  • 14.
  • 15.
  • 16.
  • 17.
  • 18.
  • 19.
  • 20.
  • 21.
  • 22.
  • 23.
  • 24.
  • 25.
  • 26.
  • 27.
  • 28.
  • 29.
  • 30.
  • 31.
  • 32.
  • 33.
  • 34. भारतेंदु युग क े काव्य की प्रवृत्तियााँ (त्तवशेषताएाँ) भारतेंदु युग ने ह िंदी कविता को रीततकाल क े शिंगारपूर्ण और राज-आश्रय क े िातािरर् से तनकाल कर राष्ट्रप्रेम, समाज-सुधार आहद की स्िस्थ भािनाओिं से ओत-प्रेत कर उसे सामान्य जन से जोड़ हदया।इस युग की काव्य प्रिवियााँ तनम्नानुसार ैं:- 1. देशप्रेम की व्यिंजना :अिंग्रेजों क े दमन चक्र क े आतिंक में इस युग क े कवि प ले तो विदेशी शासन का गुर्गान करते नजर आते ैं- परम दुखमय ततममर जबै भारत में छायो, तबह िं कपा करर ईश ब्रिहिश सूरज प्रकिायो॥ ककिं तु शीघ्र ी य प्रिवि जाती र ी।मननशील कवि समाज राष्ट्र की िास्तविक पुकार को शीघ्र ी समझ गया और उसने स्िदेश प्रेम क े गीत गाने प्रारम्भ कर हदए- ब ुत हदन बीते राम, प्रभु खोयो अपनो देस। खोित ै अब बैठ क े , भाषा भोजन भेष ॥ (बालमुक ु न्द गुप्त) विदेशी िस्तुओिं क े बह ष्ट्कार,ईश्िर से स्ितिंत्रता की प्राथणना आहद रूपों में भी य भािना व्यक्त ुई।इस युग की राष्ट्रीयता सािंस्कततक राष्ट्रीयता ै, जजसमें ह िंदू राष्ट्रीयता का स्िर प्रधान ै।
  • 35. देश-प्रेम की भािना क े कारर् इन कवियों ने एक ओर तो अपने देश की अिनतत का िर्णन करक े आिंसू ब ाए तो दूसरी ओर अिंग्रेज सरकार की आलोचना करक े देशिामसयों क े मन में स्िराज्य की भािना जगाई। अिंग्रेजों की क ू िनीतत का पदाण फाश करते ुए भारतेंदु ररश्चिंद्र ने मलखा- सत्रु सत्रु लड़िाइ दूर रह लखखय तमाशा। प्रबल देखखए जाह ताह मममल दीजै आसा॥ इसी प्रकार जब काबुल पर अिंग्रेजों की विजय ोने पर भारत में हदिाली मनाई गई तो भारतेंदु ने उसका विरोध करते ुए मलखा - आर्ययण गनन कों ममल्यौ, जो अतत प्रफ ु मलत गात। सबै क त जै आजु क्यों, य नह िं जान्यौ जात॥ सुजस ममलै अिंग्रेज को, ोय रूस की रोक। बढै ब्रिहिश िाखर्ज्य पै, मको क े िल सोक॥
  • 36. 2. सामाजजक चेतना और जन-काव्य : समाज-सुधार इस युग की कविता का प्रमुख स्िर र ा।इन् ोंने ककसी राजा या आश्रयदाता को सिंतुष्ट्ि करने क े मलए काव्य-रचना न ीिं की, बजल्क अपने हृदय की प्रेरर्ा से जनता तक अपनी भािना प ुिंचाने क े मलए काव्य रचना की।ये कवि पराधीन भारत को जगाना चा ते थे, इसमलए समाज-सुधार क े विमभन्न मुद्दों जैसे स्त्री- मशक्षा,विधिा-वििा ,विदेश-यात्रा का प्रचार, समाज का आर्थणक उत्थान और समाज में एक दूसरे की स ायता आहद को मुखररत ककया; यथा - तनज धमण भली विर्ध जानैं, तनज गौरि को पह चानैं। स्त्री-गर् को विद्या देिें, करर पततव्रता यज्ञ लेिैं ॥ (प्रताप नारायर् ममश्र) े धतनयो क्या दीन जनों की नह िं सुनते ो ा ाकार। जजसका मरे पड़ोसी भूखा, उसक े भोजन को र्धक्कार॥
  • 37. 3. भजक्त-भािना : इस युग क े कवियों में भी भजक्त-भािना हदखाई पड़ती ै,लेककन इनकी भजक्त- भािना का लक्ष्य अिश्य बदल गया।अब िे मुजक्त क े मलए न ीिं, अवपतु देश-कल्यार् क े मलए भजक्त करते हदखाई देते ैं - क ााँ करुर्ातनर्ध क े शि सोए। जगत नाह िं अनेक जतन करर भारतिासी रोए। ( भारतेंदु ररश्चिंद्र) 4.ह िंदू-सिंस्कतत से प्यार: वपछले युगों की प्रततकक्रया स्िरूप इस युग क े कवि-मानस में अपनी सिंस्कतत क े अनुराग का भाि जाग उठा। यथा - सदा रखें दृढ ह य माँ तनज सााँचा ह न्दूपन। घोर विपत ूाँ परे हदगै नह िं आन और मन ॥ (बालमुक ु न्द गुप्त)
  • 38. 5. प्राचीनता और निीनता का समन्िय: इन कवियों ने एक ओर तो ह िंदी-काव्य की पुरानी परम्परा क े सुिंदर रूप को अपनाया, तो दूसरी ओर नयी परम्परा की स्थापना की। इन कवियों क े मलए प्राचीनता ििंदनीय थी तो निीनता अमभनिंदनीय।अत: ये प्राचीनता और निीनता का समन्िय अपनी रचनाओिं में करते र े।भारतेंदु अपनी "प्रबोर्धनी" शीषणक कविता में "प्रभाती" क े रूप में प्राचीन पररपािी क े अनुसार कष्ट्र् को जगाते ैं और निीनता का अमभनिंदन करते ुए उसमें राष्ट्रीयता का समन्िय करक े क ते ैं :- डूबत भारत नाथ बेर्ग जागो अब जागो. 6. तनज भाषा प्रेम : इस काल क े कवियों ने अिंग्रेजों क े प्रतत विद्रो क े रूप में ह िंदी-प्रचार को विशेष म त्त्ि हदया और क ा - क) तनज-भाषा उन्नतत अ ै, सब उन्नतत को मूल। (भारतेंदु) ख) जपो तनरिंतर एक जबान, ह िंदी,ह िंदू, ह िंदुस्तान। (प्रताप नारायर् ममश्र) यद्यवप इस काल का अर्धकतर साह त्य िजभाषा में ी ै, ककिं तु इन कवियों ने िजभाषा को भी सरल और सुव्यिजस्थत बनाने का प्रयास ककया।खड़ी बोली में भी क ु छ रचनाएाँ की गई, ककिं तु िे कथात्मकता और रुक्षता से युक्त ैं।
  • 39. 7. शिंगार और सौंदयण िर्णन : इस युग क े कवियों ने सौंदयण और प्रेम का िर्णन भी ककया ै,ककिं तु उसमें क ीिं भी कामुकता और िासना का रिंग हदखाई न ीिं पड़ता।इनक े प्रेम-िर्णन में सिणत्र स्िच्छता एििं गिंभीरता ै। भारतेंदु ररश्चिंद्र क े काव्य से एक उदा रर् दृष्ट्िव्य ै:- म कौन उपाय करै इनको ररचन्द म ा ठ ठानती ैं। वपय प्यारे तत ारे तन ारे ब्रबना अाँककयााँ दुखखयााँ नह िं मानती ैं॥ 8. ास्य-व्यिंग्य: भारतेंदु ररश्चिंद्र एििं उनक े स योगी कवियों ने ास्य-व्यिंग्य की प्रिवि भी ममलती ै। उन् ोंने अपने समय की विमभन्न बुराइयों पर व्यिंग्य-बार् छोड़े ैं। भारतेंदु की कविता से दो उदा रर् प्रस्तुत ैं:- क) भीतर भीतर सब रस चूसै िंमस- िंमस क ै तन-मन-धन मूसै जाह र बातन में अतत तेज, क्यों सखख सज्जन नह िं अिंगरेज॥ ख) इनकी उनकी खखदमत करो, रुपया देते-देते मरो । तब आिैं मोह िं करन खराब, क्यों सखख सज्जन न ीिं खखताब॥
  • 40. 9. प्रकतत-र्चत्रर् : इस युग क े कवियों ने पूिणिती युगों की अपेक्षा प्रकतत क े स्ितिंत्र रुपों का विशेष र्चत्रर् ककया ै। भारतेंदु क े "गिंगा-िर्णन" और "यमुना-िर्णन" इसक े तनदशणन ैं। ठाक ु र जगमो न मसिं क े स्ितिंत्र प्रकतत क े िर्णन भी उत्कष्ट्ि बन पड़े ैं। प्रकतत क े उद्दीपन रूपों का िर्णन भी इस काल की प्रिवि क े रूप जीवित र ा। 10. रस : इस काल में शिंगार, िीर और करुर् रसों की अमभव्यजक्त की प्रिवि प्रबल र ी, ककिं तु इस काल का शिंगार रीततकाल क े शिंगार जैसा नग्न शिंगार न ोकर पररष्ट्कत रुर्च का शिंगार ै।देश की दयनीय दशा क े र्चत्रर् में करुर् रस प्रधान र ा ै। 11. भाषा और काव्य-रूप : इन कवियों ने कविता में प्राय: सरल िजभाषा तथा मुक्तक शैली का ी प्रयोग अर्धक ककया।ये कवि पद्य तक ी सीममत न ीिं र े बजल्क गद्यकार भी बने। इन् ोंने अपनी कलम तनबिंध, उपन्यास और नािक क े क्षेत्र में भी चलाई। इस काल क े कवि मिंडल में कवि न क े िल कवि था बजल्क ि सिंपादक और पत्रकार भी था। इस प्रकार भारतेंदु-युग साह त्य क े नि जागरर् का युग था, जजसमें शताजददयों से सोये ुए भारत ने अपनी आाँखें खोलकर अिंगड़ाई ली और कविता को राजम लों से तनकालकर जनता से उसका नाता जोड़ा।उसे कब्रत्रमता से मुक्त कर स्िाभाविक बनाया,शिंगार को पररमाजजणत रूप प्रदान ककया और कविता क े पथ को प्रशस्त ककया।भारतेंदु और उनक े स योगी लेखकों क े साह त्य में जजन नये विषयों का समािेश ुआ ,उसने आधुतनक काल की प्रिवियों को जन्म हदया। इस प्रकार भारतेंदु युग आधुतनक युग का प्रिेश द्िार मसद्ध ोता ै।