यदि आप किसी देश और वहाँ की संस्कृति को जानना चाहते हो तो उसका सबसे आसान और किफ़ायती तरीका है कि आप उस देश का साहित्य पढ़ लीजिए। अगर हमारे देश भारत की ही बात की जाए तो इसे ‘विश्व का धर्म गुरु’ माना जाता है और यदि कोई इस उपाधि का कारण जानना चाहे तो वह ‘हिन्दी साहित्य’ के चार कालों –
आदिकाल
भक्तिकाल
रीतिकाल
आधुनिक काल
2. यदि आप किसी िेश और वह ाँ िी संस्क
ृ कि िो
ज नन च हिे हो िो उसि सबसे आस न और
किफ़ यिी िरीि है कि आप उस िेश ि
स हहत्य पढ़ लीजजए। अगर हम रे िेश भ रि िी ही
ब ि िी ज ए िो इसे ‘कवश्व ि धमम गुरु’ म न
ज ि है और यदि िोई इस उप धध ि ि रण
ज नन च हे िो वह ‘हहन्दी स हहत्य’ ि
े च र ि लों
–
• आदिि ल
• भधिि ल
• रीकिि ल
• आधुननि ि ल
3. भारतेन्दु युग
इस ि ल िी प्रमुख कवशेषि है। इस समय में ‘भ रिेन्दु हहरश्चंद्र’
न म ि
े एि िकव हुए, जजन्होंने अपनी िकवि ओं ि
े ज़हरए
भ रि पर श सन िर रहे अंग्रेज़ों ि कवरोध किय । भ रिेन्दु जी
िी इन पंधियों द्व र उनि भ रि ि
े लोगों ि शोषण िर रही
किहिश सरि र ि जमिर किय गय कवरोध िेख ज सिि
है
इसी ि
े स थ ही उन्होंने अपनी ‘प्रबोधधनी’ न मि िकवि ि
े
म ध्यम से ‘कविेशी वस्तुओं ि बहहष्क र’ किय है, िो िहीं
‘कवजधयनी कवजय वैजयंिी’ न म िी िकवि ि
े द्व र ‘भ रिीय
सेन िी जीि’ िो िश मिे हुए लोगों में ‘िेश – प्रेम जग ने ि
प्रय स’ किय है।
“भीतर भीतर सब रस चूसै, हँसस हँसस क
े तन मन धन मूसै।
जाहिर बातति में अतत तेज, क्यों सखि साजि। िहििं अंग्रेज।”
4. द्वििेदी युग
मह वीर प्रस ि दद्ववेिी जी िो िई भ ष ओं ि ज्ञ न थ , वे
इकिह स ि
े भी बहुि अच्छे ज नि र थे और स थ ही अनुव ि
और कवज्ञ न ि
े क्षेत्र में भी उन्हें ि फी ज नि री थी। इन्हीं
ख़ूकबयों ि
े ि रण इन्हें ‘ज्ञ न िी र जश ि संधचि िोष’ िहे
ज ने ि
े स थ इस युग ि न म भी इनि
े न म पर रख गय ।
‘रवीन्द्रनाथ टैगोर’ जी का एक लेख ‘काव्य की उपेसिताएँ ’ आया
सजसमें इस सवषय पर बात की गई की स्त्रियोों को लेकर सासहत्य में
कसवताएँ नहीों सलखी गईों और कसवयोों को ऐसे सवषयोों पर भी सलखना
चासहए। बस इसी बात से प्रभासवत होकर ‘मैथलीशरण गुप्त’ जी ने
रामायण को आधार बनाकर ‘साक
े त’ नाम की 12 भागोों में सवभासजत
एक लम्बी कसवता सलखी
भारतेन्दु मण्डल की तरि इन्होिें भी ‘द्वििेदी मण्डल’ की
स्थापिा की। नजसमें शानमल कवि थे –
मैथलीशरण गुप्त अयोध्या नसिंि उपाध्याय श्रीधर पाठक
िाथूराम शमाा रामिरेश तिपाठी
5. प्रगततिादी युग
प्रगकिव ि ि अथम है – सम ज, स हहत्य आदि ि
े कवि स पर
ज़ोर िेन । इसि मिलब यह हुआ कि इस समय में प्रि
ृ कि,
सौंियम, प्रेम ि
े अल व उन कवषयों पर अधधि नलख गय जो
सम ज से संबंधधि थे।
“कई सिनोों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उिास
िई दिनों िि ि नी ि
ु किय सोई उनि
े प स
िई दिनों िि लगी भीि पर धिपिनलयों िी गश्त
िई दिनों िि चूहों िी भी ह लि रही जशिस्त।”
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‘क
े िारनाथ अग्रवाल’ जी सवशेष रूप से गाँवोों और सकसानोों क
े कसव हैं।
सकसानोों की ियनीय िशा का सजीव सचत्रण करने क
े सलए उनकी
कसवता काफ़ी है