4. गजल का सार
हिन्दी गजल क
े व्यापक प्रसार क
े साथ जो सबसे मित्वपूर्ण उपलब्धि िमें हदखलाई पड़ती िै वि
बौद्धिकता क
े नीरस बबयाबान में खोई िुई कववता काममनी नये सजिज और नये सौन्दयण क
े साथ
प्रेमी मानव - समाज में लौटने लगी िै। हिन्दी गजल क
े माध्यम से हिन्दी कववता की मिन्न -
मिन्न शैली वाली िीड़िाड़ में खो गयी गीत एवं संगीतपूर्ण शैली वाली कववता पुनः वापस आ रिीं
िै। ननस्संदेि रूप से लौटती िुई यि रूपसी अपनी गेयता , चुिन और मोिक आवरर् क
े कारर्
सहृदय को अपनी ओर आकृ ष्ट कर रिी िै और काव्यास्वाद वाले रसों का पररपाक कराती िुई ये
बाद छन्द एवं गीत युग में हिन्दी प्रेममयों को ले जाकर िाववविोर कर रिी िै। सम्प्प्रनत इसका
प्रचार एवं प्रसार समकालीन हिन्दी काव्य - िारा की सिी हदशाओं में िो रिा िै। इसक
े स्वरूप
और कथ्य में नवीनता , प्रखरता एवं वववविता का समावेश िुआ िै। अब तक इसने ककसी वगण
सीमा , अथवा िाषा की सीमा को पार करक
े व्यापक क्षेत्र तक अपना ववकास ककया िै। सिी
िाषाओं एवं सिी वगों क
े लोगों ने इस वविा क
े प्रनत रुधच हदखाई िै। आम जीवन से इसको जुड़ाव
इस वविा की ववमशष्ट उपलब्धि िै। मानव संवेदनाओं एवं चेतना को जागृनत करने में हिन्दी गजल
ने मित्वपूर्ण िूममका ननिाई िै। मानवतावादी धचन्तन को इस वविा में ववमशष्ट स्थान ममला िै।
5. गजल का पररचय
हिन्दी साहित्य में गजल को सम्प्मानपूर्ण स्थान प्राप्त िै। यि हिन्दी साहित्य की एक सशक्त
और अत्यन्त लोकवप्रय काव्य - वविा िै। हिन्दी साहित्य का इनतिास इस बात का साक्षी िै कक
हिन्दी काव्य में अनेक आन्दोलन एवं वाद आये और चले गये। नयी कववता , अकववता , ववचार
कववता आहद आदोलन एक समय से हिन्दी काव्याकाश पर छाये रिे िैं। ककन्तु यि समस्त
आन्दोलन लयिीनता , अनतबौद्धिकता एवं व्यापक उद्देश्यों क
े अिाव क
े कारर् जनमानस पर
अपना शाश्वत प्रिाव स्थावपत निीं कर सक
े । गीतात्मक काव्य में आज नवगीत क
े अनतररक्त
क
े वल गजल िी एक ववमशष्ट तेवर क
े साथ हिन्दी में प्रचमलत िै। इसकी शुरुआत लगिग पन्रि
सौ वषण पिले अरबी िाषा में िुई थी। अरबी में गजल कोई स्वतन्त्र काव्य - वविा निीं थी। विााँ
मुख्य रूप से कसीदे ( राजाओं की प्रशंसा में मलखे जाने वाले काव्य ) और रजज ( वीर रस क
े
काव्य ) मलखे जाते थे। कसीदे में शायर अपने प्रशंसात्मक शेरों क
े बीच में क
ु छ शेर ऐसे िी डाल
देते थे जो प्रशंसा क
े ववषय से िटकर प्रेम , सौन्दयण , शराब , बिार आहद से सम्प्बब्न्ित िोते थे।
इसे अरबी में क्रसीदा की ‘ तश्बीब ( एकबन्द ) या नसीब किते िैं। इसमें मुख्य रूप से इश्क -
मोिधबत का ब्जक्र िोता था। आगे चलकर फारसी क
े शायरों ने जब अरबी वविा को अपनाया तो
तश्बीब क
े अशआर को अलग करक
े एक दूसरी वविा बनाई ब्जसे गजल किने लगे। क
ु छ
ववद्वानों की मान्यता यि िै कक फारसी से यि वविा उदूण में आई और उदूण से हिन्दी में , जबकक
अधिकांश ववद्वानों की मान्यता यि िै कक हिन्दी गजल उदूण से न आकर सीिे फारसी से हिन्दी
में आई और उदूण क
े जन्म से पिले अमीर खुसरों ने हिन्दी में पिली गजल मलखी। तथ्यों और
तको की कसौटी पर दूसरी मान्यता ठीक लगती िै।
आयानतत वविा िोने क
े कारर् हिन्दी गजल उदूण गजल क
े कथ्य एवं मशल्प से प्रिाववत तो िै
ककन्तु इसने अपने कथ्य - कौशल में ननश्चय िी पररष्कार ककया िै और उदूण गजल की
औपचाररकता की अपेक्षा अत्यधिक अनौपचाररक िो गई िै। ननस्संदेि हिन्दी गजल ने काव्य को
नयी िाविूमम एवं नवीन तेवर प्रदान ककये िैं और वि दरबारों से ननकलकर जनमानस का
क
ं ठिार बन गई िै।
6. गजल शब्द क
े अर्थ और पररभाषा गजल का स्वरूप ववश्लेषण
जिााँ तक गजल शधद क
े अथण और पररिाषा गजल का स्वरूप ववश्लेषर् का प्रश्न िै इस पर
ववद्वानों क
े वववविमत िैं। अधिकांश ववद्वानों की राय में गजल शधद का अथण िै –
प्रेमिका से बातें करना ।
7. गजल शब्द की व्युत्पवि
गजल शधद की व्युत्पविक
े ववषय में क
ु छ लोगों का मत िै कक यि अरबी िाषा का ( स्त्रीमलंग )
शधद िै ब्जसका अथण िै - ‘ प्रेमी और प्रेममका की बातचीत । क
ु छ ववद्वान गजल की उत्पवि
गजाला ( अरबी ) से मानते िैं ब्जसका अथण िोता िै - ‘ मृग या हिरन ’ द्य क
ु छ लोग गुजाला का
अथण मृगनयनी बताते िैं ब्जसका अथण यि िो सकता िै कक मृग क
े समान सुन्दर नेत्रों वाली
सुन्दररयों क
े सन्दिण में मलखी गयी प्रेम कववताएाँ गजल किी जाती िै।
अरबी क
े गजल से िुई िै। क
ु छ लोग इसे अरब में रिने वाले गजल नाम क
े व्यब्क्त से िी जोड़ते
िैं। इसका शाब्धदक अथण िोता िै - हिरन या मृग । गजल प्रारम्प्ि में कोई स्वतन्त्र वविा निीं थी।
इसकी शुरूआत राजाओं की प्रशंसा या ववरुदावली क
े रूप में गाये जाने वाले कसीदों की बीच -
बीच में आने वाले तस्बीब या नसीब क
े शेरों ब्जसमें प्रेम , सौन्दयण , प्रकृ नत , शराब और शबाब की
बातें िोती थीं। क
ु छ लोग इसका जन्म अरबी क
े कसीदा क
े कोस से न मानकर इरानी चामा से
मानते िैं।
8. गजल शब्द की व्युत्पवि
1.डॉ० ख्वाजा अहिद फारूकी
गुजाला शधद का अथण हिरन बताते िुए किते िैं। कक ‘ गजल का एक अथण उस कराि से िी िै ,
जो गजाला ( हिरन ) तीर चुिने क
े बाद बेकसी क
े आलम में ननकालता िै। इसी कारर् गुजल में
एक अजीब सी कसक बेदना और टीस रिती िै , ब्जसमें दुननया की बेवफाई का ब्जक्र रिता िै।
गजल की व्युत्पवि क
े सन्दिण में क
ु छ क
े मतानुसार अरब में गजल नामक एक कवव था ब्जसने
अपनी सारी आयु प्रेम एवं मस्ती में िी बबता दी। उसकी कववताओं का वर्णयण ववषय सदैव प्रेम िी
िुआ करता था। अतः कालान्तर में इस गजल नामक कवव क
े नाम पर इस प्रकार की प्रेम परक
कववताओं को गजल की संज्ञा दी गई।
इस प्रकार गजल क
े शाब्धदक अथण एवं व्युत्पवि क
े सम्प्बन्ि में िम इस ननष्कषण पर पिुाँचते िैं कक
गजल शधद अरबी िाषा का िी िै जो प्रेमी और प्रेममका क
े वाताणलाप क
े अथण में प्रयोग ककया
जाता रिा िै। िीरे - िीरे गजल प्रेम की संकीर्ण पररधि से बिार ननकलकर प्रेम क
े व्यापक रूप
में प्रयोग की जानी लगी। दरबारी संस्कृ नत एवं सभ्यता क
े प्रिाव में आकर गजल , जो
वासनात्मक प्रेम की अमिव्यब्क्त का माध्यम बन चुकी थी , परवती कववयों ने उसे व्यापक
आयाम प्रदान ककया और गजल क
े अन्तगणत प्रेममका की क
ं घी , चोटी , अंधगया , क
ु ती क
े वर्णन क
े
स्थान पर पववत्र प्रेम यथा पाररवाररक प्रेम , ईश्वर प्रेम , देश - प्रेम आहद िावनाओं की
अमिव्यंजना िोने लगी। इस प्रकार गजल अपने संक
ु धचत शाब्धदक अथण से िटकर व्यापक स्वरूप
में कववयों की अमिव्यब्क्त का माध्यम बनी।
9. गजल शब्द की व्युत्पवि
2, श्री िुहम्िद िुस्तफा खााँ िदाह द्वारा स्र्ावपत ‘ उददथ हहन्दी शब्द - कोश िें गजल अर्थ हदया
गया है –
प्रेममका से वाताणलाप , उदूण - फारसी कववता का एक प्रकार ववरोि ब्जसे गजल का स्वरूप
ववश्लेषर् प्रायः अरबी क
े गजल से िुई िै। क
ु छ लोग इसे अरब में रिने वाले गजल नाम क
े
व्यब्क्त से िी जोड़ते िैं। इसका शाब्धदक अथण िोता िै - हिरन या मृग । गजल प्रारम्प्ि में कोई
स्वतन्त्र वविा निीं थी। इसकी शुरूआत राजाओं की प्रशंसा या ववरुदावली क
े रूप में गाये जाने
वाले कसीदों की बीच - बीच में आने वाले तस्बीब या नसीब क
े शेरों ब्जसमें प्रेम , सौन्दयण , प्रकृ नत
शराब और शबाब की बातें िोती थीं। क
ु छ लोग इसका जन्म अरबी क
े कसीदा क
े कोस से न
मानकर इरानी चामा से मानते िैं।
5 से 11 शेर िोते िैं। सारे शेर एक िी रदीफ और काकफये में िोते िैं।
10. गजल शब्द की व्युत्पवि
फारसी िें गजल का शाब्ब्दक अर्थ है –
‘औरतों से बातें करना ।’
हहन्दी साहहत्य कोश िें गजल का अर्थ
‘नाररयों से प्रेम की बातें करना िी ममलता िै।’
3, िौलाना अल्ताफ हुसैन हाली क
े अनुसार –
‘जिााँ तक गजलों की मूल प्रकृ नत का सम्प्बन्ि िै , उसका ववषय प्रेम क
े अनतररक्त क
ु छ और निीं
।’
4. फफराक गोरखपुरी
‘कफराक गोरखपुरी क
े अनुसार गजल असम्प्बद्ि कववता िै। गजल का ममजाज मूलतः समपणर्वादी
िोता िै।’
11. गजल शब्द की व्युत्पवि
5.प्रोफ
े सर कलीिुद्दीन अहिद
प्रोफ
े सर कलीमुद्दीन अिमद ने गजल को नीम बिशी मसन्फ
े - सुखन किा िै। वि मलखते िैं -
िुस्ने सूरत जो नज्म , अफसाना , ड्रामा बगैरि की लाजमी मसन्फी खुसूमसयत िै , गजल में मौजूद
निीं गजल क
े िर शेर में ककसी मख सूस जज्बा या ख्याल का इजिार मद्देनजर िोता िै। सारे
एसिसासात व तसधबरात मोस्तव व मोक्कब िोकर एक नक्शे काममल की शक्ल में जल्वागार
निीं िोते , यिी नमीविशी िोने की दलील िै।
गजल की व्युपनत ववषयक िारर्ा को लेकर प्रायः गजल ममणज्ञों में थोड़ा बिुत मतान्तर रिा िै ,
ककन्तु वे सिी इस बात से सिमत िैं कक गजल प्रेमामिव्यब्क्त का सशक्त एवं प्रिावोत्पादक
माध्यम िै। अनेक ववद्वानों ने अपने - अपने दृब्ष्टकोर् से गजल को पररिावषत ककया िै।
12. गजल शब्द का अर्थ
गजल शधद का अथण िोता िै –प्रेमी और प्रेममका क
े बीच का वाताणलाप इसक
े शेर एक तरि से
मिन्न - मिन्न काकफया ( तुकान्त ) और एक िी रदीफ से सुसब्ज्जत एक िी वजन और एक िी
बिर ( छन्द ) में मलखे गये िोते िैं। इसका प्रत्येक शेर अपने आप में पूर्ण िोता िै। तथा स्वतंत्र
अथण अमिव्यक्त करता िै। गजल में न्युनतम तीन शेर और अधिकतम पच्चीस शेर िो सकते िैं।
इन सबक
े संतुमलत संगठन और समुधचत ननवाणि से िी गजल अपनी आकारगत् पूर्णता को प्राप्त
करती िै ।
आगे चलकर और ववशेषकर हिन्दी में आकर पररवनतणत युग क
े साथ गजल का स्विाव िी
बदला। जो गजल एक समय में प्रेममका से वाताणलाप और उसक
े सौन्दयण की तारीफ जुड़ी थी तथा
फ
ू ल की पंखुड़ी - सी नाजुक थी , वि सौन्दयण बोि क
े साथ - साथ गजल का स्वरूप ववश्लेषर्
युग - बोि की िी संवाहिका बन गयी। उसका रूप , रंग गुर् सब क
ु छ बदल गया। गजल अब
प्रकृ नत , सौन्दयण , प्रेम , ममलन और ववरि क
े अलावा सामाब्जक , राजनीनतक , सांस्कृ नतक िाममणक ,
दाशणननक , नैनतक और जीवन - जगत से जुड़े अनेक ववषयों पर साथणक ववचार व्यक्त करने का
सवाणधिक कलात्मक , असरदार , कारगर , िारदार और पुरजोर अमिव्यब्क्त क
े माध्यम क
े रूप में
रूपान्तररत िो गई िै। गजल आज जीवन क
े सम्प्पूर्ण सुख - दुःख , िषण - ववषाद , जय - पराजय ,
आशा - आकांक्षा , पररवतणन और क्राब्न्तकारी प्रगनतशील जनवादी चेतना को समथण और सशक्त
रूप में व्यक्त कर रिी िै।
13. गजल शब्द का अर्थ
उदूण - फारसी गजल ने उवणर िाविूमम तैयार की। अतः हिन्दी गजल का स्वरूप उदूण - फारसी
गजल से ममलता - जुलता िै। गजल का प्रत्येक शेर अपने आप में स्वतन्त्र एवं सम्प्पूर्ण िोता िै।
इसक
े प्रत्येक शेर में एक नवीन ववषय अथवा ववचार अन्तननणहित िोता िै। शेर की दो पंब्क्तयााँ
जीवन की ककसी वास्तववकता , ककसी अनुिूनत अथवा पररवेशगत यथाथण की रूप रेखा को अपने में
समाहित करने की सामथ्यण रखती िैं।
गजलकारों को शेरों में शधद - सौष्ठव का ववशेष ध्यान रखना पड़ता िै। यहद एक िी शधद
िटाकर उसक
े स्थान पर दूसरा शधद प्रयोग कर हदया जाय तो सारा गुड़गोबर िो जाता िै। हिन्दी
गजल में इश्क
े मजाजी अथवा इश्क
े िकीकी की अपेक्षा इश्क
े इन्साननयत पर अधिक बल हदया
गया िै। किने का तात्पयण यि िै कक हिन्दी गजल में प्रेम एवं वासना जैसे परम्प्परागत गजल क
े
तत्वों को नकारते िुए समाज , राजनीनत , िमण , शासन एवं सवणिारा वगण की समस्याओं ववसंगनतयों
तथा ववरूपताओं का यथाथण स्वरूप प्रतीकों एवं बबम्प्बों क
े माध्यम से प्रस्तुत ककया जाता िै।
हिन्दी में मलखी जाने वाली गजलों में गजल क
े सम्प्पूर्ण रूपाकार मशल्प व्यवस्था और अमिव्यब्क्त
- िंधगमा को िू - ब - िू आत्मसात कर लेने क
े बावजूद क
ु छ गजलकारों ने गजल को नया नाम
देने की कोमशश की गीनतका - नीरज , मुब्क्तका चन्रसेन ववराट , अनुगीत - मोिन अवस्थी , तेवरी
रमेशराज आहद। लेककन गुजल क
े अधिकांश समथण रचनाकारों ने इन नामकरर्ों को नकारकर उसे
गजल किना िी उधचत समझा।
14. गजल शब्द का अर्थ
गजल का स्वरूप ववश्लेषर् परम्प्परागत और उदूण गजल की बिुत सारी बातों को स्वीकार करने क
े
बाद िी हिन्दी गजल की क
ु छ अपनी ननजता और पृथकता िै। इसमें उदूण की बिरों क
े साथ िी
हिन्दी क
े छन्दों क
े आिार पर िी गजलें मलखी जा रिी िै। उदूण गजल की तीन से पच्चीस शेरों
की शतण िी हिन्दी में निीं मानी जा रिी िै। क
ु छ गजलकारों ने एक गजल में सौकड़ों शेर तक
किे िैं। इसी प्रकार उदूण गजल में प्रत्येक शेर अलग - अलग ववषय से सम्प्बद्ि िोते िैं , हिन्दी
गजल में िी ऐसा िोता िै ककन्तु बिुत सारी गजलें ऐसी िी मलखी जा रिी िैं ब्जनमें सिी शेर
एक िी क
े न्रीय ववषय से सम्प्बद्ि िैं।
उदूण और हिन्दी क
े ववद्िानों , रचनाकारों की समस्त पररिाषाओं और गजलों में गजल की क
ु छ
ववशेषताओं पर प्रकाश डाला गया िै। गजल की तमाम पररिाषाओं को ध्यान में रखते िुए
15. गजल शब्द का अर्थ
गजल शधद का अथण िोता िै –प्रेमी और प्रेममका क
े बीच का वाताणलाप इसक
े शेर एक तरि से
मिन्न - मिन्न काकफया ( तुकान्त ) और एक िी रदीफ से सुसब्ज्जत एक िी वजन और एक िी
बिर ( छन्द ) में मलखे गये िोते िैं। इसका प्रत्येक शेर अपने आप में पूर्ण िोता िै। तथा स्वतंत्र
अथण अमिव्यक्त करता िै। गजल में न्युनतम तीन शेर और अधिकतम पच्चीस शेर िो सकते िैं।
इन सबक
े संतुमलत संगठन और समुधचत ननवाणि से िी गजल अपनी आकारगत् पूर्णता को प्राप्त
करती िै ।
आगे चलकर और ववशेषकर हिन्दी में आकर पररवनतणत युग क
े साथ गजल का स्विाव िी
बदला। जो गजल एक समय में प्रेममका से वाताणलाप और उसक
े सौन्दयण की तारीफ जुड़ी थी तथा
फ
ू ल की पंखुड़ी - सी नाजुक थी , वि सौन्दयण बोि क
े साथ - साथ गजल का स्वरूप ववश्लेषर्
युग - बोि की िी संवाहिका बन गयी। उसका रूप , रंग गुर् सब क
ु छ बदल गया। गजल अब
प्रकृ नत , सौन्दयण , प्रेम , ममलन और ववरि क
े अलावा सामाब्जक , राजनीनतक , सांस्कृ नतक िाममणक ,
दाशणननक , नैनतक और जीवन - जगत से जुड़े अनेक ववषयों पर साथणक ववचार व्यक्त करने का
सवाणधिक कलात्मक , असरदार , कारगर , िारदार और पुरजोर अमिव्यब्क्त क
े माध्यम क
े रूप में
रूपान्तररत िो गई िै। गजल आज जीवन क
े सम्प्पूर्ण सुख - दुःख , िषण - ववषाद , जय - पराजय ,
आशा - आकांक्षा , पररवतणन और क्राब्न्तकारी प्रगनतशील जनवादी चेतना को समथण और सशक्त
रूप में व्यक्त कर रिी िै।
16. गजल शब्द का अर्थ
हिन्दी गजल एक सम्प्िावनाशील ककन्तु सशक्त काव्यरूप िै। कवव मानस की तीव्रानुिूनत को कम
- से - कम शधदों में अधिक - से - अधिक प्रिावशाली ढंग से अमिव्यक्त करने क
े मलए इससे
उिम कोई अन्य माध्यम निीं िै। चूंकक हिन्दी गजल क
े मलए उदूण - फारसी गजल ने उवणर
िाविूमम तैयार की। अतः हिन्दी गजल का स्वरूप उदूण - फारसी गजल से ममलता - जुलता िै।
गजल का प्रत्येक शेर अपने आप में स्वतन्त्र एवं सम्प्पूर्ण िोता िै। इसक
े प्रत्येक शेर में एक
नवीन ववषय अथवा ववचार अन्तननणहित िोता िै। शेर की दो पंब्क्तयााँ जीवन की ककसी
वास्तववकता , ककसी अनुिूनत अथवा पररवेशगत यथाथण की रूप रेखा को अपने में समाहित करने
की सामथ्यण रखती िैं।
गजलकारों को शेरों में शधद - सौष्ठव का ववशेष ध्यान रखना पड़ता िै। यहद एक िी शधद
िटाकर उसक
े स्थान पर दूसरा शधद प्रयोग कर हदया जाय तो सारा गुड़गोबर िो जाता िै। हिन्दी
गजल में इश्क
े मजाजी अथवा इश्क
े िकीकी की अपेक्षा इश्क
े इन्साननयत पर अधिक बल हदया
गया िै। किने का तात्पयण यि िै कक हिन्दी गजल में प्रेम एवं वासना जैसे परम्प्परागत गजल क
े
तत्वों को नकारते िुए समाज , राजनीनत , िमण , शासन एवं सवणिारा वगण की समस्याओं ववसंगनतयों
तथा ववरूपताओं का यथाथण स्वरूप प्रतीकों एवं बबम्प्बों क
े माध्यम से प्रस्तुत ककया जाता िै।
हिन्दी में मलखी जाने वाली गजलों में गजल क
े सम्प्पूर्ण रूपाकार मशल्प व्यवस्था और अमिव्यब्क्त
- िंधगमा को िू - ब - िू आत्मसात कर लेने क
े बावजूद क
ु छ गजलकारों ने गजल को नया नाम
देने की कोमशश की गीनतका - नीरज , मुब्क्तका चन्रसेन ववराट , अनुगीत - मोिन अवस्थी , तेवरी
रमेशराज आहद। लेककन गुजल क
े अधिकांश समथण रचनाकारों ने इन नामकरर्ों को नकारकर उसे
गजल किना िी उधचत समझा।
17. गजल शब्द का अर्थ
गजल का स्वरूप ववश्लेषर् परम्प्परागत और उदूण गजल की बिुत सारी बातों को स्वीकार करने क
े
बाद िी हिन्दी गजल की क
ु छ अपनी ननजता और पृथकता िै। इसमें उदूण की बिरों क
े साथ िी
हिन्दी क
े छन्दों क
े आिार पर िी गजलें मलखी जा रिी िै। उदूण गजल की तीन से पच्चीस शेरों
की शतण िी हिन्दी में निीं मानी जा रिी िै। क
ु छ गजलकारों ने एक गजल में सौकड़ों शेर तक
किे िैं। इसी प्रकार उदूण गजल में प्रत्येक शेर अलग - अलग ववषय से सम्प्बद्ि िोते िैं , हिन्दी
गजल में िी ऐसा िोता िै ककन्तु बिुत सारी गजलें ऐसी िी मलखी जा रिी िैं ब्जनमें सिी शेर
एक िी क
े न्रीय ववषय से सम्प्बद्ि िैं।
18. गजल का स्वरूप
डॉ 0 नरेन्र वमशष्ठ का मत िै कक गजल का मूल क्षेत्र नारी ववषयक िावों से सम्प्बब्न्ित िै।
दरअसल गजल गोई का अधिकार सम्प्बन्ि ववरि जन्य व्यथा से रिा िै। अतः इसमें हृदय को छ
ू
लेने की क्षमता को बिुत ऊ
ाँ चा गुर् माना गया िै।
इस प्रकार हिन्दी गजल क
े सन्दिण में उपलधि पररिाषाएं अपने - अपने दृब्ष्टकोर् को प्रस्तुत
करती िै ब्जनका समग्र रूप से अध्यय करने पर िम इस ननष्कषण पर पिुाँचते िैं। कक हिन्दी
गजल उदूण - फारसी से अयानतत वि काव्य - वविा िै जो पूवण ननिाणररत लघुखर्णडों में आबद्ि
अनेक शेरों क
े माध्यम से प्रतीकों एवं बबम्प्बों क
े सिारे पढ़े - मलखे आम आदमी की िाषा में
आिुननक जीवन मूल्यों की प्रनतस्थापना में सिायक मसद्ि िुई िै। अनुिूनत की तीव्रता एवं
संगीतात्मकता हिन्दी गजल क
े प्राण हैं।
19. गजल को पररभाष
1.डॉ 0 क
ुाँ अर बेचैन
डॉ 0 क
ुाँ अर बेचैन मलखते िैं कक गजल रेधगस्तान क
े प्यासे िोंठों पर उतरती िुई शीतल तरंग की
उमंग िै। गजल घने अंिकार में टिलती िुई धचंगारी िै। गजल नींद से पिले का सपना िै। गजल
जागरर् क
े बाद का उल्लास िै। गजल गुलाबी पााँखुरी क
े मंच पर बैठी िुई खुशबू का मौन स्पशण
िै।।
2.गोपाल दास नीरज
गोपाल दास नीरज क
े अनुसार गजल न तो प्रकृ नत की कववता िै न अध्यात्म की , वि िमारे उसी
जीवन की कववता िै , ब्जसे िम सचमुच जीते िैं । ....
20. गजल को पररभाष
3. डॉ० उमिथलेश
डॉ० उममणलेश क
े मतानुसार - हिन्दी गजल से मेरा अमिप्राय उदूण कववता से आयानतत उस काव्य
- वविा से िै जो उदूण गजल की शैब्ल्पक काया में हिन्दी की आत्मा को प्रनतब्ष्ठत करती िुई
अपनी गेयता को सुरक्षा देती िुई , आिुननक जीवन और पररवेश की संगनतयों और ववसंगनतयों को
नूतन िावबोि क
े साथ स्थावपत करती िुई आगे बढ़ रिी िै। ब्जस गजल में हिन्दी की प्रकृ नत
और व्याकरर् की सुरक्षा क
े साथ नवागत बबम्प्बों और प्रतीकों का वविान िै , मेरी समझ में उसे
हिन्दी गजल मान लेने में कोई िजण निीं िै। उदूण क
े कववयों ने ब्जस तरि अपने काव्य में हिन्दी
गीत को आत्मसात कर मलया िै , वैसे िी हिन्दी कवव यहद गजल को अपनी तरि आत्मसात कर
लें तो साहिब्त्यक साम्प्प्रदानयकता का मूलोच्छेद बिुत जल्दी िो जायेगा।
21. गजल को पररभाष
4.पं 0 रािनरेश त्रिपाठी
पं 0 रामनरेश बत्रपाठी ने गजल का अथण जवानी का िाल बयान करना या माशूक की संगनत और
इश्क का ब्जक्र करना बताते िुए मलखा िै कक एक गजल में प्रेम क
े मिन्न - मिन्न िावों क
े शेर
लाने का ननयम रखा गया िै। ककसी शेर में आमशक अपनी मनोवेदना प्रकट करता िै , ब्जसमें
माशूक पर उसका क
ु छ प्रिाव पड़े। ककसी शेर में वि माशूक की प्रशंसा करता िै ब्जससे वो
प्रसन्न िो ककसी शेर में वो माशूक की वफा और जफा का ब्जक्र करता िै और ककसी में रकीब
की मशकायत करता िै। मतलब यि कक ब्जस बात क
े किने से माशूक क
े प्रसन्न िोने या और
कोई खास नतीजा ममलने की आशा िोती िै विी बातें गजल में आती िैं।
5.स्व 0 दुष्यन्त क
ु िार
स्व 0 दुष्यन्त क
ु मार की मान्यता िै कक गजलों की िूममका की जरूरत निीं िोनी चाहिए उदूण और
हिन्दी अपने – अपने मसंिासन से उतरकर जब आम आदमी क
े पास आती िै तो उसमें फक
ण कर
पाना बड़ा मुब्श्कल िोता िै।
6.अब्दुल ववब्स्िल्लाह
अधदुल ववब्स्मल्लाि क
े अनुसार यि गजल का स्वरूप ववश्लेषर् सवणववहदत िै कक गजल अब
अपने शाब्धदक अथण से बािर आ गई िै और यि एक ऐसी काव्य वविा बन गई िै ब्जसमें जीवन
क
े ववववि पिलुओं की अमिव्यब्क्त िो रिी िै।
22. गजल को पररभाष
7.मशव ओि अम्बर
हिन्दी गजल को साहिब्त्यक पररिाषा प्रदान करते िुए समय की आक्रोशी िंधगमाओं को इस
पुरातन वविा में नवता क
े समग्र सौन्दयण क
े साथ अमिव्यक्त करने वाले गजलकार मशव ओम
अम्प्बर मलखते िैं कक समसामनयक हिन्दी गजल िाषा क
े िोजपत्र पर मलखी िुई ववप्लव की
अब्ननऋचा िै , गुलाब की पंखुड़ी पर क्राब्न्त की काररका मलवपबद्ि करने का संकल्प िै।
8.शिशेर बहादुर मसंह
शमशेर बिादुर मसंि क
े अनुसार गजल एक मलररक वविा िै ब्जसकी क
ु छ अपनी शते िैं। अपना
प्रतीकवाद और जीवंत परंपरा िै।
9.श्री िाजदा असद
श्री माजदा असद का किना िै कक ‘ साहित्य और समाज में गजल का विी स्थान िै जो ककसी
िरे - पूरे घर में एक अलबेली सुन्दरी का िोता िै। उसक
े चािने वालों में बड़े - बूढ़े , औरत - मदण
सूफी , योनय और अयोनय , ज्ञानी और अज्ञानी सिी िोते िैं। क
ु छ उसक
े अल्िड़पन क
े हदलदार िै
तो क
ु छ उसकी शोखखयों पर मरते िैं , क
ु छ उसकी गंिीरता , िीरता और रख - रखाव पर आसक्त
िैं तो क
ु छ उसक
े िाव - िाव और चालचोंचले पर नाक - िौं चढ़ाते िैं।
23. गजल को पररभाष
10.ज्ञानेन्र
ज्ञानेन्र ने गजल की ववशेषताएं बताते िुए उसकी पररिाषा इस प्रकार दी िै गजल एक छाब्न्दक
वविा िै। छाब्न्दक रचनाएाँ अन्य ककसी िी वविा की रचनाओं में गजल का स्वरूप ववश्लेषर्
अधिक प्रिावकारी िोती िै। जब तक समकालीन कववता में छाब्न्दक प्रिाव रिा बिुत गिरे तक
स्वीकृ त िुई । हिन्दी गजल की समकालीन साहिब्त्यक वविा क
े रूप में सामने आई जो जन
सामान्य की पीड़ा क
े साथ समकालीन कथ्य को बिुत िी सिजता क
े साथ , छन्द में कथ्य की
वैववध्यता को अमिव्यक्त कर रिी िै। आज यि वतणमान क
े पदचाप क
े साथ िावात्मक सौन्दयण
को बड़ी खूबसूरती से परोस रिी िै। ..... हिन्दी गजल अथाणत वैसी गजल ब्जसमें हिन्दी शधदों का
प्रयोग और हिन्दी व्याकरर् शैली का ननवाणि िुआ िै।
11.डॉ 0 फकशन ततवारी
डॉ 0 ककशन नतवारी क
े अनुसार गजल अब राजदरबारों या कोठों क
े मुजरों से उतरकर आम
आदमी क
े आटे - दाल की धचन्ता से धचब्न्तत िै। समकालीन हिन्दी गजल ने तमाम उन पिलुओं
को छ
ु आ िै जो वषों से अछ
ू ते रिे थे।
गजल में िाषा का सौन्दयण , ताजा मक्खन की कोमलता एवं मिक , क
े शर का रंग एवं सुगंि तथा
प्रेम का सम्प्पूर्ण रोमांच ववद्यमान िै। नवीनतम् ववषयों का ननचोड़ िै। आकाश का छोर ढूंढने की
ललक िै। शधदों में ननहित स्वाद तथा लावर्णय का अनूठा सुमेल िै। शक
ु न्तला क
े हृदय क
े
िोजपत्र पर कामलदास की तूमलका से दुष्यन्त द्वारा मलखा गया प्रर्य - ननवेदन िै। मानव मन
को अमिप्रेररत करने वाले शधदों का सववस्तार कोष िै ब्जसमें िाषा की रंगीन उाँगली का सुकोमल
स्पशण तथा सूक्ष्म समालोचना इसमें शधदाथों कक व्यापकता , मुिावरों तथा लोकोब्क्तयों का सुंघरू
बजाता िुआ जल - प्रपात।
24. गजल को पररभाष
12.कवतयिी िधुररिा मसंह
कवनयत्री मिुररमा मसंि ने गजल को पररिावषत करते िुए मलखा िै कक अपनी िथेली पर
खझलममलाती आाँसू की बूंद को उसकी तरलता और पारदमशणता को छ
ु ए बबना , दूसरे की िथेली पर
साविानी से रख देने का दूसरा नाम गजल िै। गजल ब्जन्दगी की पलकों पर थरथराती िुई आंसू
की बूंदें िैं , जो सूरज की रोशनी अपने अन्दर समोकर सतरंगी आिा से आलोककत िो जाती िै।
गजल िूप की नदी में पााँव छपछपाती िुई चााँदनी िै।
25. गजल को पररभाष
13.डॉ० वमशष्ठ अनदप
डॉ० वमशष्ठ अनूप ने किा िै कक गजल को पररिावषत करना िो तो मैं यि किना चािूाँगा कक
गजल उदूण हिन्दी शायरी की सबसे शसक्त और लोकवप्रय काव्य - वविा िै। जो अपने जन्म क
े
समय प्रेम और सौन्दयण से वाबस्ता थी। वि अरबी और फारसी से िोती िुई कई पीहढ़यों - बाद
जब हिन्दी में पिुाँची तो उसका रूप - रंग और नाक - नक्श काफी सीमा तक पररवनतणत िो चुका
था। आज वि पूरी तरि िारतीय संस्कृ नत और साहित्य क
े रंग में रंगकर जमाने क
े साथ कदम
ममलाकर चल रिी िै। इसकी दुननया आज बिुत बड़ी िो चुकी िै। गजल क
े दामन में आज िर
रंग क
े फ
ू ल िैं और िर फ
ू ल की खुशबू िै , ममट्टी की सोंिी गन्ि िै , ककन्तु इसमें जिरीले कााँटे
िी िैं , दिकते अंगारे िी िैं , जन जीवन की व्यथा - कथा और आाँसू िी िैं। इसमें कृ ष्र् की वंशी
की िुन मंद और मशव क
े डमरू का स्वर तीव्र िै। इसमें काम क
े बार् ववरल और राम क
े बार्
अधिक िैं।
26. गजल की काव्यगत ववशेषताओं
1. गजल का कथ्य अब अपेक्षाकृ त बिुत ववस्तृत िो चुका िै।
2.सामन्ती मनोरंजन करने वाली उिेजक सामग्री क
े स्थान पर अब उसमें आम आदमी को
दुख - ददण का अिाव ग्रस्त ब्जदगी क
े तनावों का
3.िीड़ में खोई िुई व्यब्क्त की अब्स्मता का ,
4.मानवीय मूल्यों क
े ववघटन का ,
5.सामाब्जक अव्यवस्था ,
6.शोषर् और आतंक का उपजीव्य सामग्री क
े रूप में अधिक प्रयोग ककया जाता िै। ”
7.प्रेम
8.सौन्दयण ,
9.सुब्क्तियता ,
10.साक
े नतकता
11.संक्षक्षप्तता ,
12.संब्श्लष्टता ,
13.प्रतीकात्मकता
14.संगीतात्मकता आहद
27. गजल की मशल्पगत या संरचनागत ववशेषता
kaifyaa AaOrrdIf ka p`yaaoga krko gaja,la ilaKI jaatI hO
1.Baavako AaQaarpr ga,ja,lako p`kar
1.mausalsala gaja,la
2.gaOr mausalsala gaja,la
2.tukaMtkoAaQaarpr gaja,lakop`kar
1.mauA_sa gaja,la
2.maukFfa gaja,la
‘klama idla sao hI ilaKtI hO¸maOM idla ko gama saohU^ hara
gaja,la maoM saba inakla Aayaa¸ hmaara raja BaI yaaraÈ’
‘hjaaraoM #vaaihSao eosaI ik hr #vaaihSa podma inaklaoÈ
bahut inaklao maoro Armaana laoikna ifr BaI kma inaklaoÈÈ’
]pya-@tgaja,la maoM
inaklao¹rdIfhO
hma
28. गजल की मशल्पगत या संरचनागत ववशेषता
da:
“maOM tao caahU^MsaarIduinayaa¸maora jaOsa PyaarkroM
QartIkao mahbaUbaa maanao¸ AaOr[SAKAisaMgaar kroM
tumakaodoK kojaanao yaoiksa pagalapna nao Gaor ilayaa
toro dSa-naka AiBalaaYaI naacao AaOr icaM%karkroM
yao tao naIra dIvaanaapna hO¸jaIvana kosaaOdagar ka
zaosa hkIktkIbastI mao¸M sapnaaoM ka vyaaPaar kroMÈ”
29. गजल की मशल्पगत या संरचनागत ववशेषता
1.रदीफ (समान्त )
तूने मलक्खे मीन खंजन कमल से प्यारे नयन ,
िमने देखे िैं िजारों ददण क
े मारे नयन ।
चार पैसे चार दाने चार रोटी क
े मलए ,
दरबन्दर हदन िर िटकते िैं ये बन्जारे नयन ।
इसमें ‘ नयन ’ रदीफ िै। रदीफ अरबी िाष का शधद िै ब्जसका अथण िोता िै ऊ
ाँ ट या घोड़े पर पीछे
बैठने वाला सिसवार। हिन्दी में इसे समान्त किते िैं।
30. गजल की मशल्पगत या संरचनागत ववशेषता
2.काफफया ( तुकान्त )
इसी प्रकार गजल क
े पिले शेर की दोनों पंब्क्तयों और बाद क
े प्रत्येक शेर की दूसरी पंब्क्त में
रदीफ से पिले आने वाला शधद काकफया ( तुकान्त ) किलाता िै। पूवोक्त उदािरर् में प्यारे ,
बंजारे रदीफ से पिले िैं , इसमलए काकफया किलायेंगे। काकफये का ननवाणि आवश्यक माना गया िै ,
ककन्तु आजकल काकफये में छ
ू ट लेने की परम्प्परा िी चल पड़ी िै। उसका िी एक ननयम िोता िै।
तूने मलक्खे मीन खंजन कमल से प्यारे नयन ,
िमने देखे िैं िजारों ददण क
े मारे नयन ।
चार पैसे चार दाने चार रोटी क
े मलए ,
दरबन्दर हदन िर िटकते िैं ये बन्जारे नयन ।
31. गजल की मशल्पगत या संरचनागत ववशेषता
3.शेर
शेर दो पंब्क्तयों का िोता िै। शेर गजल रूपी मिल क
े ईट िोते िैं। एक िी बिर क
े कई शेर
ममलकर एक गजल का ननमाणर् करते िैं। ‘ शेर शधद अरबी का िै ब्जसका अथण िोता िै - जनाना
जुल्फ या बाल। इसीमलए गजल को यहद सुन्दरी किा जाता िै तो शेर उसक
े गेसू किलाते िैं। शेर
की तुलना माशूक क
े चेिरे पर बनी दोनों िौिों से की जाती िै। फारसी , उदूण और हिन्दी क
े शधद
जब एक ववमशष्ट छन्द - शास्त्र में बाँिकर आते िैं , तो उन्िें शेर की संज्ञा दी जाती िै।
गजलों की प्रिान ववशेषता संक्षक्षप्तता िोने क
े कारर् उनमें दोिा छन्द की िााँनत थोड़े में बिुत
क
ु छ किने अथवा गागर में सागर िरने की सामथ्यण ननहित िोती िै। अतः गजलों में अनुिूनत
की सम्प्प्रेषर्ीयता का मित्त्व असंहदनि िै। वास्तव में यहद गजल को कवव की अनुिूनतयों का
ववस्फोट किें तो यि अनतशयोब्क्त न िोगी। गजलों में कवव अपना दुःख - ददण , िषण उल्लास ,
नलाननदृक्षोि , प्रायब्श्चत , उपालम्प्ि , देश - काल तथा पररब्स्थनतयों क
े प्रनत आत्म - दृब्ष्टकोर् को
प्रस्तुत करता िै। गजल क
े एक - एक ममसरे में कवव का अन्तजणगत प्रनतबबब्म्प्बत िोता िै।
32. गजल की मशल्पगत या संरचनागत ववशेषता
4.ितला ’ ( उदय )
गजल क
े पिले शेर को ‘ मतला ’ ( उदय ) और -- गजल का स्वरूप ववश्लेषर् आखखरी शेर को ‘
मक्ता किते िैं।
5.गजल
गजल की रचना में ‘ बिर ( छन्द ) का एक ननब्श्चत अनुशासन िोता िै। गजल क
े छन्दों में वर्ण
मात्रा , लय , गनत , यनत आहद का ववशेष ध्यान रखा जाता िै। इस प्रकार ककसी कवव द्वारा एक
िी छंद क
े सााँचे में प्रस्तुत ककये गये िम काकफया और िम रदीफ शेरों क
े ववमशष्ट संगठन को
गजल किते िैं। गजल में शेरों की संख्या कम से कम तीन और अधिक से अधिक पच्चीस मानी
गयी िै , ककन्तु अब इस तरि का कोई बन्िन निीं िै। अब काफी लम्प्बी गजलें िी मलखी जा रिी
िैं।
33. उपसंहार
अब तक क
े अध्ययन में िमने ये देखा कक गजल अरबी और फारसी से िोती िुई उदूण से पिले
हिन्दी में आई और अमीर खुसरो ने फारसी , हिन्दी और लोक िाषाओं क
े ममले - जुले प्रयोग से
गजल को एक नया रूप प्रदान ककया। अमीर खुसरो क
े बाद कबीर दास , प्यारे लाल शोकी और
धगररिरदास से िोती िुई गजल आिुननक काव्य तक पिुाँची। हिन्दी में िब्क्त साहित्य क
े कववयों
द्वारा गीत , चैपाई , दोिा और पदों जैसे छन्दों को अपनाये जाने क
े कारर् गजल जैसे काव्य रूप
पर उनका ध्यान निीं गया। रीनत कालीन कववयों ने दोिा , सवैया , िनाक्षरी आहद छन्दों में
रचनाएाँ की। हिन्दी साहित्य में गजल क
े अध्येताओं ने मीराबाई क
े क
ु छ पदों एवं क
े शवदास की
रामचब्न्रका में गजल क
े छन्दशास्त्र की लय लक्षक्षत की िै , ककन्तु गजल का व्यवब्स्थत लेखन
िारतेन्दु युग में िी ममलता िै। िारतेन्दु िररश्चन्र ‘ रस , प्रताप नरायर् ममश्र , बरी नारायर् चैिरी
प्रेमघन आहद ने इस युग में अच्छी गजलें मलखी िैं।
34. उपसंहार
हहला देंगे अभी ऐ संगे हदल तेरे कलेजे को
हिारी आततशेबारी से पत्र्र भी वपघलते हैं।
िैं हदाँढता तुझे र्ा जब क
ुं ज और वन ने
तद खोजता िुझे र्ा तब दीन क
े वतन िें।
-राि नरेश त्रिपाठी
भेद खुल - खुल जाय वो सदरत हिारे हदल िें है।
देश को मिल जाय जो पदाँजी तुम्हारी मिल िें है।
ब्जन्होंने हो तुम्हें देखा नयन वे और होते हैं।
फक बनते वन्दना क
े छन्द क्षण वे और होते हैं।
जब न क
ु छ दे सका प्रेि - पीयदष तो
अब उपेक्षा भरा ववष तनगल जाइये।
व्यर्थ सारा िनस्ताप िेरा गया
कोई पत्र्र न कर दे वपघल जाइये।
यदाँही राह चलते िें मिल लेने वाले
बड़े आये हैं िेरा हदल लेने वाले।
35. उपसंहार
बन न जाये ये शहर की ब्जन्दगी जैसी कहीं
जोर से पत्र्र उछालो झील को सोने न दो।
जब कभी ब्जक्र तछड़ा उनकी गली िें िेरा
जाने शिाथये क्यों वो गााँव की दुल्हन की तरह।
36. सन्दभथ - ग्रन्य - सदची
सन्दभथ - ग्रन्य - सदची
1. अब िोगी बरसात नरेन्र क
ु मार जनसंस्कृ नत मंच प्रकाशन , 5 खुसरोबाग रोड इलािाबाद।
2. अमीर खुसरो और उनकी हिन्दी रचनाएाँ , डॉ 0 िोलानाथ नतवारी 2016. ।
3. असनाफ
े अदब का मतणबा सैय्यद सफी मुतणजा ननजामी प्रेस लखनऊ ।
4. आस बशीरबर वार्ी प्रकाशनदृ 4697 ि्5, 21 दृए , दररयागंज , नई हदल्ली प्र 0 सं 0
5. आस्था क
े अमलतास , चन्रसेन ववराट , इन्रप्रस्त प्र 0 हदल्ली - 51, 2015
6. आग का राग मािव मिुकर , वैिव प्रकाशन , मोिन पाक
ण , नवीन शािदरा , हदल्ली 9 , प्र 0 सं 0
2016
7. आिुननक कववता में उदूण , क
े तत्व , डॉ 0 नरेश राजकमल प्रकाशन , हदल्ली , 2016.
8. आिुननकता और सृजनात्मक साहित्य , इन्रनाथ मदान , रािाकृ ष्र् प्र नई हदल्ली ,
9. आइना दरका िुआ , नधचक
े ता , 0/50, डाक्टसण कालोनी क
ं कड बाग पटना द्वारा प्रकामशत
इन्दुकला खर्णड - 1 ककरर् - 5 सं 0 जयशंकर प्रसाद
10. उदूण जबान का संक्षक्षप्त इनतिास , रामनरेश बत्रपाठी , 2016, हिन्दी मंहदर , प्रयाग
11. उदूण िाषा का संक्षक्षप्त इनतिास , रिुपनत सिाय कफराक , हिन्दी संस्थान , लखनऊ
12. उदूण साहित्य का संक्षक्षप्त इनतिास , प्रो 0 एजाज िुसेन , राजकमल प्रकाशन , हदल्ली , 2017
13. उदूण सायरी पर एक नजर प्रो 0 कलीमुद्दीन अिमद
14. उदूण - हिन्दी कोश सं 0 मुिम्प्मद मुस्तफा खॉ मद्दाि
15. एक पत्थर झील में अननल गिलौत श्री मशवशब्क्त प्र 0, अग्रसेन नगर कोसीकलांमथुरा
16. ऐ पररन्दो परों में रिो मिुर नज्मी काव्यमुखी - साहित्य अकादमी िफीज कालोनी आदशण
नगर , गोिना - मुिम्प्मदाबाद , प्र 0 सं 0 2017
17. किी क
ु छ याद आता िै शंकर प्रसाद करगेती सम्प्वेदना प्रकाशन एफ - 23 नई कालोनी ,
कामसमपुर ( पा 0 िा 0) अलीगढ़ .