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त्रिलोचन
{IX} : {E}
ळे. वी. आई. जी
छु ट्टी का
गृहकार्य
रवीन्द्रनाथ ठाकु र का जीवन पररचर्
रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्द्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता के प्रसिद्ध जोर
िाांको भवन में हुआ था। आपके पपता देबेन्द्रनाथ टैगोर (देवेन्द्रनाथ
ठाकु र) ब्रह्म िमाज के नेता थे। आप उनके िबिे छोटे पुि थे। आपका
पररवार कोलकत्ता के प्रसिद्ध व िमृद्ध पररवारों में िे कक था।
भारत का राष्ट्र-गान आप ही की देन है। रवीन्द्रनाथ टैगोर की
बाल्र्काल िे कपवताकां और कहाननर्ााँ सलखने में रुचच थी। रवीन्द्रनाथ
टैगोर को प्रकृ नत िे अगाध प्रेम था।
कक बाांग्ला कपव, कहानीकार, गीतकार, िांगीतकार, नाटककार, ननबांधकार
और चचिकार थे। भारतीर् िांस्कृ नत के िवयश्रेष्ट्ठ रूप िे पश्चचमी देशों का
पररचर् और पश्चचमी देशों की िांस्कृ नत िे भारत का पररचर् कराने में
टैगोर की बडी भूसमका रही तथा आमतौर पर उन्द्हें आधुननक भारत का
अिाधारण िृजनशील कलाकार माना जाता है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की सशक्षा
रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्राथसमक सशक्षा िेंट जेपवर्र
स्कू ल में हुई। उनके पपता देवेन्द्रनाथ ठाकु र कक जाने-
माने िमाज िुधारक थे। वे चाहते थे कक रवीन्द्रनाथ
बडे होकर बैररस्टर बनें। इिसलक उन्द्होंने रवीन्द्रनाथ
को कानून की पढाई के सलक 1878 में लांदन भेजा
लेककन रवीन्द्रनाथ का मन तो िाहहत्र् में था किर
मन वहााँ कै िे लगता! आपने कु छ िमर् तक लांदन के
कॉलेज पवचवपवद्र्ालर् में कानून का अध्र्र्न ककर्ा
लेककन 1880 में त्रबना डडग्री सलक वापि आ गक।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का िाहहत्र् िृजन
िाहहत्र् के पवसभन्द्न पवधाओां में िृजन ककर्ा।
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की िबिे लोकपप्रर् रचना 'गीताांजसल' रही श्जिके सलक 1913 में
उन्द्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान ककर्ा गर्ा।
आप पवचव के ककमाि ऐिे िाहहत्र्कार हैं श्जनकी दो रचनाकां दो देशों का राष्ट्रगान
बनीां। भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाांग्लादेश का राष्ट्रीर् गान 'आमार
िोनार बाांग्ला' गुरुदेव की ही रचनाकां हैं।
गीताांजसल लोगों को इतनी पिांद आई कक अांग्रेजी, जमयन, फ्रैं च, जापानी, रूिी आहद
पवचव की िभी प्रमुख भाषाओां में इिका अनुवाद ककर्ा गर्ा। टैगोर का नाम दुननर्ा
के कोने-कोने में िै ल गर्ा और वे पवचव-मांच पर स्थापपत हो गक।
रवीन्द्रनाथ की कहाननर्ों में काबुलीवाला, मास्टर िाहब और पोस्टमास्टर आज भी
लोकपप्रर् कहाननर्ाां हैं।
रवीन्द्रनाथ की रचनाओां में स्वतांिता आांदोलन और उि िमर् के िमाज की झलक
स्पष्ट्ट रूप िे देखी जा िकती है।
िामाश्जक जीवन
16 अक्तूबर 1905 को रवीन्द्रनाथ के नेतृत्व में कोलकाता में मनार्ा
गर्ा रक्षाबांधन उत्िव िे 'बांग-भांग आांदोलन' का आरम्भ हुआ। इिी
आांदोलन ने भारत में स्वदेशी आांदोलन का िूिपात ककर्ा।
टैगोर ने पवचव के िबिे बडे नरिांहारों में िे कक जसलर्ाांवाला काांड
(1919) की घोर ननांदा की और इिके पवरोध में उन्द्होंने त्रब्रहटश प्रशािन
द्वारा प्रदान की गई, 'नाइट हुड' की उपाचध लौटा दी। 'नाइट हुड' समलने
पर नाम के िाथ 'िर' लगार्ा जाता है।
रचनाधमी
बचपन िे ही उनकी कपवता, छन्द्द और भाषा में अद्भुत प्रनतभा का आभाि लोगों को
समलने लगा था। उन्द्होंने पहली कपवता आठ िाल की उम्र में सलखी थी और 1877 में
के वल िोलह िाल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकासशत हुई थी। भारतीर् िाांस्कृ नतक
चेतना में नई जान िूाँ कने वाले र्ुगदृष्ट्टा टैगोर के िृजन िांिार में गीताांजसल, पूरबी
प्रवाहहनी, सशशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, पररशेष, पुनचच, वीचथका शेषलेखा,
चोखेरबाली, कणणका, नैवेद्र् मार्ेर खेला और क्षणणका आहद शासमल हैं। देश और
पवदेश के िारे िाहहत्र्, दशयन, िांस्कृ नत आहद उन्द्होंने आहरण करके अपने अन्द्दर िमेट
सलक थे। पपता के ब्रह्म-िमाजी के होने के कारण वे भी ब्रह्म-िमाजी थे। पर अपनी
रचनाओां व कमय के द्वारा उन्द्होंने िनातन धमय को भी आगे बढार्ा।
मनुष्ट्र् और ईचवर के बीच जो चचरस्थार्ी िम्पकय है, उनकी रचनाओां के अन्द्दर वह
अलग-अलग रूपों में उभर आता है। िाहहत्र् की शार्द ही ऐिी कोई शाखा हो, श्जनमें
उनकी रचना न हो - कपवता, गान, कथा, उपन्द्र्ाि, नाटक, प्रबन्द्ध, सशल्पकला - िभी
पवधाओां में उन्द्होंने रचना की। उनकी प्रकासशत कृ नतर्ों में - गीताांजली, गीताली,
गीनतमाल्र्, कथा ओ कहानी, सशशु, सशशु भोलानाथ, कणणका, क्षणणका, खेर्ा आहद
प्रमुख हैं। उन्द्होंने कु छ पुस्तकों का अांग्रेजी में अनुवाद भी ककर्ा। अांग्रेजी अनुवाद के
बाद उनकी प्रनतभा पूरे पवचव में िै ली।
शाश्न्द्तननके तन
टैगोर को बचपन िे ही प्रकृ नत का िाश्न्द्नध्र् बहुत
भाता था। वह हमेशा िोचा करते थे कक प्रकृ नत के
िाननध्र् में ही पवद्र्ाचथयर्ों को अध्र्र्न करना
चाहहक। इिी िोच को मूतयरूप देने के सलक वह 1901
में सिर्ालदह छोडकर आश्रम की स्थापना करने के
सलक शाश्न्द्तननके तन आ गक। प्रकृ नत के िाश्न्द्नध्र् में
पेडों, बगीचों और कक लाइब्रेरी के िाथ टैगोर ने
शाश्न्द्तननके तन की स्थापना की।
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टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रवीांर िांगीत
बााँग्ला िांस्कृ नत का असभन्द्न अांग है। टैगोर के िांगीत को उनके
िाहहत्र् िे अलग नहीां ककर्ा जा िकता। उनकी अचधकतर
रचनाकाँ तो अब उनके गीतों में शासमल हो चुकी हैं। हहांदुस्तानी
शास्िीर् िांगीत की ठु मरी शैली िे प्रभापवत र्े गीत मानवीर्
भावनाओां के अलग-अलग रांग प्रस्तुत करते हैं।
अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत र्ह आभाि कराते हैं
मानो उनकी रचना उि राग पवशेष के सलक ही की गई थी।
प्रकृ नत के प्रनत गहरा लगाव रखने वाला र्ह प्रकृ नत प्रेमी ऐिा
ककमाि व्र्श्क्त है श्जिने दो देशों के सलक राष्ट्रगान सलखा।
दशयन
गुरुदेव ने जीवन के अांनतम हदनों में चचि बनाना शुरू ककर्ा। इिमें र्ुग का िांशर्,
मोह, क्लाश्न्द्त और ननराशा के स्वर प्रकट हुक हैं। मनुष्ट्र् और ईचवर के बीच जो
चचरस्थार्ी िम्पकय है उनकी रचनाओां में वह अलग-अलग रूपों में उभरकर िामने
आर्ा। टैगोर और महात्मा गान्द्धी के बीच राष्ट्रीर्ता और मानवता को लेकर हमेशा
वैचाररक मतभेद रहा। जहाां गान्द्धी पहले पार्दान पर राष्ट्रवाद को रखते थे, वहीां टैगोर
मानवता को राष्ट्रवाद िे अचधक महत्व देते थे। लेककन दोनों कक दूिरे का बहुत
अचधक िम्मान करते थे। टैगोर ने गान्द्धीजी को महात्मा का पवशेषण हदर्ा था। कक
िमर् था जब शाश्न्द्तननके तन आचथयक कमी िे जूझ रहा था और गुरुदेव देश भर में
नाटकों का मांचन करके धन िांग्रह कर रहे थे। उि वक्त गान्द्धी जी ने टैगोर को 60
हजार रुपर्े के अनुदान का चेक हदर्ा था।
जीवन के अश्न्द्तम िमर् 7 अगस्त 1941 के कु छ िमर् पहले इलाज के सलक जब
उन्द्हें शाश्न्द्तननके तन िे कोलकाता ले जार्ा जा रहा था तो उनकी नानतन ने कहा कक
आपको मालूम है हमारे र्हााँ नर्ा पावर हाउि बन रहा है। इिके जवाब में उन्द्होंने कहा
कक हााँ पुराना आलोक चला जाकगा नक का आगमन होगा।
Rabindranath Tagore

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Rabindranath Tagore

  • 1. त्रिलोचन {IX} : {E} ळे. वी. आई. जी छु ट्टी का गृहकार्य
  • 2. रवीन्द्रनाथ ठाकु र का जीवन पररचर् रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्द्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता के प्रसिद्ध जोर िाांको भवन में हुआ था। आपके पपता देबेन्द्रनाथ टैगोर (देवेन्द्रनाथ ठाकु र) ब्रह्म िमाज के नेता थे। आप उनके िबिे छोटे पुि थे। आपका पररवार कोलकत्ता के प्रसिद्ध व िमृद्ध पररवारों में िे कक था। भारत का राष्ट्र-गान आप ही की देन है। रवीन्द्रनाथ टैगोर की बाल्र्काल िे कपवताकां और कहाननर्ााँ सलखने में रुचच थी। रवीन्द्रनाथ टैगोर को प्रकृ नत िे अगाध प्रेम था। कक बाांग्ला कपव, कहानीकार, गीतकार, िांगीतकार, नाटककार, ननबांधकार और चचिकार थे। भारतीर् िांस्कृ नत के िवयश्रेष्ट्ठ रूप िे पश्चचमी देशों का पररचर् और पश्चचमी देशों की िांस्कृ नत िे भारत का पररचर् कराने में टैगोर की बडी भूसमका रही तथा आमतौर पर उन्द्हें आधुननक भारत का अिाधारण िृजनशील कलाकार माना जाता है।
  • 3. रवीन्द्रनाथ टैगोर की सशक्षा रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्राथसमक सशक्षा िेंट जेपवर्र स्कू ल में हुई। उनके पपता देवेन्द्रनाथ ठाकु र कक जाने- माने िमाज िुधारक थे। वे चाहते थे कक रवीन्द्रनाथ बडे होकर बैररस्टर बनें। इिसलक उन्द्होंने रवीन्द्रनाथ को कानून की पढाई के सलक 1878 में लांदन भेजा लेककन रवीन्द्रनाथ का मन तो िाहहत्र् में था किर मन वहााँ कै िे लगता! आपने कु छ िमर् तक लांदन के कॉलेज पवचवपवद्र्ालर् में कानून का अध्र्र्न ककर्ा लेककन 1880 में त्रबना डडग्री सलक वापि आ गक।
  • 4. रवीन्द्रनाथ टैगोर का िाहहत्र् िृजन िाहहत्र् के पवसभन्द्न पवधाओां में िृजन ककर्ा। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की िबिे लोकपप्रर् रचना 'गीताांजसल' रही श्जिके सलक 1913 में उन्द्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान ककर्ा गर्ा। आप पवचव के ककमाि ऐिे िाहहत्र्कार हैं श्जनकी दो रचनाकां दो देशों का राष्ट्रगान बनीां। भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाांग्लादेश का राष्ट्रीर् गान 'आमार िोनार बाांग्ला' गुरुदेव की ही रचनाकां हैं। गीताांजसल लोगों को इतनी पिांद आई कक अांग्रेजी, जमयन, फ्रैं च, जापानी, रूिी आहद पवचव की िभी प्रमुख भाषाओां में इिका अनुवाद ककर्ा गर्ा। टैगोर का नाम दुननर्ा के कोने-कोने में िै ल गर्ा और वे पवचव-मांच पर स्थापपत हो गक। रवीन्द्रनाथ की कहाननर्ों में काबुलीवाला, मास्टर िाहब और पोस्टमास्टर आज भी लोकपप्रर् कहाननर्ाां हैं। रवीन्द्रनाथ की रचनाओां में स्वतांिता आांदोलन और उि िमर् के िमाज की झलक स्पष्ट्ट रूप िे देखी जा िकती है।
  • 5. िामाश्जक जीवन 16 अक्तूबर 1905 को रवीन्द्रनाथ के नेतृत्व में कोलकाता में मनार्ा गर्ा रक्षाबांधन उत्िव िे 'बांग-भांग आांदोलन' का आरम्भ हुआ। इिी आांदोलन ने भारत में स्वदेशी आांदोलन का िूिपात ककर्ा। टैगोर ने पवचव के िबिे बडे नरिांहारों में िे कक जसलर्ाांवाला काांड (1919) की घोर ननांदा की और इिके पवरोध में उन्द्होंने त्रब्रहटश प्रशािन द्वारा प्रदान की गई, 'नाइट हुड' की उपाचध लौटा दी। 'नाइट हुड' समलने पर नाम के िाथ 'िर' लगार्ा जाता है।
  • 6. रचनाधमी बचपन िे ही उनकी कपवता, छन्द्द और भाषा में अद्भुत प्रनतभा का आभाि लोगों को समलने लगा था। उन्द्होंने पहली कपवता आठ िाल की उम्र में सलखी थी और 1877 में के वल िोलह िाल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकासशत हुई थी। भारतीर् िाांस्कृ नतक चेतना में नई जान िूाँ कने वाले र्ुगदृष्ट्टा टैगोर के िृजन िांिार में गीताांजसल, पूरबी प्रवाहहनी, सशशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, पररशेष, पुनचच, वीचथका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणणका, नैवेद्र् मार्ेर खेला और क्षणणका आहद शासमल हैं। देश और पवदेश के िारे िाहहत्र्, दशयन, िांस्कृ नत आहद उन्द्होंने आहरण करके अपने अन्द्दर िमेट सलक थे। पपता के ब्रह्म-िमाजी के होने के कारण वे भी ब्रह्म-िमाजी थे। पर अपनी रचनाओां व कमय के द्वारा उन्द्होंने िनातन धमय को भी आगे बढार्ा। मनुष्ट्र् और ईचवर के बीच जो चचरस्थार्ी िम्पकय है, उनकी रचनाओां के अन्द्दर वह अलग-अलग रूपों में उभर आता है। िाहहत्र् की शार्द ही ऐिी कोई शाखा हो, श्जनमें उनकी रचना न हो - कपवता, गान, कथा, उपन्द्र्ाि, नाटक, प्रबन्द्ध, सशल्पकला - िभी पवधाओां में उन्द्होंने रचना की। उनकी प्रकासशत कृ नतर्ों में - गीताांजली, गीताली, गीनतमाल्र्, कथा ओ कहानी, सशशु, सशशु भोलानाथ, कणणका, क्षणणका, खेर्ा आहद प्रमुख हैं। उन्द्होंने कु छ पुस्तकों का अांग्रेजी में अनुवाद भी ककर्ा। अांग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रनतभा पूरे पवचव में िै ली।
  • 7. शाश्न्द्तननके तन टैगोर को बचपन िे ही प्रकृ नत का िाश्न्द्नध्र् बहुत भाता था। वह हमेशा िोचा करते थे कक प्रकृ नत के िाननध्र् में ही पवद्र्ाचथयर्ों को अध्र्र्न करना चाहहक। इिी िोच को मूतयरूप देने के सलक वह 1901 में सिर्ालदह छोडकर आश्रम की स्थापना करने के सलक शाश्न्द्तननके तन आ गक। प्रकृ नत के िाश्न्द्नध्र् में पेडों, बगीचों और कक लाइब्रेरी के िाथ टैगोर ने शाश्न्द्तननके तन की स्थापना की।
  • 8. रवीन्द्र िांगीत टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रवीांर िांगीत बााँग्ला िांस्कृ नत का असभन्द्न अांग है। टैगोर के िांगीत को उनके िाहहत्र् िे अलग नहीां ककर्ा जा िकता। उनकी अचधकतर रचनाकाँ तो अब उनके गीतों में शासमल हो चुकी हैं। हहांदुस्तानी शास्िीर् िांगीत की ठु मरी शैली िे प्रभापवत र्े गीत मानवीर् भावनाओां के अलग-अलग रांग प्रस्तुत करते हैं। अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत र्ह आभाि कराते हैं मानो उनकी रचना उि राग पवशेष के सलक ही की गई थी। प्रकृ नत के प्रनत गहरा लगाव रखने वाला र्ह प्रकृ नत प्रेमी ऐिा ककमाि व्र्श्क्त है श्जिने दो देशों के सलक राष्ट्रगान सलखा।
  • 9. दशयन गुरुदेव ने जीवन के अांनतम हदनों में चचि बनाना शुरू ककर्ा। इिमें र्ुग का िांशर्, मोह, क्लाश्न्द्त और ननराशा के स्वर प्रकट हुक हैं। मनुष्ट्र् और ईचवर के बीच जो चचरस्थार्ी िम्पकय है उनकी रचनाओां में वह अलग-अलग रूपों में उभरकर िामने आर्ा। टैगोर और महात्मा गान्द्धी के बीच राष्ट्रीर्ता और मानवता को लेकर हमेशा वैचाररक मतभेद रहा। जहाां गान्द्धी पहले पार्दान पर राष्ट्रवाद को रखते थे, वहीां टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद िे अचधक महत्व देते थे। लेककन दोनों कक दूिरे का बहुत अचधक िम्मान करते थे। टैगोर ने गान्द्धीजी को महात्मा का पवशेषण हदर्ा था। कक िमर् था जब शाश्न्द्तननके तन आचथयक कमी िे जूझ रहा था और गुरुदेव देश भर में नाटकों का मांचन करके धन िांग्रह कर रहे थे। उि वक्त गान्द्धी जी ने टैगोर को 60 हजार रुपर्े के अनुदान का चेक हदर्ा था। जीवन के अश्न्द्तम िमर् 7 अगस्त 1941 के कु छ िमर् पहले इलाज के सलक जब उन्द्हें शाश्न्द्तननके तन िे कोलकाता ले जार्ा जा रहा था तो उनकी नानतन ने कहा कक आपको मालूम है हमारे र्हााँ नर्ा पावर हाउि बन रहा है। इिके जवाब में उन्द्होंने कहा कक हााँ पुराना आलोक चला जाकगा नक का आगमन होगा।