3. मीराबाई
• मीराबाई कृ ष्ण-भक्ति शाखा की प्रमुख कवययत्री हैं। उनका
जन्म १५०४ ईस्वी में जोधपुर के पास मेड्िा ग्राम मे हुआ ा ा
कु ड्की में मीरा बाई का नयनहाल ा ा। उनके पपिा का नाम रत्नससिंह
ा ा। उनके पयि कुिं वर भोजराज उदयपुर के महाराणा सािंगा के पुत्र ा े।
पववाह के कु छ समय बाद ही उनके पयि का देहान्ि हो गया। पयि की
मृत्यु के बाद उन्हे पयि के साा सिी करने का प्रयास ककया गया
ककन्िु मीरािं इसके सलए िैयार नही हुई | वे सिंसार की ओर से पवरति
हो गयीिं और साधु-सिंिों की सिंगयि में हररकीितन करिे हुए अपना समय
व्यिीि करने लगीिं। कु छ समय बाद उन्होंने घर का त्याग कर टदया
और िीा ातिन को यनकल गईं। वे बहुि टदनों िक वृन्दावन में रहीिं और
किर द्वाररका चली गईं। जहााँ सिंवि १५६० ईस्वी में वो भगवान कृ ष्ण
कक मूयित मे समा गई । मीरा बाई ने कृ ष्ण-भक्ति के स्िु ि पदों की
रचना की है।