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सोमनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण हहन्दू मंहदर है जिसकी
गिनती १२ ज्योततर्लिंिों में होती है । िुिरात के सौराष्ट्र क्षेत्र
के वेरावल बंदरिाह में जथित इस मंहदर के बारे में कहा
िाता है कक इसका तनमाणर् थवयं चन्रदेव ने ककया िा ।
इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी र्मलता है । इसे अब तक १७
बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनतनणमाणर्
ककया िया ।
सोमनाि का बारह ज्योततर्लणिों में सबसे प्रमुख थिान है।
सोमनाि मंहदर ववश्व प्रर्सद्ध धार्मणक व पयणटन थिल है।
मंहदर प्रांिर् में रात साढे सात से साढे आठ बिे तक एक
घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाि
मंहदर के इततहास का बडा ही सुंदर सगचत्र वर्णन ककया िाता
है। लोककिाओं के अनुसार यहीं श्रीकृ ष्ट्र् ने देहत्याि ककया
िा। इस कारर् इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ िया। ऐसी
मान्यता है कक श्रीकृ ष्ट्र् भालुका तीिण पर ववश्राम कर रहे िे।
तब ही र्शकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मगचन्ह को
हहरर् की आंख िानकर धोखे में तीर मारा िा। तब ही
कृ ष्ट्र् ने देह त्यािकर यहीं से वैकुं ठ िमन ककया। इस थिान
पर बडा ही सुन्दर कृ ष्ट्र् मंहदर बना हुआ है।
सािर तट से मंहदर का दृश्य सवणप्रिम एक मंहदर ईसा के पूवण में
अजथतत्व में िा जिस ििह पर द्ववतीय बार मंहदर का पुनतनणमाणर्
सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक रािाओं ने ककया । आठवीं सदी
में र्सन्ध के अरबी िवनणर िुनायद ने इसे नष्ट्ट करने के र्लए अपनी
सेना भेिी । प्रततहार रािा नािभट्ट ने 815 ईथवी में इसका तीसरी
बार पुनतनणमाणर् ककया । इस मंहदर की महहमा और कीततण दूर-दूर तक
फै ली िी । अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका
वववरर् र्लखा जिससे प्रभाववत हो महमूद ग़ज़नवी ने सन १०२४ में
सोमनाि मंहदर पर हमला ककया, उसकी सम्पवि लूटी और उसे नष्ट्ट
कर हदया।
१०२४ के डडसम्बर महहनेमें मुहमद ििनवीने कु छ ५,००० सािीयोंके
साि लूट चलाकर थवम इस मंहदर के र्लंि के नाश करनेमें महत्व का
भाि र्लया। ५०,००० लोि मंहदर के अंदर हाि िोडकर पूिा अचणना कर
रहे िे ,प्रायः सभी कत्ल कर हदये िये।
इसके बाद िुिरात के रािा भीम और मालवा के रािा भोि ने इसका
पुनतनणमाणर् कराया । सन 1297 में िब हदल्ली सल्तनत ने िुिरात पर
क़ब्ज़ा ककया तो इसे पााँचवीं बार गिराया िया । मुिल
बादशाह औरंििेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा हदया । इस समय िो
मंहदर खडा है उसे भारत के िृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने
बनवाया और पहली हदसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपतत शंकर दयाल
शमाण ने इसे राष्ट्र को समवपणत ककया ।
मंहदर का बार-बार खंडन और िीर्ोद्धार होता रहा पर र्शवर्लंि
यिावत रहा। लेककन सन १०२६ में महमूद ििनी ने िो र्शवर्लंि
खंडडत ककया, वह यही आहद र्शवर्लंि िा। इसके बाद प्रततजष्ट्ठत ककए
िए र्शवर्लंि को १३०० में अलाउद्दीन की सेना ने खंडडत ककया।
इसके बाद कई बार मंहदर और र्शवर्लंि खंडडत ककया िया। बताया
िाता है आिरा के ककले में रखे देवद्वार सोमनाि मंहदर के हैं।
महमूद ििनी सन १०२६ में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साि ले िया िा। सोमनाि मंहदर के मूल मंहदर
थिल पर मंहदर रथट द्वारा तनर्मणत नवीन मंहदर थिावपत है। रािा कु मार पाल द्वारा इसी थिान पर अजन्तम मंहदर
बनवाया िया िा। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंिराय नवल शंकर ढेबर ने १९ अप्रैल १९४० को यहां उत्खनन कराया
िा। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व ववभाि ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मर्शला पर र्शव का ज्योततर्लणि थिावपत
ककया है। सौराष्ट्र के पूवण रािा हदजग्विय र्संह ने ८ मई १९५० को मंहदर की आधार र्शला रखी तिा ११ मई १९५१ को
भारत के प्रिम राष्ट्रपतत डॉ. रािेंर प्रसाद ने मंहदर में ज्योततर्लणि थिावपत ककया। नवीन सोमनाि मंहदर १९६२ में पूर्ण
तनर्मणत हो िया। १९७० में िामनिर की रािमाता ने अपने थविीय पतत की थमृतत में उनके नाम से हदजग्विय द्वार
बनवाया। इस द्वार के पास रािमािण है और पूवण िृहमन्त्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रततमा है।
सोमनाि मंहदर तनमाणर् में पटेल का बडा योिदान रहा। मंहदर के दक्षक्षर् में समुर के ककनारे एक थतंभ है। उसके ऊपर
एक तीर रखकर संके त ककया िया है कक सोमनाि मंहदर और दक्षक्षर् ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाि नहीं है।
मंहदर के पृष्ट्ठ भाि में जथित प्राचीन मंहदर के ववषय में मान्यता है कक यह पावणती िी का मंहदर है। सोमनाििी के
मंहदर की व्यवथिा और संचालन का कायण सोमनाि रथट के अधीन है। सरकार ने रथट को िमीन, बाि-बिीचे देकर
आय का प्रबंध ककया है। यह तीिण वपतृिर्ों के श्राद्ध, नारायर् बर्ल आहद कमो के र्लए भी प्रर्सद्ध है। चैत्र, भार,
काततणक माह में यहां श्राद्ध करने का ववशेष महत्व बताया िया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड
लिती है। इसके अलावा यहां तीन नहदयों हहरर्, कवपला और सरथवती का महासंिम होता है। इस त्रत्रवेर्ी थनान का
ववशेष महत्व है ।
ववश्वप्रर्सद्ध अंिता-एलोरा की िुफाएाँ हमेशा से ही पयणटकों के आकषणर् का प्रमुख कें र
रही हैं। यहााँ की सुंदर गचत्रकारी व मूततणयााँ कलाप्रेर्मयों के र्लए ककसी िन्नत से कम
नहीं हैं। हरीततमा की चादर ओढी यहााँ की चट्टानें अपने भीतर छु पे हुए इततहास के इस
धरोहर की िौरविािा बयााँ कर रही हैं। ववशालकाय चट्टानें, हररयाली, सुंदर मूततणयााँ और
इस पर यहााँ बहने वाली वाघोरा नदी िैसे यहााँ की खूबसूरती को पररपूर्णता प्रदान करती
है।
अिंता-एलोरा की िुफाएाँ महाराष्ट्र के औरंिाबाद शहर के समीप जथित हैं। ये िुफाएाँ
बडी-बडी चट्टानों को काटकर बनाई िई हैं। 29 िुफाएाँ अिंता में तिा 34 िुफाएाँ
एलोरा में हैं। अब इन िुफाओं को वल्डण हेररटेि के रूप में संरक्षक्षत ककया िा रहा है
ताकक हमारी आने वाली पीढी भी भारतीय कला की इस उत्कृ ष्ट्ट र्मसाल को देख सके ।
कै से पहुाँचें अिंता-एलोरा :
औरंिाबाद से अिंता की दूरी - 101 ककलोमीटर
औरंिाबाद से एलोरा की दूरी - 30 ककलोमीटर
मुंबई, पुर्े, अहमदाबाद, नार्सक, इंदौर, धूले, िलिााँव, र्शडी आहद शहरों से औरंिाबाद के
र्लए बस सुववधा उपलब्ध है। सोमवार का हदन छोडकर आप कभी भी अंिता- एलोरा
िा सकते हैं। औरंिाबाद रेलवे थटेशन से हदल्ली व मुंबई के र्लए रेन सुववधा भी आसानी
से र्मल िाती है। औरंिाबाद रेलवे थटेशन के पास महाराष्ट्र पयणटन ववभाि का होटल
है। इसके अलावा आप र्शडी या नार्सक में भी रात्रत्र ववश्राम कर सकते हैं।
अजंता िी गुफाएँ :
औरंगाबाि से 101 किमी िूर उत्तर में अजंता िी गुफाएँ स्थथत हैं। सह्यादि िी पहाडि़यों
पर स्थथत इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्राथथना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। इन गुफाओं
िी खोज आमी ऑकफसर जॉन स्थमथ व उनिे िल द्वारा सन् 1819 में िी गई थी। वे
यहाँ शििार िरने आए थे तभी उन्हें ितारबद्ध 29 गुफाओं िी एि श्रंखला नजर आई
और इस तरह ये गुफाएँ प्रशसद्ध हो गई। घोडे िी नाल िे आिार में ननशमथत ये गुफाएँ
अत्यन्त ही प्राचीन व ऐनतहाशसि महत्व िी है। इनमें 200 ईसा पूवथ से 650 ईसा पश्चात
ति िे बौद्ध धमथ िा चचत्रण किया गया है। अजंता िी गुफाओं में िीवारों पर खूबसूरत
अप्सराओं व राजिु माररयों िे ववशभन्न मुिाओं वाले सुंिर चचत्र भी उिे रे गए है, जो यहाँ िी
उत्िर ष्ट चचत्रिारी व मूनतथिला िे बेहि ही सुंिर नमूने है। अजंता िी गुफाओं िो िो भागों
में बाँटा जा सिता है। एि भाग में बौद्ध धमथ िे हीनयान और िूसरे भाग में महायान
संप्रिाय िी झलि िेखने िो शमलती है। हीनयान वाले भाग में 2 चैत्य हॉल (प्राथथना हॉल)
और 4 ववहार (बौद्ध शभक्षुओं िे रहने िे थथान) है तथा महायान वाले भाग में 3 चैत्य
हॉल और 11 ववहार है।
ये 19वीं िताब्िी िी गुफाएँ है, स्जसमें बौद्ध शभक्षुओं िी मूनतथयाँ व चचत्र है। हथौडे और
चीनी िी सहायता से तरािी गई ये मूनतथयाँ अपने आप में अप्रनतम सुंिरता िो समेटे है।
एलोरा िी गुफाएँ :
औरंगाबाि से 30 किमी िूर एलोरा िी गुफाएँ हैं। एलोरा िी गुफाओं में 34 गुफाएँ िाशमल
हैं। ये गुफाएँ बेसास्टटि िी पहाडी िे किनारे-किनारे बनी हुई हैं। इन गुफाओं में दहंिू, जैन
और बौद्ध तीन धमों िे प्रनत ििाथई आथथा िा त्रत्रवेणी संगम िा प्रभाव िेखने िो
शमलता है। ये गुफाएँ 350 से 700 ईसा पश्चात िे िौरान अस्थतत्व में आईं।
िक्षक्षण िी ओर 12 गुफाएँ बौद्ध धमथ (महायान संप्रिाय पर आधाररत), मध्य िी 17
गुफाएँ दहंिू धमथ और उत्तर िी 5 गुफाएँ जैन धमथ पर आधाररत हैं। बौद्ध धमथ पर
आधाररत गुफाओं िी मूनतथयों में बुद्ध िी जीवनिैली िी थपष्ट झलि िेखने िो शमलती
है। इन्हें िेखिर तो यही लगता है मानो ध्यानमुिा में बैठे बुद्ध आज भी हमें िांनत,
सद्भाव व एिता िा संिेि िे रहे हैं। यदि आप भी िुननया घुमने िे िौिीन हैं तथा
िलाप्रेमी हैं तो अंजता-एलोरा आपिे शलए एि अच्छा पयथटनथथल है। यहाँ िी गुफाओं में
िी गई नायाब चचत्रिारी व मूनतथिला अपने आप में अद्ववतीय है। इसिे साथ ही यहाँ िी
गुफाएँ धाशमथि सद्माव िी अनूठी शमसाल है।
आिरा का तािमहल भारत की शान और प्रेम का प्रतीक गचह्न माना
िाता है। उिरप्रदेश का तीसरा बडा जिला आिरा ऐततहार्सक दृजष्ट्ट से
काफी महत्वपूर्ण है।
मुिलों का सबसे पसंदीदा शहर होने के कारर् ही उन्होंने हदल्ली से
पहले आिरा को अपनी रािधानी बनाया। इततहास के अनुसार
इब्राहहम लोदी ने इस शहर को सन् 1504 में बसाया िा। जिस समय
इस शहर की थिापना की िई, उस समय ककसी ने यह कल्पना नहीं
की होिी कक यह शहर पूरे ववश्व में अपनी खूबसूरती के र्लए परचम
लहराएिा। जिसे आि भी दुतनया के सात अिूबों में शुमार ककया
िाता है।
इततहास : थिापत्य कला की िीती-िािती तथवीर आिरा शहर हदल्ली
से करीब 200 ककलोमीटर की दूरी पर जथित है। जिसे बनाने के र्लए
बिदाद से एक कारीिर बुलवाया िया िो पत्िर पर घुमावदार अक्षरों
को तराश सकता िा। इसी तरह बुखारा शहर, िो मध्य एर्शया में
जथित हैं, वहां से जिस कारीिर को बुलवाया िया वह संिमरमर के
पत्िर पर फू लों को तराशने में दक्ष िा। ववराट कद के िुंबदों का
तनमाणर् करने के र्लए तुकी के इथतम्बुल में रहने वाले दक्ष कारीिर
बुलाया िया तिा र्मनारों का तनमाणर् करने के र्लए समरकं द से दक्ष
कारीिर को बुलवाया िया।
इस प्रकार तािमहल के तनमाणर् से पूवण छ: महीनों में कु शल कारीिरों
को तराश कर उनमें से 37 दक्ष कारीिर इकट्ठे ककए िए, जिनके
देखरेख में बीस हिार मिदूरों के साि कायण ककया िया।
इसी प्रकार ताि तनमाणर् में लिाई िई सामग्री संिमरमर पत्िर रािथिान के मकरार्ा से, अन्य कई प्रकार के कीमती पत्िर
एवं रत्न बिदाद, अफिातनथतान, ततब्बत, इजिप्त, रूस, ईरान आहद कई देशों से इकट्ठा कर उन्हें भारी कीमतों पर खरीद कर
तािमहल का तनमाणर् करवाया िया।
ई. 1630 में शुरू हुआ इसका तनमाणर् कायण करीब 22 वषों में पूर्ण हुआ, जिसमें लिभि बीस हिार मिदूरों का योिदान माना
िाता है। इसका मुख्य िुंबद 60 फीट ऊं चा और 80 फीट चौडा है।
मुिल बादशाह की मुहब्बत और र्शद्दत का पररर्ाम ही है, 'तािमहल' जिसे खूबसूरती का नायाब हीरा कहा िाता है।
िुंबदनुमा इस इमारत को िब आप र्सर उठाकर ऊपर देखते हैं तो इसकी नक्काशीदार छतें और दीवारें ककसी आश्चयण से
कम नहीं लितीं। इसका यह इततहास तो बच्चे-बडे सभी की िुबान पर है कक मुिल बादशाह शाहिहां ने अपनी दूसरी पत्नी
मुमताि महल की याद में तािमहल का तनमाणर् करवाया िा।
यमुना नदी के ककनारे सफे द पत्िरों से तनर्मणत अलौककक सुंदरता की तथवीर 'तािमहल' न के वल भारत में, बजल्क पूरे ववश्व
में अपनी पहचान बना चुका है। प्यार की इस तनशानी को देखने के र्लए दूर देशों से हिारों सैलानी यहां आते हैं। दूगधया
चांदनी में नहा रहे तािमहल की खूबसूरती को तनहारने के बाद आप ककतनी भी उपमाएं दें, वह सारी फीकी लिती हैं।
मुमताि महल और शाहिहां की कब्र तािमहल के तनचले हहथसे में आमने-सामने बनी हुई है। पयणटन ववभाि की ओर से
प्रततवषण 'ताि महोत्सव' का आयोिन ककया िाता है।
महाराजा पैलेस, रािमहल मैसूर के कृ ष्ट्र्रािा वाडडयार
चतुिण का है। यह पैलेस बाद में बनवाया िया। इससे
पहले का रािमहल चन्दन की लकडडयों से बना िा। एक
दुघणटना में इस रािमहल की बहुत क्षतत हुई जिसके बाद
यह दूसरा महल बनवाया िया। पुराने महल को बाद में
ठीक ककया िया िहााँ अब संग्रहालय है। दूसरा महल
पहले से ज्यादा बडा और अच्छा है।
मैसूर पैलेस दववड, पूवी और रोमन थिापत्य कला का
अद्भुत संिम है। नफासत से तघसे सलेटी पत्िरों से
बना यह महल िुलाबी रंि के पत्िरों के िुंबदों से सिा
है।
महल में एक बडा सा दुिण है जिसके िुंबद सोने के पिरों
से सिे हैं। ये सूरि की रोशनी में खूब ििमिाते हैं।
अब हम मैसूर पैलेस के िोम्बे िोट्टी - िुडडया घर - से
िुिरते हैं। यहां 19वीं और आरंर्भक 20वीं सदी की
िुडडयों का संग्रह है। इसमें 84 ककलो सोने से सिा
लकडी का हौद भी है जिसे हागियों पर रािा के बैठने के
र्लए लिाया िाता िा। इसे एक तरह से घोडे की पीठ
पर रखी िाने वाली काठी भी माना िा सकता है।
िोम्बे िोट्टी के सामने सात तोपें रखी हुई हैं। इन्हें हर साल दशहरा के
आरंभ और समापन के मौके पर दािा िाता है। महल के मध्य में पहुंचने
के र्लए ििद्वार से होकर िुिरना पडता है। वहां कल्यार् मंडप अिाणत्
वववाह मंडप है। उसकी छत रंिीन शीशे की बनी है और फशण पर चमकदार
पत्िर के टुकडे लिे हैं। कहा िाता है कक फशण पर लिे पत्िरों को इंग्लैंड से
मंिाया िया िा।
दूसरे महलों की तरह यहां भी रािाओं के र्लए दीवान-ए-खास और आम
लोिों के र्लए दीवान-ए-आम है। यहां बहुत से कक्ष हैं जिनमें गचत्र और
रािसी हगियार रखे िए हैं। रािसी पोशाकें , आभूषर्, तुन (महोिनी) की
लकडी की बारीक नक्काशी वाले बडे-बडे दरवािे और छतों में लिे झाड-
फानूस महल की शोभा में चार चांद लिाते हैं।दशहरा में 200 ककलो शुद्ध
सोने के बने रािर्संहासन की प्रदशणनी लिती है। कु छ लोिों का मानना है
कक यह पांडवों के िमाने का है। महल की दीवारों पर दशहरा के अवसर पर
तनकलने वाली झांककयों का सिीव गचत्रर् ककया िया है।
महल में जथित मंहदर
प्रवेशद्वार से भीतर िाते ही र्मट्टी के राथते पर दाहहनी ओर एक काउंटर
है िहााँ कै मरा और सेलफोन िमा करना होता है।काउंटर के पास है सोने के
कलश से सिा मजन्दर है। दूसरे छोर पर भी ऐसा ही एक मजन्दर है िो दूर
धुाँधला सा नज़र आता है। दोनों छोरों पर मजन्दर हैं, िो र्मट्टी के राथते पर
है और ववपरीत हदशा में है महल का मुख्य भवन तिा बीच में है उद्यान।
अंदर एक ववशाल कक्ष है, जिसके ककनारों के िर्लयारों में िोडी-िोडी दूरी पर
थतम्भ है। इन थतम्भों और छत पर बारीक सुनहरी नक्काशी है। दीवारों पर
क्रम से गचत्र लिे है। हर गचत्र पर वववरर् र्लखा है।कृ ष्ट्र्रािा वाडडयार
पररवार के गचत्र। रािा चतुिण के यज्ञोपवीत संथकार के गचत्र। ववर्भन्न
अवसरों पर र्लए िए गचत्र। रािततलक के गचत्र। सेना के गचत्र। रािा द्वारा
िनता की फ़ररयाद सुनते गचत्र। एक गचत्र पर हमने देखा प्रर्सद्ध गचत्रकार
रािा रवव वमाण का नाम र्लखा िा। लिभि सभी गचत्र रवव वमाण ने ही तैयार
ककए।
कक्ष के बीचों-बीच छत नहीं है और ऊपर तक िुंबद है िो रंि-त्रबरंिे कााँचों से बना है। इन
रंि-त्रबरंिे कााँचों का चुनाव सूरि और चााँद की रोशनी को महल में ठीक से पहुाँचाने के र्लए
ककया िया िा।तनचले ववशाल कक्ष देखने से पहले तल तक सीहढयााँ इतनी चौडी कक एक साि
बहुत से लोि चढ सकें । पहला तल पूिा का थिान लिा। यहााँ सभी देवी-देवताओं के गचत्र
लिे िे। साि ही महारािा और महारानी द्वारा यज्ञ और पूिा ककए िाने के गचत्र लिे िे।
बीच का िुंबद यहााँ तक है।
दूसरे तल पर दरबार हााँल है। बीच के बडे से भाि को चारों ओर से कई सुनहरे थतम्भ घेरे हैं
इस घेरे से बाहर बाएाँ और दाएाँ िोलाकार थिान है। शायद एक ओर महारानी और दरबार की
अन्य महहलाएाँ बैठा करतीं िी और दूसरी ओर से शायद िनता की फ़ररयाद सुनी िाती िी
क्योंकक यहााँ से बाहरी मैदान नज़र आ रहा िा और बाहर िाने के र्लए दोनों ओर से सीहढयााँ
भी है िहााँ अब बाड लिा दी िई है।इसी तल पर वपछले भाि में एक छोटे से कक्ष में सोने
के तीन र्संहासन है - महारािा, महारानी और युवराि के र्लए।
भारत का प्रर्सद्ध सूयण मंहदर
सूयण मंहदर : आभामंडल का शजक्तपुंि
उडीसा राज्य के पववत्र शहर पुरी के पास कोर्ाकण का सूयण मंहदर जथित है। यह भव्य
मंहदर सूयण देवता को समवपणत है और भारत का प्रर्सद्घ तीिण थिल है। सूयण देवता
के रि के आकार में बनाया िया यह मंहदर भारत की मध्यकालीन वाथतुकला का
अनोखा उदाहरर् है। सूयण मंहदर िाना िाता है यहााँ के सभी पत्िरों पर की िई
अद्भुत नक्काशी के र्लए।
इस सूयण मंहदर का तनमाणर् रािा नरर्संहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया िा। यह
मंहदर अपने ववर्शष्ट्ट आकार और र्शल्पकला के र्लए दुतनया भर में िाना िाता है।
हहन्दू मान्यता के अनुसार सूयण देवता के रि में बारह िोडी पहहए हैं और रि को
खींचने के र्लए उसमें 7 घोडे िुते हुए हैं। सूयण देवता के रि के आकार में बने
कोर्ाकण के इस मंहदर में भी पत्िर के पहहए और घोडे हैं, साि ही इन पर उिम
नक्काशी भी की िई है। ऐसा शानदार मंहदर ववश्व में शायद ही कहीं हो! इसीर्लए
इसे देखने के र्लए दुतनया भर से पयणटक यहााँ आते हैं। यहााँ की सूयण प्रततमा पुरी के
ििन्नाि मंहदर में सुरक्षक्षत रखी िई है और अब यहााँ कोई भी देव मूततण नहीं है।
सूयण मंहदर समय की ितत को भी दशाणता है, जिसे सूयण देवता तनयंत्रत्रत करते हैं। पूवण
हदशा की ओर िुते हुए मंहदर के 7 घोडे सप्ताह के सातों हदनों के प्रतीक हैं। 12
िोडी पहहए हदन के चौबीस घंटे दशाणते हैं, वहीं इनमें लिी 8 ताडडयााँ हदन के आठों
प्रहर की प्रतीक थवरूप है। कु छ लोिों का मानना है कक 12 िोडी पहहए साल के
बारह महीनों को दशाणते हैं। पूरे मंहदर में पत्िरों पर कई ववषयों और दृश्यों पर
मूततणयााँ बनाई िई हैं।
माना िाता है कक मुजथलम आक्रमर्काररयों पर सैन्यबल की सफलता का िश्न मनाने के
र्लए रािा ने कोर्ाकण में सूयण मंहदर का तनमाणर् करवाया िा। थिानीय लोिों का मानना है
कक यहााँ के टावर में जथित दो शजक्तशाली चुंबक मंहदर के प्रभावशाली आभामंडल के
शजक्तपुंि हैं।
15वीं शताब्दी में मुजथलम सेना ने लूटपाट मचा दी िी, तब सूयण मंहदर के पुिाररयों ने यहााँ
थिवपत सूयण देवता की मूततण को पुरी में ले िाकर सुरक्षक्षत रख हदया, लेककन पूरा मंहदर
काफी क्षततग्रथत हो िया िा। इसके बाद धीरे-धीरे मंहदर पर रेत िमा होने लिी और यह
पूरी तरह रेत से ढाँक िया िा। 20वीं सदी में त्रब्रहटश शासन के अंतिणत हुए रेथटोरेशन में
सूयण मंहदर खोिा िया।
पुराने समय में समुर तट से िुिरने वाले योरपीय नाववक मंहदर के टावर की सहायता से
नेवविेशन करते िे, लेककन यहााँ चट्टानों से टकराकर कई िहाि नष्ट्ट होने लिे और
इसीर्लए इन नाववकों ने सूयण मंहदर को 'ब्लैक पिोडा' नाम दे हदया। िहािों की इन
दुघणटनाओं का कारर् भी मंहदर के शजक्तशली चुंबकों को ही माना िाता है।
हवामहल ियपुर की पहचान है. इस महल का
तनमॉर् 1799 ई० में सवाई प्रताप र्संह द्वारा राि
पररवार की महहलयों के र्लए बनवाई िई िी. इस
महल में सैकङो हवादार झरोखे है।.य ियपुर मे हे।
हवा महल (हवा महल, अनुवाद: हहंदी "हवाओं के
पैलेस" या "हवा का पैलेस"), ियपुर, भारत में एक
महल है. यह 1799 में महारािा सवाई प्रताप र्संह ने
बनवाया िा, और कृ ष्ट्र् के मुकु ट, हहंदू देवता के रूप
में लाल चंद उथता द्वारा डडिाइन ककए.
अपनी अद्ववतीय बाहरी पााँच मंजिला भी है अपने
953 लघु झरोखास बुलाया खखडककयों कक िहटल
िाली काम से सिाया िाता है साि छत्रक के छिे
के समान. िाली की मूल मंशा को शाही महहलाओं में
रोिमराण की जिंदिी का तनरीक्षर् करने की अनुमतत
िी देखा िा रहा है, क्योंकक वे सख्त "परदा" (चेहरा
कवर) का तनरीक्षर् ककया िा त्रबना नीचे सडक
महल अपने उच्च बेस से 50 फीट (15 मीटर)
की ऊं चाई तक बढ िाता है कक एक पांच
मंजिला वपरार्मड के आकार का थमारक है.
र्सटी पैलेस की ओर से हवा महल के र्लए
प्रवेश एक शाही दरवािे के माध्यम से है.
लाल और िुलाबी बलुआ पत्िर से तनर्मणत,
महल ियपुर के व्यापार कें र के हदल में मुख्य
मािण पर जथित है. यह र्सटी पैलेस का हहथसा
है, और ज़नाना या महहला कक्ष में फै ली हुई है,
कक्षों के अन्त: पुर. यह ववशेष रूप से
उल्लेखनीय है िब सुबह सुबह देखी, सूयोदय
की सुनहरी रोशनी के साि िलाया.
ईसवी सन् 1799 में तनर्मणत हवा महल
रािपूतो का मुख्य प्रमार् गचन्ह। पुरानी निरी
की मुख्य िर्लयों के साि यह पााँच मंजिली
इमारत िुलाबी रंि में अधणअष्ट्टभुिाकार और
पररष्ट्कृ त छतेदार बलुए पत्िर की खखडकीयों से
सुसजज्ित है। शाही घरानों की जथत्रयां शहर का
दैतनक िीवन व शहर के िुलूस देख सके इसी
उद्देश्य से इमारत की रचना की िई िी।
बोगध वृक्ष त्रबहार के भारतीय राज्य में पटना से लिभि 100
ककलोमीटर दूर बोधिया में जथित एक बडे और बहुत पुराने पववत्र
अंिीर का पेड है ǀ बोधिया में बोगध वृक्ष "िािृतत के पेड," को “बो री”
के रूप में िाना िाता है ǀ यह वही पेड है जिसके नीचे र्सद्धािण,
(िौतम बुद्ध) ने आत्मज्ञान हार्सल ककया िा ǀ
महाबोगध मंहदर में बोगध वृक्ष को श्री महा बोगध कहा िाता है ǀ छह साल
तक, र्सद्धािण ने एक बोगध वृक्ष के नीचे तपथया की लेककन वह पूरी
तरह से संतुष्ट्ट नहीं हुए ǀ एक हदन एक युवा लडकी ने उन्हें चावल का
कटोरा पेश ककया और उन्होंने उसे थवीकार कर र्लया ǀ उसी पल उन्हें
एहसास हुआ की “िारीररि िठनाईया आजािी िा साधन नै है” उसी
हदन से उन्होंने लोिो को अपने िीवन में चरम सीमओं का उपयोि
करने क र्लए माना ककया ǀ
बौद्ध ग्रंिों के अनुसार बुद्ध, अपने आत्मज्ञान को पाने के बाद, उस
वृक्ष का आभार व्यक्त करने के र्लए उस वृक्ष के सामने एक सप्ताह
तक त्रबना पलके झुकाए खडे रहे ǀ बाद में “अननशमसलोिाना सेनतया”
नामक मंहदर, उसी ििह पर खडा ककया िया िहा वह खडे िे ǀ बुद्ध
के आत्मज्ञान हार्सल करने के बाद चला िया पि चंक्रमनार द्वारा
गचजह्नत है जिसे “ज्वेल वाक” कहा िाता है और वह उन्नीस कमल के
फू लो से पंजक्तबद्ध है, िो की महाबोगध मंहदर के उिरी हदशा में जथति
बौद्ध परंपरा के अनुसार र्सद्धािण िौतम 563 ई.पू. में पैदा हुए
िे ǀ उनके वपता, सुद्धोदाना , सक्या लोिों के शासक िे ǀ
र्सद्धािण (िौतम बुद्ध) ने बचपन से ही रािकु मारों की तरह
िीवन जिया िा ǀ ररवाि के मुतात्रबक, उनकी शादी सोलह साल
की उम्र में यशोधरा नाम की एक लडकी से हुई िी ǀ
आि िो बोगध पेड बोध िया में जथति है वह यिातण वही पेड
नहीं है जिसके नीचे बुद्ध ने अपना आत्मज्ञान हार्सल ककया िा ǀ
परन्तु यह एक तरह से एक प्रत्यक्ष वंशि हो सकता है.
रािा अशोका बोगध वृक्ष को श्रद्धांिर्ल देने में सबसे मेहनती िे,
और काततणक के महीने वृक्ष के सम्मान में हर साल एक उत्सव का
आयोिन करते िे ǀ
उनकी रानी ततथसराक्खा उस पेड से िलती िी क्यूंकक रिा
अपना अगधकतर समय उस वृक्ष के साि त्रबताते िे, और इसर्लए
िब वह महारानी बनी (अिाणत, अशोक के शासनकाल के उन्नीसवें
वषण में) उन्होंने ज़हरीले मांडू कााँटों का इथतेमाल करके पेड को
नष्ट्ट कर हदया ǀ
इसके बाविूद वह पेड दोबारा से बढा और एक महान मठ
बोगधमंदा जिसे बोगधमंदा ववहार के नाम से िाना िाता है वहााँ पर
थिावपत ककया िया ǀ
कु छ बौद्धों के अनुसार, बोगध री दुतनया का कें र है िाँहा पर
सभी बुद्ध (प्रबुद्ध वाले) को ज्ञान प्राप्त होता है ǀ
8 हदसंबर को, बोगध हदवस बौद्धों द्वारा मनाया िाता है. बौध
धमण का पालन करने वाले एक दुसरे को बधाई देते हुए कहते है
“Budu saranai!” (बुदू सरनाई) जिसका मतलब होता है की “बुद्ध
की शांतत तुम्हारी हो” ǀ
श्ी हररमस्न्िर सादहब, जिसे िरबार सादहब या थवणथ
मस्न्िर भी कहा िाता है, र्सख धमाणवलंत्रबयों का पावनतम
धार्मणक थिल या सबसे प्रमुख िुरुद्वारा है। यह भारत के
राज्य पंिाब के अमृतसर शहर में जथित है और यहां का
सबसे बडा आकषणर् है।
पूरा अमृतसर शहर थवर्ण मंहदर के चारों तरफ बसा हुआ है।
थवर्ण मंहदर में प्रततहदन हिारों श्रद्धालु और पयणटक आते हैं।
अमृतसर का नाम वाथतव में उस सरोवर के नाम पर रखा
िया है जिसका तनमाणर् िुरु राम दास ने थवयं अपने हािों
से ककया िा।
र्सक्ख िुरु को ईश्वर तुल्य मानते हैं। थवर्ण मंहदर में प्रवेश
करने से पहले वह मंहदर के सामने सर झुकाते हैं, कफर पैर
धोने के बाद सीहढयों से मुख्य मंहदर तक िाते हैं। सीहढयों
के साि-साि थवर्ण मंहदर से िुडी हुई सारी घटनाएं और
इसका पूरा इततहास र्लखा हुआ है। थवर्ण मंहदर एक बहुत ही
खूबसूरत इमारत है। इसमें रोशनी की सुन्दर व्यवथिा की
िई है। र्सक्खों के र्लए थवर्ण मंहदर बहुत ही महत्वपूर्ण है।
र्सक्खों के अलावा भी बहुत से श्रद्धालु यहां आते हैं, जिनकी
थवर्ण मंहदर और र्सक्ख धमण में अटूट आथिा है।
श्ी हररमस्न्िर सादहब पररसर में दो बडे और कई छोटे-छोटे
तीिणथिल हैं। ये सारे तीिणथिल िलाशय के चारों तरफ फै ले हुए
हैं। इस िलाशय को अमृतसर, अमृत सरोवर और अमृत झील
के नाम से िाना िाता है। पूरा थवर्ण मंहदर सफे द संिमरमर से
बना हुआ है और इसकी दीवारों पर सोने की पवियों से
नक्काशी की िई है। हररमजन्दर साहहब में पूरे हदन िुरबार्ी
(िुरुवार्ी) की थवर लहररयां िूंिती रहती हैं। मंहदर पररसर में
पत्िर का एक थमारक भी है िो, िांबाि र्सक्ख सैतनकों को
श्रद्धािंर्ल देने के र्लए लिाया िया है।
थवर्ण मंहदर को कई बार नष्ट्ट ककया िा चुका है। लेककन भजक्त
और आथिा के कारर् र्सक्खों ने इसे दोबारा बना हदया।
जितनी बार भी यह नष्ट्ट ककया िया है और जितनी बार भी
यह बनाया िया है उसकी हर घटना को मंहदर में दशाणया िया
है। अफिा ा़न हमलावरों ने 19 वीं शताब्दी में इसे पूरी तरह नष्ट्ट
कर हदया िा। तब महारािा रर्िीत र्संह ने इसे दोबारा
बनवाया िा और इसे सोने की परत से सिाया िा।
थवर्ण मंहदर चौबीसों घंटे खुला रहता है। दोपहर के 2 बिे से
लेकर आधी रात तक यहां सबसे ज्यादा श्रद्धालु आते हैं। पूरे
थवर्ण मंहदर में फ्लड लाइट्स की व्यवथिा की िई है। सुबह
और शाम के समय यह बवियां बहुत सुन्दर दृश्य पेश करती हैं।
थवर्ण मंहदर शहर के पुराने क्षेत्र में जथित है। इसके चारों तरफ
िर्लयों का िाल त्रबछा हुआ है। प्रत्येक िली में अनेक िुरुद्वारे
और ऐततहार्सक इमारतें हैं। इन इमारतों के साि ही अनेक
बािार भी हैं िहां बहुत अच्छी चीिें र्मलती हैं।
हदल्ली के ककले को लाल - किला भी कहते हैं, क्योंकक यह लाल रंि का है। यह भारत की रािधानी नई हदल्ली से लिी
पुरानी हदल्ली शहर में जथित है। यह युनेथको ववश्व धरोहर थिल में चयतनत है।
लाल ककला एवं शाहिहााँनाबाद का शहर, मुिल बादशाह शाहिहााँ द्वारा ई स 1639 में बनवाया िया िा। लाल ककले का
अर्भन्यास कफर से ककया िया िा, जिससे इसे सलीमिढ ककले के संि एकीकृ त ककया िा सके । यह ककला एवं महल
शाहिहााँनाबाद की मध्यकालीन निरी का महत्वपूर्ण के न्र-त्रबन्दु रहा है। लालककले की योिना, व्यवथिा एवं सौन्दयण
मुिल सृिनात्मकता का र्शरोत्रबन्दु है, िो कक शाहिहााँ के काल में अपने चरम उत्कषण पर पहुाँची। इस ककले के तनमाणर्
के बाद कई ववकास कायण थवयं शाहिहााँ द्वारा ककए िए। ववकास के कई बडे
ा़
पहलू औरंििे
ा़
ब एवं अंततम मुिल शासकों
द्वारा ककये िये। सम्पूर्ण ववन्यास में कई मूलभूत बदलाव त्रब्रहटश काल में 1857 का प्रिम थवतंत्रता संग्राम के बाद
ककये िये िे। त्रब्रहटश काल में यह ककला मुख्यतः छावनी रूप में प्रयोि ककया िया िा। बजल्क थवतंत्रता के बाद भी
इसके कई महत्वपूर्ण भाि सेना के तनयंत्रर् में 2003 तक रहे।
लाल ककला मुिल बादशाह शाहिहााँ की नई रािधानी,
शाहिहााँनाबाद का महल िा। यह हदल्ली शहर की सातवीं
मुजथलम निरी िी। उसने अपनी रािधानी को आिरा से
हदल्ली बदला, अपने शासन की प्रततष्ट्ठा बढाने हेतु, साि
ही अपनी नये-नये तनमाणर् कराने की महत्वकााँक्षा को नए
मौके देने हेतु भी। इसमें उसकी मुख्य रुगच भी िी।
यह ककला भी तािमहल की भांतत ही यमुना नदी के
ककनारे पर जथित है। वही नदी का िल इस ककले को
घेरकर खाई को भरती िी। इसके पूवोिरी ओर की दीवार
एक पुराने ककले से लिी िी, जिसे सलीमिढ का ककला
भी कहते हैं। सलीमिढ का ककला इथलाम शाह सूरी ने
1546 में बनवाया िा। लालककले का तनमाणर् 1638 में
आरम्भ होकर 1648 में पूर्ण हुआ। पर कु छ मतों के
अनुसार इसे लालकोट का एक पुरातन ककला एवं निरी
बताते हैं, जिसे शाहिहााँ ने कब्िा ा़करके यह ककला
बनवाया िा। लालकोट हहन्दु रािा पृथ्वीराि चौहान की
बारहवीं सदी के अजन्तम दौर में रािधानी िी।
11 माचण 1783 को, र्सखों ने लालककले में प्रवेश कर
दीवान-ए-आम पर कब्िा ा़कर र्लया। निर को मुिल
विी ा़रों ने अपने र्सख सागियों को समपणर् कर हदया। यह
लायण करोर र्संहहया र्मथल के सरदार बघेल र्संह
धालीवाल के कमान में हुआ।
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  • 1.
  • 2. सोमनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण हहन्दू मंहदर है जिसकी गिनती १२ ज्योततर्लिंिों में होती है । िुिरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरिाह में जथित इस मंहदर के बारे में कहा िाता है कक इसका तनमाणर् थवयं चन्रदेव ने ककया िा । इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी र्मलता है । इसे अब तक १७ बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनतनणमाणर् ककया िया । सोमनाि का बारह ज्योततर्लणिों में सबसे प्रमुख थिान है। सोमनाि मंहदर ववश्व प्रर्सद्ध धार्मणक व पयणटन थिल है। मंहदर प्रांिर् में रात साढे सात से साढे आठ बिे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाि मंहदर के इततहास का बडा ही सुंदर सगचत्र वर्णन ककया िाता है। लोककिाओं के अनुसार यहीं श्रीकृ ष्ट्र् ने देहत्याि ककया िा। इस कारर् इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ िया। ऐसी मान्यता है कक श्रीकृ ष्ट्र् भालुका तीिण पर ववश्राम कर रहे िे। तब ही र्शकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मगचन्ह को हहरर् की आंख िानकर धोखे में तीर मारा िा। तब ही कृ ष्ट्र् ने देह त्यािकर यहीं से वैकुं ठ िमन ककया। इस थिान पर बडा ही सुन्दर कृ ष्ट्र् मंहदर बना हुआ है।
  • 3. सािर तट से मंहदर का दृश्य सवणप्रिम एक मंहदर ईसा के पूवण में अजथतत्व में िा जिस ििह पर द्ववतीय बार मंहदर का पुनतनणमाणर् सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक रािाओं ने ककया । आठवीं सदी में र्सन्ध के अरबी िवनणर िुनायद ने इसे नष्ट्ट करने के र्लए अपनी सेना भेिी । प्रततहार रािा नािभट्ट ने 815 ईथवी में इसका तीसरी बार पुनतनणमाणर् ककया । इस मंहदर की महहमा और कीततण दूर-दूर तक फै ली िी । अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका वववरर् र्लखा जिससे प्रभाववत हो महमूद ग़ज़नवी ने सन १०२४ में सोमनाि मंहदर पर हमला ककया, उसकी सम्पवि लूटी और उसे नष्ट्ट कर हदया। १०२४ के डडसम्बर महहनेमें मुहमद ििनवीने कु छ ५,००० सािीयोंके साि लूट चलाकर थवम इस मंहदर के र्लंि के नाश करनेमें महत्व का भाि र्लया। ५०,००० लोि मंहदर के अंदर हाि िोडकर पूिा अचणना कर रहे िे ,प्रायः सभी कत्ल कर हदये िये। इसके बाद िुिरात के रािा भीम और मालवा के रािा भोि ने इसका पुनतनणमाणर् कराया । सन 1297 में िब हदल्ली सल्तनत ने िुिरात पर क़ब्ज़ा ककया तो इसे पााँचवीं बार गिराया िया । मुिल बादशाह औरंििेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा हदया । इस समय िो मंहदर खडा है उसे भारत के िृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और पहली हदसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपतत शंकर दयाल शमाण ने इसे राष्ट्र को समवपणत ककया । मंहदर का बार-बार खंडन और िीर्ोद्धार होता रहा पर र्शवर्लंि यिावत रहा। लेककन सन १०२६ में महमूद ििनी ने िो र्शवर्लंि खंडडत ककया, वह यही आहद र्शवर्लंि िा। इसके बाद प्रततजष्ट्ठत ककए िए र्शवर्लंि को १३०० में अलाउद्दीन की सेना ने खंडडत ककया। इसके बाद कई बार मंहदर और र्शवर्लंि खंडडत ककया िया। बताया िाता है आिरा के ककले में रखे देवद्वार सोमनाि मंहदर के हैं।
  • 4. महमूद ििनी सन १०२६ में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साि ले िया िा। सोमनाि मंहदर के मूल मंहदर थिल पर मंहदर रथट द्वारा तनर्मणत नवीन मंहदर थिावपत है। रािा कु मार पाल द्वारा इसी थिान पर अजन्तम मंहदर बनवाया िया िा। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंिराय नवल शंकर ढेबर ने १९ अप्रैल १९४० को यहां उत्खनन कराया िा। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व ववभाि ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मर्शला पर र्शव का ज्योततर्लणि थिावपत ककया है। सौराष्ट्र के पूवण रािा हदजग्विय र्संह ने ८ मई १९५० को मंहदर की आधार र्शला रखी तिा ११ मई १९५१ को भारत के प्रिम राष्ट्रपतत डॉ. रािेंर प्रसाद ने मंहदर में ज्योततर्लणि थिावपत ककया। नवीन सोमनाि मंहदर १९६२ में पूर्ण तनर्मणत हो िया। १९७० में िामनिर की रािमाता ने अपने थविीय पतत की थमृतत में उनके नाम से हदजग्विय द्वार बनवाया। इस द्वार के पास रािमािण है और पूवण िृहमन्त्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रततमा है। सोमनाि मंहदर तनमाणर् में पटेल का बडा योिदान रहा। मंहदर के दक्षक्षर् में समुर के ककनारे एक थतंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संके त ककया िया है कक सोमनाि मंहदर और दक्षक्षर् ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाि नहीं है। मंहदर के पृष्ट्ठ भाि में जथित प्राचीन मंहदर के ववषय में मान्यता है कक यह पावणती िी का मंहदर है। सोमनाििी के मंहदर की व्यवथिा और संचालन का कायण सोमनाि रथट के अधीन है। सरकार ने रथट को िमीन, बाि-बिीचे देकर आय का प्रबंध ककया है। यह तीिण वपतृिर्ों के श्राद्ध, नारायर् बर्ल आहद कमो के र्लए भी प्रर्सद्ध है। चैत्र, भार, काततणक माह में यहां श्राद्ध करने का ववशेष महत्व बताया िया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड लिती है। इसके अलावा यहां तीन नहदयों हहरर्, कवपला और सरथवती का महासंिम होता है। इस त्रत्रवेर्ी थनान का ववशेष महत्व है ।
  • 5. ववश्वप्रर्सद्ध अंिता-एलोरा की िुफाएाँ हमेशा से ही पयणटकों के आकषणर् का प्रमुख कें र रही हैं। यहााँ की सुंदर गचत्रकारी व मूततणयााँ कलाप्रेर्मयों के र्लए ककसी िन्नत से कम नहीं हैं। हरीततमा की चादर ओढी यहााँ की चट्टानें अपने भीतर छु पे हुए इततहास के इस धरोहर की िौरविािा बयााँ कर रही हैं। ववशालकाय चट्टानें, हररयाली, सुंदर मूततणयााँ और इस पर यहााँ बहने वाली वाघोरा नदी िैसे यहााँ की खूबसूरती को पररपूर्णता प्रदान करती है। अिंता-एलोरा की िुफाएाँ महाराष्ट्र के औरंिाबाद शहर के समीप जथित हैं। ये िुफाएाँ बडी-बडी चट्टानों को काटकर बनाई िई हैं। 29 िुफाएाँ अिंता में तिा 34 िुफाएाँ एलोरा में हैं। अब इन िुफाओं को वल्डण हेररटेि के रूप में संरक्षक्षत ककया िा रहा है ताकक हमारी आने वाली पीढी भी भारतीय कला की इस उत्कृ ष्ट्ट र्मसाल को देख सके । कै से पहुाँचें अिंता-एलोरा : औरंिाबाद से अिंता की दूरी - 101 ककलोमीटर औरंिाबाद से एलोरा की दूरी - 30 ककलोमीटर मुंबई, पुर्े, अहमदाबाद, नार्सक, इंदौर, धूले, िलिााँव, र्शडी आहद शहरों से औरंिाबाद के र्लए बस सुववधा उपलब्ध है। सोमवार का हदन छोडकर आप कभी भी अंिता- एलोरा िा सकते हैं। औरंिाबाद रेलवे थटेशन से हदल्ली व मुंबई के र्लए रेन सुववधा भी आसानी से र्मल िाती है। औरंिाबाद रेलवे थटेशन के पास महाराष्ट्र पयणटन ववभाि का होटल है। इसके अलावा आप र्शडी या नार्सक में भी रात्रत्र ववश्राम कर सकते हैं।
  • 6. अजंता िी गुफाएँ : औरंगाबाि से 101 किमी िूर उत्तर में अजंता िी गुफाएँ स्थथत हैं। सह्यादि िी पहाडि़यों पर स्थथत इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्राथथना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। इन गुफाओं िी खोज आमी ऑकफसर जॉन स्थमथ व उनिे िल द्वारा सन् 1819 में िी गई थी। वे यहाँ शििार िरने आए थे तभी उन्हें ितारबद्ध 29 गुफाओं िी एि श्रंखला नजर आई और इस तरह ये गुफाएँ प्रशसद्ध हो गई। घोडे िी नाल िे आिार में ननशमथत ये गुफाएँ अत्यन्त ही प्राचीन व ऐनतहाशसि महत्व िी है। इनमें 200 ईसा पूवथ से 650 ईसा पश्चात ति िे बौद्ध धमथ िा चचत्रण किया गया है। अजंता िी गुफाओं में िीवारों पर खूबसूरत अप्सराओं व राजिु माररयों िे ववशभन्न मुिाओं वाले सुंिर चचत्र भी उिे रे गए है, जो यहाँ िी उत्िर ष्ट चचत्रिारी व मूनतथिला िे बेहि ही सुंिर नमूने है। अजंता िी गुफाओं िो िो भागों में बाँटा जा सिता है। एि भाग में बौद्ध धमथ िे हीनयान और िूसरे भाग में महायान संप्रिाय िी झलि िेखने िो शमलती है। हीनयान वाले भाग में 2 चैत्य हॉल (प्राथथना हॉल) और 4 ववहार (बौद्ध शभक्षुओं िे रहने िे थथान) है तथा महायान वाले भाग में 3 चैत्य हॉल और 11 ववहार है। ये 19वीं िताब्िी िी गुफाएँ है, स्जसमें बौद्ध शभक्षुओं िी मूनतथयाँ व चचत्र है। हथौडे और चीनी िी सहायता से तरािी गई ये मूनतथयाँ अपने आप में अप्रनतम सुंिरता िो समेटे है। एलोरा िी गुफाएँ : औरंगाबाि से 30 किमी िूर एलोरा िी गुफाएँ हैं। एलोरा िी गुफाओं में 34 गुफाएँ िाशमल हैं। ये गुफाएँ बेसास्टटि िी पहाडी िे किनारे-किनारे बनी हुई हैं। इन गुफाओं में दहंिू, जैन और बौद्ध तीन धमों िे प्रनत ििाथई आथथा िा त्रत्रवेणी संगम िा प्रभाव िेखने िो शमलता है। ये गुफाएँ 350 से 700 ईसा पश्चात िे िौरान अस्थतत्व में आईं। िक्षक्षण िी ओर 12 गुफाएँ बौद्ध धमथ (महायान संप्रिाय पर आधाररत), मध्य िी 17 गुफाएँ दहंिू धमथ और उत्तर िी 5 गुफाएँ जैन धमथ पर आधाररत हैं। बौद्ध धमथ पर आधाररत गुफाओं िी मूनतथयों में बुद्ध िी जीवनिैली िी थपष्ट झलि िेखने िो शमलती है। इन्हें िेखिर तो यही लगता है मानो ध्यानमुिा में बैठे बुद्ध आज भी हमें िांनत, सद्भाव व एिता िा संिेि िे रहे हैं। यदि आप भी िुननया घुमने िे िौिीन हैं तथा िलाप्रेमी हैं तो अंजता-एलोरा आपिे शलए एि अच्छा पयथटनथथल है। यहाँ िी गुफाओं में िी गई नायाब चचत्रिारी व मूनतथिला अपने आप में अद्ववतीय है। इसिे साथ ही यहाँ िी गुफाएँ धाशमथि सद्माव िी अनूठी शमसाल है।
  • 7. आिरा का तािमहल भारत की शान और प्रेम का प्रतीक गचह्न माना िाता है। उिरप्रदेश का तीसरा बडा जिला आिरा ऐततहार्सक दृजष्ट्ट से काफी महत्वपूर्ण है। मुिलों का सबसे पसंदीदा शहर होने के कारर् ही उन्होंने हदल्ली से पहले आिरा को अपनी रािधानी बनाया। इततहास के अनुसार इब्राहहम लोदी ने इस शहर को सन् 1504 में बसाया िा। जिस समय इस शहर की थिापना की िई, उस समय ककसी ने यह कल्पना नहीं की होिी कक यह शहर पूरे ववश्व में अपनी खूबसूरती के र्लए परचम लहराएिा। जिसे आि भी दुतनया के सात अिूबों में शुमार ककया िाता है। इततहास : थिापत्य कला की िीती-िािती तथवीर आिरा शहर हदल्ली से करीब 200 ककलोमीटर की दूरी पर जथित है। जिसे बनाने के र्लए बिदाद से एक कारीिर बुलवाया िया िो पत्िर पर घुमावदार अक्षरों को तराश सकता िा। इसी तरह बुखारा शहर, िो मध्य एर्शया में जथित हैं, वहां से जिस कारीिर को बुलवाया िया वह संिमरमर के पत्िर पर फू लों को तराशने में दक्ष िा। ववराट कद के िुंबदों का तनमाणर् करने के र्लए तुकी के इथतम्बुल में रहने वाले दक्ष कारीिर बुलाया िया तिा र्मनारों का तनमाणर् करने के र्लए समरकं द से दक्ष कारीिर को बुलवाया िया। इस प्रकार तािमहल के तनमाणर् से पूवण छ: महीनों में कु शल कारीिरों को तराश कर उनमें से 37 दक्ष कारीिर इकट्ठे ककए िए, जिनके देखरेख में बीस हिार मिदूरों के साि कायण ककया िया।
  • 8. इसी प्रकार ताि तनमाणर् में लिाई िई सामग्री संिमरमर पत्िर रािथिान के मकरार्ा से, अन्य कई प्रकार के कीमती पत्िर एवं रत्न बिदाद, अफिातनथतान, ततब्बत, इजिप्त, रूस, ईरान आहद कई देशों से इकट्ठा कर उन्हें भारी कीमतों पर खरीद कर तािमहल का तनमाणर् करवाया िया। ई. 1630 में शुरू हुआ इसका तनमाणर् कायण करीब 22 वषों में पूर्ण हुआ, जिसमें लिभि बीस हिार मिदूरों का योिदान माना िाता है। इसका मुख्य िुंबद 60 फीट ऊं चा और 80 फीट चौडा है। मुिल बादशाह की मुहब्बत और र्शद्दत का पररर्ाम ही है, 'तािमहल' जिसे खूबसूरती का नायाब हीरा कहा िाता है। िुंबदनुमा इस इमारत को िब आप र्सर उठाकर ऊपर देखते हैं तो इसकी नक्काशीदार छतें और दीवारें ककसी आश्चयण से कम नहीं लितीं। इसका यह इततहास तो बच्चे-बडे सभी की िुबान पर है कक मुिल बादशाह शाहिहां ने अपनी दूसरी पत्नी मुमताि महल की याद में तािमहल का तनमाणर् करवाया िा। यमुना नदी के ककनारे सफे द पत्िरों से तनर्मणत अलौककक सुंदरता की तथवीर 'तािमहल' न के वल भारत में, बजल्क पूरे ववश्व में अपनी पहचान बना चुका है। प्यार की इस तनशानी को देखने के र्लए दूर देशों से हिारों सैलानी यहां आते हैं। दूगधया चांदनी में नहा रहे तािमहल की खूबसूरती को तनहारने के बाद आप ककतनी भी उपमाएं दें, वह सारी फीकी लिती हैं। मुमताि महल और शाहिहां की कब्र तािमहल के तनचले हहथसे में आमने-सामने बनी हुई है। पयणटन ववभाि की ओर से प्रततवषण 'ताि महोत्सव' का आयोिन ककया िाता है।
  • 9. महाराजा पैलेस, रािमहल मैसूर के कृ ष्ट्र्रािा वाडडयार चतुिण का है। यह पैलेस बाद में बनवाया िया। इससे पहले का रािमहल चन्दन की लकडडयों से बना िा। एक दुघणटना में इस रािमहल की बहुत क्षतत हुई जिसके बाद यह दूसरा महल बनवाया िया। पुराने महल को बाद में ठीक ककया िया िहााँ अब संग्रहालय है। दूसरा महल पहले से ज्यादा बडा और अच्छा है। मैसूर पैलेस दववड, पूवी और रोमन थिापत्य कला का अद्भुत संिम है। नफासत से तघसे सलेटी पत्िरों से बना यह महल िुलाबी रंि के पत्िरों के िुंबदों से सिा है। महल में एक बडा सा दुिण है जिसके िुंबद सोने के पिरों से सिे हैं। ये सूरि की रोशनी में खूब ििमिाते हैं। अब हम मैसूर पैलेस के िोम्बे िोट्टी - िुडडया घर - से िुिरते हैं। यहां 19वीं और आरंर्भक 20वीं सदी की िुडडयों का संग्रह है। इसमें 84 ककलो सोने से सिा लकडी का हौद भी है जिसे हागियों पर रािा के बैठने के र्लए लिाया िाता िा। इसे एक तरह से घोडे की पीठ पर रखी िाने वाली काठी भी माना िा सकता है।
  • 10. िोम्बे िोट्टी के सामने सात तोपें रखी हुई हैं। इन्हें हर साल दशहरा के आरंभ और समापन के मौके पर दािा िाता है। महल के मध्य में पहुंचने के र्लए ििद्वार से होकर िुिरना पडता है। वहां कल्यार् मंडप अिाणत् वववाह मंडप है। उसकी छत रंिीन शीशे की बनी है और फशण पर चमकदार पत्िर के टुकडे लिे हैं। कहा िाता है कक फशण पर लिे पत्िरों को इंग्लैंड से मंिाया िया िा। दूसरे महलों की तरह यहां भी रािाओं के र्लए दीवान-ए-खास और आम लोिों के र्लए दीवान-ए-आम है। यहां बहुत से कक्ष हैं जिनमें गचत्र और रािसी हगियार रखे िए हैं। रािसी पोशाकें , आभूषर्, तुन (महोिनी) की लकडी की बारीक नक्काशी वाले बडे-बडे दरवािे और छतों में लिे झाड- फानूस महल की शोभा में चार चांद लिाते हैं।दशहरा में 200 ककलो शुद्ध सोने के बने रािर्संहासन की प्रदशणनी लिती है। कु छ लोिों का मानना है कक यह पांडवों के िमाने का है। महल की दीवारों पर दशहरा के अवसर पर तनकलने वाली झांककयों का सिीव गचत्रर् ककया िया है। महल में जथित मंहदर प्रवेशद्वार से भीतर िाते ही र्मट्टी के राथते पर दाहहनी ओर एक काउंटर है िहााँ कै मरा और सेलफोन िमा करना होता है।काउंटर के पास है सोने के कलश से सिा मजन्दर है। दूसरे छोर पर भी ऐसा ही एक मजन्दर है िो दूर धुाँधला सा नज़र आता है। दोनों छोरों पर मजन्दर हैं, िो र्मट्टी के राथते पर है और ववपरीत हदशा में है महल का मुख्य भवन तिा बीच में है उद्यान। अंदर एक ववशाल कक्ष है, जिसके ककनारों के िर्लयारों में िोडी-िोडी दूरी पर थतम्भ है। इन थतम्भों और छत पर बारीक सुनहरी नक्काशी है। दीवारों पर क्रम से गचत्र लिे है। हर गचत्र पर वववरर् र्लखा है।कृ ष्ट्र्रािा वाडडयार पररवार के गचत्र। रािा चतुिण के यज्ञोपवीत संथकार के गचत्र। ववर्भन्न अवसरों पर र्लए िए गचत्र। रािततलक के गचत्र। सेना के गचत्र। रािा द्वारा िनता की फ़ररयाद सुनते गचत्र। एक गचत्र पर हमने देखा प्रर्सद्ध गचत्रकार रािा रवव वमाण का नाम र्लखा िा। लिभि सभी गचत्र रवव वमाण ने ही तैयार ककए।
  • 11. कक्ष के बीचों-बीच छत नहीं है और ऊपर तक िुंबद है िो रंि-त्रबरंिे कााँचों से बना है। इन रंि-त्रबरंिे कााँचों का चुनाव सूरि और चााँद की रोशनी को महल में ठीक से पहुाँचाने के र्लए ककया िया िा।तनचले ववशाल कक्ष देखने से पहले तल तक सीहढयााँ इतनी चौडी कक एक साि बहुत से लोि चढ सकें । पहला तल पूिा का थिान लिा। यहााँ सभी देवी-देवताओं के गचत्र लिे िे। साि ही महारािा और महारानी द्वारा यज्ञ और पूिा ककए िाने के गचत्र लिे िे। बीच का िुंबद यहााँ तक है। दूसरे तल पर दरबार हााँल है। बीच के बडे से भाि को चारों ओर से कई सुनहरे थतम्भ घेरे हैं इस घेरे से बाहर बाएाँ और दाएाँ िोलाकार थिान है। शायद एक ओर महारानी और दरबार की अन्य महहलाएाँ बैठा करतीं िी और दूसरी ओर से शायद िनता की फ़ररयाद सुनी िाती िी क्योंकक यहााँ से बाहरी मैदान नज़र आ रहा िा और बाहर िाने के र्लए दोनों ओर से सीहढयााँ भी है िहााँ अब बाड लिा दी िई है।इसी तल पर वपछले भाि में एक छोटे से कक्ष में सोने के तीन र्संहासन है - महारािा, महारानी और युवराि के र्लए।
  • 12. भारत का प्रर्सद्ध सूयण मंहदर सूयण मंहदर : आभामंडल का शजक्तपुंि उडीसा राज्य के पववत्र शहर पुरी के पास कोर्ाकण का सूयण मंहदर जथित है। यह भव्य मंहदर सूयण देवता को समवपणत है और भारत का प्रर्सद्घ तीिण थिल है। सूयण देवता के रि के आकार में बनाया िया यह मंहदर भारत की मध्यकालीन वाथतुकला का अनोखा उदाहरर् है। सूयण मंहदर िाना िाता है यहााँ के सभी पत्िरों पर की िई अद्भुत नक्काशी के र्लए। इस सूयण मंहदर का तनमाणर् रािा नरर्संहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया िा। यह मंहदर अपने ववर्शष्ट्ट आकार और र्शल्पकला के र्लए दुतनया भर में िाना िाता है। हहन्दू मान्यता के अनुसार सूयण देवता के रि में बारह िोडी पहहए हैं और रि को खींचने के र्लए उसमें 7 घोडे िुते हुए हैं। सूयण देवता के रि के आकार में बने कोर्ाकण के इस मंहदर में भी पत्िर के पहहए और घोडे हैं, साि ही इन पर उिम नक्काशी भी की िई है। ऐसा शानदार मंहदर ववश्व में शायद ही कहीं हो! इसीर्लए इसे देखने के र्लए दुतनया भर से पयणटक यहााँ आते हैं। यहााँ की सूयण प्रततमा पुरी के ििन्नाि मंहदर में सुरक्षक्षत रखी िई है और अब यहााँ कोई भी देव मूततण नहीं है। सूयण मंहदर समय की ितत को भी दशाणता है, जिसे सूयण देवता तनयंत्रत्रत करते हैं। पूवण हदशा की ओर िुते हुए मंहदर के 7 घोडे सप्ताह के सातों हदनों के प्रतीक हैं। 12 िोडी पहहए हदन के चौबीस घंटे दशाणते हैं, वहीं इनमें लिी 8 ताडडयााँ हदन के आठों प्रहर की प्रतीक थवरूप है। कु छ लोिों का मानना है कक 12 िोडी पहहए साल के बारह महीनों को दशाणते हैं। पूरे मंहदर में पत्िरों पर कई ववषयों और दृश्यों पर मूततणयााँ बनाई िई हैं।
  • 13. माना िाता है कक मुजथलम आक्रमर्काररयों पर सैन्यबल की सफलता का िश्न मनाने के र्लए रािा ने कोर्ाकण में सूयण मंहदर का तनमाणर् करवाया िा। थिानीय लोिों का मानना है कक यहााँ के टावर में जथित दो शजक्तशाली चुंबक मंहदर के प्रभावशाली आभामंडल के शजक्तपुंि हैं। 15वीं शताब्दी में मुजथलम सेना ने लूटपाट मचा दी िी, तब सूयण मंहदर के पुिाररयों ने यहााँ थिवपत सूयण देवता की मूततण को पुरी में ले िाकर सुरक्षक्षत रख हदया, लेककन पूरा मंहदर काफी क्षततग्रथत हो िया िा। इसके बाद धीरे-धीरे मंहदर पर रेत िमा होने लिी और यह पूरी तरह रेत से ढाँक िया िा। 20वीं सदी में त्रब्रहटश शासन के अंतिणत हुए रेथटोरेशन में सूयण मंहदर खोिा िया। पुराने समय में समुर तट से िुिरने वाले योरपीय नाववक मंहदर के टावर की सहायता से नेवविेशन करते िे, लेककन यहााँ चट्टानों से टकराकर कई िहाि नष्ट्ट होने लिे और इसीर्लए इन नाववकों ने सूयण मंहदर को 'ब्लैक पिोडा' नाम दे हदया। िहािों की इन दुघणटनाओं का कारर् भी मंहदर के शजक्तशली चुंबकों को ही माना िाता है।
  • 14. हवामहल ियपुर की पहचान है. इस महल का तनमॉर् 1799 ई० में सवाई प्रताप र्संह द्वारा राि पररवार की महहलयों के र्लए बनवाई िई िी. इस महल में सैकङो हवादार झरोखे है।.य ियपुर मे हे। हवा महल (हवा महल, अनुवाद: हहंदी "हवाओं के पैलेस" या "हवा का पैलेस"), ियपुर, भारत में एक महल है. यह 1799 में महारािा सवाई प्रताप र्संह ने बनवाया िा, और कृ ष्ट्र् के मुकु ट, हहंदू देवता के रूप में लाल चंद उथता द्वारा डडिाइन ककए. अपनी अद्ववतीय बाहरी पााँच मंजिला भी है अपने 953 लघु झरोखास बुलाया खखडककयों कक िहटल िाली काम से सिाया िाता है साि छत्रक के छिे के समान. िाली की मूल मंशा को शाही महहलाओं में रोिमराण की जिंदिी का तनरीक्षर् करने की अनुमतत िी देखा िा रहा है, क्योंकक वे सख्त "परदा" (चेहरा कवर) का तनरीक्षर् ककया िा त्रबना नीचे सडक
  • 15. महल अपने उच्च बेस से 50 फीट (15 मीटर) की ऊं चाई तक बढ िाता है कक एक पांच मंजिला वपरार्मड के आकार का थमारक है. र्सटी पैलेस की ओर से हवा महल के र्लए प्रवेश एक शाही दरवािे के माध्यम से है. लाल और िुलाबी बलुआ पत्िर से तनर्मणत, महल ियपुर के व्यापार कें र के हदल में मुख्य मािण पर जथित है. यह र्सटी पैलेस का हहथसा है, और ज़नाना या महहला कक्ष में फै ली हुई है, कक्षों के अन्त: पुर. यह ववशेष रूप से उल्लेखनीय है िब सुबह सुबह देखी, सूयोदय की सुनहरी रोशनी के साि िलाया. ईसवी सन् 1799 में तनर्मणत हवा महल रािपूतो का मुख्य प्रमार् गचन्ह। पुरानी निरी की मुख्य िर्लयों के साि यह पााँच मंजिली इमारत िुलाबी रंि में अधणअष्ट्टभुिाकार और पररष्ट्कृ त छतेदार बलुए पत्िर की खखडकीयों से सुसजज्ित है। शाही घरानों की जथत्रयां शहर का दैतनक िीवन व शहर के िुलूस देख सके इसी उद्देश्य से इमारत की रचना की िई िी।
  • 16. बोगध वृक्ष त्रबहार के भारतीय राज्य में पटना से लिभि 100 ककलोमीटर दूर बोधिया में जथित एक बडे और बहुत पुराने पववत्र अंिीर का पेड है ǀ बोधिया में बोगध वृक्ष "िािृतत के पेड," को “बो री” के रूप में िाना िाता है ǀ यह वही पेड है जिसके नीचे र्सद्धािण, (िौतम बुद्ध) ने आत्मज्ञान हार्सल ककया िा ǀ महाबोगध मंहदर में बोगध वृक्ष को श्री महा बोगध कहा िाता है ǀ छह साल तक, र्सद्धािण ने एक बोगध वृक्ष के नीचे तपथया की लेककन वह पूरी तरह से संतुष्ट्ट नहीं हुए ǀ एक हदन एक युवा लडकी ने उन्हें चावल का कटोरा पेश ककया और उन्होंने उसे थवीकार कर र्लया ǀ उसी पल उन्हें एहसास हुआ की “िारीररि िठनाईया आजािी िा साधन नै है” उसी हदन से उन्होंने लोिो को अपने िीवन में चरम सीमओं का उपयोि करने क र्लए माना ककया ǀ बौद्ध ग्रंिों के अनुसार बुद्ध, अपने आत्मज्ञान को पाने के बाद, उस वृक्ष का आभार व्यक्त करने के र्लए उस वृक्ष के सामने एक सप्ताह तक त्रबना पलके झुकाए खडे रहे ǀ बाद में “अननशमसलोिाना सेनतया” नामक मंहदर, उसी ििह पर खडा ककया िया िहा वह खडे िे ǀ बुद्ध के आत्मज्ञान हार्सल करने के बाद चला िया पि चंक्रमनार द्वारा गचजह्नत है जिसे “ज्वेल वाक” कहा िाता है और वह उन्नीस कमल के फू लो से पंजक्तबद्ध है, िो की महाबोगध मंहदर के उिरी हदशा में जथति
  • 17. बौद्ध परंपरा के अनुसार र्सद्धािण िौतम 563 ई.पू. में पैदा हुए िे ǀ उनके वपता, सुद्धोदाना , सक्या लोिों के शासक िे ǀ र्सद्धािण (िौतम बुद्ध) ने बचपन से ही रािकु मारों की तरह िीवन जिया िा ǀ ररवाि के मुतात्रबक, उनकी शादी सोलह साल की उम्र में यशोधरा नाम की एक लडकी से हुई िी ǀ आि िो बोगध पेड बोध िया में जथति है वह यिातण वही पेड नहीं है जिसके नीचे बुद्ध ने अपना आत्मज्ञान हार्सल ककया िा ǀ परन्तु यह एक तरह से एक प्रत्यक्ष वंशि हो सकता है. रािा अशोका बोगध वृक्ष को श्रद्धांिर्ल देने में सबसे मेहनती िे, और काततणक के महीने वृक्ष के सम्मान में हर साल एक उत्सव का आयोिन करते िे ǀ उनकी रानी ततथसराक्खा उस पेड से िलती िी क्यूंकक रिा अपना अगधकतर समय उस वृक्ष के साि त्रबताते िे, और इसर्लए िब वह महारानी बनी (अिाणत, अशोक के शासनकाल के उन्नीसवें वषण में) उन्होंने ज़हरीले मांडू कााँटों का इथतेमाल करके पेड को नष्ट्ट कर हदया ǀ इसके बाविूद वह पेड दोबारा से बढा और एक महान मठ बोगधमंदा जिसे बोगधमंदा ववहार के नाम से िाना िाता है वहााँ पर थिावपत ककया िया ǀ कु छ बौद्धों के अनुसार, बोगध री दुतनया का कें र है िाँहा पर सभी बुद्ध (प्रबुद्ध वाले) को ज्ञान प्राप्त होता है ǀ 8 हदसंबर को, बोगध हदवस बौद्धों द्वारा मनाया िाता है. बौध धमण का पालन करने वाले एक दुसरे को बधाई देते हुए कहते है “Budu saranai!” (बुदू सरनाई) जिसका मतलब होता है की “बुद्ध की शांतत तुम्हारी हो” ǀ
  • 18. श्ी हररमस्न्िर सादहब, जिसे िरबार सादहब या थवणथ मस्न्िर भी कहा िाता है, र्सख धमाणवलंत्रबयों का पावनतम धार्मणक थिल या सबसे प्रमुख िुरुद्वारा है। यह भारत के राज्य पंिाब के अमृतसर शहर में जथित है और यहां का सबसे बडा आकषणर् है। पूरा अमृतसर शहर थवर्ण मंहदर के चारों तरफ बसा हुआ है। थवर्ण मंहदर में प्रततहदन हिारों श्रद्धालु और पयणटक आते हैं। अमृतसर का नाम वाथतव में उस सरोवर के नाम पर रखा िया है जिसका तनमाणर् िुरु राम दास ने थवयं अपने हािों से ककया िा। र्सक्ख िुरु को ईश्वर तुल्य मानते हैं। थवर्ण मंहदर में प्रवेश करने से पहले वह मंहदर के सामने सर झुकाते हैं, कफर पैर धोने के बाद सीहढयों से मुख्य मंहदर तक िाते हैं। सीहढयों के साि-साि थवर्ण मंहदर से िुडी हुई सारी घटनाएं और इसका पूरा इततहास र्लखा हुआ है। थवर्ण मंहदर एक बहुत ही खूबसूरत इमारत है। इसमें रोशनी की सुन्दर व्यवथिा की िई है। र्सक्खों के र्लए थवर्ण मंहदर बहुत ही महत्वपूर्ण है। र्सक्खों के अलावा भी बहुत से श्रद्धालु यहां आते हैं, जिनकी थवर्ण मंहदर और र्सक्ख धमण में अटूट आथिा है।
  • 19. श्ी हररमस्न्िर सादहब पररसर में दो बडे और कई छोटे-छोटे तीिणथिल हैं। ये सारे तीिणथिल िलाशय के चारों तरफ फै ले हुए हैं। इस िलाशय को अमृतसर, अमृत सरोवर और अमृत झील के नाम से िाना िाता है। पूरा थवर्ण मंहदर सफे द संिमरमर से बना हुआ है और इसकी दीवारों पर सोने की पवियों से नक्काशी की िई है। हररमजन्दर साहहब में पूरे हदन िुरबार्ी (िुरुवार्ी) की थवर लहररयां िूंिती रहती हैं। मंहदर पररसर में पत्िर का एक थमारक भी है िो, िांबाि र्सक्ख सैतनकों को श्रद्धािंर्ल देने के र्लए लिाया िया है। थवर्ण मंहदर को कई बार नष्ट्ट ककया िा चुका है। लेककन भजक्त और आथिा के कारर् र्सक्खों ने इसे दोबारा बना हदया। जितनी बार भी यह नष्ट्ट ककया िया है और जितनी बार भी यह बनाया िया है उसकी हर घटना को मंहदर में दशाणया िया है। अफिा ा़न हमलावरों ने 19 वीं शताब्दी में इसे पूरी तरह नष्ट्ट कर हदया िा। तब महारािा रर्िीत र्संह ने इसे दोबारा बनवाया िा और इसे सोने की परत से सिाया िा। थवर्ण मंहदर चौबीसों घंटे खुला रहता है। दोपहर के 2 बिे से लेकर आधी रात तक यहां सबसे ज्यादा श्रद्धालु आते हैं। पूरे थवर्ण मंहदर में फ्लड लाइट्स की व्यवथिा की िई है। सुबह और शाम के समय यह बवियां बहुत सुन्दर दृश्य पेश करती हैं। थवर्ण मंहदर शहर के पुराने क्षेत्र में जथित है। इसके चारों तरफ िर्लयों का िाल त्रबछा हुआ है। प्रत्येक िली में अनेक िुरुद्वारे और ऐततहार्सक इमारतें हैं। इन इमारतों के साि ही अनेक बािार भी हैं िहां बहुत अच्छी चीिें र्मलती हैं।
  • 20. हदल्ली के ककले को लाल - किला भी कहते हैं, क्योंकक यह लाल रंि का है। यह भारत की रािधानी नई हदल्ली से लिी पुरानी हदल्ली शहर में जथित है। यह युनेथको ववश्व धरोहर थिल में चयतनत है। लाल ककला एवं शाहिहााँनाबाद का शहर, मुिल बादशाह शाहिहााँ द्वारा ई स 1639 में बनवाया िया िा। लाल ककले का अर्भन्यास कफर से ककया िया िा, जिससे इसे सलीमिढ ककले के संि एकीकृ त ककया िा सके । यह ककला एवं महल शाहिहााँनाबाद की मध्यकालीन निरी का महत्वपूर्ण के न्र-त्रबन्दु रहा है। लालककले की योिना, व्यवथिा एवं सौन्दयण मुिल सृिनात्मकता का र्शरोत्रबन्दु है, िो कक शाहिहााँ के काल में अपने चरम उत्कषण पर पहुाँची। इस ककले के तनमाणर् के बाद कई ववकास कायण थवयं शाहिहााँ द्वारा ककए िए। ववकास के कई बडे ा़ पहलू औरंििे ा़ ब एवं अंततम मुिल शासकों द्वारा ककये िये। सम्पूर्ण ववन्यास में कई मूलभूत बदलाव त्रब्रहटश काल में 1857 का प्रिम थवतंत्रता संग्राम के बाद ककये िये िे। त्रब्रहटश काल में यह ककला मुख्यतः छावनी रूप में प्रयोि ककया िया िा। बजल्क थवतंत्रता के बाद भी इसके कई महत्वपूर्ण भाि सेना के तनयंत्रर् में 2003 तक रहे।
  • 21. लाल ककला मुिल बादशाह शाहिहााँ की नई रािधानी, शाहिहााँनाबाद का महल िा। यह हदल्ली शहर की सातवीं मुजथलम निरी िी। उसने अपनी रािधानी को आिरा से हदल्ली बदला, अपने शासन की प्रततष्ट्ठा बढाने हेतु, साि ही अपनी नये-नये तनमाणर् कराने की महत्वकााँक्षा को नए मौके देने हेतु भी। इसमें उसकी मुख्य रुगच भी िी। यह ककला भी तािमहल की भांतत ही यमुना नदी के ककनारे पर जथित है। वही नदी का िल इस ककले को घेरकर खाई को भरती िी। इसके पूवोिरी ओर की दीवार एक पुराने ककले से लिी िी, जिसे सलीमिढ का ककला भी कहते हैं। सलीमिढ का ककला इथलाम शाह सूरी ने 1546 में बनवाया िा। लालककले का तनमाणर् 1638 में आरम्भ होकर 1648 में पूर्ण हुआ। पर कु छ मतों के अनुसार इसे लालकोट का एक पुरातन ककला एवं निरी बताते हैं, जिसे शाहिहााँ ने कब्िा ा़करके यह ककला बनवाया िा। लालकोट हहन्दु रािा पृथ्वीराि चौहान की बारहवीं सदी के अजन्तम दौर में रािधानी िी। 11 माचण 1783 को, र्सखों ने लालककले में प्रवेश कर दीवान-ए-आम पर कब्िा ा़कर र्लया। निर को मुिल विी ा़रों ने अपने र्सख सागियों को समपणर् कर हदया। यह लायण करोर र्संहहया र्मथल के सरदार बघेल र्संह धालीवाल के कमान में हुआ।