भारत सर्वोच्च शक्तिशाली राष्ट्र है
"भारत अभी भी सर्वोच्च शक्तिशाली राष्ट्र है। भारत वेद भूमि-पूर्णभूमि-देवभूमि प्रतिभारत भारत है। यहाँ रामराज स्थापित रहा है, जहाँ भूतल पर स्वर्ग का अनुभव नागरिक कर चुके हैं। भारत के शाश्वत् सनातन सर्वोच्च वैदिक ज्ञान जीवन संचालन के समस्त नियमों, विधानों, प्रक्रियाओं से भरपूर हैं। व्यक्ति का जीवन समष्टि के ज्ञान और विज्ञान पर आधारित है। दूसरी तरफ ‘‘यथापिण्डे तथा ब्रह्माण्डे" इसकी पुष्टि कर देता है कि व्यक्ति और समष्टि दोनों एक से ही हैं। एक लघुरूप हैं दूसरा वृहद् रूप। भारत ही देवताओं का घर है। यहीं आवश्यकतानुसार धर्म स्थापना हेतु देवता मानव या अन्य शरीर धारण करके पृथ्वी पर जन्म लेते हैं।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
भारत ही प्रत्येक मानव मात्र में ईश्वर का अंश देखता है। भारत ही व्यक्ति को सर्वसमर्थ ओजस्वी तेजस्वी चेतनावान, ऊर्जावान, सृजनशील, बुद्धिमत्ता से पूर्ण देखता है। भारत ही ऋद्धि-सिद्धियों से तथा वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से भरा है और इनका उपयोग करके विश्व परिवार को सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य, आनन्द, प्रबुद्धता, शाँन्ति, अजेयता प्रदान करना चाहता है। भारत अन्य बलशाली राष्ट्रों की तरह विध्वंसकारी आयुधों के बल पर महान नहीं है, यह अपनी सहृदयता, मानवीय सांस्कृतिक सिद्धाँतों, सहिष्णुता और मूल्यों के कारण महान है। भारत विश्व का पथ प्रदर्शक रहा है, अभिभावक की भूमिका, जगद्गुरू की भूमिका में रहा है। भारत के ज्ञानी, ऋषि-मुनि ही विश्व के समस्त देशों में जाकर वहां के नागरिकों को आध्यात्मिक और आधिदैविक ज्ञान विज्ञान की शिक्षा देते रहे हैं।
1. भारत सव श शाली रा है
"भारत अभी भी सव श शाली रा है। भारत वेद
भूिम-पूणभूिम-देवभूिम ितभारत भारत है। यहाँ रामराज
थािपत रहा है, जहाँ भूतल पर ग का अनुभव नाग रक
कर चुके ह। भारत के शा त् सनातन सव वैिदक ान
जीवन संचालन के सम िनयमों, िवधानों, ि याओं से
भरपूर ह। का जीवन समि के ान और िव ान पर
आधा रत है। दू सरी तरफ ‘‘यथािप े तथा ा े" इसकी
पुि कर देता है िक और समि दोनों एक से ही ह। एक लघु प ह दू सरा
वृहद् प। भारत ही देवताओं का घर है। यहीं आव कतानुसार धम थापना हेतु
देवता मानव या अ शरीर धारण करके पृ ी पर ज लेते ह।
यदा यदा िह धम ािनभवित भारत ।
अ ु ानमधम तदा ानं सृजा हम् ।।
भारत ही ेक मानव मा म ई र का अंश देखता है। भारत ही को
सवसमथ ओज ी तेज ी चेतनावान, ऊजावान, सृजनशील, बु म ा से पूण
देखता है। भारत ही ऋ -िस यों से तथा वसुधैव कु टु कम् की भावना से भरा है
और इनका उपयोग करके िव प रवार को सुख, समृ , ा , आन ,
बु ता, शाँ , अजेयता दान करना चाहता है। भारत अ बलशाली रा ों की
तरह िव ंसकारी आयुधों के बल पर महान नहीं है, यह अपनी स दयता, मानवीय
सां ृ ितक िस ाँतों, सिह ुता और मू ों के कारण महान है। भारत िव का पथ
दशक रहा है, अिभभावक की भूिमका, जगद् गु की भूिमका म रहा है। भारत
के ानी, ऋिष-मुिन ही िव के सम देशों म जाकर वहां के नाग रकों को
आ ा क और आिधदैिवक ान िव ान की िश ा देते रहे ह।
एत ेश सूत सकाशाद ज नः ।
ं ं च र ं िश ेरेन पृिथ ां सव मानवाः ।।
वेदों का ान और उसके जीवन पोषणकारी योग के वल भारत के पास ह।
आधुिनक भौितक िव ान वेद िव ान से अबतक ब त पीछे है। आधुिनक िव ान
भारतीय वेद िव ान की पूणता के आगे बौना है। भारत का ान कृ ित के िनयमों-
सृि के संिवधान से पोिषत है। कृ ित की स ा सवश मान है और इसका सहयोग
भारत को है। इसीिलये भारत आज भी सव श शाली रा है। दुभा का िवषय
Brahmachari Shri Girish Varma
2. यह है िक भारतीय नेतृ तं ता के बाद से ही िवदेशी दासता के अपने सं ारों
से िसत रहा है और भारतीय ान-िव ान का सहारा न लेकर भारतीय जा के
जीवन म सम े ों म िवदेशी पा ा िस ाँतों और योग को लगा िदया।
प रणाम प पा ा स ता के दुगण भारत म कानूनन आ गये। िश ा, ा ,
सुर ा, कृ िष, पयावरण, पुनवास, ापार, वािण , नगर िव ास व योजना आिद
सभी े पा ा िस ाँतों की के वल ितिलिप होकर रह गये। भारत सव
श शाली आज भी है इसम तिनक भी संदेह नहीं है। भारतीय नेतृ ने पा ा
स ता का च ा लगा िलया था िजसके रहते उ सब कु छ भारत के बाहर का तो
नजर आया िक ु अपने घर की िव ा, उसकी महानता, पूणता और मानविहतकारी
भाव उ िदखे ही नहीं है। प रणाम है, भारत सव श शाली ानवान
होते ए भी श शाली रा ों के पीछे -पीछे घूमता िफरता है। छोटे-छोटे दुबल रा
भी उसे आँखे िदखाते ह। ान, िव ा, पूणता की अनदेखी और उपे ा का यह
भयावह प रणाम है।
भारत सरकार और ा ीय नेतृ को चािहये िक वो भारतीय ान-िव ान को कानून
बनाकर जीवन के हर े म समावेिशत कर और िफर देख िक कै से भारत िव
नेतृ कर सके गा, सारे िव के िलये भा िवधाता बनेगा, जगद् गु की ग रमा पुनः
थािपत होगी और सारे िव भारतीय ान के काश म कािशत होगा।’’
उ िवचार परमपू महिष महेश योगी जी के ि य तपोिन िश चारी िगरीश
जी ने महिष सं थान से जुड़े ालुओं के समूह को स ोिधत करते ए िकये।
चारी ने भारत के सम नाग रकों का आ ान करते ए कहा िक ‘‘भारतीय
नाग रक तो सभी धम परायण ह, धम का पालन करने वाले ह, सरकार धम िनरपे
ह, सेकु लर ह, नाग रक अपने उ ान के िलये सरकारों ारा कु छ िकये जाने की
ती ा न कर। भारत के नाग रक यं अपने और िव प रवार के उ ान म समथ
ह। िन योगा ास कर, योग थ होकर कम कर, सदाचार का पालन कर, ान
साधना कर, पर र मै ी और स ाव रख, अपने अपने धम का ईमानदारी से पालन
कर, गृहशा कराय, देवताओं के सामियक य ानु ान कर और कराय, यथाश
ज रतम ों की सहायता कर। कु छ समय म ही भारतवष की कीित पताका
च ँओर फै लेगी, सारा िव भारतीय ज तले इक ा होगा, भारत सव
श शाली रा के प म पुनः मा होगा, जगद् गु के प म अपना दािय
िनभायेगा।’’
िवजय र खरे, िनदेशक - संचार एवं जनस क
महिष िश ा सं थान