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सहर्ष स्वीकारा है
- कवव -
XII -Hindi (Core)
गजानन माधव मुक्तिबोध
प्रयोगवादी धारा के प्रतितनधध कवव
मुक्तिबोध का जन्म 13 नवम्बर, 1917
को ग्वालियर क्जिे के श्योपुर नामक
स्थान में माधवराव-पावषिी दंपवि के घर
हुआ।
मुक्तिबोध िारसप्िक के पहिे कवव थे।
मनुष्य की अक्स्मिा, आत्मसंघर्ष और
प्रखर राजनैतिक चेिना से समृद्ध उनकी
कवविा पहिी बार 'िार सप्िक' के
माध्यम से सामने आई। —कवविा संग्रह -
चााँद का मुाँह टेढा है' 'भूरी भूरी खाक
धूि' —कथा साहहत्य –काठ का सपना ,
ववपात्र ,सिह से उठिा
आदमी—आिोचना-कामायनी एक
पुनववषचार ,एक साहहक्त्यक की डायरी
,नई कवविा का सौंदयष शास्त्र आहद I
उनकी मृत्यु १९६४ ई में हुई थी I
कवव पररचय
कविता का प्रवतपाद्य
¨मुक्तिबोध का कवव व्यक्तित्व जहटि है। उनकी
कवविाओं में संवेदना के संक्श्िष्ट रूप दृक्ष्टगोचर होिे हैं।
मुक्तिबोध की कवविाओं में संपूर्ष पररवेश के बीच स्वयं
को खोजना और पाना ही नहीं, अवपिु संपूर्ष पररवेश के
साथ अपने को बदिने की प्रक्रिया का भी धचत्रर् है।
मुक्तिबोध अपने काव्य-कमष के प्रति ईमानदार रहे हैं।
¨‘सहर्ष स्वीकारा है ‘ कवविा ‘भूरी-भूरी खाक धूि’
काव्य संग्रह से िी गई है Iकवविा में जीवन के सुख–
दुख‚ संघर्ष– अवसाद‚ उठा– पटक को समान रूप से
स्वीकार करने की बाि कही गई है।
¨भावना की स्मृति ववचार बनकर ववश्व की गुक्त्थयां
सुिझाने में मदद करिी है| स्नेह में थोड़ी तनस्संगिा भी
जरूरी है |अति क्रकसी चीज की अच्छी नहीं |’वह’ यहााँ
कोई भी हो सकिा है हदवंगि मााँ वप्रय या अन्य |कबीर
के राम की िरह ,वर्डषसवथष की मािृमना प्रकृ ति की िरह
यह प्रेम सवषव्यापी होना चाहिा है |
कवविा का सार
¨कवव कहिा है क्रक मेरे जीवन में जो कु छ भी है, वह मुझे सहर्ष स्वीकार है।
मुझे जो कु छ भी लमिा है, वह िुम्हारा हदया हुआ है िथा िुम्हें प्यारा है। मेरी
गविी गरीबी, ववचार-वैभव, गंभीर अनुभव, दृढिा, भावनाएाँ आहद सब पर
िुम्हारा प्रभाव है। िुम्हारे साथ मेरा न जाने कौन-सा नािा है क्रक मैं क्जिनी भी
भावनाएाँ बाहर तनकािने का प्रयास करिा हूाँ, वे भावनाएाँ उिनी ही अधधक
उमड़िी रहिी हैं। िुम्हारा चेहरा मेरी ऊपरी धरिी पर चााँद के समान अपनी
कांति बबखेरिा रहिा है।
कवव कहिा है क्रक “मैं िुम्हारे प्रभाव से दूर जाना चाहिा हूाँ तयोंक्रक मैं भीिर से
दुबषि पड़ने िगा हूाँ। िुम्हीं मुझे दंड दो िाक्रक मैं दक्षिर् ध्रुव की अंधकारमयी
सहर्ष स्वीकारा है
क्जंदगी में जो कु छ है,जो भी है सहर्ष
स्वीकारा है ;
इसलिए क्रक जो कु छ भी मेरा है वह िुम्हें
प्यारा है।
गरबीिी गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब,
यह ववचार-वैभव सब
दृढिा यह, भीिर की सररिा यह अलभनव सब
मौलिक है , मौलिक है
इसलिए क्रक पि-पि में
जो कु छ भी जाग्रि हैं अपिक हैं-
शब्दाथष
गरीबीिी:स्वालभमानी
गंभीर:गहरा
कवि कहता है वक मेरी व िंदगी में ो कुछ है, ैसा भी है, उसे मैं खुशी से स्िीकार करता
हूँ। इसविए मेरा ो कुछ भी है, िह उसको (माूँ या विया) अच्छा िगता है। मेरी
स्िावभमानयुक्त गरीबी, ीिन के गिंभीर अनुभि, विचारों का िैभि, व्यवक्तत्ि की दृढ़ता,
मन में बहती भािनाओिं की नदी-ये सब मौविक हैं तथा नए हैं। इनकी मौविकता का
कारण यह है वक मेरे ीिन में हर क्षण ो कुछ घटता है, ो कुछ ाग्रत है, उपिवधि
है, िह सब कुछ तुम्हारी िेरणा से हुआ है।
व्याख्या
यह ववचार-वैभव सब
दृढिा यह, भीिर की सररिा यह
अलभनव सब
मौलिक है , मौलिक है
इसलिए क्रक पि-पि में
जो कु छ भी जाग्रि हैं अपिक हैं-
संवेदन िुम्हारा हैं ! !
सहर्ष स्वीकारा है
अपलक-निरंतर
संवेदि-अिुभूनत
कवि कहता है वक तुम्हारे साथ न ाने कौन-सा सिंबिंि है या न ाने कै सा नाता है वक मैं
अपने भीतर समाये हुए तुम्हारे स्नेह रूपी ि को व तना बाहर वनकािता हूँ, िह विर-विर
चारों ओर से वसमटकर चिा आता है और मेरे हृदय में भर ाता है। ऐसा िगता है मानो
वदि में कोई झरना बह रहा है। िह स्नेह मीठे पानी के स्रोत के समान है ो मेरे अिंतममन को
तृप्त करता रहता है। इिर मन में िेम है और उिर तुम्हारा चाूँद ैसा मुस्कराता हुआ चेहरा
अपने अद्भुत सौंदयम के िकाश से मुझे नहिाता रहता है। कवि का आिंतररक ि बाहय गत-
दोनों उसी स्नेह से युक्त स्िरूप से सिंचावित होते हैं।
व्याख्या
सहर्ष स्वीकारा है
सचमुच मुझे दंड दो क्रक भूिूाँ मैं भूिूाँ मैं
िुम्हें भूि जाने की
दक्षिर् ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंिर में पा िूाँ मैं
झेिूाँ मैं, उसी में नहा िूाँ मैं
इसलिए क्रक िुमसे ही पररवेक्ष्टि
आच्छाहदि
रहने का रमर्ीय यह उजेिा अब
सहा नहीं जािा हैं। नहीं सहा जािा है
व्याख्या
कवि अपने वप्रय स्िरूपा को भूलना चाहता है। िह चाहता है वक वप्रय उसे भूलने का दंड दे। िह इस दंड
को भी सहर्ष स्िीकार करने के वलए तैयार है। वप्रय को भूलने का अंधकार कवि के वलए दविणी ध्रुि पर
होने िाली छह मास की रावि के समान होगा। िह उस अंधकार में लीन हो जाना चाहता है। िह उस
अंधकार को अपने शरीर, हृदय पर झेलना चाहता है। इसका कारण यह है वक वप्रय के स्नेह के उजाले ने
उसे घेर वलया है। यह उजाला अब उसके वलए असहनीय हो गया है। वप्रय की ममता या स्नेह रूपी बादल
की कोमलता सदैि उसके भीतर मैंडराती रहती है। यही कोमल ममता उसके हृदय को पीडा पहुँचाती है।
इसके कारण उसकी आत्मा बहत कमजोर और असमर्ष हो गई है। उसे भविष्य में होने िाली अनहोनी से
डर लगने लगा है। उसे भीतर-ही-भीतर यह डर लगने लगा है वक कभी उसे अपनी वप्रयतमा (माुँ या
वप्रया) प्रभाि से अलग होना पडा तो िह अपना अवस्तत्ि कै से बचाए रख सके गा। अब उसे उसका
बहलाना, सहलाना और रह-रहकर अपनापन जताना सहन नहीं होता। िह आत्मवनभषर बनना चाहता है।
ममता के बादल की मंडराती
कोमलता-
भीतर पपराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो
गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को
भपवतव्यता डराती है
बहलाती – सहलाती आत्मीयता
बरदाश्त िह ं होती है !
सहर्ष स्वीकारा है
सहर्ष स्वीकारा हैसचमुच मुझे दंड दो कक हो जाऊँ
पाताल अँधेरे की गुहाओं में पववरों में
धुएँ के बादलों में
बबलकु ल मैं लापता
लापता कक वहाँ भी तो तुम्हारा ह सहारा है !!
इसललए कक जो कु छ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता हैं, होता-सा संभव हैं ,
सभी वह तुम्हारे ह कारण के कायों का घेरा है,
कायों का वैभव है
अब तक तो जजंदगी में जो कु छ था, जो कु छ है
सहर्ष स्वीकारा है
इसललए कक जो कु छ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा हैं।
व्याख्या
कवि कहता है वक मैं अपनी वियतमा (सबसे प्यारी स्त्री) के स्नेह से दूर होना चाहता हूँ। िह उसी से दिंड की
याचना करता है। िह ऐसा दिंड चाहता है वक वियतमा के न होने से िह पाताि की अूँिेरी गुिाओिं ि सुरिंगों में खो
ाए। ऐसी गहों पर स्ियिं का अवस्तत्ि भी अनुभि नहीं होता या विर िह िुएूँ के बादिों के समान गहन अिंिकार
में िापता हो ाए ो उसके न होने से बना हो। ऐसी गहों पर भी उसे अपने सिामविक विय स्त्री का ही सहारा है।
उसके ीिन में ो कुछ भी है या ो कुछ उसे अपना-सा िगता है, िह सब उसके कारण है। उसकी सत्ता,
वस्थवतयाूँ भविष्य की उन्नवत या अिनवत की सभी सिंभािनाएूँ वियतमा के कारण हैं। कवि का हर्म-विर्ाद, उन्नवत-
अिनवत सदा उससे ही सिंबिंवित हैं। कवि ने हर सुख-दुख, सििता-असििता को िसन्नतापूिमक इसविए स्िीकार
वकया है क्योंवक वियतमा ने उन सबको अपना माना है। िे कवि के ीिन से पूरी तरह ुडी हुई हैं।
दक्षिर्ी ध्रुबी अन्धकार –अमावस्या-
दवक्षण ध्रुि पर छह माह तक अिंिकार रहता है। कवि ने उसे ही दीघम अमािस्या सिंबोवित वकया है।
गरबीिी गरीबी -तनधषनिा का स्वालभमानी रूप ।
वनिमनता पर िवज त होने की ब ाय, गविमत होना, क्योंवक वनिमन होने पर भी
स्िावभमानपूिमक ीिन ीना बहुत महत्िपूणम है।
भीिर की सररिा-कवि ने अपने अिंदर ििावहत स्नेहपूणम भािनाओिं को नदी कहा है।
बहिािी सहिािी आत्मीयिा-आत्मीयता का िेम पूणम भाि मन को बहिाता
है। सािंत्िना देता है।
भाव सौंदयष
लशल्प सौन्दयष
1.कविता की भार्ा सरि और आिश्यकतानुसार िािं ि है।
2 ‘मुसकाता चाूँद जयों िरती पर रात-भर’ – उपमा अििंकार।
3 ‘दृढ़्ता यह, भीतर की सररता यह अवभनि सब मौविक है, मौविक है’ – पुनरुवक्त िकाश अििंकार।
4 ‘ ाने क्या ररश्ता है, ाने क्या नाता है’- सिंदेह अििंकार।
5 ‘व तना भी उूँडेिता हूँ, भर भर विर आता है’- विरोिाभास अििंकार।
6.‘ममता के बादि की मूँडराती कोमिता- भीतर वपराती है’ – विरोिाभास अििंकार।
7. ‘सचमुच मुझे दण्ड दो वक भूिूूँ मैं भूिूूँ मैं’ – पुनरुवक्त िकाश अििंकार।
8.‘दवक्षण ध्रुिी अिंिकार-अमािस्या’ – रूपक अििंकार।
9. ‘ममता के बादि की मूँडराती कोमिता- भीतर वपराती है’ – विरोिाभास अििंकार।
लशल्प सौंदयष
अथषग्रहर्-संबंधी प्रश्न
“क् ंदगी में जो कु छ भी है
सहर्ष स्वीकारा है ;
इसलिए क्रक जो कु छ भी मेरा है
वह िुम्हें प्यारा है|
गरबीिी गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सबयह वैभव ववचार सब
दृढिा यह,भीिर की सररिा यह अलभनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए क्रक पि-पि में
जो कु छ भी जाग्रि है अपिक है-
संवेदन िुम्हारा है!”
प्रश्न १:- कवव और कवविा का नाम लिखखए|
उिर:- कवव- गजानन माधव मुक्तिबोध
कवविा–सहर्ष स्वीकारा है |
प्रश्न२:- गरबीिी गरीबी,भीिर की सररिा आहद प्रयोगों का अथष स्पष्ट
कीक्जए |
उिर :- गरबीिी गरीबी– तनधषनिा का स्वालभमानी रूप ।कवव के ववचारों
की मौलिकिा ,अनुभवों की गहराई ,दृढिा ,हृदय का प्रेम उसके गवष
करने का कारर् है |
प्रश्न३ :- कवव अपने वप्रय को क्रकस बाि का श्रेय दे रहा है ?
उिर:- तनजी जीवन के प्रेम का संबंि कवव को ववश्व व्यापी प्रेम से
जुड़ने की प्रेरर्ा देिा है |अि: कवव इसका श्रेय अपने वप्रय को देिा है |
मूल्यांकन
1. कपव के पास जो कु छ भी है वह सब पवलिष्ट और मौललक क्यों
है?’सहर्ष स्वीकारा है’ कपवता के आधार पर उत्तर द जजए।
2. कपव को लगता है कक िायद उसके ददल में झरिा है जजसमें मीठे
जल का स्रोत है। ऐसा क्यों?
3. ‘भीतर वह, ऊपर तुम’ के माध्यम से कपव क्या कहिा चाहता है?
4. कपव कौि-सा दंड पािा चाहता है और क्यों?
5. ‘सुखद-मधुर जस्थनत’ आम आदमी को अच्छी लगती है पर कपव के
ललए यह जस्थनत असहय बि गई है, ऐसा क्यों?
मूल्यांकन
प्रस्िुति
हदिीप कु मार बाड़त्या, स्नािकोिर लशिक(हहंदी)
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Saharsh sweekara hai-xii_class_hindi(core)

  • 1. सहर्ष स्वीकारा है - कवव - XII -Hindi (Core) गजानन माधव मुक्तिबोध
  • 2. प्रयोगवादी धारा के प्रतितनधध कवव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवम्बर, 1917 को ग्वालियर क्जिे के श्योपुर नामक स्थान में माधवराव-पावषिी दंपवि के घर हुआ। मुक्तिबोध िारसप्िक के पहिे कवव थे। मनुष्य की अक्स्मिा, आत्मसंघर्ष और प्रखर राजनैतिक चेिना से समृद्ध उनकी कवविा पहिी बार 'िार सप्िक' के माध्यम से सामने आई। —कवविा संग्रह - चााँद का मुाँह टेढा है' 'भूरी भूरी खाक धूि' —कथा साहहत्य –काठ का सपना , ववपात्र ,सिह से उठिा आदमी—आिोचना-कामायनी एक पुनववषचार ,एक साहहक्त्यक की डायरी ,नई कवविा का सौंदयष शास्त्र आहद I उनकी मृत्यु १९६४ ई में हुई थी I कवव पररचय
  • 3. कविता का प्रवतपाद्य ¨मुक्तिबोध का कवव व्यक्तित्व जहटि है। उनकी कवविाओं में संवेदना के संक्श्िष्ट रूप दृक्ष्टगोचर होिे हैं। मुक्तिबोध की कवविाओं में संपूर्ष पररवेश के बीच स्वयं को खोजना और पाना ही नहीं, अवपिु संपूर्ष पररवेश के साथ अपने को बदिने की प्रक्रिया का भी धचत्रर् है। मुक्तिबोध अपने काव्य-कमष के प्रति ईमानदार रहे हैं। ¨‘सहर्ष स्वीकारा है ‘ कवविा ‘भूरी-भूरी खाक धूि’ काव्य संग्रह से िी गई है Iकवविा में जीवन के सुख– दुख‚ संघर्ष– अवसाद‚ उठा– पटक को समान रूप से स्वीकार करने की बाि कही गई है। ¨भावना की स्मृति ववचार बनकर ववश्व की गुक्त्थयां सुिझाने में मदद करिी है| स्नेह में थोड़ी तनस्संगिा भी जरूरी है |अति क्रकसी चीज की अच्छी नहीं |’वह’ यहााँ कोई भी हो सकिा है हदवंगि मााँ वप्रय या अन्य |कबीर के राम की िरह ,वर्डषसवथष की मािृमना प्रकृ ति की िरह यह प्रेम सवषव्यापी होना चाहिा है |
  • 4. कवविा का सार ¨कवव कहिा है क्रक मेरे जीवन में जो कु छ भी है, वह मुझे सहर्ष स्वीकार है। मुझे जो कु छ भी लमिा है, वह िुम्हारा हदया हुआ है िथा िुम्हें प्यारा है। मेरी गविी गरीबी, ववचार-वैभव, गंभीर अनुभव, दृढिा, भावनाएाँ आहद सब पर िुम्हारा प्रभाव है। िुम्हारे साथ मेरा न जाने कौन-सा नािा है क्रक मैं क्जिनी भी भावनाएाँ बाहर तनकािने का प्रयास करिा हूाँ, वे भावनाएाँ उिनी ही अधधक उमड़िी रहिी हैं। िुम्हारा चेहरा मेरी ऊपरी धरिी पर चााँद के समान अपनी कांति बबखेरिा रहिा है। कवव कहिा है क्रक “मैं िुम्हारे प्रभाव से दूर जाना चाहिा हूाँ तयोंक्रक मैं भीिर से दुबषि पड़ने िगा हूाँ। िुम्हीं मुझे दंड दो िाक्रक मैं दक्षिर् ध्रुव की अंधकारमयी
  • 5. सहर्ष स्वीकारा है क्जंदगी में जो कु छ है,जो भी है सहर्ष स्वीकारा है ; इसलिए क्रक जो कु छ भी मेरा है वह िुम्हें प्यारा है। गरबीिी गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब, यह ववचार-वैभव सब दृढिा यह, भीिर की सररिा यह अलभनव सब मौलिक है , मौलिक है इसलिए क्रक पि-पि में जो कु छ भी जाग्रि हैं अपिक हैं- शब्दाथष गरीबीिी:स्वालभमानी गंभीर:गहरा
  • 6. कवि कहता है वक मेरी व िंदगी में ो कुछ है, ैसा भी है, उसे मैं खुशी से स्िीकार करता हूँ। इसविए मेरा ो कुछ भी है, िह उसको (माूँ या विया) अच्छा िगता है। मेरी स्िावभमानयुक्त गरीबी, ीिन के गिंभीर अनुभि, विचारों का िैभि, व्यवक्तत्ि की दृढ़ता, मन में बहती भािनाओिं की नदी-ये सब मौविक हैं तथा नए हैं। इनकी मौविकता का कारण यह है वक मेरे ीिन में हर क्षण ो कुछ घटता है, ो कुछ ाग्रत है, उपिवधि है, िह सब कुछ तुम्हारी िेरणा से हुआ है। व्याख्या
  • 7. यह ववचार-वैभव सब दृढिा यह, भीिर की सररिा यह अलभनव सब मौलिक है , मौलिक है इसलिए क्रक पि-पि में जो कु छ भी जाग्रि हैं अपिक हैं- संवेदन िुम्हारा हैं ! ! सहर्ष स्वीकारा है अपलक-निरंतर संवेदि-अिुभूनत
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  • 9. कवि कहता है वक तुम्हारे साथ न ाने कौन-सा सिंबिंि है या न ाने कै सा नाता है वक मैं अपने भीतर समाये हुए तुम्हारे स्नेह रूपी ि को व तना बाहर वनकािता हूँ, िह विर-विर चारों ओर से वसमटकर चिा आता है और मेरे हृदय में भर ाता है। ऐसा िगता है मानो वदि में कोई झरना बह रहा है। िह स्नेह मीठे पानी के स्रोत के समान है ो मेरे अिंतममन को तृप्त करता रहता है। इिर मन में िेम है और उिर तुम्हारा चाूँद ैसा मुस्कराता हुआ चेहरा अपने अद्भुत सौंदयम के िकाश से मुझे नहिाता रहता है। कवि का आिंतररक ि बाहय गत- दोनों उसी स्नेह से युक्त स्िरूप से सिंचावित होते हैं। व्याख्या
  • 10. सहर्ष स्वीकारा है सचमुच मुझे दंड दो क्रक भूिूाँ मैं भूिूाँ मैं िुम्हें भूि जाने की दक्षिर् ध्रुवी अंधकार-अमावस्या शरीर पर, चेहरे पर, अंिर में पा िूाँ मैं झेिूाँ मैं, उसी में नहा िूाँ मैं इसलिए क्रक िुमसे ही पररवेक्ष्टि आच्छाहदि रहने का रमर्ीय यह उजेिा अब सहा नहीं जािा हैं। नहीं सहा जािा है
  • 11. व्याख्या कवि अपने वप्रय स्िरूपा को भूलना चाहता है। िह चाहता है वक वप्रय उसे भूलने का दंड दे। िह इस दंड को भी सहर्ष स्िीकार करने के वलए तैयार है। वप्रय को भूलने का अंधकार कवि के वलए दविणी ध्रुि पर होने िाली छह मास की रावि के समान होगा। िह उस अंधकार में लीन हो जाना चाहता है। िह उस अंधकार को अपने शरीर, हृदय पर झेलना चाहता है। इसका कारण यह है वक वप्रय के स्नेह के उजाले ने उसे घेर वलया है। यह उजाला अब उसके वलए असहनीय हो गया है। वप्रय की ममता या स्नेह रूपी बादल की कोमलता सदैि उसके भीतर मैंडराती रहती है। यही कोमल ममता उसके हृदय को पीडा पहुँचाती है। इसके कारण उसकी आत्मा बहत कमजोर और असमर्ष हो गई है। उसे भविष्य में होने िाली अनहोनी से डर लगने लगा है। उसे भीतर-ही-भीतर यह डर लगने लगा है वक कभी उसे अपनी वप्रयतमा (माुँ या वप्रया) प्रभाि से अलग होना पडा तो िह अपना अवस्तत्ि कै से बचाए रख सके गा। अब उसे उसका बहलाना, सहलाना और रह-रहकर अपनापन जताना सहन नहीं होता। िह आत्मवनभषर बनना चाहता है।
  • 12. ममता के बादल की मंडराती कोमलता- भीतर पपराती है कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह छटपटाती छाती को भपवतव्यता डराती है बहलाती – सहलाती आत्मीयता बरदाश्त िह ं होती है ! सहर्ष स्वीकारा है
  • 13. सहर्ष स्वीकारा हैसचमुच मुझे दंड दो कक हो जाऊँ पाताल अँधेरे की गुहाओं में पववरों में धुएँ के बादलों में बबलकु ल मैं लापता लापता कक वहाँ भी तो तुम्हारा ह सहारा है !! इसललए कक जो कु छ भी मेरा है या मेरा जो होता-सा लगता हैं, होता-सा संभव हैं , सभी वह तुम्हारे ह कारण के कायों का घेरा है, कायों का वैभव है अब तक तो जजंदगी में जो कु छ था, जो कु छ है सहर्ष स्वीकारा है इसललए कक जो कु छ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा हैं।
  • 14. व्याख्या कवि कहता है वक मैं अपनी वियतमा (सबसे प्यारी स्त्री) के स्नेह से दूर होना चाहता हूँ। िह उसी से दिंड की याचना करता है। िह ऐसा दिंड चाहता है वक वियतमा के न होने से िह पाताि की अूँिेरी गुिाओिं ि सुरिंगों में खो ाए। ऐसी गहों पर स्ियिं का अवस्तत्ि भी अनुभि नहीं होता या विर िह िुएूँ के बादिों के समान गहन अिंिकार में िापता हो ाए ो उसके न होने से बना हो। ऐसी गहों पर भी उसे अपने सिामविक विय स्त्री का ही सहारा है। उसके ीिन में ो कुछ भी है या ो कुछ उसे अपना-सा िगता है, िह सब उसके कारण है। उसकी सत्ता, वस्थवतयाूँ भविष्य की उन्नवत या अिनवत की सभी सिंभािनाएूँ वियतमा के कारण हैं। कवि का हर्म-विर्ाद, उन्नवत- अिनवत सदा उससे ही सिंबिंवित हैं। कवि ने हर सुख-दुख, सििता-असििता को िसन्नतापूिमक इसविए स्िीकार वकया है क्योंवक वियतमा ने उन सबको अपना माना है। िे कवि के ीिन से पूरी तरह ुडी हुई हैं।
  • 15. दक्षिर्ी ध्रुबी अन्धकार –अमावस्या- दवक्षण ध्रुि पर छह माह तक अिंिकार रहता है। कवि ने उसे ही दीघम अमािस्या सिंबोवित वकया है। गरबीिी गरीबी -तनधषनिा का स्वालभमानी रूप । वनिमनता पर िवज त होने की ब ाय, गविमत होना, क्योंवक वनिमन होने पर भी स्िावभमानपूिमक ीिन ीना बहुत महत्िपूणम है। भीिर की सररिा-कवि ने अपने अिंदर ििावहत स्नेहपूणम भािनाओिं को नदी कहा है। बहिािी सहिािी आत्मीयिा-आत्मीयता का िेम पूणम भाि मन को बहिाता है। सािंत्िना देता है। भाव सौंदयष
  • 16. लशल्प सौन्दयष 1.कविता की भार्ा सरि और आिश्यकतानुसार िािं ि है। 2 ‘मुसकाता चाूँद जयों िरती पर रात-भर’ – उपमा अििंकार। 3 ‘दृढ़्ता यह, भीतर की सररता यह अवभनि सब मौविक है, मौविक है’ – पुनरुवक्त िकाश अििंकार। 4 ‘ ाने क्या ररश्ता है, ाने क्या नाता है’- सिंदेह अििंकार। 5 ‘व तना भी उूँडेिता हूँ, भर भर विर आता है’- विरोिाभास अििंकार। 6.‘ममता के बादि की मूँडराती कोमिता- भीतर वपराती है’ – विरोिाभास अििंकार। 7. ‘सचमुच मुझे दण्ड दो वक भूिूूँ मैं भूिूूँ मैं’ – पुनरुवक्त िकाश अििंकार। 8.‘दवक्षण ध्रुिी अिंिकार-अमािस्या’ – रूपक अििंकार। 9. ‘ममता के बादि की मूँडराती कोमिता- भीतर वपराती है’ – विरोिाभास अििंकार। लशल्प सौंदयष
  • 17. अथषग्रहर्-संबंधी प्रश्न “क् ंदगी में जो कु छ भी है सहर्ष स्वीकारा है ; इसलिए क्रक जो कु छ भी मेरा है वह िुम्हें प्यारा है| गरबीिी गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सबयह वैभव ववचार सब दृढिा यह,भीिर की सररिा यह अलभनव सब मौलिक है, मौलिक है इसलिए क्रक पि-पि में जो कु छ भी जाग्रि है अपिक है- संवेदन िुम्हारा है!”
  • 18. प्रश्न १:- कवव और कवविा का नाम लिखखए| उिर:- कवव- गजानन माधव मुक्तिबोध कवविा–सहर्ष स्वीकारा है | प्रश्न२:- गरबीिी गरीबी,भीिर की सररिा आहद प्रयोगों का अथष स्पष्ट कीक्जए | उिर :- गरबीिी गरीबी– तनधषनिा का स्वालभमानी रूप ।कवव के ववचारों की मौलिकिा ,अनुभवों की गहराई ,दृढिा ,हृदय का प्रेम उसके गवष करने का कारर् है | प्रश्न३ :- कवव अपने वप्रय को क्रकस बाि का श्रेय दे रहा है ? उिर:- तनजी जीवन के प्रेम का संबंि कवव को ववश्व व्यापी प्रेम से जुड़ने की प्रेरर्ा देिा है |अि: कवव इसका श्रेय अपने वप्रय को देिा है |
  • 19. मूल्यांकन 1. कपव के पास जो कु छ भी है वह सब पवलिष्ट और मौललक क्यों है?’सहर्ष स्वीकारा है’ कपवता के आधार पर उत्तर द जजए। 2. कपव को लगता है कक िायद उसके ददल में झरिा है जजसमें मीठे जल का स्रोत है। ऐसा क्यों? 3. ‘भीतर वह, ऊपर तुम’ के माध्यम से कपव क्या कहिा चाहता है? 4. कपव कौि-सा दंड पािा चाहता है और क्यों? 5. ‘सुखद-मधुर जस्थनत’ आम आदमी को अच्छी लगती है पर कपव के ललए यह जस्थनत असहय बि गई है, ऐसा क्यों? मूल्यांकन
  • 20. प्रस्िुति हदिीप कु मार बाड़त्या, स्नािकोिर लशिक(हहंदी) जवाहर नवोदय ववद्यािय बौध , ओड़ड़शा धन्यवाद