2. • कवव- श्र भवान प्रसाद मिश्र
• जन्ि29 िार्च 1913 ननधन 20 फ़रवरी
1985
• जन्ि स्थान - िध्य प्रदेश,
• कु छ प्रिुख कृ नियााँ ग ि फरोश, र्ककि ै दुख,
गााँध पींर्शि , अाँधेरी कवविाएाँ, " बुन ुई
रस्स " नािक रर्ना के मलये साह त्य
अकादि पुरस्कार से ववभूवषि।
3. आषाढ़ का प ला हदन
• वा का जोर वषाच की झड , झाड़ों का गगर
पडना
क ीीं गरजन का जाकर दूर मसर के पास कफर
पडना
उिडि नदी का खेि की छाि िक ल र
उठना
ध्वजा की िर बबजली का हदशाओीं िें फ र
उठना
4. • इस कवविा िें िानसून के शुरु ोने पर एक
ककसान की खुश का वर्चन ककया गया ै। आषाढ़
ह ींदी कै लेंडर का एक ि ीना ोिा ै और इस
ि ीने के आसपास िानसून की शुरुआि ोि ै।
जब िानसून आिा ै िो वा जोऱों से र्लि ै
जजससे झाड झींखार गगर जािे ैं। बादल ऐसे
गरजिे ैं जैसे आपके मसर के ऊपर ी गजचना कर
र े ़ों। नहदयााँ अपने उफान पर ोि ैं। कभ
कभ िो वे खेि के कलेजे िक र्ढ़ जाि ैं।
र्ाऱों हदशाओीं िें बबजली ऐसे र्िकि ै जैसे
ध्वजाएीं ल राि ़ों।
भावार्थ
5. आषाढ़ का पहला दिन
• ये वषाथ के अनोखे दृश्य जिसको प्राण से प्यारे
िो चातक की तरह तकता है बािल घने किरारे
िो भूखा रहकर, धरती चीरकर सबको खखलाता है
िो पानी वक्त पर आये नह ीं तो ततलमिलाता है
अगर आषाढ़ के पहले दिवस के प्रर्ि इस क्षण
िें
वह हलधर अधधक आता है, कामलिास से िन िें
तो िुझको क्षिा कर िेना।
6. • एक व्यजति जजसे वषाच के ये अनूठे दृश्य प्राऱ्ों से भ प्यारे लगिे ैं
वो ै ककसान। ककसान ककस पप े की िर टकटकी लगाए बादल़ों
का इींिजार करिा ै। व खुद भूखा र कर भ खेि िें ज -िोड
िे नि करिा ै। उसकी िे नि की बदौलि खेि़ों से अनाज
ननकलिा ै और दुननया के लोग़ों को भोजन मिलिा ै। यहद सिय
पर बाररश न ीीं आि ै िो ककसान को सबसे ज्यादा बेर्ैन ोि
ै।
• कवव ने मलखा ै कक अगर आपके िन िें बादल देखने के बाद
कामलदास की बजाय ककसान की िस्व र आि ै िो उस सिय एक
ी रास्िा ै और वो ै कामलदास से क्षिा िाींग लेना।
• कामलदास रगर्ि िेघदूिि एक प्रमसद्ध रर्ना ै। इसिें प्रेि और
प्रेमिका िेघ़ों के द्वारा अपना सींदेश भेजिे ैं। दोऩों को िेशा
बादल़ों के आने का इींिजार र िा ै। इस रर्ना की प्रमसद्गध के
कारर् साह त्य िें िेघ़ों की र्र्ाच ोने पर कामलदास का ध्यान आना
स्वाभाववक ै।
भावार्थ
7. इस कवविा िें िानसून के शुरु ोने पर एक ककसान
की खुश का वर्चन ककया गया ै। आषाढ़ ह ींदी कै लेंडर
का एक ि ीना ोिा ै और इस ि ीने के आसपास
िानसून की शुरुआि ोि ै। जब िानसून आिा ै
िो वा जोऱों से र्लि ै जजससे झाड झींखार गगर
जािे ैं। बादल ऐसे गरजिे ैं जैसे आपके मसर के
ऊपर ी गजचना कर र े ़ों। नहदयााँ अपने उफान पर
ोि ैं। कभ कभ िो वे खेि के कलेजे िक र्ढ़
जाि ैं। र्ाऱों हदशाओीं िें बबजली ऐसे र्िकि ै
जैसे ध्वजाएीं ल राि ़ों।
9. एक व्यजक्त जिसे वषाथ के ये अनूठे दृश्य प्राणों
से भी प्यारे लगते हैं वो है ककसान। ककसान
ककसी पपीहे की तरह टकटकी लगाए बािलों का
इींतिार करता है। वह खुि भूखा रहकर भी खेत
िें िी-तोड़ िेहनत करता है। उसकी िेहनत की
बिौलत खेतों से अनाि तनकलता है और
िुतनया के लोगों को भोिन मिलता है। यदि
सिय पर बाररश नह ीं आती है तो ककसान को
सबसे ज्यािा बेचैनी होती है।
भावार्थ
10. • कवव ने मलखा है कक अगर आपके िन िें बािल
िेखने के बाि कामलिास की बिाय ककसान की
तस्वीर आती है तो उस सिय एक ह रास्ता है
और वो है कामलिास से क्षिा िाींग लेना।
• कामलिास रधचत िेघिूति एक प्रमसद्ध रचना है।
इसिें प्रेिी और प्रेमिका िेघों के द्वारा अपना
सींिेश भेिते हैं। िोनों को हिेशा बािलों के आने
का इींतिार रहता है। इस रचना की प्रमसिधध
• कारण सादहत्य िें िेघों की चचाथ होने पर
कामलिास का ध्यान आना स्वाभाववक है।
11. प्रश्नों के उत्तर
• ककसान को बादल़ों का इींिजार तय़ों र िा ै?
• उत्तर :ककसान को बादल़ों का इिींजार इसमलए र िा ै तय़ोंकक इससे व
अपने खेि स ींर् सकिा ै। अगर बाररश न ीीं ोग िो िेज गिी से उसके
खेि जल जाएाँगे। इस से व पूरे जग को खाना देिा ै।
• कवव को वषाच ोने पर ककसान की याद तय़ों आि ै?
• कवव को वषाच के सिय ककसान की याद इसमलए आि ै तय़ोंकक ककसान
की खेि से ी ि सबका पेट भरिा ै।
• कवव ने ककसान की िुलना र्ािक पक्ष से तय़ों की ै?
• कवव ने ककसान की िुलना र्ािक पक्ष से की ै तय़ोंकक जैसे र्ािक पक्ष
स्वानि नक्षत्र की बूींद ी प िा ै अन्यथा प्यासा र जािा ै, उस प्रकार
ककसान अपन धरि की प्यास बुझाने के मलए वषाच की प्रनिक्षा करिा ै।
12. िूल्याींकन
१.ककसान को बादल का इन्िजार तय़ों र िा ै?
२.बषाच ोने पर ककसान की याद तय़ों आि ै?
३.बषाच ऋिू के बाद कौन-स ऋिू आि ै ?
४.बषाच ऋिू से प ले लोग तया-तया िैयाररयाीं
करने लगिे ैं?
13. गृ कायच
१.वषाच ऋिु ववषय पर एक ननबींध मलखो
२.भूखा र कर कौन जग को खखलािा ै ?
३.कवव कामलदास के व्यजतित्व और कृ नित्व के बारे िें
मलखो