महामारी से अनूठा बचाव - http://spiritualworld.co.in
एक समय साईं बाबा ने लगभग दो सप्ताह से खाना-पीना छोड़ दिया था| लोग उनसे कारण पूछते तो वह केवल अपनी दायें हाथ की तर्जनी अंगुली उठाकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें फैलाकर आकाश की ओर देखने लगते थे| लोग उनके इस संकेत का अर्थ समझने की कोशिश करते लेकिन इसका अर्थ उनकी समझ में नहीं आता था|
बस कभी-कभी उनके कांपते होठों से इतना ही निकलता - "महाकाल का मुख अब खुल चुका है| सब कुछ उसके मुख में समा जायेगा| कोई भी नहीं बचेगा| एक-एक करके सब चले जायेंगे|"
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2. एक समय साई बाबा ने लगभग दो सप्ताह से खाना-
पीना छोड िदया था| लोग उनसे कारण पूछते तो वह
केवल अपनी दाये हाथ की तजनर्जनी अंगुली उठाकर अपनी
बडी-बडी आँखे फै लाकर आकाश की ओर देखने लगते थे|
लोग उनके इस संकेत का अथर्ज समझने की कोिशश करते
लेिकन इसका अथर्ज उनकी समझ मे नही आता था|
बस कभी-कभी उनके कांपते होठो से इतना ही िनकलता
- "महाकाल का मुख अब खुल चुका है| सब कुछ उसके
मुख मे समा जनायेगा| कोई भी नही बचेगा| एक-एक
करके सब चले जनायेगे|"
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3. साई बाबा के मुख से िनकलते इन शब्दो को सुनकर लोग
मारे भय के बुरी तरह से कांप उठते| वे बाबा से पूछते,
लेिकन वह मौन हो जनाते| उनकी कांपती हुई अंगुली
आकाश की ओर उठती और वह लंबी सांस लेकर फटी-
फटी आँखो से आकाश की ओर बस देखते रह जनाया करते
थे| गांव का वातावरण सहमासहमा-सा रहने लगा था|
प्रत्येक बृहस्पितवार को साई बाबा की शोभायात्रा बडी
धूमधाम से िनकलती थी, लेिकन न जनाने क्यो लोगो के
मन िकसी अिनष की आशंका से आशंिकत हो उठे थे|
बाबा की इन बातो को सुनकर यिद िकसी को सबसे
ज्यादा खुशी हुई तो वह पंिडितजनी थे| वह इस बात को
अच्छी तरह से जनानते थे िक साई बाबा जनो कुछ भी
कहते है, वह सच ही होता है|
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4. उनकी भिवष्यवाणी झूठी नही हो सकती| भिवष्य मे
होने वाली घटनाओ को वे शायद पहले ही जनान लेते थे|
अकाल, बाढ, महामारी ऐसी दैवी आपदाएं है, जनो
गांव-के गांव पूरी तरह से बबार्जद करके रख देती है|
इनका कोई इलाजन नही है| गांव के सब लोग गांव
छोडकर चले जनाते है| शायद ऐसा ही कोई संकट िशरडिी
मे आने वाला है| पंिडितजनी यह सोच-सोचकर मन मे
बहुत खुश थे िक यिद महामारी फै ली तो लोग उनके
पास ही अपना इलाजन कराने के िलए आयेगे, िजनससे
उनको अच्छी-खासी कमाई होगी, जनबिक सारा गांव
अिनष की आशंका िचताग्रस्त था|
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5. वर्षा ऋर ऋतु समा ऋप हो चुकी थी| बा ऋढ आने की कोई
संभा ऋवर्ना ऋ न थी| अच्छी बा ऋिरिश होने के का ऋरिण खेतो मे
फसले भी अच्छी हुई थी| अका ऋल पड़ने की भी संभा ऋवर्ना ऋ
नही थी| यदिद कोई आपदा ऋ आ सकती थी, तो वर्ह थी
महा ऋमा ऋरिी| यदिद महा ऋमा ऋरिी फै ली तो पंिडितजी का ऋ भा ऋग्यद
खुल जा ऋएगा ऋ| जब से सा ऋई बा ऋबा ऋ िशरिडिी मे आए थे,
पंिडितजी की आमदनी तो खत्म-सी ही हो गयदी थी| सा ऋई
बा ऋबा ऋ की धूनी की भभूती असा ऋध्यद से असा ऋध्यद रिोगो का ऋ
समूल ही ना ऋश करि देती थी| इसी वर्जह से पंिडितजी के
पा ऋस रिोिगयदो ने आना ऋ िबल्कुल ही बंद-सा ऋ करि िदयदा ऋ था ऋ|
िफरि मंिदरि मे भी पूजा ऋ करिने वर्ा ऋलो की संख्यदा ऋ भी िदन-
प्रतितिदन कम होती चली जा ऋ रिही थी| केवर्ल पा ऋंच-सा ऋत
ही लोग ही ऐसे बचे थे, जो पूजा ऋ करिने के िलए सुबह-
शा ऋम मंिदरि आयदा ऋ करिते थे| इसके अला ऋवर्ा ऋ शा ऋम के समयद
प्रतसा ऋद के ला ऋलच मे कुछ बच्चे भी मंिदरि मे इकट्ठे हो जा ऋयदा ऋ
करिते थे|
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6. इस तरिह मंिदरि से होने वर्ा ऋली आमदनी भी ना ऋममा ऋत की
ही रिह गयदी थी| पुरिोिहता ऋई का ऋ धंधा ऋ भी बस ले-देकरि ही
चल रिहा ऋ था ऋ|
सा ऋई बा ऋबा ऋ के प्रतवर्चनो को सुनकरि लोगो मे कथा ऋ सुनने
की रुचिच भी जा ऋती रिही| वर्षा ऋर भी समयद परि होती थी|
इसिलए समयद परि वर्षा ऋर करिा ऋने के बहा ऋने से प्रतत्यदेक वर्षर
होने वर्ा ऋला ऋ यदज भी होना ऋ अब बंद हो गयदा ऋ था ऋ| भूत-प्रतेत,
ब्रह्मरिा ऋक्षस तो जैसे बा ऋबा ऋ के गा ऋंवर् मे कदम रिखते ही गा ऋंवर्
से पला ऋयदन करि गयदे था ऋ| गा ऋंवर् मे अब िकसी भी तरिह का ऋ
उत्पा ऋत नही होता ऋ था ऋ| प्रतत्यदेक घरि मे सुख-शा ऋंित बा ऋ
बसेरिा ऋ था ऋ ! आपस के लड़ा ऋई-झगड़े भी अब होने बंद हो
चुके थे| पंिडितजी को जैसे कुछ का ऋम ही नही िमल रिहा ऋ
था ऋ| वर्ह सा ऋरिे िदन अपने घरि मे बेका ऋरि ही पड़े रिहते थे|
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7. घरि मे पड़े-पड़े पंिडितजी बहुत दु:खी हो गयदे थे| उनके
सा ऋमने रिोजी-रिोटी की समस्यदा ऋ खड़ी होने लगी थी|
सा ऋई बा ऋबा ऋ बरिा ऋबरि िचता ऋ मे डिूबे रिहते थे| एकटक आका ऋश
की ओरि देखते रिहते थे, िकसी से कुछ भी न बोलते थे|
तभी आस-पा ऋस के बीस कोस के इला ऋके मे हैजे की
महा ऋमा ऋरिी फै लने की खबरि से िशरिडिी गा ऋंवर् मे कोहरिा ऋम
मच गयदा ऋ| हैजे की महा ऋमा ऋरिी से लोग मरिने लगे|
पहले कुछ उिल्टयदा ऋं होती, दस्त होते औरि लोग मौत के
मुंह मे समा ऋ जा ऋते|जब तक लोग रिोग को समझ पा ऋते,
रिोगी िबना ऋ दवर्ा ऋ-दा ऋर के ही भगवर्ा ऋन के पा ऋस पहुंच जा ऋता ऋ
था ऋ|
पंिडितजी की सा ऋरिी भा ऋग-दौड़ व्यर्थर चली जा ऋती थी|
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8. आस-पा ऋस के गा ऋंवर्ो मे हैजा ऋ फै लने की खबरि सुनकरि
िशरिडिी के लोग भी अत्यदंत िचितत हो उठे|
वर्ह सब इकट्ठा ऋ होकरि सा ऋई बा ऋबा ऋ के पा ऋस पहुंचे|
"बा ऋबा ऋ...बा ऋबा ऋ ! आस-पा ऋस के गा ऋंवर्ो मे हैजा ऋ तेजी से पैरि
पसा ऋरिता ऋ जा ऋ रिहा ऋ है| अब तो वर्ह हमा ऋरिे गा ऋंवर् की सीमा ऋ
की ओरि भी बढता ऋ आ रिहा ऋ है| कही ऐसा ऋ न हो िक हमा ऋरिा ऋ
गा ऋंवर् भी इस महा ऋमा ऋरिी की लपेट मे आ जा ऋए|" िशष्यदो ने
डिरिते-डिरिते सा ऋई बा ऋबा ऋ से कहा ऋ|
सा ऋई बा ऋबा ऋ कई सपा ऋह से मौन थे| उन्होने खा ऋना ऋ-पीना ऋ
छोड़ रिखा ऋ था ऋ| सा ऋरिे िशष्यद औरि वर्ा ऋईजा ऋ मा ऋँ उनसे िमन्नते
करिके हा ऋरि गयदे थे, लेिकन न तो बा ऋबा ऋ ने खा ऋना ऋ ही खा ऋयदा ऋ
औरि न ही िकसी से कोई बा ऋतचीत ही की थी|
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9. लोगो की इस पुकार को सुनकर साई बाबा ने एक गहरी
ठंडी सांस छोड़ी और िफिर आकाश की ओर पूर्ववर्वववत् की
भांित देखने लगे| मस्जिस्जिद मस्जे उपिस्थित लोग भी उन
लोगो के साथि साई बाबा के चेहरे को देखने लगे िक
शायद बाबा इस मस्जहामस्जारी से बचने का कोई उपाय
बतायेगे|
साई बाबा का चेहरा एकदमस्ज गंभीर पड़ गया| िचता की
लकीर उनके सलोने मस्जुख पर स्पष रूप से नजिर आ रही
थिी| ऐसा लगता थिा िक जिैसे बाबा स्ववयं िकसी गहरी
िचता मस्जे है| कुछ कर पाने मस्जे स्ववयं को असमस्जथिर्व पा रहे है|
अचानक साई बाबा ने अपनी आँखे मस्जूर्ंद ली और बोले -
"तुमस्ज लोग कल सुबह आना| मस्जै सब बताऊं गा|" कहकर
बाबा शांत हो गये| सब लोग बाबा की बात सुनकर
चुपचाप उठकर अपने-अपने घरो को चले गए|
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10. अगले िदन पौ फिटते ही सब लोग द्वािरकामस्जाई मस्जिस्जिद
जिा पहुंचे| देखा मस्जिस्जिद के दालान मस्जे बैठे हुए साई बाबा
चक्की मस्जे जिौ पीस रहे थिे और जिौ का आटा चक्की के चोरो
तरफि फिै ला हुआ थिा|
सब लोग चुपचाप खड़े साई बाबा को जिौ िपसते हुए
देखते रहे| लेिकन साई बाबा पूर्री लगन के साथि जिौ पीसे
जिा रहे थिे| िकसी की िहम्मस्जत न हो रही थिी िक ववह उनसे
कुछ पूर्छने का साहस जिुटा सके|
कुछ देर बाद एक भक से साहस जिुटाया और आगे
बढ़कर पूर्छा - "बाबा ! आप यह क्या कर रहे है ?“
"मस्जहामस्जारी को भगाने की दववा बना रहा हूं|“
"यह दववा है ?"
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11. बाबा ने कहा - "हां, यह दववा ही है| इस आटे को
एक कपड़े मस्जे भरकर ले जिाओ और गांवव की सीमस्जा
मस्जे चारो ओर जिहां-जिहां तक मस्जहामस्जारी फिै ली हो इस
दववा को िछड़क आओ| परमस्जात्मस्जा ने चाहा तो इस
गांवव की सीमस्जा मस्जे हैजिे की मस्जहामस्जारी प्रववेश न कर
पायेगी|“
तब िशष्यो ने एक झोली मस्जे सारा आटा भर िलया
और साई बाबा की जिय-जियकार करते हुए गांवव की
सीमस्जा की ओर चल पड़े| दोपहर तक गांवव के चारो
ओर सीमस्जा पर आटे से लकीर-सी बना दी गयी| इस
प्रकार साई बाबा द्वारा पीसे गये आटे से सारा गांवव
बांध िदया गया|
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12. साई बाबा की इस बात पर पंिडतजिी को िववश्वास
न हो पा रहा थिा िक हैजिे जिैसी मस्जहामस्जारी का प्रकोप
इस तरह से रुक सकता है| हैजिे का प्रकोप आस-
पास के गांववो मस्जे बड़ी तेजिी के साथि बढ़ता जिा रहा
थिा| दस-पांच आदमस्जी रोजिाना मस्जौत के मस्जुंह के
समस्जाते चले जिा रहे थिे| चारो ओर हाहाकार मस्जचा
हुआ थिा|साई बाबा की इस अनोखी दववा का
समस्जाचार आस-पास के गांववो तक भी पहुंच गया|
लोग दववा मस्जांगने के िलए द्वािरकामस्जाई मस्जिस्जिद आने
लगे|
"बाबा, हमस्जारे गांवव मस्जे भी हैजिा फिै ला है| हमस्जारे
ऊपर दया करके हमस्जे भी दववा देने की कृपा करे|"
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13. और भी लोग साई बाबा के पास पहुंचकर बड़े ही
दयनीय स्वर मे कहने लगे - "हमे भी दवा दे दो
बाबा ! हम पर भी अपनी दया करो| हमारा तो
सारा गांव श्मशान बन गया है|“
"अरे, तुम लोग इतना परेशान क्यो हो रहे हो ?
िजितनी दवा है, आपस मे बांटकर ले जिाओ और
गांव के प्रत्येक घर मे िछिड़क दो| जिो बीमार होगा
ठीक हो जिाएगा और यह महामारी तुम्हारे गांव से
भी भाग जिायेगी|" बाबा ने उन्हे सांत्वना देते हुए
कहा|
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14. आस-पास के गांवो के लोग बाकी बची हुई दवा को
बांटकर ले गए| साई बाबा की चक्की की घरर-घरर की
आवाजि िफिर मिस्जिद के गुम्बदो और मीनारो को
गुंजिायमान करने लगी| दूर-दूर के गांवो मे पहुंच
जिाती, वहां हैजिे की बीमारी का नामोिनशान ही
िमट जिाता| बीमार इस तरह से उठकर खड़े हो
जिाते, मानो वह बीमार पड़े ही नही हो| दवा
एकदम रामबाण के समान अपना काम कर रही
थी| महामारी गधे के सीग की तरह गायब होती
जिा रही थी|
साई बाबा की दवा की कृपा से सैंकड़ो घर उजिड़ने
से बच गये| हर तरफि बस साई बाबा की जिय-
जियकार के स्वर ही सुनाई पड़ रहे थे|
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साई बाबा की कृपा से सबसे अिधक नुकसान यिद िकसी
का हुआ तो वह थे पंिडितजिी ! उनको कोई भी नही पूछि
रहा था| महामारी फिै ली पर उनके दवाखाने मे एक भी
आदमी दवा लेने तक न आया| पंिडितजिी साई बाबा से
बड़ी बुरी तरह से जिले-भुने बैठे थे| साई बाबा उन्हे गांव
मे ऐसे खटक रहे थे जिैसे आँख मे ितनका|
पंिडितजिी िदन-रात इसी िचता मे घुले जिा रहे थे िक िकस
तरह से साई बाबा को नीचा िदखाकर, यहां िशरडिी से
िनकाल भगाया जिाये| वह अपने मन मे बराबर उनके
िलए नयी-नयी योजिनाएं बना रहे थे, पर उनकी सारी
योजिनाएं अमल मे लाने पर असफिल होकर रह जिाती
थी|