हिन्दी सिनेमा की सिण्ड्रेला सुरैया
सुरैया का अर्थ होता है कृतिका, ज्योतिष में प्रयुक्त अट्ठाईस नक्षत्र समूहों में तीसरा। सुरैया 1940 और 50 के दशक में हिन्दी फिल्म जगत का एक चमचमाता नक्षत्र थी । इन दो दशकों में कुछ बरस तो वह अपनी समकालीन नायिकाओं – नरगिस / मधुबाला / मीनाकुमारी / गीताबाली / नलिनी जयवंत / निम्मी और बीना राय से ज्यादा लोकप्रिय रही । अभिनय का उसका अंदाज निराला था और साथ ही वह एक सुंकठ गायिका भी थी, जो लता मंगेशकर के अवतरण के बावजूद अपनी जगह पर कायम रही। इस कालखंड में उसने पाकिस्तान चली गई नूरजहाँ और खुर्शीद की अदाकारी का अंदाज कायम रखा। वह पुरानी और नई पीढ़ी के गायक-अभिनेताओं के. एल. सहगल, सुरेन्द्र, मुकेश और तलत महमूद के साथ तो पर्दे पर आई बल्कि पृथ्वीराज, जयराज और मोतीलाल जैसे वरिष्ठ नायकों की नायिका भी बनी। सुरैया की व्यावसायिक सफलता का आलम यह था कि निर्माता-निर्देशक द्वितीय श्रेणी के अभिनेताओं को लेकर भी सुरैया के सहारे अपनी फिल्म को सफलता की वैतरणी पार करा दिया करते थे। सुरैया की लोकप्रियता का एक कारण यह भी था कि फिल्म-उद्योग में और उद्योग से बाहर उसे चाहने वाले और अपना बनाने के इच्छुक लोगों की संख्या बेशुमार थी। लेकिन भाग्य की विडम्बना देखिए कि उसे एक सिण्ड्रेला (चिर प्रतीक्षारत कुमारिका) का जीवन जीना पड़ा। देवआंनद और ग्रेगरी पेक सारी सहानुभूति के बावजूद भी उसे साथ न दे सके।
लेखक
श्रीराम ताम्रकर
एम.ए., बी.एड., विद्यावाचस्पति,
विशारद, एफ.ए. (FTII)
इन्दौर, म.प्र.
आज की युवा पीढ़ी अभिनेत्री काजोल और बहन तनीशा की प्रशंसक है। इसके पहले की पीढ़ी नूतन और तनूजा के दिलकश अभिनय से बखूबी परिचित हैं और उससे भी पहले की पीढ़ी सीता के रूप में जानती है चालीस के दशक की लोकप्रिय तारिका शोभना समर्थ को। रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण में जिस तरह राम (अरूण गोविल) और सीता (दीपिका चिखलिया) को पॉपूलर आर्ट यानी फोटो, पोस्टर, कैलेंटर और कई उत्पादों के जरिये घर-घर में परिचित करा दिया था। वैसे ही कुछ शोभना समर्थ और प्रेम अदीब (राम) के साथ चालीस के दशक में घटित हुआ था। इससे भी बढ़कर धार्मिक आस्था वाले अपने घर के देवालय में इनकी तस्वीर लगाकर सुबह-शाम आरती उतारते थे तथा हल्दी कुमकुम लगाते थे।
मुंबई के अमीर बैंकर परिवार में शोभना शिलोत्री का जन्म 17 नवंबर, 1916 को हुआ था। पिता पी.एल. शिलोत्री की एकमात्र पुत्री होने से शोभना का बचपन लाड़-प्यार में बीता। बचपन में मराठी रंगमंच पर अभिनय किया। .........
I friends i am a blogger and writer also ,i write poetry about love & life so this clip is my poetry website .i hope you will like it and visit to my website.
Thankyou!!
अलसी - एक चमत्कारी आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक दैविक भोजन
“पहला सुख निरोगी काया, सदियों रहे यौवन की माया।” आज हमारे वैज्ञानिकों व चिकित्सकों ने अपनी शोध से ऐसे आहार-विहार, आयुवर्धक औषधियों, वनस्पतियों आदि की खोज कर ली है जिनके नियमित सेवन से हमारी उम्र 200-250 वर्ष या ज्यादा बढ़ सकती है और यौवन भी बना रहे। यह कोरी कल्पना नहीं बल्कि यथार्थ है। आपको याद होगा प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनि योग, तप, दैविक आहार व औषधियों के सेवन से सैकड़ों वर्ष जीवित रहते थे। इसीलिए ऊपर मैंने पुरानी कहावत को नया रुप दिया है। ऐसा ही एक दैविक आयुवर्धक भोजन है “अलसी” जिसकी आज हम चर्चा करेंगें।
पिछले कुछ समय से अलसी के बारे में पत्रिकाओं, अखबारों, इन्टरनेट, टी.वी. आदि पर बहुत कुछ प्रकाशित होता रहा है। बड़े शहरों में अलसी के व्यंजन जैसे बिस्कुट, ब्रेड आदि बेचे जा रहे हैं। भारत के विख्यात कार्डियक सर्जन डॉ. नरेश त्रेहान अपने रोगियों को नियमित अलसी खाने की सलाह देते हैं ताकि वह उच्च रक्तचाप व हृदय रोग से मुक्त रहे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) अलसी को सुपर स्टार फूड का दर्जा देता है। आयुर्वेद में अलसी को दैविक भोजन माना गया है। मैंने यह भी पढ़ा है कि सचिन के बल्ले को अलसी का तेल पिलाकर मजबूत बनाया जाता है तभी वो चौके-छक्के लगाता है और मास्टर ब्लास्टर कहलाता है। आठवीं शताब्दी में फ्रांस के सम्राट चार्ल मेगने अलसी के चमत्कारी गुणों से बहुत प्रभावित थे और चाहते थे कि उनकी प्रजा रोजाना अलसी खाये और निरोगी व दीर्घायु रहे इसलिए उन्होंने इसके लिए कड़े कानून बना दिए थे।
चुकंदर - सेहत का सिकंदर
चुकंदर या बीटा वल्गेरिस (Family Chenopodiaceae) अनेक विटामिन, खनिज तत्व और एंटीऑक्सीडेंट से भर पूर एक सुपर फूड है। यह पीले, लाल, बैंगनी या जामुनी कई रंगों में मिलता है। चुकंदर हर सलाद, व्यंजन और सब्जियों में एक नया रंग भर देता है। यह सेहत के लिए बहुत उपयागी है, हम इसे सेहत का सिकंदर कहते है। कैंसर समेत कई बीमारियों में इसका उपयोग होता है। इसे कच्चा, उबाल कर या सब्जी बना कर खाया जाता है। इसकी पत्तियां और जड़ दोनों ही खाये जाते हैं। आयुर्वेद में इसका प्रयोग औषधि के रूप में भी होता है। इसका ज्यूस एक उत्कृष्ठ टॉनिक है।
चुकंदर का पौष्टिकता और स्वाद बनाये रखने के लिए इसको बिना छिलका निकाले डेढ़ दो इंच टहनी के साथ ही 15 मिनट तक भाप में पकाना चाहिये। पकने से इसकी ऊपरी परत आसानी से निकल आती है और यह अन्य व्यंजन बनाने के लिए तैयार हो जाता है।
आज की युवा पीढ़ी अभिनेत्री काजोल और बहन तनीशा की प्रशंसक है। इसके पहले की पीढ़ी नूतन और तनूजा के दिलकश अभिनय से बखूबी परिचित हैं और उससे भी पहले की पीढ़ी सीता के रूप में जानती है चालीस के दशक की लोकप्रिय तारिका शोभना समर्थ को। रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण में जिस तरह राम (अरूण गोविल) और सीता (दीपिका चिखलिया) को पॉपूलर आर्ट यानी फोटो, पोस्टर, कैलेंटर और कई उत्पादों के जरिये घर-घर में परिचित करा दिया था। वैसे ही कुछ शोभना समर्थ और प्रेम अदीब (राम) के साथ चालीस के दशक में घटित हुआ था। इससे भी बढ़कर धार्मिक आस्था वाले अपने घर के देवालय में इनकी तस्वीर लगाकर सुबह-शाम आरती उतारते थे तथा हल्दी कुमकुम लगाते थे।
मुंबई के अमीर बैंकर परिवार में शोभना शिलोत्री का जन्म 17 नवंबर, 1916 को हुआ था। पिता पी.एल. शिलोत्री की एकमात्र पुत्री होने से शोभना का बचपन लाड़-प्यार में बीता। बचपन में मराठी रंगमंच पर अभिनय किया। .........
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अलसी - एक चमत्कारी आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक दैविक भोजन
“पहला सुख निरोगी काया, सदियों रहे यौवन की माया।” आज हमारे वैज्ञानिकों व चिकित्सकों ने अपनी शोध से ऐसे आहार-विहार, आयुवर्धक औषधियों, वनस्पतियों आदि की खोज कर ली है जिनके नियमित सेवन से हमारी उम्र 200-250 वर्ष या ज्यादा बढ़ सकती है और यौवन भी बना रहे। यह कोरी कल्पना नहीं बल्कि यथार्थ है। आपको याद होगा प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनि योग, तप, दैविक आहार व औषधियों के सेवन से सैकड़ों वर्ष जीवित रहते थे। इसीलिए ऊपर मैंने पुरानी कहावत को नया रुप दिया है। ऐसा ही एक दैविक आयुवर्धक भोजन है “अलसी” जिसकी आज हम चर्चा करेंगें।
पिछले कुछ समय से अलसी के बारे में पत्रिकाओं, अखबारों, इन्टरनेट, टी.वी. आदि पर बहुत कुछ प्रकाशित होता रहा है। बड़े शहरों में अलसी के व्यंजन जैसे बिस्कुट, ब्रेड आदि बेचे जा रहे हैं। भारत के विख्यात कार्डियक सर्जन डॉ. नरेश त्रेहान अपने रोगियों को नियमित अलसी खाने की सलाह देते हैं ताकि वह उच्च रक्तचाप व हृदय रोग से मुक्त रहे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) अलसी को सुपर स्टार फूड का दर्जा देता है। आयुर्वेद में अलसी को दैविक भोजन माना गया है। मैंने यह भी पढ़ा है कि सचिन के बल्ले को अलसी का तेल पिलाकर मजबूत बनाया जाता है तभी वो चौके-छक्के लगाता है और मास्टर ब्लास्टर कहलाता है। आठवीं शताब्दी में फ्रांस के सम्राट चार्ल मेगने अलसी के चमत्कारी गुणों से बहुत प्रभावित थे और चाहते थे कि उनकी प्रजा रोजाना अलसी खाये और निरोगी व दीर्घायु रहे इसलिए उन्होंने इसके लिए कड़े कानून बना दिए थे।
चुकंदर - सेहत का सिकंदर
चुकंदर या बीटा वल्गेरिस (Family Chenopodiaceae) अनेक विटामिन, खनिज तत्व और एंटीऑक्सीडेंट से भर पूर एक सुपर फूड है। यह पीले, लाल, बैंगनी या जामुनी कई रंगों में मिलता है। चुकंदर हर सलाद, व्यंजन और सब्जियों में एक नया रंग भर देता है। यह सेहत के लिए बहुत उपयागी है, हम इसे सेहत का सिकंदर कहते है। कैंसर समेत कई बीमारियों में इसका उपयोग होता है। इसे कच्चा, उबाल कर या सब्जी बना कर खाया जाता है। इसकी पत्तियां और जड़ दोनों ही खाये जाते हैं। आयुर्वेद में इसका प्रयोग औषधि के रूप में भी होता है। इसका ज्यूस एक उत्कृष्ठ टॉनिक है।
चुकंदर का पौष्टिकता और स्वाद बनाये रखने के लिए इसको बिना छिलका निकाले डेढ़ दो इंच टहनी के साथ ही 15 मिनट तक भाप में पकाना चाहिये। पकने से इसकी ऊपरी परत आसानी से निकल आती है और यह अन्य व्यंजन बनाने के लिए तैयार हो जाता है।
ऊर्जा चक्र
मनुष्य के शरीर में सात चक्राकार घूमने वाले ऊर्जा केन्द्र होते हैं, जो मेरूदंड में अवस्थित होते है और मेरूदंड (Spinal Column) के आधार से ऊपर उठकर खोपड़ी तक फैले होते हैं । इन्हें चक्र कहते हैं, क्योंकि संस्कृत में चक्र का मतलब वृत्त, पहिया या गोल वस्तु होता है। इनका वर्णन हमारे उपनिषदों में मिलता है। प्रत्येक चक्र को एक विशेष रंग में प्रदर्शित किया जाता है एवं उसमे कमल की एक निश्चित संख्या में पंखुड़ियां होती हैं। हर पंखुड़ी में संस्कृत का एक अक्षर लिखा होता है। इन अक्षरों में से एक अक्षर उस चक्र की मुख्य ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है।
ये चक्र प्राण ऊर्जा के कैंद्र हैं। यह प्राण ऊर्जा कुछ वाहिकाओं में बहती है, जिनको नाड़ियां कहते हैं। सुषुम्ना एक मुख्य नाड़ी है जो मेरुदन्ड में अवस्थित रहती है, दो पतली इड़ा और पिंगला नाम की नाड़ियां हैं जो मेरुदन्ड के समानान्तर क्रमशः बाई और दाहिनी तरफ अपस्थित रहती हैं। इड़ा और पिंगला मस्तिष्क के दोनों गोलार्धों से संबन्ध बनाये रखती हैं। पिंगला बहिर्मुखी सूर्य नाड़ी है जो बाएं गोलार्ध से संबन्ध रखती है। इड़ा अन्तर्मुखी चंद्र नाड़ी है जो दाहिने गोलार्ध से संबन्ध रखती है।
प्रत्येक चक्र भौतिक देह के विशिष्ट हिस्से और अंग से संबन्ध रखता है और उसे सुचारु रूप से कार्य करने हेतु आवश्यक ऊर्जा उपलब्ध करवाता है। साथ में हर चक्र एक निश्चित स्तर तक के ऊर्जा कंपन को वर्णित करता है एवं विभिन्न चक्रों में मानव के शारीरिक एवं भावनात्मक पहलू भी प्रतिबिम्बित होते हैं। नीचे के चक्र शरीर के बुनियादी व्यवहार और आवश्यकता से संबन्धित हैं, सघन होते हैं और कम आवृत्ति पर कम्पन करते हैं। जबकि ऊपर के चक्र उच्च मानसिक और आध्यात्मिक संकायों से संबन्धित हैं। चक्रों में ऊर्जा का उन्मुक्त प्रवाह हमा
World without cancer - the story of vitamin b17 Om Verma
WORLD WITHOUT CANCER
The Story of Vitamin B17
DEDICATION
This book is dedicated to the memory of Dr. Ernst T. Krebs, Jr.,
and John A. Richardson, M.D. When confronted by the power and malice of entrenched scientific error, they did not flinch. While others scampered for protective shelter, they moved to the front line of battle. May the telling of their deeds help to arouse an indignant public which, alone, can break the continuing hold of their enemies over our lives and our health.
आपने पोर्नोग्राफिक वेब साइट्स और सेक्स पत्रिकाओं में जी-स्पॉट के बारे में अक्सर पढ़ा होगा। जहाँ कुछ लोग इसको लेकर बहुत उत्सुक हैं और इसका आनंद भी उठा रहे हैं, वहीं कुछ नकारात्मक विचारधारा वाले लोग इसे महज़ किसी सिरफिरे व्यक्ति के दिमाग की उपज मानते हैं। वे मानते हैं कि जी-स्पॉट नाम की कोई चीज है ही नहीं। जी-स्पॉट पर इतना हल्ला होने के बाद भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इसलिए मैं आज रहस्य के सारे परदे उठा कर सच्चाई को उजागर कर देना चाहता हूँ। तो चलिए सबसे पहले हम इतिहास के पन्नों को पलटने की कौशिश करते हैं।
1950 के दशक में विख्यात गायनेकोलोजिस्ट डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग ने इंटरनेशनल जरनल ऑफ सेक्सोलोजी में The Role of Urethra in Female Orgasm नाम से एक प्रपत्र प्रकाशित किया था। इन्होंने स्त्रियों की यूरेथ्रा के चारो तरफ कोर्पोरा केवर्नोजा की तरह एक स्पंजी और इरेक्टाइल टिश्यू को चिन्हित किया, जिसे यूरीथ्रल स्पंज कहा जाता है। इसके बाद 1980 के दशक में सेक्स एजूकेटर और काउंसलर बेवर्ली व्हिपल और सायकोलोजिस्ट और सेक्सोलोजिस्ट जॉन पेरी ने डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग की शोध को आगे बढ़ाया और अंततः डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग के नाम पर इस इस रहस्यमय स्पॉट का नाम जी-स्पॉट रखा।
आदरणीय,
श्री युत संपादक जी,
अहा ! जिंदगी,
भास्कर परिवार, 10 जे. एल. एन मार्ग,
मालवीय नगर, जयपुर (राज.)
मान्यवर जी,
इस बार बड़े दिनों बाद बाद आपको पत्र लिख रहा हूँ। सर्वप्रथम तो आपको नये आयुर्वेद महाविशेषांक की उत्कृष्ट साज-सज्जा और ज्ञानवर्धक लेखों के चयन के लिए हार्दिक शुभकामानाएं देता हूँ। सदैव की भांति यह अंक कामयाबी की नई मिसाल बनने वाला है। इस अंक में आपने मेरे तीन लेख प्रकाशित किए हैं। इसके लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ। आपने हमेशा मेरे लेखों को ससम्मान प्रकाशित किया है। मैं सचमुच आभारी हूँ। इस बार भी आप देखिएगा “डॉ. जोहाना बुडविग का कैंसररोधी आहार–विहार” और “ऐसीयक चाय” जैसे लेख सफलता की नई ऊँचाइयां छूने वाले हैं। इनकी गूँज जर्मनी के बुडविग सेंटर तक जाने वाली है। ऐसीयक चाय पर मेरा अंग्रेजी लेख भी बहुत हिट रहा है। ऐसीयक चाय की उपलब्धता पर आपसे प्रश्न पूछे जाएंगे। यह चाय http://www.amazon.com/ से ऑनलाइन खरीदी जा सकती है। 21 श्रीनगर के एक विख्यात हर्बलिस्ट डॉ. अहंगर भी इस चाय को शीघ्र ही लांच करने वाले हैं। मेरी उनसे बहुत पहले बात हो चुकी है लेकिन श्रीनगर में अतिवृष्टि होने के कारण विलम्ब हो गया है।
एक मसले पर मैं आपका ध्यान चाहता हूँ। पृष्ठ सं. 105 पर विटामिन बी-17 पर एक लेख वैद्य श्री प्रदीप शर्मा के नाम से प्रकाशित हुआ है। उन्होंने इस लेख को हूबहू और सअक
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ABOUT Rabindranath Tagore
Born Rabindranath Thakur
7 May 1861
Calcutta, Bengal Presidency, British India
Died 7 August 1941 (aged 80)
Calcutta
Occupation Writer, painter
Language Bengali, English
Nationality Indian[citation needed]
Ethnicity Bengali
Literary movement Contextual Modernism
Notable works Gitanjali, Gora, Ghare-Baire, Jana Gana Mana, Rabindra Sangeet, Amar Shonar Bangla (other works)
Notable awards Nobel Prize in Literature
1913
Spouse Mrinalini Devi (m. 1883–1902)
Children five children, two of whom died in childhood
Relatives Tagore family
Linomel Muesli
“Muesli" should be eaten regularly, prepared as follows:
Put 2 tablespoons of LINOMEL in a glass bowl. Cover this with a layer of fresh fruit in season, (i.e.: berries, cherries, apricots, peaches, grated apples). Now prepare a mixture made with Quark and Flax Seed Oil.
Add 3 tablespoons Flax Seed Oil to 100 - 125 g Quark, a little milk (2 Tblsp) and mix thoroughly until the oil has been totally absorbed. Lastly, add 1 tablespoon honey. In order to give it a new flavor every day, rosehip pulp, buckthorn juice, other fruit juices or ground nuts may be added. Butter is not recommended. Only herb teas should be served, but a cup of black tea is permitted on occasion.
अभी तक हुए 1500 से अधिक शोधों से यह साबित होता है कि नारियल तेल (कोकोस न्युसिफेरा) हमारी धरा पर विद्यमान एक स्वास्थ्यप्रद और उत्कृष्ट तेल है। सेहत से लेकर सुंदरता तक नारियल तेल प्रकृति का नायाब और अनमोल उपहार है। इसके करिश्माई फायदे आपको चौंका देंगे। गर्म करने पर यह खराब नहीं होता। इसकी शैल्फ लाइफ दो वर्ष से अधिक है। हमें अनरिफाइंड, अनहीटेड, ऑर्गेनिक, कॉल्ड-प्रेस्ड और एक्स्ट्रावर्जिन तेल प्रयोग में लेना चाहिए।
विश्वविख्यात फैट और ऑयल्स एक्सपर्ट और जर्मनी के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च की चीफ एक्सपर्ट डॉ जॉहाना बडविग ने साबित किया है कि नारियल तेल फ्राइंग और डीप फ्राइंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। गर्म करने पर इसमें ट्रांसफैट नहीं बनते। कैंसर के रोगी भी इस तेल को प्रयोग कर सकते हैं।
पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में नारियल एक शुद्ध, सात्विक, पवित्र, फलदायी एवं लक्ष्मी माता से मनुष्य को जोड़ने वाला फल है, इसीलिए इसे संस्कृत में श्रीफल कहते हैं, श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। किसी भी धार्मिक एवं शुभ कार्य में हुई पूजा में नारियल रखने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है। घर में नारियल रखने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। मंदिरों में आमतौर पर इसे पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति के सामने फोड़ा जाता है। फोड़ने के बाद यह नारियल प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।
What is the Black Seed?
Its botanical name is Nigella sativa. It is believed to be indigenous to the Mediterranean region but has been cultivated into other parts of the world including the Arabian peninsula, northern Africa and parts of Asia.
The Black seeds originate from the common fennel flower plant (Nigella sativa) of the buttercup (Ranunculaceae) family. It is sometimes mistakenly confused with the fennel herb plant (Foeniculum vulgare).
The plant has finely divided foliage and pale bluish purple or white flowers. The stalk of the plant reaches a height of twelve to eighteen inches as its fruit, the black seed, matures.
The Black Seed forms a fruit capsule which consists of many white trigonal seeds. Once the fruit capsule has matured, it opens up and the seeds contained within are exposed to the air, becoming black in color.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. The seeds have little bouquet, though when rubbed, their aroma resembles oregano. They have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture.
The Black Seed is also known by other names, varying between places. Some call it black caraway, others call it black cumin, onion seeds or even coriander seeds. The plant has no relation to the common kitchen herb, cumin.
Muslims’ use of the Black Seed:
Muslims have been using and promoting the use of the Black Seed for hundreds of years, and hundreds of articles have been written about it. The Black Seed has also been in use worldwide for over 3000 years. It is not only a prophetic herb, but it also holds a unique place in the medicine of the Prophet .
It is unique in that it was not used profusely before the Prophet Muhammad made its use popular. Although there were more than 400 herbs in use before the Prophet Muhammad and recorded in the herbals of Galen and Hippocrates, the Black Seed was not one of the most popular remedies of the time. Because of the way Islam has spread, the usage and popularity of the Black Seed is widely known as a "remedy of the Prophet ." In fact, a large part of this herbal preparation's popularity is based on the teachings of the Prophet .
The Black Seed has become very popular in recent years and is marketed and sold by many Muslim and non-Muslim
Sauerkraut Health Benefits
Professor of Probiotics including rare Lactobacillus Plantarum
Digests everything
High in Vitamin B group and C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
benefits of Cottage Cheese
sulfur containing protein
bonds and carries flax oil into the cells
Makes healthy and electron rich cell wall
Detoxify the body
dextro rotating lactic acid
alkalize the body
Neutralize the killer levo rotating lactic acid
lactoferrin and lactoferricin
anti-bacterial and anti-viral
builds lymphocytes, monocytes & macrophage
boosts immunity
FOCC is mixture of Flax oil and cottage or quark. It is full of electron rich omega-3 fats, has power to attract healing photons from sun and other celestial bodies through resonance. These fats are full of high energy pi-electrons, which attract oxygen into the cells and are capable of healing cell membranes.
As “Om” is divine word and synonym of God in India. According to Hindu mythology, the whole universe is located inside “Om”, so the name Omkhand has been given to this wonderful recipe.
Black Seed – Cures every disease except death Om Verma
Nigella sativa or Black Seed is an annual flowering plant, native to southwest Asia, eastern coastal countries of Mediterranean region and North Africa. Nigella is a derived from Latin word Niger (black). It grows to 20–30 cm tall, with finely divided, linear leaves. The flowers are delicate and usually coloured pale blue and white, with five to ten petals. The fruit is a large and inflated capsule composed of three to seven united follicles, each containing numerous seeds.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. Black seed has a peculiar aromatic and pungent smell, while onion seeds don’t have this smell. Black seeds have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture. The seed is used as a spice, medicine, cosmetic and flavoring agent.
Sour cabbage – Professor of Probiotics
The first and most overlooked reason that our digestive tract is crucial to our
health is because 80 percent of our entire immune system is located in your
digestive tract. In addition, our digestive system is the second largest part of our
neurological system, called enteric nervous system or the second brain.
Probiotics are live beneficial bacteria, which hold the master key for healing
digestive issues, better health, stronger immune system, mental and neurological
disorders. Sour cabbage is the best probiotic food (Germans call it Sauerkraut), It
is produced by lacto-fermentation of the cabbage.
Wild Oregano (Origanum Vulgare ) is a perennial herb that has purple flowers and spade-shaped, olive-green leaves. The whole plant has a strong, peculiar, fragrant, balsamic odour and a warm, bitterish, aromatic taste, both of which properties are preserved when the herb is dry. The oregano sold as a spice is either Sweet Marjoram (Origanum majorana) or Mexican Sage.
There are over 40 oregano species, but the most therapeutically beneficial is the wild oregano or Origanum vulgare that's native to Mediterranean mountains. To obtain oregano oil, the dried flowers and leaves of the plant are harvested when the oil content of the plant is at its highest, and then distilled.
Mayo Dressing
This is part of Budwig Protocol proposed to cure cancer developed by Dr. Budwig.
Delicious mayo salad dressing can be prepared by mixing together 2 Tbsp (30 ml) Flax Oil, 2 Tbsp (30 ml) milk, and 2 Tbsp (30 ml) cottage cheese. Then add 2 tablespoons (30 ml) of Lemon juice (or Apple Cider Vinegar) and add some herbs of your choice.
Health Benefits
Ocean of Probiotics including rare
Lactobacillus Plantarum
Digests everything
Very high in B Vitamins and Vitamin C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)Om Verma
Definitively Budwig Protocol is a miracle cure for cancer with documented 90% success if you follow this treatment perfectly and religiously. This treatment targets on prime cause of cancer. Prime cause of Cancer is oxygen deficiency in the cells. Two factors are essential to attract oxygen in the cells: 1- Sulfur containing protein (found in cottage cheese) and 2- some unknown fat which nobody could identify until 1949 when Dr. Budwig developed paperchromatography technique to identify fats. These fats were Alpha-linolenic acid and linoleic acid found abundantly in FLAX OIL. Thus she developed Cancer therapy based on Flax oil and cottage cheese.
पिछले महीने हमें बॉक्सर प्रजाति का एक श्वेत “पप” प्राप्त हुआ, जिसे हम मिनी बुलाने लगे थे। हम सब बहुत खुश थे। पूरे परिवार में खुशी की लहर थी।
परंतु 4 मई की रात को अचानक मुई बिजली गुल हो गई। मिनी अंधेरे में नीचे उतर गई और नीचे किसी लड़के ने गलती से अपना पैर मिनी के पैर पर रख दिया। बस बेचारी असहाय मिनी की जोर से चीख निकली। हम सब उसकी चीख सुन कर नीचे भागे। वह दर्द के मारे चीखती ही जा रही थी। हमारी समझ में आ चुका था कि मामला अत्यंत गंभीर है और जरूर इसकी फीमर का फ्रेक्चर हुआ है। हमारी सारी श्वेत और उज्वल खुशियों पर यह काली रात कालिख पोत चुकी थी। पूरी रात हम सो भी न सके। कभी मैं, तो कभी मेरी पत्नि उसे गोद में लेकर रात भर बैठे रहे।
सुबह कोटा के कई वेट चिकित्सकों से परामर्श ले लिया गया। कोई ठीक से बता नहीं पा रहा था कि मिनी के पैर का उपचार किस प्रकार होगा, रोड डलेगी, सर्जरी होगी या प्लेटिंग करनी होगी। हमें लगा कि कोटा में समय बर्बाद नहीं करना व्यर्थ है और तुरंत मिनी को जयपुर या दिल्ली के किसी बड़े वेट सर्जन को दिखाना चाहिये।
मैंने मेरे एक मित्र अनिल, जो जयपुर में रहते हैं, से बात की। उन्होंने मुझे पूरा आश्वासन दिया व कहा कि उनके ब्रदर-इन-लॉ विख्यात वेट चिकित्सक हैं और वे सब व्यवस्था करवा देंगे। तब जाकर मन को थोड़ा सकून मिला। 10 मिनट बाद ही उनके ब्रदर-इन-लॉ ड
After the advent of "lipid hypothesis", which linked the consumption of dietary fat with increased risk of heart disease and other health problems, fat was highly defamed by the medical establishment that many people started thinking that the best answer to the "fat problem" is to stay away from it as far as possible. Food processing companies quickly took advantage of this era of “fat phobia”, and soon flooded the market with "low fat" and "no fat" products, promising to put an end to heart disease and obesity, but the incidence of these diseases is still skyrocketing.
The truth is that not all fats are equal. While the consumption of some bad fats (trans-fats) are, really, a risk factor for many health problems, some other fats, including alpha-linolenic acid ALA and linoleic acid LA, are so important for health that they have been termed "essential fatty acids" (EFAs). Our body needs them to perform vitally important functions, but our body is unable to produce them. Therefore, we must get them from our food. That's why any attempt to indiscriminately reduce or eliminate all fats from our diet inevitably leads to an EFA deficiency, which may be very dangerous to health.
For all the good it does, fat is often blamed to cause obesity, because it contains 9 calories per gram, in contrast to carbohydrate and protein which contain only 4 calories. Yet, it's a mistake to relate dietary fat with body fat. You can get fat by eating carbs and protein, even if you eat little dietary fat.
In 1956, Hugh Sinclair, one of the world's greatest researchers in the field of nutrition, suggested that an upsurge in the so-called "diseases of civilization" e.g. coronary heart disease, strokes, type-2 diabetes, arthritis and cancer - was caused by modern diets being extremely poor in essential fatty acids (EFA) and full of processed foods rich in trans-fatty acids. Although Sinclair's opinion was not supported by his pears, and he was even criticized by some of them for his bold hypothesis; later research convincingly showed that he was, indeed, correct. In fact, he is now praised for insights that were far ahead of his time.
Fat gives us beauty, shape and protection. A thin fat layer located under the skin helps to insulate and maintain the proper body temperature. Fat is used as a source of backup energy when carbohydrates are not available. Vitamin A, D, E and K are known as fat-soluble vitamins, need fat in order to be absorbed and stored. Fats are also responsible for making sex hormones, cell membranes and prostaglandins.
आज हम सभी के लिए खुशी और उल्हास का अवसर है, हमारे कुंवर निशिपाल का परिणय बंधन सौ.कां. निधि के साथ होने जा रहा है। हम सब इनके सुखी और आनंदमय वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं। इस अवसर पर मैंने यह सत्यपाल गीता तैयार की है। अलसी के नीले फूलों से सजी यह गीता में हमारे आदरणीय पिताजी ठाकुर सत्यपाल सिंह जी के चरणों में समर्पित करता हूँ।
डाॅ. ओ.पी.वर्मा श्रीमती उषा वर्मा
Omega-3 Fatty Acids Increase Brain Volume While Reversing Many Aspects of Neu...
Suraiya Autobiography
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जन्म - 15 जून 1929
ननधन - 31 जनवरी 2004
हिन्दी हिनेमा की हिण्ड्रेला िुरैया
सुरैया का अर्थ होता है कृ ततका,
ज्योततष में प्रयुक्त अट्ठाईस नक्षत्र समूहों
में तीसरा। सुरैया 1940 और 50 के
दशक में तहन्दी तिल्म जगत का एक
चमचमाता नक्षत्र र्ी । इन दो दशकों में
कु छ बरस तो वह अपनी समकालीन
नातयकाओं – नरतगस / मधुबाला /
मीनाकु मारी / गीताबाली / नतलनी
जयवंत / तनम्मी और बीना राय से
ज्यादा लोकतप्रय रही । अतिनय का
उसका अंदाज तनराला र्ा और सार् ही वह एक सुंकठ गातयका िी र्ी, जो लता
मंगेशकर के अवतरण के बावजूद अपनी जगह पर कायम रही। इस कालखंड में
उसने पातकस्तान चली गई नूरजहााँ और खुशीद की अदाकारी का अंदाज कायम
रखा। वह पुरानी और नई पीढी के गायक-अतिनेताओंके . एल. सहगल, सुरेन्र,
मुके श और तलत महमूद के सार् तो पदे पर आई बतल्क पृथ्वीराज, जयराज
और मोतीलाल जैसे वररष्ठ नायकों की नातयका िी बनी। सुरैया की व्यावसातयक
सिलता का आलम यह र्ा तक तनमाथता-तनदेशक तितीय श्रेणी के अतिनेताओं
को लेकर िी सुरैया के सहारे अपनी तिल्म को सिलता की वैतरणी पार करा
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लेखक
श्रीराम ताम्रकर
एम.ए., बी.एड., विद्यािाचस्पवत,
विशारद, एफ.ए. (FTII)
इन्दौर, म.प्र.
तदया करते र्े। सुरैया की लोकतप्रयता का एक कारण यह िी र्ा तक तिल्म-
उद्योग में और उद्योग से बाहर उसे चाहने वाले और अपना बनाने के इच्छुक
लोगों की संख्या बेशुमार र्ी। लेतकन िाग्य की तवडम्बना देतखए तक उसे एक
तसण्ड्रेला (तचर प्रतीक्षारत कु माररका) का जीवन जीना पडा। देवआंनद और ग्रेगरी
पेक सारी सहानुिूतत के बावजूद िी उसे सार् न दे सके ।
सुरैया के नाज-ओ-अंदाज में उत्तर
िारतीय मुतस्लम आतिजात्य वैसी ही
झलक र्ी, जैसी उनकी पूवथवती
गातयका-अतिनेतत्रयों नूरजहााँ और
खुशीद में र्ी। अनेक ऐततहातसक
(पीररयड) तिल्मों में काम कर उसने
इस अदाकारी का िरपूर प्रदशथन तकया और अपने तौर-तरीकों से दशथकों को
लुिाया। देवआंनद की ‘अिसर’, ‘जीत’, ‘शायर’ जैसी तिल्मों में उसने
प्रगततशील स्त्री की िूतमकाएाँ कर स्त्री-पुरूष दोनों को प्रिातवत तकया। उसकी
अंग-िंतगमाओंऔर सुरीली आवाज में मानों तसंक्रोनाइजेशन र्ा। उसका एक गीत
है “तेरी आाँखों ने चोरी तकया, मेरा छोटा सा तजया” (प्यार की जीत)। वास्तव में
यह शरारत स्वंय ने अपने चाहने वालें के सार् की र्ी। सुरैया का एक प्रेमी
शहजादा इतततखार सुरैया से शादी की मांग को लेकर उसके घर के सामने धरने
पर बैठ गया। सुरैया ने उसे समझाया तक अगर तुम्हारा प्यार सच्चा है, तो मेरे
तलए अनशन समाप्त कर दो। वह समझ गया। वह अतिनेत्री वीणा का िाई र्ा।
पातकस्तान से सुरैया का एक प्रेमी बाकायदा बारात लेकर उसके घर पर आ
धमका र्ा, जो पुतलस िारा धमकाये जाने के
बाद लौटा। एक अन्य आतशक सुरैया की
झलक पाने के तलए वषों मेरीन राइव की रेत
पर तपता रहा। सुरैया एक मशहूर दीवाने का
नाम धमेन्र है, जो उसकी तिल्म ‘तदल्लगी’
(1949) देखने के तलए चालीस बार अपने गााँव
से शहर तक गया र्ा।
सुरैया, लता मंगेशकर की हम-उम्र है। सुरैया
को सहगल के सार् तीन तिल्मों में अतिनय
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सुरैया की प्रमुख वफल्म
बाल कलाकार के रूप में–
‘ताजमहल’ (1941),‘स्टेशन मास्टर’,
‘तमन्ना’ (1942) और ‘हमारी बात’
(1943)।
नावयका के रूप में –
‘इशारा’ (1943),‘मैं क्या करूूँ ’,‘फू ल’,
‘सम्राट चंद्रगुप्त’, ‘तदबीर’, ‘यतीम’
(1945), ‘अनमोल घडी’
(1957),‘हसरत’, ‘जगबीती’, ‘उमर
खय्याम’, ‘उिवशी’ (1946),
‘आकाशदीप’, ‘डाक बंगला’, ‘ददव’, ‘दो
वदल’, ‘नाटक’, ‘परिाना’ (1947), ‘आज
की रात’, ‘गज़रे’, ‘काजल’, ‘रगंमहल’,
‘प्यार की जीत’, शवि, ‘विद्या’
(1948),‘अमर कहानी’, ‘बडी बहन’,
‘बालम’, ‘चार वदन’,‘वदल्लगी’,‘दुवनया’,
‘जीत’,‘लेख’, ‘नाच’, ‘शायर’ (1949),
‘अफसर’,‘दास्तान’,‘कमल के फू ल’,
‘वखलाडी’, ‘नीली’, ‘शान’, (1950), ‘दो
वसतारे’, ‘राजपूत’, ‘शोवखयाूँ, ‘सनम’
(1951),‘खूबसुरत’,‘गूूँज’,‘दीिाना’,‘मोती
महल’,‘लाल कुूँ िर’(1952), ‘माशूका’
(1953),‘वबल्ि’,‘मंगल’, ‘वमजाव गावलब’,
‘िाररस,‘शमा परिाना’ (1954),
‘इनाम’, ‘कं चन (1955), ‘वमस्टर लम्बू’
(1956),‘मावलक’,‘ट्रोली’,‘ड्राइिर’,‘वमस’
1958 (1958), ‘शमा’ (1961) और
‘रूस्तम सोहराब’ (1963)
और गायन का अवसर तमला, लेतकन लता इससे
वंतचत रही, जबतक वह सहगल के सार् गाने और
उनसे बहुत सारी बातें करने के तलए लालातयत र्ी।
लता की इस वंचना का कारण सहगल का
आकतस्मक अवसान रहा। सुरैया को सहगल का
सार् इसतलए हातसल हो सका, क्योंतक उसे बहुत
छोटी उम्र में गातयका-अतिनेत्री खुशीद के पद-तचन्हों
पर चलने के तलए तिल्मों में उतार तदया गया। सुरैया
1929 में 15 जून को जन्मी र्ी और लता 28 तसतंबर को। लोगों को इन दोनों
गातयकाओं के बीच टकराव और प्रततस्पधाथ की कपोल-कतल्पत बातें करने का
बडा शौक र्ा। लेतकन दर हकीकत ऐसी कोई बात नहीं र्ी। दोनों अपनी-अपनी
जगह ठोस आधार पर तटकी गातयकाएाँ र्ीं। िारतीय स्वतंत्रता का वषथ 1947 लता
मंगेशकर का उदय-काल है, पर सुरैया का पदापथण पार्श्रवथ गातयका और बाल
कलाकार के रूप में 1941 में ही हो गया र्ा। तहन्दी-तिल्मों में गातयका-अतिनेत्री
नस्ल की वह अंततम प्रतततनतध र्ी, तजस तरह पुरुषों में तकशोर कु मार र्े।
गायक अतिनेता सहगल के सार्
सुरैया ‘तदबीर’ (1945), ‘उमर
खय्याम’ (1946), और ‘परवाना’
(1947), में आई। सुरेन्र के सार्
मेहबूब की ‘अनमोल घडी’ (1946),
में सुरैया के अलावा गातयका नूरजहााँ
िी र्ी और रतन के बाद यह नौशाद के संगीत से सजी दूसरी तहट तिल्म र्ी,
तजसके गाने सदाबहार की सूची में आते हैं। मुके श के सार् सुरैया ने तिल्म
‘माशूक’ (1954) में आई और तलत महमूद के सार् िी उसने दो तिल्मे की –
‘वाररस’ (1954), और ‘मातलक’ (1958)।
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मातनत सोहराब मोदी की तिल्म ‘तमजाथ गातलब’ (1954),
में तलत ने सुरैया के सार् जो गाना गाया – “तदले नादा तुझे हुआ क्या है”, यह
सदैव श्रवणीय बना रहेगा। लेतकन इस गीत पर होंठ तहलाने का सौिाग्य
िारतिूषण को तमला र्ा, तजन्होंने तिल्म में गातलब की िूतमका की र्ी। तिल्म में
सुरैया ने गातलब की प्रेतमका के रूप में उनकी गज़ल िी एक खास अंदाज में गाई
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लोकहिय गीत - एकल
“तेरे नैनों ने चोरी वकया मेरा छोटा सा
वजया” – ‘प्यार की जीत’ / हुस्नलाल
भगतराम
“िो पास रहें या दूर रहें, नजरों में समाये
रहते है” – ‘बडी बहन’ / हुस्नलाल –
भगतराम
“ये कै सी अजब दास्ताूँ हो गई है, छु पाते-
छु पाते”.... – ‘रूस्तम-सोहराब’ /
सज्जाद
“नैन दीिाने इक नहीं माने करे मनमानी”
– ‘अफसर’/सवचन देि बमवन
“वबगडी बनाने िाले वबगडी बना दै नैया
हमारी”.....- ‘बडी बहन’ / हुस्नलालाल
भगतराम
“मुरलीिाले मुरली बजा, सुन-सुन मुरली
पे नाचे वजया” – ‘वदल्लगी’/ नौशाद/
शकील बदायूनी
“ये न थी हमारी वकस्मत के वबसाले यार
होता” – ‘वमजाव गावलब’/गुलाम मोहम्मद
/ गावलब
र्ीं। “ये न र्ी हमारी तकस्मत के तबसाले यार होता” और “नुक्ताचीं है गमे तदन”
गजलें सुरैया की आवाज में जैसी
चमत्काररक लगती हैं, वैसी तकसी अन्य
स्वर में नहीं। वह सुरैया की प्रततष्ठा का चरम
क्षण र्ा, जब गायन और अतिनय के तलए
पुरस्कृ त हुई सुरैया से पंतडत जवाहरलाल
नेहरू ने कहा र्ा – लडकी तुमने तो गातलब
की रूह को तजंदा कर तदया। सुरैया इससे
पहले सन् 1950 में िी सवथश्रेष्ठ अतिनेत्री का
स्वणथ पदक प्राप्त कर चुकी र्ी ।
सुरैया ने कपूर खानदान के तीन पुरुषों के सार् नातयका का रोल अदा तकया।
यह संयोग ही है तक नातयका के रूप में सुरैया की पहली तिल्म ‘इशारा’ (1943)
और अंततम तिल्म ‘रूस्तम-सोहराब’(1963) के नायक पापा पृथ्वीराज कपूर ही
र्े, जबतक तिल्म ‘दास्तान’ (1950), और ‘शमा-परवाना’ (1954), में उसके
नायक क्रमश राजकपूर और शम्मी कपूर र्े। वास्ततवक जीवन में सुरैया राजकपूर
की बाल तमत्र र्ी। सुरैया आतर्थक सिलता और लोकतप्रयता की सीतढयााँ लडकी
होने के कारण जल्दी-जल्दी चढ गई, परन्तु राजकपूर को अपनी राह खोजने में
र्ोडा वक्त लगा। राजकपूर ने आजादी के वषथ में तिल्में बनाने के तलए कमर कसी
और वह अपनी पहली तिल्म ‘आग’ (1946) की नातयका सुरैया को ही बनाना
चाहते र्े, तजसे बचपन में वे काली कलूटी कहकर तचढाया करते र्े। सुरैया की
नानी को जो सुरैया के व्यवसातयक कायों के बारे में सारे तनणथय करती र्ी, युवा
राजकपूर के प्रोजेक्ट के प्रतत संदेह र्ा और उसने बडा आया तिल्लम बनाने
वाला कहकर राजकपूर को दिा तदया र्ा। राजकपूर की ‘आग’ और ‘बरसात’
तिल्म की सिलता के बाद ‘दास्तान’ के सेट पर राजकपूर ने सुरैया से पूछा र्ा,
अब क्या राय है मेरे बारे में। ऐसे वक्त पर सुरैया अपना होठ दााँत से काटने के
तसवाय क्या कर सकती र्ी। अतिनेत्री नरतगस
का उदय अवश्यंिावी र्ा, इसतलए तनयतत ने
सुरैया को राजकपूर के प्रोजेक्ट से दूर रखा।
सुरैया, मधुबाला और मीनाकु मारी के तिल्मों में
आने की पृष्ठिूतम एक सी है। तीनों के पररवार
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सुरैया वचरकु मारी रहने के वलए अवभशप्त
थी, जबवक उसके कई आवशक बारात
लेकर उसके दरिाजे पर आ गए थे।
बाल कलाकारों के रूप में प्रिेश लेकर
सुरैया ने बाइस साल के वफल्मी जीिन में
सडसठ वफल्मों में नावयका-गावयका के
रोल वनभाए।
आजादी के आस पास के दौर में सुरैया
के पोस्टर साइज फोटो काूँच की फ्रें म में
देश के 5 स्टार होटलों में शान से लगाए
जाते थे। ग्रामोफोन पर उसके ररकॉडव
वदन भर बजते थे।
को बेटी की कमाई की दरकार र्ी। इतनी अतधक की बचपन में ही इन्हें सेट पर
धके ल तदया गया । 1941 में नानािाई िट्ट को अपनी तिल्म ताजमहल में
मुमताज के बचपन के रोल के तलए एक बातलका की जरूरत र्ी। तब बेबी सुरैया
अपने मामा जहूर के सार् स्टूतडयो जाया करती र्ी। नानािाई ने सुरैया को देखा
तो वह उन्हें अपनी तिल्म के तलए उपयुक्त जान पडी। मामा ने िी कमाई का एक
नया रास्ता खुलने की खुशी में हााँ कर दी। इससे पहले उनकी बहन मुमताज
(यानी सुरैया की माता) को िी मेहबूब ने अपनी तिल्म में हीरोइन बनाना चाहा
र्ा, मगर सुरैया के तपता ने इंकार कर तदया र्ा। मुमताज बेगम एक सलोने
व्यतक्तत्व की स्वातिमानी र्ी, तजसकी झलक बाद में लोगों ने युवा सुरैया के रूप
में देखी। यहीं नहीं, मुमताज गातयका-अतिमेत्री खुशीद की अच्छी दोस्त र्ी। इसी
दोस्ती की वजह से सुरैया ने खुशीद को अपना आदशथ मान तलया। लता मेगेशकर
की आदशथ नूरजहााँ र्ी।
सुरैया का जन्म लाहौर में हुआ र्ा, लेतकन डेढ साल की उम्र में वह अपने माता-
तपता के सार् मुम्बई में आ गई र्ी। उनके मामा जहूर स्टूतडयो में स्टंट खलनायक
र्े। सुरैया के तपता जमाल शेख आतकथ टेक्ट र्े, लेतकन अपने खराब स्वास्थ्य के
कारण उन्हें समय से पहले घर बैठना पडा। इसतलए सुरैया को पैसा कमाने के
तलए तिल्मों में काम करना पडा। उसके तलए तकस्मत के दरवाजे एक के बाद एक
खुलते चले गये। इधर ‘ताजमहल’ में काम तमला, उधर नौशाद ने अपनी कु छ
तिल्मों में पाश्वगायन कराने के तलए बुलाना शुरू तकया। सुरैया ने सबसे पहले ‘नई
दुतनया’ (1942) में नौशाद के तलए गाया और तिर ‘शारदा’, ‘कानून’ , ‘संजोग’,
‘जीवन’, ‘शमा’ आतद तिल्मों के तलए। इन तिल्मों की नातयका सोहराब मोदी की
पत्नी मेहताब र्ी। शुरू में तो वह नौशाद साहब से तचढ गई तक इतनी छोटी बच्ची
से मेरे तलए गाना गवा रहे हो, पर बाद में जब गाने
सिल रहे तो वे सुरैया को बहुत चाहने लगी। कहते हैं
तक मेहताब, सुरैया को अपने तलए गाने के तलए दुगने
पैसे देने को तैयार र्ी, बशते सुरैया गाने की ररकाडों
पर अपना नाम न दे, तातक लोगों का यह भ्रम बना पहे
तक इन गानों की गातयका मेहताब ही है।
मोहन तपक्चसथ की ताजमहल के बाद सुरैया ने
‘स्टेशन मास्टर’, ‘तमन्ना’ और बॉम्बे टॉकीजकी ‘हमारी बात’ तिल्म में िी बाल-
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देिआनंद ने सुरैया को सगाई की अूँगूठी
दी, तो नानी ने उसे समुद्र में फें क वदया।
वमजाव गावलब में सुरैया का रोल देखकर
प्रधानमंत्री जिाहरलाल नेहरू ने कहा था
- लडकी तुमने कमाल कर वदया।
वहन्दी वफल्मों में 40 से 50 का दशक
सुरैया के नाम कहा जा सकता है। उनकी
लोकवप्रयता का आलम यह था वक
उनकी एक झलक पाने के वलए उनके
प्रशंसक मुंबई में उनके घर के सामने घंटों
खडे रहते थे और यातायात जाम हो
जाता था।
कलाकार की िूतमकाएाँ तनिाई। ‘हमारी बात’
(1943) के नायक-नातयका जयराज-देतवका
रानी र्े। इसमें सुरैया ने मुमताज अली (मेहमूद
के तपता) के सार् दो नृत्य-गीतों में िाग तलया
र्ा। इस तिल्म के समय सुरैया पााँछ वषों के
तलए बॉम्बे टॉकीज से अनुबंतधत र्ी। पर के .
आतसि ने तिल्म ‘िू ल’ में काम करने के तलए
सुरैया को चालीस हजार रुपए देने की पेशकश की, तो बादशाह बेगम ने
देतवकारानी पर दबाव बनाकर सुरैया को अनुबंध से मुक्त कर तदया और सुरैया
स्वतंत्र कलाकार रूप में तवतिन्न तिल्मों के तलए काम करने लगी और गातयका-
नातयका के रूप में उसकी तिल्मों का मीटर तेजी से चलने लगा। नातयका के रूप
में उसकी पहली तिल्म ‘इशारा’ 1943 में आई र्ी। 1945 में उसकी पााँच तिल्में
प्रदतशथत हुई। 1946-47 में उसकी छः तिल्में आई, जबतक 1948 में सात और
1949 में दस। 1950 में िी उसकी आधा दजथन तिल्में ररलीज हुई। इसके बाद
साल-दर-साल उसके तिल्मों की संख्या घटती गई। इसका कारण र्ा देवआनंद
के सार् उसके प्रेम का चक्कर। काम का अतधक बोझ और व्यतक्तगत स्वतंत्रता
का अिाव। नानी और मामा के दबाव के बादजूद उसने स्वास्थ्य के आधार पर
तिल्मों के प्रस्ताव अस्वीकार करने शुरू कर तदए र्े।
देवआंनद के सार् सुरैया ने 1948 से
51 के बीच कु ल सात तिल्में की। तिल्में
आतर्थक दृति से बहुत सिल नहीं हुई,
लेतकन राज नरतगस के सार् समानांतर
देव आंनद-सुरैया के प्रेम की अनेक
कहातनयों ने जन्म तलया । सुरैया ‘तवद्या’
(1948) के बाद ‘जीत’, ‘शायर’,
‘अिसर’, ‘नीली’, ‘दो तसतारे’ और ‘सनम’ तिल्मों में देव आनंद के सार् आई।
देव ने सुरैया को सगाई की अाँगूठी िी दी र्ी, तजसे उसकी नानी ने गुरूदत्त के
सामने देखते-देखते समुर में िें क तदया र्ा। एस. डी. वमथन, दुगाथ खोटे, चेतन
आनंद कोई िी बादशाह बेगम को सुरैया-देव की शादी के तलए राजी न कर सके ।
दूसरी तरि उनके सार् काम करने पर िी पाबंदी लग गई। देव आनंद ने 1954
में कल्पना काततथक को अपनी जीवन संतगनी बना कर इस प्रकरण का पटाक्षेप
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कहा जाता है वक वहन्दी वफल्मों में
नावयका के करने के वलए कु छ नहीं
रहता, इसवलए स्टारडम भी उनसे दूर ही
रहती है। यह बात बीते दौर की कलाकार
सुरैया के मामले में गलत सावबत हो
जाती है, क्योंवक 1948 से 1951 तक
के िल तीन िर्व के दौरान सुरैया ही ऐसी
मवहला कलाकार थीं, वजन्हें बॉलीिुड में
सिाववधक पाररश्रवमक वदया जाता था।
कर तदया।
तिल्म इंडस्री में ही सुरैया के कु छ और आतशक र्े, रहमान, सुरेश और एम.
सातदक। 1948-49 में रहमान-सुरैया की दो तिल्में
(‘प्यार की जीत’ और ‘बडी बहन’) तहट रही र्ी। रहमान
की तरह सुरेश ने िी सुरैया के सार् चार तिल्में की र्ी
और वह िी मानते र्े तक सुरैया से शादी करने के
वास्ततवक दावेदार वे ही हैं। एम. सातदक ने िी सुरैया
को चार तिल्मों में तनदेतशत तकया र्ा। तदलीप कु मार ने िी सुरैया को के आतसि
की ‘जानवर’ तिल्म के माध्यम से अपने िं दे में उलझाने की कौतशश की। जब
सुरैया को उसकी नीयत पर संदेह हुआ तो उसने तिल्म ही छोड दी। के . आतसि
इस तिल्म को तिर किी पूरी नहीं कर पाये। इसतलए हम पाते हैं तक सुरैया की
67 तिल्में की सूची में एक िी तिल्म में तदलीप कु मार नहीं है। (उनके िाई नातसर
खान के सार् अवश्य सुरैया ने तीन तिल्में की)। सुरैया वास्ततवक जीवन में
अपनी नानी के तवरूद्ध नहीं जा सकी और उसके माता-तपता िी सीधे स्विाव के
र्े, इसतलए सुरैया के तलए तसण्ड्रेला (कु माररका) बने रहने के अलावा कोई चारा
नहीं र्ा। उसके 1963 में तिल्मों से संन्यास तलया र्ा और चररत्र अतिनेत्री या
पाश्रगातयका के रूप में इस मायावी दुतनया में लौटना कबूल नहीं तकया। उसकी
इस तरह की तजंदगी को
देखकर लोग इसे ग्रेटा
गाबो कहने लगे र्े।
हॉलीवुड की अतिनेत्री
ग्रेटा गाबो (1905-90)
िी युवावस्र्ा में तिल्मों
से संन्यास लेने के बाद
शेष जीवन रहस्यमय
एकांत में गुजारा। लेतकन जैसा तक सुरैया का एक गाना है “ये कै सी अजब दास्तां
हो गई, छुपाते-छुपाते बयां हो गई है”, सुरैया ने अपने जीवन के अंततम तदनों में
रहस्य को अनावृत करना शुरू कर तदया र्ा। कु छ वषों से वह सिा-समारोहों में
िाग लेने लगी र्ी और किी-किार पत्रकारों से िी बातचीत कर लेती र्ी। उसके
जीवन का सत्य यह है तक उसकी नानी मामा जहूर के कहने से चलती र्ी और
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जहूर का एकमात्र लक्ष्य सुरैया को सोने का अंडा देनेवाली मुगी के रूप में कायम
रखना र्। सुरैया न तो मनमातिक खा पी सकती र्ी, न सो सकती र्ी। तिल्म
‘तमजाथ गातलब’ के प्रदथशन के बाद उसे लो-ब्लडप्रेशर हो गया र्ा और वह काम
करते-करते तिल्मों के सेट पर बेहोश हो जाया करती र्ी। वह तिल्मों में तसिथ 22
वषथ सतक्रय रही। 34 वषथ की उम्र में वह स्वेच्छा से मायवी दुतनया से हट गई र्ी।
सन् 2004 में सुरैया का तनधन हुआ।
िुरैया
बॉलीवुड की िबिे िुुंदर और पिुंदीदा अहिनेत्री
बॉलीवुड के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष में इंटरनेशनल
इंतडयन तिल्म एके डमी और "सेवन ईस्ट" िारा पहले छः
महीने से कर रहे एक सवेक्षण में बॉलीवुड सुंदरी की श्रेणी
में सबसे ज्यादा वोट तदवंगत गातयका और अतिनेत्री
"सुरैया" को तमली है ।
यह सवेक्षण सेवन ईस्ट ने अपने ग्राहकों से स्टोर में लगाई
गई 100 अतिनेतत्रयों की तस्वीरों के संग्रह में से सबसे
पसंदीदा अतिनेत्री को चुनने को कहा। उन्हें इनमें से शीषथ सात का चुनाव करने को कहा
गया इसमे 6,000 ग्राहकों ने तहस्सा तलया।
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िुरैया और ग्रेगरी पैक की मुलाकात
लोग सुबह-शाम सुरैया की एक झलक देखने की खाततर उसके
घर के बाहर िीड लगाए खडे रहते र्े। किी-किी तो िीड
इतनी बढ जाती र्ी तक पुतलस को बुलाना पडता र्ा और
तजस सुरैया के चाहने वालों का यह आलम रहा हो, वही खुद
हॉलीवुड के ग्रेगरी पैक की दीवानी हो जाएं, तो यह तकस्सा
तकतना तदलचस्प होगा।
वही ग्रेगरी पैक एक तदन अचानक सुरैया के राइंग रूम में बैठे
उनके आने का इंतजार कर रहे र्े। खबर सुनी, तो पहले सुरैया को यकीन ही नहीं हुआ।
जब तस्दीक हो गई तक उनके सपनों के हीरो राइंग रूम में उनकी आमद में पलकें तबछाए
बैठे हैं, तो खुशी के मारे पूरा घर घूमने लगा। ऐसा महसूस हुआ सुरैया को।
रात साढे बारह बजे उनका दरवाजा खटखटाया गया। सुरैया की मम्मी ने दरवाजा खोला,
तो सामने अतिनेता अल नातसर खडे र्े। उनके सार् दो लोग और िी र्े। अल नातसर ने
मम्मी को बताया, "ग्रेगरी पैक को लेकर आया हूं। सुरैया को िौरन बुलाओ।" सुनकर मम्मी
िी बदहवास हो गई ं, लेतकन यह समय ज्यादा आश्चयथ में डूबकर गंवाने का नहीं र्ा।
िागकर मम्मी सुरैया के कमरे में पहुंचीं, जो उस वक्त गहरी नींद के आगोश में समा चुकी
र्ीं।
मम्मी ने झकझोरते हुए कहा "जल्दी उठो बेटी। देखो ग्रेगरी तुमसे तमलने घर आए हैं। तुझे
यकीन नहीं हो रहा है मेरी बात का। अल नातसर लेकर आए हैं। जल्दी से तैयार होकर आ
जाओ।" सुरैया के तो मानो हार्-पांव ही िू ल गए। तकसी बात का उन्हें होश ही न रहा।
जल्दी-जल्दी उन्होंने कपडे बदले और धडकते हुए तदल के सार् राइंग रूम में दातखल
हुई, तो अपनी आंखों पर पलिर के तलए तवश्वास ही नहीं कर पाई।
तवश्वास तो उनको यह सोचकर अपनी तकस्मत पर िी नहीं हुआ तक तजस ग्रेगरी पैक को
देखने के तलए वह न जाने कब से तरस रही र्ीं, वह खुद चलकर उनके घर आए हुए हैं।
दरअसल हुआ यह र्ा तक ग्रेगरी पैक के तलए कोई पाटी सुरैया के घर के तबल्कु ल पास
होटल एम्बेसेडर में हो रही र्ी। उस पाटी में अतिनेता अल नातसर िी आमंतत्रत र्े।
वह बहुत आकषथक नाक-नक्शे के र्े। शराब पीने के शौकीन अल नातसर पूरी महतिल में
सबसे बेखबर एक कोने में खडे अके ले शराब पी रहे र्े तक ग्रेगरी की नजर उन पर पडी,
तो वह उनकी तरि बस देखते ही रह गए। उन्होंने तकसी से िु सिु सा कर पूछा, "यह
आकषथक मेहमान कौन है?" तो पता चला, यह मूक तिल्मों के हीरो अल नातसर हैं। यह
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सुनकर ग्रेगरी खुद को रोक नहीं पाए। वह अल नातसर के पास पहुंचे और अपना पररचय
तदया।
पररचय पाते ही अल नातसर को सुरैया का ध्यान
आया तक तकस तरह वह उनके नाम की दीवानी
हैं। उन्होंने ग्रेगरी से तबना तझझक कहा, "सुरैया के
तुम मनपसंद आतटथस्ट हो अगर चल सको, तो
उसे तुमसे तमलकर बडी खुशी होगी।" ग्रेगरी ने
िौरन अल नातसर की बात मान ली और पाटी
छोडकर वहीं से सुरैया के घर के तलए चल पडे।