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बी.ए.एच.डी.सी.सी – 06
खंड – 4
BAHDCC – 06
Block – 4
ह ंदी कथा साह त्य (उपन्यास)
आपका बंटी
इस पुस्तक की सभी इकाई की पाठ्य – सामाग्री मूल रूप से ओडिशा राज्य मुक्त डिश्वडिद्यालय
(ओसू) द्वारा प्रस्तुत की गई है।
The study material pertaining of this book has been developed by
Odisha State Open University (OSOU), Sambalpur Odisha
कला स्नातक (सम्मान) उपाधि कार्यक्रम (ह िंदी)
बी.ए.एच.डी.सी.सी – 6
हििंदी कथा साहित्य (उपन्यास)
खिंड – 4
आपका बिंटी
इकाई – 1 मन्नू भिंडारी व्यधित्व और कृधतत्व
इकाई – 2 आपका बिंटी : चररत्र धचत्रण
इकाई – 3 आपका बिंटी उपन्र्ास का मूल उद्देश्र् और धवधभन्न समस्र्ाएँ
इकाई – 4 आपका बिंटी के सिंवाद, कलापक्ष और भाषा – शैली
इकाई – 5 आपका बिंटी की कथावस्तु व प्रासिंधिकता
कला स्नातक (सम्मान) उपाधि कार्यक्रम (ह िंदी)
हििंदी कथा साहित्य (उपन्यास )
मूलपाठ के लेखक
इकाई – 1 मन्नू भिंडारी व्यधित्व और कृधतत्व
श्री नीरज कुमार हसिं
स ार्क धशक्षक
एम.ए.एम.सी टाउनधशप
ह िंदी जूधनर्र बेधसक स्कूल
दुिायपुर , पधिम बिंिाल
इकाई – 2 आपका बिंटी : चररत्र धचत्रण
इकाई – 3 आपका बिंटी उपन्र्ास का मूल उद्देश्र् और धवधभन्न
समस्र्ाएिं
इकाई – 4 आपका बिंटी के सिंवाद, कलापक्ष और भाषा – शैली
इकाई – 5 आपका बिंटी की कथावस्तु व प्रासिंधिकता
सिंदभीकरण तथा सिंसोिन
अधभषेक कुमार हसिं
धशक्षण सला कार, ह िंदी धवभाि
ओधिशा राज्र् मुि धवश्वधवद्यालर्, सम्बलपुर
सिंकार् सदस्र्
श्री अधभषेक कुमार हसिं
कुलसधचव, ओधिशा राज्र् मुि धवश्वधवद्यालर्, सम्बलपुर द्वारा प्रकाधशत
मुद्रण –
2
1
इकाई – 1
मन्नू भंडारी व्यक्तित्व और कृ क्तित्व
प्रस्िावना
1.0 उद्देश्य
1.1 प्रस्िावना
1.2 जन्म और क्तिक्षा
1.3 कृ क्तित्व
1.4 प्रमुख रचनाएँ
1.5 कहानीकार मन्नू भंडारी
1.6 उपन्यासों का पररचय
1.7 पुरस्कार व सम्मान
1.8 रचना प्रक्तिया
1.9 भक्तवष्य योजना
1.10 सारांि
1.11 बोध प्रश्न
1.0 उद्देश्य
मन्नू भंडारी भारत की एक महत्त्वपूर्ण लेखिका हैं जो 20वीं शती अंखतम चार दशकों और 21वीं शती के पूवाणर्द्ण में
लैंखिक असमानता, विीय असमानता और आखथणक असमानता पर अपने सशक्त लेिन कायो के खलए जानी जाती
हैं। सबसे ज्यादा वह अपने दो उपन्यासों के खलए प्रखसर्द् रहीं हैं;
पहला ‘आपका बंटी’ और दूसरा ‘महाभोज’।
2
नयी कहानी आंदोलन और समकालीन खहंदी साखहत्य के लेिक खनमणल वमाण, राजेंद्र यादव, भीषम साहनी, कमलेश्वर
इत्याखद ने उन्हें एक प्रखसर्द् और श्रेष्ठ लेखिका बताया ।
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप –
 मन्नू भंडारी के बारे में जान पाएँिे।
 मन्नू भंडारी के रचना के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंिे।
 खहंदी साखहत्य में उनका स्थान बता पाएँिे।
 उनके रचना प्रखिया और प्राप्त सम्मान के बारे में जान पाएँिे।
1.1 प्रस्िावना
खहंदी साखहत्य के साठोत्तरी दौर के महत्वपूर्ण लेखिकाओंमें मन्नू भंडारी की अपनी खवखशष्ट खस्थखत रही है। मन्नू भंडारी
का लेिन मूलतः उस दौर में हमारे समक्ष उपखस्थत होता है खजस दौर में स्त्री लेिन की पृष्ठभूखम अत्यंत निण्य थी। वे
स्वातंत्र्योत्तर भारत में खजस समय एक अजीब असंतोष, अखवश्वास, अस्वीकार, बौखर्द्क और वैचाररक संघषण, मानखसक
कशमकश और परंपराित मूल्यों के खविंडन का दौर चल रहा था, उस समय की खस्थखत को अपने साखहत्य में अत्यंत
सफलतापूवणक प्रस्तुत करती करती हुई एक महत्वपूर्ण लेखिका के रूप में साखहखत्यक जित में आई।
मन्नू जी ने न के वल स्त्री लेिन को समृर्द् खकया बखल्क साखहखत्यक सूझ-बूझ के साथ तत्कालीन खस्थखत की पड़ताल भी
की है। वे मूलतः स्त्री चेतना को अत्यंत सहजता के साथ ना के वल अपने साखहत्य में उके रती है अखपतु बीसवीं सदी के
उत्तरार्द्ण में स्त्री खवमशण की एक प्रमुि कड़ी के रूप में हमारे समक्ष आती हैं।
1.2 जन्म एवं क्तिक्षा
मन्नू जी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्यप्रदेश के भानपुरा नामक िांव में हुआ था। दो बड़े भाइयों और दो बड़ी
बहनों का स्नेह उन्हें प्राप्त रहा है। इनके खपता का नाम सुि संपत राय भंडारी था। वह आयण समाजी खवचारधारा के
समाज सुधारक थे इनका पररवार एक मध्यविीय मारवाड़ी पररवार रहा है। इनके सभी भाई और बहन उच्च खशखक्षत
और नौकरी पेशे में रत रहे हैं। इनके खपता समाज सुधारक थे इसखलए एक रूढीग्रस्त पररवार में जन्म लेने के बावजूद
कुछ सीमा तक स्वतं्रतता सभी बच्चों को प्राप्त हो िई थी इसखलए उनकी खशक्षा पर कोई प्रखतबंध नहीं था।
3
मन्नू भंडारी का पूरा नाम महेंद्र कुमारी है। घर में सबसे छोटी होने के कारर् सब उन्हें प्यार से मन्नू पुकारते हैं। मन्नू की
माता का नाम अनूप कुं वारी था। एक परंपराित स्त्री होने के साथ-साथ एक ममतामयी माता भी थी जो खसफण लुटाने को
ही अपनी पूर्णता मानती थी। मन्नू जी की आरंखभक खशक्षा अजमेर के साखव्रती स्कूल में हुई। वहीं से इन्होंने इंटर की
परीक्षा भी उत्तीर्ण की। इसके बाद वे अपने बड़े भाई बहनों के पास कोलकाता रहने के खलए चली िई। देिा जाए तो
इंटर करने के बाद उनकी खशक्षा सहज और स्वाभाखवक रूप से नहीं हुई। उन्होंने बी. ए. और उसके बाद एम. ए. एक
प्राइवेट खशक्षाथी के रूप में की। उन्होंने बनारस खवश्वखवद्यालय से खहंदी में 1952 ई. में एम. ए. खकया था।
एम. ए. करने के बाद उन्होंने कलकत्ता के ’ बालीिंज खशक्षा सदन’ में नौ वषण अध्यापन कायण खकया। सन 1964 में
खदल्ली के खमरांडा हाउस महाखवद्यालय में प्राध्याखपका के रूप में कायण आरंभ खकया। इसके बाद मन्नू जी खविम
खवश्वखवद्यालय उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की अध्यक्षा रही।
मन्नू जी खजस समय बालीिंज खशक्षा सदन में कायणरत थी और लेिन में कदम रिी ही थी खक उसी खसलखसले में उनका
पररचय स्विीय श्री राजेंद्र यादव से हुआ जो खक तब तक प्रखतखष्ठत लेिक बन चुके थे। यहीं पररचय आिे चलकर प्रर्य
और अंततः उन दोनों के बीच 1959 ई. में पररर्य सू्रत में बदल िया। यह अंतरजातीय खववाह था इसखलए मन्नू जी
के पररवार वाले इससे बहुत िुश नहीं हुए। परंतु मन्नू की मां ने अपना स्नेह सदैव बनाए रिा। उनकी एक पु्रती हुई
खजसका नाम रचना रिा िया । सन 1964 ई. में दोनों कलकत्ता छोड़कर खदल्ली आ िए। यहां आकर राजेंद्र जी ने
‘अक्षर प्रकाशन’ आरंभ खकया।
मन्नू जी खजस व्यखक्तत्व को लेकर साखहत्य जित में आई उनके व्यखक्तत्व पर उनके खपता की महत्वपूर्ण छाप रही है।
उनके खपता िोधी एवं आदशणवादी थे। समाजसेवी होने के कारर् खवखभन्न विों के लोिों से चचाणएं उनके दैखनक जीवन
का अंि थी। मन्नू जी आरंभ से ही चचाणओंको बड़े मनोयोि से सुनती थी। मन्नू जी स्वयं बताती है खक बहस के दौरान
खपताजी अपना खवरोध सहन नहीं कर पाते थे। आखथणक कखठनाइयों की खवषम पररखस्थखतयों में भी खकसी से मदद मांिना
या समझौता करना उनके खलए कभी संभव नहीं हुआ।
मन्नू जी के खपता खजतने अहंवादी और िोधी थे, माता उतनी ही सहनशील और समखपणत नारी थी।वह अत्यंत शांत
और खनखलणप्त जीवन जीती थी। माता - खपता के परस्पर खवरोधी स्वभाव और खमले-जुले संस्कारों से मन्नू जी का
व्यखक्तत्व खनखमणत हुआ। नवी - दसवीं कक्षा से ही उनमें नेतृत्व क्षमता खवकखसत हो िई थी। मन्नू जी स्वाधीनता
आंदोलन के अंखतम दशकों में जोशो िरोश से खहस्सा लेती थी। उन्हीं खदनों के खदए िए भाषर्ों की वजह से वे एक
कुशल वक्ता के रूप में प्रखतखष्ठत हो िई। मन्नू जी कहीं भी अन्याय होता देि उसका पुरजोर खवरोध करती थी। बचपन
से ही अन्याय के खवरुर्द् तुरंत प्रखतखिया व्यक्त करती थी इसखलए उनका मानना है खक वयः संखध के दौरान जो
प्रखतखिया उबाल के रूप में होती थी बाद में अखभव्यखक्त के रूप में होने लिी।
4
1.3 कृ क्तित्व
मन्नू भंडारी के संपूर्ण कथा साखहत्य पर दृखष्टपात करने पर हम देिते हैं खक उनका साखहत्य खवचारधारात्मक सत्य की
चचाण करना नहीं रहा है अखपतु इसके खलए अच्छी खस्थखत बनाने हेतु की िई बातचीत भी है। वह खवमशण को ना के वल
प्रस्तुत करती है बखल्क मानव जीवन के खवखभन्न धरातलो से खवखभन्न समस्याएं चुनकर उन्हें पूर्ण सजिता और
प्रभावशाली ढंि से साखहत्य में खचख्रतत करके उसके खवखवध पहलूओंपर हमारा ध्यान आकखषणत करती है।
स्त्री खवमशण जो खक एक उत्तर आधुखनक खवचारधारा है, खजसे लेकर चलने वाले जे. एस. खमल, वजीखनया वुल्फ, खसमोन-
द- बोउवा आखद का महत्वपूर्ण योिदान रहा है। खकं तु भारतीय साखहत्य में स्त्री के खलए पुरुष लेिन अथाणत सहानुभूखत
पूर्ण लेिन तो स्वतं्रतता के पूवण भी हमारे समक्ष खमलते हैं; परंतु मखहला द्वारा मखहला की खस्थखत को उद्घाखटत करने का
प्रयास सातवें और आठवें दशक में ही ठीक ठाक रूप से दृखष्टित होता है। स्त्री लेिन की आवश्यकता पर स्वयं सीमेन
द बोउवा का कहना है खक “वस्तुतः खस्त्रयां ही नारी जित को पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा आंतररकता से जानती है क्योंखक
उनकी जड़े इसमें खनखहत हैं ।“ ( खहंदी उपन्यास :साथणक की पहचान, मधुरेश, स्वराज प्रकाशन, खदल्ली, पेज -163)
आठवें दशक के पूवाणधण की स्त्री लेखिकाओंमें मन्नू जी की अपनी महनीय उपलखधध इस अथण में थी खक उनके लेिन
की जमीन खस्त्रयों के जीवन की खवशेषकर आधुखनक खस्त्रयों की ्रतासदी की िाथा है जो मूलतः खकसी न खकसी रूप में
लेखिका द्वारा कखल्पत नहीं अखपतु उनका देिा परिा और भोिा हुआ यथाथण है । वे इस तरह के लेिन की सू्रतधार
नहीं तो सू्रतधारकारों में जरूर जानी जती हैं। स्त्री लेिन के इसी स्वरूप की अिली कड़ी हमें उषा खप्रयंवदा, दीखप्त
िंडेलवाल, मृदुला ििण, मखर्का मोखहनी, मंजुल भित, कृष्र्ा अखननहो्रती, सूयणबाला, कृष्र्ा सोबती, प्रभा िेतान,
नाखसरा शमाण, नखमता खसंह, सुधा अरोड़ा, मै्रतेयी पुष्पा तथा ममता काखलया आखद के साखहत्य में प्राप्त होती है।
मन्नू जी ने अपने साखहत्य को अत्यंत स्वाभाखवकता के साथ-साथ समकालीनता के आईने में उतार कर एक संतुखलत
खवचारधारा के साथ साखहत्य में अवतीर्ण हुई। साखहत्य जित में मन्नू जी का पदापणर् उनकी पहली कहानी ‘मैं हार िई’
के प्रकाशन के साथ हुआ। यह रचना ‘कहानी’ पख्रतका में प्रकाखशत हुई थी खजसका संपादन उन खदनों प्रखसर्द् कथाकार
भैरव प्रसाद िुप्त कर रहे थे। सच पूछा जाए तो मन्नू जी को साखहत्य जित में प्रखतस्थाखपत करने का श्रेय िुप्त जी को ही
जाता है। उनकी पहली कहानी छपकर और उनकी प्रशंसा का प्रत खलिकर उन्होंने ही उनको प्रोत्साखहत खकया।
1.4 प्रमुख रचनाएँ
कहानी संग्रह प्रथम संस्मरण
मैं हार िई 1957
तीन खनिाहों की तस्वीर 1959
5
यही सच है 1966
एक प्लेट सैलाब 1968
ख्रतशंकु 1978
आंिों देिा झूठ( बाल कहाखनयाँ) 1976
उपन्यास
एक इंच मुस्कान (राजेंद्र यादव के साथ) 1961
आपका बंटी 1971
कलवा 1971
महाभोज 1976
स्वामी 1982
नाटक
खबना दीवारों का घर 1966
महाभोज 1983
1.5 कहानीकार मन्नू भंडारी
सन साठ के दशक के बाद जब मध्यविीय विण के समक्ष अजनबीयत , अकेलापन, सं्रतास, ररश्तो की िरमाहट का
ित्म होना, मशीनीकृत समाज में भावनाओंका अभाव आखद जब उभर कर आते हैं तो समाज की सबसे छोटी इकाई
पररवार पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और पररवार के समन्वयक स्त्री-पुरुष संबंधों में भी नवीन रूपाकार आकार ग्रहर्
करते हैं। उनके बीच संबंधों में कई तरह की दूररयां उत्पन्न होती है। स्त्री चेतना के नाम पर पुरुषों का खवरोध भी होता है।
दंिल झाल्टे के शधदों में “बीसवीं शताधदी का उत्तराधण एक अजीब असंतोष, अखवश्वास, बौखर्द्क और वैचाररक संघषण,
6
मानखसक कशमकश और परंपराित जीवन पर्द्खत के िोिलेपन का जन्मदाता है। (साठोत्तर खहंदी साखहत्य का
पररप्रेक्ष्य : दंिल झाल्टे, पृष्ठ - 59)
इस प्रकार के दुरुह पररवेश में मन्नू भंडारी की कहाखनयाँ एक समन्वयवादी दृखष्ट का वर्णन करते हुए दोनों की ही
भूखमका को महत्वपूर्ण मानती है। उन्होंने इन दोनों के संबंध को नए स्वरूप के साथ साखहत्य में उद्घाखटत खकया। इस
संदभण को स्पष्ट करते हुए के . एम. मालती कहती है “मन्नू भंडारी की कहाखनयाँ नारी पुरुष के द्वन्द्वात्मक संबंधों की
कहाखनयाँ है। उन्होंने नारी- पुरुष के जीवन का खच्रतर् नये दृखष्टकोर्ो से खकया है। इनकी कहाखनयों में घुटन तथा तनाव
की मनः खस्थखतयों का खच्रतर् है। प्रेम - खववाह और तलाक इनकी कहाखनयों का आधार है।“(साठोत्तर खहंदी कहानी, डॉ
के . एम. मालती, पृष्ठ 34-35)
मन्नू जी की कहाखनयाँ समकालीन पररप्रेक्ष्य स्त्री-पुरुष संबंधों की पड़ताल करती है और इस बात की पुखष्ट करती है खक
खस्त्रयों को ना के वल लेिन अखपतु धमण, दशणन, राजनीखत आखद में भािीदारी करने के कारर् पुरुष वचणस्ववादी समाज
खकस तरह उसे उपेखक्षत बना देता है। िौरतलब है खक इनके कहाखनयों अथवा उपन्यासों में ऐसा कहीं भी नहीं खमलता
खक वह पुरुष खवरोध का साखहत्य है।
‘मैं हार गई’ कहानी संग्रह में 12 कहाखनयाँ हैं। ‘ईसा के घर इंसान’, ‘िीत का चुंबन’, ‘एक कमजोर लड़की की
कहानी’ और ‘सयानी बुआ’ नारी जीवन की खवडंबनाओंसे जुड़ी कहानी है। ‘दीवार’, ‘बच्चे और बरसात’ कहानी भी
नारी-जित की मानखसकता को उजािर करती है। ‘अखभनेता’ और ‘मैं हार िई’ में मूल्यों के ह्रास के संके त स्पष्ट है।
‘खकल और कसक’ यौन- अतृखप्त की ओर संके त करती है। ‘दो कलाकार’ कहानी में सच्चा कलाकार वही है खजसमें
मानवीय संवेदनशीलता हो।
‘िीन क्तनगाहों की एक िस्वीर’ नामक कहानी संग्रह में 8 कहाखनयाँ है। ‘तीन खनिाहों की एक तस्वीर’, ‘अकेली’
,‘घुटन’ और ‘मजबूरी’ नारी जीवन की खववशताओं को लेकर खलिी िई कहाखनयाँ है। ‘अकेली’ और ‘मजबूरी’
कहानी का मध्य लिभि एक सा है। ‘अनचाही िहररया’ में प्रेम की खमथ्या भ्ांखत को दशाणया िया है। ‘िोटे खसक्के ’ में
कायणस्थल पर दुघणटनाग्रस्त मजदूरों के अपंि हो जाने पर उनकी कीमत चंद खसक्के आँकने पर व्यंनय है। ‘चश्मे’ कहानी
में अतीत की यादों से आंदोखलत व्यखथत हृदय का खच्रतर् है। इस संग्रह में कुछ कहाखनयाँ नयापन खलए हुए हैं।
‘यही सच है’ इस कहानी संग्रह में भी 8 कहाखनयाँ हैं। ‘क्षय’ नारीप्रधान कहानी है । िृहस्थी के बीच कुं खठत हो जाने
वाली ऐसी नारी हृदय का खच्रतर् है , जो एक सीमा पर आकर अपने बीमार खपता के मर जाने की इच्छा को भी उखचत
मानने लिती है । ‘तीसरा आदमी’ एक कमजोर अहम वाले पुरुष की कहानी है , जो उन पुंसत्व - हीनता की ग्रंखथ से
पीखड़त होने के कारर् अपने जीवन को नरक बना लेता है। ‘ सजा’ अदालती खनर्णयों में होने वाली देरी के कारर्
अनभुिती सजा की कहानी है । ‘नकली हीरे’ एक ऐसी नारी की कहानी है खजसे सुि-सुखवधा के सारे साधन प्राप्त होते
हुए भी पखत का वह लिाव प्राप्त नहीं है जो साधारर् जीवन जीने वाली उसकी छोटी बहन को प्राप्त है। ‘ नशा’ उस
प्रौढ़ा की कहानी है जो अपनी हड्खडयाँ िला िला कर शराबी पखत की मांि पूरी करती है और पखत प्रेम से खवमुि नहीं
हो पाती। ‘इनकम टैक्स और नींद’ मध्यविीय पररवार के झूठे आत्म प्रदशणन की कहानी है । ‘रानी का चबूतरा’ एक
7
खनम्न विीय नारी की कहानी को प्रत्यक्षत: ककण शा के खदिाते हुए अपने पखत के प्रखत बड़ा संवेदनशील हृदय रिती है ।
‘यही सच है’ खकशोर एवं युवा अवस्था के प्रेमद्वंद्व की कहानी है। इस कहानी पर ही बासु चटजी ने ‘रजनीिंधा’ खफल्म
भी बनाई थी। इस संग्रह की कहाखनयों में मन्नू जी की कहाखनयों का कलात्मकता स्वरुप खनख्ररा हुआ लिता है।
एक प्लेट सैलाब : नई नौकरी, बंद दरवाजों के साथ, एक प्लेट सैलाब, छत बनाने वाले, एक बार और संख्या के
पार, बाँहों का घेरा, कमरे ,कमरा और कमरे तथा चाई नाम की 9 कहाखनयों का संग्रह है। कथ्य की दृखष्ट से अिर इस
संग्रह की सभी कहाखनयाँ आधुखनक मानी जा सकती हैं। ‘एक प्लेट सैलाब’ ,’कमरे कमरा और कमरे, तथा ‘बंद
दरवाजों का साथ’ कहाखनयाँ कुछ दुबोध सी लिती हैं। इस कहानी संग्रह की कहाखनयों में नारी हृदय की अनुभूखतयों के
सूक्ष्म खवश्लेषर् की ओर अखधक ध्यान खदया िया है। इन कहखनयों में मन्नू जी के लेिन में चरम उत्कषण खदिाई देता है।
ख्रतशंकु ; इस संग्रह में भी 9 कहाखनयाँ हैं। पहली कहानी ‘आते –जाते यायावर’ में अपने से ही छले िए एक ऐसे चरर्रत
को उभारा िया है, जो 7 वषों से भटकता हुआ हर जिह नए प्रेम संबंध जोड़ता है और हर बार अपने पूवण प्रेम संबंधों
को इतनी आसानी से प्रकट कर देता है जैसे कहीं कुछ हुआ ही ना हो। ‘दरार भरने की दरार’ एक स्त्री द्वारा दूसरी स्त्री के
जीवन में पड़ी दरार को भरने का असफल प्रयास इसमें वखर्णत खकया िया है। ‘स्त्री सुबोखधनी’ में प्रेम के नाम पर
खववाखहत पुरुष द्वारा छली िई स्त्री की कहानी है। ‘ख्रतशंकु ’ आधुखनक और परंपराित संस्कारों को ना छोड़ पाने वाले
पररवार में पलती बढ़ती असहाय लड़की की कहानी है।‘ रेत की दीवार मध्यविीय पररवारों के सं्रतास और अलिाव
राजनीखतक हथकं डों को लेकर खलिी िई कहाखनयाँ है। ‘एिाने आकाश नेई’ कहानी पर बासु चटजी ‘जीना यहां’
खफल्म बना चुके हैं ।खशल्प और शैली की दृखष्ट से भी ईस संग्रह की कहखनयां अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मन्नू जी की कहाखनयाँ सभी विों को समान रूप से आकखषणत करती हैं। उनकी कहाखनयाँ भारत के हर प्रांत में
खवश्वखवद्यालय स्तर पर पाठ्यिम में न के वल पढ़ाई जाती है ,बखल्क उनकी कहाखनयों का पंजाबी, िुजराती, मराठी
,कन्नड़, तेलुिू, मलयालम भाषा में अनुवाद भी हो चुका है। ‘आपका बंटी’ उपन्यास मराठी ,िुजराती, उखड़या, पंजाबी
में अनुखदत हो चुका है। देश में नहीं खवदेशों में भी मन्नू भंडारी की रचनाएँ पहुंच िई है और वहाँ भी उन्हें लोकखप्रयता
बहुत प्राप्त हुई है ।
मन्नू जी की रचनाएँ सन 1957 के आसपास पुस्तकाकार रूप में छपकर प्रकाखशत होने लिी थी ।लिभि तीन दशकों
की अवखध में उनके 6 कहानी संग्रह, 5 उपन्यास, दो नाटक प्रकाश में आए। कहाखनयों की कुल संख्या 48 है ।एक
संग्रह में के वल बाल कहाखनयाँ है ।उपन्यासों में एक तो सहयोिी प्रकाशन है ।खववाह की उमंि में खलिी िई पखत पत्नी
की साझी रचना; एक बाल उपन्यास है; एक उपन्यास ‘स्वामी’ शरतचंद की कहानी का रूपांतरर् है ; ‘आपका बंटी’
और ‘महाभोज’ उपन्यासों ने मन्नू जी को प्रथम कोर्ी के कथाकारों स्थान खदला खदया। ‘खबना दीवारों का घर’ आपका
प्रखसर्द् नाटक है, ‘महाभोज’ उपन्यास का आपने स्वयं ही नाट्य रूपांतरर् खकया है। इस नाटक का बी . बी . सी.
लंदन में भी प्रसारर् हुआ है।
8
उपन्यासों का पररचय
एक इंच मुस्कान: यह उपन्यास एक सहयोिी रचना है । यह मन्नू भंडारी का पहला उपन्यास है । पहले यह उपन्यास
धारावाखहक रूप में ‘ज्ञानोदय’ में प्रकाखशत हुआ था । बाद में श्रीमती मन्नू जी और राजेंद्र यादव ने सखम्मखलत रूप से
इस की पुनरणचना की । उपन्यास के पुरुष- पा्रत अमर को राजेंद्र जी ने और स्त्री पा्रतों रंजना और अमला को मन्नू जी ने
संवारा । इस उपन्यास में पत्नी रंजना और खम्रत अमला के बीच बंटे हुए बुखर्द्जीवी अमर का चरर्रत अंखकत है । उसके
दोहरे संबंधों की पररर्खत एकाकी जीवन यापन की खववशता में होती है । यह उपन्यास उस सनातन सवाल को खफर से
एक बार पाठकों के सामने रिता है खक कलाकारों पर खकसी प्रकार के नैखतक दाखयत्व को खनभाने के खलए बंधन लिाए
जा सकते हैं अथवा नहीं।
जीवन के दो फूल हैं - भावना और कतणव्य । इन दोनों में से एक भी कच्चा साखबत हुआ तो वह टूट जाता है और उसके
जीवन का प्रवाह उसी खदशा में बह खनकलता है। ‘ अमर’ कहानीकार बनाम कलाकार है। रंजना उसकी पत्नी है । परंतु
अमर अपनी प्रेरर्ा अमला को मानता है । रंजना दांपत्य सुि के खलए हर तरह का त्याि करती है। परंतु उसने अपने
पखत का सुि शायद ही कभी खमल पाया होिा। अमर अमला की संपखत्त सुंदरता के वश में हो जाता है।
‘आपका बंटी’ उपन्यास की कथावस्तु मन्नू जी की ही खलिी हुई कहानी ‘बंद दराजों का साथ’ में बीज रूप में
खवद्यमान है। यह एक सामाखजक उपन्यास है और बाल मनोखवज्ञान और समस्याओंके साथ इस उपन्यास में टूटते हुए
दांपत्य और पुनखवणवाह की समस्या भी मुिररत हुई है । कथानक का कें द्र बंटी है खजसके माध्यम से बच्चों के प्रखत माता
खपता के उत्तरदाखयत्व को उजािर करने के साथ नारी की अखधकार सजिता की कहानी भी प्रभावशाली ढंि से कही िई
है । शकुन उच्च खशखक्षत और कामकाजी नारी है । वह कॉलेज की खप्रंखसपल है । उसका पखत अजय दूसरे शहर में रहता
है । शकुनन का अपना एक स्वतं्रत व्यखक्तत्व है। वह प्रिखतशील खवचारों की है ।अजय की दृखष्ट पारंपररक है । अत: दोनों
में टकराव होता है खजसका प्रभाव उनके एकमा्रत पु्रत बंटी पर पड़ता है । बंटी दोनों से समझौता नहीं कर पाता। अजय
शकुन को तलाक देने के पहले ही दूसरी स्त्री से खववाह कर लेता है खजसके कारर् उनका संबंध खवच्छेद अखनवायण हो
जाता है। इस सम्बंध के टुटने के बाद बंटी अपनी मां के साथ रहता है । परंतु जब शकुन भी दूसरा खववाह करती है तब
बंटी का भखवष्य िड़बड़ा जाता है । उसे अपने खपता के घर रहने का अवसर खदया जाता है । परंतु वहाँ अपनी सौतेली मां
के साथ रहने को तैयार नहीं कर पाता । पररर्ामत: उसे हॉस्टल में रहने के खलए भेज खदया जाता है । उसे हॉस्टल की
ओर ले जाने वाले रेलवे या्रता के साथ ही उपन्यास समाप्त हो जाता है । उपन्यास का कथ्य पाठकों पर प्रभाव छोड़ने में
सफल रहता है।
महाभोज मन्नू जी का अत्यंत सफल उपन्यास है ।इस उपन्यास का बीज उनकी ‘अलिाव’ कहानी में खवद्यमान है।
आिे चलकर मन्नू जी ने महाभोज का नाट्य रूपांतरर् भी खकया है। महाभोज श्रीमती मन्नू भंडारी का नवीनतम
उपन्यास है। उपन्यास का पररपेक्ष्य पूरी तरह राजनीखतक है। उपन्यास में आपातकालीन खस्थखत और उसके बाद जनता
पाटी के शासन का यथाथण वर्णन है । उपन्यास में भ्ष्ट राजनीखत और नैखतक मूल्यों के पतन को वास्तखवकता के रूप में
प्रस्तुत खकया िया है।
9
महाभोज उपन्यास में कथावस्तु के नाम पर बहुत अखधक पेखचदखियां नहीं हैं। स्वाधीनता के बाद भारत का एक देहात ,
उस देहात तक पहुंची हुई दलित राजनीखत, चुनाव के खलए अपनाए जाने वाले हथकं डे , अपराधी तत्वों का राजनीखत
में प्रवेश पुखलस की स्वाथण दृखष्ट, बुखर्द्जीखवयों की तत्परता और प्रतकारों की अवसरवाखदता - सारे तत्व इस उपन्यास
की कथावस्तु में मुिर होकर उभरे हैं ।
दा- साहब मुख्यमं्रती हैं और सुकुल बाबू खवरोधी दल के नेता , जोरावर राजनीखतक सुरक्षा में पलने वाला िुंडा और
हत्यारा है। सक्सेना और खसन्हा पुखलस अखधकारी हैं । दत्ता बाबू संपादक है। महेश शमाण बुखर्द्जीवी हैं जो इस बात की
िोज करने िांव पहुंचा है खक क्लास-स्रिल और कास्ट- स्रिल क्या होता है?
सरोहा िांव में चुनाव के पहले खबसेसर नामक युवक की हत्या हो जाती है । हत्या के बाद हत्या को आत्महत्या
घोखषत होने तक इतना कुछ िुजर जाता है खक खजसे पढ़कर पाठक दंि रह जाता है। सफे द झूठ को सत्य खसर्द् करने
वाली काली कलूटी राजनीखत के खघनौने करतब इस उपन्यास में अंखकत हुए हैं।
‘स्वामी’: यह उपन्यास शरदचंद की बांनला कहानी ‘स्वामी’ का एक तरह से उपन्यास के रूप में खहंदी रूपांतरर् है।
इसे मन्नू जी की मौखलक रचना नहीं कहा जा सकता है ।
‘कलवा’ यह एक बाल उपन्यास है।
सारांश यह है खक मन्नू जी के कुल 5 उपन्यासों में से दो उपन्यास ‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ सवाणखधक चखचणत हैं।
बचे तीनों में से एक सहयोिी लेिन है । दूसरा बाल उपन्यास व तीसरा रूपांतररत है ।
1.7 पुरस्कार और सम्मान
मन्नू जी की कई रचनाएँ पुरस्कार पा चुकी हैं और साखहत्यकार के रूप में उन्हें सम्माखनत भी खकया िया है।
 महाभोज उपन्यास पर भारतीय भाषा पररषद, कोलकाता ने सन 1982 में ₹11000 का "रामकुमार भुवाल"
पुरस्कार प्रदान खकया था।
 उत्तर प्रदेश खहंदी संस्थान द्वारा महाभोज उपन्यास पर ₹6000 का पुरस्कार खदया िया था ।
 कें द्रीय खहंदी खनदेशालय की ओर से 1981 में "अखहंदी भाषी क्षे्रत" की लेखिका के रूप में मन्नू जी को
सम्माखनत खकया िया था।
 खशमला के आल इखन्डया आखटणस्ट एसोखसएशन द्वारा 'अखिल भारतीय बलराज साहनी' स्मृखत साखहत्य
प्रखतयोखिता में मन्नू जी को उनके रचनात्मक लेिन के खलए 'खपपुल्स'अवाडण देकर सम्मान खकया िया था।
 काला-कुं ज सम्मान (पुरस्कार), नई खदल्ली, 1982
 भारतीय संस्कृत संसद कथा समरोह (भारतीय संस्कृत कथा), कोलकाता, 1983
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 खबहार राज्य भाषा पररषद (खबहार राज्य भाषा पररषद), 1991
 राजस्थान संिीत नाटक अकादमी, 2001- 02
 महाराष्र राज्य खहंदी साखहत्य अकादमी (महाराष्र राज्य खहंदी साखहत्य अकादमी), 2004
 खहंदी अकादमी, खदलीली शालका सन्मैन, 2006- 07
 मध्यप्रदेश खहंदी साखहत्य सम्मेलन (मध्यप्रदेश खहंदी साखहत्य सम्मेलन), भवभूखत अलंकरर्, 2006- 07
 के .के . खबड़ला फाउंडेशन ने उन्हें अपने काम के खलए 18 वें व्यास सम्मान के साथ प्रस्तुत खकया, 'एक कहानी
यह भी'।
1.8 रचना प्रक्तिया
मन्नू जी अपनी रचना प्रखिया के संबंध में िुद खलिती हैं खक मेरे खलए खलिना दो तरीके का होता है एक तो वह
जो वे कलम लेकर कािज पर खलिती हैं और जो काफी लंबे अंतराल के बाद उनके द्वारा संभव हो पाता है । दूसरा
वह जो खबना कािज कलम के दैन्यखदन कामों के साथ-साथ बैकग्राउंड म्यूखजक की तरह मन की परतों पर खनरंतर ही
चलती रहती है। बाहर वालों के खलए महत्वपूर्ण वे चीजें हैं जो कािज पर खलिी िई हैं और उन तक पहुंच िए लेखकन
उनके खलए तो उनका मानखसक लेिन ही महत्वपूर्ण है। इस के दौरान रॉ -मटेररयल का भंडार जमा होता है खजससे
कुछ चीजें चुनकर उन्हें काट छांट कर और तराश कर तैयार माल की तरह वे बाहर ला पाते हैं ।
मन्नू जी लौखकक पा्रत घटना से प्रभाखवत होती हैं और वह प्रभाव उनके खचंतक मन मखस्तष्क को मथता रहता है । उस
मंथन में जब अनुभूखत का नवनीत तैयार होता है तब वह कहानी के रूप में प्रकट होता है । यही कारर् है खक उनकी
कहाखनयाँ और पा्रत सजीव होकर जनमानस से बातें करने लिते हैं । लेिन उनका व्यवसाय नहीं है अखपतु अनुभूखत
और खचंतन का खवस्फोट है।
राजेंद्र यादव ने खलिा है खक मन्नू के खदमाि में प्लाट मौखलक और सशक्त आते हैं । खलिने का उनका अपना तरीका है
िाने की मेज पर बैठ कर , रसोई में उखचत आदेश देती हुई, घर की सारी व्यवस्था देिती हुई कहानी खलिती रहती है
। वैसे शाम को नहा धोकर एकदम धोबी के धुले के सफेद कपड़े पहन कर बहुत अखधक चूने वाला पान िाते हुए
खलिना उन्हें सबसे अखधक खप्रय है ।
1.9 भक्तवष्य योजना
महाभोज उपन्यास ने पूरे भारत में तहलका मचा खदया। बी.बी.सी लंदन ने भी इसके प्रसारर् के खलए लिभि 1 घंटे का
समय खदया िया । देश-खवदेश में जब महाभोज प्रखसर्द् हुआ तभी प्रश्न उठा खक अब इसके बाद मन्नू जी क्या करेंिी?
मन्नू जी एक और उपन्यास खलिना चाहती हैं खपछले 50 वषों से देश में खवकखसत होने वाली राजनीखतक, सामाखजक,
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आखथणक पररखस्थखतयों के बीच रचनाकारों और बुखर्द्जीखवयों के भटकाव से वे बडी खचंखतत हैं। वे इस संबंध में एक
उपन्यास भी खलिना चाहती है।
1.10 सारांि
खिररराज खकशोर के शधदों में कहें तो मन्नू जी उन लेखिकाओंमें है खजन्हें खजंदिी को समझने और आमने सामने होकर
उसे देिने का व्यसन है। इसीखलए उनका संसार हमारे सम्मुि चलती खफरती रील की तरह घूम जाता है। उसे समझने
के खलए हमें अखधक देर नहीं लिती। मन्नू जी के व्यखक्तत्व और कृखतत्व से स्पष्ट हो जाता है खक उन्होंने अपने रचना
संसार के साथ साक्षात्कार खकया है और उस साक्षात्कार के फल स्वरुप उन्होंने अपना लेखिका रूप खनखमणत खकया है।
वे आधुखनक खहंदी सखहत्य की अत्यंत सशक्त समथण और चखचणत कथा लेखिका है ।
1.11 बोध प्रश्न
1. मन्नू भंडारी के कृखतत्व के बारे में खलखिए ।
2. मन्नू जी के द्वारा प्राप्त पुरस्कारों के बारे में बताइए ।
3. साखहत्य में उनका स्थान खलखिए ।
4. खहंदी साखहत्य में मन्नू भंडारी की रचनाओंका महत्त्व क्या है ?
5. मन्नू भंडारी के प्रमुि रचनाओंके बारे में बताइए ।
1
इकाई – 2
चरित्र – चचत्रण
प्रस्तावना
2.0 उद्देश्य
2.1 प्रस्तावना
2.2 बंटी का चरित्र चचत्रण
2.3 शकु न का चरित्र चचत्रण
2.4 अजय का चरित्र चचत्रण
2.5 डॉ जोशी का चरित्र चचत्रण
2.7 बोध प्रश्न
2.0 उद्देश्य
मनू भंडारी का चर्चित उपन्यास 'आपका बंटी' नौ साल के एक बच्चे बंटी की घायल संवेदनाओंकी कहानी है या र्िर
समाज में अपनी जगह बनाने की कोर्िि करती िकुन के जीवन का सत्य, कहना बेहद मुर्ककल है। 16 भागों में बंटा
यह उपन्यास िकुन, अलग हो चुके उसके पर्त अजय और उनके नौ साल के बेटे बंटी की कहानी है। इस इकाई को
पढने के बाद आप –
 चररत्र र्चत्रण का अर्ि और महत्त्व समझ सकेंगे।
 बंटी के चररत्र को समझ सकेंगे।
 िकुन के चररत्र को समझ सकें गे
2
2.1 प्रस्तावना
र्कसी व्यर्ि के संर्िप्त सार्हर्त्यक पररचय को उसका चररत्र-र्चत्रण कहते हैं। र्कसी नाटक, कर्ा आर्द में आये पात्रों
के सोच, कायिपद्धर्त, आर्द के बारे में सूचना देना उस पात्र का चररत्र र्चत्रण (Characterisation) कहलाता है। पात्रों
का वणिन करने के र्लये उनके कायों, विव्य, एवं र्वचारों आर्द का सहारा र्लया जाता है।
2.2 बंटी का चरित्र चचत्रण
मन्नू भंडारी आधुर्नक युग की उच्च कोर्ट की उपन्यास लेर्िका है । ‘आपका बंटी’ इनकी महत्वपूणि रचना है । इस
उपन्यास का नायक बंटी है, क्योंर्क संपूणि कर्ा योजना में उसकी उपेिा का र्चत्र है तर्ा उसके जनजीवन का उसकी
मााँ तर्ा उसके र्पता की चाररर्त्रक असंगर्त के कारण बंटी का अजनबी और प्रसाद चररत्र र्नर्मित होता है। उपन्यास
की संपूणि घटना बंटी की ओर संके त करती है।
उपेचित चरित्र -
बंटी अपने माता-र्पता द्वारा उपेर्ित होता है । उसकी मााँ िकुन कॉलेज की र्प्रंर्सपल है और र्पता अजय मैनेजर है ।
पर्त-पत्नी के अहमबोध और व्यस्तता के कारण बंटी उपेर्ित रह जाता है । पररवार की धुरी त्याग, प्रेम , सर्हष्णुता ,
समपिण आर्द से मजबूत होती है। परंतु इसका अभाव इस पररवार में है ।
सोच का सीचित दायिा -
बंटी का अपने पाररवाररक पररर्स्र्र्त के कारण उसके बुर्द्ध का र्वकास व्यापकतम रूप में न होकर संकुर्चत हो जाता
है । िकुन और अजय अपने अहमबोध के कारण एक-दूसरे के र्वरोधी बन जाते हैं। अलग- अलग होकर अपने-अपने
जीवनसार्ी चुन लेते हैं। उनके जीवन का अपना नया वृत्त बन जाता है। परंतु बीच में बंटी उपेर्ित रह जाता है और
अपने जीवन की र्दिा िो बैठता है ।
सिझौतावादी दृचिकोण-
बालक मन अपार प्रेम चाहता है वह अपने पररवेि से भी वैसे ही आिा करता है। बंटी का पररवेि उसे डसता है । टीटू
और उसकी मााँ के प्रश्नों से बंटी र्तलर्मला उठता है। बालक बंटी मम्मी-पापा में से र्कसी एक को भी छोड़ना नहीं
चाहता है ।एक बार वह सोचता है र्क मााँ-बाप की कुट्टी कैसे ित्म हो जाए । वह सोचता है र्क मम्मी को िुि करके
पापा से र्मला देगा और पापा उसे बहुत मानते हैं। इसर्लए वह पापा और मम्मी में मेल नहीं करा पाता है।
3
अत्यचधक कोिलता की भावना -
मम्मी के अत्यर्धक प्रेम के कारण बंटी में कोमलता आ जाती है । र्जसे लड़कपन कहा जा सकता है । बंटी की मम्मी
उसे दूसरे बच्चों से काम र्मलने देती है। र्जससे कारण बंटी के व्यर्ित्व का र्वकास नहीं हो पाता है। वह िमीले
स्वभाव का बन जाता है। र्पता से दूर रहने के कारण मम्मी िूिी और अन्य औरतों के बीच रहने के कारण औरतों की
तरह र्वकर्सत होता है।
अचवकचसत व्यचित्व -
बंटी औरतों के बीच रहने के कारण पूणि र्वकर्सत नहीं हो पाता । उसके स्वभाव , व्यवहार, बातचीत आर्द का उस पर
अर्धक असर पड़ता है। वह बाहरी लड़कों के सार् कम र्मलता है और वह कै रम जैसा घरेलू िेल िेलता है । बंटी के
र्पताजी कहते हैं र्क बंटी र्िके टर ,हाकी ,तैराकी आर्द लड़कों वाले िेलों में र्हस्सा लेगा। अजय अपनी पत्नी को
मनो चेतावनी के स्वर में कहता है र्क “मुझे डर है िकुन.... तुम्हारा यह अर्तररि स्नेह बंटी को बौना न बना दे।”
िााँ के प्रचत प्रेि-
बंटी मातृ भि भी है । उसे अपनी मााँ से बहुत अर्धक प्यार है। उसके प्रेम में बाल सुलभ स्वच्छ प्रेम है। वह मााँ के
मुाँह पर काले र्तल को सहला कर मााँ को िुि करना चाहता है। वह मााँ से उन राजकुमाररयों की कहानी भी सुन चुका
है जो अनेक कष्ट झेल कर भी अपनी मााँ से र्मलते हैं । इन कहार्नयों का प्रभाव भी उस पर पड़ता है । बंटी मााँ के प्रर्त
प्रेम का एकार्धकार चाहता है। इसर्लए वह नहीं चाहता र्क उसकी मााँ डॉक्टर जोिी से बातचीत में लगी रहे।
डिपोक व्यचित्व-
बंटी बहुत डरपोक व्यर्ित्व का लड़का बन गया है । इसका मुख्य कारण है र्क बराबर मम्मी के घेरे में रहना और
लड़कों से कम र्मलना । वह पररयों और डाइनो की कर्ा सुनता है । वह उनसे प्रभार्वत होकर डरपोक और अंतमुििी
प्रवृर्त्त का बालक बन जाता है । वह 8-9 वर्ि का हो जाने पर भी अकेले सोने में डरता है । अकेले में लपलपाती जीभ
वाले रािस , तीन आाँिो वाली चुड़ैल , हड्र्डयों के नाचते ढांचे देिने लगता है।
असािान्य औि सािस्या बालक -
बंटी असामान्य और समस्या बालक बन जाता है । वह बात –बात में तनक जाता है और असामान्य व्यवहार करता
है। लेर्िका ने उसके र्चंतन के असामान्य रूप को र्चर्त्रत र्कया है। माता-र्पता के बुरे व्यवहार से बंटी असामान्य
बालक बन जाता है। उसे मााँ-बाप का सरल ,उन्मुि और साह्चयिजनक प्रेम नहीं र्मलता है। पररणाम यह होता है र्क
वह िकुन, अजय और जोिी तीनों के र्लए समस्या उत्पन्न करता है। वह कहीं भी र्टक नहीं पाता।
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एकाचधकाि की भावना -
बंटी के चररत्र की यह भी एक र्विेर्ता है र्क वह अपनी मम्मी पर एकार्धकार रिना चाहता है। ऐसी र्स्र्र्त का स्पष्ट
कारण यह है र्क उसकी मााँ ही उसके जीवन में ही सविस्व है। वह मम्मी से आगे बढ़कर सोच ही नहीं पाता है। उसके
सारे र्ियाकलाप अंतत: मम्मी के प्रसन्न रिने में ही सीर्मत रहते हैं।
इच्छाओंका अचधक चवकास -
प्रस्तुत उपन्यास में बंटी के दुि का मूल कारण यही है र्क वह मम्मी से एकर्नष्ठ प्रेम की इच्छा रिता है। उसकी यह
इच्छा इतनी अर्धक र्वकर्सत हो गई है र्क उसके दुि का कारण बन गई है। इच्छाओंका अर्धक र्वकास जहां मनुष्य
को दुष्कर कायों में सिलता र्दला सकता है वहीं र्कसी - र्कसी इच्छा का अर्त र्वकास बालक में तरह-तरह की
मानर्सक र्वकृर्तयां उत्पन्न कर देता है । बंटी में भी इसी प्रकार की र्वकृर्तयां र्वकर्सत हो चुकी है।
2.3 शकु न का चरित्र चचत्रण
आपका बंटी उपन्यास , मन्नू भंडारी कृत एक प्रर्सद्ध और चररत प्रधान उपन्यास है । इसकी नार्यका िकुन है । वह
पूणित: नार्यका की भूर्मका अदा भी नहीं कर पाती है। जब तक उसका संबंध अजय के सार् रहता है, तब तक वह
नार्यका रहती है। लेर्कन बाद में एक प्रमुि पात्र की तरह रह जाती है और रचना नायक प्रधान बन जाता है । इस
उपन्यास में र्जतने भी नारी-पात्र हैं, उनमें िकुन सबसे र्वर्िष्ट है। उसकी र्वर्िष्टता गुण, रूप, बुर्द्ध सभी दृर्ष्टयों से
लर्ित होती है। वह न के वल पढ़ी-र्लिी युवती, बर्कक कॉलेज की एक प्रर्सपल है। वह बुर्द्धजीवी है और समाज में
उसकी प्रर्तष्ठा और धाक है। उपन्यास में एक भी ऐसी नारी नहीं, जो र्कसी भी दृर्ष्ट से िकु न का मुकाबला कर सके ।
िकुन के चररत्र का प्रभाव रचना के नायक बंटी पर अंत तक पड़ता रहता है। इससे उसकी र्वर्िष्टता र्नम्नर्लर्ित
है-
उच्च चशिा प्राप्त नािी -
िकुन उच्च र्ििा प्राप्त नारी है। वह पहले र्वभागाध्यि र्ी बाद में र्प्रंर्सपल बन जाती है। उच्च र्ििा प्राप्त होने के
कारण उसमें अहम तत्वों का समावेि हो जाता है। लेर्िका के िब्दों में उसकी मम्मी जब कॉलेज जाने के र्लए तैयार
होने लगती है । तब बंटी को लगता है र्क अब वह उसकी मम्मी नहीं रह गई कोइ और दबंग औरत बन गई है। बंटी को
ऐसा लगता है र्क वह घर वाली मम्मी नहीं है । उसका चेहरा हरदम सख्त रहता है। उसकी बोली में डांट रहती है।
5
अत्यचधक स्वाचभिानी -
िकुन एक अत्यंत स्वार्भमानी नारी है । और उसका स्वार्भमान उस सीमा तक पहुंच चुका है र्क वह पर्त को िोकर
भी टूटना नहीं सीिी है। इस र्स्र्र्त को स्पष्ट करते हुए लेर्िका ने कहा है “जाने कैसी लक्ष्मणरेिा है अपने अहं या
स्वार्भमान की या अपने कं गलेपन और अपमान की , र्क इसके पार वह र्कसी को नहीं आने देना चाहती है। क्या
बताएं र्क आगे क्या हो सकता है या र्क पहले क्या हुआ र्ा।”
पद का अहंकाि -
िकुन उच्च र्ििा प्राप्त नारी होने के कारण स्वर्नभिर और उच्च पद पर आसीन है । इसके कारण उसमें स्वार्भमान आ
जाता है । उसका स्वार्भमान उसे अजय से दूर ले गया। िलत: पर्त पत्नी के मध्य इतनी अर्धक दूरी हो गई एक बार
अलग होने के बाद दोनों एक दूसरे से र्मल ही नहीं सके । वह कभी भी अजय के सामने झुकी नहीं बर्कक उसका प्रयत्न
हमेिा अजय को नीचा र्दिाने की रही। इसके मूल में कहीं ना कहीं पद का अहंकार र्नर्हत है ।
सिायोजन का अभाव-
िकुन के दांपत्य जीवन के र्बिराव का मूल कारण यही है र्क वह अजय के समि अपनी महानता प्रर्तर्ष्ठत करने में
ही लगी रही। उसने झुकना नहीं सीिा बर्कक उसकी बराबर कोर्िि यही रही र्क वह अजय को नीचा र्दिाए । इस
भावना को लेकर चलने वाली नारी सुिी दांपत्य जीवन के स्वप्न कै से देि सकती है ।लेर्िका के अनुसार “समझौते
का प्रयत्न भी दोनों में अंडरस्टैंर्डंग पैदा करने की इच्छा से नहीं होता र्ा। वरन दूसरे को परार्जत करके अपने अनुकूल
बना लेने की आकांिा से होता र्ा”।
दुचवधापूणण िन-
िकुन र्नरंतर दुर्वधा पूणि जीवन र्बताती है। उसके जीवन में अनेक बार ऐसे अवसर आए हैं जबर्क वह समय पर
र्नणिय नहीं ले सकी ।इस कारण उसे पश्चाताप भी हुआ ।अजय से संबंध र्वच्छेद करने में उसे अनेक वर्ि लग गये।
इसके बाद डॉ जोिी से संपकि करके उसे भरा पूरा सुि र्मला ।परंतु इसके सार् ही यह कचोट भी सताती रही र्क यह
र्नणिय उसने पहले क्यों नहीं र्लया ? उनकी मन की र्स्र्र्त के बारे में लेर्िका कहती हैं- “मन न इस बात को मानता है
न उस बात को । सही गलत की बात को वह नहीं जानती और जानना भी नहीं चाहती। इस समय इतना ही कािी है
र्क जीवन में र्जतना भरा पूरा इन र्दनों महसूस कर रही है पहले कभी नहीं र्कया”।
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असफल िातृत्व -
िकुन का मतृत्व तो र्नर्श्चत ही असिल रहा है ।इसका सबसे बड़ा प्रमाण है बंटी। र्जसे लेकर उसे तरह-तरह की
सुिद और दुिद अनुभूर्तयां हुई हैं ।िकुन दांपत्य जीवन और संतान के सार् संबंध का र्नवािह नहीं कर पाती । उसके
और जोिी के अनावृत रूप को र्दिाकर लेर्िका ने इसे स्पष्ट कर र्दया है। बंटी के सार् रहकर अजय को नीचा
र्दिाना चाहती हैं और इस कारण वह बंटी पर इतना छाई रहती है र्क बंटी के स्वतंत्र व्यर्ित्व का र्वकास नहीं हो
पाता ।
अकु शल पत्नी -
एक पत्नी के रूप में िकुन वैसी ही असिल रहती है जैसे मााँ के रूप में। यर्द िकुन र्ोड़ा भी झुक कर चलने की
सोचती तो इस बात की बहुत संभावना र्ी र्क उसका अजय उससे अलग नहीं होता ।वस्तुत: अहं ने उसके जीवन में
र्विेर्कर उसके दांपत्य जीवन में र्वर् घोल र्दया।
भारतीय नारी के आदिि उनके व्यर्ित्व से तर्नक भी मेल नहीं िाते। भारतीय नारी को समपिण का पयािय समझा
जाता है र्कं तु िकुन समपिण करना नहीं जानती ।वह र्नरंतर इसी कोर्िि में रहती है र्क वह र्कसी न र्कसी तरह अपने
पर्त को नीचा र्दिाए। उसके अहं को आहत करें। उसे पीड़ा पहुंचाए। कदार्चत इसी कारण िकुन अजय के र्लए एक
मनचाही पत्नी न बन सकी।
2.4 अजय का चरित्र चचत्रण
अजय का पररचय पहली बार वकील चाचा के जररए होता है। जब वकील चाचा िकुन को यह सूर्चत करते हैं र्क
अजय जब र्वर्धवत रूप से िकुन से अलग होना चाहता है। देिा जए तो अजय और िकुन बहुत पहले ही अलग
होकर रहने लगे र्े। र्कं तु जब अजय इस अलगाव की र्स्र्र्त पर कानून की मुहर लगवा लेना चाहता र्ा। जैसे र्क
दोनों अर्ाित अजय स्वयं और िकुन भी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जी सके । अजय के चररत्र की र्नम्नर्लर्ित
र्विेर्ताएं हमारे समि उपर्स्र्त होता है।
स्वाचभिान की भावना -
अजय भी िकुन की तरह ही बहुत स्वार्भमानी है क्योंर्क दोनों पिों में एक पि भी सहनिील होता तो इनका दांपत्य
जीवन सुिद रहता । यद्यर्प उपन्यास में अजय स्वार्भमानी होने के स्पष्ट संके त नहीं र्मलते । तो भी इतना तो र्नर्विवाद
7
है र्क ताली एक हार् से नहीं बजती। यर्द अजय र्कसी प्रकार अपने मन को समझा लेता तो न तो यह युगल इस तरह
टूट गया होता और न ही बंटी अपनी मम्मी के र्लए बाधा र्सद्ध होता।
व्यवहाि कु शल व्यचि -
अजय र्नकच्य ही व्यवहार कु िल व्यर्ि है ।जब उसने बहुत स्पष्ट रूप से यह सामझ र्लया र्क िकुन के सार् उसका
र्नवािह नहीं हो सकता तो उसने अपना अलग मागि करने में कोई संकोच नहीं र्कया । दूसरी ओर से िकुन अपेिाकृत
अर्धक भावुक है । िकुन ने पूरे 7 वर्ि अर्नकच्य की र्स्र्र्त में र्बता र्दए। र्कं तु अजय ने एक योजनाबद्ध तरीके से काम
र्कया । उसने यर्ासंभव उनके अलगाव को कानूनी रूप देने के र्लए वकील चाचा के माध्यम से कायिवाही की
।वकील चाचा अच्छी तरह जानते हैं र्क अजय एक व्यवहार कुिल व्यर्ि है । वह जीवन को जीना जानता है
।घसीटता नहीं है।अजय ने मीरा से िादी कर ली और उसका यह नया अध्याय र्नश्चय ही सुिद रहा। समय पर र्नणिय
लेने की उसमें अद्भुत िमता है जबर्क इस दृर्ष्ट िकुन बहुत पीछे रह जाती है।
िचनात्िकता से परिपूणण दृचि-
अजय की जीवन दृर्ष्ट रचनात्मकता से पररपूणि है। वह अपने जीवन की बात सोचता है। एक बार वह र्नणिय ले
लेता है र्क िकुन के सार् उसकी नहीं पटेगी तब वह मुड़कर र्पछे देिने की बजाय अपने भावी जीवन की योजना
बनाने लग जाता है । उसके मन में कहीं भी कोई भ्रम नहीं है । उसकी दृर्ष्ट सीधी और सपाट है ।
एक उदाि चपता -
र्पता के रूप में अजय िकुन की तुलना में कहीं अर्धक उदार है। िकुन से वह कहीं अर्धक सिल भी रहा है ।बंटी
के प्रर्त मम्मी की दृर्ष्ट के वल मतृ प्रेम की ही नहीं रही। उसके सार् कई अन्य लक्ष्य जुड़े रहे हैं ।िकुन बंटी की मााँ
जरुर है परंतु वह उसे मानर्सक रुप से स्वस्र् बालक नहीं बना पाई। इसका एकमात्र कारण है र्क वह र्नराधार भ्रम के
जाल में जकड़ी रही। जब एक बार अजय बंटी को लेने आया तो िकुन के सोचने की र्दिा इस प्रकार र्ी । “िकुन
ने िादी कर ली और इससे अजय के अहं को कहीं चोट पहुंची है। बंटी को ले जाकर वह के वल उस आहत अहं से
सहलाना चाहता है। वह िकु न को टाचिर करना चाहता है”।
इसके उकटा अजय में ऐसी बात नहीं है। वह बंटी को पूरे मन से चाहता है और सच्चे अर्ों में उसका र्हत र्चंतक हैं।
वह चाहता है र्क उसका पुत्र अन्य बालकों के सार् रहे तार्क उसका एक स्वतंत्र व्यर्ित्व र्वकर्सत हो सके ।
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संतुचलत व्यवहाि -
अजय भावनाओंमें रहकर नहीं अर्पतु यर्ार्ि के जीवन को लेकर जीता है । उसकी मूल दृर्ष्ट यर्ार्ि मुिी है। उसके
व्यर्ित्व एक प्रमुि र्विेर्ता यह है र्क वह अपना मानर्सक संतुलन र्कसी भी र्स्र्र्त में र्बगड़ने नहीं देता है।
िकुन से अलगव के बाद वह अनेक बार इधर आया भी और बंटी से र्मला है भी है। एक आद बार तो िकुन से
उसका आमना-सामना भी हुआ। र्कन्तु ऐसे अवसरों पर भी वह न तो भवुकत का र्िकार हुआ और न उसके
व्यवहार में र्कसी प्रकार की कटुता र्दिती है।
जीवन के चनणणय िे दूदणचशणता-
दूरदर्ििता अजय के स्वभाव की अन्यतम र्विेर्ता है। जीवन की यर्ार्िता में र्वश्वास करता है और इसर्लए उसका
दृर्ष्टकोण अर्धक व्यावहाररक होता है। वह भी अपने जीवन में अनेक महत्वपूणि र्नणिय लेता है। र्कं तु उसे कभी भी
अपने र्लए हुए र्नणिय पर पश्चाताप नहीं होता ।अजय की दूरदर्ििता के कारण ही उसका समूचा जीवन िगुन की
तुलना में अर्धक सुि पूणि और सिल कहा जा सकता है। अजय के व्यर्ित्व की र्विेर्ता है र्क वह बरसों बाद भी
र्स्र्र्त का अनुमान लगा सकता है और तदनुसार र्नणिय भी ले सकता है।
2.5 डॉ जोशी का चरित्र चचत्रण
डाक्टर जोिी िहर के बड़े र्चर्कत्सक हैं। बंटी की मम्मी ने जब से अजय से र्वर्धवत तलाक ले र्लया र्ा । तभी से
उसके मन के र्कसी कोने में डॉक्टर जोिी का र्चत्र भरने लगा र्ा । उसे मालूम र्ा र्क डॉक्टर की पत्नी का देहांत हो
चुका है। अत: वह कभी कभी डॉक्टर जोिी को लेकर सुिद ककपनाओ में िो जाया करती र्ी। पाठक को डॉक्टर
जोिी का पररचय उस समय होता है, जब एक रात बंटी की मम्मी को छोड़ने के र्लए डॉक्टर जोिी अपनी कार में आते
हैं। तभी डॉक्टर साहब के सार् बंटी का पहला पररचय होता है। उनके चररत्र की र्विेर्ताएं इस प्रकार हैं –
योग्य चचचकत्सक -
जोिी जी की गणना िहर के योग्य र्चर्कत्सकों में की जाती है। िकुन के सार् जोिी जी का पहला पररचय एक
आत्मीय डाक्टर के रूप में उस समय हुआ र्ा ।जब बंटी बीमार पड़ गया र्ा। उस समय के डा जोिी को याद करते
हुए िकुन सोचती है र्क “र्पछ्ली सर्दियों मे बंटी बीमार हो गया र्ा तो र्कतनी आत्मीयता और एहर्तयात से संभाला
र्ा उसे । के वल बंटी को ही नहीं बुिार के बढ़ते रहे पॉइंट के सार् हौसला िोती और घबराती िकुन को भी संभाला
र्ा ।“
9
आत्िीयता पूणण व्यवहाि -
र्कसी भी र्चर्कत्सक की प्रमुि र्विेर्ता यह होती है र्क रोर्गयों के प्रर्त उसके व्यवहार में र्कतनी आत्मीयता है।
माना र्क ईलाज मे दवा - दारू का र्विेर् महत्व है। पर र्चर्कत्सक का आपना व्यवहार भी अपना प्रभाव रिता है।
िकुन को डॉ जोिी के इसी अपनेपन ने प्रभार्वत र्कया र्ा । अजय से संबंध र्वच्छेद हो जाने के बाद बंटी की
बीमारी के कारण ही दोनों का पररचय हुआ र्ा। धीरे-धीरे कारण हट गया पररणाम बाकी रह गया ।
एक सफल प्रेिी -
डा जोिी एक कुिल र्चर्कत्सक ही नही एक सिल प्रेमी भी है। के वल धन वैभव और रूप सौंदयि के सहारे ही नारी
हृदय नहीं जीता जा सकता है। नारी का हृदय जीतने की सबसे पहली िति है र्क उसे इस बात का र्वश्वास आ जाए
र्क वह अपने आप को र्जस व्यर्ि को समर्पित करने जा रही है उस व्यर्ि के हार् में उसका भर्वष्य सुरर्ित है ।
िकुन का दांपत्य जीवन र्बिर चुका र्ा । उसे उसके पर्त अजय से प्रेम नहीं र्मल पाया र्ा। वह र्कसी पुरुर् को
सहारा प्राप्त करने के र्लए आतुर र्ी । दूसरी ओर जोिी जी र्वधुर र्े । दोनों को एक दूसरे की आवकयकता र्ी। दोनों
एक दूसरे के पूरक र्े।
व्यवहाि कु शाल व्यचि –
जोिी जी भावनाओंके सार् नहीं जीवन जीते अर्पतु यर्ार्ि में जीते हैं। जोिी जी अपनी व्यवहार कुिलता पररचय
तब देते हैं जब िकुन की पहली मुलाकात में उनकी पत्नी का देहांत हो चुका है। इस बात का अर्ि और भी महत्वपूणि
हो जाता है जो सभी लोग जानते हैं र्क िकुन अपने पर्त से अलग रहती है।
स्पषटवाचदता -
स्पष्ट्वार्दता डॉ जोिी के चररत्र की एक अन्यतम र्विेर्ता । बंटी को लेकर डॉक्टर जोिी ने िकुन को समझाने का
बहुत प्रयास र्कया । डॉक्टर यह जानते हैं र्क िकुन के र्लए बंटी बहुत महत्त्वपूणि है। वे इसर्लए बंटी के संबंध में
िकुन से कुछ भी र्िकायत नही करते क्योंर्क वे जानते जानते हैं ऐस करने का अर्ि िकु न को उत्तेर्जत करना होगा।
यह सब जानते हुए भी डॉक्टर जब कभी आवकयकता समझते हैं िकुन को बंटी के बारे में समझाते हैं।
10
2.7 बोध प्रश्न
1. बंटी के चररत्र की र्विेर्ताएाँ बताइए।
2. मााँ के रूप में िकुन कै सी है ?
3. प्रेमी के रूप में डॉ. जोिी कैसे है ?
1
इकाई – 3
आपकी बंटी उपन्यास का मूल उद्देश्य और विविध समस्याएँ
इकाई की रुपरेखा
3.0 उद्देश्य
3.1 प्रस्तािना
3.2 नई पृष्ठभूवम के रूप में शहरी जीिन का वित्रण
3.3 अिांवित तनाि से तलाक की समस्या
3.4 शहरी जीिन के विखािटी प्रेम का वित्रण
3.5 बंटी की समस्या को विखाना
3.6 पवत पत्नी के झगडे का बच्िे पर बुरा प्रभाि
3.7 मानि की गहराइयों का उद्घाटन
3.8 वशवित की अपेिा अवशवित अवधक संिेिनशील और सरल
3.9 सारांश
3.10 बोध प्रश्न
3.0 उद्देश्य
इस रचना का उद्देश्य बंटी की समस्या का चचत्रण करना है। लेचिका ने चििाया है चक आज के पढे-चलिे नौकरी पेशा
करने वाले पचि-पत्नी अपने अहंकार और व्यस्ििा के कारण आपस में टकरािे हैं। अपनी महत्वाकांक्षा की पूचिि में
संिान के जीवन की परवाह नहीं करिे हैं । शकुन अध्याचपका है ,अजय मैनेजर है। उनके आपसी टकराव में बंटी अपने
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  • 1. बी.ए.एच.डी.सी.सी – 06 खंड – 4 BAHDCC – 06 Block – 4 ह ंदी कथा साह त्य (उपन्यास) आपका बंटी
  • 2. इस पुस्तक की सभी इकाई की पाठ्य – सामाग्री मूल रूप से ओडिशा राज्य मुक्त डिश्वडिद्यालय (ओसू) द्वारा प्रस्तुत की गई है। The study material pertaining of this book has been developed by Odisha State Open University (OSOU), Sambalpur Odisha
  • 3. कला स्नातक (सम्मान) उपाधि कार्यक्रम (ह िंदी) बी.ए.एच.डी.सी.सी – 6 हििंदी कथा साहित्य (उपन्यास) खिंड – 4 आपका बिंटी इकाई – 1 मन्नू भिंडारी व्यधित्व और कृधतत्व इकाई – 2 आपका बिंटी : चररत्र धचत्रण इकाई – 3 आपका बिंटी उपन्र्ास का मूल उद्देश्र् और धवधभन्न समस्र्ाएँ इकाई – 4 आपका बिंटी के सिंवाद, कलापक्ष और भाषा – शैली इकाई – 5 आपका बिंटी की कथावस्तु व प्रासिंधिकता
  • 4. कला स्नातक (सम्मान) उपाधि कार्यक्रम (ह िंदी) हििंदी कथा साहित्य (उपन्यास ) मूलपाठ के लेखक इकाई – 1 मन्नू भिंडारी व्यधित्व और कृधतत्व श्री नीरज कुमार हसिं स ार्क धशक्षक एम.ए.एम.सी टाउनधशप ह िंदी जूधनर्र बेधसक स्कूल दुिायपुर , पधिम बिंिाल इकाई – 2 आपका बिंटी : चररत्र धचत्रण इकाई – 3 आपका बिंटी उपन्र्ास का मूल उद्देश्र् और धवधभन्न समस्र्ाएिं इकाई – 4 आपका बिंटी के सिंवाद, कलापक्ष और भाषा – शैली इकाई – 5 आपका बिंटी की कथावस्तु व प्रासिंधिकता सिंदभीकरण तथा सिंसोिन अधभषेक कुमार हसिं धशक्षण सला कार, ह िंदी धवभाि ओधिशा राज्र् मुि धवश्वधवद्यालर्, सम्बलपुर सिंकार् सदस्र् श्री अधभषेक कुमार हसिं कुलसधचव, ओधिशा राज्र् मुि धवश्वधवद्यालर्, सम्बलपुर द्वारा प्रकाधशत मुद्रण – 2
  • 5. 1 इकाई – 1 मन्नू भंडारी व्यक्तित्व और कृ क्तित्व प्रस्िावना 1.0 उद्देश्य 1.1 प्रस्िावना 1.2 जन्म और क्तिक्षा 1.3 कृ क्तित्व 1.4 प्रमुख रचनाएँ 1.5 कहानीकार मन्नू भंडारी 1.6 उपन्यासों का पररचय 1.7 पुरस्कार व सम्मान 1.8 रचना प्रक्तिया 1.9 भक्तवष्य योजना 1.10 सारांि 1.11 बोध प्रश्न 1.0 उद्देश्य मन्नू भंडारी भारत की एक महत्त्वपूर्ण लेखिका हैं जो 20वीं शती अंखतम चार दशकों और 21वीं शती के पूवाणर्द्ण में लैंखिक असमानता, विीय असमानता और आखथणक असमानता पर अपने सशक्त लेिन कायो के खलए जानी जाती हैं। सबसे ज्यादा वह अपने दो उपन्यासों के खलए प्रखसर्द् रहीं हैं; पहला ‘आपका बंटी’ और दूसरा ‘महाभोज’।
  • 6. 2 नयी कहानी आंदोलन और समकालीन खहंदी साखहत्य के लेिक खनमणल वमाण, राजेंद्र यादव, भीषम साहनी, कमलेश्वर इत्याखद ने उन्हें एक प्रखसर्द् और श्रेष्ठ लेखिका बताया । इस इकाई को पढ़ने के बाद आप –  मन्नू भंडारी के बारे में जान पाएँिे।  मन्नू भंडारी के रचना के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंिे।  खहंदी साखहत्य में उनका स्थान बता पाएँिे।  उनके रचना प्रखिया और प्राप्त सम्मान के बारे में जान पाएँिे। 1.1 प्रस्िावना खहंदी साखहत्य के साठोत्तरी दौर के महत्वपूर्ण लेखिकाओंमें मन्नू भंडारी की अपनी खवखशष्ट खस्थखत रही है। मन्नू भंडारी का लेिन मूलतः उस दौर में हमारे समक्ष उपखस्थत होता है खजस दौर में स्त्री लेिन की पृष्ठभूखम अत्यंत निण्य थी। वे स्वातंत्र्योत्तर भारत में खजस समय एक अजीब असंतोष, अखवश्वास, अस्वीकार, बौखर्द्क और वैचाररक संघषण, मानखसक कशमकश और परंपराित मूल्यों के खविंडन का दौर चल रहा था, उस समय की खस्थखत को अपने साखहत्य में अत्यंत सफलतापूवणक प्रस्तुत करती करती हुई एक महत्वपूर्ण लेखिका के रूप में साखहखत्यक जित में आई। मन्नू जी ने न के वल स्त्री लेिन को समृर्द् खकया बखल्क साखहखत्यक सूझ-बूझ के साथ तत्कालीन खस्थखत की पड़ताल भी की है। वे मूलतः स्त्री चेतना को अत्यंत सहजता के साथ ना के वल अपने साखहत्य में उके रती है अखपतु बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ण में स्त्री खवमशण की एक प्रमुि कड़ी के रूप में हमारे समक्ष आती हैं। 1.2 जन्म एवं क्तिक्षा मन्नू जी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्यप्रदेश के भानपुरा नामक िांव में हुआ था। दो बड़े भाइयों और दो बड़ी बहनों का स्नेह उन्हें प्राप्त रहा है। इनके खपता का नाम सुि संपत राय भंडारी था। वह आयण समाजी खवचारधारा के समाज सुधारक थे इनका पररवार एक मध्यविीय मारवाड़ी पररवार रहा है। इनके सभी भाई और बहन उच्च खशखक्षत और नौकरी पेशे में रत रहे हैं। इनके खपता समाज सुधारक थे इसखलए एक रूढीग्रस्त पररवार में जन्म लेने के बावजूद कुछ सीमा तक स्वतं्रतता सभी बच्चों को प्राप्त हो िई थी इसखलए उनकी खशक्षा पर कोई प्रखतबंध नहीं था।
  • 7. 3 मन्नू भंडारी का पूरा नाम महेंद्र कुमारी है। घर में सबसे छोटी होने के कारर् सब उन्हें प्यार से मन्नू पुकारते हैं। मन्नू की माता का नाम अनूप कुं वारी था। एक परंपराित स्त्री होने के साथ-साथ एक ममतामयी माता भी थी जो खसफण लुटाने को ही अपनी पूर्णता मानती थी। मन्नू जी की आरंखभक खशक्षा अजमेर के साखव्रती स्कूल में हुई। वहीं से इन्होंने इंटर की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। इसके बाद वे अपने बड़े भाई बहनों के पास कोलकाता रहने के खलए चली िई। देिा जाए तो इंटर करने के बाद उनकी खशक्षा सहज और स्वाभाखवक रूप से नहीं हुई। उन्होंने बी. ए. और उसके बाद एम. ए. एक प्राइवेट खशक्षाथी के रूप में की। उन्होंने बनारस खवश्वखवद्यालय से खहंदी में 1952 ई. में एम. ए. खकया था। एम. ए. करने के बाद उन्होंने कलकत्ता के ’ बालीिंज खशक्षा सदन’ में नौ वषण अध्यापन कायण खकया। सन 1964 में खदल्ली के खमरांडा हाउस महाखवद्यालय में प्राध्याखपका के रूप में कायण आरंभ खकया। इसके बाद मन्नू जी खविम खवश्वखवद्यालय उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की अध्यक्षा रही। मन्नू जी खजस समय बालीिंज खशक्षा सदन में कायणरत थी और लेिन में कदम रिी ही थी खक उसी खसलखसले में उनका पररचय स्विीय श्री राजेंद्र यादव से हुआ जो खक तब तक प्रखतखष्ठत लेिक बन चुके थे। यहीं पररचय आिे चलकर प्रर्य और अंततः उन दोनों के बीच 1959 ई. में पररर्य सू्रत में बदल िया। यह अंतरजातीय खववाह था इसखलए मन्नू जी के पररवार वाले इससे बहुत िुश नहीं हुए। परंतु मन्नू की मां ने अपना स्नेह सदैव बनाए रिा। उनकी एक पु्रती हुई खजसका नाम रचना रिा िया । सन 1964 ई. में दोनों कलकत्ता छोड़कर खदल्ली आ िए। यहां आकर राजेंद्र जी ने ‘अक्षर प्रकाशन’ आरंभ खकया। मन्नू जी खजस व्यखक्तत्व को लेकर साखहत्य जित में आई उनके व्यखक्तत्व पर उनके खपता की महत्वपूर्ण छाप रही है। उनके खपता िोधी एवं आदशणवादी थे। समाजसेवी होने के कारर् खवखभन्न विों के लोिों से चचाणएं उनके दैखनक जीवन का अंि थी। मन्नू जी आरंभ से ही चचाणओंको बड़े मनोयोि से सुनती थी। मन्नू जी स्वयं बताती है खक बहस के दौरान खपताजी अपना खवरोध सहन नहीं कर पाते थे। आखथणक कखठनाइयों की खवषम पररखस्थखतयों में भी खकसी से मदद मांिना या समझौता करना उनके खलए कभी संभव नहीं हुआ। मन्नू जी के खपता खजतने अहंवादी और िोधी थे, माता उतनी ही सहनशील और समखपणत नारी थी।वह अत्यंत शांत और खनखलणप्त जीवन जीती थी। माता - खपता के परस्पर खवरोधी स्वभाव और खमले-जुले संस्कारों से मन्नू जी का व्यखक्तत्व खनखमणत हुआ। नवी - दसवीं कक्षा से ही उनमें नेतृत्व क्षमता खवकखसत हो िई थी। मन्नू जी स्वाधीनता आंदोलन के अंखतम दशकों में जोशो िरोश से खहस्सा लेती थी। उन्हीं खदनों के खदए िए भाषर्ों की वजह से वे एक कुशल वक्ता के रूप में प्रखतखष्ठत हो िई। मन्नू जी कहीं भी अन्याय होता देि उसका पुरजोर खवरोध करती थी। बचपन से ही अन्याय के खवरुर्द् तुरंत प्रखतखिया व्यक्त करती थी इसखलए उनका मानना है खक वयः संखध के दौरान जो प्रखतखिया उबाल के रूप में होती थी बाद में अखभव्यखक्त के रूप में होने लिी।
  • 8. 4 1.3 कृ क्तित्व मन्नू भंडारी के संपूर्ण कथा साखहत्य पर दृखष्टपात करने पर हम देिते हैं खक उनका साखहत्य खवचारधारात्मक सत्य की चचाण करना नहीं रहा है अखपतु इसके खलए अच्छी खस्थखत बनाने हेतु की िई बातचीत भी है। वह खवमशण को ना के वल प्रस्तुत करती है बखल्क मानव जीवन के खवखभन्न धरातलो से खवखभन्न समस्याएं चुनकर उन्हें पूर्ण सजिता और प्रभावशाली ढंि से साखहत्य में खचख्रतत करके उसके खवखवध पहलूओंपर हमारा ध्यान आकखषणत करती है। स्त्री खवमशण जो खक एक उत्तर आधुखनक खवचारधारा है, खजसे लेकर चलने वाले जे. एस. खमल, वजीखनया वुल्फ, खसमोन- द- बोउवा आखद का महत्वपूर्ण योिदान रहा है। खकं तु भारतीय साखहत्य में स्त्री के खलए पुरुष लेिन अथाणत सहानुभूखत पूर्ण लेिन तो स्वतं्रतता के पूवण भी हमारे समक्ष खमलते हैं; परंतु मखहला द्वारा मखहला की खस्थखत को उद्घाखटत करने का प्रयास सातवें और आठवें दशक में ही ठीक ठाक रूप से दृखष्टित होता है। स्त्री लेिन की आवश्यकता पर स्वयं सीमेन द बोउवा का कहना है खक “वस्तुतः खस्त्रयां ही नारी जित को पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा आंतररकता से जानती है क्योंखक उनकी जड़े इसमें खनखहत हैं ।“ ( खहंदी उपन्यास :साथणक की पहचान, मधुरेश, स्वराज प्रकाशन, खदल्ली, पेज -163) आठवें दशक के पूवाणधण की स्त्री लेखिकाओंमें मन्नू जी की अपनी महनीय उपलखधध इस अथण में थी खक उनके लेिन की जमीन खस्त्रयों के जीवन की खवशेषकर आधुखनक खस्त्रयों की ्रतासदी की िाथा है जो मूलतः खकसी न खकसी रूप में लेखिका द्वारा कखल्पत नहीं अखपतु उनका देिा परिा और भोिा हुआ यथाथण है । वे इस तरह के लेिन की सू्रतधार नहीं तो सू्रतधारकारों में जरूर जानी जती हैं। स्त्री लेिन के इसी स्वरूप की अिली कड़ी हमें उषा खप्रयंवदा, दीखप्त िंडेलवाल, मृदुला ििण, मखर्का मोखहनी, मंजुल भित, कृष्र्ा अखननहो्रती, सूयणबाला, कृष्र्ा सोबती, प्रभा िेतान, नाखसरा शमाण, नखमता खसंह, सुधा अरोड़ा, मै्रतेयी पुष्पा तथा ममता काखलया आखद के साखहत्य में प्राप्त होती है। मन्नू जी ने अपने साखहत्य को अत्यंत स्वाभाखवकता के साथ-साथ समकालीनता के आईने में उतार कर एक संतुखलत खवचारधारा के साथ साखहत्य में अवतीर्ण हुई। साखहत्य जित में मन्नू जी का पदापणर् उनकी पहली कहानी ‘मैं हार िई’ के प्रकाशन के साथ हुआ। यह रचना ‘कहानी’ पख्रतका में प्रकाखशत हुई थी खजसका संपादन उन खदनों प्रखसर्द् कथाकार भैरव प्रसाद िुप्त कर रहे थे। सच पूछा जाए तो मन्नू जी को साखहत्य जित में प्रखतस्थाखपत करने का श्रेय िुप्त जी को ही जाता है। उनकी पहली कहानी छपकर और उनकी प्रशंसा का प्रत खलिकर उन्होंने ही उनको प्रोत्साखहत खकया। 1.4 प्रमुख रचनाएँ कहानी संग्रह प्रथम संस्मरण मैं हार िई 1957 तीन खनिाहों की तस्वीर 1959
  • 9. 5 यही सच है 1966 एक प्लेट सैलाब 1968 ख्रतशंकु 1978 आंिों देिा झूठ( बाल कहाखनयाँ) 1976 उपन्यास एक इंच मुस्कान (राजेंद्र यादव के साथ) 1961 आपका बंटी 1971 कलवा 1971 महाभोज 1976 स्वामी 1982 नाटक खबना दीवारों का घर 1966 महाभोज 1983 1.5 कहानीकार मन्नू भंडारी सन साठ के दशक के बाद जब मध्यविीय विण के समक्ष अजनबीयत , अकेलापन, सं्रतास, ररश्तो की िरमाहट का ित्म होना, मशीनीकृत समाज में भावनाओंका अभाव आखद जब उभर कर आते हैं तो समाज की सबसे छोटी इकाई पररवार पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और पररवार के समन्वयक स्त्री-पुरुष संबंधों में भी नवीन रूपाकार आकार ग्रहर् करते हैं। उनके बीच संबंधों में कई तरह की दूररयां उत्पन्न होती है। स्त्री चेतना के नाम पर पुरुषों का खवरोध भी होता है। दंिल झाल्टे के शधदों में “बीसवीं शताधदी का उत्तराधण एक अजीब असंतोष, अखवश्वास, बौखर्द्क और वैचाररक संघषण,
  • 10. 6 मानखसक कशमकश और परंपराित जीवन पर्द्खत के िोिलेपन का जन्मदाता है। (साठोत्तर खहंदी साखहत्य का पररप्रेक्ष्य : दंिल झाल्टे, पृष्ठ - 59) इस प्रकार के दुरुह पररवेश में मन्नू भंडारी की कहाखनयाँ एक समन्वयवादी दृखष्ट का वर्णन करते हुए दोनों की ही भूखमका को महत्वपूर्ण मानती है। उन्होंने इन दोनों के संबंध को नए स्वरूप के साथ साखहत्य में उद्घाखटत खकया। इस संदभण को स्पष्ट करते हुए के . एम. मालती कहती है “मन्नू भंडारी की कहाखनयाँ नारी पुरुष के द्वन्द्वात्मक संबंधों की कहाखनयाँ है। उन्होंने नारी- पुरुष के जीवन का खच्रतर् नये दृखष्टकोर्ो से खकया है। इनकी कहाखनयों में घुटन तथा तनाव की मनः खस्थखतयों का खच्रतर् है। प्रेम - खववाह और तलाक इनकी कहाखनयों का आधार है।“(साठोत्तर खहंदी कहानी, डॉ के . एम. मालती, पृष्ठ 34-35) मन्नू जी की कहाखनयाँ समकालीन पररप्रेक्ष्य स्त्री-पुरुष संबंधों की पड़ताल करती है और इस बात की पुखष्ट करती है खक खस्त्रयों को ना के वल लेिन अखपतु धमण, दशणन, राजनीखत आखद में भािीदारी करने के कारर् पुरुष वचणस्ववादी समाज खकस तरह उसे उपेखक्षत बना देता है। िौरतलब है खक इनके कहाखनयों अथवा उपन्यासों में ऐसा कहीं भी नहीं खमलता खक वह पुरुष खवरोध का साखहत्य है। ‘मैं हार गई’ कहानी संग्रह में 12 कहाखनयाँ हैं। ‘ईसा के घर इंसान’, ‘िीत का चुंबन’, ‘एक कमजोर लड़की की कहानी’ और ‘सयानी बुआ’ नारी जीवन की खवडंबनाओंसे जुड़ी कहानी है। ‘दीवार’, ‘बच्चे और बरसात’ कहानी भी नारी-जित की मानखसकता को उजािर करती है। ‘अखभनेता’ और ‘मैं हार िई’ में मूल्यों के ह्रास के संके त स्पष्ट है। ‘खकल और कसक’ यौन- अतृखप्त की ओर संके त करती है। ‘दो कलाकार’ कहानी में सच्चा कलाकार वही है खजसमें मानवीय संवेदनशीलता हो। ‘िीन क्तनगाहों की एक िस्वीर’ नामक कहानी संग्रह में 8 कहाखनयाँ है। ‘तीन खनिाहों की एक तस्वीर’, ‘अकेली’ ,‘घुटन’ और ‘मजबूरी’ नारी जीवन की खववशताओं को लेकर खलिी िई कहाखनयाँ है। ‘अकेली’ और ‘मजबूरी’ कहानी का मध्य लिभि एक सा है। ‘अनचाही िहररया’ में प्रेम की खमथ्या भ्ांखत को दशाणया िया है। ‘िोटे खसक्के ’ में कायणस्थल पर दुघणटनाग्रस्त मजदूरों के अपंि हो जाने पर उनकी कीमत चंद खसक्के आँकने पर व्यंनय है। ‘चश्मे’ कहानी में अतीत की यादों से आंदोखलत व्यखथत हृदय का खच्रतर् है। इस संग्रह में कुछ कहाखनयाँ नयापन खलए हुए हैं। ‘यही सच है’ इस कहानी संग्रह में भी 8 कहाखनयाँ हैं। ‘क्षय’ नारीप्रधान कहानी है । िृहस्थी के बीच कुं खठत हो जाने वाली ऐसी नारी हृदय का खच्रतर् है , जो एक सीमा पर आकर अपने बीमार खपता के मर जाने की इच्छा को भी उखचत मानने लिती है । ‘तीसरा आदमी’ एक कमजोर अहम वाले पुरुष की कहानी है , जो उन पुंसत्व - हीनता की ग्रंखथ से पीखड़त होने के कारर् अपने जीवन को नरक बना लेता है। ‘ सजा’ अदालती खनर्णयों में होने वाली देरी के कारर् अनभुिती सजा की कहानी है । ‘नकली हीरे’ एक ऐसी नारी की कहानी है खजसे सुि-सुखवधा के सारे साधन प्राप्त होते हुए भी पखत का वह लिाव प्राप्त नहीं है जो साधारर् जीवन जीने वाली उसकी छोटी बहन को प्राप्त है। ‘ नशा’ उस प्रौढ़ा की कहानी है जो अपनी हड्खडयाँ िला िला कर शराबी पखत की मांि पूरी करती है और पखत प्रेम से खवमुि नहीं हो पाती। ‘इनकम टैक्स और नींद’ मध्यविीय पररवार के झूठे आत्म प्रदशणन की कहानी है । ‘रानी का चबूतरा’ एक
  • 11. 7 खनम्न विीय नारी की कहानी को प्रत्यक्षत: ककण शा के खदिाते हुए अपने पखत के प्रखत बड़ा संवेदनशील हृदय रिती है । ‘यही सच है’ खकशोर एवं युवा अवस्था के प्रेमद्वंद्व की कहानी है। इस कहानी पर ही बासु चटजी ने ‘रजनीिंधा’ खफल्म भी बनाई थी। इस संग्रह की कहाखनयों में मन्नू जी की कहाखनयों का कलात्मकता स्वरुप खनख्ररा हुआ लिता है। एक प्लेट सैलाब : नई नौकरी, बंद दरवाजों के साथ, एक प्लेट सैलाब, छत बनाने वाले, एक बार और संख्या के पार, बाँहों का घेरा, कमरे ,कमरा और कमरे तथा चाई नाम की 9 कहाखनयों का संग्रह है। कथ्य की दृखष्ट से अिर इस संग्रह की सभी कहाखनयाँ आधुखनक मानी जा सकती हैं। ‘एक प्लेट सैलाब’ ,’कमरे कमरा और कमरे, तथा ‘बंद दरवाजों का साथ’ कहाखनयाँ कुछ दुबोध सी लिती हैं। इस कहानी संग्रह की कहाखनयों में नारी हृदय की अनुभूखतयों के सूक्ष्म खवश्लेषर् की ओर अखधक ध्यान खदया िया है। इन कहखनयों में मन्नू जी के लेिन में चरम उत्कषण खदिाई देता है। ख्रतशंकु ; इस संग्रह में भी 9 कहाखनयाँ हैं। पहली कहानी ‘आते –जाते यायावर’ में अपने से ही छले िए एक ऐसे चरर्रत को उभारा िया है, जो 7 वषों से भटकता हुआ हर जिह नए प्रेम संबंध जोड़ता है और हर बार अपने पूवण प्रेम संबंधों को इतनी आसानी से प्रकट कर देता है जैसे कहीं कुछ हुआ ही ना हो। ‘दरार भरने की दरार’ एक स्त्री द्वारा दूसरी स्त्री के जीवन में पड़ी दरार को भरने का असफल प्रयास इसमें वखर्णत खकया िया है। ‘स्त्री सुबोखधनी’ में प्रेम के नाम पर खववाखहत पुरुष द्वारा छली िई स्त्री की कहानी है। ‘ख्रतशंकु ’ आधुखनक और परंपराित संस्कारों को ना छोड़ पाने वाले पररवार में पलती बढ़ती असहाय लड़की की कहानी है।‘ रेत की दीवार मध्यविीय पररवारों के सं्रतास और अलिाव राजनीखतक हथकं डों को लेकर खलिी िई कहाखनयाँ है। ‘एिाने आकाश नेई’ कहानी पर बासु चटजी ‘जीना यहां’ खफल्म बना चुके हैं ।खशल्प और शैली की दृखष्ट से भी ईस संग्रह की कहखनयां अत्यंत महत्वपूर्ण है। मन्नू जी की कहाखनयाँ सभी विों को समान रूप से आकखषणत करती हैं। उनकी कहाखनयाँ भारत के हर प्रांत में खवश्वखवद्यालय स्तर पर पाठ्यिम में न के वल पढ़ाई जाती है ,बखल्क उनकी कहाखनयों का पंजाबी, िुजराती, मराठी ,कन्नड़, तेलुिू, मलयालम भाषा में अनुवाद भी हो चुका है। ‘आपका बंटी’ उपन्यास मराठी ,िुजराती, उखड़या, पंजाबी में अनुखदत हो चुका है। देश में नहीं खवदेशों में भी मन्नू भंडारी की रचनाएँ पहुंच िई है और वहाँ भी उन्हें लोकखप्रयता बहुत प्राप्त हुई है । मन्नू जी की रचनाएँ सन 1957 के आसपास पुस्तकाकार रूप में छपकर प्रकाखशत होने लिी थी ।लिभि तीन दशकों की अवखध में उनके 6 कहानी संग्रह, 5 उपन्यास, दो नाटक प्रकाश में आए। कहाखनयों की कुल संख्या 48 है ।एक संग्रह में के वल बाल कहाखनयाँ है ।उपन्यासों में एक तो सहयोिी प्रकाशन है ।खववाह की उमंि में खलिी िई पखत पत्नी की साझी रचना; एक बाल उपन्यास है; एक उपन्यास ‘स्वामी’ शरतचंद की कहानी का रूपांतरर् है ; ‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ उपन्यासों ने मन्नू जी को प्रथम कोर्ी के कथाकारों स्थान खदला खदया। ‘खबना दीवारों का घर’ आपका प्रखसर्द् नाटक है, ‘महाभोज’ उपन्यास का आपने स्वयं ही नाट्य रूपांतरर् खकया है। इस नाटक का बी . बी . सी. लंदन में भी प्रसारर् हुआ है।
  • 12. 8 उपन्यासों का पररचय एक इंच मुस्कान: यह उपन्यास एक सहयोिी रचना है । यह मन्नू भंडारी का पहला उपन्यास है । पहले यह उपन्यास धारावाखहक रूप में ‘ज्ञानोदय’ में प्रकाखशत हुआ था । बाद में श्रीमती मन्नू जी और राजेंद्र यादव ने सखम्मखलत रूप से इस की पुनरणचना की । उपन्यास के पुरुष- पा्रत अमर को राजेंद्र जी ने और स्त्री पा्रतों रंजना और अमला को मन्नू जी ने संवारा । इस उपन्यास में पत्नी रंजना और खम्रत अमला के बीच बंटे हुए बुखर्द्जीवी अमर का चरर्रत अंखकत है । उसके दोहरे संबंधों की पररर्खत एकाकी जीवन यापन की खववशता में होती है । यह उपन्यास उस सनातन सवाल को खफर से एक बार पाठकों के सामने रिता है खक कलाकारों पर खकसी प्रकार के नैखतक दाखयत्व को खनभाने के खलए बंधन लिाए जा सकते हैं अथवा नहीं। जीवन के दो फूल हैं - भावना और कतणव्य । इन दोनों में से एक भी कच्चा साखबत हुआ तो वह टूट जाता है और उसके जीवन का प्रवाह उसी खदशा में बह खनकलता है। ‘ अमर’ कहानीकार बनाम कलाकार है। रंजना उसकी पत्नी है । परंतु अमर अपनी प्रेरर्ा अमला को मानता है । रंजना दांपत्य सुि के खलए हर तरह का त्याि करती है। परंतु उसने अपने पखत का सुि शायद ही कभी खमल पाया होिा। अमर अमला की संपखत्त सुंदरता के वश में हो जाता है। ‘आपका बंटी’ उपन्यास की कथावस्तु मन्नू जी की ही खलिी हुई कहानी ‘बंद दराजों का साथ’ में बीज रूप में खवद्यमान है। यह एक सामाखजक उपन्यास है और बाल मनोखवज्ञान और समस्याओंके साथ इस उपन्यास में टूटते हुए दांपत्य और पुनखवणवाह की समस्या भी मुिररत हुई है । कथानक का कें द्र बंटी है खजसके माध्यम से बच्चों के प्रखत माता खपता के उत्तरदाखयत्व को उजािर करने के साथ नारी की अखधकार सजिता की कहानी भी प्रभावशाली ढंि से कही िई है । शकुन उच्च खशखक्षत और कामकाजी नारी है । वह कॉलेज की खप्रंखसपल है । उसका पखत अजय दूसरे शहर में रहता है । शकुनन का अपना एक स्वतं्रत व्यखक्तत्व है। वह प्रिखतशील खवचारों की है ।अजय की दृखष्ट पारंपररक है । अत: दोनों में टकराव होता है खजसका प्रभाव उनके एकमा्रत पु्रत बंटी पर पड़ता है । बंटी दोनों से समझौता नहीं कर पाता। अजय शकुन को तलाक देने के पहले ही दूसरी स्त्री से खववाह कर लेता है खजसके कारर् उनका संबंध खवच्छेद अखनवायण हो जाता है। इस सम्बंध के टुटने के बाद बंटी अपनी मां के साथ रहता है । परंतु जब शकुन भी दूसरा खववाह करती है तब बंटी का भखवष्य िड़बड़ा जाता है । उसे अपने खपता के घर रहने का अवसर खदया जाता है । परंतु वहाँ अपनी सौतेली मां के साथ रहने को तैयार नहीं कर पाता । पररर्ामत: उसे हॉस्टल में रहने के खलए भेज खदया जाता है । उसे हॉस्टल की ओर ले जाने वाले रेलवे या्रता के साथ ही उपन्यास समाप्त हो जाता है । उपन्यास का कथ्य पाठकों पर प्रभाव छोड़ने में सफल रहता है। महाभोज मन्नू जी का अत्यंत सफल उपन्यास है ।इस उपन्यास का बीज उनकी ‘अलिाव’ कहानी में खवद्यमान है। आिे चलकर मन्नू जी ने महाभोज का नाट्य रूपांतरर् भी खकया है। महाभोज श्रीमती मन्नू भंडारी का नवीनतम उपन्यास है। उपन्यास का पररपेक्ष्य पूरी तरह राजनीखतक है। उपन्यास में आपातकालीन खस्थखत और उसके बाद जनता पाटी के शासन का यथाथण वर्णन है । उपन्यास में भ्ष्ट राजनीखत और नैखतक मूल्यों के पतन को वास्तखवकता के रूप में प्रस्तुत खकया िया है।
  • 13. 9 महाभोज उपन्यास में कथावस्तु के नाम पर बहुत अखधक पेखचदखियां नहीं हैं। स्वाधीनता के बाद भारत का एक देहात , उस देहात तक पहुंची हुई दलित राजनीखत, चुनाव के खलए अपनाए जाने वाले हथकं डे , अपराधी तत्वों का राजनीखत में प्रवेश पुखलस की स्वाथण दृखष्ट, बुखर्द्जीखवयों की तत्परता और प्रतकारों की अवसरवाखदता - सारे तत्व इस उपन्यास की कथावस्तु में मुिर होकर उभरे हैं । दा- साहब मुख्यमं्रती हैं और सुकुल बाबू खवरोधी दल के नेता , जोरावर राजनीखतक सुरक्षा में पलने वाला िुंडा और हत्यारा है। सक्सेना और खसन्हा पुखलस अखधकारी हैं । दत्ता बाबू संपादक है। महेश शमाण बुखर्द्जीवी हैं जो इस बात की िोज करने िांव पहुंचा है खक क्लास-स्रिल और कास्ट- स्रिल क्या होता है? सरोहा िांव में चुनाव के पहले खबसेसर नामक युवक की हत्या हो जाती है । हत्या के बाद हत्या को आत्महत्या घोखषत होने तक इतना कुछ िुजर जाता है खक खजसे पढ़कर पाठक दंि रह जाता है। सफे द झूठ को सत्य खसर्द् करने वाली काली कलूटी राजनीखत के खघनौने करतब इस उपन्यास में अंखकत हुए हैं। ‘स्वामी’: यह उपन्यास शरदचंद की बांनला कहानी ‘स्वामी’ का एक तरह से उपन्यास के रूप में खहंदी रूपांतरर् है। इसे मन्नू जी की मौखलक रचना नहीं कहा जा सकता है । ‘कलवा’ यह एक बाल उपन्यास है। सारांश यह है खक मन्नू जी के कुल 5 उपन्यासों में से दो उपन्यास ‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ सवाणखधक चखचणत हैं। बचे तीनों में से एक सहयोिी लेिन है । दूसरा बाल उपन्यास व तीसरा रूपांतररत है । 1.7 पुरस्कार और सम्मान मन्नू जी की कई रचनाएँ पुरस्कार पा चुकी हैं और साखहत्यकार के रूप में उन्हें सम्माखनत भी खकया िया है।  महाभोज उपन्यास पर भारतीय भाषा पररषद, कोलकाता ने सन 1982 में ₹11000 का "रामकुमार भुवाल" पुरस्कार प्रदान खकया था।  उत्तर प्रदेश खहंदी संस्थान द्वारा महाभोज उपन्यास पर ₹6000 का पुरस्कार खदया िया था ।  कें द्रीय खहंदी खनदेशालय की ओर से 1981 में "अखहंदी भाषी क्षे्रत" की लेखिका के रूप में मन्नू जी को सम्माखनत खकया िया था।  खशमला के आल इखन्डया आखटणस्ट एसोखसएशन द्वारा 'अखिल भारतीय बलराज साहनी' स्मृखत साखहत्य प्रखतयोखिता में मन्नू जी को उनके रचनात्मक लेिन के खलए 'खपपुल्स'अवाडण देकर सम्मान खकया िया था।  काला-कुं ज सम्मान (पुरस्कार), नई खदल्ली, 1982  भारतीय संस्कृत संसद कथा समरोह (भारतीय संस्कृत कथा), कोलकाता, 1983
  • 14. 10  खबहार राज्य भाषा पररषद (खबहार राज्य भाषा पररषद), 1991  राजस्थान संिीत नाटक अकादमी, 2001- 02  महाराष्र राज्य खहंदी साखहत्य अकादमी (महाराष्र राज्य खहंदी साखहत्य अकादमी), 2004  खहंदी अकादमी, खदलीली शालका सन्मैन, 2006- 07  मध्यप्रदेश खहंदी साखहत्य सम्मेलन (मध्यप्रदेश खहंदी साखहत्य सम्मेलन), भवभूखत अलंकरर्, 2006- 07  के .के . खबड़ला फाउंडेशन ने उन्हें अपने काम के खलए 18 वें व्यास सम्मान के साथ प्रस्तुत खकया, 'एक कहानी यह भी'। 1.8 रचना प्रक्तिया मन्नू जी अपनी रचना प्रखिया के संबंध में िुद खलिती हैं खक मेरे खलए खलिना दो तरीके का होता है एक तो वह जो वे कलम लेकर कािज पर खलिती हैं और जो काफी लंबे अंतराल के बाद उनके द्वारा संभव हो पाता है । दूसरा वह जो खबना कािज कलम के दैन्यखदन कामों के साथ-साथ बैकग्राउंड म्यूखजक की तरह मन की परतों पर खनरंतर ही चलती रहती है। बाहर वालों के खलए महत्वपूर्ण वे चीजें हैं जो कािज पर खलिी िई हैं और उन तक पहुंच िए लेखकन उनके खलए तो उनका मानखसक लेिन ही महत्वपूर्ण है। इस के दौरान रॉ -मटेररयल का भंडार जमा होता है खजससे कुछ चीजें चुनकर उन्हें काट छांट कर और तराश कर तैयार माल की तरह वे बाहर ला पाते हैं । मन्नू जी लौखकक पा्रत घटना से प्रभाखवत होती हैं और वह प्रभाव उनके खचंतक मन मखस्तष्क को मथता रहता है । उस मंथन में जब अनुभूखत का नवनीत तैयार होता है तब वह कहानी के रूप में प्रकट होता है । यही कारर् है खक उनकी कहाखनयाँ और पा्रत सजीव होकर जनमानस से बातें करने लिते हैं । लेिन उनका व्यवसाय नहीं है अखपतु अनुभूखत और खचंतन का खवस्फोट है। राजेंद्र यादव ने खलिा है खक मन्नू के खदमाि में प्लाट मौखलक और सशक्त आते हैं । खलिने का उनका अपना तरीका है िाने की मेज पर बैठ कर , रसोई में उखचत आदेश देती हुई, घर की सारी व्यवस्था देिती हुई कहानी खलिती रहती है । वैसे शाम को नहा धोकर एकदम धोबी के धुले के सफेद कपड़े पहन कर बहुत अखधक चूने वाला पान िाते हुए खलिना उन्हें सबसे अखधक खप्रय है । 1.9 भक्तवष्य योजना महाभोज उपन्यास ने पूरे भारत में तहलका मचा खदया। बी.बी.सी लंदन ने भी इसके प्रसारर् के खलए लिभि 1 घंटे का समय खदया िया । देश-खवदेश में जब महाभोज प्रखसर्द् हुआ तभी प्रश्न उठा खक अब इसके बाद मन्नू जी क्या करेंिी? मन्नू जी एक और उपन्यास खलिना चाहती हैं खपछले 50 वषों से देश में खवकखसत होने वाली राजनीखतक, सामाखजक,
  • 15. 11 आखथणक पररखस्थखतयों के बीच रचनाकारों और बुखर्द्जीखवयों के भटकाव से वे बडी खचंखतत हैं। वे इस संबंध में एक उपन्यास भी खलिना चाहती है। 1.10 सारांि खिररराज खकशोर के शधदों में कहें तो मन्नू जी उन लेखिकाओंमें है खजन्हें खजंदिी को समझने और आमने सामने होकर उसे देिने का व्यसन है। इसीखलए उनका संसार हमारे सम्मुि चलती खफरती रील की तरह घूम जाता है। उसे समझने के खलए हमें अखधक देर नहीं लिती। मन्नू जी के व्यखक्तत्व और कृखतत्व से स्पष्ट हो जाता है खक उन्होंने अपने रचना संसार के साथ साक्षात्कार खकया है और उस साक्षात्कार के फल स्वरुप उन्होंने अपना लेखिका रूप खनखमणत खकया है। वे आधुखनक खहंदी सखहत्य की अत्यंत सशक्त समथण और चखचणत कथा लेखिका है । 1.11 बोध प्रश्न 1. मन्नू भंडारी के कृखतत्व के बारे में खलखिए । 2. मन्नू जी के द्वारा प्राप्त पुरस्कारों के बारे में बताइए । 3. साखहत्य में उनका स्थान खलखिए । 4. खहंदी साखहत्य में मन्नू भंडारी की रचनाओंका महत्त्व क्या है ? 5. मन्नू भंडारी के प्रमुि रचनाओंके बारे में बताइए ।
  • 16. 1 इकाई – 2 चरित्र – चचत्रण प्रस्तावना 2.0 उद्देश्य 2.1 प्रस्तावना 2.2 बंटी का चरित्र चचत्रण 2.3 शकु न का चरित्र चचत्रण 2.4 अजय का चरित्र चचत्रण 2.5 डॉ जोशी का चरित्र चचत्रण 2.7 बोध प्रश्न 2.0 उद्देश्य मनू भंडारी का चर्चित उपन्यास 'आपका बंटी' नौ साल के एक बच्चे बंटी की घायल संवेदनाओंकी कहानी है या र्िर समाज में अपनी जगह बनाने की कोर्िि करती िकुन के जीवन का सत्य, कहना बेहद मुर्ककल है। 16 भागों में बंटा यह उपन्यास िकुन, अलग हो चुके उसके पर्त अजय और उनके नौ साल के बेटे बंटी की कहानी है। इस इकाई को पढने के बाद आप –  चररत्र र्चत्रण का अर्ि और महत्त्व समझ सकेंगे।  बंटी के चररत्र को समझ सकेंगे।  िकुन के चररत्र को समझ सकें गे
  • 17. 2 2.1 प्रस्तावना र्कसी व्यर्ि के संर्िप्त सार्हर्त्यक पररचय को उसका चररत्र-र्चत्रण कहते हैं। र्कसी नाटक, कर्ा आर्द में आये पात्रों के सोच, कायिपद्धर्त, आर्द के बारे में सूचना देना उस पात्र का चररत्र र्चत्रण (Characterisation) कहलाता है। पात्रों का वणिन करने के र्लये उनके कायों, विव्य, एवं र्वचारों आर्द का सहारा र्लया जाता है। 2.2 बंटी का चरित्र चचत्रण मन्नू भंडारी आधुर्नक युग की उच्च कोर्ट की उपन्यास लेर्िका है । ‘आपका बंटी’ इनकी महत्वपूणि रचना है । इस उपन्यास का नायक बंटी है, क्योंर्क संपूणि कर्ा योजना में उसकी उपेिा का र्चत्र है तर्ा उसके जनजीवन का उसकी मााँ तर्ा उसके र्पता की चाररर्त्रक असंगर्त के कारण बंटी का अजनबी और प्रसाद चररत्र र्नर्मित होता है। उपन्यास की संपूणि घटना बंटी की ओर संके त करती है। उपेचित चरित्र - बंटी अपने माता-र्पता द्वारा उपेर्ित होता है । उसकी मााँ िकुन कॉलेज की र्प्रंर्सपल है और र्पता अजय मैनेजर है । पर्त-पत्नी के अहमबोध और व्यस्तता के कारण बंटी उपेर्ित रह जाता है । पररवार की धुरी त्याग, प्रेम , सर्हष्णुता , समपिण आर्द से मजबूत होती है। परंतु इसका अभाव इस पररवार में है । सोच का सीचित दायिा - बंटी का अपने पाररवाररक पररर्स्र्र्त के कारण उसके बुर्द्ध का र्वकास व्यापकतम रूप में न होकर संकुर्चत हो जाता है । िकुन और अजय अपने अहमबोध के कारण एक-दूसरे के र्वरोधी बन जाते हैं। अलग- अलग होकर अपने-अपने जीवनसार्ी चुन लेते हैं। उनके जीवन का अपना नया वृत्त बन जाता है। परंतु बीच में बंटी उपेर्ित रह जाता है और अपने जीवन की र्दिा िो बैठता है । सिझौतावादी दृचिकोण- बालक मन अपार प्रेम चाहता है वह अपने पररवेि से भी वैसे ही आिा करता है। बंटी का पररवेि उसे डसता है । टीटू और उसकी मााँ के प्रश्नों से बंटी र्तलर्मला उठता है। बालक बंटी मम्मी-पापा में से र्कसी एक को भी छोड़ना नहीं चाहता है ।एक बार वह सोचता है र्क मााँ-बाप की कुट्टी कैसे ित्म हो जाए । वह सोचता है र्क मम्मी को िुि करके पापा से र्मला देगा और पापा उसे बहुत मानते हैं। इसर्लए वह पापा और मम्मी में मेल नहीं करा पाता है।
  • 18. 3 अत्यचधक कोिलता की भावना - मम्मी के अत्यर्धक प्रेम के कारण बंटी में कोमलता आ जाती है । र्जसे लड़कपन कहा जा सकता है । बंटी की मम्मी उसे दूसरे बच्चों से काम र्मलने देती है। र्जससे कारण बंटी के व्यर्ित्व का र्वकास नहीं हो पाता है। वह िमीले स्वभाव का बन जाता है। र्पता से दूर रहने के कारण मम्मी िूिी और अन्य औरतों के बीच रहने के कारण औरतों की तरह र्वकर्सत होता है। अचवकचसत व्यचित्व - बंटी औरतों के बीच रहने के कारण पूणि र्वकर्सत नहीं हो पाता । उसके स्वभाव , व्यवहार, बातचीत आर्द का उस पर अर्धक असर पड़ता है। वह बाहरी लड़कों के सार् कम र्मलता है और वह कै रम जैसा घरेलू िेल िेलता है । बंटी के र्पताजी कहते हैं र्क बंटी र्िके टर ,हाकी ,तैराकी आर्द लड़कों वाले िेलों में र्हस्सा लेगा। अजय अपनी पत्नी को मनो चेतावनी के स्वर में कहता है र्क “मुझे डर है िकुन.... तुम्हारा यह अर्तररि स्नेह बंटी को बौना न बना दे।” िााँ के प्रचत प्रेि- बंटी मातृ भि भी है । उसे अपनी मााँ से बहुत अर्धक प्यार है। उसके प्रेम में बाल सुलभ स्वच्छ प्रेम है। वह मााँ के मुाँह पर काले र्तल को सहला कर मााँ को िुि करना चाहता है। वह मााँ से उन राजकुमाररयों की कहानी भी सुन चुका है जो अनेक कष्ट झेल कर भी अपनी मााँ से र्मलते हैं । इन कहार्नयों का प्रभाव भी उस पर पड़ता है । बंटी मााँ के प्रर्त प्रेम का एकार्धकार चाहता है। इसर्लए वह नहीं चाहता र्क उसकी मााँ डॉक्टर जोिी से बातचीत में लगी रहे। डिपोक व्यचित्व- बंटी बहुत डरपोक व्यर्ित्व का लड़का बन गया है । इसका मुख्य कारण है र्क बराबर मम्मी के घेरे में रहना और लड़कों से कम र्मलना । वह पररयों और डाइनो की कर्ा सुनता है । वह उनसे प्रभार्वत होकर डरपोक और अंतमुििी प्रवृर्त्त का बालक बन जाता है । वह 8-9 वर्ि का हो जाने पर भी अकेले सोने में डरता है । अकेले में लपलपाती जीभ वाले रािस , तीन आाँिो वाली चुड़ैल , हड्र्डयों के नाचते ढांचे देिने लगता है। असािान्य औि सािस्या बालक - बंटी असामान्य और समस्या बालक बन जाता है । वह बात –बात में तनक जाता है और असामान्य व्यवहार करता है। लेर्िका ने उसके र्चंतन के असामान्य रूप को र्चर्त्रत र्कया है। माता-र्पता के बुरे व्यवहार से बंटी असामान्य बालक बन जाता है। उसे मााँ-बाप का सरल ,उन्मुि और साह्चयिजनक प्रेम नहीं र्मलता है। पररणाम यह होता है र्क वह िकुन, अजय और जोिी तीनों के र्लए समस्या उत्पन्न करता है। वह कहीं भी र्टक नहीं पाता।
  • 19. 4 एकाचधकाि की भावना - बंटी के चररत्र की यह भी एक र्विेर्ता है र्क वह अपनी मम्मी पर एकार्धकार रिना चाहता है। ऐसी र्स्र्र्त का स्पष्ट कारण यह है र्क उसकी मााँ ही उसके जीवन में ही सविस्व है। वह मम्मी से आगे बढ़कर सोच ही नहीं पाता है। उसके सारे र्ियाकलाप अंतत: मम्मी के प्रसन्न रिने में ही सीर्मत रहते हैं। इच्छाओंका अचधक चवकास - प्रस्तुत उपन्यास में बंटी के दुि का मूल कारण यही है र्क वह मम्मी से एकर्नष्ठ प्रेम की इच्छा रिता है। उसकी यह इच्छा इतनी अर्धक र्वकर्सत हो गई है र्क उसके दुि का कारण बन गई है। इच्छाओंका अर्धक र्वकास जहां मनुष्य को दुष्कर कायों में सिलता र्दला सकता है वहीं र्कसी - र्कसी इच्छा का अर्त र्वकास बालक में तरह-तरह की मानर्सक र्वकृर्तयां उत्पन्न कर देता है । बंटी में भी इसी प्रकार की र्वकृर्तयां र्वकर्सत हो चुकी है। 2.3 शकु न का चरित्र चचत्रण आपका बंटी उपन्यास , मन्नू भंडारी कृत एक प्रर्सद्ध और चररत प्रधान उपन्यास है । इसकी नार्यका िकुन है । वह पूणित: नार्यका की भूर्मका अदा भी नहीं कर पाती है। जब तक उसका संबंध अजय के सार् रहता है, तब तक वह नार्यका रहती है। लेर्कन बाद में एक प्रमुि पात्र की तरह रह जाती है और रचना नायक प्रधान बन जाता है । इस उपन्यास में र्जतने भी नारी-पात्र हैं, उनमें िकुन सबसे र्वर्िष्ट है। उसकी र्वर्िष्टता गुण, रूप, बुर्द्ध सभी दृर्ष्टयों से लर्ित होती है। वह न के वल पढ़ी-र्लिी युवती, बर्कक कॉलेज की एक प्रर्सपल है। वह बुर्द्धजीवी है और समाज में उसकी प्रर्तष्ठा और धाक है। उपन्यास में एक भी ऐसी नारी नहीं, जो र्कसी भी दृर्ष्ट से िकु न का मुकाबला कर सके । िकुन के चररत्र का प्रभाव रचना के नायक बंटी पर अंत तक पड़ता रहता है। इससे उसकी र्वर्िष्टता र्नम्नर्लर्ित है- उच्च चशिा प्राप्त नािी - िकुन उच्च र्ििा प्राप्त नारी है। वह पहले र्वभागाध्यि र्ी बाद में र्प्रंर्सपल बन जाती है। उच्च र्ििा प्राप्त होने के कारण उसमें अहम तत्वों का समावेि हो जाता है। लेर्िका के िब्दों में उसकी मम्मी जब कॉलेज जाने के र्लए तैयार होने लगती है । तब बंटी को लगता है र्क अब वह उसकी मम्मी नहीं रह गई कोइ और दबंग औरत बन गई है। बंटी को ऐसा लगता है र्क वह घर वाली मम्मी नहीं है । उसका चेहरा हरदम सख्त रहता है। उसकी बोली में डांट रहती है।
  • 20. 5 अत्यचधक स्वाचभिानी - िकुन एक अत्यंत स्वार्भमानी नारी है । और उसका स्वार्भमान उस सीमा तक पहुंच चुका है र्क वह पर्त को िोकर भी टूटना नहीं सीिी है। इस र्स्र्र्त को स्पष्ट करते हुए लेर्िका ने कहा है “जाने कैसी लक्ष्मणरेिा है अपने अहं या स्वार्भमान की या अपने कं गलेपन और अपमान की , र्क इसके पार वह र्कसी को नहीं आने देना चाहती है। क्या बताएं र्क आगे क्या हो सकता है या र्क पहले क्या हुआ र्ा।” पद का अहंकाि - िकुन उच्च र्ििा प्राप्त नारी होने के कारण स्वर्नभिर और उच्च पद पर आसीन है । इसके कारण उसमें स्वार्भमान आ जाता है । उसका स्वार्भमान उसे अजय से दूर ले गया। िलत: पर्त पत्नी के मध्य इतनी अर्धक दूरी हो गई एक बार अलग होने के बाद दोनों एक दूसरे से र्मल ही नहीं सके । वह कभी भी अजय के सामने झुकी नहीं बर्कक उसका प्रयत्न हमेिा अजय को नीचा र्दिाने की रही। इसके मूल में कहीं ना कहीं पद का अहंकार र्नर्हत है । सिायोजन का अभाव- िकुन के दांपत्य जीवन के र्बिराव का मूल कारण यही है र्क वह अजय के समि अपनी महानता प्रर्तर्ष्ठत करने में ही लगी रही। उसने झुकना नहीं सीिा बर्कक उसकी बराबर कोर्िि यही रही र्क वह अजय को नीचा र्दिाए । इस भावना को लेकर चलने वाली नारी सुिी दांपत्य जीवन के स्वप्न कै से देि सकती है ।लेर्िका के अनुसार “समझौते का प्रयत्न भी दोनों में अंडरस्टैंर्डंग पैदा करने की इच्छा से नहीं होता र्ा। वरन दूसरे को परार्जत करके अपने अनुकूल बना लेने की आकांिा से होता र्ा”। दुचवधापूणण िन- िकुन र्नरंतर दुर्वधा पूणि जीवन र्बताती है। उसके जीवन में अनेक बार ऐसे अवसर आए हैं जबर्क वह समय पर र्नणिय नहीं ले सकी ।इस कारण उसे पश्चाताप भी हुआ ।अजय से संबंध र्वच्छेद करने में उसे अनेक वर्ि लग गये। इसके बाद डॉ जोिी से संपकि करके उसे भरा पूरा सुि र्मला ।परंतु इसके सार् ही यह कचोट भी सताती रही र्क यह र्नणिय उसने पहले क्यों नहीं र्लया ? उनकी मन की र्स्र्र्त के बारे में लेर्िका कहती हैं- “मन न इस बात को मानता है न उस बात को । सही गलत की बात को वह नहीं जानती और जानना भी नहीं चाहती। इस समय इतना ही कािी है र्क जीवन में र्जतना भरा पूरा इन र्दनों महसूस कर रही है पहले कभी नहीं र्कया”।
  • 21. 6 असफल िातृत्व - िकुन का मतृत्व तो र्नर्श्चत ही असिल रहा है ।इसका सबसे बड़ा प्रमाण है बंटी। र्जसे लेकर उसे तरह-तरह की सुिद और दुिद अनुभूर्तयां हुई हैं ।िकुन दांपत्य जीवन और संतान के सार् संबंध का र्नवािह नहीं कर पाती । उसके और जोिी के अनावृत रूप को र्दिाकर लेर्िका ने इसे स्पष्ट कर र्दया है। बंटी के सार् रहकर अजय को नीचा र्दिाना चाहती हैं और इस कारण वह बंटी पर इतना छाई रहती है र्क बंटी के स्वतंत्र व्यर्ित्व का र्वकास नहीं हो पाता । अकु शल पत्नी - एक पत्नी के रूप में िकुन वैसी ही असिल रहती है जैसे मााँ के रूप में। यर्द िकुन र्ोड़ा भी झुक कर चलने की सोचती तो इस बात की बहुत संभावना र्ी र्क उसका अजय उससे अलग नहीं होता ।वस्तुत: अहं ने उसके जीवन में र्विेर्कर उसके दांपत्य जीवन में र्वर् घोल र्दया। भारतीय नारी के आदिि उनके व्यर्ित्व से तर्नक भी मेल नहीं िाते। भारतीय नारी को समपिण का पयािय समझा जाता है र्कं तु िकुन समपिण करना नहीं जानती ।वह र्नरंतर इसी कोर्िि में रहती है र्क वह र्कसी न र्कसी तरह अपने पर्त को नीचा र्दिाए। उसके अहं को आहत करें। उसे पीड़ा पहुंचाए। कदार्चत इसी कारण िकुन अजय के र्लए एक मनचाही पत्नी न बन सकी। 2.4 अजय का चरित्र चचत्रण अजय का पररचय पहली बार वकील चाचा के जररए होता है। जब वकील चाचा िकुन को यह सूर्चत करते हैं र्क अजय जब र्वर्धवत रूप से िकुन से अलग होना चाहता है। देिा जए तो अजय और िकुन बहुत पहले ही अलग होकर रहने लगे र्े। र्कं तु जब अजय इस अलगाव की र्स्र्र्त पर कानून की मुहर लगवा लेना चाहता र्ा। जैसे र्क दोनों अर्ाित अजय स्वयं और िकुन भी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जी सके । अजय के चररत्र की र्नम्नर्लर्ित र्विेर्ताएं हमारे समि उपर्स्र्त होता है। स्वाचभिान की भावना - अजय भी िकुन की तरह ही बहुत स्वार्भमानी है क्योंर्क दोनों पिों में एक पि भी सहनिील होता तो इनका दांपत्य जीवन सुिद रहता । यद्यर्प उपन्यास में अजय स्वार्भमानी होने के स्पष्ट संके त नहीं र्मलते । तो भी इतना तो र्नर्विवाद
  • 22. 7 है र्क ताली एक हार् से नहीं बजती। यर्द अजय र्कसी प्रकार अपने मन को समझा लेता तो न तो यह युगल इस तरह टूट गया होता और न ही बंटी अपनी मम्मी के र्लए बाधा र्सद्ध होता। व्यवहाि कु शल व्यचि - अजय र्नकच्य ही व्यवहार कु िल व्यर्ि है ।जब उसने बहुत स्पष्ट रूप से यह सामझ र्लया र्क िकुन के सार् उसका र्नवािह नहीं हो सकता तो उसने अपना अलग मागि करने में कोई संकोच नहीं र्कया । दूसरी ओर से िकुन अपेिाकृत अर्धक भावुक है । िकुन ने पूरे 7 वर्ि अर्नकच्य की र्स्र्र्त में र्बता र्दए। र्कं तु अजय ने एक योजनाबद्ध तरीके से काम र्कया । उसने यर्ासंभव उनके अलगाव को कानूनी रूप देने के र्लए वकील चाचा के माध्यम से कायिवाही की ।वकील चाचा अच्छी तरह जानते हैं र्क अजय एक व्यवहार कुिल व्यर्ि है । वह जीवन को जीना जानता है ।घसीटता नहीं है।अजय ने मीरा से िादी कर ली और उसका यह नया अध्याय र्नश्चय ही सुिद रहा। समय पर र्नणिय लेने की उसमें अद्भुत िमता है जबर्क इस दृर्ष्ट िकुन बहुत पीछे रह जाती है। िचनात्िकता से परिपूणण दृचि- अजय की जीवन दृर्ष्ट रचनात्मकता से पररपूणि है। वह अपने जीवन की बात सोचता है। एक बार वह र्नणिय ले लेता है र्क िकुन के सार् उसकी नहीं पटेगी तब वह मुड़कर र्पछे देिने की बजाय अपने भावी जीवन की योजना बनाने लग जाता है । उसके मन में कहीं भी कोई भ्रम नहीं है । उसकी दृर्ष्ट सीधी और सपाट है । एक उदाि चपता - र्पता के रूप में अजय िकुन की तुलना में कहीं अर्धक उदार है। िकुन से वह कहीं अर्धक सिल भी रहा है ।बंटी के प्रर्त मम्मी की दृर्ष्ट के वल मतृ प्रेम की ही नहीं रही। उसके सार् कई अन्य लक्ष्य जुड़े रहे हैं ।िकुन बंटी की मााँ जरुर है परंतु वह उसे मानर्सक रुप से स्वस्र् बालक नहीं बना पाई। इसका एकमात्र कारण है र्क वह र्नराधार भ्रम के जाल में जकड़ी रही। जब एक बार अजय बंटी को लेने आया तो िकुन के सोचने की र्दिा इस प्रकार र्ी । “िकुन ने िादी कर ली और इससे अजय के अहं को कहीं चोट पहुंची है। बंटी को ले जाकर वह के वल उस आहत अहं से सहलाना चाहता है। वह िकु न को टाचिर करना चाहता है”। इसके उकटा अजय में ऐसी बात नहीं है। वह बंटी को पूरे मन से चाहता है और सच्चे अर्ों में उसका र्हत र्चंतक हैं। वह चाहता है र्क उसका पुत्र अन्य बालकों के सार् रहे तार्क उसका एक स्वतंत्र व्यर्ित्व र्वकर्सत हो सके ।
  • 23. 8 संतुचलत व्यवहाि - अजय भावनाओंमें रहकर नहीं अर्पतु यर्ार्ि के जीवन को लेकर जीता है । उसकी मूल दृर्ष्ट यर्ार्ि मुिी है। उसके व्यर्ित्व एक प्रमुि र्विेर्ता यह है र्क वह अपना मानर्सक संतुलन र्कसी भी र्स्र्र्त में र्बगड़ने नहीं देता है। िकुन से अलगव के बाद वह अनेक बार इधर आया भी और बंटी से र्मला है भी है। एक आद बार तो िकुन से उसका आमना-सामना भी हुआ। र्कन्तु ऐसे अवसरों पर भी वह न तो भवुकत का र्िकार हुआ और न उसके व्यवहार में र्कसी प्रकार की कटुता र्दिती है। जीवन के चनणणय िे दूदणचशणता- दूरदर्ििता अजय के स्वभाव की अन्यतम र्विेर्ता है। जीवन की यर्ार्िता में र्वश्वास करता है और इसर्लए उसका दृर्ष्टकोण अर्धक व्यावहाररक होता है। वह भी अपने जीवन में अनेक महत्वपूणि र्नणिय लेता है। र्कं तु उसे कभी भी अपने र्लए हुए र्नणिय पर पश्चाताप नहीं होता ।अजय की दूरदर्ििता के कारण ही उसका समूचा जीवन िगुन की तुलना में अर्धक सुि पूणि और सिल कहा जा सकता है। अजय के व्यर्ित्व की र्विेर्ता है र्क वह बरसों बाद भी र्स्र्र्त का अनुमान लगा सकता है और तदनुसार र्नणिय भी ले सकता है। 2.5 डॉ जोशी का चरित्र चचत्रण डाक्टर जोिी िहर के बड़े र्चर्कत्सक हैं। बंटी की मम्मी ने जब से अजय से र्वर्धवत तलाक ले र्लया र्ा । तभी से उसके मन के र्कसी कोने में डॉक्टर जोिी का र्चत्र भरने लगा र्ा । उसे मालूम र्ा र्क डॉक्टर की पत्नी का देहांत हो चुका है। अत: वह कभी कभी डॉक्टर जोिी को लेकर सुिद ककपनाओ में िो जाया करती र्ी। पाठक को डॉक्टर जोिी का पररचय उस समय होता है, जब एक रात बंटी की मम्मी को छोड़ने के र्लए डॉक्टर जोिी अपनी कार में आते हैं। तभी डॉक्टर साहब के सार् बंटी का पहला पररचय होता है। उनके चररत्र की र्विेर्ताएं इस प्रकार हैं – योग्य चचचकत्सक - जोिी जी की गणना िहर के योग्य र्चर्कत्सकों में की जाती है। िकुन के सार् जोिी जी का पहला पररचय एक आत्मीय डाक्टर के रूप में उस समय हुआ र्ा ।जब बंटी बीमार पड़ गया र्ा। उस समय के डा जोिी को याद करते हुए िकुन सोचती है र्क “र्पछ्ली सर्दियों मे बंटी बीमार हो गया र्ा तो र्कतनी आत्मीयता और एहर्तयात से संभाला र्ा उसे । के वल बंटी को ही नहीं बुिार के बढ़ते रहे पॉइंट के सार् हौसला िोती और घबराती िकुन को भी संभाला र्ा ।“
  • 24. 9 आत्िीयता पूणण व्यवहाि - र्कसी भी र्चर्कत्सक की प्रमुि र्विेर्ता यह होती है र्क रोर्गयों के प्रर्त उसके व्यवहार में र्कतनी आत्मीयता है। माना र्क ईलाज मे दवा - दारू का र्विेर् महत्व है। पर र्चर्कत्सक का आपना व्यवहार भी अपना प्रभाव रिता है। िकुन को डॉ जोिी के इसी अपनेपन ने प्रभार्वत र्कया र्ा । अजय से संबंध र्वच्छेद हो जाने के बाद बंटी की बीमारी के कारण ही दोनों का पररचय हुआ र्ा। धीरे-धीरे कारण हट गया पररणाम बाकी रह गया । एक सफल प्रेिी - डा जोिी एक कुिल र्चर्कत्सक ही नही एक सिल प्रेमी भी है। के वल धन वैभव और रूप सौंदयि के सहारे ही नारी हृदय नहीं जीता जा सकता है। नारी का हृदय जीतने की सबसे पहली िति है र्क उसे इस बात का र्वश्वास आ जाए र्क वह अपने आप को र्जस व्यर्ि को समर्पित करने जा रही है उस व्यर्ि के हार् में उसका भर्वष्य सुरर्ित है । िकुन का दांपत्य जीवन र्बिर चुका र्ा । उसे उसके पर्त अजय से प्रेम नहीं र्मल पाया र्ा। वह र्कसी पुरुर् को सहारा प्राप्त करने के र्लए आतुर र्ी । दूसरी ओर जोिी जी र्वधुर र्े । दोनों को एक दूसरे की आवकयकता र्ी। दोनों एक दूसरे के पूरक र्े। व्यवहाि कु शाल व्यचि – जोिी जी भावनाओंके सार् नहीं जीवन जीते अर्पतु यर्ार्ि में जीते हैं। जोिी जी अपनी व्यवहार कुिलता पररचय तब देते हैं जब िकुन की पहली मुलाकात में उनकी पत्नी का देहांत हो चुका है। इस बात का अर्ि और भी महत्वपूणि हो जाता है जो सभी लोग जानते हैं र्क िकुन अपने पर्त से अलग रहती है। स्पषटवाचदता - स्पष्ट्वार्दता डॉ जोिी के चररत्र की एक अन्यतम र्विेर्ता । बंटी को लेकर डॉक्टर जोिी ने िकुन को समझाने का बहुत प्रयास र्कया । डॉक्टर यह जानते हैं र्क िकुन के र्लए बंटी बहुत महत्त्वपूणि है। वे इसर्लए बंटी के संबंध में िकुन से कुछ भी र्िकायत नही करते क्योंर्क वे जानते जानते हैं ऐस करने का अर्ि िकु न को उत्तेर्जत करना होगा। यह सब जानते हुए भी डॉक्टर जब कभी आवकयकता समझते हैं िकुन को बंटी के बारे में समझाते हैं।
  • 25. 10 2.7 बोध प्रश्न 1. बंटी के चररत्र की र्विेर्ताएाँ बताइए। 2. मााँ के रूप में िकुन कै सी है ? 3. प्रेमी के रूप में डॉ. जोिी कैसे है ?
  • 26. 1 इकाई – 3 आपकी बंटी उपन्यास का मूल उद्देश्य और विविध समस्याएँ इकाई की रुपरेखा 3.0 उद्देश्य 3.1 प्रस्तािना 3.2 नई पृष्ठभूवम के रूप में शहरी जीिन का वित्रण 3.3 अिांवित तनाि से तलाक की समस्या 3.4 शहरी जीिन के विखािटी प्रेम का वित्रण 3.5 बंटी की समस्या को विखाना 3.6 पवत पत्नी के झगडे का बच्िे पर बुरा प्रभाि 3.7 मानि की गहराइयों का उद्घाटन 3.8 वशवित की अपेिा अवशवित अवधक संिेिनशील और सरल 3.9 सारांश 3.10 बोध प्रश्न 3.0 उद्देश्य इस रचना का उद्देश्य बंटी की समस्या का चचत्रण करना है। लेचिका ने चििाया है चक आज के पढे-चलिे नौकरी पेशा करने वाले पचि-पत्नी अपने अहंकार और व्यस्ििा के कारण आपस में टकरािे हैं। अपनी महत्वाकांक्षा की पूचिि में संिान के जीवन की परवाह नहीं करिे हैं । शकुन अध्याचपका है ,अजय मैनेजर है। उनके आपसी टकराव में बंटी अपने