Ram Lakshman Parshuram Samvad PPT Poem Class 10 CBSEOne Time Forever
This is a PPT Based on the Poem of Class 10 CBSE Ram-Lakshman-Parshuram Samvad Including It's Summary, Word Meaning, Question-Answers, Each Paragraph Explanation Along With Some Pictures. Hopefully It Helps You. Thank You.
समृति class 9 sanchayan with images and writer detailsAyush kumar
Its a presentation on chapter smriti of sanchayan class 9.
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posted by- Aayush Kumar, Amity International school
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Sangya Introduction for beginners. Learn Sangya in hindi, संज्ञा की परिभाषा सरल शब्दोंं में एवंं संज्ञा के भेद , Learn Hindi Grammar, Basic Hindi grammar, हिन्दी सीखिए, चित्रों के साथ संज्ञा का सरल परिचय,
The Slide is about the life of the famous writer Munshi Premchand. Self done and hope it's up to the point .
Done By : Varun Kakkar ( IIS, Sharjah)
If the Transcript is Not Seen Properly Please refer below :)
Sharjah, UAE
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This is a PPT on Mahadevi Verma and this PPT have all information about Mahadevi Verma. This powerpoint presentation is in hindi on Mahadevi Verma.This PowerPoint presentation have all information about Mahadevi Verma like his birth,education,marriage,death etc.If you think that this presentation is helpful for you then please like this presentation
ABOUT Rabindranath Tagore
Born Rabindranath Thakur
7 May 1861
Calcutta, Bengal Presidency, British India
Died 7 August 1941 (aged 80)
Calcutta
Occupation Writer, painter
Language Bengali, English
Nationality Indian[citation needed]
Ethnicity Bengali
Literary movement Contextual Modernism
Notable works Gitanjali, Gora, Ghare-Baire, Jana Gana Mana, Rabindra Sangeet, Amar Shonar Bangla (other works)
Notable awards Nobel Prize in Literature
1913
Spouse Mrinalini Devi (m. 1883–1902)
Children five children, two of whom died in childhood
Relatives Tagore family
2. प्रेमचंद (३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्तूबर १९३६) हिन्दी और उदूू के
मिानतम भारतीय लेखकों में से एक िैं। मूल नाम धनपत राय
श्रीवास्तव वाले प्रेमचंद कोनवाब राय और मंशी प्रेमचंद के नाम से
भी जाना जाता िै। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को
देखकर बंगाल के ववख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने
उन्िें उपन्यास सम्राट किकर संबोधित ककया था। प्रेमचंद ने
हिन्दी किानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का ववकास ककया
जजसने पूरी शती के साहित्य का मागूदशून ककया। आगामी एक पूरी
पीढी को गिराई तक प्रभाववत कर प्रेमचंद ने साहित्य
की यथाथूवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य
की एक ऐसी ववरासत िै जजसके बबना हिन्दी के ववकास का
अध्ययन अिूरा िोगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागररक,
कु शल वक्ता तथा सुिी संपादक थे।
3. प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी के
ननकट लमिी गााँव में िुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी
देवी था तथा वपता मुंशी अजायबराय लमिी में डाकमुंशी
थे। उनकी शशक्षा का आरंभ उदूू, फारसी से िुआ और जीवनयापन
का अध्यापन से। पढने का शौक उन्िें बचपन से िी लग गया। 13
साल की उम्र में िी उन्िोंने नतशलस्मे िोशरूबा पढ शलया और
उन्िोंने उदूू के मशिूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', शमरजा रुसबा
और मौलाना शरर के उपन्यासों से पररचय प्राप्त कर
शलया। १८९८ में मैहिक की परीक्षा उत्तीणू करने के बाद वे एक
स्थानीय ववद्यालय में शशक्षक ननयुक्त िो गए। नौकरी के साथ
िी उन्िोंने पढाई जारी रखी १९१० में
उन्िोंने अंग्रेजी, दशून, फारसी और इनतिास लेकर इंटर पास ककया
और १९१९ में बी.ए. पास करने के बाद शशक्षा ववभाग के इंस्पेक्टर
पद पर ननयुक्त िुए।
4. प्रेमचंद आिुननक हिन्दी किानी के वपतामि माने जाते
िैं। यों तो उनके साहिजत्यक जीवन का आरंभ १९०१ से
िो चुका था पर उनकी पिली हिन्दी किानी सरस्वती
पबत्रका के हदसंबर अंक में १९१५ में सौत नाम से
प्रकाशशत िुई और १९३६ में अंनतम किानी कफन नाम
से। बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी किाननयों के
अनेक रंग देखने को शमलते िैं। उनसे पिले हिंदी में
काल्पननक, एय्यारी और पौराणणक िाशमूक रचनाएं िी
की जाती थी। प्रेमचंद ने हिंदी में यथाथूवाद की
शुरूआत की। "
5. प्रेमचन्द की रचना-दृजटट ववशभन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त
िुई। बिुमुखी प्रनतभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास,
किानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण
आहद अनेक वविाओं में साहित्य की सृजटट की।
प्रमुखतया उनकी ख्यानत कथाकार के तौर पर िुई और
अपने जीवन काल में िी वे ‘उपन्यास सम्राट’ की
उपाधि से सम्माननत िुए। उन्िोंने कु ल १५ उपन्यास,
३०० से कु छ अधिक किाननयााँ, ३ नाटक, १० अनुवाद,
७ बाल-पुस्तकें तथा िजारों पृटठों के लेख, सम्पादकीय,
भार्षण, भूशमका, पत्र आहद की रचना की
6. प्रेमचंद के उपन्यास न के वल हिन्दी उपन्यास साहित्य में बजल्क
संपूणू भारतीय साहित्य में मील के पत्थर िैं। प्रेमचन्द कथा-
साहित्य में उनके उपन्यासकार का आरम्भ पिले िोता िै। उनका
पिला उदूू उपन्यास (अपूणू) ‘असरारे मआबबद उर्फू देवस्थान
रिस्य’ उदूू साप्ताहिक ‘'आवाज-ए-खल़्'’ में ८
अक्तूबर, १९०३ से १ फरवरी, १९०५ तक िारावाहिक रूप में
प्रकाशशत िुआ। उनका दूसरा उपन्यास 'िमखुमाू व िमसवाब'
जजसका हिंदी रूपांतरण 'प्रेमा' नाम से 1907 में प्रकाशशत िुआ।
चूंकक प्रेमचंद मूल रूप से उदुू के लेखक थे और उदूू से हिंदी में
आए थे, इसशलए उनके सभी आरंशभक उपन्यास मूल रूप से उदूू
में शलखे गए और बाद में उनका हिन्दी तजुूमा ककया गया।
सेवासदन १९१८,प्रेमाश्रम१९२२,रंगभूशम
१९२५,ननमूला१९२५,कायाकल्प१९२७,गबन १,९२८,कमूभूशम
१९३२,गोदान १९३६,मंगलसूत्र (अपूणू)
7. डॉ. कमलककशोर गोयनका ने प्रेमचंद की संपूणू हिंदी-उदूू किानी को प्रेमचंद किानी
रचनावली नाम से प्रकाशशत कराया िै। उनके अनुसार प्रेमचंद ने कु ल ३०१ किाननयााँ
शलखी िैं जजनमें ३ अभी अप्राप्य िैं। प्रेमचंद का पिला किानी संग्रि सोजे
वतन नाम से जून १९०८ में प्रकाशशत िुआ। इसी संग्रि की पिली किानी दुननया का
सबसे अनमोल रतन को आम तौर पर उनकी पिली प्रकाशशत किानी माना जाता
रिा िै। डॉ गोयनका के अनुसार कानपूर से ननकलने वाली उदूू माशसक
पबत्रका जमाना के अप्रैल अंक में प्रकाशशत सांसाररक प्रेम और देश-प्रेम (इश्के दुननया
और िुब्बे वतन) वास्तव में उनकी पिली प्रकाशशत किानी िै।उनके जीवन काल में
कु ल नौ किानी संग्रि प्रकाशशत िुए- 'सप्त सरोज', 'नवननधि', 'प्रेमपूणणूमा', 'प्रेम-
पचीसी', 'प्रेम-प्रनतमा', 'प्रेम-द्वादशी', 'समरयात्रा', 'मानसरोवर' : भाग एक व दो,
और 'कफन'। उनकी मृत्यु के बाद उनकी किाननयां 'मानसरोवर' शीर्षूक से 8 भागों
में प्रकाशशत िुई। प्रेमचंद साहित्य के मुु्दराधिकार से मुक्त िोते िी ववशभन्न
संपादकों और प्रकाशकों ने प्रेमचंद की किाननयों के संकलन तैयार कर प्रकाशशत
कराए। उनकी किाननयों में ववर्षय और शशल्प की वववविता िै। उन्िोंने मनुटय के
सभी वगों से लेकर पशु-पक्षक्षयों तक को अपनी किाननयों में मुख्य पात्र बनाया िै।
उनकी किाननयों में ककसानों, मजदूरों, जस्त्रयों, दशलतों, आहद की समस्याएं गंभीरता
से धचबत्रत िुई िैं। उन्िोंने समाजसुिार, देशप्रेम, स्वािीनता संग्राम आहद से संबंधित
किाननयााँ शलखी िैं।
8. प्रेमचंद ने 'संग्राम' (1923), 'कबूला' (1924),
और 'प्रेम की वेदी' (1933) नाटकों की रचना
की। ये नाटक शशल्प और संवेदना के स्तर पर
अच्छे िैं लेककन उनकी किाननयों और
उपन्यासों ने इतनी ऊाँ चाई प्राप्त कर ली थी
कक नाटक के क्षेत्र में प्रेमचंद को कोई खास
सफलता निीं शमली। ये नाटक वस्तुतः
संवादात्मक उपन्यास िी बन गए िैं।
9. प्रेमचंद एक संवेदनशील कथाकार िी निीं, सजग नागररक व
संपादक भी थे। उन्िोंने 'िंस', 'मािुरी', 'जागरण' आहद पत्र-
पबत्रकाओं का संपादन करते िुए व तत्कालीन अन्य सिगामी
साहिजत्यक पबत्रकाओं 'चांद', 'मयाूदा', 'स्वदेश' आहद में अपनी
साहिजत्यक व सामाजजक धचंताओं को लेखों या ननबंिों के
माध्यम से अशभव्यक्त ककया। अमृतराय द्वारा संपाहदत
'प्रेमचंद : ववववि प्रसंग' (तीन भाग) वास्तव में प्रेमचंद के लेखों
का िी संकलन िै। प्रेमचंद के लेख प्रकाशन संस्थान से 'कु छ
ववचार' शीर्षूक से भी छपे िैं। प्रेमचंद के मशिूर लेखों में ननम्न
लेख शुमार िोते िैं- साहित्य का उद्देश्य, पुराना जमाना नया
जमाना, स्वराज के फायदे, किानी कला (1,2,3), कौमी भार्षा के
ववर्षय में कु छ ववचार, हिंदी-उदूू की एकता, मिाजनी सभ्यता,
उपन्यास, जीवन में साहित्य का स्थान आहद।
10. ये भी गलत निीं िै कक वे आम भारतीय के रचनाकार
थे। उनकी रचनाओं में वे नायक िुए, जजसे भारतीय
समाज अछू त और घृणणत था. उन्िोंने सरल, सिज और
आम बोल-चाल की भार्षा का उपयोग ककया और अपने
प्रगनतशील ववचारों को दृढता से तकू देते िुए समाज के
सामने प्रस्तुत ककया। १९३६ में प्रगनतशील लेखक संघ
के पिले सम्मेलन की अध्यक्षता करते िुए उन्िोंने किा
कक लेखक स्वभाव से प्रगनतशील िोता िै और जो ऐसा
निीं िै वि लेखक निीं िै। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के
युग प्रवतूक िैं। उन्िोंने हिन्दी किानी में आदशोन्मुख
यथाथूवाद की एक नई परंपरी शुरू की।
11. प्रेमचंद एक सफल अनुवादक भी थे। उन्िोंने दूसरी
भार्षाओं के जजन लेखकों को पढा और जजनसे प्रभाववत
िुए, उनकी कृ नतयों का अनुवाद भी ककया। 'टॉलस्टॉय
की किाननयां' (1923), गाल्सवदी के तीन नाटकों का
'िडताल' (1930), 'चांदी की डडबबया' (1931) और
'न्याय' (1931) नाम से अनुवाद ककया। उनके द्वारा
रतननाथ सरशार के उदूू उपन्यास 'फसान-ए-आजाद' का
हिंदी अनुवाद 'आजाद कथा' बिुत मशिूर िुआ।
12. प्रेमचन्द उदूू का संस्कार लेकर हिन्दी में आए थे और हिन्दी
के मिान लेखक बने। हिन्दी को अपना खास मुिावरा और
खुलापन हदया। किानी और उपन्यास दोनो में युगान्तरकारी
पररवतून ककए। उन्िोने साहित्य में सामनयकता प्रबल आग्रि
स्थावपत ककया। आम आदमी को उन्िोंने अपनी रचनाओं का
ववर्षय बनाया और उसकी समस्याओं पर खुलकर कलम
चलाते िुए उन्िें साहित्य के नायकों के पद पर आसीन
ककया। प्रेमचंद से पिले हिंदी साहित्य राजा-रानी के ककस्सों,
रिस्य-रोमांच में उलझा िुआ था। प्रेमचंद ने साहित्य को
सच्चाई के िरातल पर उतारा। उन्िोंने जीवन और कालखंड
की सच्चाई को पन्ने पर उतारा। वे सांप्रदानयकता,भ्रटटाचार,
जमींदारी, कजूखोरी, गरीबी, उपननवेशवाद पर आजीवन
शलखते रिे। प्रेमचन्द की ज्यादातर रचनाएं उनकी िी गरीबी
और दैन्यता की किानी किती िै।