Collection of Powari Article/Poem. Powari is mother tounge of Powar(36 clan Panwar) of Vainganga valley in Central India who migrated from Malwa in beginning of Eighteenth century.
This pdf is a collection of articles and poems which written in Powari language. Powari langugae is spoken by Powar community of Vainganga Valley of Central India.
पोवारी भाषा बालाघाट, गोंदिया, भंडारा अना सिवनी जिला मा बस्या छत्तीस कुर का पंवार / पोवार समाज क़ी भाषा आय। पोवारी भाशा मा पोवारी साहित्यिक कार्यक्रम क़ी रचना इनका संग्रहण पोवारी साहित्य सरिता मा होसे।
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पोवारी भाषा बालाघाट, गोंदिया, भंडारा अना सिवनी जिला मा बस्या छत्तीस कुर का पंवार / पोवार समाज क़ी भाषा आय। पोवारी भाशा मा पोवारी साहित्यिक कार्यक्रम क़ी रचना इनका संग्रहण पोवारी साहित्य सरिता मा होसे।
Mithilesh written first_e_book_शुरुआत_shuruaat_initiative_mithilesh2020_writerMithilesh
... लिखने का शौक मुझे कब लगा, यह कुछ ठीक याद नहीं है, परन्तु मेरे पिताजी मुझे खूब पत्र भेजते थे. वह आर्मी से रिटायर हैं, और जब वह सेवा में थे, तब मैं अपने भाइयों के साथ घर से दूर पढाई करता था. पहले हॉस्टल में, फिर रूम लेकर आगे की पढाई के समय में पिताजी का पत्र बड़ा सम्बल था. बड़े लम्बे-लम्बे पत्र और छोटी-छोटी लिखावट में ऐसा प्रतीत होता था कि वह बहुत कुछ हमें बताना चाहते हैं. मुझे विश्वास है कि लेखन की आदत तभी से लगी होगी और समयानुसार इसमें सुधार आता गया. पढाई के बाद दिल्ली में उत्तम साहित्यकारों का सानिध्य मिला, जिसमें गुरुवर डॉ.विनोद बब्बर का नाम प्रमुख है. यह सभी लेख मेरी वेबसाइट (www.mithilesh2020.com) पर संकलित हैं और समय-समय पर जागरण, नवभारत टाइम्स इत्यादि ऑनलाइन माध्यमों के साथ विभिन्न छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होते रहे हैं. लेखनी में रोज नए शब्दों से परिचय होता है और विभिन्न शब्दों के अर्थ विभिन्न प्रकार से प्रयोग हुए दीखते हैं. सीखने के क्रम में अपने भाई, अपनी पत्नी को अपने लेख पढ़वा लेता हूँ, और दो चार शुभचिंतक फेसबुक पर उत्साह बढ़ाते रहते हैं. आप सभी का आशीर्वाद मेरे उत्साह को कई गुणा बढ़ा देगा, ऐसा मुझे विश्वास है. यदि एक भी लेख आप पढ़ें और उसमें कहीं सटीकता लगे तो अपनी प्रतिक्रिया से जरूर अवगत कराएं.
आपका अपना-
मिथिलेश.
March-2020 Free Monthly Hindi Astrology Magazines, You can read in Monthly GURUTVA JYOTISH Magazines Astrology, Numerology, Vastu, Gems Stone, Mantra, Yantra, Tantra, Kawach & ETC Related Article absolutely free of cost.
GURUTVA JYOTISH MONTHLY E-MAGAZINE MARCH-2020
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका मार्च-2020 में प्रकशित लेख
चैत्र नवरात्र विशेष विशेष
e Magazine in Powari Langugae.
Powari language is spoken by Powar community in Vainganga Valley Central India. Powar are group of 36 clan which migrated from western India in the era of Aurngjeb and settled intially at Nagardhan near Nagpur and finally settled in Vainganga valley. Presntly these known as 36 clan Panwar or Powar community.
Mayari, is a peotry book written in Powari langugae by Engineer Gowardhan ji Bisen. Powari is language spoken by Powar(Panwar) community of Vainganga Valley of Central India.
The peotry book written in Powari langugae by Sau. Fulwanta Bai Jiyalal Chaudhary. Powari is language spoken by Powar(Panwar) community of Vainganga Valley of Central India.
Mithilesh written first_e_book_शुरुआत_shuruaat_initiative_mithilesh2020_writerMithilesh
... लिखने का शौक मुझे कब लगा, यह कुछ ठीक याद नहीं है, परन्तु मेरे पिताजी मुझे खूब पत्र भेजते थे. वह आर्मी से रिटायर हैं, और जब वह सेवा में थे, तब मैं अपने भाइयों के साथ घर से दूर पढाई करता था. पहले हॉस्टल में, फिर रूम लेकर आगे की पढाई के समय में पिताजी का पत्र बड़ा सम्बल था. बड़े लम्बे-लम्बे पत्र और छोटी-छोटी लिखावट में ऐसा प्रतीत होता था कि वह बहुत कुछ हमें बताना चाहते हैं. मुझे विश्वास है कि लेखन की आदत तभी से लगी होगी और समयानुसार इसमें सुधार आता गया. पढाई के बाद दिल्ली में उत्तम साहित्यकारों का सानिध्य मिला, जिसमें गुरुवर डॉ.विनोद बब्बर का नाम प्रमुख है. यह सभी लेख मेरी वेबसाइट (www.mithilesh2020.com) पर संकलित हैं और समय-समय पर जागरण, नवभारत टाइम्स इत्यादि ऑनलाइन माध्यमों के साथ विभिन्न छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होते रहे हैं. लेखनी में रोज नए शब्दों से परिचय होता है और विभिन्न शब्दों के अर्थ विभिन्न प्रकार से प्रयोग हुए दीखते हैं. सीखने के क्रम में अपने भाई, अपनी पत्नी को अपने लेख पढ़वा लेता हूँ, और दो चार शुभचिंतक फेसबुक पर उत्साह बढ़ाते रहते हैं. आप सभी का आशीर्वाद मेरे उत्साह को कई गुणा बढ़ा देगा, ऐसा मुझे विश्वास है. यदि एक भी लेख आप पढ़ें और उसमें कहीं सटीकता लगे तो अपनी प्रतिक्रिया से जरूर अवगत कराएं.
आपका अपना-
मिथिलेश.
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GURUTVA JYOTISH MONTHLY E-MAGAZINE MARCH-2020
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका मार्च-2020 में प्रकशित लेख
चैत्र नवरात्र विशेष विशेष
e Magazine in Powari Langugae.
Powari language is spoken by Powar community in Vainganga Valley Central India. Powar are group of 36 clan which migrated from western India in the era of Aurngjeb and settled intially at Nagardhan near Nagpur and finally settled in Vainganga valley. Presntly these known as 36 clan Panwar or Powar community.
Mayari, is a peotry book written in Powari langugae by Engineer Gowardhan ji Bisen. Powari is language spoken by Powar(Panwar) community of Vainganga Valley of Central India.
The peotry book written in Powari langugae by Sau. Fulwanta Bai Jiyalal Chaudhary. Powari is language spoken by Powar(Panwar) community of Vainganga Valley of Central India.
पोवार/पंवार समाज मध्यभारत में मुख्यतया बालाघाट, गोंदिया, भंडारा और सिवनी जिलों में निवासरत हैं। छत्तीस कुल का पंवार समाज के विवाह के नेंग दस्तूर और रीतिरिवाजों का उल्लेख इस लेख में किया गया हैं।
पोवारी बोली, मध्य भारत के बालाघाट, भंडारा, गोंदिया और सिवनी जिलों में निवासरत पंवार(पोवार) समाज के द्वारा बोली जाती है और यही उनकी मूल मातृभाषा भी हैं।
*"झुंझुरका", पोवारी बाल ई मासिक पत्रिका*
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क्षत्रिय पोवार(पंवार) समाज की मातृभाषा(मायबोली), पोवारी(पंवारी) में बच्चों की पत्रिका, *"झुंझुरका"* निश्चित ही नई पीढ़ी को अपनी पुरातन संस्कृति और भाषा से परिचित कराती है। छत्तीस कुल का पंवार(पोवार) समाज बालाघाट, गोंदिया, भंडारा और सिवनी जिलों में बसा है और पोवारी बोली ही समाज की मुख्य मातृभाषा है। इस भाषा के अस्तित्व को बचाये रखने और इसका नई पीढ़ी तक प्रचार-प्रसार के लिए इस मासिक e-पत्रिका, का योगदान सराहनीय है।
अठारवीं सदी में पोवार(पंवार) समाज मालवा-राजपुताना से नगरधन-नागपुर होते हुए विशाल वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा है। इतने विशाल क्षेत्र में बसने के कारण पोवारी बोली में कुछ क्षेत्रवार विभिन्नता भी देखने में आती है पर मूल पोवारी बोली और संस्कृति का स्वरूप सब तरफ समान है। आज जरूरत है कि अपने पूरखों की इस विरासत को सहेजकर रखें और इसे मूल स्वरूप में आने वाली पीढियों को सौंपे।
छत्तीस कुल से सजा पोवार(पंवार) समाज ने माँ वैनगंगा की पावन धरती पर खूब तरक्की की है और इस घने जंगल के क्षेत्र को कृषि प्रधान बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। साथ में अपने राजपुताना क्षत्रिय वैभव को बचाकर भी रखा है। विकास के साथ समाज ने आधुनिकता की दौड़ में अपनी विरासत, पोवारी बोली को कुछ खोना शुरू कर दिया, लेकिन साहित्यकारों ने अपनी कलम से इसे संजोना शुरू कर दिया है और समाज को जागृत करने हेतु काफी प्रयास किये जा रहे हैं।
भाषा और संस्कृति, किसी भी समाज की महान विरासत होती है और इसके पतन से समाज की पहचान खो जाति है और समाज का भी पतन भी संभव है। ऐसे ही छत्तीस कुर के पोवार/पंवार समाज की महान ऐतिहासिक विरासत, "पोवारी संस्कृति" है, जिसे समाज को हर हाल में बचाना ही होगा। अपनी संस्कृति और पहचान का रक्षण, हर किसी का धर्म हैं। भारत का संविधान भी इसकी पूरी स्वतंत्रता देता है और इसी दायरे में रहकर सभी पोवार भाई-बहनों को आगे आकर अपनी महान विरासत, भाषा, पुरातन सनातनी परंपराओं और रीति-रिवाज का संरक्षण और संवर्धन करना है।
यह e-पत्रिका, "झुंझुरका", समाज के युवाओं की अपनी मातृभाषा/मायबोली को बचाने की शानदार पहल है। इसी प्रकार और भी निरन्तर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रियों का इतिहास
मालवा से नगरधन होकर वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवारों का गौरवशाली लेकिन संघर्षों से भरा इतिहास रहा है। ग्यारहवी से तेरहवीं सदी तक मध्य भारत पर मालवा के पंवार राजाओं का शासन था लेकिन मालवा पर इनकी सत्ता खोने के बाद मध्यभारत में पंवारों का कोई और विशेष इतिहास नही मिलता। यह समय पंवारों का संघर्ष भरा समय था और वे समय समय पर भारतीय राजाओं का सहयोग करते रहे। मराठा काल और ब्रिटिश काल में लिखी किताबें, जनगणना दस्तावेज, जिला गैज़ेट और शासकीय रिपोर्ट्स में वर्तमान में वैनगंगा क्षेत्र में बसे पोवारों का व्यापक इतिहास मिलता है और इसमें कहा गया है कि इनका आगमन स्थानीय राजाओं के मुगलों के विरुद्ध संघर्ष हेतु सहयोग मांगने पर आगमन हुआ। इन शासकों ने पंवारों की वीरता को देखते हुए इन क्षेत्रों में स्थायी रूप से बसने के लिए प्रेरित किया।
वैनगंगा क्षेत्र में पोवारों की बसाहट : Central Provinces' Census, १८७२, के अनुसार वैनगंगा क्षेत्र के पोवार(पंवार) मुलत: मालवा के प्रमार(Pramars) है जो सर्वप्रथम नगरधन, जो की जिला नागपुर के रामटेक के पास है, आकर बसे थे। सन १८७२ की इस रिपोर्ट में कहा गया है की इन क्षेत्रों में पोवारों का मालवा से आगमन इस जनगणना के लगभग सौ वर्ष पूर्व हुआ है। इसका अर्थ यह है की १७७० के आसपास वैनगंगा क्षेत्र में पोवार बस चुके थे। भाटों की पोथियों में मालवा राजपुताना से परमार क्षत्रियों के नगरधन आकर, वैनगंगा क्षेत्र में विस्तारित होने का उल्लेख मिलता है। नगरधन, विदर्भ का सबसे पुराना ऐतिहासिक नगर है और ग्यारहवीं शदी के अंत में भी इन क्षेत्रों पर मालवा के प्रमार वंश का शासन था। ११०४ में मालवा नरेश उदियादित्य के पुत्र लक्ष्मण देव ने नगरधन आकर विदर्भ का शासन संभाला था। नागपुर प्रशस्ति और सेंट्रल प्रोविएन्सेस गैज़ेट १८७० में इसका उल्लेख मिलता है। १८७२ की जनगणना रिपोर्ट में लिखा है की पोवारों के द्वारा नगरधन में किले का निर्माण किया। चूँकि यह पहले से ही विदर्भ के विभिन्न राजवंशो की राजधानी रही है इसलिए उसी जगह पर पोवारों के द्वारा नगरधन में किले का निर्माण किया गया।
मराठा काल में भी नगरधन, महत्वपूर्ण सैनिक केंद्र था और सेना में पोवारों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। नगरधन और आसपास के क्षेत्रों में पोवारों ने अनेक बस्तियां बसाई थी। भाटो की पोथियों में भी नगरधन और नागपुर में तीन पीढ़ियों के बसने की जानकारी मिलती हैं। उज्जैन से आये श्री दिगपालसिंह बिसेन सर्वप्रथम नगरधन आये थे। पोथी में ७१३ शब्द लिखा हैं और सम्भवतया यह १७१३ होगा जब उनका परिवार नगरधन आया होगा। उनके पुत्र श्री सिरीराज और लक्ष्मणदेव बिसेन के नागपुर में बसने का उल्लेख पोथी में दिया हैं। इसी प्रकार पोवारों के अन्य कुलों का मालवा राजपुताना के विभिन्न क्षेत्रों से नगरधन आकर वैनगंगा क्षेत्र की ओर विस्तार का विवरण हमारे भाट स्व. श्री बाबूलाल जी की पोथी में उल्लेख हैं। १८७२ की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार नगरधन से समय के साथ पंवार, वैनगंगा के पूर्व में आम्बागढ़ और चांदपुर की ओर विस्तारित हुए। कुछ पोवारों ने कटक पर मराठों के विजय अभियान में श्री चिमाजी भोसले का साथ दिया था। कटक अभियान में पोवारों के सौर्य और पराक्रम के कारण पुरस्कार स्वरूप उन्हें लांजी और बालाघाट जिलें में वैनगंगा के पश्चिम में बहुत सी भूमि उन्हें प्रदान की गयी।
*पंवार(पोवार) समाज की प्रतिष्ठा और वैभव*🚩🚩🚩
*समाज का सर्वविकास*🤝🤝
*पोवारी सांस्कृतिक चेतना केंद्र*🚩
नगरधन-वैनगंगा क्षेत्र में पंवारों को आकर बसने में लगभग 325 वर्ष हो चुके हैं और इन तीन शतकों में इस समाज ने इस क्षेत्र में विशेष पहचान बनाई हैं। मालवा राजपुताना से आये इन क्षत्रियों के पंवार(पोवार) संघ ने इस नवीन क्षेत्र के अनुरूप खुद को ढाल लिया लेकिन साथ में अपनी मूल राजपुताना पहचान को भी बनाये रखा है।
पोवार अपनी पोवारी संस्कृति और गरिमा के साथ जीवन व्यापन करते हैं और निरंतर विकास पथ पर अग्रसर हैं। शाह बुलन्द बख्त से लेकर ब्रिटिश काल तक इन क्षत्रियों की स्थानीय प्रशासन और सैन्य भागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वैनगंगा क्षेत्र में बसने के बाद पंवारों ने खेती को अपना मूल व्यवसाय चुना और इन क्षेत्रों में उन्नत कृषि विकसित की।
देश की आजादी के बाद से समाज में खेती के अतिरिक्त नौकरी और अन्य व्यवसाय की तरफ झुकाव बढ़ता गया और आज सभी क्षेत्रों में पोवार भाई निरंतर तरक्की कर रहे है। जनसंख्या में बढ़ोतरी के साथ कृषि जोत का आकार छोटा होता गया और छोटी जोत तथा श्रमिक न मिलने के कारण अब कृषि के साथ नौकरी और अन्य आय के साधनों को अपनाना समय की आवश्यकता है इसीलिए अब समाज जन दुसरो शहरों की ओर रोजगार हेतु विस्थापित भी हो रहे हैं। वैनगंगा क्षेत्र से बड़ा विस्थापन नागपुर, रायपुर सहित कई अन्य शहरों में हुआ है, हालांकि कोरोना जनित परिस्थितियों के कारण कई परिवार वापस अपने मूल गांव भी आये हैं। बालाघाट, गोंदिया, सिवनी और भंडारा जिलों के मूल निवासी, छत्तीश कुल के पोवार अब देश-विदेश में अपने कार्यों से समाज के वैभव को आगे बढ़ा रहे हैं।
विकास के आर्थिक पहलुओं के साथ सामाजिक पहलुओं पर भी चिंतन किया जाना आवश्यक है। समाज की तरक्की के साथ सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण भी जरूरी हैं तभी इसे समग्र विकास माना जायेगा। यह बहुत ही गौरव का विषय है कि समाज की बोली अपनी बोली है, जिसे पोवारी कहते है। आज समाज की जनसंख्या लगभग तेरह से पंद्रह लाख के मध्य है और लगभग आधी जनसंख्या ही पोवारी बोली बोलती है या जानती हैं, जिसका प्रतिशत धीरे धीरे और भी कम हो रहा है। समाज के सभी लोग इस दिशा में मिलकर काम करे तो नई पीढ़ी को अनिवार्य रूप से पोवारी सिखा सकते है। पोवारी ही समाज की मातृभाषा है, लेकिन हिंदी और मराठी, क्षेत्रवार यह स्थान ले रही है। पोवारी सिर्फ हमारे समाज की बोली है इसीलिए यह उतनी व्यापक तो नही हो सकती पर अपने परिवार और समाज के मध्य इसका बहुतायत में प्रयोग करें तो पूरा समाज इसे बोल पायेगा।
आर्थिक समस्याओं के साथ अंतरजातीय विवाह, धर्मपरिवर्तन, पोवारी सांस्कृतिक मूल्यों का पतन, देवघर की चौरी का त्याग, ऐतिहासिक नाम पंवार और पोवार के साथ छेड़छाड़ कर दूसरे समाजों के नामों को ग्रहण करवाना, बुजुर्गों के अच्छे पालन-पोषण में कमी, दहेज की मांग आदि अनेक समस्याएं समाज के सामने खड़ी हैं जिसको सभी को मिलकर सुलझाना है। सामाजिक संस्थाओं को भी पोवारी बोली और उन्नत पंवारी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आना होगा।
"पोवार"
श्री महेन जी पटले के द्वारा लिखित इस किताब में पोवार समाज की उत्पत्ति, विकास और विस्तार के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। पोवार समाज धारानगर से विस्तारित होकर वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा था और यह समाज आज "छत्तीस कुलीन पंवार समाज" के नाम से जाना जाता है। ये सभी कुल पुरातन क्षत्रिय हैं जिन्हे सम्मिलित रूप से पोवार या पंवार कहा जाता हैं।
भाटो ने इस समाज को मालवा के परमार बताया हैं जो मालवा से सबसे पहले नगरधन आये फिर नागपुर और अंत में वैनगंगा क्षेत्र में जाकर स्थायी रूप से बस गये।
"पोवार" नामक इस ग्रन्थ में इस समाज के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती हैं। श्री महेन जी पटले को इस भागीरथ प्रयास हेतु बहुत बहुत बधाइयाँ और अनंत शुभकामनायें।
वैनगंगा क्षेत्र में बसे क्षत्रिय पंवार(पोवार) की गौरवगाथा Kshtriya Panwar
The Panwar(Powar) community basically migrated from malwa. Initially they arrived at Nagardhan and via Nagpur finally the society settled in Bhandara(include Gondia), Balaghat and Seoni district in Vainganga valley of Central India. Society is divided in thirty six kul. The mothertounge of society is Powari.
मालवा से पंवार(पोवार), सबसे पहले नगरधन आये थे. इसके पहले भी पंवार राजा भोज के भतीजे, लक्ष्मण देव पंवार ने बारहवी सदी की शुरुवात में नगरधन से मध्य भारत पर शासन किया था. अठारहवी सदी की शुरुवात में स्थानीय राजाओं के आह्वान पर मुगलों से लड़ने के लिए बड़ी संख्या में पंवार राजपूत मध्यभारत में आये थे. कुछ समय नगरधन नागपुर में रहने के बाद ये लोग वैनगंगा क्षेत्र में स्थायी रूप से बस गये. पंवार या पोवार समाज के छत्तीस कुल हैं और ये अपने विवाह इन्ही छत्तीस कुलों में होते हैं. आज पोवार समाज मुख्यतया बालाघाट, गोंदिया, सिवनी, भंडारा और नागपुर जिलों में निवासरत है.
पोवारी(पंवारी) भाषा : पोवारी(पंवारी) मध्यभारत को वैनगंगा क्षेत्र मा निवासरत पंवार(पोवार) समाज की मायबोली(मातृभाषा) आय। डॉ. भोलानाथ जी तिवारी को द्वारा रचित किताब, "भाषा विज्ञान कोष" मा ऐव तथ्य उल्लेखित से की पोवारी बोली बालाघाट अना सिवनी जिला मा बोली जासे। 1891 की जनगणना मा 70,000 मानुष पोवारी बोलने वाला होता । अज छत्तीस कुर का पंवार (पोवार) की देश मा जनसंख्या 14 लाख को आसपास से। लगभग अरधी पोवार जनसंख्या पोवारी मा बोलसेती अना दुई तिहाई समाजला पोवारी उमजसे। ऐन बात की लगित जरुरत से की समाज को बीच मा आपरी मायबोली को अधिकाधिक प्रचार होनो पायजे, तब आपरी मातृभाषा को अस्तित्व बरकरार रहे, नही त् आपरो पुरखाइन की या विरासत मुराय जाहे।
नगरधन-वैनगंगा क्षेत्र में पंवार(पोवार) राजपूतों का इतिहास.pdf
पोवारी साहित्य सरिता भाग ६९
1. 1
पोवारी साहित्य अना साांस्क
ृ हिक उत्कर्ष द्वारा आयोहिि
पोवारी साहित्य सररिा भाग ६९
आयोिक
डॉ. िरगोहवांद टेंभरे
मागषदर्षक
श्री. व्ही. बी.देर्मुख
2. 2
१.कथा पोवारोां को स्थानाांिरण की
----------------🙏🕉️🙏--------------
तीनसौ साल पहले मालवा सोडीन l
पूववजोों न् आपला जुना गाोंव सोडीन l
श्रीराम रघुराई को सुममरन करक
े ,
मालवा राजस्थान का गाोंव गव्हान सोडीन ll
नगरधन को मकला मा डेरा जमाईन l
नवो पररवेश मा तालमेल बसायीन l
श्रीराम रघुराई को सुममरन करक
े ,
वैनगोंगा को आोंचल मा मकसानी बनाईन ll
पूववजोों न् तलाव बोडी बनाईन l
नवो पररवेश मा नवा गाोंव बसाईन l
श्रीराम रघुराई को सुममरन करक
े ,
3. 3
सभी नवो गाोंव मा राम मोंमिर बनाईन ll
बैहर की भूमम ला उपजाऊ बनाईन l
गहों चना धान की फसल उगाईन l
श्रीराम रघुराई को सुममरन करक
े ,
मसहारपाठ पर रामजी को मोंमिर बनाईन ll
बैहर ला सोंस्क
ृ मत को क
ें द्र बनाईन l
नवी पीढी ला धमव की राह िेखाईन l
श्रीराम रघुराई को सुममरन करक
े ,
वैनगोंगा को आोंचल मा खुशहाली पाईन ll
इहििासकार प्राचायष ओ सी पटले
र्हन.२२/१०/२०२२.
-------------------🌹🌹----------------
4. 4
२.स्थानाांिरण की गाथा
-----------💜💚❤️------------
िेवगढ को शासक ला साथ िेईन l
औरोंगजेब की सत्ता झुगार िेईन l
पासा पलट िेईन रण-मैिान को ,
पूववजोों न् आपलो पुरुषाथव िेखाय िेईन ll
बख्त बुलोंि की लाज बचाय लेईन l
धमवमनष्ठा आपली भी बचाय लेईन l
छोड क
े वतन राजस्थान मालवा को,
पूववजोों न् आपलो पुरुषाथव िेखाय िेईन ll
बख्त ला सोंकट मा सहयोग िेईन l
बख्त सीन खेती योग्य भूमम पाईन l
कायापलट करीन वैनगोंगा क्षेत्र को ,
पूववजोों न् आपलो पुरुषाथव िेखाय िेईन ll
5. 5
स्विेशी शासक ला साथ िेईन l
मवधमी शासक ला परास्त करीन l
गवव हरन करीन जुल्मी औरोंगजेब को,
पूववजोों न् आपलो पुरुषाथव िेखाय िेईन ll
इहििासकार प्राचायष ओ सी पटले
रहव. २२/१०/२०२२.
------------------❤️💚💜----------------
6. 6
3.
झुकनो भी नािाय अना रुकनो भी नािाय
==========================
मोरो सजातीय पोवार समाजबोंधु इनला महरिीलाल ठाकरे को सहृिय
सािर प्रणाम जय राजा भोज , आमरो पोवार समाजमा भी काही काही
खबराकरन षडयोंत्र रचकर समाजला मममश्रत खबराकरन करनेवाला
मवनाशकाले मवपरीत बुद्धि प्रवृतीका लोक
् सेती , उिाहरण साती हम
करे सो कायिा और हमने बनाया वो ररवाज , मोरो मुगीला एकच टाोंग ,
मी नकटा त तु भी नकटा असो मानमसकता वाला समाजगुरु इनको येन्
उद्देश्यला नाकाम करन साती व समाजमा एमतहामसक पररवतवन आनन्
साती आपलोला मनस्वाथव समाज कल्याण जनकल्याण व राष्ट्र कल्याण
करनोमा स्वच्छत अना समृिता व पारिमशवता तसोच लोकमप्रयता
िेखावन की गरज से , मनस्वाथव समाज कल्याण जनकल्याण व राष्ट्र
कल्याण करनेवाला समाजसेवक ये जनताका व समाजका सच्चा सेवक
आत या भावना समाजको समस्त जनमानसमा मनमावण करन की गरज से
अना येव होयेच पायजे ,,,!!
आपलो धन-सोंपमत्तको व समाजमा सवोच्च पि को गैरवापर करक
े
व समाजद्वारा िेयी गयी सवोच्च जवाबिारी को गैरवापर करक
े समाज
सोंगमा मवश्वासघात करक
े समाजकी सोंस्क
ृ मत सोंस्कार व पौरामणक
ओळख नष्ट्-भ्रष्ट् करक
े समाजको मातृत्वला व स्वामभमानला ठे स पहोंचे
असो पाखोंड करनो व पुरातनकाल पासून चलत आयेव गौरवशाली
इमतहास लक समाजला गुमराह करनो , आपलो समाजपर अन्य
समाजको अमतक्रमणला बढावा िेनो असो अनेकानेक प्रकारका भ्रममत
षडयोंत्रला नाकाम करन साती समाजका तमाम सुमशमक्षत सोंस्कारवान
प्रयत्नवािी कतृवत्वमनष्ठ ब्रम्हमनष्ठ मनष्ठावान युवा पीढीला सामने आयकर
समाजपर होय रही से अन्याय को मवरुि मलखन की गरज से , उनको
मवरुि बोलन की गरज से , जब् आपलीच तलवार आपलोच समाजबोंधु
7. 7
पर चलावन को षडयोंत्र होसे तब् येव आमला बिावश्त नहीों अना
समाजमा मममश्रत षडयोंत्रकारी ( मी नकटा त जग नकटा ) इनकी
मनमानी चलन िेनो नाहाय येकी आमला सबला िक्षतापूववक काळजी
लेनकी गरज से ,,,!!
थोर क्राोंमतकारी िेशभक्तसमहत अनेक थोर माहापुरुष इनला
आपलो िेशला स्वातोंत्र्य करन साती आपलो बलीिान िेनो पडेव ,
इनकोच साकारात्मक एमतहामसक पररवतवन मवचारधारा की मशाल
आमला सबला आपलो अोंतरात्मामा पेटावन की गरज से , समाजमा
एकामधकार शाही व िबावशाही तसोच लापरवाही( हम करे सो कायिा )
असो मानमसकता वाला समाजगुरु इनको द्वारा लगायेव गयेव असत्यरुपी
गवत काटन साती आमला सत्यरुपी इरा हातमा धरन की गरज से ,
समाजमा समाजोत्थान साती एक समाज एक मबचार या ज्ञानगोंगा
बोहावन की गरज से , सोंयमरुपी घडी िेखकर टाइम को भान ठे वन की
भी गरज से , एकमेकला हात मा हात धरक
े मनस्वाथव साथ िेनकी गरज
से , या लडाई एकटोिुकटो की नोहोय या लडाई समस्त समाजबोंधु
इनकी समस्त समाज की आय , लोकशाही या सब लोक
् इन साती होसे
मुनस्यारी सब लोक
् इनला एकत्र आवन की गरज से ,,,,!!
आता आमला सबला समाज एमतहामसक पररवतवन को मागवपर न
थाोंबता , न डगमगावता आपलोला मनरोंतर चलत रव्हनो से , खालखोिर
उतार चढाव आयेती , कही कही धोका िायक प्रसोंग भी आयेती , तपण
बरसात बािरमा गजवना भी होयेती व कळकळ मबजली भी चमक
े त असा
अनेक प्रकार लक अळथळा भी मनमावण होयेत तरी प्रामामणकता
आध्याद्धत्मकता सहनशीलता व मशष्तपालन लक एमतहामसक पररवतवन
की मशाल पेटावत पेटावत अोंधारो रस्ताला प्रकामशत करत करत
आमला सबला एकसाथ ममलाकर चलनो से , खबराकरन षडयोंत्र
करनेवाला इनको सामने आमला कभी झुकनो नाहाय काही भी भयेव
कसो भी भयेव तरी आमला मबल्क
ु ल भी रुकनो नाहाय येव दृढसोंकल्प
पर आपलोला अमलबजावणी करनो से , झुक
ें गे नही और रुक
ें गे भी नहीों
8. 8
येवच आपलो मुलमोंत्र होये पायजे जय राजा भोज जय माहामाया
गढकामलका सबको कल्याण करें,,,!!
लेखक
श्री हिरदीलाल नेिरामिी ठाकरे नागपुर
=========================
9. 9
4.पोवारी साहित्य समूि सािी
आयी मिवारी.
सुख चैतन्य लेयकन.
सबला भरभराट.
जाये िेयकन.
पोवारी मायबोली का
मिप प्रज्वलीत भया.
हर एक पोवार लगावसे
सोंस्क
ृ ती को गवव लका मिया
हटेव मनमोंमिरमा.
अोंधारो की छाया.
शुभेच्छा सेती सबला.
धन वैभव भेटे मनरोगी काया.
र्ेर्राव येळे कर
10. 10
5
गाय खेले हदवारी मा
(र्ोडर्ाक्षरी काव्य, यिी - ८, ८ अक्षरपर)
पूजासाती गोवधवन, बनों प्रमतक गोधन |
करोंसेती मिवारी मा, सोंग गाय को पूजन ||१||
जमा करक
े गायकी, गायी महातनी बेरा |
मबचोमबच आखर को, ठे वों गोधन को ढेरा ||२||
पाच फ
े रा गायी सोंग, मफरों गायकी बी मोंग |
नवी जनी गाय गोरा, खेलन को जमों रोंग ||३||
लेकरूला सोवायक
े , गोधन मा खेलायक
े |
पाय लगसेती सब, मटका वोको लगायक
े ||४||
15. 15
7
|| बोलीका दोर् ||
बोली असी बोलो कोई न बोले झुट
जागा असी बसो कोई न बोले उट
शास्त्र पुराण, साधू सोंत, पढ्या मलख्या जन कसेती बोली पासून
आिाममकी मवद्वत्ता बुद्धिमत्ता समजी जासे . बोली पासून प्रेरणा िेयी जासे
म्हणुन स्यानी सोच बीचारकर बोली बोले पामहजे. बापू महात्मा गाोंधी
कव्हत होतो. कम बोलो, सोच समजकर बोलो, वोन व्यद्धक्तको प्रभाव
अमधक पडसे अना शद्धक्तभी कम खचव होसे.
सामान्य बोली मा अठरा प्रकारका िोष साोंग्या गया सेती.१) मनरथवक
शब्द बोली पटर पटर नही करे पामहजे.२) घडी घडी वयच वय शब्द
िोहराये नही पामहजे.३) अशलील अशुि शब्द प्रयोग नही करे पामहजे.४)
गरज को अमधक शब्द नही बोले पामहजे.५) लाोंब लचक बोंिर को पुष्ट्ी
सारखी बोली नही बोले पामहजे.६) मन िुखावन कटू बचन नही बोले
पामहजे.७) ज्या बोली समजमा नही आवत तसो नही बोले पामहजे.८)
िीघावनोंत पिोचारण बोली मा नही करे पामहजे.९) जो आयकसे वो को
पासुन तोोंड फ
े रकर नही बोले पामहजे.१०) बनावटी, झुटमुट शब्द प्रयोग
नहीकरे पामहजे.११) मत्रवगव याोंनी धमव, काम, मोक्ष इनको बाऱ्यामा उलट
नही बोले पामहजे.१२) कानला नही भावणारा कटू बचन नही बोले
पामहजे.१३) कठीण शब्द का उच्चारण बोलीमा नही करे पामहजे.१४)
उलट पलट वाच बात नही करे पामहजे.१५) नही समज आवनेवाली बोली
मधरू मधरु नही बोले पामहजे.१६) मबना काम अकारन नही बोले
पामहजे.१७) उिेश मबना अथव महन नही बोले पामहजे.१८) समज महन बोली
नही बोले पामहजे.
16. 16
मनमा जो कचरा भरीसे वोला खाली करन साती अमधकच पटर पटर
बोली मा नही करे पामहजे. जबरिस्ती बात बोलन को टारे पामहजे. मतखट
शब्द, गाली गलोच नही करे पामहजे. आमरी बोली आमरो बोली भाषा की
पमहचान से. मुलाखात, बातचीत, मवषय समजावन की क
ु वत परच तुम्हरी
ओळख करी जाये. गोड बोलन को रोज प्रयत्न करो तब तूम्हरी कीती
पसर जाये.
पोवारी साहित्य सररिा भाग ६९हदनाांक:२१:१०:२०२२
िेमांि पी पटले र्ामणगाव (आमगाव)९२७२११६५०१
*********************
17. 17
8
िास्य व्यांग लावणी(मायघरका पोिा मुरा)
******
आपून एकटी एकटी या पोहा मुरा खासे
काही कवणला जासू त अोंगठा िेखावसे//ध्रु//
मी सेव भाऊ कास्तकारी लाइन को
या कसे डरेस पेहरो तुम्ही साहेबको
मोर कर िेखाशानी हातकी अोंगठी मोळसे
काही कवणला जासू त अोंगठा िेखावसे//१//
टोोंगरा वरी पच्या ना आोंगमा फतई
डोस्का पर टोपी पर साजबाज नही
कास्तकार मानुसला ला थाटबाट का शोभसे
काही कवणला जासू त अोंगठा िेखावसे//२//
18. 18
या कसे पामहजे मस्त शटव ना प्ाोंट
डोस्का परा टोप, जरा िेखावो स्टोंट
एकमाऱ्या मोरी मोठी फमिसा होय जासे
काही कवणला जासू त अोंगठा िेखावसे//३//
गयेव िसरा ना आय गयी मिवारीों
महाोंगाई या पडगयी मोर पर भारी
क
े तरो समजावू येला या अबुला रव्हसे
काही कवणला जासू त अोंगठा िेखावसे//५//
****
डी. पी.रािाांगडालें
गोांहदया
*****************
19. 19
9
आया हदन खुर्ालीका
------------------------------------------
मिवस उोंगतीका रोंगको मुक
ू ट
धर आयी बाली बाली
असल खेतकी फसल खुशीमा
झुम रही से हररयाली =१=
रान मसवारमा धुरा पारीपर
फ
ु ल हासता बहरोंगी
रानमेवालक लद्या झळु ला
सेंडीवरी बेला टोंगी =२=
ओलमा हासों मडरा कठानी
धान कटनकी िेखे बाट
तपन सोंगों से खेलनो वोला
22. 22
10
हवर्य:- हदवारी की खीर
खीर मधूर व्योंजन
ताोंिूर िूध की बनसे
पहले धोयकन ताोंिूर
बहत पकावनो पडसे
पक
े व मगलो भातमा
साखर अना िूध टाको
सब एकसाथ चूल्हापर
चाोंगला पकायकन िेखो
साखर िूध अना भात
पक
े चाोंगलो चूल्हापर
हरुहरु खीर को सुवास
23. 23
पैले पूरे घरपर
लवोंग अना इलायची
क
ु टकन टाको खीर मा
खोबरा कीस बिाम काजू
टाक
े पायजे बािमा
वऱ्यालका थोडो
टाक सकसेव क
े सर
असी पौमष्ट्क खीर
चाोंगली करसे असर
मिवारी को मिवस खासेत
खीर सोंग पाोंढर अकस्या
साथ सुरण की भाजी
काटसे जीवनमा की अमावस्या
24. 24
पोवार घर की खीर
खासे पशू पक्षी िेव मानव
म्हणून पोवार ला कसेत
समाज मा चलतो मफरतो िेव
र्ेर्राव येळे कर
हद. २३/१०/२२
****************
25. 25
11
गाव की हदवारी
सब घर होसे मोरो गाव की मिवारी
खुशी उमोंग उत्साह की सौगात भारी||टेक||
हलको धान की पमहले होसे कटाई
अनाज खेती को आवसे होसे कमाई
गाडोलक आनसेती खेत मा की माती
घर आोंगण मलपकर सराव सेती
चूनो गेरू की पोताई शोभा मिस भारी ||१||
मिवारी की खीर लक्ष्मी पूजनला बनसे
सुरण की भाजी अकस्या सोंग रव्हसे
चकली शेव मचवडा को ना स्ता बनसे
सीोंगाडा बतासा पेढा ममठाई ममलसे
फ
ु रफ
ु री सोंग फटाका फ
ु ट्या भारी ||२||
26. 26
धन तेरस को महत्वला जान सेती
सोना चाोंिी को लेनिेन ला करसेती
आयुवेि मा धन्वोंतरी की पुजा करसेती
चाोंगलो रव्ह आरोग्य िुवा मागसेती
टवरी की रोषणाई चौक चाोंिण भारी ||३||
अवस ला जमघट नवो बह बैमिको
पोवारी समाज िस्तुर करसे न्यारो
पुजा बाि ताल धरसेती फ
ु गमडको
उखानो मा कसेती नाव घरवा लोको
फ
ु गडी की परोंपरा अजब से न्यारी ||४||
गोवधवन की पुजा आखर पर भारी
गोवारो की ढाल सोंग चल्या गावकरी
नवा नवा कपडा आोंगपर का भारी
27. 27
मोंडई की रेलचेल खावो पानसुपारी
िोंडार डर ामा नाच गाना रात का भारी ||५||
पोवारी काव्य स्पधाव
मवषय: िीवारी की खीर
हदनाांक:२३:१०:२०२२
िेमांि पी पटले र्ामणगाव (आमगाव)
९२७२११६५०१
**************
28. 28
12. हदवो िराओ
जगमग जगमग िीवो जराओ घर आोंगन ला खुब सजाओ,
एक िीवो जराओ मन को मैल ममटावन को,
सब सोंग हासत बोलत रहो सब सोंग धुल ममल रवन को,
एक िीवो जराओ सत्य धमव शाोंमत को ,
िेश िुमनया लक अोंधकार ममटाओ,
एक िीवो जराओ प्रेम प्रीत को
मन मा सबको प्रीत जगाओ,
एक मिवो जराओ पोवार समाज ला सजग सभ्य समाज बनावन को
अपरी माय बोली की सोभा बढावन को,
एक िीवो जराओ पोवारी माय बोली की अलख जगावन को ,
हर घर माय बोली बचावन को,
जगमग जगमग िीवो जराओ घर आोंगन ला खुब सजाओ।।
सबला िीवारी की हामिवक सुभेच्छा से जी
हवद्या हबसेन
बालाघाट
29. 29
13
भिन
परमेश्वर प्राप्तीसाठी
जन करे भक्तीमा नमन
मन भाव मा अमपवत
येला कसेत भजन
सेवा अना स्तुती
चरण मा सममपवत
मन की आतव पुकार
करे भाव मा अमपवत
भक्त अना भगवान
भजन जोडन को रस्ता
तप यज्ञ हवन पेक्षा
मागव नेक अना सस्ता
30. 30
भजन लका होसे
आत्मा की शुिी
तल्लीन होय जासे
भगवोंत रुपमा बुिी
र्ेर्राव येळे कर
हद.२३/१०/२२
************
31. 31
14. हदवारी
चूल्होों -चक्की ,ओखरी , डोकरी, पूजी गईन मिवारी मा।
मकसान की मेहनत महक रही से, मीठी -खीर सुआरी मा।।
नवती-नवती बह आई सेत, लक्ष्मी जसी मिवारी मा।
नाच रही सेत मुन्ना मुन्नी, घर आँगन, फ
ु लवारी मा।।
ओरी-ओरी टवरी सुँिर, घर-घर जररन मिवारी मा।
घर का कोना कोना महक रही सेती धूप बाती की िानी मा।।
घर का सायना सायनी मस्त सेती पुरानी कहानी मा ।
चचाव होय रही से क
े तरा पकवान रहेती आज मबरानी मा।।
रोंग मबरोंगी आमतशबाजी होय रही से रातरानी मा।
मबसर गया पुराना तरीका नवो ज़मानोों को शानी मा।।
सजाय क
े आरती राखी जाहे डार को अगवानी मा।।
अधी रात मनकल जासे बसकर यािन की कहानी मा।।
मनाओ मिवारी असी बस जाय मन की बानी मा।
रामराज्य की शुभकामना, सबला आज पोआरी मा।।
यर्वन्त कटरे/२४/१०/२०२२
32. 32
गुलाब-मोोंगरा खूब फ
ू ली सेत, बाडी-बाडी क्यारी मा।
आम्बा तोरण क
े रा पत्ता सज गईन द्वार िुआरी मा ।।
चौक शोभ अ से गाय खुरी को,ओसरी ,आोंगन फ
ु लवारी मा । ओरी-
ओरी टवरी सुोंिर, घर घर जररन मिवारी मा ।।
नवती-नवती बह लगी सेत पूजन की तैयारी मा ।
राम राज की शुभकामना सबला आज पोआरी मा।।
हरकचोंि टेमरे--अध्यक्ष पोंवार समाज मजला मसवनी।ः
*****************
33. 33
15
🙏रानी बनकर िग रिी िोिी🙏
****💚💜****
मोरा भी मिन होता
रानी बनकर जग रही होती l
मोरो भी आोंचल मा
जगमगाहट मिस रहीों होती l
सारी िुमनया मोला
वोंिन करता मिस रहीों होती ll
मोरा भी मिन होता
रजवाडाओों मा नाोंि मा नाोंि होती l
सबको ओोंठो पर
खुमशयोों लक इठलाय रहीों होती l
सबको मिलोों पर
रानी बनक
े राज कर रहीों होती ll
34. 34
नवीन जमानोों मा
हालत मबगडता िेख रहीों होती l
सबको ओोंठो पर
महन्दी मराठी खूब खेल रही होती l
मी सबकी नजरोों मा
उपहास की मशकार होय रही होती ll
नवी क्राोंमत को मिनोों मा
अनुक
ू ल हवा बहती िेख रही होती l
सबकी वाणी लक
मोरी खूब वाहवाही िेख रहीों होती l
सबकी लेखनी लक
कमवता ना गीत मा ढल रही होती ll
35. 35
पररवतवन की हवा
मी आपलो डोरा लक िेख रहीों होती l
मोरो मन की वेिना
धीरु धीरु िूर होती िेख रहीों होती l
मोरा भी मिन होता
रानी बनकर जग रही रही होती ll
#इहििासकार प्राचायष ओ सी पटले
#प्रणेिा:-पोवारी भार्ाहवश्व नवी क्ाांहि अहभयान, भारिवर्ष.
#लक्ष्मीपूिन,सोम.२४/१०/२०२२.
--------------------🌴🌴----------------
36. 36
16
अि से हदवारी
सासु बाई न सागीस मोला अज से अपरी पोवारी की मिवारी,
सोंस्कार अना सोंस्क्रमत िीसे अज सबको घर वरी,
गायी को गोबर लक सडाा़ सारवन करबी मोठागन को नहानागन वरी,
गायी को गोबर आनो गोवधवन पववत बसाहो बीच आोंगन मा खुब सजाओ
बह मोरी,
गायी को गोबर लक ढोकरी बनाओ कोठा मा डहल मा ओरी ओरी
बसाहो,
जातो ,चाटु ,ओखरी, घडक
े सोंग मा ढोा़करी बसाहो
गायखुरी को चौोंक पुराओ डहल को ओर छोर,
ओसरी मा भी गायखुरी को चौोंक पुरावबी गेरू अना चाऊर को पीठ
लक पोवारी सोंस्क्रमत की मचत्रकारी घडबी,
जातो ,ओखरी , सील ,पाटा ला भी पुज सेती अज रागोली बनाओ सजे
साज,
सोंझा बेरा भयी चाऊर को पीठ का िस मिवो बनाओ,
गायी को िुध लक मनटवल खीर चुल्हो मा राोंधो,
धरो आगी पानी सोंग खीर ढोकरी ला जनाओ िस मिवो जराओ ,
37. 37
सुन मोरी बह बाई पोवारी सोंस्क्रमत ला बचाओ,
अपरी पोवारी की अलख जगाओ,
जय जय पोवारी जय पोवार समाज
हवद्या हबसेन
बालाघाट
***************
38. 38
17
मोरी किानी
फ
ॅ स गयेव मी, प्रेममववाह करक
े |
मुमसबत आनेव, आपल् घर धरक
े |धृ|
पहले उठत होतो आठ बजे सोयक
े ,
आता सय बजे उठु सू तडफडायक
े ,
सोवनो पडसे अलामव लगायक
े |1|
मुमसबत......
मलुसू बतवन, लगावुसू झाड
ू उठक
े ,
पाणी बी ठे वनो पडसे पुरो भरक
े ,
बायकोला िेसू बेड टी बनायक
े |2|
मुमसबत......
मोंग करुसू सयपाक गॅस जलायक
े ,
40. 40
18
हसांदीपार प्रारुप : पोवार बहुल गाांवोां मा अपनावनोां आवश्यक
--------------------------------------
साकोली तहसील को मसोंिीपार मा पोवार समाज का ७-८ सामहद्धत्यक
व कलाकार सेती.वय सब आता माय बोली पोवारी को उत्कषव को भी
कायव कर रहया सेती. साल मा एक घन पोवार समाज को साोंस्क
ृ मतक
कायवक्रम भी आयोमजत कर् सेती.
आपलो मोहाडी गाोंव मा भी आता आपण येन् मिशा मा प्रयास करबी.
सब जन पोवारी भाषा मा कमवता, मवचार मलखन की शुरुआत करो. जसी
आव् से तसी पोवारी मलखोों . अना माय बोली पोवारी की सेवा करोों. एक
-ना-एक मिन आपलो गाोंव मा भी कमव, लेखक, सामहद्धत्यक तयार होयेती
व पोवार समाज की मगनती प्रगत समाज मा होये.
जय पोवारी! जय मायबोली!!
41. 41
19
हसांदीपार को दीपोत्सव-२०२२
हरसाल सररखो मसोंिीपार को िीपोत्सव येन् साल बी मनायेव गयेव.
कायवक्रम को स्वरूप -
१.बजरोंगबली,वों.तुकडोजी महाराज अना माय गडकामलका क
् प्रमतमा को
पूजन
२."आया पाऊना" येन् पोवारी स्वागत को गाव क
् टुरीईन द्वारा गायन
३.मसोंिीपार एक्स्प्रेस कवीराज शेषुभाऊ क
् द्वारा प्रास्तामवक अना पाहणा
पररचय
४.गाव का प्रमतभावोंत नाट्यकलावोंत,सामहद्धत्यक,आयुवेमिक वैद्य,आशा
वक
व र अना बालकलाकार इनको सत्कार
५.प्रमतभािशवन लेखी परीक्षा जो कक्षा ३ पासून ५ वरी,कक्षा ६ पासून ८
वरी अना कक्षा ९ पासून सामने का ...असो ३ गट माों प्रामवण्य सूची माों
आया टुरा टुरी इनला मवशेष पाररतोमषक त् सहभागी स्पधवक इनला
प्रमाणपत्र,पेन अना प्राथवना की मकताब िेनो माों आयी.
६.मबच मबच माों टुरा टुरीईनको समूह गीत,व्यद्धक्तगत गीत,कोनी को नृत्य
करनो माों आयेव.
42. 42
७.गाव का प्रमुख मागविशवक मुहन प्रा.डाँ.शेखरामजी येळे कर सर इनको
गावकरी मोंडली,गाव का तरूण बाल गोपालईनला समपवक मागविशवन
भयेव्.
८.कायवक्रम ला सोंगीतबि करन की प्रमुख जबाबिारी गाव का हरहन्नर
मशक्षक कवी श्री.पामलकचोंि मबसने सर इनपरा रव्हसे.वय सोंवामिनी
बजावसेत अना उनला तबला की सोंगत गाव को च चेतन बडोले िेसे.
प्रमतभािशवन लेखी परीक्षा को प्रश्नपत्र रचना बी उनकीच रव्हसे.
९.येन् कायवक्रम को अोंतगवत मच.भागवव शेखरामजी येळेकर येन् मलद्धखसेन
वोन् माझा मुोंबईचा प्रवास पुस्तक को लोकापवण करनो माों आयेव्.
तसोच गाव को मशक्षक कवी रणिीप मबसने इननों सोंपामित करीस वोन्
राष्ट्रीय मशक्षा नीमत-२०२० येन् मवशेषाोंक को लोकापवण बी येन् कायवक्रम
क
् िौरान भयेव्.
१०.कायवक्रम को सोंचालन रणिीप मबसने,आभार प्रिशवन मिलेराम
येळे कर इननों करीन.
११.कायवक्रम की भौमतक तैयारी एक घोंटा माों आमी सबजन करसेजन.
१२.पोवारी प्रमतभा िशवन समूह,स्वा.सावरकर वाचनालय,झाडीबोली
सामहत्य मोंडळ,राष्ट्रसोंत तुकडोजी महाराज मवचार क
ें द्र,गाव की राजाभोज
सोंस्था,मसोंिीपार सोंघ सायम् शाखा
असा अनेक समूह गाँव माों क
ृ मतशील सेती.अना तरूण बाल मोंडली येन्
कायवक्रम क
् सफलतासाटी झटसेती.
१३.कायवक्रम क
् बमक्षस अना सत्कार साटी आमी कोनसोंग एकबी
बरगन(चोंिा) नहीों लेसेजन.
43. 43
कायवक्रम की मनष्पमत्त-
१.गाव की माता मशक्षण साटी सजग भयी से.
२.गाव व्यसनमुक्त ठे वनला मित भयी से.
३.गाव माों शैक्षमणक अना सामहद्धत्यक वातावरण की मनममवती भयी से.
४.गाव का टुरा मोठा सपना िेखनसाटी तयार भयासेती.
५.गाय,सेंमद्रय खेती को प्रचार भयी से.
६.प्रयोगशील खेती साटी गाव की काही मकसान मोंडली तत्पर भयी से.
७.गाव माों एकात्मता को भाव उपज रही से.
८.जातीय/धाममवक/राजकीय/सामामजक असो कोनतो बी प्रकार को
भेिभाव ला थारा नहीों |
िस गाव माों शोभसे,मोरो गाव मसोंिीपार
सांकलन व वृत्तकथन
रणदीप हबसने
*-******-*-****
44. 44
20
देवा िीव घबराव🙏
िेवा जीव घबराव कसो कलयुग आयो ,कोनी की नही िया माया कोनी
ला यहाों नी,
मन मा सोच मोरो आयो मानुश जन्म काहे पायो,
कसो कमव को फ
े रा जीवन भयो नाकारा ,
नही मोह माया पापी भयी काया ,
कमव धमव भयो झुटो,मानुश पशु वानी िीस,
बडी लोंबी से कहानी मन कर मनमानी, ,
छल कपट को डेरा ऐन जग मा िुई रोज को बसेरा,
तोरो मोरो करता करता बीत जाहे या कहानी,
मन बडो अमभमानी सुझ बूझ मबसरानी,
िेवा जीवन की कहानी कसी बीते जीन्दगानी,
शब्द शुल वानी चुभत घर का भेिी भेि डाकत,
बोल मीठो नही बोलत कान मा जहर घोलत,
करकसा वानी बन गयी मीठी वाणी ,
कसी सागु िेवा अपरी जुबानी,
45. 45
मन मा सोच मोरो आयो काहे मानुश जन्म पायो,
छोडो मन को सब भेि नोको करो िील मा छे ि,
सुख िुख ले भरी से सबकी कहानी,
महलममल सब मबताओ चार िीन की जीोंन्दगानी,
कौन रहे सौ बरस कौन जाहे छड, भर मा यो जीवन से पानी वानी,
मन मा सोच मोरो आयो काहे मानुश जन्म पायो।।
हवद्या हबसेन
बालाघाट🙏
**-*-**-***-**
46. 46
अज पुरानी पेढी को बुजुगव लोगइन सोंग पोवारी बोलता बोलता का काइ
शब्द परा ध्यान गयो -
फ़ोटो हेडकर भयी ,
बेस भयौ ,
फ़ोटो महटी ,
लाखतखाड,
बक नही फ
ू टी
ये शब्द मवशेष करक
े पोवारी आत मजनको सबन्ध अन्य स्थानीय भाषा
सोंग नही चोव्ह।
**
47. 47
21
मायबोली पोवारी
कोई बी जात की पमहचान का बहत सा मापिण्ड होय सक सेतीन।
मकन्तु सबलक प्रमुख पमहचान बोली होसे। आज नौकरी चाकरी धोंधा
व्यापार अन क ई वजह लक िुमनया भर मा हमारा जात का लोगजाय
रही सेतीन ।असो मा हमी एक िुसरो ला कसो पमहचानबो मक हमी एक
च जात का आजन।
अपरी पमहचान कायम राखन लाई सबलक सशक्त एक मात्र माध्यम
हमारी बोली से।
मकन्तु िुभावग्य लक आज पोवार समाज न अपरी पमहचान बोली लक
भारी िुरी बनाय लेई सेस।
अन पोवारी बोली को अता का महत्व से अन कोनसो काम पड से असा
लोग बोल सेतीन।
वतवमान अन आवन वाली पीढी ला बोली बोलनो या मसखावनो बोंि कर
िेई सेत। असो मा हमारी मूल पमहचान हमारी माय बोली खतम होन को
कगर मा से।
मी पोवार समाज का लगभग पन्द्रह व्हाटसाप ग्रुप लक जुडयो सेंव। िुय
चार ग्रुप ला छोडकर बाकी ग्रुप मा हमारी बोली कही नजर नहीों आव। न
ही बोली पर कोई ध्यान िेत। पोवार समाज का गाँव लक त अन्तरावष्ट्रीय
स्तर तक ढेर सारा सोंगठन बन गयी सेतीन।
लेमकन उनकी योजना अन कायवक्रम मा माय बोली ला कोई महत्व या
जाग्हा नहीों ममल।
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मोरी सबलक प्राथवना से मक जेतरा भी सोंगठन अन ग्रुप सेत सबकी
प्राथममकता मा हमारी माय बोली होनो चामहए।
पोवारी बोलन वाला पररवार को कोई असो एक सोंगठन या ग्रुप बन
सक से मक हमी अपरो पररवार अन समाज मा मसफ
व अपरी बोली ला
बोलबो।
मोरो असो माननो से मक पररवार अन समाज की बहत सारी समस्या मात्र
अपरी बोली बोलनो लक समाप्त होय जाहेत।
अन हमारी जात की पमहचान को सोंकट भी खतम होय जाहे।
हमारी आवन वाली पीढी ला सब प्रकार को ज्ञान को सोंग अपरी बोली
को भी ज्ञान आवश्यक से।
जेको लक अपरी आवन वाली पीढी पमहचान की मोहताज नहीों होन की।
धन्यवाि।
जय राजा भोज जय भारत माता।
मनवेिक --कोमल प्रसाि राहँगडाले कल्याणपुर धारनाकलाँ तहसील
बरघाट मजला मसवनी म प्र
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