e Magazine in Powari Langugae.
Powari language is spoken by Powar community in Vainganga Valley Central India. Powar are group of 36 clan which migrated from western India in the era of Aurngjeb and settled intially at Nagardhan near Nagpur and finally settled in Vainganga valley. Presntly these known as 36 clan Panwar or Powar community.
पोवारी बोली, मध्य भारत के बालाघाट, भंडारा, गोंदिया और सिवनी जिलों में निवासरत पंवार(पोवार) समाज के द्वारा बोली जाती है और यही उनकी मूल मातृभाषा भी हैं।
Devghar is a collection of stories in Powari Langugae. The writer of this book is Mr. Rishi Bisen. This is his second book after, "Powari Sanskrti" in Powari Langugae.
Powari is a Langugae of Powar community of Vainganga Valley of Central India which includes Balaghat and Seoni districts of Madhypradesh and Bhandara and Gondia district of Maharashtra.
And in the sixth month the angel Gabriel was sent from God unto a city of Galilee, named Nazareth, To a virgin espoused to a man whose name was Joseph, of the house of David; and the virgin's name was Mary. And the angel came in unto her, and said, Hail, thou that art highly favoured, the Lord is with thee: blessed art thou among women. And when she saw him, she was troubled at his saying, and cast in her mind what manner of salutation this should be. And the angel said unto her, Fear not, Mary: for thou hast found favour with God. And, behold, thou shalt conceive in thy womb, and bring forth a son, and shalt call his name JESUS. He shall be great, and shall be called the Son of the Highest: and the Lord God shall give unto him the throne of his father David: And he shall reign over the house of Jacob for ever; and of his kingdom there shall be no end. LUKE 1:26-33
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Powari language is spoken by Powar community in Vainganga Valley Central India. Powar are group of 36 clan which migrated from western India in the era of Aurngjeb and settled intially at Nagardhan near Nagpur and finally settled in Vainganga valley. Presntly these known as 36 clan Panwar or Powar community.
पोवारी बोली, मध्य भारत के बालाघाट, भंडारा, गोंदिया और सिवनी जिलों में निवासरत पंवार(पोवार) समाज के द्वारा बोली जाती है और यही उनकी मूल मातृभाषा भी हैं।
Devghar is a collection of stories in Powari Langugae. The writer of this book is Mr. Rishi Bisen. This is his second book after, "Powari Sanskrti" in Powari Langugae.
Powari is a Langugae of Powar community of Vainganga Valley of Central India which includes Balaghat and Seoni districts of Madhypradesh and Bhandara and Gondia district of Maharashtra.
And in the sixth month the angel Gabriel was sent from God unto a city of Galilee, named Nazareth, To a virgin espoused to a man whose name was Joseph, of the house of David; and the virgin's name was Mary. And the angel came in unto her, and said, Hail, thou that art highly favoured, the Lord is with thee: blessed art thou among women. And when she saw him, she was troubled at his saying, and cast in her mind what manner of salutation this should be. And the angel said unto her, Fear not, Mary: for thou hast found favour with God. And, behold, thou shalt conceive in thy womb, and bring forth a son, and shalt call his name JESUS. He shall be great, and shall be called the Son of the Highest: and the Lord God shall give unto him the throne of his father David: And he shall reign over the house of Jacob for ever; and of his kingdom there shall be no end. LUKE 1:26-33
पोवार(छत्तीस कुर पंवार) समाज के विवाह गाये जाने वाले गीतों में विवाह का आनंद और रीति-रिवाज समाहित होते हैं। समाज की पुरातन मातृभाषा पोवारी है और विवाह के पारम्परिक और पुरातन गीत भी पोवारी भाषा में है। पंवारी ज्ञानदीप किताब से इन गीतों का संकलन किया गया है। ये गीत और रीति-रिवाज छत्तीस कुलीन पोवार(पंवार) समाज की संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। समय के साथ रीति-रिवाज और पोवारी भाषा खत्म हो रही हैं, जिसका संरक्षण किया जाना बहुत जरुरी है।
The Book of Habakkuk is the eighth book of the 12 minor prophets of the Bible. It is attributed to the prophet Habakkuk, and was probably composed in the late 7th century BC. The original text was written in the Hebrew language.
अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार महासंघ द्वारा पोवारी दिवस कार्यक्रमKshtriya Powar
अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार(पंवार) महासंघ के द्वारा हिंदू नववर्ष के पावन अवसर पर लगातार चौथे वर्ष, पोवारी दिवस कार्यक्रम का आयोजन
अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार(पंवार) महासंघ, अपने आराध्य, सम्राट विक्रम "विक्रमादित्य" के राज्याभिषेक दिवस और हिंदू नववर्ष के पावन अवसर पर अपने समाज की पहचान, इतिहास, संस्कृति और भाषा के सम्मान में, प्रतिवर्ष "पोवारी दिवस" कार्यक्रम का आयोजन करता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य समाजजनों को अपनी भाषा, अपनी संस्कृति तथा अपने गौरवशाली इतिहास से परिचित कराना है।
सम्राट विक्रमादित्य ने अपने राज्य अवन्ति(मालवा राजपुताना) से विदेशियों को खदेड़कर, मजबूत और संगठित राज्य की स्थापना की थी। अपने इस विजय के उपलक्ष पर उन्होंने, "विक्रम संवत" पंचांग की शुरुआत की और इस पावन दिवस पर ही प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है। इसी दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।
अखिल भारतीय क्षत्रिय पंवार(पोवार) महासंघ के द्वारा प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने आराध्य महाराज, सम्राट विक्रमादित्य की पति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए "पोवारी दिवस" कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के माध्यम से अपने सम्राट के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पोवारी भाषा में साहित्य सम्मेलन का, आभासीय माध्यम से आयोजन किया गया।
अखिल भारतीय क्षत्रिय पंवार(पोवार) महासंघ के अध्यक्ष, डॉ. विशाल बिसेन की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में श्री मुन्नालाल जी रहाँगडाले, श्री कोमल प्रसाद जी रहाँगडाले तथा श्री ऋषि जी बिसेन जी प्रमुख वक्ता के रूप में उपस्थित थे। "पोवारी दिवस" कार्यक्रम में श्री डी. पी. राहांगडाले, श्री यशवंत कटरे, डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे 'प्रहरी', इंजी. गोवर्धन बिसेन 'गोकुल', प्राचार्य डा. शेखराम जी येड़ेकर, श्री रमेश जी बोपचे, श्री रणदीप बिसेन, श्री शेषराव येड़ेकर, श्री उमेंद्र बिसेन, सौ. वर्षा विजय राहांगडाले, सौ. शारदा चौधरी, श्री ऋषिकेश गौतम, श्री हिरदीलालजी ठाकरे, डॉ. हरगोविंद जी टेंभरे जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों के द्वारा सुंदर एवं मनभावन साहित्यिक प्रस्तुति दी गई।
इंजीनियर श्री महेंद्र जी पटले के द्वारा कार्यक्रम का सफल और व्यवस्थित रूप से संचालन किया गया। कार्यक्रम में महासंघ के अध्यक्ष डॉ. विशाल जी बिसेन सहित सभी वक्ताओं के द्वारा इस पावन अवसर बधाई और शुभकामनायें देते हुये छत्तीस कुल पंवार समाज के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति के संरक्षण सहित इसे सभी स्वजातीय भाई बहनों तक पहुंचाकर समाज की एकता और अखंडता को मजबूत करने का आव्हान किया। इस कार्यक्रम के माध्यम से समाज में वैचारिक और सांस्कृतिक पतन को रोकने के लिये युवाओं की भागीदारी अधिक से अधिक बढ़ाने के उपायों को अपनाये जाने का आव्हान किया गया। पोवारी भाषा और उनके पुरातन गीत संगीत को संरक्षित कर उसके सन्देश को जन-जन तक पहुंचाने का भी इस कार्यक्रम में संकल्प लिया गया।
श्री नरेश जी गौतम, महासचिव, पोवार महासंघ के द्वारा इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों, वक्ताओं और साहित्यकारों का आभार प्रदर्शन किया गया। अखिल भारतीय क्षत्रिय पंवार महासंघ की साहित्यिक शाखा प्रमुख श्री गोवर्धन जी बिसेन के द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई थी। इस कार्यक्रम को प्रतिवर्ष, "अंतराष्ट्रीय पोवारी दिवस" के रूप में मनाये जाने का प्रस्ताव भी किया गया।
अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार(पंवार) महासंघ 🚩
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पोवार(छत्तीस कुर पंवार) समाज के विवाह गाये जाने वाले गीतों में विवाह का आनंद और रीति-रिवाज समाहित होते हैं। समाज की पुरातन मातृभाषा पोवारी है और विवाह के पारम्परिक और पुरातन गीत भी पोवारी भाषा में है। पंवारी ज्ञानदीप किताब से इन गीतों का संकलन किया गया है। ये गीत और रीति-रिवाज छत्तीस कुलीन पोवार(पंवार) समाज की संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। समय के साथ रीति-रिवाज और पोवारी भाषा खत्म हो रही हैं, जिसका संरक्षण किया जाना बहुत जरुरी है।
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अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार(पंवार) महासंघ के द्वारा हिंदू नववर्ष के पावन अवसर पर लगातार चौथे वर्ष, पोवारी दिवस कार्यक्रम का आयोजन
अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार(पंवार) महासंघ, अपने आराध्य, सम्राट विक्रम "विक्रमादित्य" के राज्याभिषेक दिवस और हिंदू नववर्ष के पावन अवसर पर अपने समाज की पहचान, इतिहास, संस्कृति और भाषा के सम्मान में, प्रतिवर्ष "पोवारी दिवस" कार्यक्रम का आयोजन करता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य समाजजनों को अपनी भाषा, अपनी संस्कृति तथा अपने गौरवशाली इतिहास से परिचित कराना है।
सम्राट विक्रमादित्य ने अपने राज्य अवन्ति(मालवा राजपुताना) से विदेशियों को खदेड़कर, मजबूत और संगठित राज्य की स्थापना की थी। अपने इस विजय के उपलक्ष पर उन्होंने, "विक्रम संवत" पंचांग की शुरुआत की और इस पावन दिवस पर ही प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है। इसी दिन से हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।
अखिल भारतीय क्षत्रिय पंवार(पोवार) महासंघ के द्वारा प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने आराध्य महाराज, सम्राट विक्रमादित्य की पति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए "पोवारी दिवस" कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के माध्यम से अपने सम्राट के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पोवारी भाषा में साहित्य सम्मेलन का, आभासीय माध्यम से आयोजन किया गया।
अखिल भारतीय क्षत्रिय पंवार(पोवार) महासंघ के अध्यक्ष, डॉ. विशाल बिसेन की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में श्री मुन्नालाल जी रहाँगडाले, श्री कोमल प्रसाद जी रहाँगडाले तथा श्री ऋषि जी बिसेन जी प्रमुख वक्ता के रूप में उपस्थित थे। "पोवारी दिवस" कार्यक्रम में श्री डी. पी. राहांगडाले, श्री यशवंत कटरे, डॉ. प्रल्हाद हरिणखेडे 'प्रहरी', इंजी. गोवर्धन बिसेन 'गोकुल', प्राचार्य डा. शेखराम जी येड़ेकर, श्री रमेश जी बोपचे, श्री रणदीप बिसेन, श्री शेषराव येड़ेकर, श्री उमेंद्र बिसेन, सौ. वर्षा विजय राहांगडाले, सौ. शारदा चौधरी, श्री ऋषिकेश गौतम, श्री हिरदीलालजी ठाकरे, डॉ. हरगोविंद जी टेंभरे जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों के द्वारा सुंदर एवं मनभावन साहित्यिक प्रस्तुति दी गई।
इंजीनियर श्री महेंद्र जी पटले के द्वारा कार्यक्रम का सफल और व्यवस्थित रूप से संचालन किया गया। कार्यक्रम में महासंघ के अध्यक्ष डॉ. विशाल जी बिसेन सहित सभी वक्ताओं के द्वारा इस पावन अवसर बधाई और शुभकामनायें देते हुये छत्तीस कुल पंवार समाज के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति के संरक्षण सहित इसे सभी स्वजातीय भाई बहनों तक पहुंचाकर समाज की एकता और अखंडता को मजबूत करने का आव्हान किया। इस कार्यक्रम के माध्यम से समाज में वैचारिक और सांस्कृतिक पतन को रोकने के लिये युवाओं की भागीदारी अधिक से अधिक बढ़ाने के उपायों को अपनाये जाने का आव्हान किया गया। पोवारी भाषा और उनके पुरातन गीत संगीत को संरक्षित कर उसके सन्देश को जन-जन तक पहुंचाने का भी इस कार्यक्रम में संकल्प लिया गया।
श्री नरेश जी गौतम, महासचिव, पोवार महासंघ के द्वारा इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों, वक्ताओं और साहित्यकारों का आभार प्रदर्शन किया गया। अखिल भारतीय क्षत्रिय पंवार महासंघ की साहित्यिक शाखा प्रमुख श्री गोवर्धन जी बिसेन के द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई थी। इस कार्यक्रम को प्रतिवर्ष, "अंतराष्ट्रीय पोवारी दिवस" के रूप में मनाये जाने का प्रस्ताव भी किया गया।
अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार(पंवार) महासंघ 🚩
पोवार(पंवार)समाज, मूल रूप से प्राचीन अवंति राज्य के मूल निवासी थे। इनके मूल रूप से छत्तीस कुल माने जाते है जिन्हें प्राचीन ग्रंथों में राजपुत्र कहा गया है। कालांतर में ये मालवा राजपूताना में विस्तारित होते रहे। इनका बड़ा विस्थापन मध्यभारत की ओर हुआ और ये वैनगंगा क्षेत्र में हुआ और इधर ये स्थाई रूप से बस गये।
पोवारी कुनबा को ठाठ, श्री तुमेश जी पटले (सारथी) द्वारा पोवारी भाषा मा रचित वि...Kshtriya Powar
श्री तुमेश जी पटले को द्वारा पोवारी भाषा मा लिखी यन किताब मा छत्तीस कविता इनको संग्रह आय। पोवारी भाषा छत्तीस कुर पोवार(पंवार) समाज की आपरी मातृभाषा आय। यन भाषा मा लिखी किताब, "पोवारी कुनबा को ठाठ" मा पोवारी संस्कृति अना खेती किसानी असो कई विषय परअ साजरी कविता इनको लिखान भई से।
फिपोलि : यह एक साहित्यिक रचनाओं का संकलन है जो पोवारी भाषा में लिखा गया हैं। या भाषा वैनगंगा क्षेत्र में निवासरत पोवार ( 36 कुल पंवार) समाज की अपनी पुरातन मातृभाषा है।
भारत का भाषा सर्वेक्षण और पोवारी भाषा
पोवारी भाषा और उसके बोलने वाले पोवार समाज के इतिहास को भारत के भाषाई सर्वे, 1904 में दिखाया गया है। इसमें उस समय पोवारी को किस प्रकार लिखा जाता था, देखा जा सकता है।
इस सर्वे में पोवारी को पोवार समाज की भाषा बताया गया है जिसका निवास स्थान धार था और उनके मध्यभारत में आकर वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसने का उल्लेख है।
The Kul(Clan) of Powar(Panwar) community of Central India Kshtriya Powar
There are thirty six Kul(Clan) of Powar(Panwar) community of Central India. As per the details of ancient Bhat each Kula(Clan) is ancient Kshtriya kul who migrated from north-west(old Malwa-Rajputana) part of India to Nagardhan for purpose of war against mugal kingdom and finally settled in Vainganga valley of Central India.
पोवार(३६ कुल पंवार) समाज के सामाजिक रीति-रिवाज.pdfKshtriya Powar
पोवार समाज मालवा से आकर मुख्य रूप से मध्य भारत के वैनगंगा क्षेत्र में बसा हुआ है। इस समाज की अपनी विशिष्ट भाषा और संस्कृति है। इस पीडीऍफ़ में भाषा और संस्कृति के अनेक तत्वों का संकलन किया गया है।
The document discusses the benefits of exercise for mental health. Regular physical activity can help reduce anxiety and depression and improve mood and cognitive function. Exercise causes chemical changes in the brain that may help protect against mental illness and improve symptoms.
2. 2
संपादकीय.......
बाल दोस्तहो......पोवारी आमरी मायबोली आय. पोवारी बोलीमा आपली पोवारी संस्कृ ती बसी से.
आपला नेंग दस्तुर, बबया बरपनमा पयलेपासून पोवारी लोकगीत गायेव जासेत. पोवारी बोली बोलनला
जसी ममठी से. तसीच वा आयकनलाबी ममठी से. पोवारी बोलीमाका गाना आयकनला बहुत ममठा लग्
सेती. आतात् बबया बरपन, नेंग दस्तुरमा गाया जानेवाला गाना काही व्यक्ती संकलीत करस्यान
युट्युबपर ठेय रह्या सेती. येकोमाध्यमलक आपलोला ये पुराना पोवारी लोकगीत आयकता आय रह्या
सेती.
आता पोवारीमा लोकगीत क् संगमाच लेख, कववता, कथा, काॅमेडी व्व्हडीओ असो साहहत्य
रोजक् रोज ननमीत होय रही से. येको तुमी सब आनंद लेव. पोवारी बालकथा, पोवारी चचत्रकथा, पोवारी
बालकथा इ. साहहत्य झुंझुरका मामसक तुमरोसाती हर मयनामा प्रकामित करच रही से. येव अलग अलग
माध्यममा उपलब्ध साहहत्य तुमी बाचत अना आयकत जाव. अना हो झुंझुरका बेराबेरापर बाचत जाव
अना एक दुसरो संगमा पोवारी बोलनला बबसरो नोको. आपली बोली बोलना कायला सरमानको?
चलो त् मंग......बोलबी पोवारी.....बाचबी पोवारी.....मलखबी पोवारी.
- गुलाब बबसेन
संपादक - झुंझुरका पोवारी बाल ई मामसक
मो. नं. 9404235191
संपादक मंडल
श्री गुलाब बबसेन, संपादक
श्री रणदीप बबसने, उपसंपादक
श्री महेंद्रकु मार पटले, उपसंपादक
श्री महेंद्र रहांगडाले, उपसंपादक
श्री उमेन्द्द्र बबसेन, उपसंपादक
ननममिती
महेंद्र रहांगडाले
3. 3
चचत्रकथा
श्री गुलाब बबसेन
सृष्टी लक मामाक् गाव् जात होती. मा मनमाने
गदी होती. सब प्रवासी की बाठ देखत होता. एतरोमा गोंहदया -
नतरोडा लगी. प्रवासी बसमा बसनसाती आपापुती चंगन बस्या.
बाबुजी संगमा सृष्टीबी मा बसी. गदीको कारण कोणीला बसन
जागा ममली त् कोणीला ममलीच नही. ( क् जवर एक माय
हातमा धरस्यान कसी बसी उभी होती. वोका हात थरथरत होता.
पर बसनला कोणीच जागा देत नोहता. ( न उठस्यान आपलो
जागापर बुळगी मायला बसनला जागा देयीस. अना खुद उभी रही.
उतरनको बेरा ( न् सृष्टीको डोस्कापर हात ठेयस्यार आमिवािद
देईस.
4. 4
होरी (होली,मिमगा)
होरी (होली)… ऋतुओं को राजा ‘वसंत’ मा मनायेव जाने वालो महत्वपूणि भारतीय त्योहार आय।
वसंत ऋतु थंडी को बाद मा आवसे। भारत मा फरवरी अना माचि मा येन ऋतु को आगमन होसे। वसंत
बहुत सुहावनो ऋतु से। येन ऋतु मा सम जलवायु रवसे। हहंदू पंचांग को नुसार फागुन मास की पूर्णिमा
ला मनायेव जासे।
होरी मनावन को मंग बहुत सी कहानी प्रमसद्ध सेती। पुराण को नूसार भगवान िंकर न आपली
क्रोधाव्नन लक कामदेवला भस्म कर देई होनतस। तब पासुन येव त्योहार मनावन को प्रचलन से। अदीक
एक लोकवप्रय पौरार्णक कथा से। भक्त प्रह्लाद को वपता हररण्यकश्यप स्वयंम ला भगवान मानत होतो।
वु ववष्णु को ववरोधी होतो। पर प्रह्लाद ववष्णु भक्त होतो। वोन प्रह्लाद ला ववष्णु भव्क्त करन साती
रोकीस। जब वू नहीं मानेव त उन्द्ह प्रह्लाद ला मारन को प्रयास करीस। प्रह्लाद को वपता न आपली
बहीन होमलका की मदद मांगीस। होमलकाला अननीमा नहीं जरण को वरदान होतो। होमलका आपलो भाई
की सहायता करनसाती तैयार भय गई। होमलका प्रह्लादला धरकन चचतामा जायकन बसी पर भगवान
ववष्णु की कृ पा लक प्रह्लाद सुरक्षित रहेव अना होमलका जरकर भस्म भई। तब पासुन होरी मनावन की
प्रथा से।
माय वैनगंगा को कोरयामा बालाघाट, मसवनी, गोंहदया, भंडारा व्जल्हा मा पोवार बस्या सेती।
भंडारा अना गोंहदया व्जला को गाव मा होरी मनवानं को आपलो एक मजा से। होरीला होली, मसमगा,
फाग, फागुन भी कसेती। व्जनको बबह्या होरी को पुढ़ रवसे ओन टुरा टुरी ला हारगाठी की बरात आवसे
अना हारगाठी को कायिक्रम जोर सोर लका पार पडसे। पहले गावंमा होरी को पंधरा हदवस पहले पासुनच
होरी की धूम सुरु होय जाय। घानमाकडी, कब्बड्डी, आटी पाटी, क
ु ची, अंदाबबबू, बबल्ला, रेसटीम,आईचे
पत्र हरवले इत्याहद खेल चालू होय जाती। चांदा को उजारोमा मस्त खेल रमकत।
5. 5
होरी को हदवस सकारीच लहान टुरू पोटू आंग पाय धोएकर तयार होसेत। मंग उनको गरोमा होरी
की साकर की माला जेला गाठी कसेत वा बांध सेती। घर घरमा करजी, पापडी बनाव सेती। महातनी
बेरा होरी की पूजा साती गाव को मानवाइक को घरलक आरती आवसे। मरदमाना होरी की पूजा करसेती।
अना होरी पेटाई जासे सबला गुलाल लगायकर होरी की िुभकामना देसेत।
रातवा कब्बडी, रेस्टीम असा खेल अना आईंमाई भी लायनो टुरी ला नवरदेव नवरी का कपडा
पेहरावत, खासर पर बसावत अना बाजा गाजा लक बरात ननकल। ओको बाद सब नाश्ता करत अना
मग सामूहहक खेल खेलत। अना गाना भी गाया जात होता।
काय बाई रोहहला सजन आयेव मिमगा सण
मोर माहेरक रस्ताला खारक को बन
भाई मोरो गा गुनवान आएगा आनन
मी बाई हासीखुिी लका माहेर जावुन
मोर माय ना बाप की भेट गा लेवुन...
काय बाई........
काय बाई रोहहला सजन आयेव मिमगा सण
मोरो माहेरक रस्ताला नारेल को बन
माय मोरी बाट देखसे, डोरा रस्ताकन
मी बाई हामसखुिी लक सुकदुुःख सांगून
मोर माय ना बाप की भेट गा लेवुन…
काय बाई रोहहला सजन आयेव मिमगा सण
मोरो माहेरक रस्ताला नारेल को बन
बाप मोरो ननहारसे बेतीला हासकन
भोवजाई मोरी बनावसे
6. 6
खेल:
क
ु ची (चचंचध को चेंडू) को खेल:- आठ दस टुरा उनका दुय थुम(समूह)
कपऴा क चचंधी को लहानसो गोल ,ओला क
ु ची कवत, ओला झाऴको नहीत घर क
अंधारोमा फ
े कती। दुही थुम का एक
े क जन धऴीपरा बस्या रव्हती ना बाकीका क
ु ची धुंडनला जाती। जेला
क
ु ची भेट त दुसर करका क
ु ची हीसकती। एकोमा कई का टोंगरा ना कोहंगा फ
ु टत होता। आखीरमा जेव
क
ु ची आनस्यानी आपल मुर्खया टुरा जवर देत होतो ओला एक गुण भेट।
आटीपाटी को खेल :- दुही थुम ला नव नव टुरा. खो खो सारखी आठ पाटी बनावती। आठ पाटी परा
एक
े क जन उभो रव्ह ना कोनीला जान देत नोहोतो. नववो टुरा ला डंड्या कव्हत। वु आठही पाटीकी
रखवाली कर।दुसरो पाटीका नवही टुरा रखवाली की नजर चुकायस्यानी सामने बढत होता. ना कधी आठ
ही पाटी सर करीन त उनकी व्जत होत होती।
घान माकडी: घान माकडी को खेल मा लहान टुरू पोटू ला बडी मजा आव। रातभर खेल, हासी मजाक
चल।
परसा को फ
ू ल आनक़र उनला उबालकर रंग बनावत होता। फ
ू ल को मस्त नैसचगिक संतरा रंग होरी
की मज्या मा अचधक रंग भर देत होतो। दूसरो हदन होरी मा िेन लक बनाई अलग अलग आकृ नत की
मार (माला) जराई जासे वा मार कोठा मा आनकर लटकाई जासे। संदुकमा मा का जुना कपडा ननकल
सेती। मरादमाना फगनोटी (गाव भर गुलाल लगाना सबसे ममलना) मांग सेती। ओको बाद महातनी बेरा
चौक मा ड्राम मा रंग बनावत होता ,,सब टूरू पोटु रंग खेलकर होरी को रंगमा रंगकर रंगो को त्योहार
मनाव सेती।
✍️✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी
7. 7
गवत
सौ वंदना कटरे
धरतीपर हतरीसे
मुलायम गादी
ससा, हररण करसेत
मांदीपर मांदी ||5||
नहानसो तुराला
रंग रंग का फ
ु ल
पाखरूला खेलनला
पाडसेत भुल ||6||
इत-उत फ
ै लीसे
आंग येको मुलाम
मरतवरी नही होय
कोणीकोच गुलाम ||7||
सबला देसे गवत
एकताको धडा
येन गुणलका भरो
जीवन को घडा ||8||
वंदना कटरे "राम-कमल "
गोंहदया. 21|02|2023
हहवरो काचो गवतका
नहान मोठा पाना
हवा संग गावसेती
हदन रात गाना ||1||
गुदगुदी कर पायला
हासी आव खूप खूप
नही लग् चप्पल
ठंडी होय जासे धूप ||2||
बाररस को मौसम मा
दूर नको जास
आपलो मटकन की
पूरी करो आस ||3||
कोवरो कोवरो गवत
आवडसे गायला
ममठो ममठो दुध
टुरूपोटु वपवनला ||4||
धरतीपर हतरीसे
मुलायम गादी
ससा, हररण करसेत
मांदीपर मांदी ||5||
नहानसो तुराला
8. 8
रोिनी बेटी
रोिनी यन् बरस दसवी मा होती। गाव मा
दसवीं तक स्क
ू ल होतो अन वोको बाद बारहवी तक पढ़न लाई
जवर को क़स्बा मा जावत होनतन। टुरा चगन त् कसो भी सायकल
धरकन ककतन भी जायकन भी पढ़ लेत होनतन परा टुरी इन लाई
माय बाप ला बडी चचंता रहवत होती। यन् गाव लक़ एकच बेटी
न् दसवी पास करी होती अना वोला नयारवी लाई नवुरगांव मा
धाडीन् परा वोन टुरी ला जरसो बाहहर की हवा का लगी, बारहवी
मा जावता जावता एक आढ़जात को टुरा को बहकावा मा आयकन
आपरो माय बाप अन् पररवार ला सोडकन नहान सी उमर मा
पराय गई। यन कच्ची उमर मा समझ की कमी अना कफमलम की दुननया को यव असर की टुरा टुरी
को वपरम को आगे देवता तुल्य माय बाप को कोनी मोल नहाय, जसो संस्कार नवी पीढ़ी ला गलत
हदिा मा जावन की सीख देसे अना असी नकली सीख को कारन् ओन टुरी ना आपरो हाथ लक़ आपरो
भववष्य मा नास कर डाककस। वोको बादमा वा ककत पराई कोई ला मालूम नहाय।
अज़ यन् गाव मा एक टुरी को असो गलत रस्ता मा जावन् को कारन पुरो गाव का
माय बाप मा भय समाय गय होतो की टुरी इनला बाहहर पढ़न लाई धाडनो ओनकी व्जंदगी ख़राब कर
देसे। रोिनी पढ़न मा बडी चंट होती अन वोला पढ़न लाई साजरी लगन भी होती परा वोको माय अजी
ला आता यव चचंता खाय रही होती की दसवीं को बाद मा येतरी हुमियार बेटी ला घर मा बसावबीन की
बाहहर पढ़नला धाडबीन। ररतेि भी पढ़नमा साजरो होतो अना ओको भी यव इक्छा होती की बहहन ला
भी पढ़वानो से परा बाबूजी तययार नही होय रहया होनतन।
सायनी माय त् अनपढ़ होती परा वय रोिनी ला ररतेि को जसो पढ़ावन को इक्छा
राखत होनतन। उनको कवहनो होतो मी त् रामायण भी नही पढ़ मसक सु अना मोरी बहु त् पााँचवीच
तक पहढ़से परा अज़ की पीढ़ी ला पढ़नो बढ़नों जरुरी से। रोिनी को बाद गाव मा कई टुरी होनतन
व्जनला आगे पढ़न की चाह होती परा एक टुरी को गलत कदम को कारन पुरो गाव मा भय को माहौल
भय गयो होतो।
दसवीं मा रोिनी को ब्लॉक मा पहहलो नंबर आयो होतो। रोिनी को वपताजी वोला आगे
की पढ़ाई लाई राजी नही भया । सबला रोिनी परा पुरो भरुषा होतो की वोला पढ़न लाई लगत लगन
से अना वा असो वसो काई नही करन की। रोिनी की माय भी ओको वपताजी की सोच ला सही मानत
9. 9
होती परा सायनी माय ला आपरी पोती परा पुरो भरुषा होतो की वू आपरो पररवार समाज को नाव
रोिन करहे। सायनी माय ना रोिनी ला सांचगस की गाव मा जेतरो भी पढ़न वालों टुरू पोटू इनला
हाकल कन इत् आन। रोिनी को घर मा सब आयीन् त् सायनी माय ना सबला यव पूसीस की बेटा
इनला त् बाहहर पढ़नला धाडसेती परा येक टुरी गलती की सजा आता गाव की सबच बेटी इनला सजा
देनो क
े तरो सही रहे। वोना सबलक यव पूसीस की तुम्ही सब भी वोना टुरी जसी होय जाहो यव भय
तुमरो माय-बाप ला से अना येको लाई वय तुमरो बाहर जायकन पढ़न-मलखन को ववरोध मा ऊभो होय
गया सेती, आता तुम्ही च सांगो की तुमला सही रहकन पढ़ाई कर आपरो अना पररवार को नाव मोठो
करनो से की वोन टुरी जसो आपरो अन् समाज को नाव खाल्या पाडनो से। तुमरो इरादा पक्को रहें त्
असी काई बाधा तुमरो रस्ता मा नही आवन को से अना यव पक्को मन लक आपरो माय अजी ला
यव भरुषा हदलावनो से। तुम्ही सब ममलकन सबलक पहहले आपरी माय इनला भरुषा देव अना सप्पाई
नारी िव्क्त ममलकन सबला यन भरुषा लक मनावनों पढ़े।
गाव मा सब लोक ममलकन बेटी इनला पढ़ायकन आगे बढ़ावन को अमभयान मा जुट गईन।
रोिनी को भरुषा अना वोकी पढ़ाई को प्रनत असो समपिन् को भाव ला देखकन वोको वपताजी न् आपरी
बेटी ला आगे पढ़न लाई भेजनला तयार भय गयीन। साल दर साल रोिनी ना हर परीिा ला पास
करखन कॉलेज मा प्राध्यापक बन गई। तसच गाव की कई बेटी इनना कई परीिा इनमा सफलता
अव्जित भी करीन अन आपरो माता वपता इनको सपन ला पुरो करीन।
✍️श्री ऋवष बबसेन, बालाघाट
*अलक*
*अंधश्रद्धा को परीणाम*
**************************
उववशी नौकरी लायी साक्षात्कार देणं गयी... अचानक गाडी को सामने बबल्लू आडवी गयी. जरा रुकस्यारी रस्ता
पार करक
े ऑफिस मा गयी...देखसे त् जास्त बेरा को कारण दुसरोला नौकरी ममल गयी.
श्री उमेंद्र युवराज बबसेन (प्रेररत)
रामाटोला गोंहदया (श्रीिेत्र देहू पुणे)
10. 10
*भयी फव्जती स्क
ू ल मा*
श्री उमेंद्र युवराज बबसेन (प्रेररत)
रामाटोला गोंहदया (श्रीिेत्र देहू पुणे)
होतो दशवी को कक्षामा
चालू वय वर्व सतरा
मोरो वय को मानलक
नोहोतो मी काही मितरा.
आय बात आठवी कक्षा की
बनेव मी कक्षा नायक
बटा प्रश्न पडेव मोला
होतो का मी ओको लायक.
स्क
ू ल मोरो लायी नवीन
लगायव थोडा ननयम
पुराना टूराईन मोला
धरस्यान देईन दम.
नही चलत तोरा ननयम
मौज मस्ती मा रवबीन
आमीच आजन पुराना
तोरीच का आयकबीन.
सब पुरानो टुराईन
मोरी िजजती कराईन
बेंच को दुयी बाजुलक
मोला जान नहीं देईन.
गयेव बेचपरलका
मस्त क
ु दत जोरलका
सब पुरानो टुराईन
मोरी िजजती कराईन
बेंच को दुयी बाजुलक
मोला जान नहीं देईन.
गयेव बेचपरलका
मस्त क
ु दत जोरलका
गुरूजीन देखीन जसो
मशक्षा देईन छडीलका.
जुनो टूराईन िजजती
करीन मोरी युक्तीलक
कक्षा नायक हटाईन
खुशी ियी वा शानलक.
मीन िी संकल्प करेव
नही करू इनको नाद
उनको हतखंडा िारी
अनुिवल करीन बाद.
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उमेंद्र युवराज बबसेन (प्रेररत)
गोंददया (श्रीक्षेत्र देहू पुणे)
11. 11
*राजा बसंतम्*
वृत्त: मनोरमा
(गालगागा गालगागा)
उंगतो परकास सरसा
लाल सावर लाल परसा
श्री डॉ. प्रल्हाद हररणखेडे 'प्रहरी'
डोंगरगांव/ उलवे, नवी मुंबई
मो. ९८६९९९३९०७
आल क
ु ड़वा एन आंजन
बार ि
ु ल बांधीन काकन
या हवा आयी बसंती
संग दुल्हा आसमंती
गावता कोयार गाना
पाखरू रस का ददवाना
साज धरती राज रानी
या बबया की मेजवानी
िात कोदो स्याग दाना
जेवती बच्चा सयाना
कोन जाने कोन आती
ये घराती या बराती
पान पपवरा अक्षता का
श्लोक गाये मोर काका
गुनगुनाये चचवचचवाये
पीक पानी लहलहाये
कोन जाने कोन आती
ये घराती या बराती
पान पपवरा अक्षता का
श्लोक गाये मोर काका
गुनगुनाये चचवचचवाये
पीक पानी लहलहाये
रंग नाना जाग जागा
िाग सोनो पर सुहागा
यव ऋतू राजा बसंतम्
नव बरस संक
े त उत्तम
13. 13
तुमला माहीत से का?
संकलक- श्री महेंद्र रहांगडाले
भारतीय राष्रीय हदनदमििका
भारतीय राष्रीय कालगणना (कलेंडर) येव खगोलिास्त्र पर आधाररत से, भारतीय िास्त्रज्ञ
मेघनाद सहा इनन भारतीय पुरातन कलेंडर मा काही सुधारणा कररन अना येव कलेंडर को 22
माचि 1957 ला भारत सरकारनं स्वीकार कररस, येन कलेंडर मा बी 12 च मयना रवं सेत व
ये सौर मंजे सूयि पर आधाररत सेट पर इनकी नावं हे चांद्र वषि सारखीच सेत. इनमा नतथी मंजे
प्रनतपदा, द्ववतीया असो न रयकर 1 ते 31 अंक लक् हदवस मोज ् सेत. भारतीय नववषि की
सुरवात 22 माचि मंजे 1 चैत्र वसंत संपात हदनला होसे. येन कलेंडर मा 365 हदवस रवं सेत
तसोच लीप को साल 21 माचि पासून सुरू होसे. भारतीय राष्रीय कलेंडर एवं नतरंगा, राष्रगीत
सारखोच एक राष्रीय प्रतीक से. खाल्या को चचत्र मा येणं कलेंडर का मयना दीस सेत.
14. 14
*स्क
ू ल की सहल*
सहल जंगल की भयी बढीया
ममल्या प्राणी रंगरंगका देखन
श्री उमेंद्र युवराज बबसेन (प्रेरीत)
ननसगिरम्य करनला भ्रमंती
मास्तरजी न मलजाईन सहल
अभयारण्य मा लगीतसा प्राणी
करत होता चहल न पहल.
देखकर प्राणी अलग रंगका
खूि भय गयेव बालजगत
जंगल को राजा मसंह भी उनला
दीसेव वपंजरामा मस्त कफरत.
हरीण, लांडनया,कोल्हा न भालू
कफरत होता आपलोच धुंदमा
बंदर क
ु दत झाडईनपरा
खारूताई फीरं सबको हदमा.
पिी हदस्या रंगीबेरंगी सबला
करत होता बहुत ककलबबल
हरीण, लांडनया,कोल्हा न भालू
कफरत होता आपलोच धुंदमा
बंदर क
ु दत झाडईनपरा
खारूताई फीरं सबको हदमा.
पिी हदस्या रंगीबेरंगी सबला
करत होता बहुत ककलबबल
सहल भयी बहुत मजेदार
खूि भय गया सब चचलबबल.
15. 15
मोरो देि
००००००००
अटक पासून कटक वरी
ना गुवहाटी लक चौपाटी
कन्याक
ु मारी-काश्मीर वरी
जनता कीच लगीसे दाटी
श्री डी.पी.राहांगडाले
गोंहदया
एकसौ च्याळीस करोड़
जेकी जनसंख्या से िरी
अलगलग जाती,धमवपंथ
बोलीिार्ा,रंगतच न्यारी
जेका अठ्ठावीस राज्य ना
नव सेंत क
ें द्रशामसत प्रदेश
साधू संत को देश यवं
माहात्त्मा देसेती उपदेश
लोकशाही दैश आमरो
यकी रंगत से न्यारी
दस ददशा करसे प्रगती
मारसे लंबीचौळी िरारी
शानलका िळकसे नतरंगा
देशकी आन-बान-शान
सब देशमा िारत महान
यलाच कसेती दहंदुस्थान
****
डी.पी.राहांगडाले
गोंददया
लोकशाही दैश आमरो
यकी रंगत से न्यारी
दस ददशा करसे प्रगती
मारसे लंबीचौळी िरारी
शानलका िळकसे नतरंगा
देशकी आन-बान-शान
सब देशमा िारत महान
यलाच कसेती दहंदुस्थान