"पोवार" श्री महेन जी पटले के द्वारा लिखित इस किताब में पोवार समाज की उत्पत्ति, विकास और विस्तार के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। पोवार समाज धारानगर से विस्तारित होकर वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा था और यह समाज आज "छत्तीस कुलीन पंवार समाज" के नाम से जाना जाता है। ये सभी कुल पुरातन क्षत्रिय हैं जिन्हे सम्मिलित रूप से पोवार या पंवार कहा जाता हैं।
"पोवार"
श्री महेन जी पटले के द्वारा लिखित इस किताब में पोवार समाज की उत्पत्ति, विकास और विस्तार के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। पोवार समाज धारानगर से विस्तारित होकर वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा था और यह समाज आज "छत्तीस कुलीन पंवार समाज" के नाम से जाना जाता है। ये सभी कुल पुरातन क्षत्रिय हैं जिन्हे सम्मिलित रूप से पोवार या पंवार कहा जाता हैं।
भाटो ने इस समाज को मालवा के परमार बताया हैं जो मालवा से सबसे पहले नगरधन आये फिर नागपुर और अंत में वैनगंगा क्षेत्र में जाकर स्थायी रूप से बस गये।
"पोवार" नामक इस ग्रन्थ में इस समाज के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती हैं। श्री महेन जी पटले को इस भागीरथ प्रयास हेतु बहुत बहुत बधाइयाँ और अनंत शुभकामनायें।
"पोवार" श्री महेन जी पटले के द्वारा लिखित इस किताब में पोवार समाज की उत्पत्ति, विकास और विस्तार के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। पोवार समाज धारानगर से विस्तारित होकर वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा था और यह समाज आज "छत्तीस कुलीन पंवार समाज" के नाम से जाना जाता है। ये सभी कुल पुरातन क्षत्रिय हैं जिन्हे सम्मिलित रूप से पोवार या पंवार कहा जाता हैं।
"पोवार"
श्री महेन जी पटले के द्वारा लिखित इस किताब में पोवार समाज की उत्पत्ति, विकास और विस्तार के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। पोवार समाज धारानगर से विस्तारित होकर वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा था और यह समाज आज "छत्तीस कुलीन पंवार समाज" के नाम से जाना जाता है। ये सभी कुल पुरातन क्षत्रिय हैं जिन्हे सम्मिलित रूप से पोवार या पंवार कहा जाता हैं।
भाटो ने इस समाज को मालवा के परमार बताया हैं जो मालवा से सबसे पहले नगरधन आये फिर नागपुर और अंत में वैनगंगा क्षेत्र में जाकर स्थायी रूप से बस गये।
"पोवार" नामक इस ग्रन्थ में इस समाज के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती हैं। श्री महेन जी पटले को इस भागीरथ प्रयास हेतु बहुत बहुत बधाइयाँ और अनंत शुभकामनायें।
This presentation is prepared for the BA students to get basic information on Shaiv Cult. This presentation is incomplete and students advised to get the further and proper information from subjective books and recommended research article.
यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन से सम्बन्धित एक परिचयात्मक अध्ययन है, जिसे विश्वविद्यालय स्तर के एम. ए. शिक्षाशास्त्र विषय के विद्यार्थी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन के प्रति जिज्ञासु लोगों के लिए यत्किंचित् रूप में उपादेय सिद्ध हो सकता है.
This Presentation is prepared for Graduate Students. A presentation consisting of basic information regarding the topic. Students are advised to get more information from recommended books and articles. This presentation is only for students and purely for academic purposes. The pictures/Maps included in the presentation are taken/copied from the internet. The presenter is thankful to them and herewith courtesy is given to all. This presentation is only for academic purposes.
e Magazine in Powari Langugae.
Powari language is spoken by Powar community in Vainganga Valley Central India. Powar are group of 36 clan which migrated from western India in the era of Aurngjeb and settled intially at Nagardhan near Nagpur and finally settled in Vainganga valley. Presntly these known as 36 clan Panwar or Powar community.
Collection of Powari Article/Poem. Powari is mother tounge of Powar(36 clan Panwar) of Vainganga valley in Central India who migrated from Malwa in beginning of Eighteenth century.
This presentation is prepared for the BA students to get basic information on Shaiv Cult. This presentation is incomplete and students advised to get the further and proper information from subjective books and recommended research article.
यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन से सम्बन्धित एक परिचयात्मक अध्ययन है, जिसे विश्वविद्यालय स्तर के एम. ए. शिक्षाशास्त्र विषय के विद्यार्थी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन के प्रति जिज्ञासु लोगों के लिए यत्किंचित् रूप में उपादेय सिद्ध हो सकता है.
This Presentation is prepared for Graduate Students. A presentation consisting of basic information regarding the topic. Students are advised to get more information from recommended books and articles. This presentation is only for students and purely for academic purposes. The pictures/Maps included in the presentation are taken/copied from the internet. The presenter is thankful to them and herewith courtesy is given to all. This presentation is only for academic purposes.
e Magazine in Powari Langugae.
Powari language is spoken by Powar community in Vainganga Valley Central India. Powar are group of 36 clan which migrated from western India in the era of Aurngjeb and settled intially at Nagardhan near Nagpur and finally settled in Vainganga valley. Presntly these known as 36 clan Panwar or Powar community.
Collection of Powari Article/Poem. Powari is mother tounge of Powar(36 clan Panwar) of Vainganga valley in Central India who migrated from Malwa in beginning of Eighteenth century.
Mayari, is a peotry book written in Powari langugae by Engineer Gowardhan ji Bisen. Powari is language spoken by Powar(Panwar) community of Vainganga Valley of Central India.
The peotry book written in Powari langugae by Sau. Fulwanta Bai Jiyalal Chaudhary. Powari is language spoken by Powar(Panwar) community of Vainganga Valley of Central India.
This pdf is a collection of articles and poems which written in Powari language. Powari langugae is spoken by Powar community of Vainganga Valley of Central India.
पोवारी भाषा बालाघाट, गोंदिया, भंडारा अना सिवनी जिला मा बस्या छत्तीस कुर का पंवार / पोवार समाज क़ी भाषा आय। पोवारी भाशा मा पोवारी साहित्यिक कार्यक्रम क़ी रचना इनका संग्रहण पोवारी साहित्य सरिता मा होसे।
पोवार/पंवार समाज मध्यभारत में मुख्यतया बालाघाट, गोंदिया, भंडारा और सिवनी जिलों में निवासरत हैं। छत्तीस कुल का पंवार समाज के विवाह के नेंग दस्तूर और रीतिरिवाजों का उल्लेख इस लेख में किया गया हैं।
पोवारी बोली, मध्य भारत के बालाघाट, भंडारा, गोंदिया और सिवनी जिलों में निवासरत पंवार(पोवार) समाज के द्वारा बोली जाती है और यही उनकी मूल मातृभाषा भी हैं।
*"झुंझुरका", पोवारी बाल ई मासिक पत्रिका*
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क्षत्रिय पोवार(पंवार) समाज की मातृभाषा(मायबोली), पोवारी(पंवारी) में बच्चों की पत्रिका, *"झुंझुरका"* निश्चित ही नई पीढ़ी को अपनी पुरातन संस्कृति और भाषा से परिचित कराती है। छत्तीस कुल का पंवार(पोवार) समाज बालाघाट, गोंदिया, भंडारा और सिवनी जिलों में बसा है और पोवारी बोली ही समाज की मुख्य मातृभाषा है। इस भाषा के अस्तित्व को बचाये रखने और इसका नई पीढ़ी तक प्रचार-प्रसार के लिए इस मासिक e-पत्रिका, का योगदान सराहनीय है।
अठारवीं सदी में पोवार(पंवार) समाज मालवा-राजपुताना से नगरधन-नागपुर होते हुए विशाल वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा है। इतने विशाल क्षेत्र में बसने के कारण पोवारी बोली में कुछ क्षेत्रवार विभिन्नता भी देखने में आती है पर मूल पोवारी बोली और संस्कृति का स्वरूप सब तरफ समान है। आज जरूरत है कि अपने पूरखों की इस विरासत को सहेजकर रखें और इसे मूल स्वरूप में आने वाली पीढियों को सौंपे।
छत्तीस कुल से सजा पोवार(पंवार) समाज ने माँ वैनगंगा की पावन धरती पर खूब तरक्की की है और इस घने जंगल के क्षेत्र को कृषि प्रधान बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। साथ में अपने राजपुताना क्षत्रिय वैभव को बचाकर भी रखा है। विकास के साथ समाज ने आधुनिकता की दौड़ में अपनी विरासत, पोवारी बोली को कुछ खोना शुरू कर दिया, लेकिन साहित्यकारों ने अपनी कलम से इसे संजोना शुरू कर दिया है और समाज को जागृत करने हेतु काफी प्रयास किये जा रहे हैं।
भाषा और संस्कृति, किसी भी समाज की महान विरासत होती है और इसके पतन से समाज की पहचान खो जाति है और समाज का भी पतन भी संभव है। ऐसे ही छत्तीस कुर के पोवार/पंवार समाज की महान ऐतिहासिक विरासत, "पोवारी संस्कृति" है, जिसे समाज को हर हाल में बचाना ही होगा। अपनी संस्कृति और पहचान का रक्षण, हर किसी का धर्म हैं। भारत का संविधान भी इसकी पूरी स्वतंत्रता देता है और इसी दायरे में रहकर सभी पोवार भाई-बहनों को आगे आकर अपनी महान विरासत, भाषा, पुरातन सनातनी परंपराओं और रीति-रिवाज का संरक्षण और संवर्धन करना है।
यह e-पत्रिका, "झुंझुरका", समाज के युवाओं की अपनी मातृभाषा/मायबोली को बचाने की शानदार पहल है। इसी प्रकार और भी निरन्तर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रियों का इतिहास
मालवा से नगरधन होकर वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवारों का गौरवशाली लेकिन संघर्षों से भरा इतिहास रहा है। ग्यारहवी से तेरहवीं सदी तक मध्य भारत पर मालवा के पंवार राजाओं का शासन था लेकिन मालवा पर इनकी सत्ता खोने के बाद मध्यभारत में पंवारों का कोई और विशेष इतिहास नही मिलता। यह समय पंवारों का संघर्ष भरा समय था और वे समय समय पर भारतीय राजाओं का सहयोग करते रहे। मराठा काल और ब्रिटिश काल में लिखी किताबें, जनगणना दस्तावेज, जिला गैज़ेट और शासकीय रिपोर्ट्स में वर्तमान में वैनगंगा क्षेत्र में बसे पोवारों का व्यापक इतिहास मिलता है और इसमें कहा गया है कि इनका आगमन स्थानीय राजाओं के मुगलों के विरुद्ध संघर्ष हेतु सहयोग मांगने पर आगमन हुआ। इन शासकों ने पंवारों की वीरता को देखते हुए इन क्षेत्रों में स्थायी रूप से बसने के लिए प्रेरित किया।
वैनगंगा क्षेत्र में पोवारों की बसाहट : Central Provinces' Census, १८७२, के अनुसार वैनगंगा क्षेत्र के पोवार(पंवार) मुलत: मालवा के प्रमार(Pramars) है जो सर्वप्रथम नगरधन, जो की जिला नागपुर के रामटेक के पास है, आकर बसे थे। सन १८७२ की इस रिपोर्ट में कहा गया है की इन क्षेत्रों में पोवारों का मालवा से आगमन इस जनगणना के लगभग सौ वर्ष पूर्व हुआ है। इसका अर्थ यह है की १७७० के आसपास वैनगंगा क्षेत्र में पोवार बस चुके थे। भाटों की पोथियों में मालवा राजपुताना से परमार क्षत्रियों के नगरधन आकर, वैनगंगा क्षेत्र में विस्तारित होने का उल्लेख मिलता है। नगरधन, विदर्भ का सबसे पुराना ऐतिहासिक नगर है और ग्यारहवीं शदी के अंत में भी इन क्षेत्रों पर मालवा के प्रमार वंश का शासन था। ११०४ में मालवा नरेश उदियादित्य के पुत्र लक्ष्मण देव ने नगरधन आकर विदर्भ का शासन संभाला था। नागपुर प्रशस्ति और सेंट्रल प्रोविएन्सेस गैज़ेट १८७० में इसका उल्लेख मिलता है। १८७२ की जनगणना रिपोर्ट में लिखा है की पोवारों के द्वारा नगरधन में किले का निर्माण किया। चूँकि यह पहले से ही विदर्भ के विभिन्न राजवंशो की राजधानी रही है इसलिए उसी जगह पर पोवारों के द्वारा नगरधन में किले का निर्माण किया गया।
मराठा काल में भी नगरधन, महत्वपूर्ण सैनिक केंद्र था और सेना में पोवारों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। नगरधन और आसपास के क्षेत्रों में पोवारों ने अनेक बस्तियां बसाई थी। भाटो की पोथियों में भी नगरधन और नागपुर में तीन पीढ़ियों के बसने की जानकारी मिलती हैं। उज्जैन से आये श्री दिगपालसिंह बिसेन सर्वप्रथम नगरधन आये थे। पोथी में ७१३ शब्द लिखा हैं और सम्भवतया यह १७१३ होगा जब उनका परिवार नगरधन आया होगा। उनके पुत्र श्री सिरीराज और लक्ष्मणदेव बिसेन के नागपुर में बसने का उल्लेख पोथी में दिया हैं। इसी प्रकार पोवारों के अन्य कुलों का मालवा राजपुताना के विभिन्न क्षेत्रों से नगरधन आकर वैनगंगा क्षेत्र की ओर विस्तार का विवरण हमारे भाट स्व. श्री बाबूलाल जी की पोथी में उल्लेख हैं। १८७२ की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार नगरधन से समय के साथ पंवार, वैनगंगा के पूर्व में आम्बागढ़ और चांदपुर की ओर विस्तारित हुए। कुछ पोवारों ने कटक पर मराठों के विजय अभियान में श्री चिमाजी भोसले का साथ दिया था। कटक अभियान में पोवारों के सौर्य और पराक्रम के कारण पुरस्कार स्वरूप उन्हें लांजी और बालाघाट जिलें में वैनगंगा के पश्चिम में बहुत सी भूमि उन्हें प्रदान की गयी।
1. 1 अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरण
अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरण
रामचरण पटले न करकन अवलोकन
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वरदाक्षहनी माय लक दुआ पायकन!
अठारह पुराण को करीसेव अवलोकन।
प्रासंक्षिक मायबोली मा सारांशीकरण!
साक्षहत्यिक शब्दावली मा सुदृढ़ क्षववेचन।।
क्रमशः सबको होय रही से क्षलखान!
संिेपण मा क्षलखकन सि बखान।
पुराण मा क्षमलसे ब्रम्हाण्ड समाधान!
सन्दर्भ व्याख्या लक करकन ऐलान।
माक
े ण्डेय पुराण मा सुख अिय प्रदान!
माय र्वानी को से सहयोि प्रदान।
पद्मपुराण मा से सुक्षवक्षशष्ट क्षवधान!
समस्त र्ू र्ाि खंड को तत्वाधान।
तीसरो क्षवष्णु पुराण मा से उल्लेखन;
आधार स्तम्भ राजा ईनको िुणिान!
र्ारत देश मा पहले जन्म लेयकन;
जनमानस मा वीरतापूणभ पक्षहचान।
2. 2 अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरण
चौथो क्षशव पुराण मा मुख्य क्षवश्लेषण;
र्िवान क्षशवलक क्षमलेव सबला वरदान!
सब जीव जन्तु ला जीवन ला देयकन;
क्षशव को वायु लक जीवधारी का प्राण।
सौरमंडल को र्यो पररिण;
समस्त जि को र्यो कल्याण!
ब्रम्हा क्षवष्णु जी ला देयकन वचन;
क्षशव जी र्ोला र्ंडारी दयावान।
पांचवीं र्ािवत पुराण मा र्यी िणना;
र्त्यि र्ावना मा सब रमकन र्िवान!
माय र्िवती की र्यी से मनोकामना;
ऋक्षष मुक्षन संत लक र्यो िुणिान।
छटवो नारद पुराण मा से प्रवचन;
नारद की कला को क्षदव्य प्रसारण!
अचत्यम्भत अवतार प्रर्ू लेयकन;
देव -दानव मा करसे सुसमन्वयण।
सातवो माक
े ण्डेय पुराण मा विीकरण;
र्यो देव अना दानव मा वाताभलाप संवाद!
र्िवती र्वानी दुिाभ शत्यि अवतारकन;
क्षववाद को कारण दानव र्या बबाभद।
3. 3 अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरण
अक्षि पुराण मा क्षबष्णू जी मत्स्य अवतार!
सृक्षष्ट को करनला कल्याण उध्दार।
र्िवान न करीसेस र्व्यतम चमत्कार!
सकल संसार को र्यो अदर्ुत सुधार।
नौवमो र्क्षवष्य पुराण मा अवलोकन;
र्क्षवष्यित कथा कहानी को से क्षवधान!
पौराक्षणक राज्य वंशज को से क्षचत्रीकरण;
सि नारायण कथा को र्यी से िुणिान।
दसवो ब्रह्मावैवतभ पुराण मा से वक्षणभत!
देवी -देवता ईनको कथानक आहवान।
श्री क
ृ ष्ण र्िवान लक ज्ञान से संकक्षलत!
पथ प्रदशभक बनकन क्षदव्य र्व्य रुपवान।
ग्यारहवो क्षलंि पुराण मा क्षकक्षतभ क्षचत्रीत;
र्िवान सूयभदेव की वशंज खानदान!
राजा अम्बरीष लक र्यी सम्पाक्षदत;
तंत्र मंत्र यंत्र लक घोर क्षवद्या क्षवज्ञान।
बारहवो वराह पुराण मा से क्षवमोचन!
तीन लोक को र्यो सुक्षवस्तारीकरण।
सूयभ उत्तरायण दक्षिणायन आिमण!
सूयभ को शत्यि लक सब होसे संश्लेषण।
4. 4 अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरण
तेरहवो स्कन्द पुराण मा क्षनदीष्टीकरण;
प्राक
ृ क्षतक सम्पदा को मनोहारी सुसृज्जन!
बारह ज्योक्षतक्षलिंि मा से क्षशव जी अवतरण;
िंिा जी अवतारकन करीसेस संतुलन।
चौदहवो वामन पुराण मा प्रासंिीकीकरण;
र्ौिौक्षलक संरचनात्मक र्यी से िणना!
र्ारत को हर िेत्र को रोचक संस्मरण;
प्राचीनतम सभ्यता की र्यी से क्षववेचना।
पन्द्रहवो क
ु मभ पुराण मा से सजीव क्षचत्रण!
नैक्षतकता दाशभक्षनकता को र्यो अलंकरण।
सब चारी युि उत्पक्षत्त को सन्दर्ीकरण!
सब देवी देवता को र्यो क्षवस्तारीकरण।
सोलहवो मत्स्य पुराण मा क्षबष्णू अवतरण!
अनेकों श्लोक लक र्यी से संस्क
ृ क्षतकरण।
महक्षषभ वेद व्यास जी लक प्रस्तुतीकरण!
शंकर र्िवान जी लक वरदान पायकन।
सत्रहवो िरुड़ पुराण मा र्यो संस्करण!
लख चौरासी यौनी को समाक्षवष्टकरण।
अठारहवो ब्रम्हाण्ड पुराण मा क्षवक्षशष्टीकरण!
धरनी अना अम्बर तल को समाक्षवष्टीकरण।
5. 5 अठारह पुराण को संक्षिप्तीकरण
महक्षषभ वेद व्यास जी न करीस स्पष्टीकरण!
सनातनी क्षसध्दांत लक र्यी से सुक्षचत्रण।
र्ि अना र्िवान की मक्षहमा को िायण!
र्ि ला र्िवान न सािात दशभन देयकन।
माय िढ़काली र्वानी को नाव लेयकन!
मायबोली मा करीसेव सुिक्षठत क्षववरण।
संिेपणकताभ रामचरण पटले लक संशोधन!
आमरो समाज ला से हाथ जोड़कन नमन।।
********************************
देवी िीतकार-रामचरण हरचंद पटले
महाकाली निर नािपुर मोबाइल नं.९८२३९३४६५
मु.पोष्ट:-कटेरा ; तहसील -कटंिी क्षजला बालाघाट (म.प्र.)