पोवारी बोली, मध्य भारत के बालाघाट, भंडारा, गोंदिया और सिवनी जिलों में निवासरत पंवार(पोवार) समाज के द्वारा बोली जाती है और यही उनकी मूल मातृभाषा भी हैं।
e Magazine in Powari Langugae.
Powari language is spoken by Powar community in Vainganga Valley Central India. Powar are group of 36 clan which migrated from western India in the era of Aurngjeb and settled intially at Nagardhan near Nagpur and finally settled in Vainganga valley. Presntly these known as 36 clan Panwar or Powar community.
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Powari language is spoken by Powar community in Vainganga Valley Central India. Powar are group of 36 clan which migrated from western India in the era of Aurngjeb and settled intially at Nagardhan near Nagpur and finally settled in Vainganga valley. Presntly these known as 36 clan Panwar or Powar community.
And in the sixth month the angel Gabriel was sent from God unto a city of Galilee, named Nazareth, To a virgin espoused to a man whose name was Joseph, of the house of David; and the virgin's name was Mary. And the angel came in unto her, and said, Hail, thou that art highly favoured, the Lord is with thee: blessed art thou among women. And when she saw him, she was troubled at his saying, and cast in her mind what manner of salutation this should be. And the angel said unto her, Fear not, Mary: for thou hast found favour with God. And, behold, thou shalt conceive in thy womb, and bring forth a son, and shalt call his name JESUS. He shall be great, and shall be called the Son of the Highest: and the Lord God shall give unto him the throne of his father David: And he shall reign over the house of Jacob for ever; and of his kingdom there shall be no end. LUKE 1:26-33
2nd Maccabees is a deuterocanonical book which recounts the persecution of Jews under King Antiochus IV Epiphanes and the Maccabean Revolt against him. Painting by Pierre Paul Rubens, 1634.
पोवारी भाषा बालाघाट, गोंदिया, भंडारा अना सिवनी जिला मा बस्या छत्तीस कुर का पंवार / पोवार समाज क़ी भाषा आय। पोवारी भाशा मा पोवारी साहित्यिक कार्यक्रम क़ी रचना इनका संग्रहण पोवारी साहित्य सरिता मा होसे।
Collection of Powari Article/Poem. Powari is mother tounge of Powar(36 clan Panwar) of Vainganga valley in Central India who migrated from Malwa in beginning of Eighteenth century.
And in the sixth month the angel Gabriel was sent from God unto a city of Galilee, named Nazareth, To a virgin espoused to a man whose name was Joseph, of the house of David; and the virgin's name was Mary. And the angel came in unto her, and said, Hail, thou that art highly favoured, the Lord is with thee: blessed art thou among women. And when she saw him, she was troubled at his saying, and cast in her mind what manner of salutation this should be. And the angel said unto her, Fear not, Mary: for thou hast found favour with God. And, behold, thou shalt conceive in thy womb, and bring forth a son, and shalt call his name JESUS. He shall be great, and shall be called the Son of the Highest: and the Lord God shall give unto him the throne of his father David: And he shall reign over the house of Jacob for ever; and of his kingdom there shall be no end. LUKE 1:26-33
2nd Maccabees is a deuterocanonical book which recounts the persecution of Jews under King Antiochus IV Epiphanes and the Maccabean Revolt against him. Painting by Pierre Paul Rubens, 1634.
पोवारी भाषा बालाघाट, गोंदिया, भंडारा अना सिवनी जिला मा बस्या छत्तीस कुर का पंवार / पोवार समाज क़ी भाषा आय। पोवारी भाशा मा पोवारी साहित्यिक कार्यक्रम क़ी रचना इनका संग्रहण पोवारी साहित्य सरिता मा होसे।
Similar to झुंझुरका बाल इ मासिक जुलै 2022.pdf (20)
Collection of Powari Article/Poem. Powari is mother tounge of Powar(36 clan Panwar) of Vainganga valley in Central India who migrated from Malwa in beginning of Eighteenth century.
Mayari, is a peotry book written in Powari langugae by Engineer Gowardhan ji Bisen. Powari is language spoken by Powar(Panwar) community of Vainganga Valley of Central India.
The peotry book written in Powari langugae by Sau. Fulwanta Bai Jiyalal Chaudhary. Powari is language spoken by Powar(Panwar) community of Vainganga Valley of Central India.
This pdf is a collection of articles and poems which written in Powari language. Powari langugae is spoken by Powar community of Vainganga Valley of Central India.
पोवार/पंवार समाज मध्यभारत में मुख्यतया बालाघाट, गोंदिया, भंडारा और सिवनी जिलों में निवासरत हैं। छत्तीस कुल का पंवार समाज के विवाह के नेंग दस्तूर और रीतिरिवाजों का उल्लेख इस लेख में किया गया हैं।
*"झुंझुरका", पोवारी बाल ई मासिक पत्रिका*
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क्षत्रिय पोवार(पंवार) समाज की मातृभाषा(मायबोली), पोवारी(पंवारी) में बच्चों की पत्रिका, *"झुंझुरका"* निश्चित ही नई पीढ़ी को अपनी पुरातन संस्कृति और भाषा से परिचित कराती है। छत्तीस कुल का पंवार(पोवार) समाज बालाघाट, गोंदिया, भंडारा और सिवनी जिलों में बसा है और पोवारी बोली ही समाज की मुख्य मातृभाषा है। इस भाषा के अस्तित्व को बचाये रखने और इसका नई पीढ़ी तक प्रचार-प्रसार के लिए इस मासिक e-पत्रिका, का योगदान सराहनीय है।
अठारवीं सदी में पोवार(पंवार) समाज मालवा-राजपुताना से नगरधन-नागपुर होते हुए विशाल वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा है। इतने विशाल क्षेत्र में बसने के कारण पोवारी बोली में कुछ क्षेत्रवार विभिन्नता भी देखने में आती है पर मूल पोवारी बोली और संस्कृति का स्वरूप सब तरफ समान है। आज जरूरत है कि अपने पूरखों की इस विरासत को सहेजकर रखें और इसे मूल स्वरूप में आने वाली पीढियों को सौंपे।
छत्तीस कुल से सजा पोवार(पंवार) समाज ने माँ वैनगंगा की पावन धरती पर खूब तरक्की की है और इस घने जंगल के क्षेत्र को कृषि प्रधान बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। साथ में अपने राजपुताना क्षत्रिय वैभव को बचाकर भी रखा है। विकास के साथ समाज ने आधुनिकता की दौड़ में अपनी विरासत, पोवारी बोली को कुछ खोना शुरू कर दिया, लेकिन साहित्यकारों ने अपनी कलम से इसे संजोना शुरू कर दिया है और समाज को जागृत करने हेतु काफी प्रयास किये जा रहे हैं।
भाषा और संस्कृति, किसी भी समाज की महान विरासत होती है और इसके पतन से समाज की पहचान खो जाति है और समाज का भी पतन भी संभव है। ऐसे ही छत्तीस कुर के पोवार/पंवार समाज की महान ऐतिहासिक विरासत, "पोवारी संस्कृति" है, जिसे समाज को हर हाल में बचाना ही होगा। अपनी संस्कृति और पहचान का रक्षण, हर किसी का धर्म हैं। भारत का संविधान भी इसकी पूरी स्वतंत्रता देता है और इसी दायरे में रहकर सभी पोवार भाई-बहनों को आगे आकर अपनी महान विरासत, भाषा, पुरातन सनातनी परंपराओं और रीति-रिवाज का संरक्षण और संवर्धन करना है।
यह e-पत्रिका, "झुंझुरका", समाज के युवाओं की अपनी मातृभाषा/मायबोली को बचाने की शानदार पहल है। इसी प्रकार और भी निरन्तर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
✍️ऋषि बिसेन, बालाघाट
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मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रियों का इतिहास
मालवा से नगरधन होकर वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवारों का गौरवशाली लेकिन संघर्षों से भरा इतिहास रहा है। ग्यारहवी से तेरहवीं सदी तक मध्य भारत पर मालवा के पंवार राजाओं का शासन था लेकिन मालवा पर इनकी सत्ता खोने के बाद मध्यभारत में पंवारों का कोई और विशेष इतिहास नही मिलता। यह समय पंवारों का संघर्ष भरा समय था और वे समय समय पर भारतीय राजाओं का सहयोग करते रहे। मराठा काल और ब्रिटिश काल में लिखी किताबें, जनगणना दस्तावेज, जिला गैज़ेट और शासकीय रिपोर्ट्स में वर्तमान में वैनगंगा क्षेत्र में बसे पोवारों का व्यापक इतिहास मिलता है और इसमें कहा गया है कि इनका आगमन स्थानीय राजाओं के मुगलों के विरुद्ध संघर्ष हेतु सहयोग मांगने पर आगमन हुआ। इन शासकों ने पंवारों की वीरता को देखते हुए इन क्षेत्रों में स्थायी रूप से बसने के लिए प्रेरित किया।
वैनगंगा क्षेत्र में पोवारों की बसाहट : Central Provinces' Census, १८७२, के अनुसार वैनगंगा क्षेत्र के पोवार(पंवार) मुलत: मालवा के प्रमार(Pramars) है जो सर्वप्रथम नगरधन, जो की जिला नागपुर के रामटेक के पास है, आकर बसे थे। सन १८७२ की इस रिपोर्ट में कहा गया है की इन क्षेत्रों में पोवारों का मालवा से आगमन इस जनगणना के लगभग सौ वर्ष पूर्व हुआ है। इसका अर्थ यह है की १७७० के आसपास वैनगंगा क्षेत्र में पोवार बस चुके थे। भाटों की पोथियों में मालवा राजपुताना से परमार क्षत्रियों के नगरधन आकर, वैनगंगा क्षेत्र में विस्तारित होने का उल्लेख मिलता है। नगरधन, विदर्भ का सबसे पुराना ऐतिहासिक नगर है और ग्यारहवीं शदी के अंत में भी इन क्षेत्रों पर मालवा के प्रमार वंश का शासन था। ११०४ में मालवा नरेश उदियादित्य के पुत्र लक्ष्मण देव ने नगरधन आकर विदर्भ का शासन संभाला था। नागपुर प्रशस्ति और सेंट्रल प्रोविएन्सेस गैज़ेट १८७० में इसका उल्लेख मिलता है। १८७२ की जनगणना रिपोर्ट में लिखा है की पोवारों के द्वारा नगरधन में किले का निर्माण किया। चूँकि यह पहले से ही विदर्भ के विभिन्न राजवंशो की राजधानी रही है इसलिए उसी जगह पर पोवारों के द्वारा नगरधन में किले का निर्माण किया गया।
मराठा काल में भी नगरधन, महत्वपूर्ण सैनिक केंद्र था और सेना में पोवारों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। नगरधन और आसपास के क्षेत्रों में पोवारों ने अनेक बस्तियां बसाई थी। भाटो की पोथियों में भी नगरधन और नागपुर में तीन पीढ़ियों के बसने की जानकारी मिलती हैं। उज्जैन से आये श्री दिगपालसिंह बिसेन सर्वप्रथम नगरधन आये थे। पोथी में ७१३ शब्द लिखा हैं और सम्भवतया यह १७१३ होगा जब उनका परिवार नगरधन आया होगा। उनके पुत्र श्री सिरीराज और लक्ष्मणदेव बिसेन के नागपुर में बसने का उल्लेख पोथी में दिया हैं। इसी प्रकार पोवारों के अन्य कुलों का मालवा राजपुताना के विभिन्न क्षेत्रों से नगरधन आकर वैनगंगा क्षेत्र की ओर विस्तार का विवरण हमारे भाट स्व. श्री बाबूलाल जी की पोथी में उल्लेख हैं। १८७२ की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार नगरधन से समय के साथ पंवार, वैनगंगा के पूर्व में आम्बागढ़ और चांदपुर की ओर विस्तारित हुए। कुछ पोवारों ने कटक पर मराठों के विजय अभियान में श्री चिमाजी भोसले का साथ दिया था। कटक अभियान में पोवारों के सौर्य और पराक्रम के कारण पुरस्कार स्वरूप उन्हें लांजी और बालाघाट जिलें में वैनगंगा के पश्चिम में बहुत सी भूमि उन्हें प्रदान की गयी।
*पंवार(पोवार) समाज की प्रतिष्ठा और वैभव*🚩🚩🚩
*समाज का सर्वविकास*🤝🤝
*पोवारी सांस्कृतिक चेतना केंद्र*🚩
नगरधन-वैनगंगा क्षेत्र में पंवारों को आकर बसने में लगभग 325 वर्ष हो चुके हैं और इन तीन शतकों में इस समाज ने इस क्षेत्र में विशेष पहचान बनाई हैं। मालवा राजपुताना से आये इन क्षत्रियों के पंवार(पोवार) संघ ने इस नवीन क्षेत्र के अनुरूप खुद को ढाल लिया लेकिन साथ में अपनी मूल राजपुताना पहचान को भी बनाये रखा है।
पोवार अपनी पोवारी संस्कृति और गरिमा के साथ जीवन व्यापन करते हैं और निरंतर विकास पथ पर अग्रसर हैं। शाह बुलन्द बख्त से लेकर ब्रिटिश काल तक इन क्षत्रियों की स्थानीय प्रशासन और सैन्य भागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वैनगंगा क्षेत्र में बसने के बाद पंवारों ने खेती को अपना मूल व्यवसाय चुना और इन क्षेत्रों में उन्नत कृषि विकसित की।
देश की आजादी के बाद से समाज में खेती के अतिरिक्त नौकरी और अन्य व्यवसाय की तरफ झुकाव बढ़ता गया और आज सभी क्षेत्रों में पोवार भाई निरंतर तरक्की कर रहे है। जनसंख्या में बढ़ोतरी के साथ कृषि जोत का आकार छोटा होता गया और छोटी जोत तथा श्रमिक न मिलने के कारण अब कृषि के साथ नौकरी और अन्य आय के साधनों को अपनाना समय की आवश्यकता है इसीलिए अब समाज जन दुसरो शहरों की ओर रोजगार हेतु विस्थापित भी हो रहे हैं। वैनगंगा क्षेत्र से बड़ा विस्थापन नागपुर, रायपुर सहित कई अन्य शहरों में हुआ है, हालांकि कोरोना जनित परिस्थितियों के कारण कई परिवार वापस अपने मूल गांव भी आये हैं। बालाघाट, गोंदिया, सिवनी और भंडारा जिलों के मूल निवासी, छत्तीश कुल के पोवार अब देश-विदेश में अपने कार्यों से समाज के वैभव को आगे बढ़ा रहे हैं।
विकास के आर्थिक पहलुओं के साथ सामाजिक पहलुओं पर भी चिंतन किया जाना आवश्यक है। समाज की तरक्की के साथ सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण भी जरूरी हैं तभी इसे समग्र विकास माना जायेगा। यह बहुत ही गौरव का विषय है कि समाज की बोली अपनी बोली है, जिसे पोवारी कहते है। आज समाज की जनसंख्या लगभग तेरह से पंद्रह लाख के मध्य है और लगभग आधी जनसंख्या ही पोवारी बोली बोलती है या जानती हैं, जिसका प्रतिशत धीरे धीरे और भी कम हो रहा है। समाज के सभी लोग इस दिशा में मिलकर काम करे तो नई पीढ़ी को अनिवार्य रूप से पोवारी सिखा सकते है। पोवारी ही समाज की मातृभाषा है, लेकिन हिंदी और मराठी, क्षेत्रवार यह स्थान ले रही है। पोवारी सिर्फ हमारे समाज की बोली है इसीलिए यह उतनी व्यापक तो नही हो सकती पर अपने परिवार और समाज के मध्य इसका बहुतायत में प्रयोग करें तो पूरा समाज इसे बोल पायेगा।
आर्थिक समस्याओं के साथ अंतरजातीय विवाह, धर्मपरिवर्तन, पोवारी सांस्कृतिक मूल्यों का पतन, देवघर की चौरी का त्याग, ऐतिहासिक नाम पंवार और पोवार के साथ छेड़छाड़ कर दूसरे समाजों के नामों को ग्रहण करवाना, बुजुर्गों के अच्छे पालन-पोषण में कमी, दहेज की मांग आदि अनेक समस्याएं समाज के सामने खड़ी हैं जिसको सभी को मिलकर सुलझाना है। सामाजिक संस्थाओं को भी पोवारी बोली और उन्नत पंवारी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आना होगा।
"पोवार"
श्री महेन जी पटले के द्वारा लिखित इस किताब में पोवार समाज की उत्पत्ति, विकास और विस्तार के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। पोवार समाज धारानगर से विस्तारित होकर वैनगंगा क्षेत्र में आकर बसा था और यह समाज आज "छत्तीस कुलीन पंवार समाज" के नाम से जाना जाता है। ये सभी कुल पुरातन क्षत्रिय हैं जिन्हे सम्मिलित रूप से पोवार या पंवार कहा जाता हैं।
भाटो ने इस समाज को मालवा के परमार बताया हैं जो मालवा से सबसे पहले नगरधन आये फिर नागपुर और अंत में वैनगंगा क्षेत्र में जाकर स्थायी रूप से बस गये।
"पोवार" नामक इस ग्रन्थ में इस समाज के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती हैं। श्री महेन जी पटले को इस भागीरथ प्रयास हेतु बहुत बहुत बधाइयाँ और अनंत शुभकामनायें।
वैनगंगा क्षेत्र में बसे क्षत्रिय पंवार(पोवार) की गौरवगाथा Kshtriya Panwar
The Panwar(Powar) community basically migrated from malwa. Initially they arrived at Nagardhan and via Nagpur finally the society settled in Bhandara(include Gondia), Balaghat and Seoni district in Vainganga valley of Central India. Society is divided in thirty six kul. The mothertounge of society is Powari.
2. 2
संपादकीय.......
दोस्तहो......जुलै मयना बारीसको मुख्य मयनामा गिनेव जासे. येन् मयनामा छमछम पळत्
बारीसलक धरती माता हहरवी बाली पेहरेवानी चोवसे. येन् मयनामा कास्तकारीका काम सुरू होसेत. जजत्
उत् धानको रोवना सुरू होसे. या बारीस अन्नदाता कास्तकारला बहुत खुशी देसे. कास्तकार अनाज
पकायस्यान पूरो देशला पालंसे. येव कास्तकार बारीसपर ननर्भर रहेलक बहुतबार पाणीकी कमी त् कयी
बार पूरपाणीलक कास्तकारीको नुकसानबी होसे. असो संकटमाबी कास्तकार सामनेसाल् बारीस साजरी
होये येन् सकारात्मक सोचलक कास्तकारीमा धान पेरंसे. अना परा लिावसे.
कास्तकारकी याच सकारात्मक सोच आदमीला जजवण जिताना प्रेरणा देसे. अशीच सकारात्मक
सोच तुमी आपल्
जीवनमा अपनावो अना आपलो जजवण समृद्ध करो. झुंझुरका माससक याच सकारात्मक सोच
ठेयस्यान पोवारी बाल साहहत्य तुमर् वरी पोवचावनको प्रयास कर रही से. येव बाल साहहत्य तुमला
पसंद आवसे का नही येको असर्प्राय तुमी आमला धाळत जाव.
- िुलाब बबसेन
संपादक - झुंझुरका पोवारी बाल ई माससक
मो. नं. 9404235191
संपादक मंडल
श्री िुलाब बबसेन, संपादक
श्री रणदीप बबसने, उपसंपादक
श्री महेंद्रकु मार पटले, उपसंपादक
श्री महेंद्र रहांिडाले, उपसंपादक
ननसमभती
महेंद्र रहांिडाले
3. 3
शब्दगचत्र कथा – 1
लेखक - िुलाब बबसेन, ससतेपार
मो.नं. 9404235191
श्लोक मा जात होतो. रस्तामा वोला समलेव.
पाऊचमा अना होता. होता.
पाऊचको अंदर सोहम कटरे असो नाव सलखेव होतो. श्लोकन ् शाळामा
(िुरूजी जवर देईस. िुरूजीन ् सोहमला देईन. सोहमन ् श्लोकला
देईस.
(सब बाल वाचक ईनन वरत्या की शब्द गचत्रकथा आपलो मम्मी पप्पा ला बाचक
े देखावो)
4. 4
🌷राधा िवडण 🌷
राधा िवड़न न सकाररच िाई इनको दूध कहाड़ीस।
अना रातीच ओन जिरा र्र दूध को दही जमाईतीस। एक घड़ा मा दूध दूसरों मा दही धररस। डोई पर
कपड़ा की चुंर्र बनाइस् । एक पर एक दुही घड़ा मंडाईस ना वा साकड़ी को बजार ला ननकली।
चलता चलता वा दूध दही बबकश्यानी जो पैसा समलेत, ओकों बीचार करन बसी। "जब मोला
पैसा समलेत ,तब ओन पैसा लक मी कोंबड़ी लेऊ
ं । सब कोंबडी अंडा देयेती, मंि मोरो जवर अहदक कोंबडी
होयेती। उनला बबक
ु न, असो करता करता मोरो जवर मनमानी पैसा जमा होयेती। मंि मी एक मोठो
जात घर लेऊन। सब मोला बबचारेती, तू पोल्ट्री फॉमभ बबकसेस का?? मी डोस्का हलाएकर ,नहीं बाबा
नहीं कहुन।"
अना ओका बबचार चालूच होता , ओन घड़ा को हाथ सोडडस ,ना डोस्की हलाईस। तसो ओको
दूध दही सब जसमनपरा संड ियेव। ना वा रोवन बसी।
✍️सौ छाया पारधी
5. 5
*🌷झिा नवो कोरो🌷*
(अष्टाक्षरी काव्य)
होतो नहान जब मी
तब आनं अजी मोरो |
इस्क
ु लमा जानसाती
मस्त झिा नवो कोरो ||१|
*✍️इंजी. िोवधभन बबसेन "िोक
ु ल"*
िोंहदया (महाराष्र), मो. ९४२२८३२९४१
मस्त झिा नवो देख
होतो टाकत तनमा |
मंि मावत नोहोती
खुशी मोरोच मनमा ||२||
जात होतो इस्क
ु लमा
टाकशानी झिा कोरो |
वहााँ सबको सामने
तोरा रव्हं मस्त मोरो ||३||
िोंहदया (महाराष्र) मो. ९४२२८३२९४१
इस्क
ु लमा लका घर
आऊ
ाँ जब घाईलका |
झिा मोरो र्रजाय
पुरो ननळो शाईलका ||४||
असो पयलो हदवस
रव्् इस्क
ू ल को मोरो |
डाट तब मोला माय
देखकर झिा कोरो ||५||
6. 6
🌷 *मोरी शाळा* 🌷
सुंदर साजरी शाळा मोरी
सबदून लिसे मोला प्यारी
सबजन शाळामा जाबीन
ए बी सी डी सशकबबन
✍️✍️सौ छाया सुरेंद्र पारधी
िणणत की ननकलसे सवारी
िुरुजी आमरा िुणी र्ारी
पायथािोरस ननयम बाचबीन
ए बी सी डी सशकबबन
कायभक्रम की याहा रेलचेल
नाटक नृत्य संिीत को मेल
सवाांिीण ववकास करबबंन
ए बी सी डी सशकबबन
सब िुन की खान या शाळा
लिसे जसो फ
ु लईनको मळा
सशककर सुसशक्षक्षत सब होबबन
ए बी सी डी सशकबबन
शाळा की सर्ती मोठी रंिीत
सुंदर गचत्र ना बजसे संिीत
राष्र िान सब िावबबन
ए बी सी डी सशकबबन
शाळा मा से सुंदर बिीचा
रंि रंिका फ
ु ल सेतं बबछ्या
फ
ु ल सररखा सुिंगधत होबीन
ए बी सी डी सशकबबन
मैदान मा खेलसेजन कबड्डी
अजवरी नहीं तुटी कोनीकी हड्डी
संिठन को महत्व जानबबन
ए बी सी डी सशकबबन
7. 7
*सशष्य की सफलता*
या कथा एक िुरु अना सशष्य की आय।आठ- दस बरस को एक टुरा िुरूजी जौर जासे।
टुरा कसे -"मी तुमरो जौर ज्ञान प्राप्त करन लाइक आई सेव"।
िुरूजी कसे-"ये चार सौ िायी सेती इनला चराव, जब ये हजार होय जाहेती तब मोरो
जौर ज्ञान लाइक आय जाजोस"।
चार सौ िायी इनला हजार होन मा बहुत समय लिे, येतरी मोठी जजम्मेदारी िुरूजी न
वोन दस बरस को टुरा ला दे देइस।
टुरा रोज िायी इनला सकारी चराय क
े हदवस बुढ़ता वावपस िुरु जौर आन लेत होतो।असो
काम ननयम लक काही समय वरी चलन लियो।
एक रोज िुरूजी न सशष्य लक पूनछस -"तोरो टोंड परा तेज चमक रही से, असो लिसे
तोला ज्ञान की प्राजप्त र्य िई से"।
सशष्य न नम्रतालक कहहस-"ज्ञान त िुरु लकच प्राप्त होसे"।
िुरूजी कसेत -वू त ठीक से, पर तोरो टोंड परा ज्ञान वानी तेज हदस रही से। तोला
कोइ न त ज्ञान देई रहे?
सशष्य कसे-"मोला मनुष्य गिन त नही, कोनी और ज्ञान देयी सेत।
वोला काई ज्ञान बइल लक समल्ट्यो, काई ज्ञान हंस लक समल्ट्यो होतो, काई पक्षी गिन
लक, काई ज्ञान पेड़ -पौधा गिनलक समल्ट्यो होतो।
िुरूजी कसेत -"तोला जो ज्ञान समलीसे वू बहुत साजरो से।"
िुरूजी न वोन ज्ञान की पूनतभ साठी जो कवह्नो होतो, वोला र्ी क
ै ह देइस। अन सशष्य
सफल र्य ियो।
*✒️बबंदु बबसेन बालाघाट*
8. 8
बाप
पररवार क् सुखसाती जेव
आपली जजिंदगी ठेवसे गहाण,
बाप पररवार साती रव्हसे
असो इन्सान महान.
- चचरिंजीव बबसेन
बाप आपुन पुराना कपडा
फाटी चप्पल पहहनसे,
पर टुरू पोटू इनकी सब
जरूरत पूरी करसे.
लहानपण बाप बेटा बेटी
साती रव्हसे सुपर हहरो,
वोक् सामने सब लोकईनला
समजसेत वोय झिरो.
बाप पर तसा बहुत कम
कववता या लेख सेती,
माय येतरीच जवाबदारी क्
बादबी होसे मायकीच् आरती.
बाप तसो रव्हसे उपेक्षितच
पहले बी ना बादमा बी,
बाप पेिा मायलाच जादा
मानसेत बेटा बेटी बी.
9. 9
गचऊताई
गचऊताई गचऊताई
वपल्ट्लाईन कर देख
चराव तु दानापानी
कर जरा देख रेख
चारो आण गचऊताई
जाए दरदर फफरं
एक एक कण दाना
वा चोचमा जमा कर
िोदा मा लहान वपल्ट्लु
बाट मायकी देखत
आहाट समली मायकी
चोच फाळत रेखत
गचऊताई खवावसे
चोचलका मंि दाना
लहान लहान वपल्ट्लू
फ
ु टेव प्रेमको पान्हा
जसी माय लेकरुला
चराव प्रेमको घास
मोटो होयपर राखो
मायबापको च ध्यास
******
श्री डी.पी.राहांिडाले
िोंहदया
10. 10
*अना पानी आयेव*
बबना रेनकोट 'ना छत्री बाहेर जाऊ
ॅं सोचेव
अना पानी आयेव
मुहूनस्यारी दुही खुटीला दुहीनला खोचेव
अना पानी आयेव ||
वपचवपच रस्ता, वपचवपच माती
पाय बबचारा, फफसलत जाती
कपड़ा डोईपर मातीको णखलपाला नोचेव
अना पानी आयेव ||५||
***********
डॉ. प्रल्ट्हाद हररणखेडे 'प्रहरी'
डोंिरिाव/ उलवे, नवी मुंबई
बाहेर हहटेव तं, तपन हहटीती
संिीइन की, कलपी डटीती
ईस्क
ू ल जानको बेरा अधो रस्तापर पोहोचेव
अना पानी आयेव ||१||
संिीसंिमा, अधाभ ओला
ईस्क
ू ल पोहोच्या, बरफका िोला
बंद छत्री को डंडा मोरो क
ु हूंिाला टोचेव
अना पानी आयेव ||२||
**************
ओली फकताबी, ओलीच पाटी
होमवक
भ बबन, खायेव डाटी
फफज िया उत्तर हदसेव मोला टेकरपर को देव
अना पानी आयेव ||३||
सुटेव ईस्क
ू ल, उचल्ट्या बस्ता
अधो अंतर, िाठ्या रस्ता
सुटमूंडामा संिी इनला जसो धर दबोचेव
अना पानी आयेव ||४||
****
12. 12
िोंहदया (महाराष्र) मो. ९४२२८३२९४१
*चल जाबीन शाळा मां*
-
रणदीप बबसने
चल जाबीन शाळा मां
नोको करूस आळस
सशक्षण जरूरी से बंडू
जीवन होये िा सालस.....
िुरू ससकावसेती िुण
मजबूत बनन र्ववष्य
झटक आळस मन को
सुंदर बनें ना आयुष्य ......
शाळा मां बनसेती संिी
मन बनसे खुलो संपूणभ
मन मां सुचसेती कल्ट्पना
जीवन बनसे ववस्तीणभ .....
र्ेटसे नवो ज्ञान ववज्ञान
समृद्धी आवसे जीवन मां
समस्या जो र्ी आयेती
उत्तर सहज सूचे मन मां.....
अ ब क ड से सुरूवात
अक्षरज्ञान को से महहमा
संस्कार सशक्षण का मोठा
उज्वल नाव होये सही मां......
माय बाप संि िुरूजी बी
जीवन संस्कार मां थोर
शाळा मां जाये परा र्ेटेती
सब प्रश्नइनक
ं खरो उत्तर.....
13. 13
*लहानपण की समस्या*
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वु जमानो अलग होतो जब तुकाराम महाराज न् कही होतीस, "लहानपण देगा देवा." बहुतस्
महापुरूष इनन् बी लहानपण की महहमा गायी सेन.पर आब् या बात गलत साबबत होय रही से.आब् का टुरा
लहानपण खोय बस्या सेती. उनक् काम को व्याप ना पढाई को बोिो देखकर लगसे, नही पाहहजे येव बचपन.
सकारी उठेव पासून रात्री सोवत वोरी कईप्रकार का क्लास, स्क
ू ल की पढाई, परसेंटेज को भूत,
क्लास मा पहहलो आवनको टेंिन ये सब देखकर लगसे लहान टुरूइनको बालपण कहीतबी खतम होय रही
से.उनक् जवर खेलनसाती समयच नाहाय. एकदम तीन सालक् टुरालाबी वोकी माय दटकारक
े पढाई ना होमवक
ग
करन लगावसे, तब लगसे बच्चाइनको बचपन गायब भय गयी से. कोरोना मा आनलाईन क्लास मा स्क
ू ल करल्
मोबाईलपर प्राप्त सूचनानुसार अभ्यास लेसे, तब लगसे नही पाहहजे बचपन.
टुराईनको बचपन स्क
ू ल की पढाई ना मोबाइल मा दबकर गायब भय गयी से. अना अत्यचधक
स्पधाग क् कारण अनखी दबन की सिंभावना से. येन अत्यचधक स्पधाग ल् उनला काहीतबी हदलासा भेटे पाह्यजे
असो कव्हन् की इच्छा होसे.
-गचरंजीव बबसेन
िोंहदया
14. 14
चल इस्कु ल
जल िा जाबीन इस्क
ू ल
ज्ञानाजभन साठी
अमृततुल्ट्य साधना
पेजन्शल दफ्तर पाटी
शेषराव वासुदेव येळेकर
ससंदीपार जजल्ट्हा र्ंडारा
मां सरस्वती की साधना
ज्ञान को आशीवाभद
अ आ इ A B C D
अक्षर शब्द को नाद
िुरू को छाव मां
कला ज्ञान र्ाव ववकास
उत्कषभ से प्रिती पथ
ज्ञानाजभन एकच ध्यास
बेंच,फळा,फक्रडांिण
नया नया सोबती
सशस्त, सुशासन, सशक्षा
ज्ञान िुंज अवती र्ोवती
ववद्या को आलंबन
तोडो मन को आलस
िुरू शरण मां जायक
े
र्रो तन,मन मा साहस