22. // श्री //
लंघन योग्य (िरिािायम) –
लांघन ििार योग्य
ितु: शुिी – (वमन, ववरेिन,
तनरूह, नस्य)
शरीरबल उत्तम, िफ-वपत्त-रक्त-मल
अचधि मात्रेत असून वायु युक्त.
पािन व्याधीबल मध्यम, िफ-वपत्त याांनी
उत्पन्न
वमन,अततसार,ह्रदरोग,ववसूचििा,अलसि
,ज्वर,ववबांध,गौरव,उद्गार,ह्रल्हास,अरोि
ि इत्यादी व्याधीमध्ये
वपपासा
उपवास
उपरोक्त व्याधी असून रोगी अल्पबल
मारुतसेवन
आतपसेवन
व्यायाम
बलवान / मध्यमबल व्यष्क्त, अल्पबल
व्याधी
23. // श्री //
लांघन सम्यि योग :-
- वात-मूत्र-पुरीषाणाम् ववसगे
- गात्र लाघवे
- ह्रदयोद्गारिां िस्य शुवि
- तांद्रा क्लम गते
- स्वेदे जाते रुिौ
- क्षुध वपपासा असहोदये
- तनव्याथे ि अांतरात्मतन I
24. // श्री //
लांघन िमा :-
अनवष्स्थत दोषणाम् पािनम् I
दीपनम ् I ज्वरस्य नाशनम ् I आहारेच्छािरम ्
I रूचििरम ् I लाघविरां ि I सु उ. 39/103
स्वास्थमोजस्य जायते I अ.सं.चि.1
25. // श्री //
लांघन अयोग्य –
ऊध्वामारुततृठणाक्षुन्मुखशोषश्रमाष्न्वत
गभिाणीवृिबालिीरवश्र्िैत: अपतपाणे तनवषिा:
I
- सु.चि. 1/12
26. II श्री II
लांघन अततयोग :-
पिमभेदो- अंगमदम-िास-शोषो मुखस्य-क्षुत्प्रणाशो-
अरुचि-तृष्णा-दौबमल्या श्रोरनेरयो-मनस: संभ्रमो
अशभक्ष्णं-ऊध्िमिात-तमो ह्रदी- देहाग्नी बल
नाशचि I .
- ि.सू. 22/37
अपतवपातस्य रूपाणण-
शूलम ्,अरनत,आध्मानम ्,गुदप्रिोप,ज्िर,
अंगदाह, श्रम:,मोह:,तृष्णा,शय्यासन,
स्रीविषयेष्िभश्तत: I – िा. भोजनिल्प 17/18
27. बृहण योग्य (वाग्िटािाया) –
व्याधी,औषधी,मद्य,स्रीसेिन,शोि यांनी िृ श
भाराध्िारेक्षतक्षीण यांनी रुक्ष अशतत
िातप्रिृ ती,गशभमणी, सूनतिा, बाल, िृद्ध
ग्रीष्म ऋतुत सिाांना
(same as charakacharya)
लंघनाहम – बृहनसाध्य व्याधी - बृहण देऊ नये.
// श्री //
28. // श्री //
बृहण सम्यि योग:-
बलम ् – पुष्टय(धातू पुष्टी) –
िाचयमदोषवििजमनम I
धातुपुश्ष्ठिरम ् शरीरिृवद्धिरं देहोपियिरं िा
I – सु.सू.४५
29. // श्री //
बृहण द्रव्य:-
मांस-क्षीर-शसता-सवपम, मधुर ि श्स्नग्ध
औषधी शसद्ध बस्ती, ननद्रा, शैय्या सुख,
अभ्यंगस्नान,ननिृत्तीहषमण
सामान्येन मधुरो रस: बृहण: I –ि.सू.२६
30. // श्री //
बृहण आततयोग:-
स्थौल्यमतत I
अततस्थौल्या- आपिी –मेह-ज्वर- उदर-
िगांदर-िास-सांन्यास-मूत्रिू च्छ-आमदोष-
िु ठिादीनततदारूणान् I अ.ह्र.सू. 14/20