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बिहार क
े बहिंदी साबहत्यककार
रामधारी बसिंह 'बदनकर'
• रामधारी स िंह 'सिनकर' ' (23 बसतम्िर 1908- 24 अप्रैल 1974) बहन्दी क
े एक प्रमुख लेखक, कबि ि बनििंधकार थे। िे
आधुबनक युग क
े श्रेष्ठ िीर रस क
े कबि क
े रूप में स्थाबपत हैं।
• 'बदनकर' स्वतन्त्रता पूिव एक बिद्रोही कबि क
े रूप में स्थाबपत हुए और
स्वतन्त्रता क
े िाद 'राष्ट्र कबि' क
े नाम से जाने गये। िे छायािादोत्तर कबियोिं
की पहली पीढी क
े कबि थे। एक ओर उनकी कबिताओ में ओज, बिद्रोह,
आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दू सरी ओर कोमल श्ररिंगाररक भािनाओिं
की अबभव्यन्ति है। इन्ीिं दो प्रिरबत्तयोिं का चरम उत्कर्व हमें उनकी क
ु रुक्षेत्र
और उिवशी नामक क
र बतयोिं में बमलता है।
जीिनी
• 'बदनकर’ जी पटना बिश्वबिद्यालय से इबतहास राजनीबत बिज्ञान में िीए बकया। उन्ोिंने सिंभारतीय ज्ञानपीठ सिंस्क
र त
, िािंग्ला, अिंग्रेजी और उदूव का गहन अध्ययन बकया था। िी. ए. की परीक्षा उत्तीर्व करने क
े िाद िे एक बिद्यालय में
अध्यापक हो गये। १९३४ से १९४७ तक बिहार सरकार की सेिा में सि-रबजस्टार और प्रचार बिभाग क
े उपबनदेशक
पदोिं पर कायव बकया। १९५० से १९५२ तक मुजफ्फरपुर कालेज में बहन्दी क
े बिभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर
बिश्वबिद्यालय क
े उपक
ु लपबत क
े पद पर कायव बकया और उसक
े िाद भारत सरकार क
े बहन्दी सलाहकार िने।
• उन्ें पद्म बिभूर्र् की उपाबध से भी अलिंक
र त बकया गया। उनकी पुस्तक सिंस्क
र बत क
े चार अध्याय क
े बलये साबहत्यक
अकादमी पुरस्कार तथा उिवशी क
े बलये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान बकया गया। अपनी लेखनी क
े माध्यम से
िह सदा अमर रहेंगे।
• द्वापर युग की ऐबतहाबसक घटना महाभारत पर आधाररत उनक
े प्रिन्ध काव्य क
ु रुक्षेत्र को बिश्व क
े १०० सिवश्रेष्ठ काव्योिं
में ७४िााँ स्थान बदया गया।
• 1947 में देश स्वाधीन हुआ और िह बिहार बिश्वबिद्यालय में बहन्दी क
े प्रध्यापक ि बिभागाध्यक्ष बनयुि होकर मुज़फ़्फ़रपुर पहुाँचे। 1952 में जि
भारत की प्रथम सिंसद का बनमावर् हुआ, तो उन्ें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और िह बदल्ली िह बिहार आ गए। बदनकर 12 िर्व तक सिंसद-
सदस्य रहे, िाद में उन्ें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर बिश्वबिद्यालय का क
ु लपबत बनयुि बकया गया। लेबकन अगले ही िर्व भारत
सरकार ने उन्ें 1965 से 1971 ई. तक अपना बहन्दी सलाहकार बनयुि बकया और िह बिर बदल्ली लौट आए। बिर तो ज्वार उमरा और रेर्ुका,
हुिंकार, रसििंती और द्विंद्वगीत रचे गए। रेर्ुका और हुिंकार की क
ु छ रचनाऐिं यहााँ-िहााँ प्रकाश में आईिं और अग्रेज़ प्रशासकोिं को समझते देर न लगी
बक िे एक ग़लत आदमी को अपने तिंत्र का अिंग िना िैठे हैं और बदनकर की फाइल तैयार होने लगी, िात-िात पर क
ै बफयत तलि होती और
चेतािबनयााँ बमला करतीिं। चार िर्व में िाईस िार उनका तिादला बकया गया।
• रामधारी बसिंह बदनकर स्वभाि से सौम्य और मरदुभार्ी थे, लेबकन जि िात देश क
े बहत-अबहत की आती थी तो िह िेिाक बटप्पर्ी करने से
कतराते नहीिंथे। रामधारी बसिंह बदनकर ने ये तीन पिंन्तियािं पिंबित जिाहरलाल नेहरू क
े न्तखलाि सिंसद में सुनाई थी, बजससे देश में भूचाल मच
गया था। बदलचस्प िात यह है बक राज्यसभा सदस्य क
े तौर पर बदनकर का चुनाि पिंबित नेहरु ने ही बकया था, इसक
े िािजूद नेहरू की नीबतयोिं
की मुखालित करने से िे नहीिंचूक
े ।
• देखने में देिता सदृश्य लगता हैििंद कमरे में िैठकर गलत हुक्म बलखता है।बजस पापी को गुर् नहीिंगोत्र
प्यारा होसमझो उसी ने हमें मारा है॥1962 में चीन से हार क
े िाद सिंसद में बदनकर ने इस कबिता का पाठ
बकया बजससे तत्कालीन प्रधानमिंत्री नेहरू का बसर झुक गया था. यह घटना आज भी भारतीय राजनीती क
े
इबतहास की चुबनिंदा क्रािंबतकारी घटनाओिं में से एक है.
• रे रोक युन्तिबष्ठर को न यहािं जाने दे उनको स्वगवधीरबिरा दे हमें गािंिीि गदा लौटा दे अजुवन भीम िीर॥इसी
प्रकार एक िार तो उन्ोिंने भरी राज्यसभा में नेहरू की ओर इशारा करते हए कहा- "क्या
आपने बहिंदी को राष्ट्र भार्ा इसबलए िनाया है, ताबक सोलह करोड़ बहिंदीभाबर्योिं को रोज अपशब्द सुनाए जा
सक
ें ?" यह सुनकर नेहरू सबहत सभा में िैठे सभी लोगसन्न रह गए थे। बकस्सा 20 जून 1962 का है। उस
बदन बदनकर राज्यसभा में खड़े हुए और बहिंदी क
े अपमान को लेकर िहुत सख्त स्वर में िोले। उन्ोिंने कहा-
• देश में जि भी बहिंदी को लेकर कोई िात होती है, तो देश क
े नेतागर् ही नहीिंिन्ति कबथत िुन्तिजीिी भी
बहिंदी िालोिं को अपशब्द कहे बिना आगे नहीिंिढते। पता नहीिंइस पररपाटी का आरम्भ बकसने बकया है,
लेबकन मेरा ख्याल है बक इस पररपाटी को प्रेरर्ा प्रधानमिंत्री से बमली है। पता नहीिं, तेरह भार्ाओिं की क्या
बकस्मत है बक प्रधानमिंत्री ने उनक
े िारे में कभी क
ु छ नहीिंकहा, बकिु बहिंदी क
े िारे में उन्ोिंने आज तक
कोई अच्छी िात नहीिंकही। मैं और मेरा देश पूछना चाहते हैं बक क्या आपने बहिंदी को राष्ट्र भार्ा इसबलए
िनाया था ताबक सोलह करोड़ बहिंदीभाबर्योिं को रोज अपशब्द सुनाएिं ? क्या आपको पता भी है बक इसका
दुष्पररर्ाम बकतना भयािह होगा?यह सुनकर पूरी सभा सन्न रह गई। ठसाठस भरी सभा में भी गहरा
सन्नाटा छा गया। यह मुदाव-चुप्पी तोड़ते हुए बदनकर ने बिर कहा- 'मैं इस सभा और खासकर प्रधानमिंत्री
नेहरू से कहना चाहता हिं बक बहिंदी की बनिंदा करना ििंद बकया जाए। बहिंदी की बनिंदा से इस देश की आत्मा
को गहरी चोट पहिंचती है।'
प्रमुख क
ृ सियााँ
• उन्ोिंने सामाबजक और आबथवक समानता और शोर्र् क
े न्तखलाि कबिताओिं की रचना की। एक
प्रगबतिादी और मानििादी कबि क
े रूप में उन्ोिंने ऐबतहाबसक पात्रोिं और घटनाओिं को ओजस्वी और प्रखर
शब्दोिं का तानािाना बदया। उनकी महान रचनाओिं में रन्तिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा शाबमल
है। उिवशी को छोड़कर बदनकर की अबधकतर रचनाएाँ िीर रस से ओतप्रोत है। भूर्र् क
े िाद उन्ें िीर
रस का सिवश्रेष्ठ कबि माना जाता है।
• ज्ञानपीठ से सम्माबनत उनकी रचना उिवशी की कहानी मानिीय प्रेम, िासना और सम्बन्धोिं क
े इदव-बगदव
घूमती है। उिवशी स्वगव पररत्यकिा एक अप्सरा की कहानी है। िहीिं, क
ु रुक्षेत्र, महाभारत क
े शान्ति-पिव का
कबितारूप है। यह दू सरे बिश्वयुि क
े िाद बलखी गयी रचना है। िहीिंसामधेनी की रचना कबि क
े सामाबजक
बचिन क
े अनुरुप हुई है। सिंस्क
र बत क
े चार अध्याय में बदनकरजी ने कहा बक सािंस्क
र बतक, भार्ाई और
क्षेत्रीय बिबिधताओिं क
े िािजूद भारत एक देश है। क्योिंबक सारी बिबिधताओिं क
े िाद भी, हमारी सोच एक
जैसी है।
आचायव हजारी प्रसाद बद्विेदी ने कहा था "बदनकरजी अबहिंदीभाबर्योिं क
े िीच बहन्दी क
े सभी कबियोिं में
सिसे ज्यादा लोकबप्रय थे और अपनी मातरभार्ा से प्रेम करने िालोिं क
े प्रतीक थे।" हररििंश राय िच्चन ने
कहा था "बदनकरजी को एक नहीिं, िन्ति गद्य, पद्य, भार्ा और बहन्दी-सेिा क
े बलये अलग-अलग चार
ज्ञानपीठ पुरस्कार बदये जाने चाबहये।" रामिरक्ष िेनीपुरी ने कहा था "बदनकरजी ने देश में क्रान्तिकारी
आन्दोलन को स्वर बदया।" नामिर बसिंह ने कहा है "बदनकरजी अपने युग क
े सचमुच सूयव थे।" प्रबसि
साबहत्यककार राजेन्द्र यादि ने कहा था बक बदनकरजी की रचनाओिं ने उन्ें िहुत प्रेररत बकया। प्रबसि
रचनाकार काशीनाथ बसिंह क
े अनुसार 'बदनकरजी राष्ट्र िादी और साम्राज्य-बिरोधी कबि थे।'
म्मान
• बदनकरजी को उनकी रचना क
ु रुक्षेत्र क
े बलये काशी नागरी प्रचाररर्ी सभा, उत्तरप्रदेश सरकार और भारत
सरकार से सम्मान बमला। सिंस्क
र बत क
े चार अध्याय क
े बलये उन्ें 1959 में साबहत्यक अकादमी से सम्माबनत
बकया गया। भारत क
े प्रथम राष्ट्र पबत िॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्ें 1959 में पद्म बिभूर्र् से सम्माबनत बकया।
भागलपुर बिश्वबिद्यालय क
े तत्कालीन क
ु लाबधपबत और बिहार क
े राज्यपाल जाबकर हुसैन, जो िाद में भारत
क
े राष्ट्र पबत िने, ने उन्ें िॉक्ट्रेट की मानद उपाबध से सम्माबनत बकया। गुरू महाबिद्यालय ने उन्ें बिद्या
िाचस्पबत क
े बलये चुना। 1968 में राजस्थान बिद्यापीठ ने उन्ें साबहत्यक-चूड़ामबर् से सम्माबनत बकया। िर्व
1972 में काव्य रचना उिवशी क
े बलये उन्ें ज्ञानपीठ से सम्माबनत बकया गया। 1952 में िे राज्यसभा क
े बलए
चुने गये और लगातार तीन िार राज्यसभा क
े सदस्य रहे।
मरणोपरान्त म्मान
• 30 बसतम्बर 1987 को उनकी 13िीिंपुण्यबतबथ पर तत्कालीन राष्ट्र पबत जैल बसिंह ने उन्ें श्रिािंजबल
दी। 1999 में भारत सरकार ने उनकी स्मरबत में िाक बटकट जारी बकया। क
ें द्रीय सूचना और प्रसारर्
मन्त्री बप्रयरिंजन दास मुिंशी ने उनकी जन्म शताब्दी क
े अिसर पर रामधारी बसिंह बदनकर- व्यन्तित्व
और क
र बतत्व पुस्तक का बिमोचन बकया।
• उनकी जन्म शताब्दी क
े अिसर पर बिहार क
े मुख्यमन्त्री नीतीश क
ु मार ने उनकी भव्य प्रबतमा का
अनािरर् बकया। कालीकट बिश्वबिद्यालय में भी इस अिसर को दो बदिसीय सेबमनार का आयोजन
बकया गया।
धन्यिाद
~सुचोररता भन्डारी

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  • 1. बिहार क े बहिंदी साबहत्यककार रामधारी बसिंह 'बदनकर'
  • 2. • रामधारी स िंह 'सिनकर' ' (23 बसतम्िर 1908- 24 अप्रैल 1974) बहन्दी क े एक प्रमुख लेखक, कबि ि बनििंधकार थे। िे आधुबनक युग क े श्रेष्ठ िीर रस क े कबि क े रूप में स्थाबपत हैं। • 'बदनकर' स्वतन्त्रता पूिव एक बिद्रोही कबि क े रूप में स्थाबपत हुए और स्वतन्त्रता क े िाद 'राष्ट्र कबि' क े नाम से जाने गये। िे छायािादोत्तर कबियोिं की पहली पीढी क े कबि थे। एक ओर उनकी कबिताओ में ओज, बिद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दू सरी ओर कोमल श्ररिंगाररक भािनाओिं की अबभव्यन्ति है। इन्ीिं दो प्रिरबत्तयोिं का चरम उत्कर्व हमें उनकी क ु रुक्षेत्र और उिवशी नामक क र बतयोिं में बमलता है।
  • 3. जीिनी • 'बदनकर’ जी पटना बिश्वबिद्यालय से इबतहास राजनीबत बिज्ञान में िीए बकया। उन्ोिंने सिंभारतीय ज्ञानपीठ सिंस्क र त , िािंग्ला, अिंग्रेजी और उदूव का गहन अध्ययन बकया था। िी. ए. की परीक्षा उत्तीर्व करने क े िाद िे एक बिद्यालय में अध्यापक हो गये। १९३४ से १९४७ तक बिहार सरकार की सेिा में सि-रबजस्टार और प्रचार बिभाग क े उपबनदेशक पदोिं पर कायव बकया। १९५० से १९५२ तक मुजफ्फरपुर कालेज में बहन्दी क े बिभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर बिश्वबिद्यालय क े उपक ु लपबत क े पद पर कायव बकया और उसक े िाद भारत सरकार क े बहन्दी सलाहकार िने। • उन्ें पद्म बिभूर्र् की उपाबध से भी अलिंक र त बकया गया। उनकी पुस्तक सिंस्क र बत क े चार अध्याय क े बलये साबहत्यक अकादमी पुरस्कार तथा उिवशी क े बलये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान बकया गया। अपनी लेखनी क े माध्यम से िह सदा अमर रहेंगे। • द्वापर युग की ऐबतहाबसक घटना महाभारत पर आधाररत उनक े प्रिन्ध काव्य क ु रुक्षेत्र को बिश्व क े १०० सिवश्रेष्ठ काव्योिं में ७४िााँ स्थान बदया गया।
  • 4. • 1947 में देश स्वाधीन हुआ और िह बिहार बिश्वबिद्यालय में बहन्दी क े प्रध्यापक ि बिभागाध्यक्ष बनयुि होकर मुज़फ़्फ़रपुर पहुाँचे। 1952 में जि भारत की प्रथम सिंसद का बनमावर् हुआ, तो उन्ें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और िह बदल्ली िह बिहार आ गए। बदनकर 12 िर्व तक सिंसद- सदस्य रहे, िाद में उन्ें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर बिश्वबिद्यालय का क ु लपबत बनयुि बकया गया। लेबकन अगले ही िर्व भारत सरकार ने उन्ें 1965 से 1971 ई. तक अपना बहन्दी सलाहकार बनयुि बकया और िह बिर बदल्ली लौट आए। बिर तो ज्वार उमरा और रेर्ुका, हुिंकार, रसििंती और द्विंद्वगीत रचे गए। रेर्ुका और हुिंकार की क ु छ रचनाऐिं यहााँ-िहााँ प्रकाश में आईिं और अग्रेज़ प्रशासकोिं को समझते देर न लगी बक िे एक ग़लत आदमी को अपने तिंत्र का अिंग िना िैठे हैं और बदनकर की फाइल तैयार होने लगी, िात-िात पर क ै बफयत तलि होती और चेतािबनयााँ बमला करतीिं। चार िर्व में िाईस िार उनका तिादला बकया गया। • रामधारी बसिंह बदनकर स्वभाि से सौम्य और मरदुभार्ी थे, लेबकन जि िात देश क े बहत-अबहत की आती थी तो िह िेिाक बटप्पर्ी करने से कतराते नहीिंथे। रामधारी बसिंह बदनकर ने ये तीन पिंन्तियािं पिंबित जिाहरलाल नेहरू क े न्तखलाि सिंसद में सुनाई थी, बजससे देश में भूचाल मच गया था। बदलचस्प िात यह है बक राज्यसभा सदस्य क े तौर पर बदनकर का चुनाि पिंबित नेहरु ने ही बकया था, इसक े िािजूद नेहरू की नीबतयोिं की मुखालित करने से िे नहीिंचूक े ।
  • 5. • देखने में देिता सदृश्य लगता हैििंद कमरे में िैठकर गलत हुक्म बलखता है।बजस पापी को गुर् नहीिंगोत्र प्यारा होसमझो उसी ने हमें मारा है॥1962 में चीन से हार क े िाद सिंसद में बदनकर ने इस कबिता का पाठ बकया बजससे तत्कालीन प्रधानमिंत्री नेहरू का बसर झुक गया था. यह घटना आज भी भारतीय राजनीती क े इबतहास की चुबनिंदा क्रािंबतकारी घटनाओिं में से एक है. • रे रोक युन्तिबष्ठर को न यहािं जाने दे उनको स्वगवधीरबिरा दे हमें गािंिीि गदा लौटा दे अजुवन भीम िीर॥इसी प्रकार एक िार तो उन्ोिंने भरी राज्यसभा में नेहरू की ओर इशारा करते हए कहा- "क्या आपने बहिंदी को राष्ट्र भार्ा इसबलए िनाया है, ताबक सोलह करोड़ बहिंदीभाबर्योिं को रोज अपशब्द सुनाए जा सक ें ?" यह सुनकर नेहरू सबहत सभा में िैठे सभी लोगसन्न रह गए थे। बकस्सा 20 जून 1962 का है। उस बदन बदनकर राज्यसभा में खड़े हुए और बहिंदी क े अपमान को लेकर िहुत सख्त स्वर में िोले। उन्ोिंने कहा-
  • 6. • देश में जि भी बहिंदी को लेकर कोई िात होती है, तो देश क े नेतागर् ही नहीिंिन्ति कबथत िुन्तिजीिी भी बहिंदी िालोिं को अपशब्द कहे बिना आगे नहीिंिढते। पता नहीिंइस पररपाटी का आरम्भ बकसने बकया है, लेबकन मेरा ख्याल है बक इस पररपाटी को प्रेरर्ा प्रधानमिंत्री से बमली है। पता नहीिं, तेरह भार्ाओिं की क्या बकस्मत है बक प्रधानमिंत्री ने उनक े िारे में कभी क ु छ नहीिंकहा, बकिु बहिंदी क े िारे में उन्ोिंने आज तक कोई अच्छी िात नहीिंकही। मैं और मेरा देश पूछना चाहते हैं बक क्या आपने बहिंदी को राष्ट्र भार्ा इसबलए िनाया था ताबक सोलह करोड़ बहिंदीभाबर्योिं को रोज अपशब्द सुनाएिं ? क्या आपको पता भी है बक इसका दुष्पररर्ाम बकतना भयािह होगा?यह सुनकर पूरी सभा सन्न रह गई। ठसाठस भरी सभा में भी गहरा सन्नाटा छा गया। यह मुदाव-चुप्पी तोड़ते हुए बदनकर ने बिर कहा- 'मैं इस सभा और खासकर प्रधानमिंत्री नेहरू से कहना चाहता हिं बक बहिंदी की बनिंदा करना ििंद बकया जाए। बहिंदी की बनिंदा से इस देश की आत्मा को गहरी चोट पहिंचती है।'
  • 7. प्रमुख क ृ सियााँ • उन्ोिंने सामाबजक और आबथवक समानता और शोर्र् क े न्तखलाि कबिताओिं की रचना की। एक प्रगबतिादी और मानििादी कबि क े रूप में उन्ोिंने ऐबतहाबसक पात्रोिं और घटनाओिं को ओजस्वी और प्रखर शब्दोिं का तानािाना बदया। उनकी महान रचनाओिं में रन्तिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा शाबमल है। उिवशी को छोड़कर बदनकर की अबधकतर रचनाएाँ िीर रस से ओतप्रोत है। भूर्र् क े िाद उन्ें िीर रस का सिवश्रेष्ठ कबि माना जाता है। • ज्ञानपीठ से सम्माबनत उनकी रचना उिवशी की कहानी मानिीय प्रेम, िासना और सम्बन्धोिं क े इदव-बगदव घूमती है। उिवशी स्वगव पररत्यकिा एक अप्सरा की कहानी है। िहीिं, क ु रुक्षेत्र, महाभारत क े शान्ति-पिव का कबितारूप है। यह दू सरे बिश्वयुि क े िाद बलखी गयी रचना है। िहीिंसामधेनी की रचना कबि क े सामाबजक बचिन क े अनुरुप हुई है। सिंस्क र बत क े चार अध्याय में बदनकरजी ने कहा बक सािंस्क र बतक, भार्ाई और क्षेत्रीय बिबिधताओिं क े िािजूद भारत एक देश है। क्योिंबक सारी बिबिधताओिं क े िाद भी, हमारी सोच एक जैसी है।
  • 8. आचायव हजारी प्रसाद बद्विेदी ने कहा था "बदनकरजी अबहिंदीभाबर्योिं क े िीच बहन्दी क े सभी कबियोिं में सिसे ज्यादा लोकबप्रय थे और अपनी मातरभार्ा से प्रेम करने िालोिं क े प्रतीक थे।" हररििंश राय िच्चन ने कहा था "बदनकरजी को एक नहीिं, िन्ति गद्य, पद्य, भार्ा और बहन्दी-सेिा क े बलये अलग-अलग चार ज्ञानपीठ पुरस्कार बदये जाने चाबहये।" रामिरक्ष िेनीपुरी ने कहा था "बदनकरजी ने देश में क्रान्तिकारी आन्दोलन को स्वर बदया।" नामिर बसिंह ने कहा है "बदनकरजी अपने युग क े सचमुच सूयव थे।" प्रबसि साबहत्यककार राजेन्द्र यादि ने कहा था बक बदनकरजी की रचनाओिं ने उन्ें िहुत प्रेररत बकया। प्रबसि रचनाकार काशीनाथ बसिंह क े अनुसार 'बदनकरजी राष्ट्र िादी और साम्राज्य-बिरोधी कबि थे।'
  • 9. म्मान • बदनकरजी को उनकी रचना क ु रुक्षेत्र क े बलये काशी नागरी प्रचाररर्ी सभा, उत्तरप्रदेश सरकार और भारत सरकार से सम्मान बमला। सिंस्क र बत क े चार अध्याय क े बलये उन्ें 1959 में साबहत्यक अकादमी से सम्माबनत बकया गया। भारत क े प्रथम राष्ट्र पबत िॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्ें 1959 में पद्म बिभूर्र् से सम्माबनत बकया। भागलपुर बिश्वबिद्यालय क े तत्कालीन क ु लाबधपबत और बिहार क े राज्यपाल जाबकर हुसैन, जो िाद में भारत क े राष्ट्र पबत िने, ने उन्ें िॉक्ट्रेट की मानद उपाबध से सम्माबनत बकया। गुरू महाबिद्यालय ने उन्ें बिद्या िाचस्पबत क े बलये चुना। 1968 में राजस्थान बिद्यापीठ ने उन्ें साबहत्यक-चूड़ामबर् से सम्माबनत बकया। िर्व 1972 में काव्य रचना उिवशी क े बलये उन्ें ज्ञानपीठ से सम्माबनत बकया गया। 1952 में िे राज्यसभा क े बलए चुने गये और लगातार तीन िार राज्यसभा क े सदस्य रहे।
  • 10. मरणोपरान्त म्मान • 30 बसतम्बर 1987 को उनकी 13िीिंपुण्यबतबथ पर तत्कालीन राष्ट्र पबत जैल बसिंह ने उन्ें श्रिािंजबल दी। 1999 में भारत सरकार ने उनकी स्मरबत में िाक बटकट जारी बकया। क ें द्रीय सूचना और प्रसारर् मन्त्री बप्रयरिंजन दास मुिंशी ने उनकी जन्म शताब्दी क े अिसर पर रामधारी बसिंह बदनकर- व्यन्तित्व और क र बतत्व पुस्तक का बिमोचन बकया। • उनकी जन्म शताब्दी क े अिसर पर बिहार क े मुख्यमन्त्री नीतीश क ु मार ने उनकी भव्य प्रबतमा का अनािरर् बकया। कालीकट बिश्वबिद्यालय में भी इस अिसर को दो बदिसीय सेबमनार का आयोजन बकया गया।