हिंदी साहित्य के भीष्म माने जाने वाले भीष्म साहनी कथाकर के साथ-साथ उपन्यासकार और नाटककार के रूप में भी जाने जाते हैं।उनकी रचनाओं के बारे में पढ़ें सोलवेदा पर।
Devghar is a collection of stories in Powari Langugae. The writer of this book is Mr. Rishi Bisen. This is his second book after, "Powari Sanskrti" in Powari Langugae.
Powari is a Langugae of Powar community of Vainganga Valley of Central India which includes Balaghat and Seoni districts of Madhypradesh and Bhandara and Gondia district of Maharashtra.
हिंदी साहित्य के भीष्म माने जाने वाले भीष्म साहनी कथाकर के साथ-साथ उपन्यासकार और नाटककार के रूप में भी जाने जाते हैं।उनकी रचनाओं के बारे में पढ़ें सोलवेदा पर।
Devghar is a collection of stories in Powari Langugae. The writer of this book is Mr. Rishi Bisen. This is his second book after, "Powari Sanskrti" in Powari Langugae.
Powari is a Langugae of Powar community of Vainganga Valley of Central India which includes Balaghat and Seoni districts of Madhypradesh and Bhandara and Gondia district of Maharashtra.
यदि आप किसी देश और वहाँ की संस्कृति को जानना चाहते हो तो उसका सबसे आसान और किफ़ायती तरीका है कि आप उस देश का साहित्य पढ़ लीजिए। अगर हमारे देश भारत की ही बात की जाए तो इसे ‘विश्व का धर्म गुरु’ माना जाता है और यदि कोई इस उपाधि का कारण जानना चाहे तो वह ‘हिन्दी साहित्य’ के चार कालों –
आदिकाल
भक्तिकाल
रीतिकाल
आधुनिक काल
यदि आप किसी देश और वहाँ की संस्कृति को जानना चाहते हो तो उसका सबसे आसान और किफ़ायती तरीका है कि आप उस देश का साहित्य पढ़ लीजिए। अगर हमारे देश भारत की ही बात की जाए तो इसे ‘विश्व का धर्म गुरु’ माना जाता है और यदि कोई इस उपाधि का कारण जानना चाहे तो वह ‘हिन्दी साहित्य’ के चार कालों –
आदिकाल
भक्तिकाल
रीतिकाल
आधुनिक काल
5. ह न्दी की लशलत शनबन्धों की पिम्पिा को उन्नशत क
े शिखि पि प ुुँचाने वाले क
ु िल
शिल्पी पिंहडत ववद्याशनवास शमश्र का जन्म 28 जनविी, सन 1926 में पकडडी ा
गाुँव, गोिखपुि (उत्ति प्रदेि) में ुआ था ।
वे अपनी बोली औि सिंस्कृ शत क
े प्रशत सदैव आग्र ी ि े।
सन 1945 में 'इला ाबाद ववश्वववद्यालय' से स्नातकोत्ति एविं डाक्टिेट की उपाशध लेने क
े
बाद ववद्याशनवास शमश्र ने अनेक वषों तक आगिा, गोिखपुि, क
ै शलफोशनयया औि वाशििंगटन
ववश्वववद्यालय में अध्यापन कायय हकया।
वे देि क
े प्रशतवित 'सिंपूर्ायनिंद सिंस्कृ त ववश्वववद्यालय' एविं 'कािी ववद्यापीठ' क
े क
ु लपशत भी
ि े।
इसक
े बाद अनेकों वषों तक वे आकािवार्ी औि उत्ति प्रदेि क
े सूचना ववभाग में काययित
ि े।
6. पूिा नाम = ववद्याशनवास शमश्र
जन्म = 28 जनविी, 1926
जन्मभूशम = गोिखपुि, उत्ति प्रदेि
मृत्यु = 14 फ़िविी, 2005
कमयभूशम = भाित
कमय-क्षेत्र = शनबन्ध लेखन।
मुख्यिचनाएुँ = ‘शितवन की िाुँ ' (1976), ‘तुम चन्दन म पानी', ‘आिंगन का पिंिी
‘कदम की फ
ू ली डाल' आहद।
भाषा = ह न्दी
ववद्यालय = 'इला ाबाद ववश्वववद्यालय‘
पुिस्काि उपाशध = 'भाितीय ज्ञानपीठ' का 'मूशतय देवी पुिस्काि', 'ििंकि सम्मान', 'पद्म श्री'
औि 'पद्म भूषर्'।
प्रशसवि = लशलत शनबन्ध लेखक।
वविेष योगदान = ववद्याशनवास ह न्दी की प्रशतिा ेतु सदैव सिंघषयित ि े, मॉिीिस से
सूिीनाम तक अनेकों ह न्दी सम्मेलनों में शमश्र जी की उपस्स्थशत ने ह न्दी क
े सिंघषय को
मजबूती प्रदान की।
नागरिकता = भाितीय
7. गोिखपुि ववश्वववद्याल ने ‘पास्र्नीय व्याकिर् की ववश्लेषर् पिशत' पि आपको डॉक्टिेट की
उपाशध प्रदान की।
लगभग दस वषों तक ह न्दी साह त्य सम्मेलन, िेहडयो, ववन्ध्य प्रदेि एविं उत्ति प्रदेि क
े
सूचना ववभागों में नौकिी क
े बाद आप गोिखपुि ववश्वववद्यालय में प्राध्यापक ुए।
क
ु ि समय क
े शलए आप अमेरिका गये, व ाुँ क
ै लीफोशनयया ववश्वववद्यालय में ह न्दी साह त्य
एविं तुलनात्मक भाषा ववज्ञान का अध्यापन हकया एविं वाशििंगटन ववश्वववद्यालय में ह न्दी
साह त्य का अध्यापन हकया।
आपने ‘वार्िासेय सिंस्कृ त ववश्वववद्यालय' में भाषा ववज्ञान एविं आधुशनक भाषा ववज्ञान क
े
आचायय एविं अध्यक्ष पद पि भी कायय हकया।
िाष्टर ने आपकी साह स्त्यक सफलताओिं को ति ीज देते ुए सासिंद शनयुक्त हकया।
साथ ी देि ने उनकी सफलताओिं औि त्याग तथा ईमानदािी क
े शलए पद्य भूषर् सम्मान से
भी ववभूवषत हकया।
वतयमान में प्रो॰ शमश्र ‘भाितीय ज्ञानपीठ क
े न्यासी बोडय क
े सदस्य थे औि मूशतय देवी पुिस्काि
चयन सशमशत क
े अध्यक्ष सह त ज्ञानपीठ क
े न्यासी बोडय क
े सदस्य थे।
8. प्रो॰ ववद्याशनवास शमश्र स्वयिं को 'भ्रमिानन्द' क ते थे औि िद्यनाम से आपने अशधक शलखा ै।
आप ह न्दी क
े एक प्रशतस्ष्टठत आलोचक एविं लशलत शनबन्ध लेखक ैं, साह त्य की इन दोनों ी
ववधाओिं में आपका कोई ववकल्प न ीिं ैं।
शनबन्ध क
े क्षेत्र में शमश्र जी का योगदान सदैव स्वर्ायक्षिों में अिंहकत हकया जाएगा।
प्रो॰ ववद्याशनवास शमश्र क
े लशलत शनबन्धों की िुरूआत में प ला शनबन्ध सिंग्र 1952 ई0 में
‘शितवन की िाुँ ' प्रकाि में आया ै।
आपने ह न्दी जगत को लशलत शनबन्ध पिम्पिा से अवगत किाया।
शनष्टकषय रूप में य क ा जा सकता ै हक प्रो॰ शमश्र जी का लेखन आधुशनकता की माि
देिकाल की ववसिंगशतयों औि मानव की यिंत्र का चिम आख्यान ै स्जसमें वे पुिातन से अद्यतन
औि अद्यतन से पुिातन की बौविक यात्रा किते ैं।
‘‘शमश्र जी क
े शनबन्धों का सिंसाि इतना ब ुआयामी ै हक प्रकृ शत, लोकतत्व, बौविकता,
सजयनात्मकता, कल्पनािीलता, काव्यात्मकता, िम्य िचनात्मकता, भाषा की उवयि सृजनात्मकता,
सम्प्रेषर्ीयता इन शनबन्धों में एक साथ अन्तग्रिंशथयत शमलती ै।
9. लशलत शनबिंध लेखन
ववद्याशनवास शमश्र क
े लशलत शनबन्धों की िुरुआत सन 1956 ई. से ोती ै।
पिन्तु आपका प ला शनबन्ध सिंग्र 1976 ई. में ‘शितवन की िाुँ ' प्रकाि में आया।
उन् ोंने ह न्दी जगत को लशलत शनबन्ध पिम्पिा से अवगत किाया।
‘तुम चन्दन म पानी' िीषयक से जो शनबन्ध प्रकाशित ुए, उनमें सिंस्कृ त साह त्य क
े सन्दभय का प्रयोग अशधक ो
गया औि पास्डत्य प्रदियन की प्रवृवत्त क
े कािर् लाशलत्य दब गया, जो आपकी प ली दो िचनाओिं में शमलता था।
तीसिे शनबन्ध सिंग्र ‘आिंगन का पिंिी औि बनजाि मन' में परिवतयन आया। इस तथ्य को स्वयिं शनबन्धकाि
स्वीकाि किता ै- "शितवन की िािं ' मेिे मादक हदनों की देन ै, ‘कदम की फ
ू ली डाल' मेिे ववन्ध्य प्रवास का,
जो बाद में आवास ी बन गया, का फल ै औि ‘तुम चन्दन औि म पानी' मेिे सिंस्कृ त अन्वेषर् की देन ै।
अब चौथा सिंग्र आपक
े ाथों में ै, दुववधा क
े क्षर्ों की सृस्ष्टट ै।
इसशलए इसका िीषयक भी हिववधात्मक ै।
बिसों तक भोजपुिी वाताविर् क
े स्मृशतशचत्र उिे ता ि ा, उसी में मन चा े पद पि जब वापस ोने की आििंका।
इसशलए ज ाुँ मन ‘आगिंन का पिंिी' बनकि च का, व ीिं उसका बनजािा मन' उसे ववगत औि अनागत हदिाओिं में
िमने-घूमने क
े शलए अक
ु लाता भी ि ा।"
10. साह त्य सृजनकताय
ह न्दी साह त्य क
े सजयक ववद्याशनवास शमश्र ने साह त्य की लशलत शनबिंध की ववधा
को नए आयाम हदए।
ह न्दी में लशलत शनबिंध की ववधा की िुरूआत प्रताप नािायर् शमश्र औि बालकृ ष्टर्
भट्ट ने की थी, हक
िं तु इसे लशलत शनबिंधों का पूवायभास क ना ी उशचत ोगा।
लशलत शनबिंध की ववधा क
े लोकवप्रय नामों की बात किें तो जािी प्रसाद हिवेदी,
ववद्याशनवास शमश्र एविं क
ु बेिनाथ िाय आहद चशचयत नाम ि े ैं।
लेहकन यहद लाशलत्य औि िैली की प्रभाववता औि परिमार् की ववपुलता की बात
की जाए तो ववद्याशनवास शमश्र इन सभी से क ीिं अग्रर्ी ि े ैं।
ववद्याशनवास शमश्र क
े साह त्य का सवायशधक म त्वपूर्य ह स्सा लशलत शनबिंध ी ैं।
उनक
े लशलत शनबिंधों क
े सिंग्र ों की सिंख्या भी लगभग 25 से अशधक ै।
11. पौिास्र्क ववषयों पि शनबन्ध
लोक सिंस्कृ शत औि लोक मानस उनक
े लशलत शनबिंधों क
े अशभन्न अिंग थे, उस पि भी पौिास्र्क कथाओिं औि
उपदेिों की फ
ु ाि उनक
े लशलत शनबिंधों को औि अशधक प्रवा मय बना देते थे।
उनक
े प्रमुख लशलत शनबिंध सिंग्र ैं- 'िाधा माधव ििंग ििंगी', 'मेिे िाम का मुक
ु ट भीग ि ा ै', 'िैफाली झि ि ी
ै', 'शितवन की िािं ', 'बिंजािा मन', 'तुम चिंदन म पानी', 'म ाभाित का काव्याथय', 'भ्रमिानिंद क
े पत्र', 'वसिंत आ
गया पि कोई उत्क
िं ठा न ीिं' औि 'साह त्य का खुला आकाि' आहद आहद।
वसिंत ऋतु से ववद्याशनवास शमश्र को वविेष लगाव था, उनक
े लशलत शनबिंधों में ऋतुचयय का वर्यन उनक
े शनबिंधों को
जीविंतता प्रदान किता था।
वसिंत ऋतु पि शलखे अपने शनबिंध सिंकलन 'फागुन दुइ िे हदना' में वसिंत क
े पवों को व्याख्याशयत किते ुए, 'अपना
अ िंकाि इसमें डाल दो' िीषयक से शलखे शनबिंध में वे 'शिविावत्र' पि शलखते ैं-
"शिव मािी गाथाओिं में बडे यायावि ैं। बस जब मन में आया, बैल पि बोझा लादा औि पावयती सिंग शनकल पडे,
बौिा वेि में।
लोग ऐसे शिव को प चान न ीिं पाते। ऐसे यायावि ववरूवपए को कौन शिव मानेगा? व भी कभी-कभी ाथ में
खप्पि शलए।
ऐसा शभखमिंगा क्या शिव ै?"
12. इसक
े बाद इन पिंवियों को वववेशचत किते ुए ववद्याशनवास शमश्र जी शलखते ैं-
" ाुँ, य जो भीख मािंग ि ा ै, व अ िंकाि की भीख ै।
लाओ, अपना अ िंकाि इसमें डाल दो। उसे सब जग भीख न ीिं शमलती।
कभी-कभी व ब ुत ऐश्वयय देता ै औि पावयती वबगडती ैं।
क्या आप अपात्र को देते ैं? शिव िंसते ैं, क ते ैं, इस ऐश्वयय की गशत जानती ो, क्या ै?
मद ै।
औि मद की गशत तो कागभुसुिंहड से पूिो, िावर् से पूिो, बार्ासुि से पूिो।“
इन पिंवियों का औशचत्य समझाते ुए शमश्र जी शलखते ैं-
"पावयती िेडती ैं हक देवताओिं को सताने वालों को आप इतना प्रतापी क्यों बनाते ैं?
शिव अट्टा ास कि उठते ैं, उन् ें प्रतापी न बनाएुँ तो देवता आलसी ो जाएुँ, उन् ें झकझोिने
क
े शलए क
ु ि कौतुक किना पडता ै।“
य शमश्र जी की अपनी उद्भावना ै, प्रसिंग पौिास्र्क ैं, हक
िं तु वतयमान पि लागू ोते ैं।
पुिार् कथाओिं का सिंदभय देते ुए ववद्याशनवास शमश्र ने साह त्य क
े पाठकों को भाितीय
सिंस्कृ शत का ममय समझाने का प्रयास हकया ै।
13. ववद्याशनवास शमश्र क
े लशलत शनबिंधों में जीवन दियन, सिंस्कृ शत, पििंपिा औि प्रकशत क
े अनुपम
सौंदयय का तालमेल शमलता ै।
इस सबक
े बीच वसिंत ऋतु का वर्यन उनक
े लशलत शनबिंधों को औि अशधक िसमय बना देता
ै।
लशलत शनबिंधों क
े माध्यम से साह त्य को अपना योगदान देने वाले ववद्याशनवास ह न्दी की
प्रशतिा ेतु सदैव सिंघषयित ि े, मािीिस से सूिीनाम तक अनेकों ह न्दी सम्मेलनों में शमश्र
जी की उपस्स्थशत ने ह न्दी क
े सिंघषय को मजबूती प्रदान की।
ह न्दी की िब्द सिंपदा, ह न्दी औि म, ह न्दीमय जीवन औि प्रौढों का िब्द सिंसाि जैसी
उनकी पुस्तकों ने ह न्दी की सम्प्रेषर्ीयता क
े दायिे को ववस्तृत हकया।
तुलसीदास औि सूिदास समेत भाितेन्दु
रिश्चन्र अज्ञेय, कबीि, िसखान, िैदास, ि ीम औि िा ुल सािंकृ त्यायन की िचनाओिं को
सिंपाहदत कि उन् ोंने ह न्दी क
े साह त्य को ववपुलता प्रदान की।
14. ववद्याशनवास शमश्र कला एविं भाितीय सिंस्कृ शत क
े ममयज्ञ थे।
खजुिा ो की शचत्रकला का सूक्ष्मता औि ताहक
य कता से अध्ययन कि उसकी नई अवधािर्ा प्रस्तुत
किने वाले ववद्याशनवास शमश्र ी थे।
अकसि भाितीय शचिंतक ववदेिी वविानों से बात किते ुए खजुिा ो की कलाकृ शतयों को लेकि कोई
ठोस ताहक
य क जवाब न ीिं दे पाते थे।
ववद्याशनवास जी ने अपने वववेचन क
े माध्यम से खजुिा ो की कलाकृ शतयों की अवधािर्ा स्पष्ट किते
ुए शलखा ै-
"य ाुँ क
े शमथुन अिंकन साधन ैं, साध्य न ीिं।
साधक की अचयना का क
ें रवबिंदु तो अक
े ली प्रशतमा क
े गभयग्र में ै।
य ाुँ अशभव्यवि कला िस से भिपूि ै, स्जसकी अिंशतम परिर्शत ब्र म रूप ै।
मािे दियन में धमय, अथय, काम औि मोक्ष की जो मान्यताएुँ ैं, उनमें मोक्ष प्राशप्त से पूवय का
अिंशतम सोपान ै काम।“
15. उन् ोंने क ा हक य मािी नैशतक दुबयलता ी ै हक खजुिा ो की कलाकृ शतयों में म ववकृ त
कामुकता की िवव पाते ैं। स्त्री पुरुष अनाहद ैं, स्जनक
े स योग से ी सृवष्ट जनमती ै।
सन 1990 क
े दिक में शमश्र जी ने 'नवभाित टाइम्स' क
े सिंपादक क
े रूप में स्जम्मेदािी
सिंभाली थी।
उदािीकिर् क
े दौि में खािंटी ह न्दी पत्रकारिता को आगे बढाने वाले म त्वपूर्य पत्रकािों में से
एक शमश्र जी ने 'नवभाित टाइम्स' को ह न्दी क
े प्रशतवित समाचाि पत्र क
े रूप में नई प चान
हदलाई।
पत्रकािीय धमय औि उसकी सीमाओिं को लेकि वे सदैव सचेत ि ते थे।
वे अकसि क ा किते थे हक- "मीहडया का काम नायकों का बखान किना अवश्य ै, लेहकन
नायक बनाना मीहडया का काम न ीिं ै।
16. आकािवार्ी पि व्याख्यान
जयपुि का साह त्य जगत आज भी भूला न ीिं ै हक आकािवार्ी जयपुि क
े
आमिंत्रर् पि शमश्र जी ने सन 1994 क
े 30 नवम्बि औि 1 हदसम्बि को
आकािवार्ी की िाजेन्र प्रसाद स्मािक व्याख्यान माला में 'साधुमन' औि 'लोकमत'
पि दो व्याख्यान हदए थे, स्जनकी िैली लशलत शनबिंधों की सी थी औि स्जनक
े
प्रेिर्ा स्रोत थी, तुलसी क
े मानस की व अधायली 'टित ववनय सादि सुशनय करिय
ववचाि ब ोरि।
किब साधुमत लोकमत नृपनयशतगम शनचोरि।' ये दोनों व्याख्यान 'स्वरूप ववमिय'
िीषयक शनबिंध सिंग्र में बाद में िपे।
इसी प्रकाि जयपुि क
े ववख्यात सिंपादक औि वेद ववज्ञान क
े अध्येता कपूयिचन्र
क
ु शलि की प्रेिर्ा से 'भाितीय साह त्य परिषद' िािा जयपुि में 'गीत गोववन्द' पि
उनक
े व्याख्यान किवाए गए। कोलकाता में भी 'गीत गोवविंद' पि व्याख्यान
आयोस्जत हकए गए थे
इन सब का सिंपाहदत औि परिवशधयत रूप ै, उनका प्रशसि ग्रिंथ "िाधा माधव ििंग
िुँगी।" य समूचा ग्रिंथ लशलत शनबन्ध की िैली में शलखा गया ै।
17. प्रमुख िचनाएुँ
शमश्र जी की प्रकाशित कृ शतयों की सिंख्या सत्ति से अशधक ै , स्जनमें व्यविव्यिंजक शनबिंध – सिंग्र ,
आलोचनात्मक तथा वववेचनात्मक कृ शतयाुँ , भाषा शचन्तन क
े क्षेत्र में िोध ग्रिंथ औि कववता – सिंकलन सस्म्मशलत
ैं ।
डॉ . ववद्याशनवास शमश्र आधुशनक ज्ञान – ववज्ञान , समाज – सिंस्कृ शत , साह त्य कला की नवीनतम चेतना औि
तेजस्स्वता से मिंहडत ैं ।
सिंस्कृ त भाषा क
े साथ ह न्दी औि अिंग्रेजी साह त्य क
े ममयज्ञ डॉ . शमश्र अनेक सिंस्थाओिं क
े सम्माशनत सदस्य ैं ।
शमश्र जी की शनबन्ध िचनाओिं में प्रमुख ैं:-
1) शितवन की िािं
2) कदम की फ
ू ली डाल
3) तुम चन्दन म पानी
4) आिंगन का पिंिी औि बिंजािा मन
5) मैंने शसल प ुिंचाई
6) वसन्त आ गया पि कोई उत्कठा न ीिं
7) मेिे िाम का मुक
ु ट भीग ि ा ै
8) ल्दी – दूब
9) क
िं टीले तािों क
े आि – पाि
10) कौन तू फ
ु लवा बीनन ािी ।
18. श्री ववद्याशनवास शमश्र की ह न्दी औि अिंग्रेजी में दो दजयन से अशधक पुस्तक
ें प्रकाशित ैं।
इसमें "म ाभाित का कव्याथय" औि "भाितीय भाषादियन की पीहठका" प्रमुख ैं।
लशलत शनबिंधों में "तुम चिंदन म पानी",1957, "वसिंत आ गया पि कोई उत्क
िं ठा न ीिं", 1972
औि िोधग्रन्थों में "ह न्दी की िब्द सिंपदा" चशचयत कृ शतयािं ैं।
अन्य ग्रन्थ ैं-
1. काव्य सिंग्र : – पानी की पुकाि
2. क ानी सिंग्र : – भ्रमिानिंद का पचडा
3. आलोचनात्मक ग्रिंथ: -तुलसीदास भवि प्रबिंध का नया उत्कषय, आज क
े ह िंदी कवव अज्ञेय,
कबीि वचनामृत, ि ीम िचनावली, िसखान ग्रिंथावली
4. इनक
े अशतरिि इन् ोंने अनेक समीक्षा ग्रन्थ भी शलखे ैं यथा – ह न्दी िब्द सम्पदा ,
पास्र्नीय व्याकिर् की ववश्लेषर् पिशत , िीशत ववज्ञान। शमश्र जी क
े शनबन्धों में लोकजीवन
एविं ग्रामीर् समाज मुखरित ो उठा ै । हकसी भी प्रसिंग को लेकि वे उसे ऐशत ाशसक ,
पौिास्र्क , साह स्त्यक सन्दभो से युि कि लोकजीवन से जोड देने की कला में पाििंगत ैं ।
उनक
े शनबन्धों में लोकतत्व का समावेि ै । वविेष रूप से भोजपुिी लोकजीवन उनक
े शनबन्ध
में समाया ुआ ै ।
19. शमश्र जी क
े लशलत शनबन्धों में भावात्मकता क
े साथ – साथ लोक सिंस्कृ शत की िटा ववद्यमान ै
।
इनक
े शनबन्धों में प्रसादमयी भाषा – िैली , कथात्मक शचत्रों की अशधकता औि वववेचना की
तथ्यपूर्य गम्भीिता हदखाई देती ै ।
अज्ञेय क
े अनुसाि ” ववद्याशनवास जी ने सिंस्कृ त साह त्य को मथकि उसका नवनीत चखा ै
औि लोकवार्ी की गौिव गन्ध से सदा स्फ
ू शतय भी पाते ि े ैं ।
लशलत शनबन्ध व शलखते ैं तो लाशलत्य क
े हकसी मो से न ीिं , इसशलए हक ग िी , तीखी ,
चुनौती भिी बात भी एक बेलाग औि शनदोष बस्ल्क कौतुकभिी स जता से क जाते ैं ।
शमश्रजी क
े शनबन्धों को ववचािात्मक , समीक्षात्मक , वर्यनात्मक एविं सिंस्मिर्ात्मक – इन पािंच
वगों में ववभि हकया जा सकता ै ।
उनकी भाषा सिंस्कृ तशनि ै , हकन्तु उसमें उदूय , अिंग्रेजी एविं ग्रामीर् जीवन क
े िब्द भी शमलते
ैं ।
िैली की ववववधता उनक
े शनबन्धों की प्रमुख वविेषता ै ।
आलिंकारिक िैली , तििंग िैली , व्यिंग्यपूर्य िैली , व्याख्यात्मक िैली , आलोचनात्मक िैली
उनक
े शनबन्धों में ै ।
20. ववद्याशनवास शमश्र ने क
ु ि वषय 'नवभाित टाइम्स' समाचाि पत्र क
े सिंपादक का दाशयत्व भी सिंभाला।
उन् ें 'भाितीय ज्ञानपीठ' क
े 'मूशतयदेवी पुिस्काि', 'क
े . क
े . वबडला फाउिंडेिन' क
े 'ििंकि सम्मान' से नवाजा गया।
भाित सिकाि ने उन् ें 'पद्म श्री' औि 'पद्म भूषर्' से भी सम्माशनत हकया था।
िाजग (िाष्ट्रीय जनतािंवत्रक गठबिंधन) िासन काल में उन् ें िाज्यसभा का सदस्य मनोनीत हकया गया।
1. पद्मश्री -1988
2. मूशतय देवी पुिस्काि – 1989
3. ववश्व भािती सम्मान-1996
4. साह त्य अकादमी का म त्ति सदस्यता सम्मान-1996
5. पद्मभूषर् – 1999
6. मिंगलाप्रसाद पारितोवषक – 2000
7. ेडगेवाि प्रज्ञा पुिस्काि
8. क
े .क
े .वबडला फाउिंडेिन क
े चौथी श्रेर्ी का सम्मान 'ििंकि सम्मान'
21. शमश्र जी लशलत शनबन्धकािों में ववशिष्ट स्थान क
े अशधकािी ैं ।
साह त्य क
े साथ – साथ भाषा ववज्ञान क
े भी वे पस्डत थे।
उन् ोंने आचायय जािीप्रसाद हिवेदी की पिम्पिा को आगे बढाने में म त्वपूर्य
योगदान हदया ै ।
वे प्राचीन सिंस्कृ त , साह त्य को समसामशयक दृवष्ट से देखते थे औि उसमें से
मानवता क
े मोती शनकाल लाते थे।
आचायय जािीप्रसाद जी का प्रभाव उनक
े शनबिंधों पि स्पष्ट परिलस्क्षत ोता ै।
22. 'पद्म भूषर्' ववद्याशनवास शमश्र िाज्यसभा सािंसद क
े रूप में कायय किते
ुए 14 फ़िविी, 2005 को एक सडक दुघयटना क
े कािर् लगभग
अस्सी वषय की उम्र में हदविंगत ुए।
उस समय साह त्य जगत को य ए सास ोना स्वाभाववक ी था
हक ह न्दी क
े लशलत शनबन्धों का पुिोधा असमय ी चला गया।
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