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सत्र
2023 /
2024
ह िंदी परियोजना कायय
परिचय
नाम - शिवानी शमश्रा
कक्षा - बी.ए. ( आनसय )
िोल न. - 320259
ववषय – ( ह िंदी साह त्य – 2 )
प्रसिंग - डॉ ववद्या शनवास शमत्र प्राख्यात साह त्यकाि
िचना - जीवन परिचय
प्राप्तकताय - डॉ सिंध्या प्रसाद
 प्रस्तुतकताय - शिवानी शमश्रा
 ह न्दी की लशलत शनबन्धों की पिम्पिा को उन्नशत क
े शिखि पि प ुुँचाने वाले क
ु िल
शिल्पी पिंहडत ववद्याशनवास शमश्र का जन्म 28 जनविी, सन 1926 में पकडडी ा
गाुँव, गोिखपुि (उत्ति प्रदेि) में ुआ था ।
 वे अपनी बोली औि सिंस्कृ शत क
े प्रशत सदैव आग्र ी ि े।
 सन 1945 में 'इला ाबाद ववश्वववद्यालय' से स्नातकोत्ति एविं डाक्टिेट की उपाशध लेने क
े
बाद ववद्याशनवास शमश्र ने अनेक वषों तक आगिा, गोिखपुि, क
ै शलफोशनयया औि वाशििंगटन
ववश्वववद्यालय में अध्यापन कायय हकया।
 वे देि क
े प्रशतवित 'सिंपूर्ायनिंद सिंस्कृ त ववश्वववद्यालय' एविं 'कािी ववद्यापीठ' क
े क
ु लपशत भी
ि े।
 इसक
े बाद अनेकों वषों तक वे आकािवार्ी औि उत्ति प्रदेि क
े सूचना ववभाग में काययित
ि े।
 पूिा नाम = ववद्याशनवास शमश्र
 जन्म = 28 जनविी, 1926
 जन्मभूशम = गोिखपुि, उत्ति प्रदेि
 मृत्यु = 14 फ़िविी, 2005
 कमयभूशम = भाित
 कमय-क्षेत्र = शनबन्ध लेखन।
 मुख्यिचनाएुँ = ‘शितवन की िाुँ ' (1976), ‘तुम चन्दन म पानी', ‘आिंगन का पिंिी
‘कदम की फ
ू ली डाल' आहद।
 भाषा = ह न्दी
 ववद्यालय = 'इला ाबाद ववश्वववद्यालय‘
 पुिस्काि उपाशध = 'भाितीय ज्ञानपीठ' का 'मूशतय देवी पुिस्काि', 'ििंकि सम्मान', 'पद्म श्री'
औि 'पद्म भूषर्'।
 प्रशसवि = लशलत शनबन्ध लेखक।
 वविेष योगदान = ववद्याशनवास ह न्दी की प्रशतिा ेतु सदैव सिंघषयित ि े, मॉिीिस से
सूिीनाम तक अनेकों ह न्दी सम्मेलनों में शमश्र जी की उपस्स्थशत ने ह न्दी क
े सिंघषय को
मजबूती प्रदान की।
 नागरिकता = भाितीय
 गोिखपुि ववश्वववद्याल ने ‘पास्र्नीय व्याकिर् की ववश्लेषर् पिशत' पि आपको डॉक्टिेट की
उपाशध प्रदान की।
 लगभग दस वषों तक ह न्दी साह त्य सम्मेलन, िेहडयो, ववन्ध्य प्रदेि एविं उत्ति प्रदेि क
े
सूचना ववभागों में नौकिी क
े बाद आप गोिखपुि ववश्वववद्यालय में प्राध्यापक ुए।
 क
ु ि समय क
े शलए आप अमेरिका गये, व ाुँ क
ै लीफोशनयया ववश्वववद्यालय में ह न्दी साह त्य
एविं तुलनात्मक भाषा ववज्ञान का अध्यापन हकया एविं वाशििंगटन ववश्वववद्यालय में ह न्दी
साह त्य का अध्यापन हकया।
 आपने ‘वार्िासेय सिंस्कृ त ववश्वववद्यालय' में भाषा ववज्ञान एविं आधुशनक भाषा ववज्ञान क
े
आचायय एविं अध्यक्ष पद पि भी कायय हकया।
 िाष्‍टर ने आपकी साह स्त्यक सफलताओिं को ति ीज देते ुए सासिंद शनयुक्त हकया।
 साथ ी देि ने उनकी सफलताओिं औि त्याग तथा ईमानदािी क
े शलए पद्य भूषर् सम्मान से
भी ववभूवषत हकया।
 वतयमान में प्रो॰ शमश्र ‘भाितीय ज्ञानपीठ क
े न्यासी बोडय क
े सदस्य थे औि मूशतय देवी पुिस्काि
चयन सशमशत क
े अध्यक्ष सह त ज्ञानपीठ क
े न्यासी बोडय क
े सदस्य थे।
प्रो॰ ववद्याशनवास शमश्र स्वयिं को 'भ्रमिानन्द' क ते थे औि िद्यनाम से आपने अशधक शलखा ै।
आप ह न्दी क
े एक प्रशतस्ष्‍टठत आलोचक एविं लशलत शनबन्ध लेखक ैं, साह त्य की इन दोनों ी
ववधाओिं में आपका कोई ववकल्प न ीिं ैं।
 शनबन्ध क
े क्षेत्र में शमश्र जी का योगदान सदैव स्वर्ायक्षिों में अिंहकत हकया जाएगा।
प्रो॰ ववद्याशनवास शमश्र क
े लशलत शनबन्धों की िुरूआत में प ला शनबन्ध सिंग्र 1952 ई0 में
‘शितवन की िाुँ ' प्रकाि में आया ै।
 आपने ह न्दी जगत को लशलत शनबन्ध पिम्पिा से अवगत किाया।
शनष्‍टकषय रूप में य क ा जा सकता ै हक प्रो॰ शमश्र जी का लेखन आधुशनकता की माि
देिकाल की ववसिंगशतयों औि मानव की यिंत्र का चिम आख्यान ै स्जसमें वे पुिातन से अद्यतन
औि अद्यतन से पुिातन की बौविक यात्रा किते ैं।
‘‘शमश्र जी क
े शनबन्धों का सिंसाि इतना ब ुआयामी ै हक प्रकृ शत, लोकतत्व, बौविकता,
सजयनात्मकता, कल्पनािीलता, काव्यात्मकता, िम्य िचनात्मकता, भाषा की उवयि सृजनात्मकता,
सम्प्रेषर्ीयता इन शनबन्धों में एक साथ अन्तग्रिंशथयत शमलती ै।
लशलत शनबिंध लेखन
 ववद्याशनवास शमश्र क
े लशलत शनबन्धों की िुरुआत सन 1956 ई. से ोती ै।
 पिन्तु आपका प ला शनबन्ध सिंग्र 1976 ई. में ‘शितवन की िाुँ ' प्रकाि में आया।
 उन् ोंने ह न्दी जगत को लशलत शनबन्ध पिम्पिा से अवगत किाया।
 ‘तुम चन्दन म पानी' िीषयक से जो शनबन्ध प्रकाशित ुए, उनमें सिंस्कृ त साह त्य क
े सन्दभय का प्रयोग अशधक ो
गया औि पास्‍डत्य प्रदियन की प्रवृवत्त क
े कािर् लाशलत्य दब गया, जो आपकी प ली दो िचनाओिं में शमलता था।
 तीसिे शनबन्ध सिंग्र ‘आिंगन का पिंिी औि बनजाि मन' में परिवतयन आया। इस तथ्य को स्वयिं शनबन्धकाि
स्वीकाि किता ै- "शितवन की िािं ' मेिे मादक हदनों की देन ै, ‘कदम की फ
ू ली डाल' मेिे ववन्ध्य प्रवास का,
जो बाद में आवास ी बन गया, का फल ै औि ‘तुम चन्दन औि म पानी' मेिे सिंस्कृ त अन्वेषर् की देन ै।
 अब चौथा सिंग्र आपक
े ाथों में ै, दुववधा क
े क्षर्ों की सृस्ष्‍टट ै।
 इसशलए इसका िीषयक भी हिववधात्मक ै।
 बिसों तक भोजपुिी वाताविर् क
े स्मृशतशचत्र उिे ता ि ा, उसी में मन चा े पद पि जब वापस ोने की आििंका।
 इसशलए ज ाुँ मन ‘आगिंन का पिंिी' बनकि च का, व ीिं उसका बनजािा मन' उसे ववगत औि अनागत हदिाओिं में
िमने-घूमने क
े शलए अक
ु लाता भी ि ा।"
साह त्य सृजनकताय
ह न्दी साह त्य क
े सजयक ववद्याशनवास शमश्र ने साह त्य की लशलत शनबिंध की ववधा
को नए आयाम हदए।
ह न्दी में लशलत शनबिंध की ववधा की िुरूआत प्रताप नािायर् शमश्र औि बालकृ ष्‍टर्
भट्ट ने की थी, हक
िं तु इसे लशलत शनबिंधों का पूवायभास क ना ी उशचत ोगा।
लशलत शनबिंध की ववधा क
े लोकवप्रय नामों की बात किें तो जािी प्रसाद हिवेदी,
ववद्याशनवास शमश्र एविं क
ु बेिनाथ िाय आहद चशचयत नाम ि े ैं।
लेहकन यहद लाशलत्य औि िैली की प्रभाववता औि परिमार् की ववपुलता की बात
की जाए तो ववद्याशनवास शमश्र इन सभी से क ीिं अग्रर्ी ि े ैं।
ववद्याशनवास शमश्र क
े साह त्य का सवायशधक म त्वपूर्य ह स्सा लशलत शनबिंध ी ैं।
उनक
े लशलत शनबिंधों क
े सिंग्र ों की सिंख्या भी लगभग 25 से अशधक ै।
पौिास्र्क ववषयों पि शनबन्ध
 लोक सिंस्कृ शत औि लोक मानस उनक
े लशलत शनबिंधों क
े अशभन्न अिंग थे, उस पि भी पौिास्र्क कथाओिं औि
उपदेिों की फ
ु ाि उनक
े लशलत शनबिंधों को औि अशधक प्रवा मय बना देते थे।
 उनक
े प्रमुख लशलत शनबिंध सिंग्र ैं- 'िाधा माधव ििंग ििंगी', 'मेिे िाम का मुक
ु ट भीग ि ा ै', 'िैफाली झि ि ी
ै', 'शितवन की िािं ', 'बिंजािा मन', 'तुम चिंदन म पानी', 'म ाभाित का काव्याथय', 'भ्रमिानिंद क
े पत्र', 'वसिंत आ
गया पि कोई उत्क
िं ठा न ीिं' औि 'साह त्य का खुला आकाि' आहद आहद।
 वसिंत ऋतु से ववद्याशनवास शमश्र को वविेष लगाव था, उनक
े लशलत शनबिंधों में ऋतुचयय का वर्यन उनक
े शनबिंधों को
जीविंतता प्रदान किता था।
 वसिंत ऋतु पि शलखे अपने शनबिंध सिंकलन 'फागुन दुइ िे हदना' में वसिंत क
े पवों को व्याख्याशयत किते ुए, 'अपना
अ िंकाि इसमें डाल दो' िीषयक से शलखे शनबिंध में वे 'शिविावत्र' पि शलखते ैं-
 "शिव मािी गाथाओिं में बडे यायावि ैं। बस जब मन में आया, बैल पि बोझा लादा औि पावयती सिंग शनकल पडे,
बौिा वेि में।
 लोग ऐसे शिव को प चान न ीिं पाते। ऐसे यायावि ववरूवपए को कौन शिव मानेगा? व भी कभी-कभी ाथ में
खप्पि शलए।
 ऐसा शभखमिंगा क्या शिव ै?"
इसक
े बाद इन पिंवियों को वववेशचत किते ुए ववद्याशनवास शमश्र जी शलखते ैं-
" ाुँ, य जो भीख मािंग ि ा ै, व अ िंकाि की भीख ै।
लाओ, अपना अ िंकाि इसमें डाल दो। उसे सब जग भीख न ीिं शमलती।
कभी-कभी व ब ुत ऐश्वयय देता ै औि पावयती वबगडती ैं।
क्या आप अपात्र को देते ैं? शिव िंसते ैं, क ते ैं, इस ऐश्वयय की गशत जानती ो, क्या ै?
मद ै।
औि मद की गशत तो कागभुसुिंहड से पूिो, िावर् से पूिो, बार्ासुि से पूिो।“
इन पिंवियों का औशचत्य समझाते ुए शमश्र जी शलखते ैं-
"पावयती िेडती ैं हक देवताओिं को सताने वालों को आप इतना प्रतापी क्यों बनाते ैं?
शिव अट्टा ास कि उठते ैं, उन् ें प्रतापी न बनाएुँ तो देवता आलसी ो जाएुँ, उन् ें झकझोिने
क
े शलए क
ु ि कौतुक किना पडता ै।“
य शमश्र जी की अपनी उद्भावना ै, प्रसिंग पौिास्र्क ैं, हक
िं तु वतयमान पि लागू ोते ैं।
पुिार् कथाओिं का सिंदभय देते ुए ववद्याशनवास शमश्र ने साह त्य क
े पाठकों को भाितीय
सिंस्कृ शत का ममय समझाने का प्रयास हकया ै।
ववद्याशनवास शमश्र क
े लशलत शनबिंधों में जीवन दियन, सिंस्कृ शत, पििंपिा औि प्रकशत क
े अनुपम
सौंदयय का तालमेल शमलता ै।
इस सबक
े बीच वसिंत ऋतु का वर्यन उनक
े लशलत शनबिंधों को औि अशधक िसमय बना देता
ै।
लशलत शनबिंधों क
े माध्यम से साह त्य को अपना योगदान देने वाले ववद्याशनवास ह न्दी की
प्रशतिा ेतु सदैव सिंघषयित ि े, मािीिस से सूिीनाम तक अनेकों ह न्दी सम्मेलनों में शमश्र
जी की उपस्स्थशत ने ह न्दी क
े सिंघषय को मजबूती प्रदान की।
ह न्दी की िब्द सिंपदा, ह न्दी औि म, ह न्दीमय जीवन औि प्रौढों का िब्द सिंसाि जैसी
उनकी पुस्तकों ने ह न्दी की सम्प्रेषर्ीयता क
े दायिे को ववस्तृत हकया।
 तुलसीदास औि सूिदास समेत भाितेन्दु
 रिश्चन्र अज्ञेय, कबीि, िसखान, िैदास, ि ीम औि िा ुल सािंकृ त्यायन की िचनाओिं को
सिंपाहदत कि उन् ोंने ह न्दी क
े साह त्य को ववपुलता प्रदान की।
ववद्याशनवास शमश्र कला एविं भाितीय सिंस्कृ शत क
े ममयज्ञ थे।
खजुिा ो की शचत्रकला का सूक्ष्मता औि ताहक
य कता से अध्ययन कि उसकी नई अवधािर्ा प्रस्तुत
किने वाले ववद्याशनवास शमश्र ी थे।
अकसि भाितीय शचिंतक ववदेिी वविानों से बात किते ुए खजुिा ो की कलाकृ शतयों को लेकि कोई
ठोस ताहक
य क जवाब न ीिं दे पाते थे।
 ववद्याशनवास जी ने अपने वववेचन क
े माध्यम से खजुिा ो की कलाकृ शतयों की अवधािर्ा स्पष्ट किते
ुए शलखा ै-
"य ाुँ क
े शमथुन अिंकन साधन ैं, साध्य न ीिं।
साधक की अचयना का क
ें रवबिंदु तो अक
े ली प्रशतमा क
े गभयग्र में ै।
य ाुँ अशभव्यवि कला िस से भिपूि ै, स्जसकी अिंशतम परिर्शत ब्र म रूप ै।
 मािे दियन में धमय, अथय, काम औि मोक्ष की जो मान्यताएुँ ैं, उनमें मोक्ष प्राशप्त से पूवय का
अिंशतम सोपान ै काम।“
उन् ोंने क ा हक य मािी नैशतक दुबयलता ी ै हक खजुिा ो की कलाकृ शतयों में म ववकृ त
कामुकता की िवव पाते ैं। स्त्री पुरुष अनाहद ैं, स्जनक
े स योग से ी सृवष्ट जनमती ै।
 सन 1990 क
े दिक में शमश्र जी ने 'नवभाित टाइम्स' क
े सिंपादक क
े रूप में स्जम्मेदािी
सिंभाली थी।
उदािीकिर् क
े दौि में खािंटी ह न्दी पत्रकारिता को आगे बढाने वाले म त्वपूर्य पत्रकािों में से
एक शमश्र जी ने 'नवभाित टाइम्स' को ह न्दी क
े प्रशतवित समाचाि पत्र क
े रूप में नई प चान
हदलाई।
 पत्रकािीय धमय औि उसकी सीमाओिं को लेकि वे सदैव सचेत ि ते थे।
वे अकसि क ा किते थे हक- "मीहडया का काम नायकों का बखान किना अवश्य ै, लेहकन
नायक बनाना मीहडया का काम न ीिं ै।
आकािवार्ी पि व्याख्यान
जयपुि का साह त्य जगत आज भी भूला न ीिं ै हक आकािवार्ी जयपुि क
े
आमिंत्रर् पि शमश्र जी ने सन 1994 क
े 30 नवम्बि औि 1 हदसम्बि को
आकािवार्ी की िाजेन्र प्रसाद स्मािक व्याख्यान माला में 'साधुमन' औि 'लोकमत'
पि दो व्याख्यान हदए थे, स्जनकी िैली लशलत शनबिंधों की सी थी औि स्जनक
े
प्रेिर्ा स्रोत थी, तुलसी क
े मानस की व अधायली 'टित ववनय सादि सुशनय करिय
ववचाि ब ोरि।
 किब साधुमत लोकमत नृपनयशतगम शनचोरि।' ये दोनों व्याख्यान 'स्वरूप ववमिय'
िीषयक शनबिंध सिंग्र में बाद में िपे।
इसी प्रकाि जयपुि क
े ववख्यात सिंपादक औि वेद ववज्ञान क
े अध्येता कपूयिचन्र
क
ु शलि की प्रेिर्ा से 'भाितीय साह त्य परिषद' िािा जयपुि में 'गीत गोववन्द' पि
उनक
े व्याख्यान किवाए गए। कोलकाता में भी 'गीत गोवविंद' पि व्याख्यान
आयोस्जत हकए गए थे
इन सब का सिंपाहदत औि परिवशधयत रूप ै, उनका प्रशसि ग्रिंथ "िाधा माधव ििंग
िुँगी।" य समूचा ग्रिंथ लशलत शनबन्ध की िैली में शलखा गया ै।
प्रमुख िचनाएुँ
 शमश्र जी की प्रकाशित कृ शतयों की सिंख्या सत्ति से अशधक ै , स्जनमें व्यविव्यिंजक शनबिंध – सिंग्र ,
आलोचनात्मक तथा वववेचनात्मक कृ शतयाुँ , भाषा शचन्तन क
े क्षेत्र में िोध ग्रिंथ औि कववता – सिंकलन सस्म्मशलत
ैं ।
 डॉ . ववद्याशनवास शमश्र आधुशनक ज्ञान – ववज्ञान , समाज – सिंस्कृ शत , साह त्य कला की नवीनतम चेतना औि
तेजस्स्वता से मिंहडत ैं ।
 सिंस्कृ त भाषा क
े साथ ह न्दी औि अिंग्रेजी साह त्य क
े ममयज्ञ डॉ . शमश्र अनेक सिंस्थाओिं क
े सम्माशनत सदस्य ैं ।
 शमश्र जी की शनबन्ध िचनाओिं में प्रमुख ैं:-
1) शितवन की िािं
2) कदम की फ
ू ली डाल
3) तुम चन्दन म पानी
4) आिंगन का पिंिी औि बिंजािा मन
5) मैंने शसल प ुिंचाई
6) वसन्त आ गया पि कोई उत्क‍ठा न ीिं
7) मेिे िाम का मुक
ु ट भीग ि ा ै
8) ल्दी – दूब
9) क
िं टीले तािों क
े आि – पाि
10) कौन तू फ
ु लवा बीनन ािी ।
श्री ववद्याशनवास शमश्र की ह न्दी औि अिंग्रेजी में दो दजयन से अशधक पुस्तक
ें प्रकाशित ैं।
इसमें "म ाभाित का कव्याथय" औि "भाितीय भाषादियन की पीहठका" प्रमुख ैं।
लशलत शनबिंधों में "तुम चिंदन म पानी",1957, "वसिंत आ गया पि कोई उत्क
िं ठा न ीिं", 1972
औि िोधग्रन्थों में "ह न्दी की िब्द सिंपदा" चशचयत कृ शतयािं ैं।
अन्य ग्रन्थ ैं-
1. काव्य सिंग्र : – पानी की पुकाि
2. क ानी सिंग्र : – भ्रमिानिंद का पचडा
3. आलोचनात्मक ग्रिंथ: -तुलसीदास भवि प्रबिंध का नया उत्कषय, आज क
े ह िंदी कवव अज्ञेय,
कबीि वचनामृत, ि ीम िचनावली, िसखान ग्रिंथावली
4. इनक
े अशतरिि इन् ोंने अनेक समीक्षा ग्रन्थ भी शलखे ैं यथा – ह न्दी िब्द सम्पदा ,
पास्र्नीय व्याकिर् की ववश्लेषर् पिशत , िीशत ववज्ञान। शमश्र जी क
े शनबन्धों में लोकजीवन
एविं ग्रामीर् समाज मुखरित ो उठा ै । हकसी भी प्रसिंग को लेकि वे उसे ऐशत ाशसक ,
पौिास्र्क , साह स्त्यक सन्दभो से युि कि लोकजीवन से जोड देने की कला में पाििंगत ैं ।
उनक
े शनबन्धों में लोकतत्व का समावेि ै । वविेष रूप से भोजपुिी लोकजीवन उनक
े शनबन्ध
में समाया ुआ ै ।
शमश्र जी क
े लशलत शनबन्धों में भावात्मकता क
े साथ – साथ लोक सिंस्कृ शत की िटा ववद्यमान ै
।
इनक
े शनबन्धों में प्रसादमयी भाषा – िैली , कथात्मक शचत्रों की अशधकता औि वववेचना की
तथ्यपूर्य गम्भीिता हदखाई देती ै ।
अज्ञेय क
े अनुसाि ” ववद्याशनवास जी ने सिंस्कृ त साह त्य को मथकि उसका नवनीत चखा ै
औि लोकवार्ी की गौिव गन्ध से सदा स्फ
ू शतय भी पाते ि े ैं ।
लशलत शनबन्ध व शलखते ैं तो लाशलत्य क
े हकसी मो से न ीिं , इसशलए हक ग िी , तीखी ,
चुनौती भिी बात भी एक बेलाग औि शनदोष बस्ल्क कौतुकभिी स जता से क जाते ैं ।
शमश्रजी क
े शनबन्धों को ववचािात्मक , समीक्षात्मक , वर्यनात्मक एविं सिंस्मिर्ात्मक – इन पािंच
वगों में ववभि हकया जा सकता ै ।
उनकी भाषा सिंस्कृ तशनि ै , हकन्तु उसमें उदूय , अिंग्रेजी एविं ग्रामीर् जीवन क
े िब्द भी शमलते
ैं ।
िैली की ववववधता उनक
े शनबन्धों की प्रमुख वविेषता ै ।
आलिंकारिक िैली , तििंग िैली , व्यिंग्यपूर्य िैली , व्याख्यात्मक िैली , आलोचनात्मक िैली
उनक
े शनबन्धों में ै ।
 ववद्याशनवास शमश्र ने क
ु ि वषय 'नवभाित टाइम्स' समाचाि पत्र क
े सिंपादक का दाशयत्व भी सिंभाला।
 उन् ें 'भाितीय ज्ञानपीठ' क
े 'मूशतयदेवी पुिस्काि', 'क
े . क
े . वबडला फाउिंडेिन' क
े 'ििंकि सम्मान' से नवाजा गया।
 भाित सिकाि ने उन् ें 'पद्म श्री' औि 'पद्म भूषर्' से भी सम्माशनत हकया था।
 िाजग (िाष्ट्रीय जनतािंवत्रक गठबिंधन) िासन काल में उन् ें िाज्यसभा का सदस्य मनोनीत हकया गया।
1. पद्मश्री -1988
2. मूशतय देवी पुिस्काि – 1989
3. ववश्व भािती सम्मान-1996
4. साह त्य अकादमी का म त्ति सदस्यता सम्मान-1996
5. पद्मभूषर् – 1999
6. मिंगलाप्रसाद पारितोवषक – 2000
7. ेडगेवाि प्रज्ञा पुिस्काि
8. क
े .क
े .वबडला फाउिंडेिन क
े चौथी श्रेर्ी का सम्मान 'ििंकि सम्मान'
शमश्र जी लशलत शनबन्धकािों में ववशिष्ट स्थान क
े अशधकािी ैं ।
साह त्य क
े साथ – साथ भाषा ववज्ञान क
े भी वे पस्‍डत थे।
उन् ोंने आचायय जािीप्रसाद हिवेदी की पिम्पिा को आगे बढाने में म त्वपूर्य
योगदान हदया ै ।
वे प्राचीन सिंस्कृ त , साह त्य को समसामशयक दृवष्ट से देखते थे औि उसमें से
मानवता क
े मोती शनकाल लाते थे।
आचायय जािीप्रसाद जी का प्रभाव उनक
े शनबिंधों पि स्पष्ट परिलस्क्षत ोता ै।
'पद्म भूषर्' ववद्याशनवास शमश्र िाज्यसभा सािंसद क
े रूप में कायय किते
ुए 14 फ़िविी, 2005 को एक सडक दुघयटना क
े कािर् लगभग
अस्सी वषय की उम्र में हदविंगत ुए।
 उस समय साह त्य जगत को य ए सास ोना स्वाभाववक ी था
हक ह न्दी क
े लशलत शनबन्धों का पुिोधा असमय ी चला गया।
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  • 1. सत्र 2023 / 2024 ह िंदी परियोजना कायय
  • 2. परिचय नाम - शिवानी शमश्रा कक्षा - बी.ए. ( आनसय ) िोल न. - 320259 ववषय – ( ह िंदी साह त्य – 2 ) प्रसिंग - डॉ ववद्या शनवास शमत्र प्राख्यात साह त्यकाि िचना - जीवन परिचय प्राप्तकताय - डॉ सिंध्या प्रसाद  प्रस्तुतकताय - शिवानी शमश्रा
  • 3.
  • 4.
  • 5.  ह न्दी की लशलत शनबन्धों की पिम्पिा को उन्नशत क े शिखि पि प ुुँचाने वाले क ु िल शिल्पी पिंहडत ववद्याशनवास शमश्र का जन्म 28 जनविी, सन 1926 में पकडडी ा गाुँव, गोिखपुि (उत्ति प्रदेि) में ुआ था ।  वे अपनी बोली औि सिंस्कृ शत क े प्रशत सदैव आग्र ी ि े।  सन 1945 में 'इला ाबाद ववश्वववद्यालय' से स्नातकोत्ति एविं डाक्टिेट की उपाशध लेने क े बाद ववद्याशनवास शमश्र ने अनेक वषों तक आगिा, गोिखपुि, क ै शलफोशनयया औि वाशििंगटन ववश्वववद्यालय में अध्यापन कायय हकया।  वे देि क े प्रशतवित 'सिंपूर्ायनिंद सिंस्कृ त ववश्वववद्यालय' एविं 'कािी ववद्यापीठ' क े क ु लपशत भी ि े।  इसक े बाद अनेकों वषों तक वे आकािवार्ी औि उत्ति प्रदेि क े सूचना ववभाग में काययित ि े।
  • 6.  पूिा नाम = ववद्याशनवास शमश्र  जन्म = 28 जनविी, 1926  जन्मभूशम = गोिखपुि, उत्ति प्रदेि  मृत्यु = 14 फ़िविी, 2005  कमयभूशम = भाित  कमय-क्षेत्र = शनबन्ध लेखन।  मुख्यिचनाएुँ = ‘शितवन की िाुँ ' (1976), ‘तुम चन्दन म पानी', ‘आिंगन का पिंिी ‘कदम की फ ू ली डाल' आहद।  भाषा = ह न्दी  ववद्यालय = 'इला ाबाद ववश्वववद्यालय‘  पुिस्काि उपाशध = 'भाितीय ज्ञानपीठ' का 'मूशतय देवी पुिस्काि', 'ििंकि सम्मान', 'पद्म श्री' औि 'पद्म भूषर्'।  प्रशसवि = लशलत शनबन्ध लेखक।  वविेष योगदान = ववद्याशनवास ह न्दी की प्रशतिा ेतु सदैव सिंघषयित ि े, मॉिीिस से सूिीनाम तक अनेकों ह न्दी सम्मेलनों में शमश्र जी की उपस्स्थशत ने ह न्दी क े सिंघषय को मजबूती प्रदान की।  नागरिकता = भाितीय
  • 7.  गोिखपुि ववश्वववद्याल ने ‘पास्र्नीय व्याकिर् की ववश्लेषर् पिशत' पि आपको डॉक्टिेट की उपाशध प्रदान की।  लगभग दस वषों तक ह न्दी साह त्य सम्मेलन, िेहडयो, ववन्ध्य प्रदेि एविं उत्ति प्रदेि क े सूचना ववभागों में नौकिी क े बाद आप गोिखपुि ववश्वववद्यालय में प्राध्यापक ुए।  क ु ि समय क े शलए आप अमेरिका गये, व ाुँ क ै लीफोशनयया ववश्वववद्यालय में ह न्दी साह त्य एविं तुलनात्मक भाषा ववज्ञान का अध्यापन हकया एविं वाशििंगटन ववश्वववद्यालय में ह न्दी साह त्य का अध्यापन हकया।  आपने ‘वार्िासेय सिंस्कृ त ववश्वववद्यालय' में भाषा ववज्ञान एविं आधुशनक भाषा ववज्ञान क े आचायय एविं अध्यक्ष पद पि भी कायय हकया।  िाष्‍टर ने आपकी साह स्त्यक सफलताओिं को ति ीज देते ुए सासिंद शनयुक्त हकया।  साथ ी देि ने उनकी सफलताओिं औि त्याग तथा ईमानदािी क े शलए पद्य भूषर् सम्मान से भी ववभूवषत हकया।  वतयमान में प्रो॰ शमश्र ‘भाितीय ज्ञानपीठ क े न्यासी बोडय क े सदस्य थे औि मूशतय देवी पुिस्काि चयन सशमशत क े अध्यक्ष सह त ज्ञानपीठ क े न्यासी बोडय क े सदस्य थे।
  • 8. प्रो॰ ववद्याशनवास शमश्र स्वयिं को 'भ्रमिानन्द' क ते थे औि िद्यनाम से आपने अशधक शलखा ै। आप ह न्दी क े एक प्रशतस्ष्‍टठत आलोचक एविं लशलत शनबन्ध लेखक ैं, साह त्य की इन दोनों ी ववधाओिं में आपका कोई ववकल्प न ीिं ैं।  शनबन्ध क े क्षेत्र में शमश्र जी का योगदान सदैव स्वर्ायक्षिों में अिंहकत हकया जाएगा। प्रो॰ ववद्याशनवास शमश्र क े लशलत शनबन्धों की िुरूआत में प ला शनबन्ध सिंग्र 1952 ई0 में ‘शितवन की िाुँ ' प्रकाि में आया ै।  आपने ह न्दी जगत को लशलत शनबन्ध पिम्पिा से अवगत किाया। शनष्‍टकषय रूप में य क ा जा सकता ै हक प्रो॰ शमश्र जी का लेखन आधुशनकता की माि देिकाल की ववसिंगशतयों औि मानव की यिंत्र का चिम आख्यान ै स्जसमें वे पुिातन से अद्यतन औि अद्यतन से पुिातन की बौविक यात्रा किते ैं। ‘‘शमश्र जी क े शनबन्धों का सिंसाि इतना ब ुआयामी ै हक प्रकृ शत, लोकतत्व, बौविकता, सजयनात्मकता, कल्पनािीलता, काव्यात्मकता, िम्य िचनात्मकता, भाषा की उवयि सृजनात्मकता, सम्प्रेषर्ीयता इन शनबन्धों में एक साथ अन्तग्रिंशथयत शमलती ै।
  • 9. लशलत शनबिंध लेखन  ववद्याशनवास शमश्र क े लशलत शनबन्धों की िुरुआत सन 1956 ई. से ोती ै।  पिन्तु आपका प ला शनबन्ध सिंग्र 1976 ई. में ‘शितवन की िाुँ ' प्रकाि में आया।  उन् ोंने ह न्दी जगत को लशलत शनबन्ध पिम्पिा से अवगत किाया।  ‘तुम चन्दन म पानी' िीषयक से जो शनबन्ध प्रकाशित ुए, उनमें सिंस्कृ त साह त्य क े सन्दभय का प्रयोग अशधक ो गया औि पास्‍डत्य प्रदियन की प्रवृवत्त क े कािर् लाशलत्य दब गया, जो आपकी प ली दो िचनाओिं में शमलता था।  तीसिे शनबन्ध सिंग्र ‘आिंगन का पिंिी औि बनजाि मन' में परिवतयन आया। इस तथ्य को स्वयिं शनबन्धकाि स्वीकाि किता ै- "शितवन की िािं ' मेिे मादक हदनों की देन ै, ‘कदम की फ ू ली डाल' मेिे ववन्ध्य प्रवास का, जो बाद में आवास ी बन गया, का फल ै औि ‘तुम चन्दन औि म पानी' मेिे सिंस्कृ त अन्वेषर् की देन ै।  अब चौथा सिंग्र आपक े ाथों में ै, दुववधा क े क्षर्ों की सृस्ष्‍टट ै।  इसशलए इसका िीषयक भी हिववधात्मक ै।  बिसों तक भोजपुिी वाताविर् क े स्मृशतशचत्र उिे ता ि ा, उसी में मन चा े पद पि जब वापस ोने की आििंका।  इसशलए ज ाुँ मन ‘आगिंन का पिंिी' बनकि च का, व ीिं उसका बनजािा मन' उसे ववगत औि अनागत हदिाओिं में िमने-घूमने क े शलए अक ु लाता भी ि ा।"
  • 10. साह त्य सृजनकताय ह न्दी साह त्य क े सजयक ववद्याशनवास शमश्र ने साह त्य की लशलत शनबिंध की ववधा को नए आयाम हदए। ह न्दी में लशलत शनबिंध की ववधा की िुरूआत प्रताप नािायर् शमश्र औि बालकृ ष्‍टर् भट्ट ने की थी, हक िं तु इसे लशलत शनबिंधों का पूवायभास क ना ी उशचत ोगा। लशलत शनबिंध की ववधा क े लोकवप्रय नामों की बात किें तो जािी प्रसाद हिवेदी, ववद्याशनवास शमश्र एविं क ु बेिनाथ िाय आहद चशचयत नाम ि े ैं। लेहकन यहद लाशलत्य औि िैली की प्रभाववता औि परिमार् की ववपुलता की बात की जाए तो ववद्याशनवास शमश्र इन सभी से क ीिं अग्रर्ी ि े ैं। ववद्याशनवास शमश्र क े साह त्य का सवायशधक म त्वपूर्य ह स्सा लशलत शनबिंध ी ैं। उनक े लशलत शनबिंधों क े सिंग्र ों की सिंख्या भी लगभग 25 से अशधक ै।
  • 11. पौिास्र्क ववषयों पि शनबन्ध  लोक सिंस्कृ शत औि लोक मानस उनक े लशलत शनबिंधों क े अशभन्न अिंग थे, उस पि भी पौिास्र्क कथाओिं औि उपदेिों की फ ु ाि उनक े लशलत शनबिंधों को औि अशधक प्रवा मय बना देते थे।  उनक े प्रमुख लशलत शनबिंध सिंग्र ैं- 'िाधा माधव ििंग ििंगी', 'मेिे िाम का मुक ु ट भीग ि ा ै', 'िैफाली झि ि ी ै', 'शितवन की िािं ', 'बिंजािा मन', 'तुम चिंदन म पानी', 'म ाभाित का काव्याथय', 'भ्रमिानिंद क े पत्र', 'वसिंत आ गया पि कोई उत्क िं ठा न ीिं' औि 'साह त्य का खुला आकाि' आहद आहद।  वसिंत ऋतु से ववद्याशनवास शमश्र को वविेष लगाव था, उनक े लशलत शनबिंधों में ऋतुचयय का वर्यन उनक े शनबिंधों को जीविंतता प्रदान किता था।  वसिंत ऋतु पि शलखे अपने शनबिंध सिंकलन 'फागुन दुइ िे हदना' में वसिंत क े पवों को व्याख्याशयत किते ुए, 'अपना अ िंकाि इसमें डाल दो' िीषयक से शलखे शनबिंध में वे 'शिविावत्र' पि शलखते ैं-  "शिव मािी गाथाओिं में बडे यायावि ैं। बस जब मन में आया, बैल पि बोझा लादा औि पावयती सिंग शनकल पडे, बौिा वेि में।  लोग ऐसे शिव को प चान न ीिं पाते। ऐसे यायावि ववरूवपए को कौन शिव मानेगा? व भी कभी-कभी ाथ में खप्पि शलए।  ऐसा शभखमिंगा क्या शिव ै?"
  • 12. इसक े बाद इन पिंवियों को वववेशचत किते ुए ववद्याशनवास शमश्र जी शलखते ैं- " ाुँ, य जो भीख मािंग ि ा ै, व अ िंकाि की भीख ै। लाओ, अपना अ िंकाि इसमें डाल दो। उसे सब जग भीख न ीिं शमलती। कभी-कभी व ब ुत ऐश्वयय देता ै औि पावयती वबगडती ैं। क्या आप अपात्र को देते ैं? शिव िंसते ैं, क ते ैं, इस ऐश्वयय की गशत जानती ो, क्या ै? मद ै। औि मद की गशत तो कागभुसुिंहड से पूिो, िावर् से पूिो, बार्ासुि से पूिो।“ इन पिंवियों का औशचत्य समझाते ुए शमश्र जी शलखते ैं- "पावयती िेडती ैं हक देवताओिं को सताने वालों को आप इतना प्रतापी क्यों बनाते ैं? शिव अट्टा ास कि उठते ैं, उन् ें प्रतापी न बनाएुँ तो देवता आलसी ो जाएुँ, उन् ें झकझोिने क े शलए क ु ि कौतुक किना पडता ै।“ य शमश्र जी की अपनी उद्भावना ै, प्रसिंग पौिास्र्क ैं, हक िं तु वतयमान पि लागू ोते ैं। पुिार् कथाओिं का सिंदभय देते ुए ववद्याशनवास शमश्र ने साह त्य क े पाठकों को भाितीय सिंस्कृ शत का ममय समझाने का प्रयास हकया ै।
  • 13. ववद्याशनवास शमश्र क े लशलत शनबिंधों में जीवन दियन, सिंस्कृ शत, पििंपिा औि प्रकशत क े अनुपम सौंदयय का तालमेल शमलता ै। इस सबक े बीच वसिंत ऋतु का वर्यन उनक े लशलत शनबिंधों को औि अशधक िसमय बना देता ै। लशलत शनबिंधों क े माध्यम से साह त्य को अपना योगदान देने वाले ववद्याशनवास ह न्दी की प्रशतिा ेतु सदैव सिंघषयित ि े, मािीिस से सूिीनाम तक अनेकों ह न्दी सम्मेलनों में शमश्र जी की उपस्स्थशत ने ह न्दी क े सिंघषय को मजबूती प्रदान की। ह न्दी की िब्द सिंपदा, ह न्दी औि म, ह न्दीमय जीवन औि प्रौढों का िब्द सिंसाि जैसी उनकी पुस्तकों ने ह न्दी की सम्प्रेषर्ीयता क े दायिे को ववस्तृत हकया।  तुलसीदास औि सूिदास समेत भाितेन्दु  रिश्चन्र अज्ञेय, कबीि, िसखान, िैदास, ि ीम औि िा ुल सािंकृ त्यायन की िचनाओिं को सिंपाहदत कि उन् ोंने ह न्दी क े साह त्य को ववपुलता प्रदान की।
  • 14. ववद्याशनवास शमश्र कला एविं भाितीय सिंस्कृ शत क े ममयज्ञ थे। खजुिा ो की शचत्रकला का सूक्ष्मता औि ताहक य कता से अध्ययन कि उसकी नई अवधािर्ा प्रस्तुत किने वाले ववद्याशनवास शमश्र ी थे। अकसि भाितीय शचिंतक ववदेिी वविानों से बात किते ुए खजुिा ो की कलाकृ शतयों को लेकि कोई ठोस ताहक य क जवाब न ीिं दे पाते थे।  ववद्याशनवास जी ने अपने वववेचन क े माध्यम से खजुिा ो की कलाकृ शतयों की अवधािर्ा स्पष्ट किते ुए शलखा ै- "य ाुँ क े शमथुन अिंकन साधन ैं, साध्य न ीिं। साधक की अचयना का क ें रवबिंदु तो अक े ली प्रशतमा क े गभयग्र में ै। य ाुँ अशभव्यवि कला िस से भिपूि ै, स्जसकी अिंशतम परिर्शत ब्र म रूप ै।  मािे दियन में धमय, अथय, काम औि मोक्ष की जो मान्यताएुँ ैं, उनमें मोक्ष प्राशप्त से पूवय का अिंशतम सोपान ै काम।“
  • 15. उन् ोंने क ा हक य मािी नैशतक दुबयलता ी ै हक खजुिा ो की कलाकृ शतयों में म ववकृ त कामुकता की िवव पाते ैं। स्त्री पुरुष अनाहद ैं, स्जनक े स योग से ी सृवष्ट जनमती ै।  सन 1990 क े दिक में शमश्र जी ने 'नवभाित टाइम्स' क े सिंपादक क े रूप में स्जम्मेदािी सिंभाली थी। उदािीकिर् क े दौि में खािंटी ह न्दी पत्रकारिता को आगे बढाने वाले म त्वपूर्य पत्रकािों में से एक शमश्र जी ने 'नवभाित टाइम्स' को ह न्दी क े प्रशतवित समाचाि पत्र क े रूप में नई प चान हदलाई।  पत्रकािीय धमय औि उसकी सीमाओिं को लेकि वे सदैव सचेत ि ते थे। वे अकसि क ा किते थे हक- "मीहडया का काम नायकों का बखान किना अवश्य ै, लेहकन नायक बनाना मीहडया का काम न ीिं ै।
  • 16. आकािवार्ी पि व्याख्यान जयपुि का साह त्य जगत आज भी भूला न ीिं ै हक आकािवार्ी जयपुि क े आमिंत्रर् पि शमश्र जी ने सन 1994 क े 30 नवम्बि औि 1 हदसम्बि को आकािवार्ी की िाजेन्र प्रसाद स्मािक व्याख्यान माला में 'साधुमन' औि 'लोकमत' पि दो व्याख्यान हदए थे, स्जनकी िैली लशलत शनबिंधों की सी थी औि स्जनक े प्रेिर्ा स्रोत थी, तुलसी क े मानस की व अधायली 'टित ववनय सादि सुशनय करिय ववचाि ब ोरि।  किब साधुमत लोकमत नृपनयशतगम शनचोरि।' ये दोनों व्याख्यान 'स्वरूप ववमिय' िीषयक शनबिंध सिंग्र में बाद में िपे। इसी प्रकाि जयपुि क े ववख्यात सिंपादक औि वेद ववज्ञान क े अध्येता कपूयिचन्र क ु शलि की प्रेिर्ा से 'भाितीय साह त्य परिषद' िािा जयपुि में 'गीत गोववन्द' पि उनक े व्याख्यान किवाए गए। कोलकाता में भी 'गीत गोवविंद' पि व्याख्यान आयोस्जत हकए गए थे इन सब का सिंपाहदत औि परिवशधयत रूप ै, उनका प्रशसि ग्रिंथ "िाधा माधव ििंग िुँगी।" य समूचा ग्रिंथ लशलत शनबन्ध की िैली में शलखा गया ै।
  • 17. प्रमुख िचनाएुँ  शमश्र जी की प्रकाशित कृ शतयों की सिंख्या सत्ति से अशधक ै , स्जनमें व्यविव्यिंजक शनबिंध – सिंग्र , आलोचनात्मक तथा वववेचनात्मक कृ शतयाुँ , भाषा शचन्तन क े क्षेत्र में िोध ग्रिंथ औि कववता – सिंकलन सस्म्मशलत ैं ।  डॉ . ववद्याशनवास शमश्र आधुशनक ज्ञान – ववज्ञान , समाज – सिंस्कृ शत , साह त्य कला की नवीनतम चेतना औि तेजस्स्वता से मिंहडत ैं ।  सिंस्कृ त भाषा क े साथ ह न्दी औि अिंग्रेजी साह त्य क े ममयज्ञ डॉ . शमश्र अनेक सिंस्थाओिं क े सम्माशनत सदस्य ैं ।  शमश्र जी की शनबन्ध िचनाओिं में प्रमुख ैं:- 1) शितवन की िािं 2) कदम की फ ू ली डाल 3) तुम चन्दन म पानी 4) आिंगन का पिंिी औि बिंजािा मन 5) मैंने शसल प ुिंचाई 6) वसन्त आ गया पि कोई उत्क‍ठा न ीिं 7) मेिे िाम का मुक ु ट भीग ि ा ै 8) ल्दी – दूब 9) क िं टीले तािों क े आि – पाि 10) कौन तू फ ु लवा बीनन ािी ।
  • 18. श्री ववद्याशनवास शमश्र की ह न्दी औि अिंग्रेजी में दो दजयन से अशधक पुस्तक ें प्रकाशित ैं। इसमें "म ाभाित का कव्याथय" औि "भाितीय भाषादियन की पीहठका" प्रमुख ैं। लशलत शनबिंधों में "तुम चिंदन म पानी",1957, "वसिंत आ गया पि कोई उत्क िं ठा न ीिं", 1972 औि िोधग्रन्थों में "ह न्दी की िब्द सिंपदा" चशचयत कृ शतयािं ैं। अन्य ग्रन्थ ैं- 1. काव्य सिंग्र : – पानी की पुकाि 2. क ानी सिंग्र : – भ्रमिानिंद का पचडा 3. आलोचनात्मक ग्रिंथ: -तुलसीदास भवि प्रबिंध का नया उत्कषय, आज क े ह िंदी कवव अज्ञेय, कबीि वचनामृत, ि ीम िचनावली, िसखान ग्रिंथावली 4. इनक े अशतरिि इन् ोंने अनेक समीक्षा ग्रन्थ भी शलखे ैं यथा – ह न्दी िब्द सम्पदा , पास्र्नीय व्याकिर् की ववश्लेषर् पिशत , िीशत ववज्ञान। शमश्र जी क े शनबन्धों में लोकजीवन एविं ग्रामीर् समाज मुखरित ो उठा ै । हकसी भी प्रसिंग को लेकि वे उसे ऐशत ाशसक , पौिास्र्क , साह स्त्यक सन्दभो से युि कि लोकजीवन से जोड देने की कला में पाििंगत ैं । उनक े शनबन्धों में लोकतत्व का समावेि ै । वविेष रूप से भोजपुिी लोकजीवन उनक े शनबन्ध में समाया ुआ ै ।
  • 19. शमश्र जी क े लशलत शनबन्धों में भावात्मकता क े साथ – साथ लोक सिंस्कृ शत की िटा ववद्यमान ै । इनक े शनबन्धों में प्रसादमयी भाषा – िैली , कथात्मक शचत्रों की अशधकता औि वववेचना की तथ्यपूर्य गम्भीिता हदखाई देती ै । अज्ञेय क े अनुसाि ” ववद्याशनवास जी ने सिंस्कृ त साह त्य को मथकि उसका नवनीत चखा ै औि लोकवार्ी की गौिव गन्ध से सदा स्फ ू शतय भी पाते ि े ैं । लशलत शनबन्ध व शलखते ैं तो लाशलत्य क े हकसी मो से न ीिं , इसशलए हक ग िी , तीखी , चुनौती भिी बात भी एक बेलाग औि शनदोष बस्ल्क कौतुकभिी स जता से क जाते ैं । शमश्रजी क े शनबन्धों को ववचािात्मक , समीक्षात्मक , वर्यनात्मक एविं सिंस्मिर्ात्मक – इन पािंच वगों में ववभि हकया जा सकता ै । उनकी भाषा सिंस्कृ तशनि ै , हकन्तु उसमें उदूय , अिंग्रेजी एविं ग्रामीर् जीवन क े िब्द भी शमलते ैं । िैली की ववववधता उनक े शनबन्धों की प्रमुख वविेषता ै । आलिंकारिक िैली , तििंग िैली , व्यिंग्यपूर्य िैली , व्याख्यात्मक िैली , आलोचनात्मक िैली उनक े शनबन्धों में ै ।
  • 20.  ववद्याशनवास शमश्र ने क ु ि वषय 'नवभाित टाइम्स' समाचाि पत्र क े सिंपादक का दाशयत्व भी सिंभाला।  उन् ें 'भाितीय ज्ञानपीठ' क े 'मूशतयदेवी पुिस्काि', 'क े . क े . वबडला फाउिंडेिन' क े 'ििंकि सम्मान' से नवाजा गया।  भाित सिकाि ने उन् ें 'पद्म श्री' औि 'पद्म भूषर्' से भी सम्माशनत हकया था।  िाजग (िाष्ट्रीय जनतािंवत्रक गठबिंधन) िासन काल में उन् ें िाज्यसभा का सदस्य मनोनीत हकया गया। 1. पद्मश्री -1988 2. मूशतय देवी पुिस्काि – 1989 3. ववश्व भािती सम्मान-1996 4. साह त्य अकादमी का म त्ति सदस्यता सम्मान-1996 5. पद्मभूषर् – 1999 6. मिंगलाप्रसाद पारितोवषक – 2000 7. ेडगेवाि प्रज्ञा पुिस्काि 8. क े .क े .वबडला फाउिंडेिन क े चौथी श्रेर्ी का सम्मान 'ििंकि सम्मान'
  • 21. शमश्र जी लशलत शनबन्धकािों में ववशिष्ट स्थान क े अशधकािी ैं । साह त्य क े साथ – साथ भाषा ववज्ञान क े भी वे पस्‍डत थे। उन् ोंने आचायय जािीप्रसाद हिवेदी की पिम्पिा को आगे बढाने में म त्वपूर्य योगदान हदया ै । वे प्राचीन सिंस्कृ त , साह त्य को समसामशयक दृवष्ट से देखते थे औि उसमें से मानवता क े मोती शनकाल लाते थे। आचायय जािीप्रसाद जी का प्रभाव उनक े शनबिंधों पि स्पष्ट परिलस्क्षत ोता ै।
  • 22. 'पद्म भूषर्' ववद्याशनवास शमश्र िाज्यसभा सािंसद क े रूप में कायय किते ुए 14 फ़िविी, 2005 को एक सडक दुघयटना क े कािर् लगभग अस्सी वषय की उम्र में हदविंगत ुए।  उस समय साह त्य जगत को य ए सास ोना स्वाभाववक ी था हक ह न्दी क े लशलत शनबन्धों का पुिोधा असमय ी चला गया। •