1. प्रेमचंद की जीवन एवम रचनाए
प्रेमचंद का मूल नाम धनपतराय था और उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी क
े
नज़दीक लमही गांव में हुआ था। पपता का नाम अजायब राय था और वे डाकखाने में
मामूली नौकरी करते थे। वे जब पसर्
फ आठ साल क
े थे तब मां का पनधन हो गया। पपता ने
दू सरा पववाह कर पलया लेपकन वे मां क
े प्यार और वात्सल्य से महरूम रहे।
प्रेमचंद को पहंदी और उदूफ क
े महानतम लेखकों में शुमार पकया जाता है। प्रेमचंद की
रचनाओं को देखकर बंगाल क
े पवख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें
'उपन्यास सम्राट' की उपापध दी थी। प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास में एक नई परंपरा
की शुरुआत की पजसने आने वाली पीप़ियों क
े सापहत्यकारों का मागफदशफन पकया। प्रेमचंद
ने सापहत्य में यथाथफवाद की नींव रखी। प्रेमचंद की रचनाएं पहंदी सापहत्य की धरोहर हैं।
2. प्रेमचंद ने पहन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का पवकास पकया पजसने पूरी
शती क
े सापहत्य का मागफदशफन पकया। उनका लेखन पहन्दी सापहत्य की एक ऐसी पवरासत
है पजसक
े पबना पहन्दी क
े पवकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक ,
सचेत नागररक , क
ु शल वक्ता तथा सुधी संपादक थे।
लेखक ने प्रेमचंद को सापहत्यत्यक पुरखा इसपलए कहा है क्ोंपक प्रेमचंद अपने समय क
े
लेखकों में ही नहीं बत्यि संपूणफ पहंदी सापहत्य में सवोच्च स्थान रखते थे। वे यथाथफवादी
लेखक थे। उन्होंने अपने आसपास, देश, काल तथा समाज की त्यस्थपत का सच्चा तथा
वास्तपवक पचत्रण अपने लेखन में पकया है।
3.
4. प्रेमचंद क
े सापहत्यत्यक जीवन की शुरूआत 1901 से हुई। उनकी पहली पहंदी कहानी
सरस्वती पपत्रका क
े अंक में वर्फ 1915 में 'सौत' नाम से प्रकापशत हुई। वर्फ 1936 में
उनकी अंपतम कहानी 'कर्न' प्रकापशत हुई। उनक
े प्रमुख उपन्यासों में 'सेवा सदन',
'प्रेमाश्रम', 'रंगभूपम', 'पनमफला', 'गबन', 'कमफभूपम' और 1935 में 'गोदान' शापमल है।
उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूपम, पनमफला, गबन, कमफभूपम, गोदान आपद लगभग डे़ि
दजफन उपन्यास तथा कर्न, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बडे घर की बेटी, बू़िी काकी, दो
बैलों की कथा आपद तीन सौ से अपधक कहापनयााँ पलखीं। उनमें से अपधकांश पहन्दी तथा
उदूफ दोनों भार्ाओं में प्रकापशत हुईं।
उन्होंने क
ु ल १५ उपन्यास, ३०० से क
ु छ अपधक कहापनयााँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७
बाल-पुस्तक
ें तथा हजारों पृष्ों क
े लेख, सम्पादकीय, भार्ण, भूपमका, पत्र आपद की रचना
की।
5. • “अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने
क
े ही समान है…।”
• “अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर
जाए, तो यह उससे कहीं अच्छा है पक
कोई दू सरा उसे सुधारे।”
• “सौभाग्य उसी को प्राप्त होता है, जो
अपने कतफव्य पथ पर अपवचपलत रहते
हैं।”
प्रेमचंद की क
ु छ पंत्यक्तयां