Principles and objectives of indian foreign policy
Laski ke rajnitik vichar
1. हेरा ड जोसेफ ला क के राजनी तक वचार
Source-www.britannica.com
वारा- डॉ टर ममता उपा याय
एसो सएट ोफे सर, राजनी त व ान
कु मार मायावती राजक य म हला नातको र महा व यालय, बादलपुर, गौतम बुध नगर ,उ र देश
यह साम ी वशेष प से श ण और सीखने को बढ़ाने के शै णक उ दे य के लए है। आ थक / वा णि यक अथवा कसी अ य
उ दे य के लए इसका उपयोग पूणत: तबंध है। साम ी के उपयोगकता इसे कसी और के साथ वत रत, सा रत या साझा नह ं
करगे और इसका उपयोग यि तगत ान क उ न त के लए ह करगे। इस ई - कं टट म जो जानकार क गई है वह ामा णक है और
मेरे ान के अनुसार सव म है
2. ।
उ दे य- तुत ई - साम ी से न नां कत उ दे य क ाि त संभा वत है-
● लॅा क के बहुलवाद राजनी तक वचार क जानकार
● उदारवाद और समाजवाद के संदभ म लॅा क क अ धकार क धारणा क जानकार
● वतं ता और समानता के पार प रक संबंध के वषय म लॅा क के वचार क
जानकार
● संप क व यमान यव था के वषय म लॅा क वारा कए गए व लेषण क जानकार
● लॅा क के वचार को क म रखते हुए समाजवाद के व भ न प के तुलना मक व लेषण का
ान
ला क बीसवीं शता द का मुख राजनी तक वचारक है िजसने राजनी त व ान के भावशाल
श क, या याता एवं टश मजदूर दल क कायका रणी के सद य के प म वैि वक या त
ा त क । ला क के राजनी तक वचार के वषय म एक रोचक त य यह है क लेटो और
काल मा स के समान उसके वचार म भी उसके जीवन के व भ न काल म प रवतन होता रहा
है। उसके राजनी तक वचार को कसी एक राजनी तक वचारधारा के दायरे म नह ं रखा जा
सकता। अपने ारं भक काय जीवन म वह एक यि तवाद और बहुलवाद वचारक के प म
सामने आता है, कं तु 1925 के बाद उसके चंतन पर काल मा स का प ट भाव देखा जा
सकता है। व तुतः 1930 क व व यापी आ थक मंद के दौरान टेन म मजदूर दल के
मं मंडल को िजस असफलता का सामना करना पड़ा, उसने ला क को यह सोचने के लए
ववश कया क पूंजीवाद क बुराइय को तभी समा त कया जा सकता है, जब उसे उखाड़ फका
जाए और उसके थान पर समाजवाद क थापना क जाए । मा स के समान उसने भी यह
माना क यव था म प रवतन के लए ां त आव यक है। 1940 म उसके वचार म पुनः
प रवतन देखने को मलता है, जब वह जातां क समाजवाद को अपनी वचारधारा का क बंदु
बनाता है। 1945 म जब टेन म मजदूर दल क सरकार ने समाजवाद क दशा म ग त क ,
ला क क जातां क समाजवाद के त आ था और गहर हो गई। अतः यह कहा जा सकता
है
3. क लॅा क के राजनी तक वचार यि तवाद, बहुलवाद, मा सवाद और जातां क समाजवाद
क दशा म मक प मे वक सत हुए ह।
जीवन वृ -
1893 म टेन के मैनचे टर म एक समृ ध यहूद प रवार म ज म लेने वाला ला क अपनी
वृ से उदारवाद था। पता क पु को आदश यहूद बनाने क इ छा के वपर त लॅा क क
च आधु नक व ान, इ तहास और राजनी त म थी। प रवार क धा मक परंपराओं के त
व ोह का दशन करते हुए उसने ईसाई धमावलंबी डा कै र ववाह कया। 1914 म
ऑ सफोड व व व यालय इ तहास म उपा ध ा त करने के बाद उसने कनाडा के मैक गल
व व व यालय म इ तहास के या याता के पद पर नयु त ा त क जहां 1 वष तक काय
करने के बाद अमे रका के हावड व व व यालय म अ ययन के लए गया और वहां से 1920 म
इं लड वापस लौटने पर ‘ लंदन कू ल ऑफ़ इकोनॉ म स एंड पॉल टकल साइंस’ मे ाहम
वालास के बाद
राजनी त शा का ोफे सर बना जहां 1950 म अपनी मृ यु पयत उसने अपनी सेवाएं द । वह
टश मजदूर दल क कायका रणी का भी सद य रहा और 1945 म जब मजदूर दल क सरकार
स ा ढ़ हुई, तब वह उसका अ य था। अपने ान और तभा के कारण वह न के वल मजदूर
दल के नेताओं जैसे एटल , बॉव और मॉर सन आ द का पथ दशक बना, बि क अंतररा य
जगत म अमे रक रा प त जवे ट, भारतीय धानमं ी नेह और च चत जैसे व व व यात
नेताओं को भी उसने समसाम यक मु द पर मह वपूण सलाह द । अपनी व व ा के आधार पर
न के वल रा य जगत म बि क अंतररा य जगत म भी उसने अ य धक स मान ा त
कया।
रचनाएं-
ला क क व व ा का माण उसक बहुसं यक एवं बहुआयामी रचनाएं ह। उस क मुख
रचनाएं न न वत ह।
● टडी इन द ॉ लम ऑफ सावरट [1917]
4. ● अथॉ रट इन द मॉडन टेट [1918]
● काल मा स [1921 ]
● ामर ऑफ पॉ ल ट स [1925]
● लबट इन द मॉडन टेट [1930]
● वेयर सोश ल म टडस टुडे[1933]
● डेमो े सी इन ाइ सस [1933]
● द टेट इन थअर एंड ैि टस [1934]
● पा लयाम गवनमट इन इं लड [1938]
● अमे रकन डेमो े सी [1948]
● द डलेमा ऑफ आवर टाइ स [1952]
भाव-
लंडसे, बाकर , ाहम वालास , जी. डी . एच. कोल , व लयम जे स
अ ययन प ध त-
लॅा क क अ ययन प ध त आनुभ वक है। अपनी पु तक ामर ऑफ पॉ ल ट स म
उसने लखा है क “ रा य वषयक कसी भी स धांत को अगर युगीन संदभ म न देखा
जाए तो वह समझ म नह ं आ सकता। मनु य जो कु छ रा य के वषय म सोचता है, वह
सब उसके उस अनुभव का न कष होता है, िजससे होकर उसे गुजरना पड़ता है”।
राजनी तक वचार-
ला क के राजनी तक वचार को न नां कत शीषक के अंतगत व ले षत कया जा
सकता है-
1. बहुलवाद वचार- रा य क सं भुता क धारणा क आलोचना
ला क मूलतः एक बहुलवाद वचारक है जो रा य क सं भुता क वचार का आलोचक
है। अपनी पु तक ‘द ॉ लम ऑफ सावरट ’ और ‘अथॉ रट इन द मॉडन टेट’ म उसने
5. रा य क सव च स ा के वचार को मानवीय वतं ता ,अ धकार और अंतररा य
शां त क ि ट से घातक बताया है। ऑि टन, बोदां एवं हॉ स आ द वचारक के वारा
सं भुता के िजस एकल वाद स धांत क या या क गई, उसके अनुसार रा य क स ा
सव च है, वह सभी को आ ा देने का अ धकार है, परंतु वयं कसी के नयं ण के
अधीन नह ं है। रा य म रहने वाले सभी यि त और सं थाएं रा य के अधीन है और
उसके आदेश को मानने के लए बा य है। उसके आदेश ह कानून है। रा य के वरोध
का अ धकार कसी को नह ं है। ला क एकल वा दय क इस धारणा से सहमत नह ं है
और उसक मा यता है क स ा समाज म मौजूद
व भ न समूह और संगठन जैसे- प रवार, धा मक संघ या चच, मजदूर संघ के म य
वभािजत है। यह सभी समुदाय अपने सद य के ऊपर स ा का योग करते ह और यह
अपने अपने े म सव च है। रा य क ि थ त भी एक राजनी तक संगठन क है और
यह अ य संगठन के समान ह है। कोई व श ट अ धकार उसे ा त नह ं है।
लॅा क ने न नां कत आधार पर रा य क सं भुता क धारणा क आलोचना क है-
● इ तहास और वतमान का अवलोकन करने पर रा य क नरंकु श स ा कह ं
दखाई नह ं देती-
ऑि टन आ द वचारको ने रा य क िजस सव च, अदेय, अमया दत स ा क
बात कह है, लॅा क उसे इ तहास के आधार पर खा रज करते ह। उनके अनुसार
इ तहास म कभी भी कसी भी थान पर ऐसा सं भु रा य नह ं दखाई देता है,
िजसक चचा एकल वाद वचारको ने क है। यूं तो स के जार शासक और टक
के खल फाओं क गणना नरंकु श और सवशि तमान शासक म क जाती है, कं तु
ला क क मा यता है क य द उनके शासन का सू म अ ययन कया जाए तो
यह पता चलता है क इन शासक ने भी अपने देश क थाओं, परंपराओं, धा मक
नयम और लोकमत का स मान करते हुए शासन कया। वतमान म भी टेन
और अमे रका जैसे वक सत राजनी तक समाज म ऐसे अनेक उदाहरण मल
जाएंगे, जब रा य को शि तशाल धा मक और आ थक समुदाय क इ छा के
स मुख नतम तक होना पड़ा और इस कार ला क के वचार का न कष है क
“ असी मत स ा कह ं भी व यमान नह ं है”।
● नै तक ि ट से रा य क सं भुता क धारणा उ चत नह ं है-
6. ला क नै तक आधार पर भी सं भुता क धारणा को उ चत नह ं मानता। उसके
अनुसार अपने यि त व का वकास करना यि त का
परम नै तक कत य है, कं तु रा य क सव च स ा क धारणा यि त को रा य
क अधीन बना देती है और यह ि थ त यि त व के वकास म बाधक है। दूसरे
यि त के बहुआयामी यि त व के वकास हेतु उसे कई सामािजक सं थाओं का
सद य बनना पड़ता है और इनके त उसक न ठा भी होती है। ऐसे म यह
कहना क रा य के त ह यि त क न ठा होनी चा हए, कसी और समुदाय के
त नह ं, उ चत नह ं है और नै तक ि ट से चयन के े को सी मत करता है।
ला क के श द म, “ म के वल उसी रा य के त राज भि त और न ठा रखता
हूं, उसी के आदेश का पालन करता हूं िजस रा य म मेरा नै तक वकास पया त
प से होता है। हमारा थम कत य अपने अंतःकरण के त स चा रहना है”।
● कानून सं भु का आदेश मा नह ं है-
ऑि टन आ द वधानशाि य का मत था क रा य सरकार वारा दए गए आदेश ह
कानून होते ह। लॅा क इस वचार से सहमत नह ं है । उसके अनुसार कानून के नमाण
म समाज क परंपराओं थम और धा मक नयम का बड़ा योगदान होता है और उनका
पालन उनके औ च य के आधार पर
कया जाता है। आधु नक रा य के वारा भी कानून का नमाण करते समय इन
परंपराओं का यान रखा जाता है।
● अंतरा य शां त क ि ट से रा य क सं भुता का वचार घातक है-
लॅा क के वचारानुसार अंतररा य जगत म रा य के आचरण का का अ ययन करने
से पता चलता है क रा य ने अपनी सं भुता क दुहाई देते हुए यु ध क नी त का
आ य लया है, िजससे बड़ी सं या म मानवा धकार का हनन हुआ है। जमनी और
इटल जैसे शि तशाल रा य ने पोलड, बेि जयम और अबीसी नया जैसे कमजोर
रा पर हमला करके व व शां त पर करार चोट क है। लॅा क के श द म, “बाहर
तौर पर देख तो न चय ह
7. नरपे और वतं भुस ा संप न रा य क अवधारणा क मानवता के हत से संग त
नह ं बैठती..... व व क वह स ची इकाई है िजसके त न ठा होनी । आ ाका रता का
स चा दा य व मानव मा के सम हत के त है”। यह नह ं, अंतरा य संगठन एवं
आतंकवाद समूह जैसे गैर रा यीय अ भकताओं क उपि थ त रा य क सं भुता क
धारणा को सी मत करती है। एक तरफ जहां रा य संयु त रा संघ, अंतरा य मु ा
कोष और व व बक जैसे संगठन के नणय को मा यता दान करता है, दूसर ओर
अंतरा य आतंकवाद समूह उसक सं भुता को खुल चुनौती देते ह और उसके वारा
बनाए गए नयम को मानने से इनकार करते ह।
● समाज क वतमान संरचना क ि ट से रा य क सं भुता क धारणा कोई
औ च य नह ं रखती-
वतमान सामािजक संरचना अ यंत ज टल कृ त क है। यि त क
आव यकताएं और आकां ाएं इतनी यादा है और इतनी व वध कार क है क
रा य उन सार आव यकताओं को पूरा नह ं कर सकता। अपनी आव यकताओं
क पू त के लए वह व भ न सामािजक, वै ा नक, राजनी तक, सां कृ तक,
धा मक और आ थक समूह का सद य बनता है। मनु य के बहुआयामी वकास
के लए ज र है क जीवन के व भ न प से संबं धत समुदाय रा य और
अ य समुदाय से वतं रहकर काय कर। लॅा क के श द म, “ आव यकताओं
क ि ट से पूण होने के लए सामािजक संगठन के ढांचे का व प संघीय होना
चा हए”। अतः लॅा क का वचार है क रा य क स ा व भ न संघ म
वभािजत होनी चा हए और अंतररा य तर पर व भ न संघ क स ा को
मा यता मलनी चा हए। प ट है क लॅा क का वचार अर तू के इस वचार
से नतांत भ न है क रा य एक आ म नभर सं था है जो अपने सभी सद य
क सभी आव यकताओं को पूण
करने म पूण स म है। वतमान नव उदारवाद युग म रा य से भ न व भ न
नाग रक संगठन का अि त व और रा य वारा उनक मा यता ला क के
वचार को ासं गक बना रह है।
आलोचना-
8. य य प ला क ने सं भुता के एकलवाद स धांत का वरोध समु चत तक के
आधार पर कया है, कं तु आलोचक उसके बहुलवाद वचार क न नां कत
आधार पर आलोचना करते ह-
● लॅा क ने एक ऐसे का प नक सं भु पर हार कया है, िजसका तपादन
ऑि टन जैसे व धशाि य ने कया ह नह ं है। कानूनी प से सं भु स ा को सव च
मानने का ता पय यह कदा प नह ं है क रा य क स ा पर कोई नै तक या भौ तक
तबंध नह ं है।
● रा य को अ य समुदाय के सामान मान लेने पर यव था बनाए रखना संभव नह ं
होगा। यह रा य ह है जो व भ न समुदाय के म य उ प न संघष का समायोजन
करता है।
● लॅा क के सं भुता वषयक वचार म समय-समय पर प रवतन होता रहा है। अपनी
पु तक “अथॉ रट इन मॉडन टेट” मे वह उ बहुलवाद के प म रा य क स ा का
वरोध करता है, कं तु बाद म अपने ह एक अ य ंथ ‘ ामर ऑफ पॉ ल ट स’ म उसने
यह कहते हुए रा य को सव च ि थ त दान क है क रा य के पास बा यकार स ा
होती है,जो उसे अ य समुदाय से पृथक बनाती है । रा य इस अथ म भी अ य समुदाय
से भ न है क जहां अ य समुदाय क सद यता वैि छक होती है, वह ं रा य क
सद यता अ नवाय होती है। इस कार अ य संगठन क तुलना म रा य उ कृ ट
संगठन है ।
प ट है क अपने जीवन के उ राध म लॅा क ने अ धक यथाथवाद ि टकोण अपनाते
हुए रा य क स ा और यि त क वतं ता म सामंज य था पत करने का काय कया
है।
2. अ धकार वषयक धारणा-
यि त के अ धकार के संबंध म लॅा क ने अपने ंथ “ ामर ऑफ पॉ ल ट स” म वशद
ववेचना क है। उसके अ धकार वषयक चंतन म यि तवाद और समाजवाद का सम वय
दखाई देता है। उसके अनुसार एक अ छे रा य क पहचान इस बात से होती है क वह अपने
नाग रक को कतने अ धकार कस प म दान करता है। रा य यि त से भि त क अपे ा
9. तभी कर सकता है, जब वह लोक हत के न म क याणकार प रि थ तय को उपल ध कराएं।
लॅा क क ि ट म “ अ धकार सामािजक जीवन क वे प रि थ तयां ह, िजन के अभाव म
सामा यतया कोई भी यि त अपने यि त व का वकास नह ं कर सकता।” सं ेप म लॅा क के
अ धकार संबंधी चंतन को न नां कत बंदुओं के अंतगत व ले षत कया जा सकता है-
● अ धकार ाकृ तक है और रा य उनका नमाणक नह ं है-
लॉक आ द उदार वा दय के समान लॅा क क भी मा यता है क अ धकार का नमाण
रा य के वारा नह ं कया जाता, बि क वे तो रा य के पूव भी व यमान रहते ह। रा य
उ ह के वल वैधा नक मा यता दान करता है। अथात अ धकार यि त के अि त व के
साथ जुड़े हुए ह, िजनके बना यि त का जीवन और यि त व संभव नह ं है।
● अ धकार यि तगत इ छा क संतुि ट का साधन नह ं, बि क संपूण समाज के लए
क याणकार होते ह-
समाजवाद वचारक के प म ला क इस बात पर वशेष जोर देता है क समाज और
रा य के वारा अ धकार को मा यता यि तगत संतुि ट को यान म रखकर नह ं द
जाती, बि क इस लए द जाती है क यि तगत और सामािजक क याण क ि ट से
उनक उपयो गता होती है। प ट है क लॅा क
क अ धकार संबंधी धारणा यि त के हत म होते हुए भी यि त क त नह ं है जैसा
क शा ीय यि तवाद वचारक के वचार म मलती है।
● अ धकार के कार-
ला क ने यह माना है क अ धकार क कोई थायी या अप रवतनीय सूची तैयार नह ं
क जा सकती य क बदलती जीवन शैल के साथ यि त व वकास क प रि थ तय
म प रवतन होता रहता है, फर भी यि त व वकास हेतु कु छ मूलभूत प रि थ तय क
उसने अ धकार के प म गणना क है जो यि त व वकास हेतु आव यक ह। यह है-
1. वचार अ भ यि त क वतं ता और सरकार क आलोचना करने का अ धकार
2. शां तपूण दशन करने और संघ बनाने का अ धकार
3. संप का अ धकार
4. पया त वेतन ा त करने का अ धकार
10. 5. श ा का अ धकार
6. जी वका ा त करने का
7. काय के उ चत घंट का अ धकार
8. राजनी तक यव था म भाग लेने का अ धकार
9. या यक संर ण का अ धकार
● अ धकार क र ा संवैधा नक ावधान से यादा व थ परंपराओं और आदत के
वकास से संभव-
ला क ने रा य म अ धकार क र ा के लए संवैधा नक ावधान उतने मह वपूण नह ं
माने ह, िजतना क व थ परंपराओं का वकास एवं लोग म पार प रकता का भाव ।
अथात य द सं वधान म ावधान नह ं कया जाए तो भी लोग के अ धकार सुर त रह
सकते ह, य द समाज म लोग इसके अ य त हो क उ ह अपने अ धकार के साथ अ य
यि तय के अ धकार का
भी स मान करना है। लॅा क के श द म, “ अ धकार क सुर ा अ ध नयम क
औपचा रकताओं क अपे ा वभाव और परंपरा का ह वषय अ धक है”।
● अ धकार क र ा हेतु आव यक शत-
समाज म सभी यि त समान प से अ धकार का उपभोग कर सक, इसके लए लॅा क
ने तीन शत आव यक बताई ह-
1. राजनी तक स ा का व प वक त होना चा हए ता क सावज नक मामल म जनता
यादा से यादा च ले सके और स ा क थानीय इकाइय पर नयं ण रख सके ।
2. क सरकार के साथ अ धका धक परामशदा ी सं थाएं जुड़ी होनी चा हए ता क
सरकार को मुख सम याओं पर मह वपूण सलाह ा त हो सके । येक वभाग के साथ
वशेष का एक समूह अव य ह जुड़ा होना चा हए।
3. रा य को अ य समुदाय क वतं ता म तब तक कोई ह त ेप नह ं करना चा हए,
जब तक कोई समुदाय रा य को बलपूवक समा त करने क धमक न दे।
● अ धकार क स ध यि त और रा य के पर पर कत य उ मुख संबंध से संभव-
लॅा क का यह वचार है क अ धकार क ाि त के लए के वल समाज के लोग का एक
दूसरे के त कत य पालन ह आव यक नह ं है, बि क यि त और रा य का एक दूसरे
11. के त कत य पालन भी उतना ह ज र है। रा य का कत य है क वह यि त को
अ धकार दान कर और य द वह अ धकार दान नह ं करता, तो यि त से अपने त
न ठा क मांग भी नह ं कर सकता। दूसर और यि त का यह कत य है क वह रा य
के त पूण वफादार का भाव रख, अ यथा उसे रा य से उन प रि थ तय क मांग करने
का कोई अ धकार नह ं है जो उसके यि त व के वकास के लए और सम समाज के
क याण के लए आव यक है । लॅा क के श द म, “ जो कत य नह ं पालता,
वह अ धकार का उपभोग भी नह ं कर सकता, जैसे जो काम नह ं करता, उसे रोट नह ं
मलनी चा हए।
3. वतं ता संबंधी धारणा
अ धकार क सूची म ला क ने सवा धक मह वपूण थान वतं ता को दया है और
उसम भी वैचा रक वतं ता को। वचार पर कसी भी कार के तबंध को अनु चत और
अनै तक मानता है और धम, नै तकता, व ान, कला, सा ह य, दशन, राजनी त आ द
कसी भी े म वचार क अ भ यि त और काशन का नषेध करता है। साथ ह
वैचा रक अ भ यि त के कारण कसी को दं डत कए जाने क धारणा के भी वह व ध
है। इस अ धकार को इतना मह वपूण मानता है क यु ध या आपातकाल क ि थ त म
भी वह इस पर कसी भी तरह का तबंध न लगाए जाने क सफा रश करता है।
वैचा रक वतं ता के लए यायपा लका क वतं ता और शि त पृथ करण को वह
आव यक मानता है। कं तु वह वतं ता को शा ीय उदार वा दय क तरह तबंध
का अभाव नह ं मानता है, बि क उसका यह वचार है क रा य वारा यि तय क
जीवन को मया दत रखने के लए नयम -कानून का बनाना आव यक है, कं तु यह
नयम अनुभव पर आधा रत होनी चा हए िजनका पालन करना मनु य के लए संभव हो
सके । साथ ह िजनके पालन से न के वल यि त क वतं ता सुर त हो, अ पतु पूरा
समाज वतं हो सके । ला क के श द म, “ समाज के हत के लए यि तगत हत
का ब लदान वतं ता का नषेध नह ं है” । अपने व भ न ंथ म ला क ने वतं ता
के 3 प क चचा क है-1. यि तगत वतं ता 2. राजनी तक वतं ता 3. आ थक
वतं ता।
12. जॉन टूअट मल के समान ला क भी यह मानता है क यि त के काय का एक े
ऐसा है, िजसका संबंध उसके अपने जीवन से ह है, समाज के अ य
लोग उससे भा वत नह ं होते। जैसे- कसी धम को मानना या न मानना। रा य को
यि तगत वतं ता म ह त ेप नह ं करना चा हए और यि तगत वतं ता क ाि त
तभी संभव है जब रा य वारा यि त को यि त व वकास क अ धका धक अवसर
दान कए जाएं तथा नाग रक म रा य के अनु चत काय का वरोध करने क चेतना
और शि त हो।
राजनी तक वतं ता का ता पय है राजनी तक यव था क याकलाप म
भागीदार बनने क वतं ता। इसके लए यि त को वचार अ भ य त करने, रा य क
आलोचना करने, अपने त न ध चुनने एवं वयं त न ध के प म नवा चत होने क
वतं ता मलनी चा हए। राजनी तक वतं ता क ाि त के लए श ा और वतं ेस
का होना आव यक है। पे र ल ज के इन वचार से ला क पूणतः सहमत दखाई देता है
क “साहस वाधीनता का मूल मं है”।
आ थक वतं ता का ता पय है क येक यि त को अपनी आजी वका
अिजत करने क वतं ता होनी चा हए और उसे बेकार से मुि त का आ वासन मलना
चा हए। समाजवाद वचार से भा वत होकर ला क ने आ थक वतं ता म आ थक
सुर ा तथा औ यो गक बंध म कामगार क भागीदार को भी सि म लत कया है।
वतं ता क र ा हेतु आव यक शत-
1. समाज म कोई वशेषा धकार ा त वग न हो।
2. सामा य नयम शासक और शा सत दोन के लए मा य हो।
3. राजनी तक शि त पर कसी वशेष वग का अ धकार न हो और स ा तक सभी
क पहुंच हो।
4. रा य प पात र हत आचरण कर।
5. श ा क यव था हो और ेस क वतं ता हो।
13. 6. नाग रक म वतं ता क र ा के लए आव यक साहस क वृ हो य क
‘साहस ह वतं ता का मूल मं है।’
4. समानता संबंधी वचार
शा ीय उदार वा दय के समान ला क ने वतं ता और समानता को पर पर
वरोधी न मानकर एक दूसरे के साथ स ब ध मानता है और उ ह एक दूसरे क
पूरक मानता है। उसके श द म,” समानता क ओर बढ़ना वतं ता क ाि त
का ह एक यास है”। समानता क सकारा मक धारणा म व वास रखते हुए
लॅा क तपा दत करता है क समानता का ता पय यह नह ं है क एक ह कार
का यवहार सबको मले। जब तक यि त- यि त म बु ध शि त और
आव यकता संबंधी अंतर रहेगा तब तक यवहार म एक पता नह ं हो सकती।
समानता का ता पय यह भी नह ं है क सब को एक समान तफल क ाि त हो।
समानता का वा त वक अथ यह है क वशेष अ धकार का अंत होना चा हए और
सभी को अपने यि त व के वकास हेतु समान अवसर ा त होने चा हए। इसके
अ त र त समाज के सभी यि तय क पहले यूनतम आव यकताएं पूर होनी
चा हए उसके बाद ह कन यि तय को वला सता के साधन उपल ध कराए जा
सकते ह। लॅा क के श द म,” मुझे के क खाने का कोई हक नह ं है, अगर मेरे
पड़ोसी को मेरे इस हक के कारण रोट न खाने को ववश कया जा रहा है।”इस
कार वतं ता और समानता दोन का ल य मानवीय यि त व का पूण वकास
है।
5. संप संबंधी धारणा
आ थक वतं ता के मह वपूण आयाम के प म व भ न वचारक के वारा समय-समय पर
चचा क गई है। ाचीन यूनानी दाश नक लेटो ने संप को शासक वग के काय म एक बाधा
14. मानते हुए एक ऐसी राजनी तक यव था क क पना क , िजसका शासन ऐसे दाश नक
सं थाओं के शासक के वारा कया जाएगा िजनके पास कोई यि तगत संप नह ं होगी।
उसका उ दे य शासक वग को संप ज नत बुराइय से दूर रखते हुए उ ह न काम समपण के
भाव से शासन काय म संल न करना था ता क एक याय पूण रा य क थापना हो सके । लेटो
के श य अर तु ने लेटो से असहम त जताते हुए संप को मानवीय गुण का आधार बताया
और यह तपा दत कया क संप के मा यम से यि त म दया, दान, उदारता जैसे गुण का
वकास होता है। लॉक जैसे उदारवाद वचारको ने माननीय म को संप के सृजन का आधार
मानते हुए संप के मह वपूण ाकृ तक अ धकार क चचा क । आधु नक युग म पूंजीवाद
यव था के अंतगत असीम संप के अजन, संर ण और उपभोग को यि त क यापक
आ थक वतं ता घो षत कया गया। समाजवाद वचारको िजनम काल मा स का नाम
अ णी है, ने यि तगत संप के अ धकार मे न हत शोषण के व प सामने रखा और एक
ऐसे समाजवाद समाज क क पना क , िजसका नमाण संप के यायपूण वतरण के
स धांत के आधार पर ां तकार साधन का योग करते हुए कया जाएगा। मा स के अनुसार
सा यवाद समाज म संप के वतरण का मूल मं होगा- “यो यता के अनुसार काय और
आव यकता के अनुसार पा र मक”। वतमान नव उदारवाद युग म संप को गर बी नवारण
का मु य साधन घो षत करते हुए येक यि त को संप अजन करने हेतु े रत कया जा रहा
है और इसके लए उसे बाजार अथ यव था का ह सा बनाया जा रहा है। इस यव था का
उ दे य है
येक यि त म ऐसी कौशल और हुनर का वकास कया जाए िजसका व य वह बाजार मे
करके संप का अजन और उपभोग कर सके ।
● संप संबंधी च लत धारणाओं क ता कक आलोचना-
15. ला क ने अपने व वध ंथ िजनम ‘ ामर ऑफ पॉ ल ट स’ मुख है, मे
संप के संबंध म यापक प म चचा क है। उसने संप क वतमान यव था को
आप जनक और अनु चत बताते हुए उसक आलोचना क है और इस संबंध म न नां कत तक
दए ह-
1. उ रा धकार म ा त संप अनु चत, म वारा अिजत संप यायपूण -
लॅा क के अनुसार संप क वतमान यव था म सबसे बड़ा दोष यह है क इसका वा म व
कु छ ह यि तय के हाथ म क त है और उ ह ं संप का यह वा म व उनके कसी गुण या
प र म के आधार पर ा त नह ं हुआ है,बि क धनी यि तय क संतान होने के नाते उ ह यह
संप उ रा धकार म ा त हुई है। ला क ऐसी संप को नतांत अनु चत मानता है जो दूसर
के म वारा अिजत क गई है। उसका कथन है क “ वे लोग िजनक संप दूसरे मनु य के
य न का प रणाम है, समाज क ज क है”। लाख क ऐसी संप को रा य वारा नयं ण म
लए जाने का प धर है, जब क प र म वारा अिजत संप याय पूण है, इस लए उसे बनाए
रखना चा हए। इस ि ट से डॉ टर, यायाधीश, आ व कारक अ धक क संप उनके कत य
का प रणाम है, इस लए यायपूण है।
2. यि तगत संप ह म क ेरक नह ं-
यि तगत संप के समथक के वारा यह तक दया जाता है क संप कम करने के लए
े रत करती है, कं तु ला क का मत है क समाज म यश और स मान क ाि त तथा लोग क
सेवा क भावना भी लोग को म के लए े रत करती है।
इस तक का क संप से दया, दान, उदारता जैसे मानवीय गुण का वकास होता है, ला क
इस प म उ र देता है क संप वह न लोग भी नाना तर क से इन गुण को अपना सकते ह।
3.संप क वतमान यव था मनोवै ा नक ि ट से अपूण -
16. लॅा क के मतानुसार संप क व यमान यव था के अंतगत लोग भ व य म बेकार हो जाने
या आजी वका के समु चत साधन उपल ध न होने के भय से त रहते ह, िजसके कारण वह न
तो अपना सम यि त व वक सत कर पाते ह और न ह अपने सम त गुण का या वयन
कर पाते ह। भ व य क चंता उ ह संप को सं चत करने के लए े रत करती है, िजसके
कारण वे चाहते हुए भी दया और दान जैसे गुण को नह ं अपना पाते ह।
4. संप का वतरण नै तक ि ट से अपूण-
नै तक ि ट से संप क च लत यव था इस लए अपूण है य क इसके मा यम से उन
लोग के हाथ म अ धकार और साधन ा त होते ह, िज ह ने इसे ा त करने के लए कु छ नह ं
कया। संप के बल पर ऐसे लोग समाज और राजनी तक यव था पर अ धकार कर लेते ह
और समाज का एक बड़ा वग इनक अधीनता वीकार करने के लए बा य हो जाता है। संप
का वतरण इस
प म नह ं होता िजससे उ पादन काय म वा तव म संल न यि तय को वा य और सुर ा
क गारंट मल सके ।
4. यि तगत संप के कारण दोषपूण सामािजक और राजनी तक यव था का ज म-
ला क का वचार है क यि तगत संप के कारण संपूण सामािजक और राजनी तक यव था
ह दू षत हो जाती है। समाज क वा त वक ज रत का यान नह ं रखा जाता और ऐसे काय पर
यय कया जाता है जो समाज के लए अनुपयोगी होते ह और िजनके कारण ाकृ तक साधन
पर दबाव पड़ता है। वयं उसके श द म, “ जब आव यकता मकान क होती है तो सनेमा घर
खड़े कए जाते ह या धन का यय यु ध पोत के नमाण पर कया जाता है...... अनेक गलत
व तुओं का उ पादन कया जाता है। जो व तुएं बनाई जाती ह, उनका गलत ढंग से वतरण कर
दया जाता है। ाकृ तक साधन को मलावट के वारा के वल इस लए दू षत कर दया जाता है
क उनसे यि तगत लाभ ा त हो सके ”।
17. 5. याय पूण सामािजक राजनी तक यव था क थापना हेतु उ पादन के साधन पर
सामािजक नयं ण आव यक-
समाजवा दय के समान लॅा क यि तगत संप ज नत दोष को दूर करने एवं याय पूण
यव था क थापना के लए उ पादन के साधन पर यि तगत वा म व को समा त कर उन
पर सामू हक नयं ण था पत करने क सफा रश करता है। उसका कथन है क “ या तो संप
रा य के अधीन हो, यह संप रा य पर हावी हो जाएगी”। कं तु उ पादन के साधन पर
सामािजक नयं ण का प धर होते हुए भी लाख क उपभोग क वतं ता पर बल देता है।
संप के सामािजक नयं ण से ला क का ता पय यह है कउ योग से अिजत कया गया धन
समाज को लाभ पहुंचाने के लए होना चा हए न क यवसाई को और इसके लए आव यक है क
यवसाय को पैसे का प दया जाए ता क कु छ नि चत यो यता रखने वाले यि त ह इसमे
वेश कर सक और इस े म अवसर क असमानता दूर क जा सके । ला क के ये वचार
गांधी के ” यास संबंधी वचार ’ से समानता रखते ह िजसके अंतगत गांधी ने उ योगप तय क
संप का योग उनको व वास म लेकर, उनका दय प रवतन कर समाज हत म करने क
बात कह गई है।
6. याय पूण यव था क थापना लोकतां क तर क से संभव-
समाज म समानता था पत करने संबंधी मा स क मौ लक मा यताओं से सहमत होने के
बावजूद लॅा क ने ां तकार हंसक साधन से असहम त जताई है। ला क का प ट मत है
क समाज म समानता लाने का काय सं वधा नक साधन के आधार पर ह कया जाना चा हए,
कसी कार के बल योग या हंसक साधन के मा यम से नह ं। उसके अनुसार इस बात क
संभावना यादा है क धीमी ग त से कया गया काय अ धक लाभदायक होगा। उ लेखनीय है
क लोकतं म प रवतन का काय कानून के मा यम से कया जाता है और कानून बनाने क
या एवं उसका या वयन समय सा य होता है। इन वचार से प ट होता है क ला क
एक जातां क समाजवाद वचारक है, मा सवाद नह ं।
18. मू यांकन-
लॅा क के वचार का मू यांकन उसके शंसक और आलोचक वारा भ न- भ न प म कया गया
है। एक और जहां लॅा क क जीवनी के लेखक कं सले मा टन उसक तुलना म टे यू और डी .
टॉक वले से करते हुए उसे एक व वान और वल ण तभाशाल राजनी तक वचारक मानते ह तो
दूसर ओर उसके वचार का गंभीर अ ययन करने वाले हरबट डीन के अनुसार ला क ने एक
राजनी तक वचारक या व वान के प म कभी भी
वैसा यश और क त ा त नह ं क जैसे क आशा क जा रह थी। 1930 के बाद वह गंभीर वचारक के
थान पर कु छ वशेष स धांत का चारक बन गया। डीन के अनुसार, “ला ट म एक उ च को ट के
दाश नक क भां त वचार क उ चता गंभीरता एवं तट थ भाव नह ं था, अतः उसे थम को ट के
वचारक म थान देना क ठन है”। कं तु डीन वारा कए गए लॅा क के इस मू यांकन से सहमत होना
क ठन है। वा तव म िजतनी ता ककता और सू मता के साथ ला क ने बहुलवाद, जातं , वतं ता,
समानता, अ धकार एवं संप क यव था के संबंध म अपने वचार दए ह,वे उसे बीसवीं शता द का
एक महान राजनी तक वचारक बनाते ह।
मु य श द-
● बहुलवाद
● भुस ा
● वतं ता
● समानता
● अ धकार
● ामर ऑफ पॉ ल ट स
● लोकतां क समाजवाद
● वतं ता का मूल मं
● या यक संर ण
References And Suggested Readings
1.Herbert Dean,The Political Ideas Of H.J.Laski
19. 2..Laski,Grammer Of Politics
3. www.britannica.com
4.Om Prakash Gaba,Pashchatya Rajnitik Chintan
न
नबंधा मक -
1.ला क के बहुलवाद राजनी तक वचार का मू यांकन क िजए ।
2. लॅा क क अ धकार क धारणा उदारवाद व समाजवाद मू य का सम वय है , ववेचना
क िजए ।
3. वतं ता एवं समानता के वषय म ला क के वचार क ववेचना क िजए।
4. पूंजीवाद यव था मे संप के व यमान वा म व एवं वतरण क यव था क
आलोचना लॅा क ने कन आधार पर क है ।
5. “साहस ह वतं ता का स चा मू य है”, इस कथन के संदभ म ला क के वतं ता संबंधी
वचार क ववेचना क िजए।
व तु न ठ न-
1. ला क ने कन वचारको वारा तपा दत सं भुता क धारणा का वरोध कया है।
[अ ] ऑि टन [ब ] हॉ स [स ] दोन [द ] दोन मे से कोई नह ं
2. न नां कत म से कस वचारक ने ला क के वचार को भा वत नह ं कया।
[अ] जी. डी . एच . कोल [ब ] फ गस [स ] लंडसे [द ] आि टन
3. लॅा क क ि ट म रा य क ि थ त कै सी है ।
20. [अ ] रा य समाज के अ य समुदाय के समान है। [ब ] रा य सव च है। [स] रा य समाज के
व भ न संगठन के संघष को समायोिजत करता है। [ द] रा य समाज के अ य संगठन क वतं ता
पर पूण नयं ण था पत करता है।
3. लॅा क वारा द गई अ धकार क सूची म कौन सा अ धकार समाजवाद वचारधारा से भा वत है।
[अ ] काय के घंटे का अ धकार [ब ] वैचा रक वतं ता का अ धकार [स ] राजनी तक वतं ता [द ]
उपयु त सभी।
4. लॅा क ने कस कार क संप के वा म व का वरोध कया है।
[अ ] उ रा धकार म ा त संप [ब] वयं के म वारा अिजत संप [स ] दान म ा त संप [द ]
कृ त वारा द संप
5. लॅा क ने आ थक वतं ता म कस कार क वतं ता को सि म लत कया है।
[अ ] आजी वका क वतं ता [ब ] आ थक सुर ा [स ] औ यो गक बंध म कामगार क भागीदार
[द ] उपयु त सभी।
6. लॅा क ने वतं ता क र ा के लए कौन सी शत रखी ह।
[अ ] वशेष अ धकार का अंत [ब ] ेस क वतं ता [स ] रा य वारा न प यवहार
[द ] उपयु त सभी
7. लॅा क क सवा धक मह वपूण एवं लोक य रचना कौन सी है।
[अ ] अमे रकन डेमो े सी [ब ] पा लयाम गवनमट इन इं लड [स ] डेमो े सी इन ाइ सस [द ]
ामर ऑफ पॉ ल ट स
8. लॅा क के अनुसार समानता का ता पय या है-
[अ ] अवसर क समानता [ब ] यवहार क समानता [स ] समाज म सभी क यूनतम आ थक
आव यकताओं क पू त [द ] ‘अ’ एवं ‘स’ सह है।
9. लॅा क ने कस तरह के समाजवाद का समथन कया है।
[अ ] ां तकार समाजवाद [ब ] जातां क समाजवाद [स ] माओवाद समाजवाद
[द ] ेणी समाजवाद
10. लॅा क वारा द गई अ धकार क सूची म कौन सा अ धकार समाजवाद वचारधारा से भा वत
है।
[अ ] काय के घंटे का अ धकार [ब ] वैचा रक वतं ता का अ धकार [स ] राजनी तक वतं ता [द ]
उपयु त सभी।
उ र - 1. अ 2. द 3.स 4.अ 5.द 6. द 7. द 8. द 9. ब 10. अ