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भारतीय युवा संसद
संयुक्त राष्ट्र ववश्व लोकतन्त्र ददवस के उपलक्ष्य में आयोजित
“ लोकतंर में ससववल सोसाइटी का स्थान “
ववषयक ववशेष सर
ददनांक- 15 – 17 ससतम्बर, 2016, स्थान- ियपुर, रािस्थान
मानवता शब्द एक सुखद एहसास का पयााय होने के साथ ही साथ शांतत, समरसता, पारस्पररकता आधाररत अवधारणा है. एकल से
बहुल होते होते इकाईयों का तनमााण हुआ. पर, इकाइयों में बंटा सा लगने वाला हमारा समाि परस्पर संपोषण आधाररत रहा. ककसी भी राष्ट्र का
उदाहारण ले सकते है, सबनें सवा-स्वीकायाता के साथ यह माना है की पररवार पहली इकाई है, और समाि दूसरी और सबसे महत्वपूणा इकाई है.
कालान्त्तर में यह सामाजिक संस्थाए अतत संकु चित हुई, जिसमे महत्वपूणा उत्तरदायी सरकार रही. सरकार ने न के वल सामाजिक ताने-बाने के
साथ हस्तक्षेप बढाया अवपतु उसे अपने अनुरूप बना उसे सत्ता के साथ िोड़ के वल अनुयातययों तक ही ववस्तृत रहने ददया. किर दौर बदला और
िो सामाजिक संघटक रहे या थे, उन्त्होंने इसे अपने अनुरूप बदलने, िलाने का प्रयास ककया. और अब तो जस्थतत यह है की अब यह संघटन
के वल और के वल मोलभाव की मंडी तक सीसमत होते िा रहे है. अन्त्यथा ना ले, पर यहााँ प्रसंग में िो ज्यादा प्रिसलत है उनको प्रस्तुत करने की
कोसशश है. िो अनामकता के साथ या समशन के साथ लगे और डाटें यह उनको साधुवाद!
अस्तु, भारतीय युवा संसद का आगामी सर इन्त्ही सब ववषयों के साथ समवेत होने को आतुर है की सत्ता और समाि आपस में िुड़ते
हुए काया करें. के वल कानून, तनयम, कायदे से हांकने की िगह, इस देश की ताशीर को हम, िानने की कोसशस करें.
“सं गच्छध्वम सं वधध्वम सं वो मनांशी जानताम” के ववश्व के प्रथम लेखन के प्रमाण1 में भी यही सलखा गया था, िो शायद
ववश्व में लोकतंर की बुतनयाद को भी स्पष्ट्टतः पररभावषत करता है. हमको यह िानना होगा की इस दुतनया की कोई भी पुस्तक ककसी नही एक
मत के सलए ही प्रेरणा श्रोत भर नही है, सबने एकतनष्ट्ट रूप से नैततक और सामाजिक िीवन की अपेक्षा को अपनाने पर िोर ददया है.
संयुक्त राष्ट्र दुतनया की पहरुवपया संस्थान है, 193 देशो की स्वीकायाता और मान्त्यता के साथ जिसमे युद्ध की ववभीवषका को रोकने
से लेकर मानवाचधकार के संरक्षण के साथ ही साथ ववश्व में लोकताजन्त्रक मूल्यों के ववस्तार की महत्वाकांक्षी योिना है. इन सब के पीछे िो
अवधारण है, उसमें ससववल सोसाइटी को सबसे ज्यादा तरहीि दी गयी है. ससववल सोसाइटी का तात्पया संकु िन नहीं है, और होना भी यही
िादहयें की अचधकतम भागीदाररता का सुतनजश्ित हो ही. वत्तामान में भारत सदहत दुतनया के देशों में िो अभ्यास िल रहा है, वह उचित नहीं
कहा िा सकता. संस्थाएं के वल कु छ व्यजक्तयों के हाथ में रह गयी, सरकारी और ग ैर सरकारी स्तर से यह प्रयास होना ही िादहए की कोई भी
व्यजक्त अचधकतम ककतने वषो तक ककसी न्त्यास, संस्थान का पदाचधकारी रह सकता है, खासकर उन संस्थाओ में तो अवश्य ही जिन्त्होंने कभी
भी ककसी भी प्रकार से सरकार से मदद की हो.
के वल सत्ता पर जिम्मेदारी हो, इससे इतर सत्ता पर आचश्रत संस्थाओं को ध्यानाकवषात करने की भी अतत आवश्यकता है, हम यह भी
िाने ही की उन संस्थाओं का नेतृत्व भी सही हाथों में है भी या नहीं. हमें योग्यता-अयोग्यता पर प्रश्न भी खड़े करने होंगे और इन संस्थाओं को
मिबूत कर सामाजिक ढांिे में समाि की भूसमका को सतत करना होगा.
1 http://www.unesco.org/new/en/communication-and-information/flagship-project-activities/memory-of-the-
world/register/full-list-of-registered-heritage/registered-heritage-page-7/rigveda/

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