http://spiritualworld.co.in श्री गुरु अमर दास जी - गुरु गद्दी मिलना:
श्री गुरु अंगद देव जी के पास आकर जब कुछ दिन बीत गए तो आप ने भाई बुड्डा जी से आज्ञा लेकर और सिक्खों की तरह गुरुघर की सेवा में लग गए| आप सुबह उठकर गुरु जी के लिए जल की गागरे लाकर स्नान कराते| फिर कपड़े धोकर एकांत में बैठकर गुरु जी का ध्यान करते| स्मरण से उठकर लंगर के लिए पानी लाते| फिर वहाँ झाडू देते और बर्तन साफ करते| आप सेवा में इतने तल्लीन रहते कि आपको खाने पीने व पहनने की लालसा ही न रही| रात-दिन आप अनथक सेवा के कारण शरीर कमजोर हो गया| पहनने वाले कपड़े भी फटे पुराने से रहते थे|
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2. श्री गुर अंगद देव जी के पास आकर जब कुछ िदन बीत
गए तो आप ने भाई बुड्डा जी से आज्ञा लेकर और िसक्खो
की तरह गुरघर की सेवा मे लग गए| आप सुबह उठकर
गुर जी के िलए जल की गागरे लाकर स्नान कराते| िफिर
कपड़े धोकर एकांत मे बैठकर गुर जी का ध्यान करते|
स्मरण से उठकर लंगर के िलए पानी लाते| िफिर वहाँ
झाडू देते और बतर्तन साफि करते| आप सेवा मे इतने
तल्लीन रहते िक आपको खाने पीने व पहनने की
लालसा ही न रही| रात-िदन आप अनथक सेवा के
कारण शरीर कमजोर हो गया| पहनने वाले कपड़े भी
फिटे पुराने से रहते थे|
श्री गुर अंगद देव जी आपकी सेवा से बहुत खुश हुए|
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3. उन्होंने खुश होकर आपको एक अंगोछा िदिया| आपने गुर
जी का इसे प्रसादि समझकर अपने िसर पर बांध िलिया|
आप तन करके गुर जी की सेवा करते और मन करके गुर
जी का ध्यान करते| गुर जी आपकी सेवा पर खुश होते
रहे और हर सालि अंगोछा बक्शते रहे और आप पहलिे की
तरह िसर पर बांधते रहे| इस प्रकार जब ग्यारह सालि
बीत गए तो इन अंगोछो का बोझ सा बन गया| आपजी
का शरीर पतलिा और छोटे कदि का था जो वृद अवस्था
के कारण िनबर्बलि हो चुका था|
एक िदिन अमरदिास जी गुर जी के स्नान के िलिए पानी की
गागर िसर पर उठाकर प्रातःकालि आ रहे थे िक रास्ते मे
एक जुलिाहे िक खड्डी के खूंटे से आपको चोट लिगी िजससे
आप खड्डी मे िगर गये|
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4. िगरने िक आवाज सुनकर जुलिाहे ने जुलिाही से पुछा िक
बाहर कौन है? जुलिाही ने कहा इस समय और कौन हो
सकता है, अमर घरहीन ही होगा, जो रातिदिन
समिधयों का पानी ढ़ोता िफिरता है| जुलिाही की यह बात
सुनकर अमरदिास जी ने कहा कमलिीये! मे घरहीन नही,
मै गुर वालिा हूँ| तू पागलि है जो इस तरह कह रही हो|
उधर इनके वचनों से जुलिाही पागलिों की तरह बुख्लिाने
लिगी| गुर अंगदि दिेव जी ने दिोनों को अपने पास बुलिाया
और पूछा प्रातःकालि क्या बात हुई थी, सच सच बताना|
जुलिाहे ने सारी बात सच सच गुर जी के आगे रख दिी िक
अमरदिास जी के वचन से ही मेरी पत्नी पागलि हुई है|
आप िकरपा करके हमे क्षमा करे और इसे अरोग कर दिे
नही तो मेरा घर बबार्बदि हो जायेगा|
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5. जुलाहे की बात सुनकर गुर जी ने कहा श्री अमर दास जी
बेघरो के िलए घर, िनमािणियो का माणि है| िनओटिटिओ
की ओटटि है, िनधरिरओ की िधरर है| िनर आश्रिश्रतो का
आश्रश्रय है आश्रिद बारह वरदान देकर गुर जी ने आश्रपको
अपने गले से लगा िलया और वचन िकया िक आश्रप मेरा
ही रूप हो गये हो| इसके पश्चात गुर अंगद देव जी ने
अपनी कृपा दृिष से जुलाही की तरफ देखा और उसे
अरोग कर िदया| इस प्रकार वे दोनो गुर जी की उपमा
गाते हुए घर की ओटर चल िदए|
इसके पश्चात गुर जी ने आश्रपके िसर से ग्यारह सालो के
ऊपर नीचे बंधरे हुए अंगोछो की गठरी उतारकर और
िसक्खो को आश्रज्ञा की िक इनको अच्छी तरह से स्नान
कराकर नए कपड़े पहनाओट|
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6. आश्रज से यह हमारा रूप ही है| हमारे बाद गुर नानक देव
जी की गद्दी पर यही सुशोिभित होगे|
गुर जी ने अपना अिन्तम समय जानकर संगत को प्रगटि
कर िदया िक अब अपना शरीर त्यागना चाहते है| आश्रपके
यह वचन सुनकर आश्रस पास की संगत इक्कठी हो गई और
खडूर सािहब अिन्तम दशर्शनो के िलए पहुँच गई| श्री गुर
अंगद देव जी ने इसके पश्चात एक सेवादार को भिेजकर
श्री अमर दास जी को खडूर सािहब बुला िलया|
श्री अमर दास जी के आश्रने पर गुर जी ने सेवादारो को
आश्रज्ञा दी िक इनक्को स्नान कराओट और नए वस पहनाकर
हमरे पास ले आश्रओट|
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7. हमारे दोनो सुपुत्रो और संगत को भी बुला लाओ| इस
तरह जब दीवान सज गया तो गुर जी ने श्री अमर दास
जी को सम्बोिधित करके कहा - हे प्यारे पुरष श्री अमर
दास जी! हमे अकालपुरख का बुलावा आ गया है| हमने
अपना शरीर त्याग कर बाबा जी के चरणो मे जल्दी ही
जा िवराजना है| आपने गुर नानक जी की चलाई हुई
मयार्यादा को कायम रखना है| यह वचन कहकर आप जी
ने चेत्र सुदी 4 संवत 1608 वाले िदन पांच पैसे और
नािरयल श्री अमर दास जी के आगे रखकर माथा टेक
िदया और बाबा बुड्डा जी की आज्ञा अनुसार आप जी के
मस्तक पर गुरगद्दी का ितलक लगा िदया| इसके पश्चात
गुर जी ने तीन पिरक्रमा की और श्री अमर दास जी को
अपने िसघासन पर सुशोिभत करके पहले अपने
नमस्कार िकया िफिर सब िसक्खो और सािहबजादो को
भी ऐसा करने को कहा|
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8. अब यह मेरा रूप है| मेरे और इनमे कोई भेद नही है| गुर
जी का वचन मानकर सारी संगत ने माथा टेका परन्तु
पुत्रो ने नही क्योिक वह अपने ही सवेक को माथा टेकना
नही चाहते थे|
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