2. श्री राम चररत मानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा १६वीां सदी में
रचचत एक महाकाव्य है। श्री रामचररत मानस भारतीय सांस्कृ तत में एक ववशेष
स्थान रखता है। उत्तर भारत में रामायण के रूप में कई लोगों द्वारा प्रततददन पढा
जाता है। श्री रामचररत मानस में इस ग्रन्थ के नायक को एक महाशक्तत के रूप
में दशााया गया है जबकक महवषा वाल्मीकक कृ त रामायण में श्री राम को
एक मानव के रूप में ददखाया गया है। तुलसी के प्रभु राम सवाशक्ततमान होते हुए
भी मयाादा पुरुषोत्तम हैं। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ ददन
ककया जाता है।
रामचररतमानस को दहांदी सादहत्य की एक महान कृ तत माना जाता है।
रामचररतमानस को सामान्यतः 'तुलसी रामायण' या 'तुलसीकृ त रामायण' भी कहा
जाता है। िेता युग में हुए ऐततहाससक राम-रावण युद्ध पर आधाररत
और दहन्दी की ही एक लोकवप्रय भाषा अवधी में रचचत रामचररतमानस को ववश्व
के १०० सवाश्रेष्ठ लोकवप्रय काव्यों में ४६वााँ स्थान ददया गया।
पररचय
3. तुलसीदास जी द्वारा रचचत रामचररत मानस की कु छ चौपाइयों को लेते हैं। बात उस समय की है जब मनु
और सतरूपा परमब्रह्म की तपस्या कर रहे थे। कई वषा तपस्या करने के बाद शांकरजी ने स्वयां पावाती से
कहा कक मैं, ब्रह्मा और ववष्णु कई बार मनु सतरूपा के पास वर देने के सलये आये, क्जसका उल्लेख
तुलसी दास जी द्वारा रचचत रामचररतमानस में इस प्रकार समलता है- "त्रबचध हरर हर तप देखख अपारा,
मनु समीप आये बहु बारा"। जैसा की उपरोतत चौपाई से पता चलता है कक ये लोग तो कई बार आये यह
कहने कक जो वर तुम मााँगना चाहते हो मााँग लो; पर मनु सतरूपा को तो पुि रूप में स्वयां परमब्रह्म को
ही मााँगना था किर ये कै से उनसे यानी शांकर, ब्रह्मा और ववष्णु से वर मााँगते? हमारे प्रभु श्रीराम तो
सवाज्ञ हैं। वे भतत के ह्रदय की असभलाषा को स्वत: ही जान लेते हैं। जब २३ हजार वषा और बीत गये तो
प्रभु श्रीराम के द्वारा आकाश वाणी होती है- "प्रभु सबाग्य दास तनज जानी, गतत अनन्य तापस नृप रानी।
मााँगु मााँगु बरु भइ नभ बानी, परम गाँभीर कृ पामृत सानी।।" इस आकाश वाणी को जब मनु सतरूपा सुनते
हैं तो उनका ह्रदय प्रिु क्ल्लत हो उठता है। और जब स्वयां परमब्रह्म राम प्रकट होते हैं तो उनकी स्तुतत
करते हुए मनु और सतरूपा कहते हैं- "सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू, त्रबचध हरर हर बांददत पद रेनू। सेवत
सुलभ सकल सुखदायक, प्रणतपाल सचराचर नायक॥" अथाात् क्जनके चरणों की वन्दना ववचध, हरर और हर
यानी ब्रह्मा, ववष्णु और महेश तीनों ही करते है, तथा क्जनके स्वरूप की प्रशांसा सगुण और तनगुाण दोनों
करते हैं: उनसे वे तया वर मााँगें? इस बात का उल्लेख करके तुलसी बाबा ने उन लोगों को भी राम की ही
आराधना करने की सलाह दी है जो के वल तनराकार को ही परमब्रह्म मानते हैं।
सांक्षिप्त मानस कथा
5. बालकाण्ड
बालकाण्ड वाल्मीकक कृ त रामायण और
गोस्वामी तुलसीदास कृ त श्री राम चररत मानस का एक भाग
(काण्ड या सोपान) है।
अयोध्या नगरी में दशरथ नाम के राजा हुये क्जनकी
कौसल्या, कै के यी और सुसमिा नामक पक्त्नयााँ थीां। सांतान
प्राक्प्त हेतु अयोध्यापतत दशरथ ने अपने गुरु श्री वसशष्ठ की
आज्ञा से पुिकामेक्ष्ट यज्ञ करवाया क्जसे कक ऋां गी ऋवष ने
सम्पन्न ककया। भक्ततपूणा आहुततयााँ पाकर अक्ग्नदेव प्रसन्न
हुये और उन्होंने स्वयां प्रकट होकर राजा दशरथ को
हववष्यपाि (खीर, पायस) ददया क्जसे कक उन्होंने अपनी तीनों
पक्त्नयों में बााँट ददया। खीर के सेवन के पररणामस्वरूप
कौसल्या के गभा से राम का, कै के यी के गभा से भरत का
तथा सुसमिा के गभा से लक्ष्मण और शिुघ्न का जन्म हुआ।
6. राजकु मारों के बडे होने पर आश्रम की रािसों से
रिा हेतु ऋवष ववश्वासमि राजा दशरथ से राम और
लक्ष्मण को माांग कर अपने साथ ले गये। राम ने
ताडका और सुबाहु जैसे रािसों को मार डाला और
मारीच को त्रबना िल वाले बाण से मार कर समुद्र
के पार भेज ददया। उधर लक्ष्मण ने रािसों की
सारी सेना का सांहार कर डाला। धनुषयज्ञ हेतु राजा
जनक के तनमांिण समलने पर ववश्वासमि राम और
लक्ष्मण के साथ उनकी नगरी समचथला (जनकपुर)
आ गये। रास्ते में राम ने गौतम मुतन की स्िी
अहल्या का उद्धार ककया। समचथला में राजा जनक
की पुिी सीता क्जन्हें कक जानकी के नाम से भी
जाना जाता है का स्वयांवर का भी आयोजन था
जहााँ कक जनकप्रततज्ञा के अनुसार सशवधनुष को
तोड कर राम ने सीता से वववाह ककया| राम और
सीता के वववाह के साथ ही साथ गुरु वसशष्ठ ने
भरत का माण्डवी से, लक्ष्मण का उसमाला से और
शिुघ्न का श्रुतकीतता से करवा ददया।
7. राम के वववाह के कु छ समय पश्चात्
राजा दशरथ ने राम का राज्यासभषेक करना चाहा। इस पर देवता लोगों को
चचांता हुई कक राम को राज्य समल जाने पर रावण का वध असम्भव हो
जायेगा। व्याकु ल होकर उन्होंने देवी सरस्वती से ककसी प्रकार के उपाय
करने की प्राथाना की। सरस्वती नें मन्थरा, जो कक कै के यी की दासी थी, की
बुद्चध को िे र ददया। मन्थरा की सलाह से कै के यी कोपभवन में चली
गई। दशरथ जब मनाने आये तो कै के यी ने उनसे वरदान माांगे
कक भरत को राजा बनाया जाये और राम को चौदह वषों के सलये वनवास
में भेज ददया जाये।
राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन चले
गये। ऋां गवेरपुर में तनषादराज गुह ने तीनों की बहुत सेवा की। कु छ
आनाकानी करने के बाद के वट ने तीनों को गांगा नदी के पार
उतारा| प्रयाग पहुाँच कर राम ने भरद्वाज मुतन से भेंट की। वहााँ
से राम यमुना स्नान करते हुये वाल्मीकक ऋवष के आश्रम
पहुाँचे। वाल्मीकक से हुई मन्िणा के
अनुसारराम, सीता और लक्ष्मण चचिकू ट में तनवास करने लगे।
अयोध्याकाण्ड
8. अयोध्या में पुि के ववयोग के कारण दशरथ का स्वगावास हो
गया। वसशष्ठ ने भरत और शिुघ्न को उनके नतनहाल से बुलवा
सलया। वापस आने पर भरत ने अपनी माता कै के यी की, उसकी
कु दटलता के सलये, बहुत भतास्ना की और गुरुजनों के
आज्ञानुसार दशरथ की अन्त्येक्ष्ट कक्रया कर
ददया। भरत ने अयोध्या के राज्य को अस्वीकार कर ददया
और राम को मना कर वापस लाने के सलये समस्त स्नेहीजनों के
साथ चचिकू ट चले गये। कै के यी को भी अपने ककये पर अत्यांत
पश्चाताप हुआ। सीता के माता-
वपता सुनयना एवां जनक भी चचिकू ट पहुाँचे। भरत तथा अन्य
सभी लोगों ने राम के वापसअयोध्या जाकर राज्य करने का
प्रस्ताव रखा क्जसे कक राम ने, वपता की आज्ञा पालन करने
और रघुवांश की रीतत तनभाने के सलये, अमान्य कर ददया।
भरत अपने स्नेही जनों के साथ राम की पादुका को साथ लेकर
वापस अयोध्या आ गये। उन्होंने राम की पादुका को राज
ससांहासन पर ववराक्जत कर ददया स्वयां नक्न्दग्राम में तनवास करने
लगे।
9. अरण्यकाण्ड
कु छ काल के पश्चात राम ने चचिकू ट से प्रयाण ककया तथा
वे अत्रि ऋवष के आश्रम पहुाँचे। अत्रि ने राम की स्तुतत की और
उनकी पत्नी अनसूया ने सीता को पाततव्रत धमाके ममा समझाये।
वहााँ से किर राम ने आगे प्रस्थान ककया और शरभांग मुतन से भेंट
की। शरभांग मुतन के वल राम के दशान की कामना से वहााँ तनवास
कर रहे थे अतः राम के दशानों की अपनी असभलाषा पूणा हो जाने
से योगाक्ग्न से अपने शरीर को जला डाला और ब्रह्मलोक को
गमन ककया। और आगे बढने पर राम को स्थान स्थान पर
हड्डडयों के ढेर ददखाई पडे क्जनके ववषय में मुतनयों ने राम को
बताया कक रािसों ने अनेक मुतनयों को खा डाला है और उन्हीां
मुतनयों की हड्डडयााँ हैं। इस पर राम ने प्रततज्ञा की कक वे समस्त
रािसों का वध करके पृथ्वी को रािस ववहीन कर देंगे। राम और
आगे बढे और पथ में सुतीक्ष्ण, अगस्त्य आदद ऋवषयों से भेंट
करते हुये दण्डक वन में प्रवेश ककया जहााँ पर उनकी
मुलाकात जटायु से हुई। राम ने पांचवटी को अपना तनवास स्थान
बनाया।
10. सीता को न पा कर राम अत्यांत दुखी हुये और
ववलाप करने लगे। रास्ते में जटायु से भेंट होने
पर उसने राम को रावण के द्वारा अपनी दुदाशा
होने व सीता को हर कर दक्षिण ददशा की ओर
ले जाने की बात बताई। ये सब बताने के
बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग ददये और राम
उसका अांततम सांस्कार करके सीता की खोज में
सघन वन के भीतर आगे बढे। रास्ते
में राम ने दुवाासा के शाप के
कारण रािस बने गन्धवा कबन्ध का वध करके
उसका उद्धार ककया और शबरी के आश्रम जा
पहुाँचे जहााँ पर कक उसके द्वारा ददये गये झूठे
बेरों को उसके भक्तत के वश में होकर खाया|
इस प्रकार राम सीता की खोज में सघन वन के
अांदर आगे बढते गये।
11. ककक्ष्कन्धाकाण्ड
राम ऋष्यमूक पवात के तनकट आ गये। उस पवात
पर अपने मांत्रियों सदहत सुग्रीव रहता था। सुग्रीव ने,
इस आशांका में कक कहीां बासल ने उसे मारने के
सलये उन दोनों वीरों को न भेजा
हो, हनुमान को राम और लक्ष्मण के ववषय में
जानकारी लेने के सलये ब्राह्मण के रूप में भेजा।
यह जानने के बाद कक उन्हें बासल ने नहीां भेजा
है हनुमान नेराम और सुग्रीव में समिता करवा
दी। सुग्रीव ने राम को सान्त्वना दी कक जानकी जी
समल जायेंगीां और उन्हें खोजने में वह सहायता देगा
साथ ही अपने भाई बासल के अपने ऊपर ककये गये
अत्याचार के ववषय में बताया। राम ने बासल का
वध कर के सुग्रीव को ककक्ष्कन्धा का राज्य
तथा बासल के पुि अांगद को युवराज का पद दे
ददया।
12. राज्य प्राक्प्त के बाद सुग्रीव ववलास में सलप्त
हो गया और वषाा तथा शरद् ऋतु व्यतीत हो
गई। राम के नाराजगी परसुग्रीव ने वानरों
को सीता की खोज के सलये भेजा। सीता की
खोज में गये वानरों को एक गुिा में एक
तपक्स्वनी के दशान हुये। तपक्स्वनी ने खोज
दल को योगशक्तत से समुद्रतट पर पहुाँचा
ददया जहााँ पर उनकी भेंट सम्पाती से
हुई। सम्पाती ने वानरों को बताया
कक रावण ने सीता को लांका अशोकवादटका में
रखा है। जाम्बवन्त ने हनुमान को समुद्र
लाांघने के सलये उत्सादहत ककया।
13. सुन्दरकाण्ड
हनुमान ने लांका की ओर प्रस्थान ककया। सुरसा ने हनुमान की
परीिा ली और उसे योग्य तथा सामथ्यावान पाकर आशीवााद ददया।
मागा में हनुमान ने छाया पकडने वाली रािसी का वध ककया
और लांककनी पर प्रहार करके लांका में प्रवेश ककया।
उनकी ववभीषण से भेंट हुई। जब हनुमान अशोकवादटका में पहुाँचे
तो रावण सीता को धमका रहा था। रावण के जाने
पर त्रिजटा ने सीता को सान्तवना दी। एकान्त होने
पर हनुमान ने सीता से भेंट करके
उन्हें राम की मुदद्रका दी। हनुमान ने अशोकवादटका का ववध्वांस
करके रावण के पुि अिय कु मार का वध कर
ददया। मेघनाथ हनुमान को नागपाश में बाांध कर रावण की सभा
में ले गया। रावण के प्रश्न के उत्तर में हनुमान ने अपना
पररचय राम के दूत के रूप में ददया। रावण ने हनुमान की पूाँछ में
तेल में डूबा हुआ कपडा बाांध कर आग लगा ददया इस
पर हनुमान ने लांका] का दहन कर ददया।
14. लांकाकाण्ड
जाम्बवन्त के आदेश से नल-नील दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बाांध
ददया। श्री राम ने श्री रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शांकर की पूजा की और सेना सदहत समुद्र
के पार उतर गये। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बांध जाने और राम के समुद्र के पार
उतर जाने के समाचार से रावण मन में अत्यांत व्याकु ल हुआ। मन्दोदरी के राम से बैर न लेने के
सलये समझाने पर भी रावण का अहांकार नहीां गया। इधर राम अपनी वानरसेना के साथ सुबेल
पवात पर तनवास करने लगे। अांगद राम के दूत बन कर लांका में रावण के पास गये और उसे राम के
शरण में आने का सांदेश ददया ककन्तु रावण ने नहीां माना।
शाांतत के सारे प्रयास असिल हो जाने पर युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर
युद्ध हुआ। शक्ततबाण के वार से लक्ष्मण मूक्षिात हो गये। उनके उपचार के सलये हनुमान सुषेण वैद्य
को ले आये और सांजीवनी लाने के सलये चले गये। गुप्तचर से समाचार समलने
पर रावण ने हनुमान के काया में बाधा के सलयेकालनेसम को भेजा क्जसका हनुमान ने वध कर ददया।
औषचध की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पवात को ही उठा कर वापस चले। मागा
में हनुमान को रािस होने के सन्देह में भरत ने बाण मार कर मूक्षिात कर ददया परन्तु यथाथा जानने
पर अपने बाण पर त्रबठा कर वापस लांका भेज ददया। इधर औषचध आने में ववलम्ब देख
कर रामप्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषचध लेकर आ गये और सुषेण के उपचार
से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये।
15. रावण ने युद्ध के सलये कु म्भकणा को जगाया। कु म्भकणा ने भी राम के शरण में
जाने की असिल मन्िणा दी। युद्ध मेंकु म्भकणा ने राम के हाथों परमगतत प्राप्त
की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर ददया। राम और रावणके
मध्य अनेकों घोर युद्ध हुये और अन्त में रावण राम के हाथों मारा
गया। ववभीषण को लांका का राज्य सौंप कर रामसीता और लक्ष्मण के
साथ पुष्पकववमान पर चढ कर अयोध्या के सलये प्रस्थान ककया।
16. उत्तरकाण्ड
उत्तरकाण्ड राम कथा का उपसांहार है। सीता, लक्ष्मण और
समस्त वानर सेना के साथ राम अयोध्या वापस पहुाँचे। राम का
भव्य स्वागत हुआ, भरत के साथ सवाजनों में आनन्द व्याप्त हो
गया। वेदों और सशव की स्तुतत के साथ राम का राज्यासभषेक हुआ।
वानरों की ववदाई दी गई। राम ने प्रजा को उपदेश ददया और प्रजा
ने कृ तज्ञता प्रकट की। चारों भाइयों के दो दो पुि
हुये। रामराज्य एक आदशा बन गया।