1. संस्कृ त साहित्य के मिाकवि
भारवि
Presented By – Dr. Deepti Bajpai
2. मिाकवि भारवि
• जन्म काल- छठी/साति ं शताब्दी
• जन्म स्थान - दक्षिण भारत
• ज िन चररत- कौशशक गोत्र के ब्राह्मण कु ल में उत्पन्न
इस कु ल के श्र नारायण शास्त्र के पुत्र भारवि के नाम से विख्यात िुए
3. मिाकवि भारवि - कृ ततत्ि
• मिाकाव्य- ककराताजुुन यम्एकमात्र उपलब्ध कृ तत
• ककरात िेशधारी शशिज एिं अजुुन की यि कथा मिाभारत के िन पिु से ली ग ि
• यि मिाकाव्य अट्ठारि सगु मे विभक्त ि
• राजन तत, कू टन तत, धमुन तत. युद्धन तत का विस्तृत एिं मनोरम िणुन
4. मिाकवि भारवि
• प्राकृ ततक दृश्यों का मनोिारी चचत्रण
• भारिेरथुगौरिम् (बडे से बडे अथु को छोटे से शब्दों में व्यक्त करने की काव्य सामर्थयु)
• 37 से भ अचधक टीकाए (मल्ललनाथ की टीका घंटापथ सिाुचधक प्रशसद्ध टीका)
• सन 1912 में ककराताजुुन यम् का जमुन अनुिाद ककया गया
5. मिाकवि भारवि
ककराताजुुन यम ् काव्य सौंदयु
• भाषा शली – िदभी रीतत के कवि, प्रसाद गुण, विदग्ध भाषा, संतुलन िादी
भाषा पर अद्वित य अचधकार
• अशभव्यंजना - अशभव्यल्क्त कौशल में तनपुण
•
• प्रकृ तत चचत्रण- प्राकृ ततक दृश्यों का मनोिारी चचत्रण
• अलंकार - चचत्रालंकार में कु शल
6. मिाकवि भारवि
चचत्रालंकार
न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।
नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥
अनुवाद : िे नाना मुख िाले (नानानन)! िि तनल्श्चत िी (ननु) मनुष्य निीं ि जो अपने से कमजोर से
भ पराल्जत िो जाय। और िि भ मनुष्य निीं ि (ना-अना) जो अपने से कमजोर को मारे
(नुन्नोनो)। ल्जसका नेता पराल्जत न िुआ िो िि िार जाने के बाद भ अपराल्जत ि (नुन्नोऽनुन्नो)।
जो पूणुतः पराल्जत को भ मार देता ि (नुन्ननुन्ननुत्) िि पापरहित निीं ि (नानेना)।
7. भारिेरथुगौरिम ्
कियासु युक्तनृुपचारचिुषो न िंचन याः प्रभिोऽनुज विशभः।
अतोऽिुशस िन्तुमसाधु साधु िा हितं मनोिारर च दुलुभं िचः॥ 1.4॥
स ककंसखा साधु न शाल्स्त योऽचधपं हितान्न यः संशृणुते स ककंप्रभुः।
सदाऽनुकू लेषु हि कु िुते रततं नृपेष्िमात्येषु च सिुसंपदः ॥1:5॥
सिसा विदध त न कियामवििेकः परमापदां पदम्।
िृणुते हि विमृश्यकाररणं गुणलुब्धाः स्ियमेि सम्पदः
8. मिाकवि भारवि
• ककराताजुुन यम् का मिाकाव्यत्ि
• नायक - अजुुन ध रोदात्त नायक
• प्रततनायक - ककरात िेशधारी शशिज
• शशिज प्रेवषत दूत की उल्क्त एिं शशिज का परािम उद्दीपन विभाि
• नायक - प्रततनायक का प्रिार - प्रततप्रिार अनुभाि
• दूत के प्रत्युत्तर में गिु, धयु, िमा आहद संचारी भाि
• उत्साि स्था भाि जो ि र रस का पररपाक करता ि
• हदव्य पाशुपतास्त्र मिाकाव्य का फल ि जो अंततः नायक को प्राप्त िोता ि