6. सावित्यत्यक विषेशताएाँ
विंदी कथा सावित्यिें विषेश स्थान
संयवित ि साफ-सुथरा लेखन
लंबी किावनयााँ ि संस्मरण
भारत ि पावकस्तान की पृश्ठभूवि पर आधाररत किावनयों की अवधकता
संस्मरण क
े क्षेत्र िें विवषत्यि ि िित्तिपूणश स्थान
भावशक प्रयोग िें विविधता
विन्दी भाशा प्रयोग िें ताज़गी ि स्थानीय लोक भाशा का संगि
संस्क
ृ तवनश्ठ विन्दी क
े साथ उदूश ि पंजाबी का प्रयोग विलक्षण
िुत्यिि तिजीब ि जीिन-षैली का जीिंत साक्षात्कार ।
7. पाठ क
े िुख्य वबंदु
⮚ िि-िषित संग्रि से अितररत
⮚ खानदानी नानबाईंयों अथाशत रोटी बनाने िाले िगश की
ितशिान त्यस्थवत का उल्लेख ।
⮚ बुजुगश नानबाई वियााँ नसीरुद्दीन क
े व्यत्यत्व ि
क
ृ वत्व पर प्रकाष ।
⮚ वियााँ नसीरुद्दीन की खानदानी व्यिसाय क
े प्रवत वनश्ठा
ि अवभिान का स्वाभाविक िणशन
⮚ कला ि अनुभि पर आधाररत ज्ञान क
े प्रवत वियााँ का
लगाि ि सिपशण
⮚ आधुवनक युग िें भोजन क
े प्रवत लोगों का नजररया
⮚ विवभन्न प्रकार की रोवटयों का पररचय
8. कथा सार
वियााँ नसीरुद्दीन बीते जिाने क
े खानदानी नानबाईयों क
े िंषज िै जो
75 िशश से अवधक आयू क
े िोने क
े बािजूद भी अपने पैतृक पेषे को
जैसे तैसे चला रिे िैं । अपने कायशक्षेत्र िें दक्ष िोने ि अनेक प्रकार
की रोवटयााँ बनाने की कला िें िाविर िोने क
े कारण िे नानबाईयों क
े
िसीिा क
े रुप िें जाने जाते िै। किश क
े प्रवत आसत िोने क
े कारण
िे पत्रकारों ि सिाचार पत्र क
े प्रवत उपेक्षा का भाि रखते िैं ।
लेत्यखका क
े इसरार करने पर िे उससे बहुत िी लच्छे दार बातचीत
करक
े उसे प्रभावित करने िें लगभग सफल िोते िैं परंतु भािनाओं
क
े अवतरेक क
े कारण िनगढंत वकस्से सुनाने पर िो स्वंय अपने जाल
िें फ
ाँ स जाते िैं और वचढ़कर बेिन से बातचीत इस कटु सत्य से
करते िैं वक आज रोटी बनाने िालों की कोई कद्र निी रि गई ।
9. कवठन षब्दािली
लुत्फ - आनंद
वनिायत - बहुत
पेषानी - िाथा
नानबाई - रोटी बनाने िाले
काईरयााँ - धूतश , चालाकी
पंचिजारी - वचंतक
अंदाज - अदा , तरीक
े
अखबारनिीस - पत्रकार
खुराफात - षरारत
इल्म - ज्ञान
रफ
ू गर - दजी
िावलद- वपता
अत्यियार - अपनाना
िरहूि - स्वगीय
बजा - सिी, ठीक
उस्ताद - गुरु , वषक्षक
षावगदश - वषश्य
ज़िात - कक्षा
बाबत - बारे िें
तालीि - वषक्षा
तरेरा -घूरा
िोिलत - अिसर , सिय
क ंध - प्रकट , उपत्यस्थत
10. व्याख्या - मौसम ों की मार से पका चेहरा
वियााँ नसीरुद्दीन बहुत
बूढ़े थे । उनक
े चेिरे
पर बहुत झुरररयााँ थी
। उनक
े चेिरे को देख
कर सिज िी अनुिान
लगाया जा सकता था
वक उनकी आयु बहुत
अवधक थी ।
11. व्याख्या - तालीम की तालीम भी बड़ी चीज ह ती है ।
ककसी भी किक्षा का ज्ञान पाना एक कला है
और कला अभ्यास और मेंहनत से ही प्राप्त
ह ती है । क
े वल बताने से या मात्र पढ़कर
उसे नहीों पाया जा सकता । कहने का तात्पयय
यह है कक कमयााँ नसीरुद्दीन ने र टी बनाने
की कला क एक किन में नहीों सीखा अकपतु
पहले बतयन ध ने , भट्टी बनाने , उसे आाँच
िेने आकि कायों क सीखने क
े बाि ही र टी
बनाना सीखा ।
12. व्याख्या -वाकलि मरहूम त क
ू च ककए अस्सी
पर क्या मालूम हमें इतनी म हलत कमले न
कमले ।
कमयााँ नसीरुद्दीन क
े कपता की मृत्यु
अस्सी वर्य की आयु में हुई थी । अब
नसीरुद्दीन बूढ़े ह चुक
े थे। उनकी आयु
सत्तर की ह चुकी थी। वे स च रहे थे
कक वे अस्सी वर्य तक जाकवत रहेंगें या
नहीों ।
13. व्याख्या -कमयााँ नसीरुद्दीन क
े चेहरे पर ककसी अाँधड़
क
े आसार िेख यह मजमून न छ ड़ने का फ
ै सला
ककया।
कमयााँ नसीरुद्दीन लेखखका क
े बाििाह
क
े बारे में प्रश् ों से अब ऊब चुक
े थे ।
उनक
े चेहरे पर गुस्से क
े भाव थे ।
लेखखका यह स च रही थी कक कहीों वे
गुस्से में उन्हें यहााँ से भगा न िें । यही
स च कर उसने इस प्रसोंग क छ ड़
किया ।
14. व्याख्या -‘उतर गए वे जमाने । और गए वे कद्रिान ज
पकाने खाने की कद्र करना जानते थे ! कमयााँ अब क्या
रखा है ..... कनकाली तोंिू र से .... कनगली और हजम !’
कमयााँ नसीरुद्दीन कहना चाहते हैं कक पहले
जमाने क
े ल ग खाने और खाना बनाने वाले
ि न ों की कद्र करते थे व खाना बनाने वाले भी
किल से बनाते थे। पर आज ल ग खाना क
े वल
पेट भरने क
े कलए खाते हैं तृप्त ह ने क
े कलए
नहीों ।खाने वाले और बनाने वाले ि न ों ही
बेमन से इस कायय क सम्पन्न करते हैं।
15. गृहकायय हेतु प्रश्
⮚वियााँ नसीरुद्दीन क न थे
⮚ उन्होने बादशाि का उल्लेख क्ों
वकया ।
⮚ लेत्यखका वियााँ नसीरुद्दीन की वकन
बातों से प्रभावित हुई थी स
⮚ विया वकस नाि से प्रवसदरुध थे