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संज्ञा क्या है?
अर्थ: जिनसे संक्ले शित हाेकर िीव इस लाेक में अाैर
जिनके ववषय का सेवन करने से दाेनाें ही भवाें में दारुण दु:ख काे प्राप्त हाेते हैं
उनकाे संज्ञा कहते हैं।
उसके ववषय-भेद के अनुसार चार भेद हैं - अाहार, भय, मैर्ुन अाैर पररग्रह
॥134॥
इह िाहह बाहहया वव य, िीवा पावंतत दारुणं दु्खं।
सेवंता वव य उभये, ताअाे चत्तारर सण्णाअाे॥134॥
संज्ञा वांछा इच्छा
अभभलाषा Desire
संज्ञा के अन्य नाम
चार संज्ञाएँ
अाहार (खाने-
पीने अादद) की
इच्छा
अाहार
भय से उत्पन्न
हुई भागने की
इच्छा
भय
मैर्ुन अर्ाथत्
कामसेवनरूप
भमर्ुन कमथ की
इच्छा
मैर्ुन
पदार्ाेों काे
ग्रहण करने की
इच्छा
पररग्रह
अाहार संज्ञा उत्पन्न हाेने के कारण
• अर्थ: ववशिष्ट अन्न अादद 4 प्रकार के अाहार के देखने से
• उसके स्मरण से
• पेट के खाली हाेने से — इन बाह्य कारणाें से अाैर
• असाता वेदनीय की उदीरणा या तीव्र उदयरूप अन्तरंग कारणाें से
•अाहार संज्ञा हाेती है ।
अाहारदंसणेण य, तस्सुविाेगेण अाेमकाेठाए।
सादददरुदीरणाए, हवदद हु अाहारसण्णा हु॥135॥
अाहार संज्ञा के कारण
बहहरंग कारण
अाहार काे
देखना
अाहार का
स्मरण
पेट का खाली
हाेना
अंतरंग
कारण
असाता वेदनीय
कमथ का तीव्र
उदय या उदीरणा
अाहार काे देखना
देखना याने िानना अर्ाथत्
स्पिथन इन्द्न्िय से िानना
रसना इन्द्न्िय से िानना
घ्राण इन्द्न्िय से िानना
चक्षु इन्द्न्िय से िानना
कणथ इन्द्न्िय से िानना
अाहार का स्मरण
याने मन के द्वारा
अाहार का देखना
अइभीमदंसणेण य, तस्सुविाेगेण अाेमसत्तीए।
भयकम्मुदीरणाए, भयसण्णा िायदे चदुहहं॥136॥
• अतत भयंकर व्याघ्र अादद या क्रू र मृगादद के देखने से, उसकी कर्ा
सुनने से,
• उनका स्मरण करना इत्यादद उपयाेग से अाैर
• िभि की कमी — इन बाह्य कारणाें से अाैर
• भय नामक नाेकषाय के तीव्र उदयरूप अन्तरंग कारण से भय संज्ञा
उत्पन्न हाेती है ।
भय संज्ञा उत्पन्न हाेने के कारण
बाह्य कारण
अतत भयंकर व्याघ्र
अादद या क्रू र
मृगादद के देखने से,
उसकी कर्ा सुनना,
भयकारी पदार्थ,
घटना का स्मरण
करना
िभि की
कमी
अन्तरंग
कारण
भय नामक
नाेकषाय का
तीव्र उदय
पणणदरसभाेयणेण य, तस्सुविाेगे कु सीलसेवाए।
वेदस्सुदीरणाए, मेहुणसण्णा हवदद एवं॥137॥
• कामाेत्पादक पाैष्टष्टक भाेिन करने से,
• कामकर्ा के सुनने से ,
• अनुभूत काम ववषय का स्मरण अादद उपयाेग से,
• दुराचारी वेश्यागामी कामी पुरुषाें की संगतत गाेष्ठी से, इन बाह्य
कारणाें से तर्ा
• स्त्री-वेद, पुरुष-वेद, नपुंसक-वेद में से वकसी एक वेदरूप नाेकषाय की
उदीरणा-रूप अन्तरंग कारण से मैर्ुन संज्ञा उत्पन्न हाेती है।
मैर्ुन संज्ञा उत्पन्न हाेने के कारण
बाह्य कारण
कामाेत्पादक
पाैष्टष्टक
भाेिन
करना
कामकर्ा
का सुनना
अनुभूत
काम ववषय
का स्मरण
करना
दुराचारी,
वेश्यागामी,
कामी पुरुषाें
की संगतत
अन्तरंग
कारण
स्त्रीवेद,
पुरुषवेद, अर्वा
नपुंसक वेद
नाेकषाय की
उदीरणा से
उवयरणदंसणेण य, तस्सुविाेगेण मुन्द्च्छदाए य।
लाेहस्सुदीरणाए, पररग्गहे िायदे सण्णा॥138॥
• अर्थ - इत्र, भाेिन, उत्तम वस्त्र, स्त्री, धन, धान्य अादद भाेगाेपभाेग के
साधनभूत बाह्य पदार्ाेों के देखने से अर्वा
• पहले के भुि पदार्ाेों का स्मरण या उनकी कर्ा का श्रवण अादद करने
से अाैर
• ममत्व पररणामाें के - पररग्रहाद्यिथन की तीव्र अासभि के भाव हाेने से
एवं
• लाेभकमथ का तीव्र उदय या उदीरणा हाेने से — इन चार कारणाें से
पररग्रह संज्ञा उत्पन्न हाेती है ॥138॥
पररग्रह संज्ञा उत्पन्न हाेने के कारण
बाह्य कारण
इत्र, भाेिन,
उत्तम वस्त्र अादद
भाेगाेपभाेग के
साधनभूत बाह्य
पदार्ाेों काे
देखना
पहले के
भुि पदार्ाेों
का स्मरण
उनकी कर्ा
का श्रवण
अादद करना
पररग्रह अादद
के उपािथन की
अासभि के
भाव
अन्तरंग कारण
लाेभ
कषाय की
उदीरणा
णट्ठपमाए पढमा, सण्णा ण हह तत्र् कारणाभावा।
सेसा कम्मत्त्र्त्तेणवयारेणत्त्र् ण हह कज्जे॥139॥
• अर्थ - अप्रमत्त अादद गुणस्र्ानाें में अाहारसंज्ञा नहीं हाेती क्याेंवक वहाँ पर
उसका कारण असाता वेदनीय का तीव्र उदय या उदीरणा नहीं पाई िाती।
• िेष तीन संज्ञाएँ भी वहाँ पर उपचार से ही हाेती हैं क्याेंवक उनका कारण
उन-उन कमाेों का उदय वहाँ पर पाया िाता है विर भी उनका वहाँ पर कायथ
नहीं हुअा करता ॥139॥
संज्ञाअाें के स्वामी
गुणस्र्ान अाहार संज्ञा भय संज्ञा मैर्ुन संज्ञा पररग्रह
संज्ञा
1 - 6 ✓ ✓ ✓ ✓
7 – 8  ✓ ✓ ✓
9   ✓ ✓
10    ✓
11 – 14    
क्या संसारी िीव काे प्रत्येक संज्ञा हरसमय चलती रहती है? नहीं
क्या संसारी िीव काे हर समय कम-से-
कम एक संज्ञा ताे हाेगी ही?
यह िरुरी नहीं है
संज्ञा अाैर संज्ञा के ववषय सेवन में अंतर ?
➢Reference : श्री गाेम्मटसार िीवकाण्डिी, संज्ञा
प्ररूपणा
➢Presentation created by : Smt. Sarika
Vikas Chhabra
➢For updates / comments / feedback /
suggestions, please contact
➢sarikam.j@gmail.com
➢: 0731-2410880

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  • 1.
  • 2.
  • 3. संज्ञा क्या है? अर्थ: जिनसे संक्ले शित हाेकर िीव इस लाेक में अाैर जिनके ववषय का सेवन करने से दाेनाें ही भवाें में दारुण दु:ख काे प्राप्त हाेते हैं उनकाे संज्ञा कहते हैं। उसके ववषय-भेद के अनुसार चार भेद हैं - अाहार, भय, मैर्ुन अाैर पररग्रह ॥134॥ इह िाहह बाहहया वव य, िीवा पावंतत दारुणं दु्खं। सेवंता वव य उभये, ताअाे चत्तारर सण्णाअाे॥134॥
  • 4. संज्ञा वांछा इच्छा अभभलाषा Desire संज्ञा के अन्य नाम
  • 5. चार संज्ञाएँ अाहार (खाने- पीने अादद) की इच्छा अाहार भय से उत्पन्न हुई भागने की इच्छा भय मैर्ुन अर्ाथत् कामसेवनरूप भमर्ुन कमथ की इच्छा मैर्ुन पदार्ाेों काे ग्रहण करने की इच्छा पररग्रह
  • 6. अाहार संज्ञा उत्पन्न हाेने के कारण • अर्थ: ववशिष्ट अन्न अादद 4 प्रकार के अाहार के देखने से • उसके स्मरण से • पेट के खाली हाेने से — इन बाह्य कारणाें से अाैर • असाता वेदनीय की उदीरणा या तीव्र उदयरूप अन्तरंग कारणाें से •अाहार संज्ञा हाेती है । अाहारदंसणेण य, तस्सुविाेगेण अाेमकाेठाए। सादददरुदीरणाए, हवदद हु अाहारसण्णा हु॥135॥
  • 7. अाहार संज्ञा के कारण बहहरंग कारण अाहार काे देखना अाहार का स्मरण पेट का खाली हाेना अंतरंग कारण असाता वेदनीय कमथ का तीव्र उदय या उदीरणा
  • 9. देखना याने िानना अर्ाथत् स्पिथन इन्द्न्िय से िानना रसना इन्द्न्िय से िानना घ्राण इन्द्न्िय से िानना चक्षु इन्द्न्िय से िानना कणथ इन्द्न्िय से िानना
  • 10. अाहार का स्मरण याने मन के द्वारा अाहार का देखना
  • 11. अइभीमदंसणेण य, तस्सुविाेगेण अाेमसत्तीए। भयकम्मुदीरणाए, भयसण्णा िायदे चदुहहं॥136॥ • अतत भयंकर व्याघ्र अादद या क्रू र मृगादद के देखने से, उसकी कर्ा सुनने से, • उनका स्मरण करना इत्यादद उपयाेग से अाैर • िभि की कमी — इन बाह्य कारणाें से अाैर • भय नामक नाेकषाय के तीव्र उदयरूप अन्तरंग कारण से भय संज्ञा उत्पन्न हाेती है ।
  • 12. भय संज्ञा उत्पन्न हाेने के कारण बाह्य कारण अतत भयंकर व्याघ्र अादद या क्रू र मृगादद के देखने से, उसकी कर्ा सुनना, भयकारी पदार्थ, घटना का स्मरण करना िभि की कमी अन्तरंग कारण भय नामक नाेकषाय का तीव्र उदय
  • 13. पणणदरसभाेयणेण य, तस्सुविाेगे कु सीलसेवाए। वेदस्सुदीरणाए, मेहुणसण्णा हवदद एवं॥137॥ • कामाेत्पादक पाैष्टष्टक भाेिन करने से, • कामकर्ा के सुनने से , • अनुभूत काम ववषय का स्मरण अादद उपयाेग से, • दुराचारी वेश्यागामी कामी पुरुषाें की संगतत गाेष्ठी से, इन बाह्य कारणाें से तर्ा • स्त्री-वेद, पुरुष-वेद, नपुंसक-वेद में से वकसी एक वेदरूप नाेकषाय की उदीरणा-रूप अन्तरंग कारण से मैर्ुन संज्ञा उत्पन्न हाेती है।
  • 14. मैर्ुन संज्ञा उत्पन्न हाेने के कारण बाह्य कारण कामाेत्पादक पाैष्टष्टक भाेिन करना कामकर्ा का सुनना अनुभूत काम ववषय का स्मरण करना दुराचारी, वेश्यागामी, कामी पुरुषाें की संगतत अन्तरंग कारण स्त्रीवेद, पुरुषवेद, अर्वा नपुंसक वेद नाेकषाय की उदीरणा से
  • 15. उवयरणदंसणेण य, तस्सुविाेगेण मुन्द्च्छदाए य। लाेहस्सुदीरणाए, पररग्गहे िायदे सण्णा॥138॥ • अर्थ - इत्र, भाेिन, उत्तम वस्त्र, स्त्री, धन, धान्य अादद भाेगाेपभाेग के साधनभूत बाह्य पदार्ाेों के देखने से अर्वा • पहले के भुि पदार्ाेों का स्मरण या उनकी कर्ा का श्रवण अादद करने से अाैर • ममत्व पररणामाें के - पररग्रहाद्यिथन की तीव्र अासभि के भाव हाेने से एवं • लाेभकमथ का तीव्र उदय या उदीरणा हाेने से — इन चार कारणाें से पररग्रह संज्ञा उत्पन्न हाेती है ॥138॥
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  • 17. णट्ठपमाए पढमा, सण्णा ण हह तत्र् कारणाभावा। सेसा कम्मत्त्र्त्तेणवयारेणत्त्र् ण हह कज्जे॥139॥ • अर्थ - अप्रमत्त अादद गुणस्र्ानाें में अाहारसंज्ञा नहीं हाेती क्याेंवक वहाँ पर उसका कारण असाता वेदनीय का तीव्र उदय या उदीरणा नहीं पाई िाती। • िेष तीन संज्ञाएँ भी वहाँ पर उपचार से ही हाेती हैं क्याेंवक उनका कारण उन-उन कमाेों का उदय वहाँ पर पाया िाता है विर भी उनका वहाँ पर कायथ नहीं हुअा करता ॥139॥
  • 18. संज्ञाअाें के स्वामी गुणस्र्ान अाहार संज्ञा भय संज्ञा मैर्ुन संज्ञा पररग्रह संज्ञा 1 - 6 ✓ ✓ ✓ ✓ 7 – 8  ✓ ✓ ✓ 9   ✓ ✓ 10    ✓ 11 – 14    
  • 19. क्या संसारी िीव काे प्रत्येक संज्ञा हरसमय चलती रहती है? नहीं क्या संसारी िीव काे हर समय कम-से- कम एक संज्ञा ताे हाेगी ही? यह िरुरी नहीं है संज्ञा अाैर संज्ञा के ववषय सेवन में अंतर ?
  • 20. ➢Reference : श्री गाेम्मटसार िीवकाण्डिी, संज्ञा प्ररूपणा ➢Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra ➢For updates / comments / feedback / suggestions, please contact ➢sarikam.j@gmail.com ➢: 0731-2410880