भारतीय समाज के एक बहुत बड़े वर्ग दलित, कमजोर, मजदूर तथा महिला वर्ग को “डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान” के द्वारा “सामाजिक न्याय संदेश” नाम की मासिक पत्रिका के माध्यम से सजग, सशक्त एवं श्रेष्ठ बनाने का महत्वपूर्ण कार्य नियमित रूप से किया जा रहा है जिसके लिए प्रतिष्ठान में सहयोग करने वाले सभी लोग धन्यवाद के पात्र हैं ।
लेखक इस पत्रिका का नियमित अध्ययन करते हैं । लेखक ने अपने विचारों को एक शक्ल देने की कोशिश की है और उनको कविताओं के माध्यम से यहाँ प्रस्तुत किया है । ये लेखक की अपनी मौलिक रचनायें हैं
लेखक किसी भी वर्ग, जाति, के लोगों को दुख नहीं पहुँचना चाहता है | इतनी सावधानी रखने पर भी अगर किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचती है तो लेखक क्षमा प्रार्थी है |
धन्यवाद
हरी सिंह किन्थ,
(सेवानिवृत) अधिशासी अभियन्ता
2. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
About Author (लेखि िे बारे में)
लेखि िा जन्म भारतीय गााँव िे एि अचत ाधारण
िृ षि पररवार में हुआ था| एि ग़रीब व दचलत पररवार
े म्बन्ध रखने िे िारण उ ने अपने जीवन में अनेि
िड़ुए-मीठे अऩुभव प्राप्त चिये| माज और प्रिृ चत िे
अध्ययन िरने िे दौरान मानव िे ामाचजि, राजनैचति,
आचथिि और धाचमिि म्बिंध िं ि मझने िा प्रया
चिया और यह ब प्राप्त िरने िे चलए परम म्माननीय
तथागत ब़ुद्ध, ज्य चतवा फू ले, ाहूजी महाराज. डॉक्टर भीमराव
अिंबेडिर, भगत च िंह, िालि मार्क्ि, एिं गेल्स व लेचनन आचद े प्रेरणा प्राप्त िी| माज और प्रिृ चत िा अध्ययन िरने
िे चलये वि प्रथम आदरणीय स्नेही चिन्थ ने प्रेररत चिया| माज और प्रिृ चत िे अध्ययन िे दौरान यह अऩुभव चिया
चि मानव माज में हजार िं वषि े ामाचजि, राजनैचति, आचथिि व धाचमिि वचिस्व प्राप्त िरने व बनाए रखने िे
िारण ही िंघषि रहा है| इ ीचलए ि़ु छ ल ग िं ने बहु िंख्यि जनता ि ग़ुलाम बनाए रखने व उनिा श षण िरने िे
चलए मय- मय पर तरह-तरह िे ामाचजि, राजनैचति, आचथिि व धाचमिि भेदभाव िी व्यवस्था माज मे िायम
िी और चवचभन्न माध्यम िं िे द्वारा उ े स्थाचयत्व देने िा प्रया चिया| इन्ीिं े प्रभाचवत ह िर अपने अऩुभव िं ि
शाब्दिि रूप देने िा प्रया चिया है| पेशेवर लेखि नहीिं ह ने िे िारण शि िं तथा भाषा में श़ुद्धता में िमी ह
िती है चज े नज़र-अिंदाज िरते हुए भाव िं ि मझा जा िता है| मानवीय माज िी स्थापना में एि पत्थर
रखिर माज में व्याप्त तमाम ब़ुराइय िं ि नष्ट िरने िे चलए मात्र एि चचनगारी देने िा प्रया चिया है इ आशा िे
ाथ चि यह चचनगारी एि चदन अचि िा चवशाल रूप धारण िर माज में व्याप्त ब़ुराइय िं ि भस्म िर देगी| लेखि
ने िे वल अपने अऩुभव िं ि ज उ ने माज और प्रिृ चत े प्राप्त चिये हैं ि ही प्रस्त़ुत िरने िा प्रया चिया है|
चफर भी यचद चि ी व्यब्दि या वगि चवशेष िी भावनाएिं आहत हुई ह िं त उ िे चलए क्षमा प्राथी है|
धन्यवाद
हरी तसिंह तकन्थ
3. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
प्रस्तावना
भारिीय समाज के एक बहुि बडे वर्ग दतिि, कमजोर, मजदू र िथा मतहिा वर्ग को “डॉक्टर अिंबेडकर
प्रतिष्ठान” के द्वारा “सामातजक न्याय सिंदेश” नाम की मातसक पतिका के माध्यम से सजर्, सशक्त एविं श्रेष्ठ
बनाने का महत्वपूर्ग कायग तनयतमि रूप से तकया जा रहा है तजसके तिए प्रतिष्ठान में सहयोर् करने वािे
सभी िोर् धन्यवाद के पाि हैं ।
िेखक इस पतिका का तनयतमि अध्ययन करिे हैं । िेखक ने अपने तवचारोिं को एक शक्ल देने की कोतशश
की है और उनको कतविाओिं के माध्यम से यहााँ प्रस्तुि तकया है । ये िेखक की अपनी मौतिक रचनायें हैं
िेखक तकसी भी वर्ग, जाति, के िोर्ोिं को दुख नहीिं पहुाँचना चाहिा है | इिनी सावधानी रखने पर भी अर्र
तकसी की भावनाओिं को ठे स पहुाँचिी है िो िेखक क्षमा प्राथी है |
धन्यवाद
हरी तसिंह तकन्थ,
(सेवातनवृि) अतधशासी अतभयन्ता
4. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
Contents
ऐसे सिंस्कार दो...............................................................................................................................................4
ऐसा सातहत्य िेखो..........................................................................................................................................6
एक तमन्नि .......................................................................................................................................................8
अिंबेडकर की किम.....................................................................................................................................12
मुझको ऐसा आभास हुआ............................................................................................................................14
देश के र्रीब तकसानोिं से ............................................................................................................................15
िुम्हें कसम है कसम िुम्हारी .......................................................................................................................16
नारी..............................................................................................................................................................18
चुश्की एक शराब की ..................................................................................................................................21
अनाथ ...........................................................................................................................................................23
अतधकार तमि कर ही रहेर्ा........................................................................................................................24
ददे - पैर्ाम .................................................................................................................................................26
प्यार - पराया ...............................................................................................................................................27
मुक्तक (शेर) .................................................................................................................................................28
आओ ऐसा तदया बुझायें...................................................................................................................................30
सरकार बनाम तकसान..................................................................................................................................32
हम आजाद हैं..............................................................................................................................................34
तपया का प्यार ..............................................................................................................................................37
वह तनतिि ही मजदू र है..............................................................................................................................38
कच्ची किी...................................................................................................................................................39
तप्रयिम की याद में......................................................................................................................................41
नेिा...............................................................................................................................................................43
जीवन............................................................................................................................................................45
प्रेम की र्िी...................................................................................................................................................46
धमग और नैतिकिा........................................................................................................................................48
तवषधर मनुष्य ...............................................................................................................................................50
पापा की किम............................................................................................................................................52
5. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
मेरा जीवन....................................................................................................................................................54
नेिा और नैतिकिा .........................................................................................................................................56
ऐसे संस्कार दो
सिंस्कार दो,
मानव को, ऐसे सिंस्कार दो ॥
तजसमें जाति - जाति भेद तमटे,
धमग - धमग भेद तमटे,
देश - देश सीमा टू टे,
प्रािंि - प्रािंि एक हो ।
सिंस्कार दो,
मानव को, ऐसे सिंस्कार दो ॥
क्षेि - वाद ख़त्म हो,
राष्ट्र वाद ख़त्म हो,
भाषावाद भाव तमटे,
मानववाद प्रसार हो ।
सिंस्कार दो,
मानव को, ऐसे सिंस्कार दो ॥
आतथगक िोभ तमटे,
सामातजक भेद तमटे,
राजनीति मोह तमटे,
मानव को माि प्यार दो ।
सिंस्कार दो,
मानव को, ऐसे सिंस्कार दो ॥
प्यार ही धमग हो,
6. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
प्यार ही ममग हो,
प्यार ही कमग हो,
बस प्यार ही प्यार दो ।
सिंस्कार दो,
मानव को, ऐसे सिंस्कार दो ॥
जहााँ न कभी नारी का शोषर् हो,
जहााँ न कभी अत्याचार पोषर् हो,
मारकाट, िूटपाट और आििंक का,
बिंद ये बाजार हो ।
सिंस्कार दो,
मानव को, ऐसे सिंस्कार दो ॥
घृर्ा, द्वेष, ईष्याग का नाश हो,
ऊाँ च - नीच, छु आ - छू ि, ग़रीब - अमीर तवनाश हो,
तजसमें तवश्व बिंधुत्व का भाव हो,
ऐसा नया सिंसार दो ।
सिंस्कार दो,
मानव को, ऐसे सिंस्कार दो ॥
जहााँ तशक्षा समान हो,
जहााँ तशक्षक महान हो,
र्ुरुदतक्षर्ा में तशष्य से अिंर्ूठा मााँर्े,
न कोई ऐसा र्ुरु द्रोर्ाचायग हो ।
सिंस्कार दो,
मानव को, ऐसे सिंस्कार दो ॥
जहााँ न कोई हैवान हो,
जहााँ न कोई शैिान हो,
मानव, मानव को बस प्रेम करे,
मानव, बस माि इिंसान हो ।
सिंस्कार दो,
मानव को, ऐसे सिंस्कार दो ॥
मनुष्य तजससे स्वििंि हो,
समिा तवकास करे,
भ्रािृत्व भाव बडे,
मानविा का कल्यार् हो ।
सिंस्कार दो,
मानव को, ऐसे सिंस्कार दो ॥
मानवीय मूल्य बढे,
सुसिंस्कृ ति प्रसार हो,
‘तकन्थ’ भावना जर्े,
ऐसा अनुपम प्यार दो ।
सिंस्कार दो,
मानव को, ऐसे सिंस्कार दो ॥
मानव को बस प्यार दो,
उसे ऐसे सिंस्कार दो ॥
7. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
ऐसा साहित्य लेखो
ऐसा सातहत्य िेखो
तभक्षु को देखो ।
वह जािा
दो भार् किेजे के करिा पछिािा पथ पर जािा ।
आाँि, पेट, पीठ तमिकर हैं एक,
जा रहा है िाठी टेक,
मुट्ठी भर दाने को, पेट भर खाने को,
अरे िू देख मनुज वह जािा,
दो भार् किेजे के करिा, पछिािा पथ पर जािा ।
अरे सूरि है तकिनी भोिी,
पडी किं धे पर एक फटी - पुरानी झोिी,
उठें तहिोरें मन में, िर्ी है आर् िन में,
मुिंह बाये वह जािा,
दो भार् किेजे के करिा, पछिािा पथ पर जािा
पहने एक कु रिा,
देख दौरें कु त्ता,
कु छ बााँह है कटी, कु छ पीठ भी है फटी,
िन कााँपिा, थरागिा,
दो भार् किेजे के करिा, पछिािा पथ पर जािा ।
पहुाँचा एक सज्जन के यहााँ,
बैठे थे बहुजन वहााँ,
देख टू टे िन को,
8. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
सज्जन है भर्ािा,
दो भार् किेजे के करिा, पछिािा पथ पर जािा ।
देख उस तभक्षुक की दशा,
जमाना तफर उस पर हाँसा,
अरे ओ जमाने, िू समझ अपने समाने,
देख ‘हरी’ वह जािा,
दो भार् किेजे के करिा, पछिािा पथ पर जािा ।
तभक्षुक देख अपनी दुदगशा,
भार् अपने पर हाँसा,
िू देख ईश्वर मुझे अहा, बहुि कु छ है मैंने सहा,
‘हरी’ अब सहा न जािा,
दो भार् किेजे के करिा, पछिािा पथ पर जािा ।
साधु को देखो,
तभक्षु को देखो,
ऐसा सातहत्य िेखो ।
9. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
एक हिन्नत
दतिि और शोतषिोिं से,
तपछडे और पीतडिोिं से,
है यही तमन्नि मेरी,
उठो होश में आओ,
जार्ी है तकस्मि िेरी
बहकाये िुम्हें रखा,
सुिाये िुम्हें रखा,
दबाये िुम्हें रखा
इन धमग के ठे के दारोिं ने,
मक्कार, ढोिंर्ी राजा - महाराजाओिं ने,
साहूकार, जमीिंदारोिं ने,
पूिंजी पतियोिं, तमि मातिकोिं ने
िुम्हें न होश में आने तदया
समय अब आया है,
बाबा ने िुम्हे जर्ाया है,
खोि िो आाँख अपनी,
िौि िो शक्तक्त अपनी,
कर दो नाश दुश्मन का,
कर दो नाश दुश्मन का,
बुझा दो उसका तदया
उन मक्कार राजा - महाराजाओिं ने,
10. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
ढोिंर्ी धमग के ठे के दारोिं ने,
िुम्हारे साथ क्या नही तकया,
तदये हैं अनेकोिं कष्ट् िुमको,
और घृतर्ि व्यवहार तकया
तपिा दी घुट्टी भाग्यवाद की,
भर्वान से डरा तदया,
पढाया पाठ परिोक का,
ऐसा नया दशगन तदया
क्या यह भाग्य,
क्या यह भर्वान,
क्या यह परिोक,
राजा - महाराजाओिं के तिए,
धमग के ठे के दारोिं के तिए,
पूिंजी पतियोिं के तिए,
तमि - मातिकोिं के तिए,
नहीिं था?
था
िुम्हीिं उनके भर्वान थे,
िेतकन उनकी प्राथगना
िुम्हारे समान नही
हाथ जोडकर नही,
बक्ति शक्तक्त के साथ थी
िुम्हारा कमग ही उनका भाग्य था,
िथा विगमान भौतिक सुख ही
उनका परिोक था
तहिंसा करना,
दू सरोिं का खून चूसना,
परस्त्री से भोर् करना
क्या यही पाप था?
यतद यह पाप था िो,
ओ खाट के ख़टमिो,
मक्कार ढोिंर्ी, राजा - महाराजाओिं
पापी ब्राह्मर्वादी,
धमग के ठे के दारोिं,
आिसी पूिंजी पतियोिं,
िुमने जीवोिं की तहिंसा,
ग़रीबोिं का शोषर्,
दतििोिं, तपछडोिं पर अत्याचार,
11. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
परक्तस्त्रयोिं से अनाचार
क्योिं तकया?
क्या यही धमग है?
क्या यही न्याय है?
र्ााँधी को बापू कहा
नेहरू को चाचा बना तदया,
भूि र्ये िुम बाबा को,
तजन्ोिंने िुम्हें जीवन तदया
अिंबेडकर वह व्यक्तक्तत्व था
जो ज्ञान का सार्र बना
पािंतडत्य का सबूि उसके
भारि का सिंतवधान बना
अफ़सोस है बस इिना यही,
पापी दुश्मनोिं के कारर्
जनिा भी उसको भूि र्यी
बाबा साहेब अिंबेडकर को
सडकोिं पर भी रहना पडा,
सहे थे अत्याचार उसने,
सामातजक अपमान भी सहना पडा
क्या कहें हम, क्या कहें हम?
कहााँ िक सुनायें कहानी
इन पापी दुश्मनोिं के अफ़साने की,
तजन्ोिंने ितनक भी न परवाह की
उस राष्ट्र भक्त और ज्ञानी की
आया था वो दतिि शोतषिोिं का,
कमजोर और तपछडोिं का
मसीहा बनकर
उन्ें सम्मान तदिाने के तिए
जीवन पयंि करिा रहा कोतशशें
देश को सजाने के तिए
देखकर अिीि अपना
पूर्ग करना है सपना,
तमिकर प्रतिज्ञा करनी है आज
उठाना है सारा जीवन समाज
बदि कर दुतनयााँ को ऐसा बनाएाँ र्े
जहााँ दतिि, शोतषि भी खुतशयााँ मनाएिं र्े
जब ‘तकन्थ’ भावना का प्रसार होर्ा,
स्वििंििा और समानिा का
12. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
आपस में व्यवहार होर्ा,
िभी हम मानवीय समाज का
नव तनमागर् कर पायेंर्े,
िभी हम बाबा साहेब के
सपनोिं को साकार कर पायेंर्े
साकार कर पायेंर्े |
13. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
अंबेडकर की कलि
क्रािंति के तिए जिी मशाि,
क्रािंति के तिए बढे कदम ॥
अपमान के तवरुद्ध सम्मान के तिए,
शोषर् के तवरुद्ध अरमान के तिए,
दतिि, शोतषि, तपछडी जाति के तिए,
हम िडेंर्े हमने िी है कसम ।
क्रािंति के तिए जिी मशाि,
क्रािंति के तिए बढे कदम ॥
तछन रही हैं आदमी की रोतटयााँ,
तबक रही हैं शोतषिोिं की बेतटयााँ,
तकिं िु पूिंजीपति, राजनेिा तमिकर
शोषकोिं के साथ, भर रहे हैं कोतठयााँ ।
िूट का यह राज हो ख़िम
शोषर् का यह राज हो ख़िम ॥
14. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
िय है जय, उस शोतषि अवाम की,
दतिि, कमजोर, तपछडे समाज की,
सम्मान के तिए िड रहे जवान की,
तिख र्यी है अिंबेडकर की किम ।
क्रािंति के तिए जिी मशाि,
क्रािंति के तिए बढे कदम ॥
15. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
िुझको ऐसा आभास हुआ
मुझको ऐसा आभास हुआ,
आभास हुआ तवश्वास हुआ ।
कहिे, है प्रतितबिंब सातहत्य, जीवन और समाज का,
कहो कौन थे वह तजन्ोिंने िाई पूर्ग स्वििंििा ।
र्ााँधी, नेहरू चाचा ने जीवन ही होम तकया,
धन्य हमारे बाबा हैं, तजन मरिे भी सिंतवधान तदया ।
मुझको ऐसा आभास हुआ,
आभास हुआ तवश्वास हुआ ।
बनाया तवधान बाबा ने, व्यिीि दो वषग हो र्ये,
ग्यारह माह अठारह तदन में, सिंतवधान को दे र्ये ।
तिरसठ िाख सिानवे हजार, धन व्यय हुआ तजसमें,
जीवन पुनः तमिेर्ा हमको, न यह पुरुष तमिे जर् में ।
मुझको ऐसा आभास हुआ,
आभास हुआ तवश्वास हुआ ।
16. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
देश के गरीब हकसानों से
कहनी है एक बाि हमें देश के र्रीब तकसानोिं से
कहनी है एक बाि हमें देश के मजदू र जवानोिं से
कष्ट्ोिं की पहनी मािा िुमने, िन माटी में तमिा र्ये
पृथ्वी मााँ से प्यार तकया और पृथ्वी मााँ में समा र्ये
सोिे खेि जर्ा कर िुमने वहााँ पर अन्न उर्ाए
तफर भी िू क्योिं भूखा रहिा भूख िुझे खा जाए
अपना पेट भरे न भरे पर औरोिं का िो भरना है
ऐसी है प्रतिज्ञा िेरी, ये जीकर भी मरना है
पसीने का पानी देकर के िुमने फसि उर्ाई
खाद खून का देकर िुमने उसकी उपज बढाई
बरसा झेिी, धूप भी झेिी, तवपदा सभी उठाई
फसि पकी िो िे र्ये दुश्मन, िेरी सभी कमाई
बच्चे िेरे भूखोिं मरिे मानविा का दमन तकया
तफर भी िू क्योिं रहा सोचिा ऐसा क्या मद् पान तकया
दानविा को पािा तजसने, उन पापी और अह्वानो से
तहसाब चुकाना है अब हमको दुष्ट् और शैिानोिं से
कहनी है यही बाि हमें देश के र्रीब तकसानोिं से
कहनी है यही बाि हमें देश के मजदू र जवानोिं से
17. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
तुम्हें कसि िै कसि तुम्हारी
रख सर पर टोकरी जब मजबूरन, सडकोिं पर पत्थर ढोयेर्ी
देख िडपिा भूख से बेटा, जब उसकी ममिा रोयेर्ी
नहीिं भाग्य, न भर्वान ही कोई, जब उसको आकर देखेर्ा
िब बनकर साथी िुम जाना ।
िुम्हें कसम है कसम िुम्हारी
जाकर उसका दुख ददग बटाना ॥
भरी दुपहरी िेज धूप में, जब हि को हड्डी जोिेर्ी
भोजन की िो बाि दू र, जब ब्यािू को दुल्हन सोचेर्ी
नहीिं मतिक, न जमीिंदार ही कोई, जब तववशिा उसकी देखेर्ा
िब बनकर मीि िुम जाना ।
िुम्हें कसम है कसम िुम्हारी
जाकर उसका हक तदिवाना ॥
भूखे बच्चे छोडके इिंसा, जब काम खोजने जायेर्ा
बच्चोिं की कर याद जमीिं पे, ििंबे आाँसू ढिकायेर्ा
करने पर भी िाख जिन, जब राह न कोई पायेर्ा
रे साथी, िब िुम जाना ।
िुम्हें कसम है कसम िुम्हारी
उसको जाकर राह तदखाना ॥
इिंसाफ मााँर्ने जब कोई, तनदोष कहीिं भी जायेर्ा
उल्टा भय तदखिा करके , जब उसको पुतिस सिायेर्ा
नहीिं तवधायक, मिंिी कोई, जब उसे बचाने आयेर्ा
िब रुकना मि िुम जाना ।
18. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
िुम्हें कसम है कसम िुम्हारी
जाकर उसको न्याय तदिाना ॥
तबना दवा के प्रीिम कोई, जब िडप - िडप मर जायेर्ा
नहीिं डॉक्टर, सेठ न कोई, जब आकर उसे बचायेर्ा
कै से सहन करेर्ी तवधवा, जब तवधवा उसे बनायेर्ा
िब भाई बनकर िुम जाना ।
िुम्हें कसम है कसम िुम्हारी
जाकर उसको राज बिाना ॥
जब नव युवक, नासमझ कोई, अिंधेरोिं में खो जायेर्ा
जब इिंसातनयि दफन हो जायेर्ी, मानव - मानव को खायेर्ा
नहीिं कृ ष्ण, न राम ही कोई, जब आकर उसे बचायेर्ा
िब भर्ि, आजाद बनकर आना ।
िुम्हें कसम है कसम िुम्हारी
िुम आकर के दीप जिाना ॥
तवश्व कर्ग धार - तवद्याथी कोई, जब तवद्या की अथी ढोयेर्ा
स्वयिं उपातध फाड – फें क, जब रेि के आर्े सोयेर्ा
नहीिं भ्रष्ट् शासन कोई, जब उसे देखकर रोयेर्ा
िब बनकर मार्क्ग, िेतनन आना ।
िुम्हें कसम है कसम िुम्हारी
आकर क्रािंति मशाि जिाना ॥
धमग - धमग का भेद बिाकर जब अधमी जुल्म ढहायेर्ा
इिंसातनयि का करके खून, समाज में नफरि फै िायेर्ा
नहीिं ईश्वर, ना कोई अल्ला, ना आकर र्ॉड बचायेर्ा
िब बुद्ध बनकर िुम आना ।
िुम्हें कसम है कसम िुम्हारी
आकर प्रेम का पाठ पढाना ॥
जाि - पााँि और छू आछू ि के , कोई बीज समाज में बोयेर्ा
भाई चारा कर ख़िम समाज में, जब असमानिा फै िायेर्ा
ना कोई धमग, ना कोई मजहब, जब मानविा को िायेर्ा
िब अिंबेडकर बनकर िुम आना ।
िुम्हें कसम है कसम िुम्हारी
आकर समिा का कानून बनाना ॥
19. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
नारी
हे देवी!
तकिनी तविक्षर्,
तकिनी महान हो िुम,
प्रेम का साक्षाि सार्र,
र्ुर्ोिं की खान हो िुम
िुम्हारी महानिा की
समानिा रखने वािा
सिंसार में कोई नहीिं,
िुमने अपने प्यार रूपी
पुष्प की
सुख रूपी सुर्क्ति से
सारे सिंसार को भर तदया है,
िुमने अपने इिंतद्रयजतनि
सुखोिं से सारे सिंसार को
पररपूर्ग कर तदया है
िुम्हारा दशगन सुख!
अहा!
तकिना तप्रय है ये
तजसे प्राप्त करने के तिए
चााँद भी िुका तछपी करिा है,
सारी राि िुम्हें
तनहारने के बाद भी
20. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
जािे - जािे सुबह
आहें भरिा है
िुम्हारा स्पशग,
िुम्हारी सुर्क्ति
तकिना कोमि,
तकिना मधुर
आनिंद दािा है
तजसका सानी रखने में
फू ि भी अपनी
हार स्वीकारिा है
िभी िो वह िुम्हारे
जूडे की वेर्ी बनकर
िुम्हारा स्पशग पाने की
िमन्ना करिा है
और िुम्हारी ही सुर्क्ति में
अपनी सुर्ि तमिाकर
सुख की अनुभूति करिा है
िुम्हारा आतििंर्न!
िुम्हारा आतििंर्न िो
साक्षाि परमानन्द की
अनुभूति देने वािा है
बडे - बडे ऋतष, िपस्वी
तजस परमानन्द की
अनुभूति प्राप्त करने के तिए
पन्चाति में शरीर को िापिे हैं,
तहमािय जैसे पवगि की
र्ुफाओिं में जाकर
बफग की प्रचिंड सदी में
तठठु रिे कााँपिे हैं
तफर भी,
तफर भी परमानन्द
उनके तिए
मृर् िृष्णा माि रह जािा है
और वह परमानन्द की
आकािंक्षा रखने वािा
क्षुद्रानिंद भी नहीिं पािा है
वही परमानन्द,
तजसपर िुम
21. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
अपनी कृ पा करिी हो
तजस भोिे - भािे
साधारर् इिंसान को,
अपने प्यार भरे दामन में
भरिी हो,
वह क्षर् भर में
प्राप्त करिा है,
बहुि से बाहुल्य,
ममिा का वात्सल्य
मािं बनकर िुम देिी हो,
बदिे में इस प्यार के ,
कु छ भी िो नहीिं िुम िेिी हो
घर की हािि चाहे ििंर् हो,
या आजादी की जिंर् हो,
िुम धीरिा की तमशाि हो
िुम वीरिा की मशाि हो
बनकर कु हााँसा जो आये
उसके तिए ग्रीष्म के सूयग की
महा प्रचिंडी धूप हो
हे देवी!
िुम धन्य हो,
पूज्य हो, आराध्य हो,
सिंसार के समस्त
सुख साधनोिं की साध्य हो
हे देवी!
िुम सचमुच तकिनी तविक्षर्,
तकिनी महान हो |
22. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
चुश्की एक शराब की
देखिे ही देखिे क्या बाि बनी कमाि की
िा र्यी मस्ती मुझे चुश्की एक शराब की
र्ीि मैं र्ाने िर्ा
मदहोश मुझे छाने िर्ा
छा र्यीिं रिंर् रतियााँ, मेरे रर् - रर् में
तक रुक नहीिं पािे पर्, मेरे एक पर् में
करूाँ क्या िारीफ उसके अजीबो जवाब की
देखिे ही देखिे क्या बाि बनी कमाि की
िा र्यी मस्ती मुझे चुश्की एक शराब की
देखा न था िेरा, जब िक मैनें सपना
िर्िा न था जार् में कोई अपना
यह क्या मुझे सैदा हुआ
क्या ‘तकन्थ’ िुझे पैदा हुआ
23. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
नहीिं दोस्त, यह बाि नहीिं भुिाव की
देखिे ही देखिे क्या बाि बनी कमाि की
िा र्यी मस्ती मुझे चुश्की एक शराब की
छायी है मेरे िन में िनहाईयािं
आयी है जब जब िेरी परछाईयााँ
देखने िर्ा हूाँ मैं स्वप्न सुनहरे
छोड दे दुतनया मुझे पर िुम िो हो मेरे
कल्पना करिा हूाँ मैं ऐसे ख्वाब की
देखिे ही देखिे क्या बाि बनी कमाि की
िा र्यी मस्ती मुझे चुश्की एक शराब की
पर यह क्या अचानक मुझको हुआ
मैं पीिा था शराब को तफर शराब मुझको पीने िर्ी
आज मैं आकर बैठ र्या मरने की कर्ार पर
मैंने ही अपने बीवी, बच्चोिं की तजिंदर्ी खराब की
कोई भी ऐसा न करना जो मैंने तकया
शराब िेकर हाथ में, ना बुझाना घर का तदया
देखिे ही देखिे क्या बाि बन र्यी कमाि की
कर र्यी जिंदर्ी बबागद मेरी, चुश्की एक शराब की |
24. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
अनाथ
मेरी भी एक मािं िो होर्ी
पर मैं मािं का िाि नहीिं,
तजस कोख ने मुझको जन्म तदया
मैंने पाया उसका प्यार नहीिं,
जन्म तदया और फें क तदया
तफर पूछा मेरा हाि नहीिं,
पाकर जन्म हरामी कहिाया
मािं - बाप का पाया नाम नहीिं,
वह शैिान पुरुष आवारा था
तजसने मािं को मजबूर तकया,
मािं की भी मजबूरी देखो
तजसने इिना मुझको दू र तकया,
भर्वान भी कोई आवारा होर्ा
तजसने धरिी मािं को मजबूर तकया,
धरिी मािं की भी मजबूरी
तजसने बना मुझे मजदू र तदया,
जननी, धरिी िनया समान हुई
वीर भोर् का सामान हुई,
जैसे चाहा भोर्ा उसने
क्योिं आया उसको काि नहीिं,
मेरी भी एक मािं िो होर्ी,
पर मैं मािं का िाि नहीिं
25. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
अहिकार हिल कर िी रिेगा
र्र बज र्या है तबर्ुि सिंघषग का
िो अतधकार तमिकर ही रहेर्ा ।
कोई न मुझको रोक सके र्ा शक्तक्त से डरा धमका कर
कदम न मेरे मोड सके र्ा झूठे स्वप्न तदखाकर ।
अब िो दम िेंर्े हम अपनी मिंतजि पर ही जाकर
िी है हमने शपथ सिंघषग का तबर्ुि बजाकर ॥
र्र चि पडा है यह कारवािं
िो अब मिंतजि पर ही ठहरेर्ा ।
र्र बज र्या है तबर्ुि सिंघषग का
िो अतधकार तमिकर ही रहेर्ा ॥
अधमग के प्रति धमग का यह सिंघषग नहीिं है
तकसी राजा के प्रति प्रजा का यह सिंघषग नहीिं है ।
यह सिंघषग है बस आदमी और इिंसान का
यह सिंघषग है बस मान और सम्मान का ॥
र्र खाई है हमने कसम
िो सम्मान अब तमिकर ही रहेर्ा ।
र्र बज र्या है तबर्ुि सिंघषग का
िो अतधकार तमिकर ही रहेर्ा ॥
अब चाहे पहाड ही सामने क्योिं न राह में आ जाये
जो कदम चि पडे हैं मेरे उन्ें रोक ना पायेर्ा ।
सार्र स्वयिं महासार्र बन मुझे डुबोना चाहेर्ा
मैं िैरूाँ र्ा पुष्प समान मुझे डुबो ना पायेर्ा ॥
26. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
र्र तनकिी है कोिंपि कमि की
िो फू ि अब क्तखिकर ही रहेर्ा ।
र्र बज र्या है तबर्ुि सिंघषग का
िो अतधकार तमिकर ही रहेर्ा ॥
27. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
ददे - पैगाि
हुआ ददे - तदि िो िेरा नाम पुकारा
बैठा र्म िो आया िेरा नजारा
दुख हुआ िो तदया सहारा
र्ाये िेरे र्ीि, र्ा रहा हूाँ, र्ािा रहूाँर्ा - २
सो रहा था सपनोिं के साये में
ददग था कहीिं अिंजान राहोिं में
आ र्यी ऊषा कहीिं से मौि का पैर्ाम िेके
रोने िर्े अरमािं, तकसी के ददग के पैर्ाम बनके
ये ददे - पैर्ाम सबको सुनािा रहा हूाँ, सुनािा रहूाँर्ा - २
र्ाये िेरे र्ीि, र्ा रहा हूाँ, र्ािा रहूाँर्ा - २
अपना वायदा मैं पूरा कर ना सका
पर सपनोिं में िेरे रहा हूाँ सदा
सपनोिं में साथ तनभािा रहा हूाँ, तनभािा रहूाँर्ा - २
र्ाये िेरे र्ीि, र्ा रहा हूाँ, र्ािा रहूाँर्ा - २
28. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
प्यार - पराया
एक अनजान राह पर
चिंचि मन सातथयोिं के साथ,
प्यासे अरमान भी
आशाओिं के सहारे
चिा जा रहा था ।
एक नजर पड र्यी उन पर
और अर्र देख भी तिया
यह कोई भूि िो नहीिं है ।
एक तवशेष सौन्दयग के साथ
रूप था
और सुर्िंध भी
देखा,
और सूाँघा भी
यह कोई फू ि िो नहीिं हैं ।
तदि ने चाहा
पास भी र्या
स्पशग तकया िो
चुभ वो र्या
सोचा, मर्र
यह कोई शूि िो नहीिं है ।
मैंने िो प्यार का ही अहसास
तकया था मर्र, कहीिं
यह प्यार पराया िो नहीिं है
यह प्यार पराया िो नहीिं है ।
29. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
िुक्तक (शेर)
यह तजिंदर्ी भी अजीब है यारोिं,
कभी जीिा हूाँ िो कभी मरिा हूाँ ।
यह जीना भी क्या जीना है यारोिं,
न जीिा हूाँ और न मरिा हूाँ ।
कई मिगवा मरने को कदम बढायें हैं मैंने,
यह सोचकर तक कोई आकर मुझे बचा िेर्ा ।
अनेक अरमान भी पािे थे मैंने,
पर क्या पिा था तक कोई मुझे सजा देर्ा ।
तसफग मैं ही नहीिं हूाँ िमाम हैं मेरे जैसे,
जो न जीिे हैं और न मरिे हैं ।
तजन्ें तजिंदर्ी नकग से बदिर िर्िी है,
तफर भी वे सौ बरस जीने की आरजू रखिे हैं ।
प्यार मुहब्बि की बाि करिे हैं वो,
पर प्यार - मुहब्बि ही भक्षर् करिे है ।
दुतनया को जन्नि बनाने वािे,
बस नफरि की आर् उर्ििे है ।
वे कहिे हैं की दुतनयािं में बस,
खुदा का ही हुक्म चिा करिा है ।
िक़दीर में तजसके जो होिा है तिखा,
30. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
उसको बस उिना ही तमिा करिा है ।
इबादिकर खुदा से तक वह,
िेरे र्ुनाहोिं को माफ़ कर दे ।
आये कयामि जब िो, िुझे,
दोजख की जर्ह जन्नि में घर दे ।
दी दारे जनाब का, मयस्सर होिा नहीिं है अब,
खुदा जाने कै से, उनका आज कदम पड र्या है ।
आना न आना, यह िो ऊपर है जनाब के ,
हमने िो दरवाजा अपना, उनको खुिा कर तदया है ।
इस जातिम मुस्कराहट को िो देखो,
जो खुिकर उनको, हिंसने भी न देिी है ।
फे र िेिे हैं वो, अपनी तनर्ाहें जो हमसे,
हमको जीने भी न देिी हैं, मरने भी न देिी हैं ।
31. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
आओ ऐसा हदया बुझायें
एक अहवान
तजस तदया ने हमको तदए अाँधेरे
कातिख तजसकी जर् को घेरे
मानविा के अन्तरमन में
नफरि की जो आर् िर्ायें
आओ ऐसा तदया बुझायें |
उस प्रकाश को समझ के कृ पर्
अपना सब कु छ करिे अपगर्
भतवष्य के कक्तल्पि मोह जाि में
अपना सुन्दर न आज र्वायें
आओ ऐसा तदया बुझायें |
धमग अफीमी ज्ञान अधूरा
कु तटिोिं के पापोिं का घेरा
पाप मुक्त दुतनयािं को करने
हम िूफानी हवा चिायें
आओ ऐसा तदया बुझायें |
तजस दीपक से अपना विन जिे
और अस्मि अपनी ख़ाक तमिे
उस दीपक को आज बुझाने
हम सब तमिकर आर्े आयें
आओ ऐसा तदया बुझायें |
32. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
तजसका िक्ष्याधार अाँधेरा हो
पर जर् प्रकातशि करने का
जो दम्भी अपना दम भरिा हो
आओ उस दम्भी का दम्भ तमटायें
आओ ऐसा तदया बुझायें |
जो दीपक प्रेम से जििा हो
जो नफरि की आर् उर्ििा हो
तजसके ऊाँ च नीिंच भेद हो मन में
जो भाईचारा भोर् िर्ायें
आओ ऐसा तदया बुझायें |
तजसको छू कर अपना हाथ जिे
तजसकी िौ से हमको िपन तमिे
उस दीपक को आज तमटाकर
आओ प्यार का ट्यूब जिायें
आओ ऐसा तदया बुझायें |
हम सब मानव जर्ि हमारा
हर कोई हमको प्रार् से प्यारा
नफरि की हर ज्योति बुझाकर
हम सबको अपना ‘तकन्थ’ बनायें
आओ ऐसा तदया बुझायें |
प्यार ही अपना मूि मिंि हो
प्यार ही अपना तवशाि ििंि हो
प्यार भरी हो धरिी अपनी
और प्यार के उसमें फू ि क्तखिाएिं
हम सुन्दरिम सिंसार बनायें |
आओ ऐसा तदया बुझायें ||
33. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
सरकार बनाि हकसान
देश में अब कोई
भूखा न होर्ा
भूख से तकसी की
अब मौि नहीिं होर्ी
देश में हमारे अब
अन्न का भिंडार है
भूख से तनपटने की
पररक्तथथति से हम
ऊपर उठ र्ये हैं
अतिररक्त अनाज है
देश के र्ोदामोिं में
तजसका उपयोर्
जनिा न कर पािी है
शेष रह जािा है प्रतिवषग
तजसका भिंडारर्, रक्षर् भी
एक मुसीबि बन जािी है
क्तथथति आिी है यहााँ िक
तक र्ोदामोिं में अनाज
सडने िर् जािा है
मजबूर होिे हैं सोचने को
क्या करें हम इस अन्न का
बेच दें तकसी अन्य देश को
34. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
सस्ते में इसे, या तफर
तफकवादें तकसी समुद्र में
क्योिंतक देश का करोडोिं रुपया
इसके भिंडारर् व्यवथथा में
खचग हो जािा है
सरकार मजबूर है
पर तकसान हमारी मजबूरी
नहीिं समझिे हैं
वे कर रहे हैं अन्न का
अतधकातधक उत्पादन
पर उसका उपभोर्
नहीिं कर पािे हैं
इसीतिए हमारे देश की
राष्ट्र वादी सरकार
तकसान जनिा को
नेक सिाह देिी है
तक वे अपने िमाम खेिोिं में
तसफग फिोिं की फसि उर्ायें
और उनकी सेहि अच्छी रहे
इसतिए के वि डर ाईफ्रू ट और
अच्छे फि ही खायें
जब तकसान खेिोिं में नहीिं करेंर्े
अन्न का अतधक उत्पादन
िो हमें भी नहीिं करना पडेर्ा
अन्न का भण्डारर्
और जब नहीिं होर्ा भण्डारर्
िो बचेर्ा हमारा धन
और न ही सडेर्ा अन्न
पर तकसान है तक मानिे ही नहीिं
अतधक अन्न उपजाये चिे जा रहे हैं
पर हम भी उनसे कम नहीिं हैं
हम भी र्ोदामोिं में अन्न सडा रहे हैं ।
35. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
िि आजाद िैं
हम आजाद हैं
हमें अपनी इच्छानुसार
खाना, पतहनना,
काम करना और रहना
मना है
चुपचाप र्धे की िरह
पीठ पर काम का बोझ िादे
तदनभर िर्ािार खटिे रहना, है ठीक
पर समय पर मजदू री मािंर्ना
मना है
अन्याय, शोषर्, बिात्कार
के तवरुद्ध
पुतिस का द्वार खटखटाना
न्याय के द्वार पर पडा
पैसोिं का पदाग हटाना
मना है
भूख से बचाने के तिए
बच्चोिं को
मारना या तफर बेचना, है ठीक
पर िोकििंि में रोटी के तिए
रोजी मािंर्ना
मना है
36. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
तदन - राि खेि, खतिहानोिं में
भूखे पेट काम करके
सब्जी, फि और अन्न उर्ाना, है ठीक
पर आजाद देश में, इन्ें खाना
मना है
तदन राि शरीर जिाकर
अपने खून का ईिंट, र्ारा बनाकर
ऊाँ चे - ऊाँ चे भवन, अट्टातिकायें
बनाना, है ठीक पर
उनमें रहना
मना है
हमारा देश आजाद है,
यहााँ हम कु छ भी कर सकिे हैं
हम देश के नेिा बनकर
धन दौिि से अपनी
कोतठयााँ भर सकिे हैं, पर
िुम जनिा को हमारे ऊपर
कोई भी इल्जाम िर्ाना
मना है
यहााँ कानून हम बनािे हैं,
कानून हमारा है
तनयम कानून िार्ू करने वािे
पुतिस, अफसर, न्यायािय
सब हमारे भाई हैं
हम सब तमिकर कु छ भी करें, पर
िुम्हें हमारे क्तखिाफ बोिना
मना है
धमग हमसे है
हम धमग से चििे हैं
भर्वान के नाम पर हम
सिंसार को ठर्िे हैं
यहााँ हम कु छ भी करें, सब है ठीक
पर िुम्हें धमग के तवरुद्ध, बोिना
मना है
हमें पूिंजीपति बनािे हैं, इसतिए
हम पूिंजीपतियोिं को बनािे हैं
िूट, आििंक, भ्रष्ट्ाचार करना
हमारे तिए सब कु छ, है ठीक, पर
37. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
िुम्हें इसके क्तखिाफ बोिना
मना है
हम आजाद हैं,
हमारे देश में र्ााँधी दशगन के
िीन बिंदरोिं का कहना है, तक
देश में भ्रष्ट्ाचार,
अन्याय और अत्याचार,
िूट और बिात्कार
देखना मना है,
बोिना मना है
सुनना मना है
38. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
हपया का प्यार
रमर्ी बैठी द्वार पै िखै तपया की वाट
वषाग उसकी बैररन भई तभर्ो र्ई सब र्ाि
रमर्ी तपया की याद में बैठी मन को मारर
िन बदन की सुध नहीिं पार्ि भई सुकु मारर
बादि छाये र्र्न में चिंचि बहति बयारर
उडा िे र्यी ओढनी िन को र्ई उघारर
देख हाँसे सारी सखीिं पार्ि बन र्ई नारर
तपया िेरो परदेश री तकसको रही तनहारर
सिंर्मरमरी बदन िेरो चमक चमक रह जाये
छू ने को ये र्ाि री सबके मन ििचाये
कमि िेरे नयना भये, भये िाि र्ुिाबी र्ाि री
हर पि तपया की याद में, हाि भयो बेहाि री
कै से कहूाँ, कासे कहूाँ सक्तख अपने तदि को हाि री
तपया तमिन की चाह में मेरो भयो बेहाि री
मन बैरी माने नहीिं ये चाहे तपया को प्यार री
मेरो टू ट जाये सारो बदन जब बहिी मस्त बयारर री
मन बैरी माने नहीिं ये चाहे तपया को प्यार री ॥
39. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
वि हनहित िी िजदू र िै
मेरे सामने खडा जो मौन है,
भिा बिाओ िो, यह कौन है?
इसके जीवन में धूप ही धूप है, मर्र उजािा नहीिं
इसके जीवन में घुप्प अिंधेरा है, मर्र तदि किा नहीिं
आाँखोिं में इसके मोिी ही मोिी है, मर्र र्िे में मािा नहीिं
यह सिंसार का तनमागर् करिा है, मर्र अपना नहीिं
यह सबके सपने पूरे करिा है, मर्र इसका कोई सपना नहीिं
यह सबका जीवन दािा िो है, मर्र इसका कोई जीवन नहीिं
यह सबके घर बनािा है, मर्र इसका कोई घर नहीिं
यह सबको सुख और खुतशयााँ िुटािा है, पर खुद उनसे बहुि दू र है
चुपचाप खडा, आाँसू बहािा, यह तनतिि ही मजदू र है
यह तनतिि ही मजदू र है ।
खेि तजससे िहिहािे हैं कि - कारखाने तजनसे चििे हैं
िोहे की पटररयोिं पर िेज रफ्तार से, रेिर्ातडयााँ सरसरािी हैं
चौडी - चौडी सडकोिं पर, मोटर र्ातडयााँ और कारें सरपट दौडिी हैं
तजससे रौशन होिे हैं घर, आिंर्न सबके , वो तबजिी
तजसके आने पर सबकी तजिंदर्ी चि पडिी है
और जब वह जािी है िो मानोिं सबकी सााँसें ही रुक जािी हैं
वह तबजिी तजससे है, तबजिी ही क्या, दुतनयािं तजससे है
यह खून पसीना और अक्तथथयााँ है उसकी,
वह कोई और नहीिं, बक्ति मजदू र है
वह तनतिि ही मजदू र है ।
40. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
कच्ची कली
यह तकिनी कोमि और भिी है
क्योिंतक अभी यह कच्ची किी है
इसका काम अभी िो बढना
बनकर फू ि अभी िो क्तखिना
रहने दो इसे अभी योिं ही
इसे अभी और है सजना
होकर बडी एक तदन यह
स्विः फू ि बन जायेर्ी
बनकर फू ि सुर्िंतधि यह
तफर दुतनया को महकायेर्ी
या तफर कोई चुन िेर्ा इसको
और यह धार्े में तपरोई जायेर्ी
तफर पडकर तकसी मािा में यह
तकसी र्िे का हार बन जायेर्ी
या र्जरे का यह फू ि बनेर्ी
और तकसी देवी के तसर खूब सजेर्ी
या तफर अन्य फू िोिं के साथ तमिकर
यह दुतनया को खूब सजायेर्ी
या िे जाएर्ा कोई पुजारी इसको
और तकसी देव पर चढाई जायेर्ी
फू ि होिे हैं सुर्क्ति देने के तिए
नहीिं होिे यह कु चिने के तिए
41. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
यह दू सरोिं को खुतशयािं देिे हैं
फू ि नहीिं होिे मसिने के तिए
इसे िोडकर न योिं फें को जमीिं पर
कदमोिं ििे तकसी के योिं ही कु चिी जायेर्ी
या कु छ तदन पडे - पडे जमीिं पर
यह योिं ही स्वयिं मुरझायेर्ी
र्ि जायेर्ी वषाग के पानी में
या तफर धूप इसे सुखायेर्ी
या तफर कोई तसरतफरा आकर
इसे उठा कर िे जायेर्ा
खेिेर्ा तफर उसके िन से
और तचथडे कर उसे उडाएर्ा
इिने दररिंदे न बनो िुम भी
अभी िो यह नाजुक सी किी है
अभी िो यह कच्ची किी है ।
42. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
हप्रयति की याद िें
हे रमर्ी िेरे तप्रयजनोिं को िर्िा है
और ये समझिी हैं िेरी सक्तखयािं
तक बहुि तदनोिं के बाद िेरा
िौट कर घर आया है तप्रयिम ।
इसीतिए िू उसे देखकर
इिना अतधक शरमाई है
खुशी से िुम पार्ि हुई
और र्ािोिं पर िातिमा छाई है ।
िेरे आस - पास के ये आतशक
असि बाि को क्या जाने
िेरे ऊपर क्या - क्या बीिा
ये ना समझ कै से जाने ।
तवर्ि तदनोिं से तकिने िुम
अपनी आाँख तबछाए बैठी थी
तप्रयिम की राह देख - देख कर
रािोिं में जार् - जार् कर िेटी थी ।
कर प्रिीक्षा तप्रयिम की िुम
राि - राि भर जार्ी थी
अपिक बैठी दरवाजे पर
हर आहट पाकर भार्ी थी ।
तप्रयिम के आने की कर कल्पना
दौड - दौड िुम जािी थी
43. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
और दरवाजा खोि देखिी िुम
तफर तबस्तर पर जा सो जािी थी ।
मूसिाधार बाररश देखिी जब भी
िुम यही सोचिी अपने मन में
होिंर्े कहीिं राह में तप्रयिम
भीर्कर ठिं ड िर्ी होर्ी िन में ।
बाद आने के उनके घर में
यह मुसीबि आई होिी
झपट कर तिपट जािी िुम उनसे
और उनको अपनी र्रमाई देिी ।
सोच - सोच रह जािी मन में
क्या करूाँ और करूाँ मैं कै से
कोस सैकडोिं दू र हैं मुझसे
मदद मैं अपनी पहुाँचाऊिं कै से ।
इसी िरह से रमर्ी िुमने
कई रािें जार् कर काटी हैं
इसीतिए िाि हुई आाँखें
और झर - झर अश्रु बहािी हैं ।
आज खुशी से िुम पार्ि हो र्यी
तप्रयिम से िेरी जो नजर तमिी
िेरी आाँखोिं से बहकर ये िािी
िेरे र्ािोिं पर खूब क्तखिी ।
िेरे आस - पास आतशक हैं पार्ि
जो सोच रहा है उनका मन
िेरे र्ाि िाि हुए हैं शमग से
देख सामने अपना तप्रयिम ।
44. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
नेता
नेिा नहीिं शासक हैं ये
प्रशासक नहीिं शोषक हैं ये
नेिा िो जनिा का नेिृत्व तकया करिे हैं
ये शासक हैं जनिा पर राज तकया करिे हैं
कहने को िो देश सबसे बडा िोकििंि है
पर यहााँ पर सबसे बडा भृष्ट् ििंि है
जहााँ देखो तजधर देखो बस िुटेरे ही िुटेरे हैं
हर र्िी हर मुहल्ला बस इनके ही फे रे हैं
जनिा को िूट कर इन्ोनें अपनी कोतठयााँ भरी हैं
चाहे तजस काि में देखो बस जनिा ही मरी है
देश को िूटकर इन्ोनें तकया सफाया है
देश का धन तवदेशोिं में जमा कराया है
नेिाओिं की िो बस बाि ही तनरािी है
कोतठयााँ भरी हैं इनकी जनिा का घर खािी है
महान की पदवी नेिाओिं को दी जािी है
महान िो जनिा है जो सदैव पीसी जािी है
ऐशो आराम में नेिाओिं का जवाब नहीिं
धन दौिि का इनके यहााँ कोई तहसाब नहीिं
िूटने के इनके िरीके भी तकिने तनरािे हैं
प्रशासक पूिंजीपति सब इनके पािे हैं
बािें बनाने में इनका कोई सानी नहीिं है
नेिाओिं का काटा मािंर्िा पानी नहीिं है
45. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
धमग के नाम पर ये जनिा को िडािे हैं
जाति और क्षेि के नाम पर उनको तभडािे हैं
भाषा के नाम पर ये जनिा को बािंटिे हैं
जनिा को तभडाकर ये अपनी फसि काटिे हैं
आम आदमी टरेन में िटककर सफर करिे हैं
ये एयर किं डीशिंड कोच में ऐश करिे हैं
आम आदमी आसमान में हवाई जहाज उडिा देखिे हैं
पर पैसे वािे हवाई जहाज से अदभुि नजारे देखिे हैं
तजिनी भोिी जनिा है उिना चािाक ये नेिा है
जनिा िो भूखोिं मरिी ये सब कु छ उनका िेिा है
कॉरपोरेट जर्ि है इनका ये कॉरपोरेट जर्ि के हैं
सारी जनिा मछिी जैसी ये बर्ुिा भर्ि से हैं
पातटगयााँ हैं अनेक इनकी अनेक पाटी हैं एक
सरकार चाहे तजसकी हो ये सारे ठर् हैं एक
तकिना सुनायें इनकी कहानी
भृष्ट्ाचार अनाचार पोषक हैं ये
नेिा नहीिं शासक हैं ये
प्रशासक नहीिं शोषक हैं ये
46. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
जीवन
जीवन है एक अनुपम डर ामा
आज यहााँ कि और कहीिं जाना ।
चाहे कोई तकिने कमग बनाये
चाहे कोई तकिने धमग िुटाये
तजस तदन आकर डािे घेरा
सब रह जाएाँ िेरे ििंबू और डेरा
रह नहीिं सकिा तजसको है जाना
जीवन है एक अनुपम डर ामा
आज यहााँ कि और कहीिं जाना
दुतनयााँ के हैं खेि तनरािे
समझ न पािे इन्ें मिवािे
खेि तदखाए आकर मदारी
सब खेि देखें बनकर अनारी
समझ न आिा खेि यह पुराना
आज यहााँ कि और कहीिं जाना
जीवन है एक अनुपम डर ामा ।
47. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
प्रेि की गली
आज हमें यहााँ खुतशयााँ मनाना
प्रेम की र्िी को फू िोिं से सजाना ।
चााँदनी रािोिं में िुझको है देखा
अिंधेरे में भी हमने, पाई िेरी रेखा
आज यहााँ हमें रेखा बनाना
प्रेम की र्िी को फू िोिं से सजाना
आज यहााँ हमें खुतशयााँ मनाना ।
बहुि बाट देखी समय न आया
िरसा न कोई ऐसा हमें िरसाया
अब चाहे तकिना हमें िरसाना
प्रेम की र्िी को फू िोिं से सजाना
आज यहााँ हमें खुतशयााँ मनाना ।
आज यहााँ है खुतशयोिं का मेिा
दे रहे बाद इसके दुख भी धके िा
48. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
मेिे में आज हमें बतर्या क्तखिाना
प्रेम की र्िी को फू िोिं से सजाना
आज यहााँ हमें खुतशयााँ मनाना ।
प्रेम की र्िी को फू िोिं से सजाना ॥
49. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
ििम और नैहतकता
िुम कहिे हो धमग बडा है
मैं कहिा हूाँ जीवन
िेरा सब कु छ है ईश्वर
मेरा है प्राकृ ि जीवन ।
धमग नाम है अिंधतवश्वास का
मनुष्य ने तजसको पैदा तकया
जीवन िो है एक अतवचि धारा
तजसने मानव को जन्म तदया ।
धमग नाम है रुतढवाद का
जीवन अतवकि कमग है
धमग में होिी अकमगण्यिा
पररविगन जीवन का ममग है ।
धमग में िो ईश्वर होिा
जो शान्त मनुष्य को करिा है
कू प मिंडू किा भरी है तजसमें
जो अिंधकार को भरिा है ।
जीवन है एक अतवचि धारा
जो र्ति समाज को देिी है
मानविा जब होिी पैदा
आनन्द मनुष्य को देिी है ।
धमग समाज से है बनिा
जीवन समाज का तनमागर् करे
50. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
नैतिकिा से है समाज चिे
और धमग समाज में भरम भरे ।
धमग तवश्वास का बिन है
जो ईश्वर का तनमागर् करे
नैतिकिा तनयमोिं का पािन
जो मानव का कल्यार् करे ।
अिर् - अिर् हैं ईश्वर सबके
जो समाज को अिर् करे
कहीिं पर अल्लाह कहीिं र्ॉड है
कहीिं पर ईश्वर नाम धरे ।
मिंतदर, मक्तिद और चचग से
के वि सबके धमग पिे
मानविा है सबसे ऊपर
तजससे जीवन समाज चिे ।
खुदा ने आदमी को तकया है पैदा
या आदमी ने पैदा तकया खुदा
कौन है पैदायश तकसकी
यह है तकसी को नहीिं पिा ।
धमग के नाम से पाखिंड का
रोजर्ार चिा करिा है
मानविा ऐसी चीज है तजससे
समाज का तनमागर् हुआ करिा है ।
दुतनया कहिी धमग तजसे
वह शैिान का मायाजाि है
मानविा की बू तजसमें तमििी नहीिं
बस भ्रम ही भ्रम और मायाजाि है ।
मानविा ही एक रूप है
जो समाज को एक करे
प्यार ही तजसका मूि मन्त्र है
जो सबको सबका 'तकन्थ' करे ।
51. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
हवषिर िनुष्य
तवषधर बहुि ख़िरनाक होिा है
क्योिंतक उसमें तवष क़ा भिंडार होिा है
इसतिए हम सदा
उससे बहुि दू र रहा करिे हैं
पर ये बाि और है तक अपने इिाज के तिए
उसके तवष का उपयोर् करिे हैं ।
तवषधर िो कभी - कभी
और वो भी जब कोई उसे छे डिा है
िब ही उसे काटिा है
और उसी की जान िेिा है
हमारे समाज में िो अनेक तवषधर हैं
तजन्ें हम महान कहिे हैं
वो सब प्रतितदन अपने ही अनतर्नि
तनदोष भाइयोिं की जान िेिे हैं
तफर भी न जाने क्योिं हम सब
वजाय उनके सर को कु चिने के
उन्ें आदरर्ीय और महान कहिे हैं ।
दोष उनका कम और हमारा अतधक है
हमने ही उनको जहरीिा बनाया है
उनके र्िि कदम उठिे देख
52. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
कभी रोका नहीिं
तवष को उर्ििे देख
कभी टोका नहीिं
उन्ोनें बडा आदमी या नेिा बनकर
हमारे सामने समस्याओिं का
पहाड खडा कर तदया
और जब चाहा, जैसा चाहा
हमारा प्रयोर् कर अपना
उल्लू सीधा कर तिया ।
हम अपने ही हाथोिं अपने ही
पैरोिं पर कु ल्हाडी मार रहे हैं
तजसका फायदा हमारे दुश्मन,
हमारा मसीहा बनकर उठा रहे हैं
यतद यही हाि रहा िो एक तदन
हम अपनी पहचान र्वािं बैठें र्े
और हम के वि पहचान ही नहीिं
अपना मान- सम्मान भभ र्वािं बैठें र्े
और िब याद आयेंर्े हमको
अम्बेडकर, आजाद, तबक्तस्मि, भर्ि
जब सब कु छ अपना
हम िुटा बैठें र्े ।
अरे ओ! मक्कार दुष्ट् शैिानोिं
अब िो समय की चाि पहचानो
और अपने मन का जहर तमटाकर
समाज में भाई चारा, समानिा
शाक्तन्त और प्रेम का सिंचार करो
क्षेिवाद, भाषावाद, जातिवाद
और धमग - वाद को त्यार्कर
समाज में मानविा की भावना भरो ।
आििंकवाद और िूटपाट का
भ्रष्ट्ाचार और बिात्कार का
अत्याचार िुम खिम करो
सभी रहे प्रेम से यहााँ पर
इसतिए सबको सबका ‘तकन्थ’ करो
िभी हम सब कहिाएिं र्े महान और िभी होर्ा समाज का कल्यार् ।
53. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
पापा की कलि
शब्द मेरे पापा के होिंर्े
मैं पापा की किम बनूाँर्ी
रचना होर्ी मेरे पापा की
तफर मैं रचना खूब तिखूाँर्ी
ईष्याग, द्वेष और नफरि को
हम जर् से दू र भर्ाएाँ र्े
छु आ - छू ि और ऊाँ च - नीिंच का
भेद तमटाकर भाई चारा िायेंर्े
धमग - जाति का भेद तमटाकर
अमीर र्रीब तमटाएिं र्े
प्यार की सब कोई भाषा बोिे
ऐसा सुिंदरिम सिंसार रचूिंर्ी
शब्द मेरे पापा के होिंर्े
मैं पापा की किम बनूाँर्ी
जहााँ पर होर्ी मािं की ममिा
और तपिा का प्यार जहााँ
भाई चारा भाव भी होर्ा
ऐसा रचूिंर्ी मैं सारा जहााँ
नारी पुरुष बराबर होिंर्े
कोई न होर्ा भेद वहााँ
सब कोई सबकी करेर्ा इज्जजि
54. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
मैं जर् में अनुपम प्यार भरूिं र्ी
शब्द मेरे पापा की होिंर्े
मैं पापा की किम बनूाँर्ी
मािं बहनोिं की जहााँ इज्जजि होर्ी
और भाई का होर्ा प्यार जहााँ
ज्ञान की जहााँ पर बहेंर्ी नतदयााँ
होर्ा र्ुरु - तशष्य का मान जहााँ
तवद्या पाकर तवद्याथी कोई
ना तवद्या की अथी ढोयेर्ा
मेहनि से वह भी काम करेर्ा
और जर् में नाम कमायेर्ा
जहााँ आनन्द का सार्र होर्ा
ऐसा मैं सिंसार रचूिंर्ी
शब्द मेरे पापा के होिंर्े
मैं पापा की किम बनूाँर्ी
मानविा को हर कोई पािे
और दानविा को दू र करे
मैं ही हूाँ सभी कु छ यहााँ पर
ना कोई ऐसा र्ुरूर करे
मैं हूाँ सबकी, सब कोई मेरे
ऐसा मैं प्रचार करूाँ र्ी
‘तप्रयम्वदा’ नाम है मेरा
मैं सबको सबका ‘तकन्थ’ करूाँ र्ी
शब्द मेरे पापा के होिंर्े
मैं पापा की किम बनूाँर्ी
ना कोई होर्ा भ्रष्ट् जहााँ पर
और भ्रष्ट्ाचार का होर्ा नाम नहीिं
िूट - पाट और आििंक का
जहााँ होर्ा तबिु ि काम नहीिं
बिात्कार और अत्याचार का
जहााँ पर होर्ा कििंक नहीिं
मानव मानव को बस मानव समझे
ऐसा मैं सिंसार रचूिंर्ी, शब्द मेरे पापा के होिंर्े, मैं पापा की किम बनूाँर्ी
55. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
िेरा जीवन
जीवन मेरा एक नातदया की धारा
ना कोई मिंतजि ना कोई तकनारा
मन है चिंचि जैसे बादि
नयन मेरे जैसे कािा काजि
हवा का रुख़ तजधर को होिा
बादि का मुख उधर ही होिा
झीि सी र्हरी आाँखें मेरी
जैसे हो आकाश में िारा
जीवन मेरा एक नातदया की धारा
ना कोई मिंतजि ना कोई तकनारा
बदन मेरा जैसे नातर्न कोई
चाि भी मेरी नातर्न वािी
मुखडा मेरा चााँद का टुकडा
तबक्तन्दया की भी चमक तनरािी
जब भी चििी ऐसे चििी
जैसे चििा नार् हो कारा
जीवन मेरा एक नातदया की धारा
ना कोई मिंतजि ना कोई तकनारा
के श मेरे हैं कािे ऐसे
र्र्न में छाये बादि जैसे
के श मैं खोिूिं जब भी अपने
छायें मुख पर जैसे नीिंद में सपने
56. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
सारे मुख पर ऐसे फै िें
ढकिें मुख मेरा प्यारा - प्यारा
जीवन मेरा एक नातदया की धारा
ना कोई मिंतजि ना कोई तकनारा
कानोिं में कुिं डि चमके ऐसे
र्र्न में तबजिी दमके जैसे
ऋिुराज बसिंि जब - जब आये
मन में ये अति प्रीि बढाए
तवरह में पीि वर्ग हो जािा
फू िोिं भरा जैसे खेि हो सारा
जीवन मेरा एक नातदया की धारा
ना कोई मिंतजि ना कोई तकनारा
र्मी में िन कु म्हिा जािा
जैसे सूख जािी हैं नतदयााँ
प्यार को मेरा मन है िरसे
जैसे िरसे जि को नतदयााँ
काश ऐसे में आिे तप्रयिम
और िन को करिे ठिं डा सारा
जीवन मेरा एक नातदया की धारा
ना कोई मिंतजि ना कोई तकनारा
जब - जब आिी वषाग प्यारी
खुतशयािं िािी जीवन में सारी
वषाग के पानी से भरिी नतदयााँ
चिंचि हो इठिािी नतदयााँ
बिखािी इठिािी मैं भी
चििी जैसे पवन अति प्यारा
जीवन मेरा एक नातदया की धारा
ना कोई मिंतजि ना कोई तकनारा
कर तप्रयिम की याद मैं बैठी
घर की छि पर मैं अके िी
खोया - खोया देख कर मुझको
छे डें आकर सारी सहेिी
तकसकी याद में खोई पर्िी
कहााँ खोया िेरा मन है प्यारा
जीवन मेरा एक नातदया की धारा
ना कोई मिंतजि ना कोई तकनारा
57. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
नेता और नैहतकता
कटिे हैं सर जवानोिं के देश की सरहदोिं पर
दुश्मनोिं से िडिे-िडिे
थकिी नहीिं जवािं नेिाओिं की
अपनी बहादुरी बयााँ करिे-करिे
दुश्मनोिं से िो बस जवान ही िडा करिे हैं
नेिा िोर् िो दू र ही से आदेश तदया करिे हैं
नेिा खािे हैं घूस हतथयारोिं की खरीद में
र्ोिी खािे हैं सीने पर जवान दुश्मनोिं की
नेिा िो बस कू टनीति ही तकया करिे हैं
ये िो जवान हैं जो सीधे युद्ध तकया करिे हैं
नेिा िोर् ही हैं जो पूिंजीपति,उद्योर्पति
और िुटेरोिं की रक्षा तकया करिे हैं
ये िो देश के जवान ही हैं जो
इन सबकी रक्षा तकया करिे हैं
आम जनिा को िो दुश्मनोिं से
न िब डर था, न अब है
ये िो बस अपने ही हैं जो
उनके साथ दर्ा तकया करिे हैं
मेरा मकसद तकसी जवान अथवा नेिा की
नैतिकिा को कम या अतधक करने का नहीिं
मैं िो चाहिा हूाँ बस इिना यही
तक नेिा िोर् कब िक अपने तिए सोचेंर्े?
कभी िो सोचें देश के ग़रीब, तकसानोिं के तिए
कभी िो सोचें मजदूर और जवानोिं के तिए |
58. रचनायें चचनगारी हरी तसिंह तकन्थ
References:
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(लेखि Google और उन भी ल ग िं ि धन्यवाद देना चाहता है, तजनकी छतवयािं उन्ोनें अपने
िेखन में उपयोर् की हैं।).
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