SlideShare a Scribd company logo
1 of 14
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
(तृतीय भाग )
डॉ. दीप्तत वाजपेयी
एसोससएट प्रोफे सर (संस्कृ त ववभाग)
कु मारी मायावती राजकीय महिला स्िातकोत्तर मिाववद्यालय
बादलपुर
गौतम बुध िगर
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
अध्ययि के उद्देश्य
• वैदिक सादित्य के अंतर्गत उपनिषिों का सामान्य अध्ययि करिा I
• कठोपनिषि का ववशिष्ट ज्ञाि प्राप्त करिा I
• वैदिक संस्कृ त सादित्य की िब्िावली से पररचित िोिा I
• भारतीय िािगनिक तत्वों से सुपररचित िोिा I
• श्रेय और प्रेय मार्ग का समुचित बोध िोिा I
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
देवैरत्रावप ववचिककप्ससतं पुरा ि हि सुवेज्ञेयमणुरेष धमम:।
अन्यं वरं िचिके तो वृणीष्व मा मोपरोससीरनत मा सृजैिम् ॥२१॥
शब्दाथम: िचिके त:= िे िचिके ता; अत्र पुरा िेवै: अवप ववचिककत्त्सतम ् =यिां (इस ववषय में) पिले िेवताओं द्वारा
भी सन्िेि ककया र्या; दि एष: धमग: अणु: =क्योकक यि ववषय अत्यन्त सूक्ष्म िै; ि सुववज्ञेयम् = सरल प्रकार से
जाििे के योग्य ििीं िै; अन्यम ् वरम ् वृणीष्व = अन्य वर मांर् लो; मा मा उपरोत्सी: मुझ पर िवाव मत डालो;
एिम ् मा अनतसृज = इस (आत्मज्ञाि-सम्बन्धी वर )को मुझे छोड़ िो।
अथम: िे िचिके ता, इस ववषय में पिले भी िेवताओं द्वारा सन्िेि ककया र्या था, क्योकक यि ववषय अत्यन्त् सूक्ष्म
िै और सुर्मता से जाििे योग्य् ििीं िै। तुम कोई अन्य वर मांर् लो। मुझ पर बोझ मत डालो। इस आत्मज्ञाि
संबंधी वर को मुझे छोड़ िो।
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
देवैरत्रावप ववचिककप्ससतं ककल सवं ि मृसयों यत्र सुववज्ञेममासथ।
वक्ता िास्य सवादृगन्यों ि लभ्यो िान्यो वरस्तुल्य एतस्य कप्श्ित् ॥२२॥
शब्दाथम: मृत्यों =िे यमराज;त्वम ् यत् आत्थ = आपिे जो किा; अत्र ककल िेवै: अवप ववचिककत्त्सतम ् = इस ववषय
में वास्तव में िेवताओं द्वारा भी संिय ककया र्या; ि ि सुववज्ञेयम ् = और वि सुववज्ञेय भी ििीं िै; ि अस्य
वक्ता = और इसका वक्ता; त्वादृक् अन्य: लभ्य: = आपके सृिि अन्य कोई प्राप्त ििीं िो सकता; एतस्य तुल्य:
अन्य: कत्चित् वर: ि =इस (वर) के समाि अन्य कोई वर ििीं िै।
अथम: िचिके ता िे किा-िे यमराज, आपिे जो किा कक इस ववषय में वास्तव में िेवताओं द्वारा भी संिय ककया
र्या और वि (ववषय) सुर्म भी ििीं िै। और, इसका उपिेष्टा आपके तुल्य अन्य कोई लभ्य ििीं िो सकता।
इस (वर) के समाि अन्य कोई वर ििीं िै।
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
शतायुष: पुत्रपौत्राि् वृणीष्व बिूि् पशूि् िप्स्तहिरण्यमश्वाि्।
भूमेममिदायतिं वृणीष्व स्वयं ि जीव शरदो यावहदच्छसस ॥२३॥
शब्दाथम: ितायुष: =ितायुवाले; पुत्रपौत्राि् = बेटे पोतों को; बिूि पिूि् = बिुत से र्ौ आदि पिुओं को;
ित्स्तदिरण्यम ् = िाथी और दिरण्य (स्वर्ग)को; अचवाि वृणीष्व =अचवों को मांर् लो; भूमें: मित् आयतिम ्
= भूशम के मिाि् ववस्तार को; वृणीष्व = मांर् लो; स्वयम ् ि = तुम स्वयं भी; यावत् िरि: इच्छशस जीव
= जीवि िरद् ऋतुओं/वषों तक इच्छा करो, जीववत रिो।
अथम: ितायु (िीर्ागयु )पुत्र-पौधों को, बिुत से (र्ौ आदि) पिुओं को, िाथी-सुवणग को, अचवो को मांर् लो, भूशम
के मिाि् ववस्तार को मांर् लो, स्वयं भी त्जतिे िरद् ऋतुओं (वषो) तक इच्छा िो, जीववत रिो।
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
एतत्तुल्यं यहद मन्यसे वरं वृणीष्व ववत्तं चिरजीववकां ि।
मिाभूभौ िचिके तस्सवमेचध कामािां सवा कामभाजं करोसम॥२४॥
शब्दाथम: िचिके ता:िे िचिके ता; यदि त्वम् एतत् तुल्यम् वरम् मन्यसे वृणीष्व =यदि तुम इस आत्मज्ञाि के
समाि (ककसी अन्य) पर को मािते िो, मांर् लो; ववत्तं चिरजीववकाम ् = धि को और अिन्तकाल तक
जीवियापि के साधिों को; व मिभूमौ =और वविाल भूशम पर; एचध= फलो-फू लो, बढो, िासि करो; त्वा
कामािाम ् कामभाजम ् करोशम = तुम्िें (समस्त कामिाओं का उपभोर् करिेवाला बिा िेता िूूँ।
अथम: िे िचिके ता, यदि तुम इस आत्मज्ञाि के समाि (ककसी अन्य) वर को मािते िो, मांर् लो –धि,
जीवियापि के साधिों को और वविाल भूशम पर (अचधपनत िोकर) वृद्चध करो, िासि करो। तुम्िें (समस्त)
कामिाओं का उपभोर् करिेवाला बिा िेता िूूँ।
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
ये ये कामा दुलमभा मसयमलोके सवामि् कामांश्छन्दत: प्राथमयस्व।
इमा रामा: सरथा: सतूयाम ि िीदृशा लम्भिीया मिुष्यै:।
आसभममसप्रत्तासभ: पररिारयस्व् िचिके तो मरणं मािुप्राक्षी ॥२५॥
शब्दाथम: ये ये कामा: मत्यगलोके िुलगभा: (सत्न्त) =जो-जो भोर् मिुष्यलोक में िुलगभ िैं; सवागि् कामाि् छन्ित:
प्राथगयस्व = उि सम्पूणग भोर्ो को इच्छािुसार मांर् लो; सरथा: सतूयाग: इमा: रामा: =रथोंसदित, तूयों (वाद्यों,
वाजों )सदित, इि स्वर्ग की अप्सराओं को; मिुष्यै: ईदृिा: ि दि लम्भिीया: =मिुष्यों द्वारा ऐसी त्स्त्रय ॉँ प्राप्य
ििीं िैं, मत्प्रत्ताशभ: आशभ: वपरिारयस्व = मेरे द्वारा प्रित्त इिसे सेवा कराओ; िचिके त:= िे िचिके ता;मरणं मा
अिुप्राक्षी:=मरण (के संबंध में प्रचि को) मत पूछो।
अथम: िे िचिके ता, जो-जो भोर् मृत्युलोक में िुलगभ िैं, उि सबको इच्छािुसार मांर् लो-रथोंसदित, वाद्योंसदित इि
अप्सराओं को (मांर् लो), मिुष्यों द्वारा निचिय िी ऐसी त्स्त्रयां अलभ्य िैं। इिसे अपिी सेवा कराओ, मृत्यु के
संबंध में मत पूछो।
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
श्वो भावा मसयमस्य यदन्तकै तत् सवेप्न्ियाणां जरयप्न्त तेज:।
अवप सवमम् जीववतमल्पेमेव तवैव वािास्तव िृसयगीते ॥२६॥
शब्दाथम: अन्तक =िे मृत्यों; चवो भावा:= कल तक िी रििेवाले अथागत िचवर, क्षणणक, क्षणभंर्ुर ये भोर्; मत्यगस्य्
सवेत्न्ियाणाम ् यत् तेज: एतत् जरयत्न्त = मरणिील मिुष्य की सब इत्न्ियों का जो तेज (िै) उसे क्षीण कर िेते िैं;
अवप सवगम ् जीववतम ् अल्पम ् एव = इसके अनतररक्त समस्त आयु अल्प िी िै; तव वािा: िृत्यर्ीते तव एव =
आपके रथादि वािि, स्वर्ग के िृत्य और संर्ीत आपके िी (पास) रिें।
अथम: िे यमराज, (आपके द्वारा वणणगत) कल तक िी रििेवाले (एक िी दिि के , क्षणभंर्ुर) भोर् मरणधमाग मिुष्य की
सब इत्न्ियों के तेज को क्षीण कर िेते िैं। इसके अनतररक्त समस्त आयु अल्प िी िै। आपके रथादि वािि, स्वर्ग के
िृत्य और संर्ीत आपके िी पास रिें।
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
ि ववत्तेि तपमणीयो मिुष्यो लतस्यामिे ववत्तमिाक्ष्म िेत् सवा।
जीववष्यामो यावदीसशष्यसस सवं वरस्तु मे वरणीय: स एव॥२७॥
शब्दाथम: मिुष्य: ववत्तेि तपगणीय: ि = मिुष्य धि से कभी तृप्त ििीं िो सकता; िेत्= यदि, जब कक; त्वा
अिाक्ष्म =(िमिे) आपके ििगि पा शलये िैं; ववत्तम ् लप्स्यामिे = धि को (तो िम) पा िी लेंर्े; त्वम ् यावद्
ईशिष्यशस = आप जब तक ईिि(िासि) करते रिेंर्े, जीववष्याम:= िम जीववत िी रिेंर्े; मे वरणीय: वर: तु
स एव = मेरे मांर्िे के योग्य वर तो वि िी िै।
अथम: मिुष्य धि से तृप्त ििीं िो सकता। जब कक (िमिे) आपके ििगि पा शलये िैं, धि तो िम पा िी लेंर्े।
आप जब तक िासि करते रिेंर्े, िम जीववत भी रि सकें र्े। मेरे मांर्िे के योग्य वर तो वि िी िै।
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
अजीयमताममृतािामुपेसय जीयमि् मसयमः व्कधःस्थः प्रजािि्।
असभध्यायि् वणमरनतप्रमोदािदीर्घे जीववते को रमेत ॥२८॥
शब्दाथमः जीयगि् मत्यगः = जीणग िोिेवाला मरणधमाग मिुष्य; अजीयगताम ् अमृतािाम ् = जीणगता को प्राप्त ि
िोिेवाले अमृतों (िेवताओं) की सत्न्िचध में, निकतटता में; उपेत्य= प्राप्त िोकर, पिुूँिकर; प्रजािि्= आत्मतत्त्व
की मदिमा का जाििेवाला अथवा उि (िेवताओं) से प्राप्त िोिेवाले लाभ को जाििेवाला; व्कधःस्थः= िीिे पृथ्वी
पर त्स्थत िोकर; कः= कौि; वणगरनतप्रमोिाि् अशभध्यायि्=रूप, रनत और भोर्सुखों का ध्याि करता िुआ
(अथवा उिकी व्यथगता पर वविार करता िुआ); अनतिीर्े जीववते रमेत=अनतिीर्ग काल तक जीववत रििे में रुचि
लेर्ा।
अथम: जीणग िोिेवाला मरणधमाग मिुष्य, जीणगता को प्राप्त ि िोिेवाले िेवताओं (अथवा मिात्माओं) के समीप
जाकर, आत्मववद्या से पररचित िोकर, (अथवा मिात्माओं से प्राप्त िोिेवाले लाभ को सोिकर) पृथ्वी पर त्स्थत
िोिेवाला, कौि भौनतक भोर्ों का स्मरण करता िुआ (अथवा उिकी निरथगकता को समझता िुआ) अनतिीर्ग
जीवि में सुख मािेर्ा I
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
यप्स्मप्न्िदं ववचिककससप्न्त मृसयो यससाम्पराये मिनत ब्रूहि िस्तत्।
योऽयं वरो गूढमिुप्रववष्टो िान्यं तस्मान्िचिके ता वृणीते ॥२९॥
शब्दाथमः मृत्यो=िे यमराज; यत्स्मि् इिम ् ववचिककत्सत्न्त= त्जस समय यि ववचिककत्सा (सन्िेि) िोती िै; यत्
मिनत साम्पराये = जो मिाि् परलोक-ववज्ञाि में िै; तत्=उसे; िः ब्रूदि=िमें बता िो; यः अयम् र्ूढम् अिुप्रववष्टः
वरः= जो यि वर (अब) र्ूढ रिस्यमयता को प्रवेि कर र्या िै (अचधक रिस्यपूणग एवं मित्त्वपूणग िो र्या िै);
तस्मात् अन्यम ्= इससे अनतररक्त अन्य (वर) को; िचिके ता ि वृणीते= िचिके ता ििीं माूँर्ता।
अथम: िे यमराज, त्जस ववषय में सन्िेि िोता िै, जो मिाि् परलोक-ववज्ञाि में िै, उसे िमें किो। जो यि (तृतीय
वर) वि िै, (अब) र्ूढ रिस्यमयता में प्रवेि कर र्या िै (अचधक रिस्यपूणग िो र्या िै)। उसके अनतररक्त अन्य
(वर को) िचिके ता ििीं माूँर्ता।
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
स्मरणीय बबंदु
• कठोपनिषि कृ ष्ण यजुवेि िाखा का मित्वपूणग उपनिषि िै I
• कठोपनिषि के रिनयता कठ िाम के आिायग को मािा जाता िै I
• कठोपनिषि िो अध्यायों में ववभक्त िै,प्रत्येक अध्याय में तीि- तीि बत्ल्लयां िैं I
• कठोपनिषि यम िचिके ता संवाि के रूप में आत्म ववषयक ज्ञाि का निििगि कराता िै I
• कठोपनिषि के अंतर्गत प्रथम अध्याय की प्रथम बल्ली में 29 मंत्र, द्ववतीय बल्ली में 25 मंत्र
एवं तृतीय बल्ली में 17 मंत्र िै, इस प्रकार कठोपनिषि के प्रथम अध्याय में कु ल 71 मंत्र िै I
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
मिसवपूणम प्रश्िावली
• यजुवेि ककि िो िाखाओं में ववभक्त िै ?
• िचिके ता यमराज से तृतीय वरिाि के रूप में क्या मांर्ता िै ?
• प्रथम बल्ली के अंनतम मंत्रों में यमराज िचिके ता को क्या क्या प्रलोभि िेते िैं ?
• िचिके ता यमराज के द्वारा दिए जा रिे प्रलोभिों का ककस प्रकार खंडि करता िै ?
• प्रथम अध्याय की प्रथम बल्ली के अंनतम मंत्र में िचिके ता यमराज से क्या
अिुरोध करता िै ?
• कठोपनिषि के प्रथम अध्याय की प्रथम बल्ली में कु ल ककतिे मंत्र िैं ?
कठोपनिषद
प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली
THANKYOU,
DR. DEEPTI BAJPAI
ASSOCIATEPROFESSOR
K.M.G.G.P.G.C.
BADALPUR,
GATUMBUDHNAGAR

More Related Content

What's hot

Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic Virag Sontakke
 
Religion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic periodReligion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic periodVirag Sontakke
 
Roohe yeeshu masiha tu aa1
Roohe yeeshu masiha tu aa1Roohe yeeshu masiha tu aa1
Roohe yeeshu masiha tu aa1arslanniyamat
 
व्याकरण Hindi grammer
व्याकरण Hindi grammerव्याकरण Hindi grammer
व्याकरण Hindi grammerpriya dharshini
 
सर्वनाम
सर्वनामसर्वनाम
सर्वनामKanishk Singh
 
हिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरणहिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरणAdvetya Pillai
 
Hindi file grammar
Hindi file grammarHindi file grammar
Hindi file grammarshabanappt
 
त्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptx
त्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptxत्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptx
त्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptxTrimbakeshwarTemple
 

What's hot (9)

Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic
 
सर्वनाम
सर्वनामसर्वनाम
सर्वनाम
 
Religion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic periodReligion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic period
 
Roohe yeeshu masiha tu aa1
Roohe yeeshu masiha tu aa1Roohe yeeshu masiha tu aa1
Roohe yeeshu masiha tu aa1
 
व्याकरण Hindi grammer
व्याकरण Hindi grammerव्याकरण Hindi grammer
व्याकरण Hindi grammer
 
सर्वनाम
सर्वनामसर्वनाम
सर्वनाम
 
हिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरणहिंदी व्याकरण
हिंदी व्याकरण
 
Hindi file grammar
Hindi file grammarHindi file grammar
Hindi file grammar
 
त्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptx
त्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptxत्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptx
त्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली पूजा के प्रकार.pptx
 

Similar to Kathopnishad pratham adhyaya (part-3)

Sutra 36-53
Sutra 36-53Sutra 36-53
Sutra 36-53Jainkosh
 
Sutra 8-35
Sutra 8-35Sutra 8-35
Sutra 8-35Jainkosh
 
i2we gurukul (1).pptx YOGA NET UGC,SCIENCE STUDENTS,NURSHING AND ALLIED HEALT...
i2we gurukul (1).pptx YOGA NET UGC,SCIENCE STUDENTS,NURSHING AND ALLIED HEALT...i2we gurukul (1).pptx YOGA NET UGC,SCIENCE STUDENTS,NURSHING AND ALLIED HEALT...
i2we gurukul (1).pptx YOGA NET UGC,SCIENCE STUDENTS,NURSHING AND ALLIED HEALT...MINITOSS MEDICINES
 
Adhyatma अध्यात्म
Adhyatma अध्यात्मAdhyatma अध्यात्म
Adhyatma अध्यात्मDr. Piyush Trivedi
 
Gunsthan 1-2
Gunsthan 1-2Gunsthan 1-2
Gunsthan 1-2Jainkosh
 
Yoga Philosophy.pptx
Yoga Philosophy.pptxYoga Philosophy.pptx
Yoga Philosophy.pptxVeenaMoondra
 
Pran Prarupna
Pran PrarupnaPran Prarupna
Pran PrarupnaJainkosh
 
Paryaptti Prarupna
Paryaptti PrarupnaParyaptti Prarupna
Paryaptti PrarupnaJainkosh
 
Gati Margna
Gati MargnaGati Margna
Gati MargnaJainkosh
 
7 best yoga asanas for the healthy liver that detoxify your liver
7 best yoga asanas for the healthy liver that detoxify your liver7 best yoga asanas for the healthy liver that detoxify your liver
7 best yoga asanas for the healthy liver that detoxify your liverShivartha
 
Gherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptx
Gherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptxGherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptx
Gherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptxDr Shivam Mishra
 
Kashay Margna
Kashay MargnaKashay Margna
Kashay MargnaJainkosh
 
Kay Margna
Kay MargnaKay Margna
Kay MargnaJainkosh
 
Ashthabakra geeta in hindi kabya
Ashthabakra geeta in hindi kabyaAshthabakra geeta in hindi kabya
Ashthabakra geeta in hindi kabyaBhim Upadhyaya
 
Upyog Prarupna
Upyog PrarupnaUpyog Prarupna
Upyog PrarupnaJainkosh
 
Later vedik sacrifices
Later vedik sacrificesLater vedik sacrifices
Later vedik sacrificesVirag Sontakke
 
Pranayama प्राणायाम
Pranayama प्राणायामPranayama प्राणायाम
Pranayama प्राणायामDr. Piyush Trivedi
 
Indriya Margna
Indriya MargnaIndriya Margna
Indriya MargnaJainkosh
 

Similar to Kathopnishad pratham adhyaya (part-3) (20)

Sutra 36-53
Sutra 36-53Sutra 36-53
Sutra 36-53
 
Sutra 8-35
Sutra 8-35Sutra 8-35
Sutra 8-35
 
i2we gurukul (1).pptx YOGA NET UGC,SCIENCE STUDENTS,NURSHING AND ALLIED HEALT...
i2we gurukul (1).pptx YOGA NET UGC,SCIENCE STUDENTS,NURSHING AND ALLIED HEALT...i2we gurukul (1).pptx YOGA NET UGC,SCIENCE STUDENTS,NURSHING AND ALLIED HEALT...
i2we gurukul (1).pptx YOGA NET UGC,SCIENCE STUDENTS,NURSHING AND ALLIED HEALT...
 
Mimansa philosophy
Mimansa philosophyMimansa philosophy
Mimansa philosophy
 
Adhyatma अध्यात्म
Adhyatma अध्यात्मAdhyatma अध्यात्म
Adhyatma अध्यात्म
 
Gunsthan 1-2
Gunsthan 1-2Gunsthan 1-2
Gunsthan 1-2
 
Yoga Philosophy.pptx
Yoga Philosophy.pptxYoga Philosophy.pptx
Yoga Philosophy.pptx
 
Pran Prarupna
Pran PrarupnaPran Prarupna
Pran Prarupna
 
Paryaptti Prarupna
Paryaptti PrarupnaParyaptti Prarupna
Paryaptti Prarupna
 
Gati Margna
Gati MargnaGati Margna
Gati Margna
 
7 best yoga asanas for the healthy liver that detoxify your liver
7 best yoga asanas for the healthy liver that detoxify your liver7 best yoga asanas for the healthy liver that detoxify your liver
7 best yoga asanas for the healthy liver that detoxify your liver
 
SAANKHYA-1.odp
SAANKHYA-1.odpSAANKHYA-1.odp
SAANKHYA-1.odp
 
Gherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptx
Gherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptxGherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptx
Gherand Samhita By Dr Shivam Mishra .pptx
 
Kashay Margna
Kashay MargnaKashay Margna
Kashay Margna
 
Kay Margna
Kay MargnaKay Margna
Kay Margna
 
Ashthabakra geeta in hindi kabya
Ashthabakra geeta in hindi kabyaAshthabakra geeta in hindi kabya
Ashthabakra geeta in hindi kabya
 
Upyog Prarupna
Upyog PrarupnaUpyog Prarupna
Upyog Prarupna
 
Later vedik sacrifices
Later vedik sacrificesLater vedik sacrifices
Later vedik sacrifices
 
Pranayama प्राणायाम
Pranayama प्राणायामPranayama प्राणायाम
Pranayama प्राणायाम
 
Indriya Margna
Indriya MargnaIndriya Margna
Indriya Margna
 

More from Dr. Deepti Bajpai

Yajurveda Mai Prajapati Sukt
Yajurveda Mai Prajapati SuktYajurveda Mai Prajapati Sukt
Yajurveda Mai Prajapati SuktDr. Deepti Bajpai
 
Rigveda Mai Sarma Pani Samvad Sukt (10.108)
Rigveda Mai Sarma Pani Samvad Sukt (10.108)Rigveda Mai Sarma Pani Samvad Sukt (10.108)
Rigveda Mai Sarma Pani Samvad Sukt (10.108)Dr. Deepti Bajpai
 
Vishvamitra Nadi Samvad Sukt
Vishvamitra Nadi Samvad SuktVishvamitra Nadi Samvad Sukt
Vishvamitra Nadi Samvad SuktDr. Deepti Bajpai
 
Career Opportunities for Sanskrit Students
Career Opportunities for Sanskrit StudentsCareer Opportunities for Sanskrit Students
Career Opportunities for Sanskrit StudentsDr. Deepti Bajpai
 
ऋग्वेद में नासदीय सूक्त
ऋग्वेद में नासदीय सूक्तऋग्वेद में नासदीय सूक्त
ऋग्वेद में नासदीय सूक्तDr. Deepti Bajpai
 
Presentation on Mahakavi Bharvi
Presentation on Mahakavi BharviPresentation on Mahakavi Bharvi
Presentation on Mahakavi BharviDr. Deepti Bajpai
 
Presentation on Mahakavi kalidas
Presentation on Mahakavi kalidasPresentation on Mahakavi kalidas
Presentation on Mahakavi kalidasDr. Deepti Bajpai
 

More from Dr. Deepti Bajpai (9)

Rastra Abhivardhanam Sukt
Rastra Abhivardhanam SuktRastra Abhivardhanam Sukt
Rastra Abhivardhanam Sukt
 
Yajurveda Mai Prajapati Sukt
Yajurveda Mai Prajapati SuktYajurveda Mai Prajapati Sukt
Yajurveda Mai Prajapati Sukt
 
Atharvveda Mai Kaal Sukt
Atharvveda Mai Kaal SuktAtharvveda Mai Kaal Sukt
Atharvveda Mai Kaal Sukt
 
Rigveda Mai Sarma Pani Samvad Sukt (10.108)
Rigveda Mai Sarma Pani Samvad Sukt (10.108)Rigveda Mai Sarma Pani Samvad Sukt (10.108)
Rigveda Mai Sarma Pani Samvad Sukt (10.108)
 
Vishvamitra Nadi Samvad Sukt
Vishvamitra Nadi Samvad SuktVishvamitra Nadi Samvad Sukt
Vishvamitra Nadi Samvad Sukt
 
Career Opportunities for Sanskrit Students
Career Opportunities for Sanskrit StudentsCareer Opportunities for Sanskrit Students
Career Opportunities for Sanskrit Students
 
ऋग्वेद में नासदीय सूक्त
ऋग्वेद में नासदीय सूक्तऋग्वेद में नासदीय सूक्त
ऋग्वेद में नासदीय सूक्त
 
Presentation on Mahakavi Bharvi
Presentation on Mahakavi BharviPresentation on Mahakavi Bharvi
Presentation on Mahakavi Bharvi
 
Presentation on Mahakavi kalidas
Presentation on Mahakavi kalidasPresentation on Mahakavi kalidas
Presentation on Mahakavi kalidas
 

Kathopnishad pratham adhyaya (part-3)

  • 1. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली (तृतीय भाग ) डॉ. दीप्तत वाजपेयी एसोससएट प्रोफे सर (संस्कृ त ववभाग) कु मारी मायावती राजकीय महिला स्िातकोत्तर मिाववद्यालय बादलपुर गौतम बुध िगर
  • 2. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली अध्ययि के उद्देश्य • वैदिक सादित्य के अंतर्गत उपनिषिों का सामान्य अध्ययि करिा I • कठोपनिषि का ववशिष्ट ज्ञाि प्राप्त करिा I • वैदिक संस्कृ त सादित्य की िब्िावली से पररचित िोिा I • भारतीय िािगनिक तत्वों से सुपररचित िोिा I • श्रेय और प्रेय मार्ग का समुचित बोध िोिा I
  • 3. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली देवैरत्रावप ववचिककप्ससतं पुरा ि हि सुवेज्ञेयमणुरेष धमम:। अन्यं वरं िचिके तो वृणीष्व मा मोपरोससीरनत मा सृजैिम् ॥२१॥ शब्दाथम: िचिके त:= िे िचिके ता; अत्र पुरा िेवै: अवप ववचिककत्त्सतम ् =यिां (इस ववषय में) पिले िेवताओं द्वारा भी सन्िेि ककया र्या; दि एष: धमग: अणु: =क्योकक यि ववषय अत्यन्त सूक्ष्म िै; ि सुववज्ञेयम् = सरल प्रकार से जाििे के योग्य ििीं िै; अन्यम ् वरम ् वृणीष्व = अन्य वर मांर् लो; मा मा उपरोत्सी: मुझ पर िवाव मत डालो; एिम ् मा अनतसृज = इस (आत्मज्ञाि-सम्बन्धी वर )को मुझे छोड़ िो। अथम: िे िचिके ता, इस ववषय में पिले भी िेवताओं द्वारा सन्िेि ककया र्या था, क्योकक यि ववषय अत्यन्त् सूक्ष्म िै और सुर्मता से जाििे योग्य् ििीं िै। तुम कोई अन्य वर मांर् लो। मुझ पर बोझ मत डालो। इस आत्मज्ञाि संबंधी वर को मुझे छोड़ िो।
  • 4. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली देवैरत्रावप ववचिककप्ससतं ककल सवं ि मृसयों यत्र सुववज्ञेममासथ। वक्ता िास्य सवादृगन्यों ि लभ्यो िान्यो वरस्तुल्य एतस्य कप्श्ित् ॥२२॥ शब्दाथम: मृत्यों =िे यमराज;त्वम ् यत् आत्थ = आपिे जो किा; अत्र ककल िेवै: अवप ववचिककत्त्सतम ् = इस ववषय में वास्तव में िेवताओं द्वारा भी संिय ककया र्या; ि ि सुववज्ञेयम ् = और वि सुववज्ञेय भी ििीं िै; ि अस्य वक्ता = और इसका वक्ता; त्वादृक् अन्य: लभ्य: = आपके सृिि अन्य कोई प्राप्त ििीं िो सकता; एतस्य तुल्य: अन्य: कत्चित् वर: ि =इस (वर) के समाि अन्य कोई वर ििीं िै। अथम: िचिके ता िे किा-िे यमराज, आपिे जो किा कक इस ववषय में वास्तव में िेवताओं द्वारा भी संिय ककया र्या और वि (ववषय) सुर्म भी ििीं िै। और, इसका उपिेष्टा आपके तुल्य अन्य कोई लभ्य ििीं िो सकता। इस (वर) के समाि अन्य कोई वर ििीं िै।
  • 5. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली शतायुष: पुत्रपौत्राि् वृणीष्व बिूि् पशूि् िप्स्तहिरण्यमश्वाि्। भूमेममिदायतिं वृणीष्व स्वयं ि जीव शरदो यावहदच्छसस ॥२३॥ शब्दाथम: ितायुष: =ितायुवाले; पुत्रपौत्राि् = बेटे पोतों को; बिूि पिूि् = बिुत से र्ौ आदि पिुओं को; ित्स्तदिरण्यम ् = िाथी और दिरण्य (स्वर्ग)को; अचवाि वृणीष्व =अचवों को मांर् लो; भूमें: मित् आयतिम ् = भूशम के मिाि् ववस्तार को; वृणीष्व = मांर् लो; स्वयम ् ि = तुम स्वयं भी; यावत् िरि: इच्छशस जीव = जीवि िरद् ऋतुओं/वषों तक इच्छा करो, जीववत रिो। अथम: ितायु (िीर्ागयु )पुत्र-पौधों को, बिुत से (र्ौ आदि) पिुओं को, िाथी-सुवणग को, अचवो को मांर् लो, भूशम के मिाि् ववस्तार को मांर् लो, स्वयं भी त्जतिे िरद् ऋतुओं (वषो) तक इच्छा िो, जीववत रिो।
  • 6. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली एतत्तुल्यं यहद मन्यसे वरं वृणीष्व ववत्तं चिरजीववकां ि। मिाभूभौ िचिके तस्सवमेचध कामािां सवा कामभाजं करोसम॥२४॥ शब्दाथम: िचिके ता:िे िचिके ता; यदि त्वम् एतत् तुल्यम् वरम् मन्यसे वृणीष्व =यदि तुम इस आत्मज्ञाि के समाि (ककसी अन्य) पर को मािते िो, मांर् लो; ववत्तं चिरजीववकाम ् = धि को और अिन्तकाल तक जीवियापि के साधिों को; व मिभूमौ =और वविाल भूशम पर; एचध= फलो-फू लो, बढो, िासि करो; त्वा कामािाम ् कामभाजम ् करोशम = तुम्िें (समस्त कामिाओं का उपभोर् करिेवाला बिा िेता िूूँ। अथम: िे िचिके ता, यदि तुम इस आत्मज्ञाि के समाि (ककसी अन्य) वर को मािते िो, मांर् लो –धि, जीवियापि के साधिों को और वविाल भूशम पर (अचधपनत िोकर) वृद्चध करो, िासि करो। तुम्िें (समस्त) कामिाओं का उपभोर् करिेवाला बिा िेता िूूँ।
  • 7. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली ये ये कामा दुलमभा मसयमलोके सवामि् कामांश्छन्दत: प्राथमयस्व। इमा रामा: सरथा: सतूयाम ि िीदृशा लम्भिीया मिुष्यै:। आसभममसप्रत्तासभ: पररिारयस्व् िचिके तो मरणं मािुप्राक्षी ॥२५॥ शब्दाथम: ये ये कामा: मत्यगलोके िुलगभा: (सत्न्त) =जो-जो भोर् मिुष्यलोक में िुलगभ िैं; सवागि् कामाि् छन्ित: प्राथगयस्व = उि सम्पूणग भोर्ो को इच्छािुसार मांर् लो; सरथा: सतूयाग: इमा: रामा: =रथोंसदित, तूयों (वाद्यों, वाजों )सदित, इि स्वर्ग की अप्सराओं को; मिुष्यै: ईदृिा: ि दि लम्भिीया: =मिुष्यों द्वारा ऐसी त्स्त्रय ॉँ प्राप्य ििीं िैं, मत्प्रत्ताशभ: आशभ: वपरिारयस्व = मेरे द्वारा प्रित्त इिसे सेवा कराओ; िचिके त:= िे िचिके ता;मरणं मा अिुप्राक्षी:=मरण (के संबंध में प्रचि को) मत पूछो। अथम: िे िचिके ता, जो-जो भोर् मृत्युलोक में िुलगभ िैं, उि सबको इच्छािुसार मांर् लो-रथोंसदित, वाद्योंसदित इि अप्सराओं को (मांर् लो), मिुष्यों द्वारा निचिय िी ऐसी त्स्त्रयां अलभ्य िैं। इिसे अपिी सेवा कराओ, मृत्यु के संबंध में मत पूछो।
  • 8. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली श्वो भावा मसयमस्य यदन्तकै तत् सवेप्न्ियाणां जरयप्न्त तेज:। अवप सवमम् जीववतमल्पेमेव तवैव वािास्तव िृसयगीते ॥२६॥ शब्दाथम: अन्तक =िे मृत्यों; चवो भावा:= कल तक िी रििेवाले अथागत िचवर, क्षणणक, क्षणभंर्ुर ये भोर्; मत्यगस्य् सवेत्न्ियाणाम ् यत् तेज: एतत् जरयत्न्त = मरणिील मिुष्य की सब इत्न्ियों का जो तेज (िै) उसे क्षीण कर िेते िैं; अवप सवगम ् जीववतम ् अल्पम ् एव = इसके अनतररक्त समस्त आयु अल्प िी िै; तव वािा: िृत्यर्ीते तव एव = आपके रथादि वािि, स्वर्ग के िृत्य और संर्ीत आपके िी (पास) रिें। अथम: िे यमराज, (आपके द्वारा वणणगत) कल तक िी रििेवाले (एक िी दिि के , क्षणभंर्ुर) भोर् मरणधमाग मिुष्य की सब इत्न्ियों के तेज को क्षीण कर िेते िैं। इसके अनतररक्त समस्त आयु अल्प िी िै। आपके रथादि वािि, स्वर्ग के िृत्य और संर्ीत आपके िी पास रिें।
  • 9. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली ि ववत्तेि तपमणीयो मिुष्यो लतस्यामिे ववत्तमिाक्ष्म िेत् सवा। जीववष्यामो यावदीसशष्यसस सवं वरस्तु मे वरणीय: स एव॥२७॥ शब्दाथम: मिुष्य: ववत्तेि तपगणीय: ि = मिुष्य धि से कभी तृप्त ििीं िो सकता; िेत्= यदि, जब कक; त्वा अिाक्ष्म =(िमिे) आपके ििगि पा शलये िैं; ववत्तम ् लप्स्यामिे = धि को (तो िम) पा िी लेंर्े; त्वम ् यावद् ईशिष्यशस = आप जब तक ईिि(िासि) करते रिेंर्े, जीववष्याम:= िम जीववत िी रिेंर्े; मे वरणीय: वर: तु स एव = मेरे मांर्िे के योग्य वर तो वि िी िै। अथम: मिुष्य धि से तृप्त ििीं िो सकता। जब कक (िमिे) आपके ििगि पा शलये िैं, धि तो िम पा िी लेंर्े। आप जब तक िासि करते रिेंर्े, िम जीववत भी रि सकें र्े। मेरे मांर्िे के योग्य वर तो वि िी िै।
  • 10. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली अजीयमताममृतािामुपेसय जीयमि् मसयमः व्कधःस्थः प्रजािि्। असभध्यायि् वणमरनतप्रमोदािदीर्घे जीववते को रमेत ॥२८॥ शब्दाथमः जीयगि् मत्यगः = जीणग िोिेवाला मरणधमाग मिुष्य; अजीयगताम ् अमृतािाम ् = जीणगता को प्राप्त ि िोिेवाले अमृतों (िेवताओं) की सत्न्िचध में, निकतटता में; उपेत्य= प्राप्त िोकर, पिुूँिकर; प्रजािि्= आत्मतत्त्व की मदिमा का जाििेवाला अथवा उि (िेवताओं) से प्राप्त िोिेवाले लाभ को जाििेवाला; व्कधःस्थः= िीिे पृथ्वी पर त्स्थत िोकर; कः= कौि; वणगरनतप्रमोिाि् अशभध्यायि्=रूप, रनत और भोर्सुखों का ध्याि करता िुआ (अथवा उिकी व्यथगता पर वविार करता िुआ); अनतिीर्े जीववते रमेत=अनतिीर्ग काल तक जीववत रििे में रुचि लेर्ा। अथम: जीणग िोिेवाला मरणधमाग मिुष्य, जीणगता को प्राप्त ि िोिेवाले िेवताओं (अथवा मिात्माओं) के समीप जाकर, आत्मववद्या से पररचित िोकर, (अथवा मिात्माओं से प्राप्त िोिेवाले लाभ को सोिकर) पृथ्वी पर त्स्थत िोिेवाला, कौि भौनतक भोर्ों का स्मरण करता िुआ (अथवा उिकी निरथगकता को समझता िुआ) अनतिीर्ग जीवि में सुख मािेर्ा I
  • 11. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली यप्स्मप्न्िदं ववचिककससप्न्त मृसयो यससाम्पराये मिनत ब्रूहि िस्तत्। योऽयं वरो गूढमिुप्रववष्टो िान्यं तस्मान्िचिके ता वृणीते ॥२९॥ शब्दाथमः मृत्यो=िे यमराज; यत्स्मि् इिम ् ववचिककत्सत्न्त= त्जस समय यि ववचिककत्सा (सन्िेि) िोती िै; यत् मिनत साम्पराये = जो मिाि् परलोक-ववज्ञाि में िै; तत्=उसे; िः ब्रूदि=िमें बता िो; यः अयम् र्ूढम् अिुप्रववष्टः वरः= जो यि वर (अब) र्ूढ रिस्यमयता को प्रवेि कर र्या िै (अचधक रिस्यपूणग एवं मित्त्वपूणग िो र्या िै); तस्मात् अन्यम ्= इससे अनतररक्त अन्य (वर) को; िचिके ता ि वृणीते= िचिके ता ििीं माूँर्ता। अथम: िे यमराज, त्जस ववषय में सन्िेि िोता िै, जो मिाि् परलोक-ववज्ञाि में िै, उसे िमें किो। जो यि (तृतीय वर) वि िै, (अब) र्ूढ रिस्यमयता में प्रवेि कर र्या िै (अचधक रिस्यपूणग िो र्या िै)। उसके अनतररक्त अन्य (वर को) िचिके ता ििीं माूँर्ता।
  • 12. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली स्मरणीय बबंदु • कठोपनिषि कृ ष्ण यजुवेि िाखा का मित्वपूणग उपनिषि िै I • कठोपनिषि के रिनयता कठ िाम के आिायग को मािा जाता िै I • कठोपनिषि िो अध्यायों में ववभक्त िै,प्रत्येक अध्याय में तीि- तीि बत्ल्लयां िैं I • कठोपनिषि यम िचिके ता संवाि के रूप में आत्म ववषयक ज्ञाि का निििगि कराता िै I • कठोपनिषि के अंतर्गत प्रथम अध्याय की प्रथम बल्ली में 29 मंत्र, द्ववतीय बल्ली में 25 मंत्र एवं तृतीय बल्ली में 17 मंत्र िै, इस प्रकार कठोपनिषि के प्रथम अध्याय में कु ल 71 मंत्र िै I
  • 13. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली मिसवपूणम प्रश्िावली • यजुवेि ककि िो िाखाओं में ववभक्त िै ? • िचिके ता यमराज से तृतीय वरिाि के रूप में क्या मांर्ता िै ? • प्रथम बल्ली के अंनतम मंत्रों में यमराज िचिके ता को क्या क्या प्रलोभि िेते िैं ? • िचिके ता यमराज के द्वारा दिए जा रिे प्रलोभिों का ककस प्रकार खंडि करता िै ? • प्रथम अध्याय की प्रथम बल्ली के अंनतम मंत्र में िचिके ता यमराज से क्या अिुरोध करता िै ? • कठोपनिषि के प्रथम अध्याय की प्रथम बल्ली में कु ल ककतिे मंत्र िैं ?
  • 14. कठोपनिषद प्रथम अध्याय, प्रथम वल्ली THANKYOU, DR. DEEPTI BAJPAI ASSOCIATEPROFESSOR K.M.G.G.P.G.C. BADALPUR, GATUMBUDHNAGAR