2. आनुवंशिकी
जीव ववज्ञान की वह िाखा जजसके अंतर्गत आनुवंशिक
प्रक्रियाओं तथा ववशिन्नताओं का अध्ययन क्रकया जाता है
उसे आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) कहा जाता है|
जेनेटिक्स िब्द का सवगप्रथम प्रयोर् डब्लू बेिसन(1905)
द्वारा क्रकया र्या|
सिी जीवों में कु छ ऐसे लक्षण होते है जो उन्हें आपने
जनकों से प्राप्त होते है एवं ये लक्षण पीढ़ी दर पीढ़ी चलते
रहते है, ये आनुवंशिक लक्षण या आनुवंशिक वविेषक
कहलाते है
2
3. आनुवंशिकी
आनुवंशिकता:- एक जीव की एक पीढ़ी से उसी जीव के
दूसरी पीढ़ी में लक्षणों के स्थानांतरण की क्रिया को
आनुवंशिकता कहते है|
ववववधता :- एक जातत एवं एक ही जनकों की संततत पीढ़ी
के सदस्यों के बीच समानताओं के बावजूद जो अंतर पाया
जाता है उसे ववववधता या ववशिन्नता कहा जाता है|
ववशिन्नता के प्रकार :- जीवों में ववशिन्नता को उसकी
उत्पवि में संलग्न कारकों के आधार पर दो प्रकारों में बांिा
जाता है:
3
4. आनुवंशिकी
1. आनुवंशिक ववशिन्नता :- एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में
जनकों से संताततयों में स्थानांतररत होने वाली शिन्नताए
इस श्रेणी में राखी जाती है| या ववशिन्नता स्थायी प्रकार
की होती है|
2. वातावरणीय ववशिन्नता:- ऐसी ववशिन्नताए बाह्य
वातावरण में पररवतगन के कारण होती है | ये अस्थायी
होती है| ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतररत नही
हो सकती है |
4
5. आनुवंशिकी
शिन्नताओं का महत्त्व:-
इनसे नए लक्षण उत्पन्न होते है तथा ववकास िी होता
है
ये जीवों में अनुकू लन पैदा करती है
इनके कारण ही प्रत्येक जीव अपनी पहचान पाता है
यह नई जातत की उत्पवि एवं ववकास में सहायक होती
है
यह जीवो को ववकासीय रूप से प्रर्ततिील रखती है|
5
6. ववशिन्न तकनीकी िब्द:-
कारक: क्रकसी िी आनुवंशिक लक्षण को पीढ़ी दर पीढ़ी ले
जाने वाली रचना को कारक कहा र्या | वतगमान में
कारक को ही जीन कहा जाता है|
युग्म ववकल्पी : एक ही र्ुण के दो वैकजल्पक स्वरुपों के
आनुवंशिक कारको को एक दुसरे का युग्म ववकल्पी
कहते हैं|
समयुग्मजी: एक द्ववर्ुणणत अवस्था, जजसमे दोनों
युग्मववकल्पी एक समान होते है जैसे TT या tt
6
7. ववशिन्न तकनीकी िब्द:-
ववषमयुग्मजी: एक द्ववर्ुणणत अवस्था, जजसमे दोनों
युग्मववकल्पी एक असमान होते है जैसे Tt
प्रिावी व अप्रिावी : जो लक्षण F1 पीढ़ी में प्रदशिगत
होता है वह प्रिावी एवं जो लक्षण तछप जाता है वह
अप्रिावी होता है|
फीनोिाइप या समलक्षणी : क्रकसी िी लक्षण को बाहर से
देखने पर जो रूप टदखाई देता है, अथागत बाहरी लक्षण ,
जैसे ; लम्बा , बौना , लाल , पीला आटद
7
8. ववशिन्न तकनीकी िब्द:-
जीनोिाइप या समजीनी : जीन से सम्बंधधत लक्षण
संकरण : जब ववशिन्न लक्षणों वाले पौधों में िॉस
करवाते है तो इस ववधध को संकरण कहते है
एक संकरिॉस: जब एक जोड़ी लक्षणों के मध्य िॉस
कराया जाए
द्ववसंकर िॉस : दो जोड़ी लक्षणों को लेकर कराया र्या
िॉस|
घातक जीन : जीन जो क्रकसी जीव की मृत्यु का कारण
बने
8
9. ववशिन्न तकनीकी िब्द:-
क्लोन : एक ही जनक से अलैंधर्क जनन द्वारा बनने
वाला जीव
प्लाज्मोन: र्ुणसूत्रों के बाहर जस्थत आनुवंशिक पदाथग
9
10. मेण्डलवाद
o ग्रेर्र जोहन मेंडल का जन्म 22 जुलाई 1822 में हुआ |
o यह र्णणत के प्राध्यापक के साथ आजस्िया के चचग के
पादरी िी थे|
o इन्होने चचग की वाटिका में मिर के पौधे के लक्षणों के
बीच आनुवंशिक स्थानांतरण का अध्ययन क्रकया (1857-
64)
o मेंडल को आनुवंशिकी का जनक कहा जाता है |
10
11. मेण्डल के द्वारा मिर के पौधे के चयन का कारण:-
o मेण्डल ने अपने प्रयोर्ों के शलए मिर का चुनाव काफी
सोच ववचार कर के क्रकया था |
o मिर के चयन के प्रमुख कारण तनम्नशलणखत हैं :-
1. इसे आसानी से उद्यान मे उर्ाया जा सकता है |
2. यह एक वषीय पौधा है अतः इसको वषग में दो बार िी उर्ाया जा
सकता है , जजससे प्रयोर्ों का पररणाम िीघ्र ही प्राप्त होर्ा
3. इस पौधे में स्पष्ि ववपरीत लक्षणों का पाया जाना |
4. इसके पुष्प द्ववशलंर्ी होते है अतः इनमें अधधकांितः स्वपरार्ण
होता है एवं पर-परार्ण िी आसानी से कराया जा सकता है|
5. इसमें संकरण से प्राप्त संतानें जननक्षम होती हैं |
6. इसमें अधधक फल एवं फू ल लर्ते हैं जजस कारण अधधक बीजों को
आसानी से प्राप्त क्रकया जा सकता है | 11
12. मेण्डल द्वारा मिर के पौधे मे चुने र्ये सात
ववपरीत (ववपयागयी) लक्षण:
ि.सं. लक्षण प्रिावी अप्रिावी
1 पौधे की ऊँ चाई लम्बा (Tall) बौना (Dwarf)
2 पुष्प का रंर् लाल (Red) सफ़े द (White)
3 फली का आकार फू ला हुआ (Inflated) संकु धचत(Constricted)
4 फली का रंर् हरा (Green) पीला (Yellow)
5 बीज का आकार र्ोल (Round) झुरीदार(Wrinkled)
6 बीजपत्र का रंर् पीला (Yellow) हरा (Green)
7 पुष्प की जस्थतत कक्षीय (Axial) अग्रस्थ (Terminal)
12
13. मेण्डल के आनुवंशिकता के तनयम :-
प्रिाववता का तनयम
पृथक्करण का तनयम
स्वतंत्र अपव्यूहन का तनयम
1. प्रिाववता का तनयम:-
“जब एक जोड़ा ववपरीत लक्षणों को ध्यान मे रखकर क्रकन्हीं दो िुद्ध
जीवों में िॉस कराया जाता है तो जोड़े का के वल एक लक्षण ही प्रथम
पुत्री (F1) पीढ़ी में टदखाई देता है |”
इस प्रकार F1 पीढ़ी मे के वल एक ही प्रकार का लक्षणप्रारूप टदखाई
पड़ता है अतः F1 पीढ़ी मे टदखाई देने वाला लक्षण प्रिावी एवं न
टदखाई देने वाला लक्षण अप्रिावी कहलाता है| यह तनयम उन सिी
जर्ह लार्ू होता है जहाँ पर एक लक्षण दूसरे लक्षण पर पूणगरूप से
प्रिावी होता है|
13
14. प्रिाववता का तनयम:-
o उदाहरण:- जब एक लम्बे (TT) एवं एक बौने (tt) पौधे के
मध्य िॉस कराया जाता है तो F1 पीढ़ी के पौधों के
जीनोिाइप में लम्बेपन(T) तथा बौनेपन(t) दोनों कारक
साथ साथ (हेिेरोजायर्स आवस्था) रहते है लेक्रकन F1
पीढ़ी के सिी पौधों का के वल लम्बा होना पौधे के
लम्बेपन की प्रिाववत को सूधचत करता है एवं यह
बतलाता है क्रक लम्बापन बौनेपन के ऊपर प्रिावी होता
है|
14
16. 2 पृथक्करण का तनयम
o इस तनयमानुसार जब दो ववपयागयी लक्षणों वाले जनकों
के जोड़ों के मध्य िॉस कराया जाता है तो पहली पीढ़ी
(F1) में अप्रिावी लक्षण तछप जाते हैं, परन्तु अर्ली
पीढ़ी (F2) में अलर् हो कर स्वयं को अशिव्यक्त करते
हैं |
o अथागत अप्रिावी लक्षणों का F2 पीढ़ी मे स्वतंत्र रूप से
पुनः अशिव्यक्त हो जाने की क्रिया ही पृथक्करण का
तनयम कहलाती है|
16
17. पृथक्करण का तनयम
o उदाहरण:- जब एक लम्बे (TT) एवं एक बौने (tt) पौधे के
मध्य िॉस कराया जाता है तो F1 पीढ़ी मे प्राप्त पौधों
के बीच स्वपरार्ण के फलस्वरुप F2 पीढ़ी में 3:1
अनुपात में लम्बे एवं बौने दोनों प्रकार के पौधे प्राप्त
होते हैं |
o बौने पौधों का F2 पीढ़ी में उत्पन्न हो जाना पृथक्करण
का उदाहरण है
17
20. 3 स्वतंत्र अपव्यूहन का तनयम
“जब दो या दो से अधधक लक्षणों या जीन्स की वंिानुर्तत एक साथ
होती है तब युग्मकों एवं अर्ली पीढ़ी में इन लक्षणों अथवा जीनों की
वंिार्तत अथवा ववतरण स्वतंत्र रूप से होता है तथा एक लक्षण या
जीन की वंिानुर्तत दूसरे लक्षण या जीन की वंिानुर्तत तनिगर नहीं
होती है|”
उदाहरण:- मेण्डल ने र्ोल और पीले बीज(RRYY) वाले समयुग्मजी
मिर के पौधे को झुरीदार एवं हरे (rryy) बीज वाले समयुग्मजी मिर
के पौधे से िॉस कराया|
इस िॉस से उत्पन्न हुए सिी F1 संततत के पौधे पीले एवं र्ोल बीज
वाले हुए जब F1 पीढ़ी के पौधों के बीच स्वपरार्ण से उत्पन्न होने
वाले F2 संततत पीढ़ी मे तनम्न संयोजन वाले पौधे उत्पन्न हुए 20
21. 21
युग्मक
F1 पीढ़ी
सिी पौधे पीले एवं र्ोल बीज वाले
पीले एवं र्ोल
बीज
(YYRR)
झुरीदार एवं हरे
बीज
(yyrr)
YR yryr
YyRr
YR
YyRr YyRr YyRr
23. 3 स्वतंत्र अपव्यूहन का तनयम
1 पीले एवं र्ोल बीज = 9/16
2 पीले एवं झुरीदार बीज = 3/16
3 हरे एवं र्ोल बीज = 3/16
4 हरे तथा झुरीदार बीज = 1/16
जीनोिाइप अनुपात = 1:2:2:4:1:2:1:2:1
फीनोिाइप अनुपात = 9:3:3:1
23
24. मेण्डलवाद के अपवाद / मेण्डलवाद से ववचलन
1 अपूणग प्रिाववता
2 सहप्रिाववता
3 बहुववकजल्पता
1 अपूणग प्रिाववता:-
कु छ पेड़ पौधों व जंतुओं में F1पीढ़ी की संततत में कोई िी
लक्षण पूणगतः प्रिावी नहीं होता अथागत मध्यवती होता है, इसे
अपूणग प्रिाववता कहते हैं |
कोरेंस ने र्ुलाबांस मे देखा क्रक लाल फू ल वाले पौधे को सफ़े द
फू ल वाले पौधे से िॉस कराने पर र्ुलाबी फू ल वाले पौधे
उत्पन्न होते है और ये F2 पीढ़ी मे 1:2:1 का फीनोिाइप व
जीनोिाइप अनुपात दिागते हैं | 24
27. 2 सहप्रिाववता: इसमें दोनों जनकों के लक्षण पृथक रूप से F1 पीढ़ी में
प्रकि होते हैं|
उदाहरण:- यटद एक लाल रंर् के पिु का श्वेत रंर् के पिु के साथ
िॉस कराया जाता है, तो F1 पीढ़ी में धचतकबरी संतान पैदा होती है|
27
युग्मक
F1पीढ़ी
CR CR CW CW
CR
CR CwCw
CR CW CR CW
CR CW CR CW
धचतकबरी संतान
29. 3 बहुववकजल्पता
मेंण्डल के अनुसार जीन के दो ववकल्पी रूप होते हैं, परन्तु एक ही
जीन के एक ही लोकस पर दो से अधधक युग्म हो सकते हैं जो
बहुववकल्पी कहलाते हैं|
उदाहरण : मनुष्य में रुधधर समूह (A, B, AB व O) के शलए तीन युग्म
(IA, IB IO) एक ही लोकस पर जस्थत होते हैं|
डॉ. कालग लैण्डस्िीनर ने 1900 मे यह खोज की , क्रक सिी व्यजक्तयों
का रुधधर समान नही होता|
व्यजक्तयों के लाल रुधधराणुओं पर ववशिन्न प्रकार के प्रततजन (प्रोिीन)
पाए जाते है ये दो प्रकार के होते है A एवं B|
प्लाज्मा मे दो प्रकार के प्रततरक्षी a तथा b पाई जाती है|
29
30. प्रततजन एवं प्रततरक्षी की उपजस्थतत के आधार पर मानव जनसँख्या में
चार प्रकार के रुधधर समूह पाए जाते हैं
30
रुधधि
समूह
लाल रुधधिाणु
में प्रततजन
प्लाज्मा में
प्रततिक्षी
रुधधि दे सकता
है
रुधधि ले सकता
है
O कोई नहीं a ,b O , A , B , AB O
A A b A , AB A,O
B B a B , AB B ,O
AB A & B कोई नहीं AB O , A , B , AB
31. रुधधर समूहों की वंिार्तत
लाल रुधधराणुओं पर उपजस्थत प्रततजन एक प्रिावी जीन ‘I’ के कारण
होते हैं | यटद अप्रिावी जीन ‘i’ उपजस्थत होता है तब लाल
रुधधराणुओं पर कोई प्रततजन नही होता है, यह O रुधधर समूह है |
जीन ‘i’ जीन ‘I’ के समक्ष अप्रिावी होता है |
जीन IA प्रततजन ‘A’ एवं जीन IB प्रततजन ‘B’ का तनमागण करती हैं|
जीन IA तथा IB सह्प्रिावी हैं अतः एक ववषमयुग्मजी व्यजक्त जजसका
जीनोिाइप [IAIB]है में प्रततजन ‘A’ तथा ‘B’ दोनों ही पाए जाते है जजस
कारण उसका रुधधर समूह ‘AB’ होता है|
31
32. रुधधर समूहों की वंिार्तत
आि एच कािक (Rh Factor): 1940 मे लैण्डस्िीनर तथा वीनर ने
मनुष्य के लाल रुधधराणुओं पर एक और प्रततजन की खोज की , जो
रीसस बन्दर में िी पाया जाता है| अतः उसे रीसस कारक िी कहा
र्या |
िारतीय जनसँख्या के 85% में यह कारक पाया जाता है, अतः उन्हें
Rh+ तथा बाकी 15% जजनमें यह कारक नहीं पाया जाता उन्हें
Rh– कहा जाता है|
32
33. मेण्डलवाद का महत्त्व
इसके आधार पर उच्च लक्षणों वाली संतानों की प्राप्त क्रकया जा
सकता है|
रोर् प्रततरोधी पौधों की क्रकस्मों का ववकास क्रकया जा सकता है|
आनुवंशिक रोर् की खोज एवं उसका तनदान में इसका प्रयोर् होता
है |
इसके द्वारा आनुवांशिकता के आधुतनक शसद्धांत को बनाने मे
काफी मदद शमली है|
33
34. वंिार्तत का र्ुणसूत्रीय आधार
गुणसूत्र या िोमोजोम (Chromosome) सिी वनस्पततयों व प्राणणयों की
कोशिकाओं में पाये जाने वाले तंतु रूपी वपंड होते हैं, जो क्रक सिी
आनुवांशिक र्ुणों को तनधागररत व संचाररत करते हैं।
र्ुणसूत्र की खोज कालग ववलहलम वोन नार्ीली ने 1842 में की थी
िोमोसोम िब्द ग्रीक िब्द िोमा (कलर) और सोम (बॉडी) से शमलकर
बना है।
र्ुणसूत्र को ये नाम टदए जाने का कारण इनका वविेष प्रकार की डाइ से
र्हरा रंर् लेने की प्रकृ तत है।
गुणसूत्र के न्द्रक में पायी जाने वाली धागेनुमा संिचना होती है। इसमें 2
महत्वपूणण पदार्ण पाए जाते हैं-
डीएनए (डडऑक्सीराइबो न्यूजक्लक एशसड) एवं टहस्िोन प्रोिीन 34
35. वंिार्तत का र्ुणसूत्रीय आधार
गुणसूत्र की संिचना में पाए जाने वाले भाग
पेशलकल और मैटिक्स
िोमोतनमैिा
िोमोशमयसग
सेंिोमीयर
सैिेलाइि
35
36. वंिार्तत का र्ुणसूत्रीय आधार
जीवों की सिी कोशिकाओं के र्ुणसूत्रों में तनम्नशलणखत
वविेषतायें पाई जाती हैं।
वे जोड़े में मौजूद होते है, एक वपता से व दूसरा माता से शमलता है।
र्ुणसूत्र कोशिका वविाजन के दौरान ही देखे जा सकते हैं।
वविाजन के समय के अततररक्त कोशिका के नाशिक में यह िोमेटिन
जाल के रूप में टदखाई देते हैं।
र्ुणसूत्र जोड़े एक तनजश्चत संख्या में मौजूद हैं। र्ुणसूत्रों का एक
तनजश्चत सेि द्ववर्ुणणत संख्या कहलाता है और 2n के रूप में मनोनीत
हैं।
प्रत्येक र्ुणसूत्र डी.एन.ए. या डी आक्सी राइबोन्यूजक्लक एशसड के एक
अणु और कु छ प्रोिीन से बना है। 36
37. वंिार्तत का र्ुणसूत्रीय आधार
बैक्िीररया में के वल एक ही र्ुणसूत्र (डीएनए का के वल एक अणु) मौजूद है
क्योंक्रक वहां कोई तनजश्चत नाशिक नहीं है।
एक र्ुण सूत्र कोशिका द्रव्य में न्यूजक्लआयड नामक स्थान में मौजूद होता है।
जीन
जीन र्ुणसूत्रों पर मौजूद है। ‘मेंडल के कारक’ के नाम से जाने वाले ‘जीन’
र्ुणसूत्रों पर जोड़ों में (एक वपता से प्राप्त, दूसरा मां से प्राप्त) मौजूद होते
हैं। इस प्रकार र्ुणसूत्रों पर मौजूद जीन की जोड़ी के दोनों सदस्य समजात
र्ुणसूत्रों पर एक ही स्थान पर मौजूद होते हैं।
जीन वंिानुर्त लक्षणों के धारक या वंिार्तत की इकाई हैं। यह पहले ही
उल्लेख क्रकया र्या है क्रक र्ुणसूत्र में डीएनए नामक रसायन का एक अणु
मौजूद होता है। र्ुणसूत्र पर मौजूद जीन डीएनए अणु के खण्ड होते हैं।
37
39. गुणसूत्रों के प्रकाि
अललंग गुणसूत्र
(Autosomal
Chromosome)
ललंग गुणसूत्र
(Sex
Chromosome)
सहायक गुणसूत्र
(Acessory
Chromosome)
ववशालकाय गुणसूत्र
(Giant c
hromoses)
1.पॉलीटीन गुणसूत्र
(Polytene
Chromosome)
2.लैंपब्रश गुणसूत्र
(Lampbrush
Chromosomes)
39
40. गुणसूत्रों के प्रकाि
40
अललंग गुणसूत्र (Autosomal Chromosome)
यह शलंर् से संबंधधत लक्षणों को छोड़कर सिी प्रकार के कातयक लक्षणों
(Somatic symptoms) का तनधागरण करते हैं। इनकी संख्या मानव में 44
होती है।
ललंग गुणसूत्र (Sex Chromosome)
यह शलंर् का तनधागरण (Sex determination) करते है इनकी संख्या में दो
होती है। पुरुष में XY तथा मादा में XX।
सहायक गुणसूत्र (Acessory Chromosome)
यह र्ुणसूत्रों के छोिे-छोिे िुकड़े होते हैं, जजनमें र्ुणसूत्रबबंदु नहीं पाया
जाता। यह अधगसूत्री वविाजन (Meiosis) में िार् नहीं लेते। अनुवांशिक
रूप से तनजष्िय होते हैं। इनकी खोज ववल्सन द्वारा की र्ई।
41. गुणसूत्रों के प्रकाि
41
4 ववशालकाय गुणसूत्र (Giant chromoses)
A पॉलीटीन गुणसूत्र (Polytene Chromosome)
इसकी खोज ई.जी. बालबबयानी (E.G. balbiani) ने डायप्िेरा (diapteron)
कीिों के लावाग की लार ग्रंधथ में की। पॉलीिीन र्ुणसूत्र कोल्लर (koller) द्वारा
टदया र्या।
इसमें कई िोमोतनमा (chromonema) होते हैं, इसशलए इसे पॉलीिीन र्ुणसूत्र
कहा जाता है।
इनके कई िोमोतनमा िोमोशमयर से जुड़े रहते हैं। प्रत्येक िोमोतनमा में पफ
क्षेत्र और र्ैर-पफ (पफ ववहीन) क्षेत्र (puffed region & non-puffed regions)
होते हैं।
पफ क्षेत्र में बालबबयानी छल्ले (Balabiani rings) होते हैं जो डीएनए, आरएनए
और प्रोिीन से बने होते हैं।
42. गुणसूत्रों के प्रकाि
42
र्ैर-पफ क्षेत्र छल्ले के होते हैं लेक्रकन वे बैंड (पट्िी) और इंिरबैंड से बने
होते हैं।
ये िोमोसोम एंडोमाइिोशसस (endomostosis) द्वारा बनते हैं। ये कीिों
के लावाग में कायान्तरण (मेिामॉफोशसस) को बढ़ावा देते हैं।
B लैंपब्रश गुणसूत्र (Lampbrush Chromosomes)
यह लैम्प (Lamp) की सफाई करने वाले ब्रि की तरह टदखाई देता है।
इसशलए इनको लैंप ब्रि र्ुणसूत्र (Lampbrush Chromosome) नाम टदया
र्या।
इनकी खोज रुकिग ने की।
ये िाकग , उियचर, सरीसृप और पक्षक्षयों के प्राथशमक अण्डक (oocytes) में
अद्गधसूत्री वविाजन के प्रोफे ज-I की डडप्लोटिन अवस्था में पाये जाते है।
43. अनुवांशिकी के शलए र्ुणसूत्रीय शसद्धांत:-
43
सिन-बावेरी ने 1903 में मेण्डशलयन आनुवंशिकता के शलए र्ुणसूत्रीय
शसद्धांत प्रततपाटदत क्रकया, जजसे सिन बावेरी पररकल्पना के नाम से
िी जाना जाता है |
इस शसद्धांत की प्रमुख बाते तनम्नानुसार हैं:-
1 र्ुणसूत्रों पर जीन व्यवजस्थत होते है एवं तथा र्ुणसूत्र जीन के कारक
होते हैं|
2 द्ववर्ुणणत कोशिकाओं में र्ुणसूत्र एवं कारक जोड़ों में पाए जाते है |
3 युग्मकों के तनमागण के समय दोनों आनुवंशिक कारक पृथक्कृ त हो
जाते हैं
44. “सहलग्नता” :-
44
सहलग्नता की खोज बैिेसन ने की थी |
एक ही र्ुणसूत्र पर जस्थत जीनों में एक साथ वंिर्त होने की प्रवृवि
पायी जाती है जीनों की इस प्रवृवि को “सहलग्नता” (linkage) कहते
हैं .जबक्रक जीन जो एक ही र्ुणसूत्र पर स्थावपत होते हैं और एक साथ
वंिानुर्त होते हैं, उन्हें सहलग्न जीन (Linked genes) कहते हैं ..
सहलग्नता को सहलग्न जीनों की िजक्त के आधार पर तनम्न वर्ों मे
वर्ीकृ त करते हैं :-
1 पूणग सहलग्नता
2 अपूणग सहलग्नता – शलंर् सहलग्नता , अंतरार्ुणसूत्रीय सहलग्नता
45. “सहलग्नता” :-
45
शलंर्-सहलग्नता की सवगप्रथम ववस्त्रत व्याख्या मॉर्गन ने 1910 में की
थी .
मनुष्यों में कई शलंर्-सहलग्नता र्ुण जैसे -
रंर्वणागन्धता, र्ंजापन, टहमोक्रफशलया, मायोवपया, आटद पाये जाते हैं |
शलंर्-सहलग्नता र्ुण जस्त्रयों की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा प्रकि होते हैं|
46. “सहलग्नता” :-
46
1 पूणग सहलग्नता :-
जब सहलग्न जीनों के अलर् अलर् होने की सम्िावना बबलकु ल िी
न हो एवं वे हमेिा एक साथ रहे तब इसे पूणग सहलग्नता कहते हैं|
ऐसा तिी संिव होता है जब सहलग्न जीन अत्यंत पास पास जस्थत
होते है| जजस कारण जीन अद्गधसूत्री वविाजन में पृथक नहीं होते है|
(ड्रोसोक्रफला में पूणगसहलग्नता पाई जाती है)
2 अपूणग सहलग्नता :-
जब सहलग्न जीनों के पृथक होने की सम्िावना ज्यादा होती है , तब
उसे अपूणग सहलग्नता कहते है|
ऐसा तिी संिव होता है जब जीन एक-दूसरे से बहुत दूर दूर जस्थत
होते है | (मक्का में अपूणग सहलग्नता पायी जाती है)
47. “सहलग्नता” :-
47
र्ुणसूत्रों की प्रकृ तत के आधार पर सहलग्नता को पुनः दो वर्ों में
बांिा जाता है :-
1 शलंर् सहलग्नता : इस प्रकार की सहलग्नता उन जीनों में पायी जाती
है जो शलंर् र्ुणसूत्रों पर जस्थत होते है |
2 अंतरार्ुणसूत्रीय सहलग्नता : वह सहलग्नता जो एक जोड़े सहलग्न
जीनों के सदस्यों में एक दूसरे के प्रतत होती है, जजस कारण इसे
सहलग्न िम कहा जाता है| इसमें अद्गधसूत्री वविाजन से र्ुणसूत्रों में
अचानक पररवतगन आ जाता है |
48. सहलग्नता के शसद्धांत :-
48
1 वविेदाकीय बहुर्ुणन शसद्धांत :-
इस शसद्धांत को बैिसन ने टदया था |
इनके अनुसार जीवों में सहलग्नता उनकी कोशिकाओं के वविेदकीय
बहुर्ुणन द्वारा तनयंबत्रत होती है |
इनमें र्ुणों के अनेक जोड़े पाए जाते है जो युग्मकों के तनमागण के
पहले ही अलर् हो जाते है |
तत्पश्चात युग्मक समूह तीव्रता र्ुणन करते हैं इसी के कारण ही
मेंडल के द्वव-संकर संकरण के अनुपात में पररवतगन हो जाता है |
49. सहलग्नता के शसद्धांत :-
49
2. र्ुणसूत्रीय शसद्धांत :
इससे मॉर्गन ने टदया था उनके अनुसार सहलग्नता प्रदशिगत करने
वाले समस्त जीन र्ुणसूत्रों के एक जोड़े पर जस्थत होते है |
र्ुणसूत्रीय पदाथग जीनों को वंिार्तत के समय एक ही स्थान पर बाँध
कर रखता है|
सहलग्नता की िजक्त :
D α 1/S Or S α 1/D
यहाँ (D) = दो सहलग्न जीनों के बीच की दूरी
(S)= सहलग्नता की िजक्त
या S = k. 1/D
(K) = जस्थरांक (सहलग्नता जस्थरांक)
50. सहलग्नता का महत्व :-
50
सहलग्नता :- इसके द्वारा तनम्न अध्ययनों में मदद शमलती है :-
1 जनक लक्षण :- इसके द्वारा जनक के लक्षणों का पता लर्ाया जा
सकता है
2 नये संकर : इसके द्वारा संतततयों में बनने वाले नये लक्षणों की
संिावना का पता लर्ाया जा सकता है |
3 र्ुणों का तनयंत्रण : सहलग्न समूहों की वंिार्तत पर तनयंत्रण रख
कर जीवों के कई र्ुणों को तनयंबत्रत क्रकया जा सकता है |
51. प्र. आनुवंशिकी में िी.एच मॉर्गन का योर्दान
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मॉर्गन ने शलंर्-सहलग्न लक्षणों को समझने में योर्दान टदया|
उन्होंने फल-मजक्खयों का संकरण िूरे िरीर और लाल आँखों मजक्खयों वाली के
साथ क्रकया और क्रफर F1 संतततयों को आपस में द्ववसंकर िॉस करवाने पर दो
जीन जोड़ी एक दूसरे से स्वतंत्र ववसंयोजजत नहीं हुई और F2 का अनुपात 9:3:3:1
से काफी शिन्न शमला|
उन्होंने यह िी जान शलया क्रक जब द्ववसंकर िॉस में दो जीन जोड़ी एक ही
िोमोसोम में जस्थत होती हैं तो जनकीय जीन संयोजनों का अनुपात अजनकीय
प्रकार से काफी ऊँ चा रहता है|
उन्होंने संकरण सहलग्नता संबंधों तथा वंिार्तत शलंर्-सहलग्न के शसद्धांत की
व्याख्या की तथा संबंधों की खोज की|
उन्होंने िोमोसोम मानधचत्र के तकनीक की स्थापना की|
उन्होंने उत्पररवतगन को देखा तथा उस पर काम क्रकया|
52. शलंर् तनधागरण की जस्थतत एवं प्रकार :
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1 XY एवं XX प्रकार :
नर ववषमयुग्मजी (XY) एवं मादा समयुग्मजी (XX) [मानव एवं अन्य
स्तनी]
2 XY एवं XX प्रकार :
मादा ववषमयुग्मजी (XY) एवं नर समयुग्मजी (XX)
[मत्स्य वर्ग सरीसृप एवं पक्षी]
3 XX एवं XO प्रकार :
समयुग्मजी (XX) एवं के वल एक ही शलंर् र्ुणसूत्र की उपजस्थतत पर
नर (XO) [टिड्डा]