3. ‘भाषा’ शब्द संस्कृ त के ‘भाष ्’ धातु से बना है जिसका
अर्थ है व्यक्त वाणी |
“ भाष्यते व्यक्त वाग ् रूपेण अभभव्यज्यते इतत भाषा ”
व्यक्त वाणी के रूप में जिसकी अभभव्यजक्त
की िाती है उसे भाषा कहते है |
4. भाषा
उच्चारण अवयवों से उच्चाररत यद्ध्रुजच्िक ध्वनन
प्रतीकों की वह व्यवस्र्ा है जिसके द्ध्वारा ककसी भाषा
समाि के लोग आपस में ववचारों का आदान प्रदान
करता है |
-भोलानाथ ततवारी -
5. भाषा के ववभिष्ट ज्ञान –
“ भाषाया: ववज्ञानम ् भाषा ववज्ञानम्
ववभिष्टं ज्ञानम ् ववज्ञानम ् ”
भाषा के वैज्ञातनक अध्ययन को भाषा
ववज्ञान कहते है |
- भोलानाथ ततवारी -
भाषा ववज्ञान
10. भाषा की ध्वतनयों अथवा स्वरों से सम्बन्ध रखने
वाले अवयवों (मुखवववर, नाभसका वववर, स्वरतंत्री
आदद ), ध्वतन उत्पन्न होने की क्रिया तथा ध्वतन
लहर और उसके सुने जाने आदद का अध्ययन होता है |
क्रकसी भाषा में प्रयुक्त ध्वतनयों का वणथन और वववेचन
स्वनों के ऐततहाभसक अध्ययन में ध्वतन पररवतथन तथा
उसके कारणों पर ववचार होता है |
11. ध्वनन ववज्ञान के अध्ययन के २ पक्ष –
िुद्ध सैद्धान्न्तक पक्ष
ध्वनन की पररभाषा ,वग्यंत्र ,ध्वनन की उत्पवि
,ध्वननयों का वगीकरण ,आदद की चचाथ होती है
िो भाषा ववशेष से सम्बन्ध नह ं होती|इस तरह
का अध्ययन स्वातनकी (Phonetics) कहते है |
12. प्रायोगगक पक्ष
ककसी भाषा ववशेष की ध्वननयों का
अध्ययन, ध्वननयों की संरचना,उस भाषा के
स्वननमों का ननधाथरण आदद की चचाथ
स्वातनमी(phonemics) के अन्दर होती है|
13. स्वाननकी स्वननमी
स्वन यंत्र का अध्ययन |
व्यवन्स्थत प्रणाली नही है |
मुंह से तनकले स्वन का
अध्ययन |
ववदेिी भाषा के उच्चारण में
मदद |
भलवप संके तों की संख्या अगधक
भाषा वविेष के स्वनों का
अध्ययन |
व्यवन्स्थत प्रणाली ववद्यमान है
भाषा की संरचनात्मक इकाईयों का
अध्ययन |
उच्चारण से वविेष मतलब नहीं|
सीभमत भलवप संके त
14. मानवीय ध्वनन का आधार ननश्वास वायु है |
मानव के ननश्वास वायु से स्वरतजन्त्रयों में िो
कम्पन होता है उससे ध्वनन की उत्पवि होती है
|यह ध्वनन िब स्वरयंत्र से बाहर ननकलकर
मुखवववर में प्रवेश करती है तब हम अपनी
उच्चारण अवयवों को यर्ाववधध संचाभलत करके
मनचाह ध्वनन ननकालते है|ध्वनन का उच्चारण
करते समय बाहर की वायु आन्दोभलत होती है
और उसमें कु ि तरंगें पैदा होती है|ये तरंगे श्रोता
के श्रवणेजन्िय में पहुुँच कर कणथ पटों में कम्पन
पैदा करती है और श्रोता उस ध्वनन को सुनता है
15. दो भेद होता है –
I. स्वर
II. व्यंजन
स्वर वे ध्वननयाुँ है जिनका उच्चारण करते समय
ननश्वास वायु में कह कोई अवरोध
नह ं होती |
व्यंजन वे ध्वननयाुँ है जिनका उच्चारण करते समय
ननश्वास वायु में कह न कह अवरोध होता है|
16. न्जह्वा के प्रयुक्त भाग
i. अग्र स्वर- इ ई ए ऐ
ii. पश्च स्वर-आ उ ऊ ओ
iii. मध्य स्वर-अ
न्जह्वा की ऊँ चाई के अनुसार
i. वववृत(open)-आ
ii. अधथ वववृत(half open)-ऐ औ
iii. अधथ संवृत(half closed)-ए ओ
iv. संवृत(closed)-इ ई उ ऊ
ओष्टो की न्स्थतत
i. गोभलत –उ ऊ ओ औ
ii. अगोभलत –इ ई ए ऐ
17. उच्चारण स्थान
i. काकल्य -ववसगथ(:) ,ह्
ii. अभल जिह्वीय -क़ ,ख़ ,ग़
iii. कोमल तालव्य -कवगथ ,ह
iv. मूधथन्य -टवगथ ,ळ ,.र ,ष ,.ष
v. तालव्य -चवगथ ,य ,श
vi. वत्स्यथ -न ,ल ,र ,स ,.ि
vii. दन्त्य -तवगथ
viii. दंतोष्ट्य -व ,फ़
ix. द्ध्वयोष्ट्य -पवगथ ,व (w)
18. उच्चारण प्रयत्न
i. स्पशथ -क ,च ,ट ,त ,प
ii. संघषी या ऊष्टम -फ़ ,स ,ष ,श ,.ि ,ह ,क़ ,ख़ ,ग़
iii. स्पशथ संघषी -च ,ि ,ि ,झ
iv. पाज्वथक -ल ,ळ ,.ष
v. लुंदित -र
vi. नाभसक्य -ड.,ञ ,ण ,न ,म
vii. उजत्क्षप्त - ड़ , ढ़
19. क्रकसी भाषा की साथथक ध्वतनयों की व्यवस्था का
अध्ययन |
स्वतनम को दो ततरछी लकीरों ( // ) के अन्दर भलखा
जाता है |
जैसे -/क्/