अपने विचारों और भावों को प्रकट करने के हमारे पास अनेक साधन हैं। रेलवे में हरी झंडी या हरी बती दिखाकर यह संकेत दिया जाता है कि गाड़ी चले। कंडक्टर बस को रोकने या चलाने के लिए अलग-अलग तरह की सीटी बजाता है। स्काउट / गाइड अपनी बात कहने के लिये कई तरह के संकेतों का प्रयोग करते हैं। बच्चा भी हँसकर या रोकर अपने भाव प्रकट करता है। यह सब संकेत की भाषा है, लेकिन इन संकेतों, इशारों और चिह्नों को सही मायने में भाषा नहीं कह सकते। भाषा तो भाव और विचार प्रकट करने वाले उन ध्वनि-संकेतों को कहते हैं, जो मानव मुख से निकले हो।
अपने विचारों और भावों को प्रकट करने के हमारे पास अनेक साधन हैं। रेलवे में हरी झंडी या हरी बती दिखाकर यह संकेत दिया जाता है कि गाड़ी चले। कंडक्टर बस को रोकने या चलाने के लिए अलग-अलग तरह की सीटी बजाता है। स्काउट / गाइड अपनी बात कहने के लिये कई तरह के संकेतों का प्रयोग करते हैं। बच्चा भी हँसकर या रोकर अपने भाव प्रकट करता है। यह सब संकेत की भाषा है, लेकिन इन संकेतों, इशारों और चिह्नों को सही मायने में भाषा नहीं कह सकते। भाषा तो भाव और विचार प्रकट करने वाले उन ध्वनि-संकेतों को कहते हैं, जो मानव मुख से निकले हो।
अनुवाद के क्षेत्र कहाँ कहाँ है ......... अनुवाद की कहाँ कहाँ आवश्यकता है ।
आशुतोष कुमार विश्वकर्मा
एम.फिल( अनुवाद अध्ययन)
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय
वर्धा , महाराष्ट्र
Definition menaning and scope of communication and Language Ambuj Kushawaha
Definition,Meaning, and Scope of communication.
Human and Animal Communication
Human Communicaton (Lingustic and Non-Lingustic)
Definition, Meaning, and Scope of Language
Structure, Characteristics, and Funcation of Language
Innateness of Languge
(Hind and English)
In this small presentation include definition of reading,importance and types of reading, what is loud reading and importance of loud reading, what is silent reading and importance of silent reading
अनुवाद के क्षेत्र कहाँ कहाँ है ......... अनुवाद की कहाँ कहाँ आवश्यकता है ।
आशुतोष कुमार विश्वकर्मा
एम.फिल( अनुवाद अध्ययन)
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय
वर्धा , महाराष्ट्र
Definition menaning and scope of communication and Language Ambuj Kushawaha
Definition,Meaning, and Scope of communication.
Human and Animal Communication
Human Communicaton (Lingustic and Non-Lingustic)
Definition, Meaning, and Scope of Language
Structure, Characteristics, and Funcation of Language
Innateness of Languge
(Hind and English)
In this small presentation include definition of reading,importance and types of reading, what is loud reading and importance of loud reading, what is silent reading and importance of silent reading
Information About Maithili (मैथिली) for School Programme on 21 Feb Mother L...I Love Mithila Media
2022. Edition 2 : By Gajendra Gajur
The "Maithili Language Information and Training" presentation is a comprehensive and informative slideshow presentation that has been created by Gajendra Gajur. The presentation is available in PPTX format and is designed to provide a detailed overview of the Maithili language, as well as training materials for those who are interested in learning the language.
The presentation is divided into multiple sections, each of which covers a different aspect of the Maithili language. The first section provides an introduction to the language and its history, while the subsequent sections delve into the grammar, vocabulary, and pronunciation of the language. The presentation also includes numerous examples and exercises that are designed to help users develop their skills and fluency in Maithili.
One of the most noteworthy aspects of this presentation is the level of detail and expertise that has gone into its creation. Gajendra Gajur has clearly invested a significant amount of time and effort into researching and compiling the information presented in the slideshow, and this is reflected in the high quality of the materials that are included.
Overall, the "Maithili Language Information and Training" presentation is an invaluable resource for anyone who is interested in learning more about this fascinating language. Whether you are a beginner or an experienced language learner, this presentation is sure to provide you with a wealth of knowledge and practical skills that will help you to become proficient in Maithili.
5. हिषय प्रिेश :
❖मनुष्य किस माध्यम से अपने मन िी भावना प्रिट िरता है?
❖हम जो बोलते है वह क्या है ?
❖भाषा से क्या तात्पयय है?
❖भाषा िी िोई पररभाषा बताईए ..
6. हिषय प्रिेश :
➢ ध्िहन / आिाज़ भाषा ै ?
➢ प्राहियों की आिाज को म भाषा की परिहि में ग्र ि कि
सकतें ैं ?
➢ क्या प्रािी बोल सकते ै ?
➢ छोटे बच्चों की आिाज िोना, हिलहिलाना आहद को म
भाषा की परिहि में ग्र ि कि सकतें ैं ?
7. भाषा की परिभाषा, स्िरुप :
❖ भाषा की परिभाषा : भाषा यादृहच्छक ध्िहन प्रतीकों की
ि सिंिचना / व्यिस्था ै, हजसके द्वािा एक मानि
(समुदाय) दूसिे मानि (समुदाय) से अपने भािों ि
हिचािों की पिस्पि अहभव्यहि, सिंप्रेषि अथिा आदान -
प्रदान किता ै।
❑ यादृच्छिक ध्वच्ि प्रतीक
❑ ध्वच्ि प्रतीक
❑ व्यवस्था है
9. ❖ मनुष्य एक सामाहजक प्रािी ै। समाज में ि उत्पन्न ोता ै , औि ि ीं
ि ते ुए मृत्यु को प्राप्त ोता ै। ि ी उसका अहस्तत्ि बनता ै , समाज में
ि ने के कािि मनुष्य को एक दूसिे के साथ मेशा ी हिचािों का
आदान-प्रदान किना पड़ता ै। कभी उसे अपने हिचािों को प्रकट किने
के हलए शब्दों या िाक्यों की आिश्यकता पड़ती ै , औि कभी सिंके त से
भी काम चला लेता ै।
❖ ाथ से सिंके त ‘ कितल ध्िहन ‘ , आिंिें टेढ़ी किना आिंि मािना या
दबाना , िािंसना , मुिं हबचकाया , ग िी सािंस लेना आहद अनेक प्रकाि
के सािनों से अपनी अहभव्यहि किता ै। इसी प्रकाि से गिंि इिंहिय , नेत्र
इिंहिय तथा किण इिंहिय इन पािंचों ज्ञानेंहियों में से हकसी भी माध्यम से
अपनी बात क ी जा सकती ै।
❖ अपने व्यापक रूप में तो भाषा ि सािन ै , हजसके द्वािा अथिा हजसके
माध्यम से मनुष्य अपने हिचािों को व्यि किता ैं , हकिं तु भाषा का
अध्ययन एििं हिश्लेषि किते ैं तो ि इतनी व्यापक न ीं ोती , उनमें
म उन सािनों को न ीं व्यि किते ैं औि ना उनके द्वािा हलया जाता
ै , हजसके द्वािा म सोचते ैं। भाषा उसे क ते ैं जो बोली औि सुनी
जाती ै औि ‘बोलना’ पशु पहियों का न ीं के िल मनुष्यों का ी ै।
10. भाषा की परिभाषा:
❖ भाषा को प्राचीन काल से ी परिभाहषत किने की कोहशश की जाती
ि ी ै। इसकी कु छ मुख्य परिभाषाएिं हनम्नहलहित ैं-
❖ (१) 'भाषा' शब्द सिंस्कृ त के 'भाष्' िातु से बना ै हजसका अथण ै
बोलना या क ना अथाणत् भाषा ि ै हजसे बोला जाय।
❖ (०२ ) भाषा की उत्पहि सिंस्कृ त “िाक् ” - िािी से मानी जाती ै
हजसका अथण ै- बोलना ।
भाषा के सिंदभण मे हिहिि हिद्वानों ने हिचाि हकया ै यथा –
भाषा को प्राचीन काल से ी परिभाहषत किने की कोहशश की जाती
ि ी ै। इसकी कु छ मुख्य परिभाषाएिं हनम्नहलहित ैं-
11. भाषा की परिभाषा: संस्कृ त च्वद्वािों के च्वचाि / परिभाषाएँ
❖ चत्िारि िाक् परिहमता पदाहन ताहन हिदुब्राह्मणािा ये मनीहषि:।
गु ा त्रीहि हनह ता नेङ् गयहन्त तुिीयिं िाचो मनुष्या िदहन्त।
(ऋग्िेद-1-164-45)
❖ अथाणत् िािी के चाि पद ोते ैं, हजन् ें मनीषी जानते ैं। िे ैं-
पिा, पश्यन्ती, मध्यमा, वैखिी। इनमें तीन गुप्त ि ते ैं तथा
चौथा तुिीय िाचा मनुष्य बोलता ै।
▪ https://lgandlt.blogspot.com/2018/11/5.html
12. वाि् (भाषा) िे रूप
चत्वारर वाि् पररकमता पदाकन, ताकन कवदुर्ब्ायह्मणा ा मे मनिकष :।
गुहा कि ि कनकहता नेङ्गयकतत, तुरियं वाचो मनुष्यााः वदंकत॥
(वाि् िे चार रूप होते हैं, इनमें से तिन गुफा में कनकहत रहते हैं। चौथे रूप िा प्रयोग मनुष्य द्वारा
बोलने में किया जाता है। )
परा : यह वाि् िा अमूतय मानकसि रूप है। इसिा संबंध आत्मा से है। इसिा िायय हमें
सवयशकिमान सत्ता (र्ब्ह्मणा) से जोड़ना है।
पश्यंति : इसे भाषा िा सूक्ष्म रूप िहा गया है। इसिा संबंध मनुष्य िे हृदय से है, जहााँ
भाकषि अकभव्यकियों िा कनमाय और बोध तो नहीं होता किं तु भाषायि अनुभूकत रहति है।
मध्यमा : यह भाषा िी कचंतनावस्था है। हम कचंतन िरते हुए मन-हि-मन भाषा िे कजस रूप
िा प्रयोग िरते हैं, वह मध्यमा है। भाषा िे इस रूप िा प्रयोग िरने िे कलए बोलने या सुनने िी
आवश्यिता नहीं होति।
वैखरि : वैखरि भाषा िा व्यि रूप है। हम अपने दैकनि व्यवहार में बोलने और सुनने िे क्रम
में भाषा िे कजस रूप िा प्रयोग िरते हैं, उसे वैखरि नाम कदया गया है।
14. पाश्चात्य च्वद्वािों की परिभाषाएँ
❖ प्लेटो ने सोहिस्ट में हिचाि औि भाषा के सिंबिंि में हलिते ुए
क ा ै हक “हिचाि औि भाषा में थोड़ा ी अिंति ै। हिचाि आत्मा
की मूक या अध्िन्यात्मक बातचीत ै औि ि ी शब्द जब
ध्िन्यात्मक ोकि ोठों पि प्रकट ोती ै, तो उसे भाषा की सिंज्ञा
देते ैं।”
❖ स्वीट के अनुसाि “ध्िन्यात्मक शब्दों द्वािा हिचािों को प्रकट
किना ी भाषा ै।”
❖ Language may be defined as expression of thought by means of speech-
sound.
❖ ब्लाक तथा ट्रेगि- ”भाषा यादृहच्छक भाष् प्रहतकों का तिंत्र ै
हजसके द्वािा एक सामाहजक समू स योग किता ै।”
(A language is a system of arbitrary vocal symbols by means of which a social
group co-operates)
15. ❖ वेंद्रीय- के अनुसाि “भाषा एक ति का हचह्न ै। हचह्न से आशय
उन प्रतीकों से ै हजनके द्वािा मानि अपना हिचाि दूसिों के
समि प्रकट किता ै। ये प्रतीक कई प्रकाि के ोते ैं, जैसे
नेत्रग्राह्य, श्रोत्र ग्राह्य औि स्पशण ग्राह्य । िस्तुतः भाषा की दृहि
से श्रोत्रग्राह्य प्रतीक ी सिणश्रेष्ठ ै।”
❖ स्त्रुत्वा – के अनुसाि “भाषा यादृहच्छक भाष् प्रतीकों का तिंत्र ै
हजसके द्वािा एक सामाहजक समू के सदस्य स योग एििं
सिंपकण किते ैं।”
❖ इिसाइक्लोपीच्िया च्िटैच्िका–“भाषा यादृहच्छक भाष्
प्रहतकों का तिंत्र ै हजसके द्वािा मानि प्राहि एक सामाहजक
समू के सदस्य औि सािंस्कृ हतक साझीदाि के रूप में एक
सामाहजक समू के सदस्य सिंपकण एििं सिंप्रेषि किते ैं।”
16. मैक्समूलि के अनुसाि-भाषा औि कु छ न ीं ै, के िल मानि
की चतुि बुहि द्वािा आहिष्कृ त ऐसा उपाय ै हजसकी मदद से
म अपने हिचाि सिलता औि तत्पिता से दूसिों पि प्रकट कि
सकते ैं औि चा ते ैं, हक इसकी व्याख्या प्रकृ हत की उपज के
रूप में न ीं बहकक मनुष्यकृ त पदाथण के रूप में किना उहचत ै।
ए.एच.गाच्िियि- का मिंतव्य ै- सामान्यत: हिचािों की
अहभव्यहि के हलए हजन व्यि एििं स्पि ध्िहन-सिंके तों का
व्यि ाि हकया जाता ै, उनके समू को भाषा क ते ैं।”
The common definition of speech is the use of articulate sound
symbols for the expression of thought.
17. आधुच्िक भाितीय वैयाकिणों, भाषाच्वदों की परिभाषाएँ
कामताप्रसाद गुरु ने अपनी पुस्तक ह िंदी-व्याकिि’ में भाषा
की परिभाषा इस प्रकाि दी ै-भाषा ि सािन ै हजसके द्वािा
मनुष्य अपने हिचाि दूसिों पि भली-भािंहत प्रकट कि सकता ै
औि दूसिों के हिचाि आप स्पितया समझ सकते ैं।
दुिीचंद ने ह िंदी-व्याकिि’ में भाषा की परिभाषा को इस प्रकाि
हलहपबि हकया ै- म अपने मन के भाि प्रकट किने के हलए
हजन सािंके हतक ध्िहनयों का उच्चािि किते ैं,उन् ें भाषा क ते
ैं।
आचायि च्कशोिीदास के अनुसाि हिहभन्न अथों में सािंके हतक
शब्द-समू ी भाषा ै हजसके द्वािा म अपने हिचाि या
मनोभाि दूसिों के प्रहत ब ुत सिलता से प्रकट किते ैं।
18. ❖ िॉ. बाबू िाम सक्सेिा के मतानुसाि-हजन ध्िहन-हचन् ों द्वािा
मनुष्य पिस्पि हिचाि-हिहनमय किता ै, उसे भाषा क ते ैं।
❖ श्यामसुन्दि दास ने ‘भाषा-हिज्ञान’ में भाषा के हिषय में हलिा ै-
“मनुष्य - मनुष्य के बीच िस्तुओिंके हिषय में अपनी इच्छा औि महत
का आदान-प्रदान किने के हलए व्यि ध्िहन-सिंके तों का जो
व्यि ाि ोता ै, उसे भाषा क ते ैं।”
❖ िॉ. भोलािाथ ने भाषा को परिभाहषत किते ुए ‘भाषा-हिज्ञान’ में
हलिा ै- “भाषा उच्चािि अियिों से उच्चारित मूलत: प्राय:
यादृहच्छक ध्िहन-प्रतीकों की ि व्यिस्था ै, हजसके द्वािा हकसी
भाषा समाज के लोग आपस में हिचािों का आदान-प्रदान किते ैं।”
❖ आचायि देवेन्द्रिाथ शमाि ने ‘भाषा-हिज्ञान की भूहमका’ में हलिा-
“उच्चारित ध्िहन-सिंके तों की स ायता से भाि या हिचाि की पूिण
अहभव्यहि भाषा ै।”
19. ❖ िॉ.सियूप्रसाद के अनुसाि- “भाषा िािी द्वािा व्यि स्िच्छिंद
प्रतीकों की ि िीहतबि पिहत ै, हजससे मानि समाज में
अपने भािों का पिस्पि आदान-प्रदान किते ुए एक-दूसिे को
स योग देता ै।”
❖ िॉ. देवीशंकि च्द्ववेदी के मतानुसाि- “भाषा यादृहच्छक
िाक्यप्रतीकों की ि व्यिस्था के , हजसके माध्यम से मानि
समुदाय पिस्पि व्यि ाि किता ै।”
20. ❖समाहाि:
उक्त परिभाषाओंके अिुशीलि से भाषा के संबंध में च्िम्िच्लच्खत तथ्य प्रकट
होते हैं –
1 भाषा में ध्िहन सिंके तों या िाक् प्रतीकों का प्रयोग ोता ै।
2 य ध्िहन सिंके त रूढ़ पििंपिागत अथिा यादृहच्छक ोते ैं।
3 इन ध्िहन सिंके तों से भािों एििं हिचािों की अहभव्यहि तथा पुनिािृहत ो सकती ै।
4 य ध्िहन सिंके त हकसी समाज या ििण हिशेष के पािस्परिक व्यि ाि एििं हिचाि
हिहनमय में स ायक ोते ैं।
5 प्रत्येक िगण या समाज के ध्िहन सिंके त यादृहच्छक ोते ैंया प्रत्येक भाषा में ि
पृथक – पृथक ोते ैं।
6 ििा औि श्रोता के पािस्परिक हिचाि-हिहनमय के हलए आिश्यक ै हक , ि
समान भाषा-भाषी ो।
7 य ध्िहन सिंके त उच्चािि के हलए उपयोगी बने शब्दों में व्यि ोते ैं।
8 प्रत्येक भाषा की हनजी पिहत या व्यिस्था ोती ै।
9 य ध्िहन सिंके त साथणक ोते ैं हजनका िगीकिि हिश्लेषि ि अध्ययन हकया जा
सकता ै।