12. 4/29/2020www.pdgaacindore.in12
प्रथर्तः स्नेहन औि स्वेदन द्रव्य अपने सूक्ष्र् गुण से सूक्ष्र् स्रोतो तक पहुन्चते स्नेहन औि्
स्वेदन अपने द्रव औि क्लेदन कर्म से दोषों की वृद्चध किते हैं
य्स्नग्ध , सि , द्रव गुण से दोषों का ववलयन( ववषयन्दन) होता है
पाचन औि स्वेदन अय्ग्नयों का वधमन किता है व ् आर् का पाचन किता है
स्वेदन आर् का पाचन कि स्रोतोिोध दूि किता है
स्नेहन औि् स्वेदन के य्स्नग्ध औि उषण से वायु प्रकोप शांत
वायुननग्रह औि स्नेहन स्वेदन द्वािा दोषों का शाखा से कोष् र्ें गर्न
21. 4/29/2020www.pdgaacindore.in21
पंचकर्म औि शोधन
आचायों पंचकर्म का उल्लेख बिम्बाि शोधन
के उद्देश्य से ककया
प्रभूत शोधन द्रव्यों का इसर्ें सर्ावेश ककया
है .
क्या पंचकर्म के वल शोधन है ?
पंचकर्म प्रयशः शोधन है , के वल शोधन र्ात्र
नहीं .
क्योंकक इसर्ें बृहण , लेखन , स्तम्भन ,
िसायन औि वृषय चचककत्सा का भी सर्ावेश
होता है .
22. 4/29/2020www.pdgaacindore.in22
उद. ननरुह के भेद - बृहण्बय्स्त,शर्नबय्स्त,लेखनबय्स्त भी होते
हैं .
अनुवासन र्ें प्रयः बृहणत्व होता है .
नस्य र्ें भी शर्न्नस्य,बृहण्नस्य होते हैं
चिक ने पंचकर्म र्ें से भसफ़म वर्न , वविेचन , ननरुह
औि भशिोवविेचन ( चतुषप्रकािा संशुद्चध ) को शोधन र्ाना .
पंचकर्म भसफ़म दोंषों र्लों को ही नहीं ननकालता बय्ल्क प्रशस्त
धातुओं का भी ननर्ामण किता है .
23. 4/29/2020www.pdgaacindore.in23
शोधन सर्ान्य भसद्धान्त
पंचकर्म प्रयः शोधन है . जब शोधन ् की दृय्ष् से
प्रयोग किना हो तब शोधन के सार्ान्य
भसद्धान्त ध्यान िखना जरुिी
दोष ववचाि –
३ अवस्था र्ें - बहुदोष -- संशोधनहहतं
र्ध्यदोष --लंघन पाचन
हीनदोष -- लंघन
24. 4/29/2020www.pdgaacindore.in24
सार्वस्था का ध्यान - शोधन स्रेषठ लेककन आर्ावस्था र्ें
ननवषद्ध
सवमदेहप्रववसृतान् सार्ान् दोषाय्न्न्नहमिेत
लीनान्धातुषव्नुय्त्क्लष्ान् फ़लादार्ाद्रसाय्न्नव
आस्रयस्य हह नाशाय ते स्युदुमननमहित्वतः अ.ह्.सु.१३/२८
तब
पाचनैदीप्नैः स्नेहैस्तान् स्वेदैश्च परिषकृ तान
शोधयेत्शोधनैःकाले यथासन्नं यथाबलर् ् अ.ह्.सु १३/२९
25. 4/29/2020www.pdgaacindore.in25
उय्त्क्लष् अवस्था का ध्यान
उत्क्लीष्नध उध्वम वा न चार्ान्वहतः स्वयर् ्
धायेदोषधेदोषान् ववधृतास्ते हह िोगदाः अ.ह्.सु १३/31
यहद दोष उय्त्क्लष् होकि उपि या नीचे के र्ागम से ननकलते
हों तों उन्हे औषचधयों के प्रयोग से िोकना नहीं चहहये .रुकने
पि अनेक िोग उत्पन्न होते हैं
इसभलये इस अवस्था र्ें पंचकर्म द्वािा इन उय्त्क्लष् दोषों को
सर्ीप के र्ागम से ननकाल देना चहहये
26. 4/29/2020www.pdgaacindore.in26
दोषगनत ध्यान
३ प्रकाि कक
१. क्षय , स्थान , वृद्धि
क्षीणाःवय्ध्यमत्व्याः,सर्ापालानयत्व्याः,वृद्धाःह्रासनयत्व्याः
२. उर्धवव , अिः , नियवक
दोषोत्क्लेश र्ें उस दोष को सर्ीपर्ागम से बाहि ननकालना
उदा. ह्रल्लासर्ें उध्वमगनत जानकि वर्न कर्म ननणमय किना
३. शाखा, कोष्ठ , ममावस्स्थसंधि ( बाह्सय,आभ्यान्ति , र्ध्यर् )
दोष् जब कोषठ र्ें तब शोधनकक्रया द्वािा शिीि् से बाहि
ननकालना सुलभ होता है
27. 4/29/2020www.pdgaacindore.in27
र्ध्यर् बाह्सय -- श्म्नोपचाि् इष् .
इनर्ें शोधन आवश्यक हो तो प्रथर्तः दोषों को शाखा
से कोषठ र्ें लाना पडता है .
वृद्ध्या ववषयन्दनात्पाकात् स्रोतोर्ुय्ख्वशोधनात्
शाखार्ुक्त्वार्लाः कोष्ं यांनत वायोश्च ननग्रहात च . सू
. २८/३३
वृद्ध्या - दोषों का बढना
ववषयन्दन - द्रव होकि घुलकि बहना
पाकात् - औषधी से दोषों का पाक् होना
स्रोतोर्ुखववशोधन - स्रोतों का अविोध ह्ना
वायोय्श््नग्रहात् - वायु का ननग्रह
इस हेिु पंचकमव में पूववकमव - पाचन , स्नेहन और
स्वेदन सहायक होिे हैं
33. 4/29/2020www.pdgaacindore.in33
बल
अल्प बल ---- र्ृदु वीयम द्रव्यों का प्रयोग
र्ध्शयर् ----- र्ध्शयर् वीयम द्रव्यों का प्रयोग
उत्तर्बल--- तीक्ष्ण वीयम द्र्वव्यों का प्र्योग
ककया जा सकता है.
34. 4/29/2020www.pdgaacindore.in34
शिीि
स्थूल , कृ श , साियुक्त , सािहीन
आहाि
पंचकर्म र्ें लघु , उषण , नानतय्स्नग्ध ,
नानतरुक्ष भोजन का प्रयोग
सात्म्य
िस सात्म्य से िोगी के बल का पिीक्षण
35. 4/29/2020www.pdgaacindore.in35
सत्व
सत्व के आधाि् पि औषचध र्ात्रा , कल्पना का
ननणमय
उदा. अवि सत्व िोगी र्ें र्ृदु वीयम औषचध का
प्रयोग
पृक्रनत
पृक्रनत के अनुसाि र्ात्रा औि् कल्पनाओं र्ें अंति
उदा. वपत्तज पृक्रनत र्ें घृत स्नेहन हेतू श्रेषठ
वय
36. 4/29/2020www.pdgaacindore.in36
पंचकर्म वैभशष्य
१. चिक ने लगभग सभी िोंगों र्ें पंचकर्म
का प्रयोग बताया .
२. यह आयुवेद की शखओं ( अष्ांग) र्ें
कहीं र्ुख्यरुप से कहीं सहायक औि कहीं
चचककत्सा र्ें प्र्युक्त होता है .
३. पंचकर्म का चचककत्सा र्ें प्रयोग के
साथ ही शल्यपूवम , िसायन वाजीकिण के
पूवम औि िसौषचध के पूवम क्षेत्रीकिण र्ें
होता है .