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पंचकर्म परिचय
डॉ . अजीत कु र्ाि ओझा
व्याख्याता - पंचकर्म
शासकीय स्वशासी अष्ांग आयुवेद
र्हववद्यालय , इन्दौि
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पंचकर्म चचककत्सा आधाि
 चिकानुसाि चचककत्सा उपक्रर्
लंघनं ब्रहणं काले रुक्षणं स्नेहनं तथा
स्वेदनं स्तम्भनं चैव जनीते यः स वै भभषग . च.सू. २२/४
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स्वेदन
रुक्षण
बृहण
स्नेहन
स्तंभन
लंघन
चिक षडववधौपक्रर्
अपतपमण
(लंघन)
संतपमण
(बृहण)
वागभ् द्ववववधोपक्रर्
शोधन
शमन
वमन
ववरेचन
ननरुह
भशिोवविेचन
िक्तर्ोक्षण
यदीयेद्वहहदोषान पन््धा शोधनन्च तत्
ननरुहोवर्नंकाय्शशिोिेकोअस्रववस्रुनतः
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 लंघन
पाचन,वर्न,वविेचन,ननरुह, के कु छ प्रकाि, नस्य के कु छ प्रकाि,
पश्चातकर्म के पेया ववलेपी आहद औि शर्नौषचध प्रयोगों का सर्ावेश
 बृहण - बृहण्बय्स्त,बृहण्नस्य,िसायनबय्स्त
 स्नेहन,स्वेदन - पृथक उपक्रर् र्ाना ही है .
 रुक्षण - रुक्षणबय्स्त,वर्न,वविेचन,नन .
 स्तम्भन - स्तम्भनबय्स्त,स्तम्भन नस्य का सर्ावेश
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पंचकर्म ननरुपण
स्नेह्सस्वेदाहदद्वािा शिीिस्योय्त्क्लस््दोषाणा यथासन्नर्गेण
बहहननमहमणमत्वर् ् संशर्न कतमत्वर् ् च् पन्चकर्मत्वर् ्
स्नेहन स्वेदन द्वािा शिीि र्ें य्स्थत दोषों के चलायर्ान् अवस्था प्राप्त
होने पि दोषों को सर्ीप के र्ागम से बाहि ननकालना तथा संशर्न
किना पंचकर्म कहलाता है
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वर्नं िेचनं नस्यं ननरुहश्चानुवासनर््
एतानन पंच कर्ामणण कचथतानन र्ुनीश्विैः शा.उ.अ.८/६३
ननरुहो वर्नं कायभशिोिेकोस्रववस्रुनतः अ.ह्.सु.१४/८
ननरुह र्ें ननरुह व अनुवासन का ग्रहण कि पांचवा कर्म िक्तर्ोक्षण र्ाना
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 कल्पनाभसद्चध अध्याय र्ें पंचकर्म क्रर्
स्नेहन स्वेदन पूवमकर्म कि पश्चात वर्न, वविेचन, अनुवासन, ननरुह
औि नस्य का क्रर्
च . सू . ७/४७ र्े. क्रर्
 पूवमकर्म- स्नेहन , स्वेदन
 प्रधानकर्म-वर्न, वविेचन , बय्स्त , नस्य
पश्चातकर्म-िसायन तथा वृषय योगों का प्रयोग
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 अन्ये संशोध्यस्य पाचन स्नेहन स्वेदनानन पूवमकर्म वविेचन बय्स्त नस्य
भशिर्ोक्षणानन प्रधान्कर्ं पेयाद्यान्न संसजमनं पश्चातकर्म . डल्हण
 पुवमकर्म - पाचन , स्नेहन , स्वेदन
 प्रधानकर्म - वर्न, वविेचन , बय्स्त ,नस्य ,भशिार्ोक्ष
 पश्चातकर्म - संसजमन क्रर्
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पंचकर्म
पुवमकर्म प्रधानकर्म पश्चातकर्म
पाचन ,
स्नेहन ,
स्वेदन
वर्न, वविेचन ,
बय्स्त ,नस्य
,भशिार्ोक्ष
संसजमन क्रर्
िसायन,वाजीकिण प्रयोग,
शर्न औषचध प्रयोग
4/29/2020www.pdgaacindore.in11
पूवमकर्म
 पाचन –
पचत्यार्ं न वय्ह्सन च कु यामद्यत्तद्चध पाचनर्
 स्नेहन –
स्नेहनं स्नेहववषयन्दर्ादमवक्लेदकािकर् ्
च. सु. २२/११
 स्वेदन –
स्तम्भगौिवशीतघ्नं स्वेदनं स्वेदकािकर् ्
च. सु.२२/११
4/29/2020www.pdgaacindore.in12
प्रथर्तः स्नेहन औि स्वेदन द्रव्य अपने सूक्ष्र् गुण से सूक्ष्र् स्रोतो तक पहुन्चते स्नेहन औि्
स्वेदन अपने द्रव औि क्लेदन कर्म से दोषों की वृद्चध किते हैं
य्स्नग्ध , सि , द्रव गुण से दोषों का ववलयन( ववषयन्दन) होता है
पाचन औि स्वेदन अय्ग्नयों का वधमन किता है व ् आर् का पाचन किता है
स्वेदन आर् का पाचन कि स्रोतोिोध दूि किता है
स्नेहन औि् स्वेदन के य्स्नग्ध औि उषण से वायु प्रकोप शांत
वायुननग्रह औि स्नेहन स्वेदन द्वािा दोषों का शाखा से कोष् र्ें गर्न
4/29/2020www.pdgaacindore.in13
बाह्सय स्नेहन
१. अभ्यन्ग
2. लेप
3. उद्वतमन
4. र्दमन-उन्र्दमन
5. पादाघात
6. संवाहन
7. परिषेक
8. अवगाह
4/29/2020www.pdgaacindore.in14
बाह्सय स्नेहन
9. गण्डूष
10 कवल
11. अक्षक्षतपमण
12. कणमपूिण
13. र्ाय्स्तषक्य (तलर्)
14. तलपोवत्तचचल
15. र्ूधमतैल/भशिःतपमण
४ प्रकाि- १.भशिोअभ्यन्ग २. भशिोसेक(भशिोधािा) ३. भशिोवपचु ४.
भशिोबय्स्त
4/29/2020www.pdgaacindore.in15
स्वेदन
संकि स्वेद(वपंड्सस्वेद)
षय्ष्कशाली वपंड स्वेद
पत्रवपंडस्वेद
बालुकास्वेद
नाडीस्वेद
परिषेकस्वेद
कायसेक(वपणझंचचल)
अव्गाहस्वेद
कु ह्स्वेद
उपनाहस्वेद
4/29/2020www.pdgaacindore.in16
प्रधानकर्म
वर्न - तत्र दोषहिणंर्ूध्वमभागं वर्नसंकर्
च. क. १/४
अपक्ववपत्तश्लेषर्ाणौ बलादूध्वं नयेत्तु यत्
वर्नं तद्चध ववग्यं र्दनस्य फ़लं यथा
शा. ४/८
4/29/2020www.pdgaacindore.in17
वविेचन
तत्र दोषहिणं अधोभागर् ् वविेचन संग्शकं च. क. १/४
4/29/2020www.pdgaacindore.in18
बय्स्त
4/29/2020www.pdgaacindore.in19
नस्य
 नस्य
औषधर् ् औषध भसद्धं स्नेहो वा नाभसकभ्यां दीयते इनत नस्यर् ्
सु.चच.४०/२१
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पंचकर्म औि शोधन
आचायों पंचकर्म का उल्लेख बिम्बाि शोधन
के उद्देश्य से ककया
 प्रभूत शोधन द्रव्यों का इसर्ें सर्ावेश ककया
है .
क्या पंचकर्म के वल शोधन है ?
 पंचकर्म प्रयशः शोधन है , के वल शोधन र्ात्र
नहीं .
 क्योंकक इसर्ें बृहण , लेखन , स्तम्भन ,
िसायन औि वृषय चचककत्सा का भी सर्ावेश
होता है .
4/29/2020www.pdgaacindore.in22
 उद. ननरुह के भेद - बृहण्बय्स्त,शर्नबय्स्त,लेखनबय्स्त भी होते
हैं .
 अनुवासन र्ें प्रयः बृहणत्व होता है .
 नस्य र्ें भी शर्न्नस्य,बृहण्नस्य होते हैं
 चिक ने पंचकर्म र्ें से भसफ़म वर्न , वविेचन , ननरुह
औि भशिोवविेचन ( चतुषप्रकािा संशुद्चध ) को शोधन र्ाना .
पंचकर्म भसफ़म दोंषों र्लों को ही नहीं ननकालता बय्ल्क प्रशस्त
धातुओं का भी ननर्ामण किता है .
4/29/2020www.pdgaacindore.in23
शोधन सर्ान्य भसद्धान्त
 पंचकर्म प्रयः शोधन है . जब शोधन ् की दृय्ष् से
प्रयोग किना हो तब शोधन के सार्ान्य
भसद्धान्त ध्यान िखना जरुिी
 दोष ववचाि –
३ अवस्था र्ें - बहुदोष -- संशोधनहहतं
र्ध्यदोष --लंघन पाचन
हीनदोष -- लंघन
4/29/2020www.pdgaacindore.in24
 सार्वस्था का ध्यान - शोधन स्रेषठ लेककन आर्ावस्था र्ें
ननवषद्ध
सवमदेहप्रववसृतान् सार्ान् दोषाय्न्न्नहमिेत
लीनान्धातुषव्नुय्त्क्लष्ान् फ़लादार्ाद्रसाय्न्नव
आस्रयस्य हह नाशाय ते स्युदुमननमहित्वतः अ.ह्.सु.१३/२८
तब
पाचनैदीप्नैः स्नेहैस्तान् स्वेदैश्च परिषकृ तान
शोधयेत्शोधनैःकाले यथासन्नं यथाबलर् ् अ.ह्.सु १३/२९
4/29/2020www.pdgaacindore.in25
उय्त्क्लष् अवस्था का ध्यान
उत्क्लीष्नध उध्वम वा न चार्ान्वहतः स्वयर् ्
धायेदोषधेदोषान् ववधृतास्ते हह िोगदाः अ.ह्.सु १३/31
 यहद दोष उय्त्क्लष् होकि उपि या नीचे के र्ागम से ननकलते
हों तों उन्हे औषचधयों के प्रयोग से िोकना नहीं चहहये .रुकने
पि अनेक िोग उत्पन्न होते हैं
 इसभलये इस अवस्था र्ें पंचकर्म द्वािा इन उय्त्क्लष् दोषों को
सर्ीप के र्ागम से ननकाल देना चहहये
4/29/2020www.pdgaacindore.in26
दोषगनत ध्यान
 ३ प्रकाि कक
 १. क्षय , स्थान , वृद्धि
क्षीणाःवय्ध्यमत्व्याः,सर्ापालानयत्व्याः,वृद्धाःह्रासनयत्व्याः
 २. उर्धवव , अिः , नियवक
दोषोत्क्लेश र्ें उस दोष को सर्ीपर्ागम से बाहि ननकालना
उदा. ह्रल्लासर्ें उध्वमगनत जानकि वर्न कर्म ननणमय किना
 ३. शाखा, कोष्ठ , ममावस्स्थसंधि ( बाह्सय,आभ्यान्ति , र्ध्यर् )
दोष् जब कोषठ र्ें तब शोधनकक्रया द्वािा शिीि् से बाहि
ननकालना सुलभ होता है
4/29/2020www.pdgaacindore.in27
 र्ध्यर् बाह्सय -- श्म्नोपचाि् इष् .
इनर्ें शोधन आवश्यक हो तो प्रथर्तः दोषों को शाखा
से कोषठ र्ें लाना पडता है .
वृद्ध्या ववषयन्दनात्पाकात् स्रोतोर्ुय्ख्वशोधनात्
शाखार्ुक्त्वार्लाः कोष्ं यांनत वायोश्च ननग्रहात च . सू
. २८/३३
 वृद्ध्या - दोषों का बढना
 ववषयन्दन - द्रव होकि घुलकि बहना
 पाकात् - औषधी से दोषों का पाक् होना
 स्रोतोर्ुखववशोधन - स्रोतों का अविोध ह्ना
 वायोय्श््नग्रहात् - वायु का ननग्रह
इस हेिु पंचकमव में पूववकमव - पाचन , स्नेहन और
स्वेदन सहायक होिे हैं
4/29/2020www.pdgaacindore.in28
पंचकर्म पूवम ववचािणीय ववषय
 प्रनतपत्तु प्रयोक्तु वा ; सूक्ष्र्ाणण हह
दोषभेषजदेशकालबलशिीिहािसात्म्यसत्वप्रकृ
नतवयसार्वस्थान्तिाणण
4/29/2020www.pdgaacindore.in29
दोष
 गनत
 स्वतन्त्र / पितन्त्र
 सार्/ननिार्
 अंशांस कल्पना
 धातुववशेष आश्रयत्व
4/29/2020www.pdgaacindore.in30
भेषज
 नव/पुिाण
 आद्र/शुषक
 स्विसाहद कल्पना
4/29/2020www.pdgaacindore.in31
देश
 १. भूभर्देश ( स्थान)
 २. आतुिदेश( िोगी परिक्षा दशववध परिक्षा
द्वािा
4/29/2020www.pdgaacindore.in32
काल
 साधािण ऋतु , अदुहदमन, नानतउषण ,
नानतशीत
 आषाढ, स्रावण,कानतमक,र्ागमशीष,फ़ल्गुन
औि् चैत्र शोधन हेतु श्रेषठ
 बसन्त -- वर्न धूर् , गन्डूष ,नावन
 वषाम -- बय्स्त
 शिद --- वविेचन ,िक्तर्ोक्षण
4/29/2020www.pdgaacindore.in33
बल
अल्प बल ---- र्ृदु वीयम द्रव्यों का प्रयोग
र्ध्शयर् ----- र्ध्शयर् वीयम द्रव्यों का प्रयोग
उत्तर्बल--- तीक्ष्ण वीयम द्र्वव्यों का प्र्योग
ककया जा सकता है.
4/29/2020www.pdgaacindore.in34
शिीि
स्थूल , कृ श , साियुक्त , सािहीन
आहाि
पंचकर्म र्ें लघु , उषण , नानतय्स्नग्ध ,
नानतरुक्ष भोजन का प्रयोग
 सात्म्य
िस सात्म्य से िोगी के बल का पिीक्षण
4/29/2020www.pdgaacindore.in35
 सत्व
सत्व के आधाि् पि औषचध र्ात्रा , कल्पना का
ननणमय
उदा. अवि सत्व िोगी र्ें र्ृदु वीयम औषचध का
प्रयोग
 पृक्रनत
पृक्रनत के अनुसाि र्ात्रा औि् कल्पनाओं र्ें अंति
उदा. वपत्तज पृक्रनत र्ें घृत स्नेहन हेतू श्रेषठ
 वय
4/29/2020www.pdgaacindore.in36
पंचकर्म वैभशष्य
 १. चिक ने लगभग सभी िोंगों र्ें पंचकर्म
का प्रयोग बताया .
 २. यह आयुवेद की शखओं ( अष्ांग) र्ें
कहीं र्ुख्यरुप से कहीं सहायक औि कहीं
चचककत्सा र्ें प्र्युक्त होता है .
 ३. पंचकर्म का चचककत्सा र्ें प्रयोग के
साथ ही शल्यपूवम , िसायन वाजीकिण के
पूवम औि िसौषचध के पूवम क्षेत्रीकिण र्ें
होता है .
4/29/2020www.pdgaacindore.in37
नाववशुद्धस्यचश्रिस्य युक्तो िसायनोववचधः
न भानत वासभस य्क्लष्े िङ्गग्योग
इवाहहतः सु.चच.२७/४
4/29/2020www.pdgaacindore.in38
 दोषः कदाचचत्कु प्यय्न्त य्जता लंघनपाचनैः
य्जताः संशोधनैये तु न तेषां पुनरुद्भवः
च ्.सू.१६/२०
4/29/2020www.pdgaacindore.in39
एवर् ् ववशुद्धकोषठस्य कायाय्ग्नभभमवधमते
व्याधयश्चोपशाम्यय्न्त प्रकृ नतश्चानुवतमते
व्ह्.सू. १६/१७
इय्न्द्रयाणण र्नो बुद्चधवमणमश्चास्य प्रसीदनत
बलं पुय्ष्िपत्यं च वृषता चास्य जायते
4/29/2020www.pdgaacindore.in40
जिां कृ ्छेण लभते चचिं जीवत्यनार्यह्
तस्र्ात ् सम्शोधनं काले युय्क्तयुक्तं
वपबेन्निः
4/29/2020www.pdgaacindore.in41
उ्चैभामषयं िथक्षोभय्म्तचन्क्रर्णासने
अजीणामहहत्भोज्ये च हदवास्वप्नं सर्ैथुनर््
च ् .भस .१२/११
4/29/2020www.pdgaacindore.in42
शून्यदेहं प्रनतकािंसहहषणु परिपालयेत
यथांडं तरुण पूणम तैलपात्रं यथैव च
गोपाल इव दंडीगाह् सवमस्र्ादप्चाितः
च.भस.१२/४-५
4/29/2020www.pdgaacindore.in43
धन्यवाद

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