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By-Dr.Shital Dhote
Guide-Dr.Mrs.Vandana Bhusari
सामान्य हेतु
 मिथ्याचारेण ता स्त्रीणाां प्रदुष्टेनाततवेन च । जायन्ते
बीजदोषाच्च दैवाच्च श्रुणु ता: पृथक ॥
च.चच.30/8
 मिथ्याचार
 प्रदुष्ट आततव
 बीजदोष
 दैव
योनिव्यापद हेतु दोषदुष्टी लक्षणे
वातजा वातवर्तक वात सूचीवततोद,वेदना,
आहार ववहार स्त्तांभ,वपपीमिकासृप्ततवत
ककातशता,सुप्तत,आयास,
सरुकफे नयुक्त,तनु,रुक्ष,
सशब्द,वेदनासह
आततवस्त्राव
वपत्तजा वपत्तवर्तक वपत्त दाह,पाक,उष्णता,ज्वर
आहार ववहार नीि,पीत, कृ ष्ण,
कु णपगांचर्,आततवस्त्राव
कफजा अमभष्यांदी आदद कफ योनन स्त्थानन
कफवर्तक शीत,सकण्डु,
अल्प आहार ववहार सपीडा पाण्डुवर्णतय स्त्राव
त्रिदोषजा - सवत रसात्िक दहत- त्ररदोष शूि,दाह,श्वेत वणीय
अदहत अनतवपप्च्िि
आततवस्त्राव
रक्तजा - रक्त,वपत्त वर्तक वपत्तज सगर्ाा अवस्थेत
आहार ववहार रक्तस्त्राव
अरजस्का - रक्त,वपत्त वर्तक वपत्तज रजप्रवृत्ती नसणे,
कृ श,वववणत
अचरणा अशुचच वातज योननस्त्थानीकृ िी
उत्पत्ती,कण्डु
अनतचरणा - अतीव्यवाय वातज योननस्त्थानी शोथ,
सुप्तत,पीडा

प्राकचरणा –अनतबािासह वातज पृष्ठ, कदट,वांक्षण,ऊरु
 व्यवाय प्रदेशी पीडा,योनीदूवषतता
उपप्लुता - कफवर्तक आहार ववहार वातकफज पाांडु,सतोद
विन श्वास वेगावरोर् , श्वेत वर्णतय स्त्राव,
अन्य कफवातज िक्षणे
पररतिुता -व्यवाय सियी वातवपत्तज योनीस्त्थानीशोथ,
क्षवथूउद्गार र्ारण स्त्पषातसहत्व
 नीि,पीत,आततवस्त्राव,
श्रोणी,वांक्षण,पृष्ठ स्त्थानी
, पीडा, ज्वर
 उदावनतािी - वेगावरोर् वातज वेदना,कृ च्रात रज:स्त्राव,
रजसो गिनादूर्ध्वं
आततव ननगतिन
पश्चात सुखानुभुती
 कर्णािी - प्रसवकाि सियी वातकफज योनीस्त्थानी
पूवत प्रवाहण कर्णतका
उत्पत्ती
 पुिघ्िी - रुक्ष आहार-ववहार वातज वारांवार गभत
ववनाश ,स्त्राव
अंतमुाखी- अनतभोजन पश्चात वातज योनी अांतिुतखी, योनी
ववकृ त आसन िर्ध्ये अप्स्त्थ,िाांस िर्ध्ये वातज-
व्यवाय पीडा व्यवाय असिथतता
सूचीमुखी- स्त्रीगभत सियी रुक्ष वातज गभतयोनीसूक्ष्ि िुखवत
आहार ववहार
शुष्का- व्यवायसियी वातज ववण्िूरसांग, योनीिुख
वेगववर्ारण शुष्कता
वाममिी- वातवपत्तज सरुजां नीरुजां
शुक्रां
स्त्रवेत
 षण्ढी - बीजदोष वातज स्त्रीगभातच्या गभातशयाचा
नाश,स्त्तनक्षय,व्यवायाननच्िा
 महायोिी- ववषिां दुख:शय्यानाां वातज गभातशय,योनीिुख,,
िैथुनात स्त्थब्र्ता,
असांवृतिुखी
योनी,रुक्ष,सफे न रज:स्त्राव
, िाांसोत्पन्ना िहायोनन
सांर्ी,वांक्षण शूि
चरक सुश्रुत वाग्र्ट
1. उदावनततनी
2. पररतिुता
3. वामिनी
4. पुरघ्नी
5. कर्णतनी
6. अचरणा
7. अनतचरणा
8. षण्ढी
9. िहायोनी
10. सूचीिुखी
11. वातजा
12. वपत्तजा
13. कफजा
14. सप्न्नपातजा
15. असृजा
16. अरजस्त्का
17. प्राकचरणा
1. उदावताा
2. पररतिुता
3. वामिनी
4. पुरघ्नी
5. कर्णतनी
6. अचरणा
7. अनतचरणा
8. षण्ढी
9. वववृता
10. संवृता
11. वातजा
12. वपत्तजा
13. कफजा
14. सप्न्नपातजा
15. वांर्ध्या
16. ववतिुता
17. लोहहतक्षया
18. प्रस्रांमसनी
19. अत्यानन्दा
20. फमिनी
1. उदावताा
2. पररतिुता
3. वामिनी
4. जातघ्िी
5. कर्णतनी
6. अनतचरणा
7. षण्ढी
8. िहायोनी
9. सूचीिुखी
10. वातजा
11. वपत्तजा
12. कफजा
13. सप्न्नपातजा
14. ववतिुता
15. लोहहतक्षया
16. प्राकचरणा
17. उपतिुता
सामान्य चचककत्सासूि स्त्नेहनस्त्वेदबस्त्त्यादद वातजास्त्वननिापहि ।
कारयेद्रक्तवपत्तघ्नां शीतां वपत्तकृ तासु च ॥
श्िेष्िजासु च रुक्षोष्णां कित कु यातद्ववचक्षण: ।
सप्न्नपाते ववमिश्रां तु सांसृष्टासु च कारयेत ॥
च.चच.30/41-42
वातव्याचर्हरां कित वातातातनाां सदा दहति ।
च.चच.30/47
 योनी दु:प्स्त्थता-प्स्त्नग्र्प्स्त्वन्ना स्त्थापयेत्पुन:
 वववृत्त्त - पार्णना सांवृत्तयेत योनन (िहायोनी)
 सांवृत्त- वववृत्तयेत (सूचचिुखी)
 प्रवेशयेत नन:सृता योनन
 सवत योननव्यापद िर्ध्ये सांशोर्न- स्त्नेहन स्त्वेदन पच्िात
विनादद पांचकित
वातज योनीरोग
 वातघ्न चचककत्सा. स्त्वेदनाथत- आनुप िाांस+ नतळ+
तण्डुि+दुर्-खीर/ वातघ्न क्वाथ -नाडी,कु म्भी
स्त्वेद/तीळ्तैि
 स्त्थाननक स्त्नेहन पच्िात अश्ि,प्रस्त्तर,सांकर स्त्वेदन
 बिादद यिक
 काश्ियातदद घृत
 वपतपल्यादद योग,वृषकादद चूणत,
 रस्त्नादद क्षीरपाक
 गुडूच्यादद क्वाथ
 सैन्र्वादद तैि,गुडूच्यादद तैि
 वपत्तज योिीरोग चचककत्सा- शीति,वपत्तनाशक
पररसेचन,स्त्नेहन,वपचू- वपत्तघ्न घृत
 शतावरी घृत,
 जीवनीय घृत,
 कफज योिीरोग चचककत्सा- सांशोर्न वनतत
 अकातदद वनतत, वपतपल्यादद वनतत,
 उदुम्बरादद तैि,
 उदुम्बर तैि,
 र्ातक्यादद तैि,
 करीरादद क्वाथ-योंनीर्ावण
 वपतपल्यादद चूणत-सेवन
 दोषािुसार उत्तरबस्ती-
 कफज-कटुरस द्रव्य क्वाथ+ गोिूर
 वपत्तज- िर्ुर द्रव्य क्वाथ+ दूर्
 वातज-अम्ि द्रव्य क्वाथ+तैि
 सप्न्नपातज-त्ररदोषज मभन्न मभन्न चचककत्सा
 रक्तयोिी चचककत्सा- रक्तवणत-रक्तस्त्थापन.
 वातज प्रदर-तीळ + िर्ु/ददह +िर्ु/ िर्ु+घृत
 वपत्तज प्रदर-पयस्त्या योग,पुष्यािुग चूणा,ववरेचनाथत-
िहानतक्त घृत
 कफज प्रदर-नीि पर+गुडूची कल्क युक्त
 अन्य-तांदुमियक िूि+िर्ु+तांदुिाम्बुना
 रक्तयोनी,अरजस्त्का,पुरघ्नी- काश्ियतकु टज मसद्धघृत
उत्तरबस्त्ती
 अरजस्त्का- जीवणीय गण क्षीरपाक
 कर्णतनी, अचरणा, शुष्कयोनी, प्राकचरणा, कफवातज
योनीरोग-जीवनीय गणमसद्ध तैि उत्तरबप्स्त्त
 अचरणा- रेमशि वस्त्र-गो/ित्स्त्य वपत्ते-21 भावना-बप्त्त
 प्राकचरणा,अनतचरणा-वातघ्नै शतपाकै तैि-
आस्त्थापन,अनुवासन ,वातघ्न द्रव्य-स्त्वेदन,उपनाह बांर्न
 वामिनी,उपतिुता-स्त्नेहन,स्त्वेदन पश्चात- वपचु र्ारण
 ववतिुता, पररतिुता-शल्िकी+िांजीठ+जम्बु+र्व+पञ्चवल्कि
क्वाथ-स्त्नेह वपचु
 कर्णतनी,-वती
 उदावतात,वातिा-त्ररवृत्तमसद्ध तैि -स्त्नेहन,स्त्वेदन,द्शिुळ
साचर्त क्षीरपान,उत्तरबस्त्ती
 िहायोनी,प्रस्त्रस्त्ता- घृत,वसा ,िज्जा अांत-बाह्य
प्रयोग,उत्तरबस्त्ती
 िहायोनी- िर्ुर गण+ऋषवराहा मसद्ध घृत योनीभरण
 प्रस्रस्त्ता-स्त्नेहन,स्त्वेदन,-यथास्त्थानप्स्त्थत-वेशवार-बांर्न
श्वेतप्रदर िाशक योग
 रोदहतक िूि + सीता + िर्ु
 आििकी बीज चूणत + सीता+ िर्ु
 आििकी स्त्वरस/चूणत + िर्ु
 न्यग्रोर् त्वक क्वाथ + िोध्र चूणत
 तिक्ष त्वक चूणत + िर्ु
 िोध्र+ वप्रयांगु + िुिहठी चूणत + िर्ु वती
 वपच्छिला योिी चचककत्सा-
 कासीसादद योग-वती पिशादद वती
 स्तब्ध ,कका श योिी चचककत्सा, दुगंधिाशि- स्त्तब्र्,ककत श योनी-
वेशवार,पायस,कृ शरा-पोट्टिी र्ारण
 दुगंर् नाशक- तुवरक क्वाथ/ कल्क
शुक्रदुच्ष्ट
निदाि -
आहारज
ववहारज वैद्य चुकीमुळे व्याधीजन्य
रुक्ष,नतक्त,
कषाय,
अनतिवण,
अनतअम्ि,उ
ष्ण
असात्म्य
सेवन
अकाले
नारीणािरस-
ज्ञानाां,
,अनतव्यवाय,
व्यायाि,
वेगावरोर्
चचांता,शोक,
ववस्रम्भ,अयो
ननगिन,ददवसा
,
शस्त्र,क्षार,
अप्ग्नकित
ववभ्रि
अनतसार,
व्याचर्जन्य -
काश्यत
शुक्रवहस्त्रोतस
स्त्थानीआघात,
र्ातु दुष्टी
वातज वपत्तज कफज रक्तज वेगधारि-
अवसादी
फे ननि
तनु
रुक्ष
कृ च्िेण
स्त्रवनत
गभतस्त्थापन-
असिथत
नीि-पीत
वणीय
अनतउष्ण
पुतीगांर्ी
सदाह
ननष्क्रिन
अनतवपप्च्िि रक्तमिचश्रत-
(अनत
स्त्रीगिनात
अमभघातात
क्षतात
ग्रचथत
कृ च्िेण
स्त्रवनत-
दौबतल्यता
शुक्र अष्ट दोष
फे ननिां तनु रुक्षां च वववणं पूनत वपप्च्ििि ।
अन्यर्ातूपसांसृष्टिवसादद तथाऽष्टिि ॥ च.चच.30/139
वात वपत्त श्िेष्ि कु णप ग्रप्न्थ,पूनतपूय,क्षीण, िूर पुररष
मिश्रीत—सू.शा.2/3
शुद्ध शुक्र लक्षण
 प्स्त्नग्र्ां घनां वपप्च्ििां च िर्ुरां चाववदादह च।
 रेत: शुद्धां ववजानीयाच््वेतां स्त्फदटकसप्न्नभि ॥ च.चच.30/145
 शुक्रदोष सामान्य चचककत्सा-
 वाजीकरणयोग , उदा.-जीवनीयघृत
 रक्तवपत्तनाशक योग , च्यवनप्राशाविेह
 योननव्यापद चचककत्सा योग शुद्ध मशिाप्जत
शुक्रदोष दोषािुसार चचककत्सा-
 वायु- ननरुह, अनुवासन बप्स्त्त
 वपत्त- अभयाििकीय रसायन
 कफ- वपतपिी र.,आििकी र., िोह र,त्ररफिा र. ,
भल्िातक र.
शुक्र + अन्य र्ातु- शुक्र सम्बद्ध र्ातु,दोषाची चचककत्सा
 पथ्य- घृत, दुर्,िाांसरस,शािी,यव,गोर्ूि,तसेच-
ननरुह,अनुवासन,उत्तरबप्स्त्त प्रयोग
 क्लैब्य-
बीजध्वजोपघाताभयां जरया शुक्रसंक्षयात ।
क्िैब्यां सम्पद्यते तस्त्य श्रुणु सािान्यिक्षणि ॥
च.चच.30/154
 लक्षणे- मिङ्गशैचथल्य,श्वासातत,प्स्त्वन्न गार,म्िान
मशश्न,ननबीज
चचककत्सा- शुक्रदोषेषु ननददतष्टां, क्षीणक्षत चचककत्सा.
 अनतव्यवाय/वातादद दोष जन्य ववषिता-
 शुक्रदोषनाशक ,सांवर्तनाथत बप्स्त्त,औषर्ीमसद्ध
दुग्र्,घृत,वाजीकरण- रसायन औषर्ी प्रयोग
 अमभचार जन्य क्िैब्य- दैव्यव्यपाश्रय चचककत्सा
 त्रबजोपघातज क्लैब्य निदाि-
आहारज ववहारज व्याधीजन्य
रुक्ष,शीत,अल्प
सांप्क्िष्ट,
ववरुद्ध,
अजीणत भोजन
शोक,चचांता,भय,
रासात
अनतप्स्त्रसेवन,
अमभचार,
ववस्रम्भ
अनशन,
अनतश्रि
पांचकित
अदहतयोग,
नारीणािरस-
ज्ञानाां,
रसादी र्ातुक्षय
वातादी दोष
वैषम्य
 त्रबजोपघातज क्लैब्य लक्षणे - अल्पप्राण, अल्पहषत,
पाण्डुता,दुबति, ह्र्द्द्रोग,पाांडु,तिकश्वास,काििा,
श्रिपीडडत,िदी,अनतसार,शूि,कास,ज्वर
बीजोपघातज क्लैब्य चचककत्सा-
 सांशोर्न- स्त्नेहन,स्त्वेदन पश्चात-स्त्नेहयुक्त ववरेचन- पथ्य -
ननरुह-अनुवासन-ननरुह( पिाश,एरांदादी)
 च.चच.2 िर्ीि वाजीकरण योग सेवन
ध्वजर्ंग निदाि-
आहारज ववहारज व्याधीजन्य
अनतअम्ि,
िवण,क्षार,
ववरुद्ध,
असात्म्य
भोजन,
अत्यांबूपान,
ववषिाशन,
वपष्टान्न गुरु
भोजन,दचर्,
क्षीर,आनुप,
िाांससेवन,
कन्यासह
िैथुन,
अयोननगिन,
रजस्त्विा/जीणत
रोगी स्त्रीसह
िैथुन
दुगंर्युक्त,दुष्ट
योनीसह
िैथुन,शस्त्र,दांत
नख याांनी
क्षत,तीक्ष्ण
औषर्ी प्रयोग
व्यार्ीकषतण
 ध्वजर्ंग लक्षणे-
 िेढ्र्सस्त्थानी राग, श्वयथु, वेदना,
 मिांग स्त्थानी स्त्फ़ोट, पक्वता, िाांसवृद्धी, शीघ्र
व्रणोत्पत्ती,तण्डुि र्ावन प्रिाणे-श्याव,अरुण वर्णतय
स्त्राव, कठीण,विय ननमितती,
 ज्वर,तृष्णा,िूच्िात,िदी उत्पत्ती,
 व्रणातून रक्त,कृ ष्ण नीि,दुवषत रक्त वर्णतय स्त्राव,
 मिांग स्त्थानी अप्ग्नवत दाह,वेदना -
बस्त्ती,वृषण,सीवनी,वांक्षण स्त्थानी प्रसर.
 व्रण - वपप्च्िि ,पाांडु वर्णतय स्त्राव,
 शोथ किी/वृद्धी- कॄ िीउत्पत्ती, पूनतगांर्,
 ववशीयतते िर्णश्च,िेढ्र,िुष्क
र्ध्वजभांग चचककत्सा
 िुरेंदद्रय स्त्थानी प्रदेह,पररषेक,रक्तिोक्षण.
 स्त्नेहपान पश्चात स्त्नेहयुक्त ववरेचन.
 अनुवासन / ननरुह बस्त्ती,
 व्रण चचककत्सा
 जराजन्य क्लैब्य-
ननदान
 रसाददनाां सांक्षयात, वृष्यअसेवनात,
 बि,वीयत,इप्न्द्रय क्रिश: क्षीण, आयुक्षीणता,
 अनशन अनतश्रि
शररर -इप्न्द्रय मशचथिता,वृद्धावस्त्था िुळे
िक्षणे-
र्ातुक्षीणता, दुबतिता,ववकृ त वणत, बिहीन,दीन, क्षक्षप्रां
व्याचर्िथाश्नुते
क्षयज क्िैब्यनिदाि -
आहारज
ववहारज व्याधीजन्य
कृ श असून रुक्ष-
अन्न पेय, औषर्
सेवन ,दुबति
असून-
उपवास,
अनत- , शोक,
चचांता, भय
क्रोर् , ईष्यात,
उत्कां ठीत राहणे
िद – उद्वेग
झाल्याने,
िक्षणे-
रसा सह सवत र्ातूक्षीणता,शुक्र क्षीणता.,वीयत क्षीणता,-
क्षयरोग प्राप्तत,-िृत्यू
जराजन्य व क्षयज क्लैब्य चचककत्सा
 स्त्नेहन,स्त्वेदन पश्चात स्त्नेहयुक्त ववरेचन. क्षीरसवपत,
वृष्य योग सेवन, यापन बप्स्त्त ,रसायन योग सेवन
 सार्ध्यासार्ध्यता
 र्ध्वजभांग, क्षयजन्य- असार्ध्य
 सवतसांम्ित- शेफ च्िेदात,वृषण उत्पाटन
 सप्न्नपातज- असार्ध्य
 जन्िजात क्िैब्य- असार्ध्य
प्रदर-(menorrhagia)
निदाि-
 िवण , अम्ि, गुरु,कटु, ववदाही ,प्स्त्नग्र्,पदाथत सेवन,
ग्राम्यौदक िेदज प्राण्याांचे िाांस सेवन,कृ शरा,पायस,दचर्,शक्तु
,िस्त्तु, सुरा,सेवन
 संप्राच्प्त
हेतुसेवन
वात प्रकोप
रक्त प्रिाणत: वृवद्ध
रजोवाही मसराांिद्धे आचश्रत होऊन
रज िारा वृद्धी( स्त्वाभाववक िारा वृद्धी )
असृग्दर
प्रदर प्रकार-
 प्रदर प्रकार- वातज वपत्तज कफज सप्न्नपातज
 वातज प्रदर- ननदान सांप्राप्तत पूवत वर्णतत (
िक्षणे-
 फे ननि, तनु,रुक्ष, श्याव, अरुण,ककां शुकोदक सिान, सरुजां
/नीरुजां कदट, वांक्षण, ह्रदय, पाश्वत ,पृष्ठ , श्रोर्णप्रदेशी तीव्र
वेदना
 वपत्तज प्रदर- ननदान सांप्राप्तत पूवत वर्णतत
िक्षणे-
 नीि,/पीत वर्णतय, उष्ण, अमसतां, रक्त वर्णतय, सदाह,
तृषा,राग,िोह,ज्वर,िूच्िात ,भ्रि सह,सािान्य काििर्ध्ये
2/3 वेळा
 कफज प्रदर-ननदान सांप्राप्तत पूवत वर्णतत
 योनी िर्ून वपप्च्िि,पाांडु वर्णतय, गुरु,प्स्त्नग्र्, शीति,
कफाांश युक्त, घन रक्तस्त्राव,विन, अरुचच,ह्रल्िास,
श्वास,कास उत्पत्ती
 त्ररदोषज प्रदर- ननदान पूवत वणीत
सांप्राप्तत-
त्ररदोष प्रकोपक आहार-ववहार
प्रकु वपत वायु योनीस्त्थानी आचश्रत
चचककत्सा असार्ध्य कफ ननगतिन
 िक्षणे-
 अनतकष्टता,रक्ताल्पता,
 दुगंर्ी, वपप्च्िि,पीत कफस्त्राव- वपत्तािुळे
 घृत, िज्जा,वसा प्रिाणे- रक्तस्त्राव-वायुिुळे
 असाध्य प्रदर-
 सतत स्त्राव ननगतिन ,
 तृष्णा,दाह,ज्वर पीडडत
 रक्तक्षीणता, दुबति
 प्रदर चचककत्सा-वातिादद योनीव्यापद प्रिाणे चचककत्सा.
 रक्तानतसार,रक्ताशत,रक्तवपत्त प्रिाणे
 शुद्ध आताव लक्षणे-
 िासात, ननप्ष्पच्ि दाह रदहत,
 न अनत बहुि न अल्प,
 पञ्चरार असेि.
 गुञ्जाफि सवणत,
 रक्तकिि , िाक्षारस, इन्द्रगोप सदृश्य वणीय आततव
 गुञ्जाफिसवणं च पद्मािक्तकसप्न्नभि ।
इन्द्रगोपकसङ्काशिाततवां शुद्धिाददशेत ॥ च.चच.30/226
स्त्तन्य दोष ननदानआहारज ववहारज व्याधीजन्य
अनतिवण, अम्ि,
कटु, क्षार,प्रप्क्िन्न
पदाथत,गुरु,िर्ुर,कृ शरा
,दही,अमभश्यांदी,आनुप,
औदक िाांस,
अनतिद्यसेवन,
अप्जणाततअसात्म्य,
ववषि ववरुद्ध ,
अनतभोजन,िन शरीर
सांतापात, रात्ररजागरण,
वेगववर्ारण, अप्रातत
उदीरण,ददवास्त्वाप,
अनायास,अमभघात,
क्रोर्,
आतांक कषतणात
सांप्रातती- हेतूसेवन
त्ररदोष प्रकोप
क्षीरवहा मसरास्त्थानी आचश्रत
स्त्तन्यदोष
 दोषािुसार स्तन्य दोष- वात- ववरस, फे नसांघात, रुक्ष,
वपत्त- वैवण्यत, दौगंर्ध्य,
कफ- अनत प्स्त्नग्र्,पैप्च्िि,गुरु.
 वातज क्षीरदोष-1. वातप्रकोपक आहार ववहार- दुग्र् िर्ुरता
नष्ट -ववरस- बािक कृ श,अरुचीपूवतक दुग्र्पान
 कृ च्िेन वृवद्ध
 2. पुवत हेतुिुळे- प्रकु वपत वायु- दुग्र् िांथन- फे नोत्पत्ती,कृ च्िात
दुग्र् प्रवततते-क्षािस्त्वरो,बद्धववण्िूरिारुत,वानतक मशरोरोग,पीनस
उत्पत्ती
 3. पुवत हेतुिुळे- प्रकु वपत वायु-स्त्तन्ये स्त्नेह शोष, रुक्ष दुग्र्-
बािक बिहीन
 वपत्तज क्षीरदोष- 1.उष्ण आहार-ववहार-वपत्त प्रकोप-दुग्र्-
पीत,नीि,कृ ष्ण वणीय-प्राशन पश्चात बािक ववकृ त
वणत,अनत स्त्वेद,तृष्णा,द्रविि ,उष्ण शररर,स्त्तन्य द्वेष
 2.उपरोक्त हेतुिुळे- दुगंर्ी दुग्र्- बािक-पाांडु काििा
आक्राांत
 कफज क्षीरदोष- गुरु ,प्स्त्नग्र् आहार-ववहार-दुग्र्-
अनतप्स्त्नग्र्-प्राशन पश्चात-विन,कुां थुन
ििप्रवृत्ती,िािास्त्राव नासा,िुख स्त्रावयुक्त, ननद्रा, क्िि,
श्वास, कास, िािास्त्राव, तिक श्वास पीडडत
 2. गुरु - स्त्तन्य गुरुता- बािक ह्र्द्द्रोग पीडडत,आदद अन्य
व्याचर्
 स्तन्य दोष चचककत्सा-
तरादौ स्त्तन्यशुद्धयथं दारीां स्त्नेहोपपाददताि ।
सांस्त्वेद्य ववचर्वद्वैद्यो विनेनोपपादयेत ॥
च.चच.30/251
 विन योग- वचा,वप्रयांगु,यष्टी, िदनफि,वत्सक,सषतप+
नीि/ पटोि क्वाथ+सैंर्व
 ववरेचन योग-त्ररवृत्त / अभया चुणत+ त्ररफिा क्वाथ/
अभया+ िर्ु
पथ्य- शािी, शष्ठी,श्यािा तांडुि,जव,कोदो.
वांश,वेर,किाय पर.
युष- ननम्ब,वेर,वातातक,आििकी ,िुांग,िसुर कु िचथ युष
 स्तन्याशोधक सामान्य योग-
 शाङगेष्टा ,सततपणात, अश्वगांर्ा क्वाथ
 कु टकी क्वाथ
 गुडुची, सततपणात,सुांठ क्वाथ
 ककरातनतक्त क्वाथ
 क्षीरदोष ववमशष्ट चचककत्सा-
 ववरस-द्राक्षा, िर्ुक, साररवा + जि, पञ्चकोिादद िेप
 फे नसांघात-पाठा, नागर,शाङगेष्ठ,िूवात, अञ्जनादद
िेप,ककराप्त्तक्तादद क्वाथ,यवादद िेप
 रुक्ष क्षीर-दुग्र्शोर्क गण,जीवकाद्य प्रिेप
 वववणत- यष्टी,िर्ुक,िृद्ववक,पयस्त्या,मसांर्ुवाररका+ जि,
द्राक्षादद िेप
 दुगंर् -ववषार्णका, शृांगी,त्ररफिा,हळ्द वचा+ जि,
सररवादद िेप
 अनतप्स्त्नग्र् क्ष्रीर-दारु,िुस्त्ता,पाठा+सैंर्व+ उष्ण जि
 वपप्च्िि क्षीर-शाङगेष्ठ, वचा,अभया,िुस्त्ता,
सुांठ,पाठा,तक्राररष्ट, ववदायातदद िेप
 गुरुक्षीर -रायिण,गुडुची, नीांब, पटोि,त्ररफिा क्वाथ,
बिादद िेप
बालरोग चचककत्सा-दोषदूष्यििाश्चैव िहताां व्यार्यश्च ये ।
त एव सवे बािानाां िारा त्वल्पतरा िता ॥
च.चच.30/282
 अन्नाद बािक- अल्प
 क्षीरन्नाद- अल्पतर
 क्षीराद् - अल्पति
 दोषादद िारानुसार- औषर्ी िारा
ननवृप्त्तवतिनादीनाां िृदुत्वां परतन्रताि ।
भेषजां स्त्वल्पिारां तु यथाव्याचर् प्रयोजयेत ॥
िर्ुरार्ण कषायार्ण क्षीरवप्न्त िृदुनन च ॥
च.चच.30/283-285
त्याज्य द्रव्य- अनत प्स्त्नग्र्, रुक्ष,उष्ण, अम्ि, कटु ववपाकी,गुरु-
औषर् अन्नपान,
 चचककत्सास्थाि- रहस्य
इनत सवतववकाराणािुक्तिेतप्च्चककप्त्सति ।
स्त्थानिेतवद्ध तन्रस्त्य रहस्त्यां परिुत्तिि ॥
च.चच.30/288
 चरकसांदहता सांस्त्कार- 1-13 अर्ध्याय- िहवषत चरक प्रनतसांस्त्कृ ते
अप्ग्नवेशतन्र
 14-30 आचायत दृढबि द्वारा पूणतत्व
 अिुक्त रोग चचककत्सा मसद्धांत-
रोगा येऽतयर नोदिष्टा बहुत्वान्नािरुपत: ।
तेषाितयेतदेव स्त्यािोषादीन वीक्ष्य भेषजि ॥
दोषदूष्यननदानानाां ववपरीतां दहतां ध्रुवि ।
उक्तानुक्तान गदान सवातन सम्यग्युक्तां ननयच्िनत॥
च.चच.30/291-292
सम्यग योग हीच चचककत्सा
देशकािप्रिाणानाां सात्म्यासात्म्यस्त्य चैव दह।
सम्यग्योगोऽन्यथा ह्येषाां पथ्यितयन्यथा भवेत ॥
च.चच.30/293
 देश- आतुर
 काि- ददन,रुग्ण,औषर्,व्याचर्,जीणत िक्षण,ऋतु-षडववर् काि व
दशववर् औषर्काि ववचार
 प्रिाण- अल्प,िर्ध्य,बहु
 सात्म्य- अनुकु ि-दहतकर
 असात्म्य- प्रनतकु ि आहार-ववहार
 देश सम्यक योग- िुखिागत द्वार औषर् सेवन-आिाशय रोग कायत
 नामसका िागत-मशरोरोग
 गुदिागत- पक्वाशय रोग
 त्वचादद िागत- प्रिेपादद
 कािापेक्ष सिग्योग-
 ददनापेक्ष काि सिग्योग-ददवसाच्या उचचत सियी औषर् प्रयोग-पूवातण्ह विन
 रोग्यपेक्ष काि सिग्योग-रोगी बिाचा ववचार करुन औषर् प्रयोग- सबि-
ननरन्न
 दुबति-िघु पथ्य भोजन पश्चात
 औषधापेक्ष काल समग्योग-
भैषज्यकािो भुक्तादौ िर्ध्ये पश्चान्िुहुिुतहु: ।
सािुद्गां भक्तसांयुक्तां ग्रासग्रासान्तरे दश॥
च.चच.30/298
औषर्सेवन काि
र्क्तादौ 1.प्रात: निरन्ि औषध सेवि
2.र्ोजि पूवा औषध सेवि
िर्ध्ये अर्े जेवण- औषर् - अर्े जेवण
पश्चात 1.प्रात: भोजनोत्तर औषर् सेवन
2.सायां भोजनोत्तर औषर् सेवन
िुहूिुतहु भोजन सियी प्रनतक्षण औषर् सेवन
सािुद्ग भोजन आर्ी – नांतर औषर् सेवन
सांभुक्त अन्नाहार सह औषर् सेवन
ग्रास भोजनाचे काही घासाांसह औषर् सेवन
ग्रासान्तर प्रत्येक घासाांसह औषर् सेवन
वागर्ट िुसार (अ.ह्र.सू.13/37) सुश्रुतिुसार (सु.उ.64/65)
अनन्न- िांघन/ उपवास अभक्त
भोजनपूवत- प्राग्भक्त
भोजन िर्ध्ये अर्ोभक्त
भोजनान्ते िर्ध्ये भक्त
घासािर्ध्ये मिसळून/ दोन
घासाांिर्ध्ये
अांतराभक्त
प्रत्येक घासासाह सभक्त
िुहूिुतहु सािुद्ग
सान्न िुहूिुतहु
सािुद्ग ( भोजनाचे आर्ी-
नांतर )
ग्रास
ननमश ग्रासाांतर
दशऔषर्काि प्रयोगस्त्थळ
 अपान वायु दुष्टी- भोजन पूवत
 सिान वायु दुष्टी- भोजन िर्ध्य
 व्यान वायु दुष्टी- प्रात: भोजनपूवत
 उदान वायु दुष्टी- भोजनोत्तर
 प्राण वायु दुष्टी- भोजनाचेवेळी घासाांसह
 श्वास,कास, वपपासा- िुहुिुतहु
 दहक्का- िघु पथ्यान्न सह भोजन पूवत-नांतर
 अरुची- स्त्वाददष्ट भोजन सह सांभुक्त
 शारंगधर िुसार-
 प्रथम काल- वपत्त/कफ वृद्धी िर्ध्ये,ववरेचन/ विन साठी,दोष िेखनाथत-प्रात: काि
 द्ववतीय काल-अपान वायु ववकृ ती-भोजन पुवत, अरुची-भोजन सह मिसळुन, सिान
वायु ववकृ ती,िांदाप्ग्न-अप्ग्नवर्तक औषर्-भोजनाचे िर्ध्ये
व्यान वायु ववकृ ती-भोजनाचे अांती,
दहक्का,आक्षेपक,कां पवात-भोजन पुवी+भोजन अांती
 तृतीय काल- स्त्वभेद,कास,दहक्का-उदान वायु ववकृ ती-सायां सग्रास, प्राणवायु
ववकृ ती- सायां भोजनान्ते
 चतुथा काल-तृष्णा,विन,दहक्का,श्वास, गरववष सेवन पश्चात-िुहुिुतहु भोजन सह
 पंचम काल-ऊर्ध्वत जरुगत रोग,िेखन,बृांहण,पाचन, शिन कायत -ननमश
 रोगापेक्ष काि सम्यग्योग- ज्वर रोग अवस्त्था नुसार 6
ददवसानांतर पेयादद सेवन
 जीणतिक्षणापेक्ष काि सम्यग्योग- क्षुद्वेग िोक्ष,िघुता,शुवद्ध
(ह्रुदय स्त्थानी िघुता), उद्गारशुद्धी- पश्चात औषर् सेवन -
अन्यथा दोषकारक
 ऋत्वपेक्षकाि सम्यग्योग- ऋतुनुसार पथ्य आहार सेवन-
अपथ्य त्याज्य
 औषर्ापेक्ष काि ज्ञान िहत्त्व-
इत्येवां षड्ववर्ां काििनवेक्ष्य मभषप्ग्जति ।
प्रयुक्तिदहताय स्त्यात सस्त्यस्त्याकािवषतवत ॥
च.चच.30/307
 कािापेक्ष- रोग, ऋतु ,ददवस ,रार ,आयु, भोजन सांबांर्ी
काि
 ऋतुिर्ध्ये दोषज रोग-
काल वातज रोग वपत्तज रोग कफज रोग
ऋतु वषात शरद वसांत
ददवस ददनान्त िर्ध्यददन प्रात:
रार ननशान्त िर्ध्यरारी आददरारी
वय वार्तक्य िर्ध्यवय बाल्यावस्त्था
भोजन जीणांन्त जीयतिाण भुक्तिार
 प्रमाणापेक्ष सम्यक योग-
नाल्पां हन्त्यौषर्ां व्याचर्ां यथाऽऽपोऽल्पा िहानिि ।
दोषवच्चानतिारां स्त्यात्सस्त्यस्त्यात्युदकां यथा ॥
च.चच. 30/313
 सात्म्यापेक्ष सम्यक योग-
औचचत्याद्यस्त्य यत सात्म्यां देशस्त्य पुरुषस्त्य च ।
अपथ्यिवप नैकान्तात्त्यजांल्िभते सुखि ॥
सात्म्यां ह्याशु बिां र्त्ते नानतदोषां च बह्ववप ॥
च.चच.30/315
 उदा.- बाल्हीक, पह्िव, चीन ,शूिीक,यवन, शक देश-
िाांस, र्ूि,िार्ध्वीक, शस्त्र, अप्ग्नसेवन अभ्यस्त्त
 पुवी क्षेर- ित्स्त्य सात्म्य
 मसन्र्ु देश- दुर् सात्म्य
 अश्िक,अवन्ती देश- तैि,अम्िरसयुक्त आहार सात्म्य
 ििय क्षेर- कन्द,िूि,फि सात्म्य
 दक्षक्षण देश- पेया
 उत्तर-पप्श्चि देश- िन्थ सात्म्य
 देश िर्ध्य भाग-यव,गोर्ूि,दुर् जन्य पदाथत सात्म्य
 ववपरीताथाकारी चचककत्सा
तथाऽन्त: सप्न्र्िागातणाां दोषाणाां गूढचाररणाि ।
भवेत कदाचचत कायातवप ववरुद्धामभिता कक्रया ॥
च.चच.30/321-322
 उदा.- वपत्ताांतगतत ऊष्िा ननगतिणाथत-
उष्स्त्वेद,सेक,उपनाह
 बाह्य शीत उपचार- अांतगतत कफ शिन- बाह्य चांदन,
अगरु िेप- दाह शिनाथत
 िक्षक्षका ववष्ठा- िददत नाशक,िक्षक्षका- विन करणारी
 अप्स्त्वन्न द्रव्य - प्स्त्वन्न द्रव्य
 दश परीक्ष्य भाव-
च.सू.15/5 च.वव.8/68 च.मस.3/6
1. दोष
2. औषर्
3. देश
4. काि
5. बि
6. शरीर
7. आहार
8. सात्म्य
9. सत्व
10.प्रकृ ती
11. वय
1. कारण
2. करण
3. कायतयोनी
4. कायत
5. कायतफि
6. अनुबांर्
7. देश
8. काि
9. प्रवृप्त्त
10.उपाय
1. दोष
2. औषर्
3. देश
4. काि
5. सात्म्य
6. अप्ग्न
7. सत्व
8. ओक
9. वय
10.बि
 व्याधीमुक्ती पश्चात चचककत्सा महत्त्व-
ननवृत्तोऽवप पुनव्यातचर्: स्त्वल्पेनायानत हेतुना ।
क्षीणे िागीकृ ते देहे शेष: सूष्ि इवानि: ॥
तस्त्िात्तिनुबर्ध्नीयात प्रयोगेणानपानयना।
मसद्धयथं प्राकप्रयुक्तस्त्य मसद्धस्त्यातयौषर्स्त्य तु ॥
च.चच. 30/327-328
 पथ्य अन्िाचे महत्व-
 काठीन्यात, ऊनभावात - शरररस्त्थ दोष प्रकोप पथ्य
आहार-ववहार िृदु व्याचर् उत्पन्न
 पथ्य अन्न,औषर्ी व्याचर् उत्पत्ती पथ्य िारा वृद्धी
सातत्यात्स्त्वाद्वभावाद्वा पथ्यां द्वेष्यत्विागति ।
कल्पनाववचर्मभस्त्तैस्त्तै: वप्रयत्वां गियेत पुन: ॥
च.चच.30/33-332
THANK YOU

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Yonivyapd chikitsa ch chi

  • 2. सामान्य हेतु  मिथ्याचारेण ता स्त्रीणाां प्रदुष्टेनाततवेन च । जायन्ते बीजदोषाच्च दैवाच्च श्रुणु ता: पृथक ॥ च.चच.30/8  मिथ्याचार  प्रदुष्ट आततव  बीजदोष  दैव
  • 3. योनिव्यापद हेतु दोषदुष्टी लक्षणे वातजा वातवर्तक वात सूचीवततोद,वेदना, आहार ववहार स्त्तांभ,वपपीमिकासृप्ततवत ककातशता,सुप्तत,आयास, सरुकफे नयुक्त,तनु,रुक्ष, सशब्द,वेदनासह आततवस्त्राव वपत्तजा वपत्तवर्तक वपत्त दाह,पाक,उष्णता,ज्वर आहार ववहार नीि,पीत, कृ ष्ण, कु णपगांचर्,आततवस्त्राव कफजा अमभष्यांदी आदद कफ योनन स्त्थानन कफवर्तक शीत,सकण्डु, अल्प आहार ववहार सपीडा पाण्डुवर्णतय स्त्राव
  • 4. त्रिदोषजा - सवत रसात्िक दहत- त्ररदोष शूि,दाह,श्वेत वणीय अदहत अनतवपप्च्िि आततवस्त्राव रक्तजा - रक्त,वपत्त वर्तक वपत्तज सगर्ाा अवस्थेत आहार ववहार रक्तस्त्राव अरजस्का - रक्त,वपत्त वर्तक वपत्तज रजप्रवृत्ती नसणे, कृ श,वववणत अचरणा अशुचच वातज योननस्त्थानीकृ िी उत्पत्ती,कण्डु अनतचरणा - अतीव्यवाय वातज योननस्त्थानी शोथ, सुप्तत,पीडा 
  • 5. प्राकचरणा –अनतबािासह वातज पृष्ठ, कदट,वांक्षण,ऊरु  व्यवाय प्रदेशी पीडा,योनीदूवषतता उपप्लुता - कफवर्तक आहार ववहार वातकफज पाांडु,सतोद विन श्वास वेगावरोर् , श्वेत वर्णतय स्त्राव, अन्य कफवातज िक्षणे पररतिुता -व्यवाय सियी वातवपत्तज योनीस्त्थानीशोथ, क्षवथूउद्गार र्ारण स्त्पषातसहत्व  नीि,पीत,आततवस्त्राव, श्रोणी,वांक्षण,पृष्ठ स्त्थानी , पीडा, ज्वर
  • 6.  उदावनतािी - वेगावरोर् वातज वेदना,कृ च्रात रज:स्त्राव, रजसो गिनादूर्ध्वं आततव ननगतिन पश्चात सुखानुभुती  कर्णािी - प्रसवकाि सियी वातकफज योनीस्त्थानी पूवत प्रवाहण कर्णतका उत्पत्ती  पुिघ्िी - रुक्ष आहार-ववहार वातज वारांवार गभत ववनाश ,स्त्राव
  • 7. अंतमुाखी- अनतभोजन पश्चात वातज योनी अांतिुतखी, योनी ववकृ त आसन िर्ध्ये अप्स्त्थ,िाांस िर्ध्ये वातज- व्यवाय पीडा व्यवाय असिथतता सूचीमुखी- स्त्रीगभत सियी रुक्ष वातज गभतयोनीसूक्ष्ि िुखवत आहार ववहार शुष्का- व्यवायसियी वातज ववण्िूरसांग, योनीिुख वेगववर्ारण शुष्कता वाममिी- वातवपत्तज सरुजां नीरुजां शुक्रां स्त्रवेत
  • 8.  षण्ढी - बीजदोष वातज स्त्रीगभातच्या गभातशयाचा नाश,स्त्तनक्षय,व्यवायाननच्िा  महायोिी- ववषिां दुख:शय्यानाां वातज गभातशय,योनीिुख,, िैथुनात स्त्थब्र्ता, असांवृतिुखी योनी,रुक्ष,सफे न रज:स्त्राव , िाांसोत्पन्ना िहायोनन सांर्ी,वांक्षण शूि
  • 9. चरक सुश्रुत वाग्र्ट 1. उदावनततनी 2. पररतिुता 3. वामिनी 4. पुरघ्नी 5. कर्णतनी 6. अचरणा 7. अनतचरणा 8. षण्ढी 9. िहायोनी 10. सूचीिुखी 11. वातजा 12. वपत्तजा 13. कफजा 14. सप्न्नपातजा 15. असृजा 16. अरजस्त्का 17. प्राकचरणा 1. उदावताा 2. पररतिुता 3. वामिनी 4. पुरघ्नी 5. कर्णतनी 6. अचरणा 7. अनतचरणा 8. षण्ढी 9. वववृता 10. संवृता 11. वातजा 12. वपत्तजा 13. कफजा 14. सप्न्नपातजा 15. वांर्ध्या 16. ववतिुता 17. लोहहतक्षया 18. प्रस्रांमसनी 19. अत्यानन्दा 20. फमिनी 1. उदावताा 2. पररतिुता 3. वामिनी 4. जातघ्िी 5. कर्णतनी 6. अनतचरणा 7. षण्ढी 8. िहायोनी 9. सूचीिुखी 10. वातजा 11. वपत्तजा 12. कफजा 13. सप्न्नपातजा 14. ववतिुता 15. लोहहतक्षया 16. प्राकचरणा 17. उपतिुता
  • 10. सामान्य चचककत्सासूि स्त्नेहनस्त्वेदबस्त्त्यादद वातजास्त्वननिापहि । कारयेद्रक्तवपत्तघ्नां शीतां वपत्तकृ तासु च ॥ श्िेष्िजासु च रुक्षोष्णां कित कु यातद्ववचक्षण: । सप्न्नपाते ववमिश्रां तु सांसृष्टासु च कारयेत ॥ च.चच.30/41-42 वातव्याचर्हरां कित वातातातनाां सदा दहति । च.चच.30/47  योनी दु:प्स्त्थता-प्स्त्नग्र्प्स्त्वन्ना स्त्थापयेत्पुन:  वववृत्त्त - पार्णना सांवृत्तयेत योनन (िहायोनी)  सांवृत्त- वववृत्तयेत (सूचचिुखी)  प्रवेशयेत नन:सृता योनन  सवत योननव्यापद िर्ध्ये सांशोर्न- स्त्नेहन स्त्वेदन पच्िात विनादद पांचकित
  • 11. वातज योनीरोग  वातघ्न चचककत्सा. स्त्वेदनाथत- आनुप िाांस+ नतळ+ तण्डुि+दुर्-खीर/ वातघ्न क्वाथ -नाडी,कु म्भी स्त्वेद/तीळ्तैि  स्त्थाननक स्त्नेहन पच्िात अश्ि,प्रस्त्तर,सांकर स्त्वेदन  बिादद यिक  काश्ियातदद घृत  वपतपल्यादद योग,वृषकादद चूणत,  रस्त्नादद क्षीरपाक  गुडूच्यादद क्वाथ  सैन्र्वादद तैि,गुडूच्यादद तैि
  • 12.  वपत्तज योिीरोग चचककत्सा- शीति,वपत्तनाशक पररसेचन,स्त्नेहन,वपचू- वपत्तघ्न घृत  शतावरी घृत,  जीवनीय घृत,  कफज योिीरोग चचककत्सा- सांशोर्न वनतत  अकातदद वनतत, वपतपल्यादद वनतत,  उदुम्बरादद तैि,  उदुम्बर तैि,  र्ातक्यादद तैि,  करीरादद क्वाथ-योंनीर्ावण  वपतपल्यादद चूणत-सेवन
  • 13.  दोषािुसार उत्तरबस्ती-  कफज-कटुरस द्रव्य क्वाथ+ गोिूर  वपत्तज- िर्ुर द्रव्य क्वाथ+ दूर्  वातज-अम्ि द्रव्य क्वाथ+तैि  सप्न्नपातज-त्ररदोषज मभन्न मभन्न चचककत्सा  रक्तयोिी चचककत्सा- रक्तवणत-रक्तस्त्थापन.  वातज प्रदर-तीळ + िर्ु/ददह +िर्ु/ िर्ु+घृत  वपत्तज प्रदर-पयस्त्या योग,पुष्यािुग चूणा,ववरेचनाथत- िहानतक्त घृत  कफज प्रदर-नीि पर+गुडूची कल्क युक्त  अन्य-तांदुमियक िूि+िर्ु+तांदुिाम्बुना
  • 14.  रक्तयोनी,अरजस्त्का,पुरघ्नी- काश्ियतकु टज मसद्धघृत उत्तरबस्त्ती  अरजस्त्का- जीवणीय गण क्षीरपाक  कर्णतनी, अचरणा, शुष्कयोनी, प्राकचरणा, कफवातज योनीरोग-जीवनीय गणमसद्ध तैि उत्तरबप्स्त्त  अचरणा- रेमशि वस्त्र-गो/ित्स्त्य वपत्ते-21 भावना-बप्त्त  प्राकचरणा,अनतचरणा-वातघ्नै शतपाकै तैि- आस्त्थापन,अनुवासन ,वातघ्न द्रव्य-स्त्वेदन,उपनाह बांर्न
  • 15.  वामिनी,उपतिुता-स्त्नेहन,स्त्वेदन पश्चात- वपचु र्ारण  ववतिुता, पररतिुता-शल्िकी+िांजीठ+जम्बु+र्व+पञ्चवल्कि क्वाथ-स्त्नेह वपचु  कर्णतनी,-वती  उदावतात,वातिा-त्ररवृत्तमसद्ध तैि -स्त्नेहन,स्त्वेदन,द्शिुळ साचर्त क्षीरपान,उत्तरबस्त्ती  िहायोनी,प्रस्त्रस्त्ता- घृत,वसा ,िज्जा अांत-बाह्य प्रयोग,उत्तरबस्त्ती  िहायोनी- िर्ुर गण+ऋषवराहा मसद्ध घृत योनीभरण  प्रस्रस्त्ता-स्त्नेहन,स्त्वेदन,-यथास्त्थानप्स्त्थत-वेशवार-बांर्न
  • 16. श्वेतप्रदर िाशक योग  रोदहतक िूि + सीता + िर्ु  आििकी बीज चूणत + सीता+ िर्ु  आििकी स्त्वरस/चूणत + िर्ु  न्यग्रोर् त्वक क्वाथ + िोध्र चूणत  तिक्ष त्वक चूणत + िर्ु  िोध्र+ वप्रयांगु + िुिहठी चूणत + िर्ु वती  वपच्छिला योिी चचककत्सा-  कासीसादद योग-वती पिशादद वती  स्तब्ध ,कका श योिी चचककत्सा, दुगंधिाशि- स्त्तब्र्,ककत श योनी- वेशवार,पायस,कृ शरा-पोट्टिी र्ारण  दुगंर् नाशक- तुवरक क्वाथ/ कल्क
  • 17. शुक्रदुच्ष्ट निदाि - आहारज ववहारज वैद्य चुकीमुळे व्याधीजन्य रुक्ष,नतक्त, कषाय, अनतिवण, अनतअम्ि,उ ष्ण असात्म्य सेवन अकाले नारीणािरस- ज्ञानाां, ,अनतव्यवाय, व्यायाि, वेगावरोर् चचांता,शोक, ववस्रम्भ,अयो ननगिन,ददवसा , शस्त्र,क्षार, अप्ग्नकित ववभ्रि अनतसार, व्याचर्जन्य - काश्यत शुक्रवहस्त्रोतस स्त्थानीआघात, र्ातु दुष्टी
  • 18. वातज वपत्तज कफज रक्तज वेगधारि- अवसादी फे ननि तनु रुक्ष कृ च्िेण स्त्रवनत गभतस्त्थापन- असिथत नीि-पीत वणीय अनतउष्ण पुतीगांर्ी सदाह ननष्क्रिन अनतवपप्च्िि रक्तमिचश्रत- (अनत स्त्रीगिनात अमभघातात क्षतात ग्रचथत कृ च्िेण स्त्रवनत- दौबतल्यता शुक्र अष्ट दोष फे ननिां तनु रुक्षां च वववणं पूनत वपप्च्ििि । अन्यर्ातूपसांसृष्टिवसादद तथाऽष्टिि ॥ च.चच.30/139 वात वपत्त श्िेष्ि कु णप ग्रप्न्थ,पूनतपूय,क्षीण, िूर पुररष मिश्रीत—सू.शा.2/3
  • 19. शुद्ध शुक्र लक्षण  प्स्त्नग्र्ां घनां वपप्च्ििां च िर्ुरां चाववदादह च।  रेत: शुद्धां ववजानीयाच््वेतां स्त्फदटकसप्न्नभि ॥ च.चच.30/145  शुक्रदोष सामान्य चचककत्सा-  वाजीकरणयोग , उदा.-जीवनीयघृत  रक्तवपत्तनाशक योग , च्यवनप्राशाविेह  योननव्यापद चचककत्सा योग शुद्ध मशिाप्जत
  • 20. शुक्रदोष दोषािुसार चचककत्सा-  वायु- ननरुह, अनुवासन बप्स्त्त  वपत्त- अभयाििकीय रसायन  कफ- वपतपिी र.,आििकी र., िोह र,त्ररफिा र. , भल्िातक र. शुक्र + अन्य र्ातु- शुक्र सम्बद्ध र्ातु,दोषाची चचककत्सा  पथ्य- घृत, दुर्,िाांसरस,शािी,यव,गोर्ूि,तसेच- ननरुह,अनुवासन,उत्तरबप्स्त्त प्रयोग
  • 21.  क्लैब्य- बीजध्वजोपघाताभयां जरया शुक्रसंक्षयात । क्िैब्यां सम्पद्यते तस्त्य श्रुणु सािान्यिक्षणि ॥ च.चच.30/154  लक्षणे- मिङ्गशैचथल्य,श्वासातत,प्स्त्वन्न गार,म्िान मशश्न,ननबीज चचककत्सा- शुक्रदोषेषु ननददतष्टां, क्षीणक्षत चचककत्सा.  अनतव्यवाय/वातादद दोष जन्य ववषिता-  शुक्रदोषनाशक ,सांवर्तनाथत बप्स्त्त,औषर्ीमसद्ध दुग्र्,घृत,वाजीकरण- रसायन औषर्ी प्रयोग  अमभचार जन्य क्िैब्य- दैव्यव्यपाश्रय चचककत्सा
  • 22.  त्रबजोपघातज क्लैब्य निदाि- आहारज ववहारज व्याधीजन्य रुक्ष,शीत,अल्प सांप्क्िष्ट, ववरुद्ध, अजीणत भोजन शोक,चचांता,भय, रासात अनतप्स्त्रसेवन, अमभचार, ववस्रम्भ अनशन, अनतश्रि पांचकित अदहतयोग, नारीणािरस- ज्ञानाां, रसादी र्ातुक्षय वातादी दोष वैषम्य
  • 23.  त्रबजोपघातज क्लैब्य लक्षणे - अल्पप्राण, अल्पहषत, पाण्डुता,दुबति, ह्र्द्द्रोग,पाांडु,तिकश्वास,काििा, श्रिपीडडत,िदी,अनतसार,शूि,कास,ज्वर बीजोपघातज क्लैब्य चचककत्सा-  सांशोर्न- स्त्नेहन,स्त्वेदन पश्चात-स्त्नेहयुक्त ववरेचन- पथ्य - ननरुह-अनुवासन-ननरुह( पिाश,एरांदादी)  च.चच.2 िर्ीि वाजीकरण योग सेवन
  • 24. ध्वजर्ंग निदाि- आहारज ववहारज व्याधीजन्य अनतअम्ि, िवण,क्षार, ववरुद्ध, असात्म्य भोजन, अत्यांबूपान, ववषिाशन, वपष्टान्न गुरु भोजन,दचर्, क्षीर,आनुप, िाांससेवन, कन्यासह िैथुन, अयोननगिन, रजस्त्विा/जीणत रोगी स्त्रीसह िैथुन दुगंर्युक्त,दुष्ट योनीसह िैथुन,शस्त्र,दांत नख याांनी क्षत,तीक्ष्ण औषर्ी प्रयोग व्यार्ीकषतण
  • 25.  ध्वजर्ंग लक्षणे-  िेढ्र्सस्त्थानी राग, श्वयथु, वेदना,  मिांग स्त्थानी स्त्फ़ोट, पक्वता, िाांसवृद्धी, शीघ्र व्रणोत्पत्ती,तण्डुि र्ावन प्रिाणे-श्याव,अरुण वर्णतय स्त्राव, कठीण,विय ननमितती,  ज्वर,तृष्णा,िूच्िात,िदी उत्पत्ती,  व्रणातून रक्त,कृ ष्ण नीि,दुवषत रक्त वर्णतय स्त्राव,  मिांग स्त्थानी अप्ग्नवत दाह,वेदना - बस्त्ती,वृषण,सीवनी,वांक्षण स्त्थानी प्रसर.  व्रण - वपप्च्िि ,पाांडु वर्णतय स्त्राव,  शोथ किी/वृद्धी- कॄ िीउत्पत्ती, पूनतगांर्,  ववशीयतते िर्णश्च,िेढ्र,िुष्क
  • 26. र्ध्वजभांग चचककत्सा  िुरेंदद्रय स्त्थानी प्रदेह,पररषेक,रक्तिोक्षण.  स्त्नेहपान पश्चात स्त्नेहयुक्त ववरेचन.  अनुवासन / ननरुह बस्त्ती,  व्रण चचककत्सा
  • 27.  जराजन्य क्लैब्य- ननदान  रसाददनाां सांक्षयात, वृष्यअसेवनात,  बि,वीयत,इप्न्द्रय क्रिश: क्षीण, आयुक्षीणता,  अनशन अनतश्रि शररर -इप्न्द्रय मशचथिता,वृद्धावस्त्था िुळे िक्षणे- र्ातुक्षीणता, दुबतिता,ववकृ त वणत, बिहीन,दीन, क्षक्षप्रां व्याचर्िथाश्नुते
  • 28. क्षयज क्िैब्यनिदाि - आहारज ववहारज व्याधीजन्य कृ श असून रुक्ष- अन्न पेय, औषर् सेवन ,दुबति असून- उपवास, अनत- , शोक, चचांता, भय क्रोर् , ईष्यात, उत्कां ठीत राहणे िद – उद्वेग झाल्याने, िक्षणे- रसा सह सवत र्ातूक्षीणता,शुक्र क्षीणता.,वीयत क्षीणता,- क्षयरोग प्राप्तत,-िृत्यू
  • 29. जराजन्य व क्षयज क्लैब्य चचककत्सा  स्त्नेहन,स्त्वेदन पश्चात स्त्नेहयुक्त ववरेचन. क्षीरसवपत, वृष्य योग सेवन, यापन बप्स्त्त ,रसायन योग सेवन  सार्ध्यासार्ध्यता  र्ध्वजभांग, क्षयजन्य- असार्ध्य  सवतसांम्ित- शेफ च्िेदात,वृषण उत्पाटन  सप्न्नपातज- असार्ध्य  जन्िजात क्िैब्य- असार्ध्य
  • 30. प्रदर-(menorrhagia) निदाि-  िवण , अम्ि, गुरु,कटु, ववदाही ,प्स्त्नग्र्,पदाथत सेवन, ग्राम्यौदक िेदज प्राण्याांचे िाांस सेवन,कृ शरा,पायस,दचर्,शक्तु ,िस्त्तु, सुरा,सेवन  संप्राच्प्त हेतुसेवन वात प्रकोप रक्त प्रिाणत: वृवद्ध रजोवाही मसराांिद्धे आचश्रत होऊन रज िारा वृद्धी( स्त्वाभाववक िारा वृद्धी ) असृग्दर
  • 31. प्रदर प्रकार-  प्रदर प्रकार- वातज वपत्तज कफज सप्न्नपातज  वातज प्रदर- ननदान सांप्राप्तत पूवत वर्णतत ( िक्षणे-  फे ननि, तनु,रुक्ष, श्याव, अरुण,ककां शुकोदक सिान, सरुजां /नीरुजां कदट, वांक्षण, ह्रदय, पाश्वत ,पृष्ठ , श्रोर्णप्रदेशी तीव्र वेदना  वपत्तज प्रदर- ननदान सांप्राप्तत पूवत वर्णतत िक्षणे-  नीि,/पीत वर्णतय, उष्ण, अमसतां, रक्त वर्णतय, सदाह, तृषा,राग,िोह,ज्वर,िूच्िात ,भ्रि सह,सािान्य काििर्ध्ये 2/3 वेळा
  • 32.  कफज प्रदर-ननदान सांप्राप्तत पूवत वर्णतत  योनी िर्ून वपप्च्िि,पाांडु वर्णतय, गुरु,प्स्त्नग्र्, शीति, कफाांश युक्त, घन रक्तस्त्राव,विन, अरुचच,ह्रल्िास, श्वास,कास उत्पत्ती  त्ररदोषज प्रदर- ननदान पूवत वणीत सांप्राप्तत- त्ररदोष प्रकोपक आहार-ववहार प्रकु वपत वायु योनीस्त्थानी आचश्रत चचककत्सा असार्ध्य कफ ननगतिन  िक्षणे-  अनतकष्टता,रक्ताल्पता,  दुगंर्ी, वपप्च्िि,पीत कफस्त्राव- वपत्तािुळे  घृत, िज्जा,वसा प्रिाणे- रक्तस्त्राव-वायुिुळे
  • 33.  असाध्य प्रदर-  सतत स्त्राव ननगतिन ,  तृष्णा,दाह,ज्वर पीडडत  रक्तक्षीणता, दुबति  प्रदर चचककत्सा-वातिादद योनीव्यापद प्रिाणे चचककत्सा.  रक्तानतसार,रक्ताशत,रक्तवपत्त प्रिाणे
  • 34.  शुद्ध आताव लक्षणे-  िासात, ननप्ष्पच्ि दाह रदहत,  न अनत बहुि न अल्प,  पञ्चरार असेि.  गुञ्जाफि सवणत,  रक्तकिि , िाक्षारस, इन्द्रगोप सदृश्य वणीय आततव  गुञ्जाफिसवणं च पद्मािक्तकसप्न्नभि । इन्द्रगोपकसङ्काशिाततवां शुद्धिाददशेत ॥ च.चच.30/226
  • 35. स्त्तन्य दोष ननदानआहारज ववहारज व्याधीजन्य अनतिवण, अम्ि, कटु, क्षार,प्रप्क्िन्न पदाथत,गुरु,िर्ुर,कृ शरा ,दही,अमभश्यांदी,आनुप, औदक िाांस, अनतिद्यसेवन, अप्जणाततअसात्म्य, ववषि ववरुद्ध , अनतभोजन,िन शरीर सांतापात, रात्ररजागरण, वेगववर्ारण, अप्रातत उदीरण,ददवास्त्वाप, अनायास,अमभघात, क्रोर्, आतांक कषतणात सांप्रातती- हेतूसेवन त्ररदोष प्रकोप क्षीरवहा मसरास्त्थानी आचश्रत स्त्तन्यदोष
  • 36.  दोषािुसार स्तन्य दोष- वात- ववरस, फे नसांघात, रुक्ष, वपत्त- वैवण्यत, दौगंर्ध्य, कफ- अनत प्स्त्नग्र्,पैप्च्िि,गुरु.  वातज क्षीरदोष-1. वातप्रकोपक आहार ववहार- दुग्र् िर्ुरता नष्ट -ववरस- बािक कृ श,अरुचीपूवतक दुग्र्पान  कृ च्िेन वृवद्ध  2. पुवत हेतुिुळे- प्रकु वपत वायु- दुग्र् िांथन- फे नोत्पत्ती,कृ च्िात दुग्र् प्रवततते-क्षािस्त्वरो,बद्धववण्िूरिारुत,वानतक मशरोरोग,पीनस उत्पत्ती  3. पुवत हेतुिुळे- प्रकु वपत वायु-स्त्तन्ये स्त्नेह शोष, रुक्ष दुग्र्- बािक बिहीन
  • 37.  वपत्तज क्षीरदोष- 1.उष्ण आहार-ववहार-वपत्त प्रकोप-दुग्र्- पीत,नीि,कृ ष्ण वणीय-प्राशन पश्चात बािक ववकृ त वणत,अनत स्त्वेद,तृष्णा,द्रविि ,उष्ण शररर,स्त्तन्य द्वेष  2.उपरोक्त हेतुिुळे- दुगंर्ी दुग्र्- बािक-पाांडु काििा आक्राांत  कफज क्षीरदोष- गुरु ,प्स्त्नग्र् आहार-ववहार-दुग्र्- अनतप्स्त्नग्र्-प्राशन पश्चात-विन,कुां थुन ििप्रवृत्ती,िािास्त्राव नासा,िुख स्त्रावयुक्त, ननद्रा, क्िि, श्वास, कास, िािास्त्राव, तिक श्वास पीडडत  2. गुरु - स्त्तन्य गुरुता- बािक ह्र्द्द्रोग पीडडत,आदद अन्य व्याचर्
  • 38.  स्तन्य दोष चचककत्सा- तरादौ स्त्तन्यशुद्धयथं दारीां स्त्नेहोपपाददताि । सांस्त्वेद्य ववचर्वद्वैद्यो विनेनोपपादयेत ॥ च.चच.30/251  विन योग- वचा,वप्रयांगु,यष्टी, िदनफि,वत्सक,सषतप+ नीि/ पटोि क्वाथ+सैंर्व  ववरेचन योग-त्ररवृत्त / अभया चुणत+ त्ररफिा क्वाथ/ अभया+ िर्ु पथ्य- शािी, शष्ठी,श्यािा तांडुि,जव,कोदो. वांश,वेर,किाय पर. युष- ननम्ब,वेर,वातातक,आििकी ,िुांग,िसुर कु िचथ युष
  • 39.  स्तन्याशोधक सामान्य योग-  शाङगेष्टा ,सततपणात, अश्वगांर्ा क्वाथ  कु टकी क्वाथ  गुडुची, सततपणात,सुांठ क्वाथ  ककरातनतक्त क्वाथ  क्षीरदोष ववमशष्ट चचककत्सा-  ववरस-द्राक्षा, िर्ुक, साररवा + जि, पञ्चकोिादद िेप  फे नसांघात-पाठा, नागर,शाङगेष्ठ,िूवात, अञ्जनादद िेप,ककराप्त्तक्तादद क्वाथ,यवादद िेप  रुक्ष क्षीर-दुग्र्शोर्क गण,जीवकाद्य प्रिेप
  • 40.  वववणत- यष्टी,िर्ुक,िृद्ववक,पयस्त्या,मसांर्ुवाररका+ जि, द्राक्षादद िेप  दुगंर् -ववषार्णका, शृांगी,त्ररफिा,हळ्द वचा+ जि, सररवादद िेप  अनतप्स्त्नग्र् क्ष्रीर-दारु,िुस्त्ता,पाठा+सैंर्व+ उष्ण जि  वपप्च्िि क्षीर-शाङगेष्ठ, वचा,अभया,िुस्त्ता, सुांठ,पाठा,तक्राररष्ट, ववदायातदद िेप  गुरुक्षीर -रायिण,गुडुची, नीांब, पटोि,त्ररफिा क्वाथ, बिादद िेप
  • 41. बालरोग चचककत्सा-दोषदूष्यििाश्चैव िहताां व्यार्यश्च ये । त एव सवे बािानाां िारा त्वल्पतरा िता ॥ च.चच.30/282  अन्नाद बािक- अल्प  क्षीरन्नाद- अल्पतर  क्षीराद् - अल्पति  दोषादद िारानुसार- औषर्ी िारा ननवृप्त्तवतिनादीनाां िृदुत्वां परतन्रताि । भेषजां स्त्वल्पिारां तु यथाव्याचर् प्रयोजयेत ॥ िर्ुरार्ण कषायार्ण क्षीरवप्न्त िृदुनन च ॥ च.चच.30/283-285 त्याज्य द्रव्य- अनत प्स्त्नग्र्, रुक्ष,उष्ण, अम्ि, कटु ववपाकी,गुरु- औषर् अन्नपान,
  • 42.  चचककत्सास्थाि- रहस्य इनत सवतववकाराणािुक्तिेतप्च्चककप्त्सति । स्त्थानिेतवद्ध तन्रस्त्य रहस्त्यां परिुत्तिि ॥ च.चच.30/288  चरकसांदहता सांस्त्कार- 1-13 अर्ध्याय- िहवषत चरक प्रनतसांस्त्कृ ते अप्ग्नवेशतन्र  14-30 आचायत दृढबि द्वारा पूणतत्व  अिुक्त रोग चचककत्सा मसद्धांत- रोगा येऽतयर नोदिष्टा बहुत्वान्नािरुपत: । तेषाितयेतदेव स्त्यािोषादीन वीक्ष्य भेषजि ॥ दोषदूष्यननदानानाां ववपरीतां दहतां ध्रुवि । उक्तानुक्तान गदान सवातन सम्यग्युक्तां ननयच्िनत॥ च.चच.30/291-292
  • 43. सम्यग योग हीच चचककत्सा देशकािप्रिाणानाां सात्म्यासात्म्यस्त्य चैव दह। सम्यग्योगोऽन्यथा ह्येषाां पथ्यितयन्यथा भवेत ॥ च.चच.30/293  देश- आतुर  काि- ददन,रुग्ण,औषर्,व्याचर्,जीणत िक्षण,ऋतु-षडववर् काि व दशववर् औषर्काि ववचार  प्रिाण- अल्प,िर्ध्य,बहु  सात्म्य- अनुकु ि-दहतकर  असात्म्य- प्रनतकु ि आहार-ववहार
  • 44.  देश सम्यक योग- िुखिागत द्वार औषर् सेवन-आिाशय रोग कायत  नामसका िागत-मशरोरोग  गुदिागत- पक्वाशय रोग  त्वचादद िागत- प्रिेपादद  कािापेक्ष सिग्योग-  ददनापेक्ष काि सिग्योग-ददवसाच्या उचचत सियी औषर् प्रयोग-पूवातण्ह विन  रोग्यपेक्ष काि सिग्योग-रोगी बिाचा ववचार करुन औषर् प्रयोग- सबि- ननरन्न  दुबति-िघु पथ्य भोजन पश्चात  औषधापेक्ष काल समग्योग- भैषज्यकािो भुक्तादौ िर्ध्ये पश्चान्िुहुिुतहु: । सािुद्गां भक्तसांयुक्तां ग्रासग्रासान्तरे दश॥ च.चच.30/298
  • 45. औषर्सेवन काि र्क्तादौ 1.प्रात: निरन्ि औषध सेवि 2.र्ोजि पूवा औषध सेवि िर्ध्ये अर्े जेवण- औषर् - अर्े जेवण पश्चात 1.प्रात: भोजनोत्तर औषर् सेवन 2.सायां भोजनोत्तर औषर् सेवन िुहूिुतहु भोजन सियी प्रनतक्षण औषर् सेवन सािुद्ग भोजन आर्ी – नांतर औषर् सेवन सांभुक्त अन्नाहार सह औषर् सेवन ग्रास भोजनाचे काही घासाांसह औषर् सेवन ग्रासान्तर प्रत्येक घासाांसह औषर् सेवन
  • 46. वागर्ट िुसार (अ.ह्र.सू.13/37) सुश्रुतिुसार (सु.उ.64/65) अनन्न- िांघन/ उपवास अभक्त भोजनपूवत- प्राग्भक्त भोजन िर्ध्ये अर्ोभक्त भोजनान्ते िर्ध्ये भक्त घासािर्ध्ये मिसळून/ दोन घासाांिर्ध्ये अांतराभक्त प्रत्येक घासासाह सभक्त िुहूिुतहु सािुद्ग सान्न िुहूिुतहु सािुद्ग ( भोजनाचे आर्ी- नांतर ) ग्रास ननमश ग्रासाांतर
  • 47. दशऔषर्काि प्रयोगस्त्थळ  अपान वायु दुष्टी- भोजन पूवत  सिान वायु दुष्टी- भोजन िर्ध्य  व्यान वायु दुष्टी- प्रात: भोजनपूवत  उदान वायु दुष्टी- भोजनोत्तर  प्राण वायु दुष्टी- भोजनाचेवेळी घासाांसह  श्वास,कास, वपपासा- िुहुिुतहु  दहक्का- िघु पथ्यान्न सह भोजन पूवत-नांतर  अरुची- स्त्वाददष्ट भोजन सह सांभुक्त
  • 48.  शारंगधर िुसार-  प्रथम काल- वपत्त/कफ वृद्धी िर्ध्ये,ववरेचन/ विन साठी,दोष िेखनाथत-प्रात: काि  द्ववतीय काल-अपान वायु ववकृ ती-भोजन पुवत, अरुची-भोजन सह मिसळुन, सिान वायु ववकृ ती,िांदाप्ग्न-अप्ग्नवर्तक औषर्-भोजनाचे िर्ध्ये व्यान वायु ववकृ ती-भोजनाचे अांती, दहक्का,आक्षेपक,कां पवात-भोजन पुवी+भोजन अांती  तृतीय काल- स्त्वभेद,कास,दहक्का-उदान वायु ववकृ ती-सायां सग्रास, प्राणवायु ववकृ ती- सायां भोजनान्ते  चतुथा काल-तृष्णा,विन,दहक्का,श्वास, गरववष सेवन पश्चात-िुहुिुतहु भोजन सह  पंचम काल-ऊर्ध्वत जरुगत रोग,िेखन,बृांहण,पाचन, शिन कायत -ननमश
  • 49.  रोगापेक्ष काि सम्यग्योग- ज्वर रोग अवस्त्था नुसार 6 ददवसानांतर पेयादद सेवन  जीणतिक्षणापेक्ष काि सम्यग्योग- क्षुद्वेग िोक्ष,िघुता,शुवद्ध (ह्रुदय स्त्थानी िघुता), उद्गारशुद्धी- पश्चात औषर् सेवन - अन्यथा दोषकारक  ऋत्वपेक्षकाि सम्यग्योग- ऋतुनुसार पथ्य आहार सेवन- अपथ्य त्याज्य  औषर्ापेक्ष काि ज्ञान िहत्त्व- इत्येवां षड्ववर्ां काििनवेक्ष्य मभषप्ग्जति । प्रयुक्तिदहताय स्त्यात सस्त्यस्त्याकािवषतवत ॥ च.चच.30/307
  • 50.  कािापेक्ष- रोग, ऋतु ,ददवस ,रार ,आयु, भोजन सांबांर्ी काि  ऋतुिर्ध्ये दोषज रोग- काल वातज रोग वपत्तज रोग कफज रोग ऋतु वषात शरद वसांत ददवस ददनान्त िर्ध्यददन प्रात: रार ननशान्त िर्ध्यरारी आददरारी वय वार्तक्य िर्ध्यवय बाल्यावस्त्था भोजन जीणांन्त जीयतिाण भुक्तिार
  • 51.  प्रमाणापेक्ष सम्यक योग- नाल्पां हन्त्यौषर्ां व्याचर्ां यथाऽऽपोऽल्पा िहानिि । दोषवच्चानतिारां स्त्यात्सस्त्यस्त्यात्युदकां यथा ॥ च.चच. 30/313  सात्म्यापेक्ष सम्यक योग- औचचत्याद्यस्त्य यत सात्म्यां देशस्त्य पुरुषस्त्य च । अपथ्यिवप नैकान्तात्त्यजांल्िभते सुखि ॥ सात्म्यां ह्याशु बिां र्त्ते नानतदोषां च बह्ववप ॥ च.चच.30/315
  • 52.  उदा.- बाल्हीक, पह्िव, चीन ,शूिीक,यवन, शक देश- िाांस, र्ूि,िार्ध्वीक, शस्त्र, अप्ग्नसेवन अभ्यस्त्त  पुवी क्षेर- ित्स्त्य सात्म्य  मसन्र्ु देश- दुर् सात्म्य  अश्िक,अवन्ती देश- तैि,अम्िरसयुक्त आहार सात्म्य  ििय क्षेर- कन्द,िूि,फि सात्म्य  दक्षक्षण देश- पेया  उत्तर-पप्श्चि देश- िन्थ सात्म्य  देश िर्ध्य भाग-यव,गोर्ूि,दुर् जन्य पदाथत सात्म्य
  • 53.  ववपरीताथाकारी चचककत्सा तथाऽन्त: सप्न्र्िागातणाां दोषाणाां गूढचाररणाि । भवेत कदाचचत कायातवप ववरुद्धामभिता कक्रया ॥ च.चच.30/321-322  उदा.- वपत्ताांतगतत ऊष्िा ननगतिणाथत- उष्स्त्वेद,सेक,उपनाह  बाह्य शीत उपचार- अांतगतत कफ शिन- बाह्य चांदन, अगरु िेप- दाह शिनाथत  िक्षक्षका ववष्ठा- िददत नाशक,िक्षक्षका- विन करणारी  अप्स्त्वन्न द्रव्य - प्स्त्वन्न द्रव्य
  • 54.  दश परीक्ष्य भाव- च.सू.15/5 च.वव.8/68 च.मस.3/6 1. दोष 2. औषर् 3. देश 4. काि 5. बि 6. शरीर 7. आहार 8. सात्म्य 9. सत्व 10.प्रकृ ती 11. वय 1. कारण 2. करण 3. कायतयोनी 4. कायत 5. कायतफि 6. अनुबांर् 7. देश 8. काि 9. प्रवृप्त्त 10.उपाय 1. दोष 2. औषर् 3. देश 4. काि 5. सात्म्य 6. अप्ग्न 7. सत्व 8. ओक 9. वय 10.बि
  • 55.  व्याधीमुक्ती पश्चात चचककत्सा महत्त्व- ननवृत्तोऽवप पुनव्यातचर्: स्त्वल्पेनायानत हेतुना । क्षीणे िागीकृ ते देहे शेष: सूष्ि इवानि: ॥ तस्त्िात्तिनुबर्ध्नीयात प्रयोगेणानपानयना। मसद्धयथं प्राकप्रयुक्तस्त्य मसद्धस्त्यातयौषर्स्त्य तु ॥ च.चच. 30/327-328  पथ्य अन्िाचे महत्व-  काठीन्यात, ऊनभावात - शरररस्त्थ दोष प्रकोप पथ्य आहार-ववहार िृदु व्याचर् उत्पन्न  पथ्य अन्न,औषर्ी व्याचर् उत्पत्ती पथ्य िारा वृद्धी
  • 56. सातत्यात्स्त्वाद्वभावाद्वा पथ्यां द्वेष्यत्विागति । कल्पनाववचर्मभस्त्तैस्त्तै: वप्रयत्वां गियेत पुन: ॥ च.चच.30/33-332