औषधीय पादप हमारे देश की स्वास्थ्य परिचर्या परम्पराओं का मुख्य संसाधन आधार हैं।
व्यापार में 90% से अधिक प्रजातियां आज भी वनों से प्राप्त होती हैं।
औषधीय पादपों और जड़ी-बूटीयों का भारतीय निर्यात अधिकांशतः कच्ची जड़ी-बूटियों और अकों के रूप में होता है जो इस समय की जड़ी-बूटियों/आयुष उत्पादों के निर्यात का लगभग 60-70% है।
आयुष के 95% से अधिक उत्पाद पादप आधारित होने के कारण इसकी कच्ची सामग्री के स्रोत को वनों से परिवर्तित कर कृषि आधारित करने की जरूरत है ताकि यह लम्बे समय तक चलता रहे।
बाजार में आने वाली दवाइयां भारी धातुओं तथा अन्य विषैली अशुद्धियों से युक्त होती हैं जिनकी पूर्ति औषधीय पादपों से हो सकती है।
यह केवल कृषि मार्ग के माध्यम से ही संभव है।
भारत का विश्व हर्बल व्यापार में लगभग 17% भाग है।
120 बिलियन अमरीकी डालर के हर्बल बाजार को देखते हुये इसे बदलने की आवश्यकता है।
1. औषधीय पादपों की खेती
डॉ. ईश्वर प्रकाश शर्ाा
(वैज्ञानिक)
पतंजनि अिुसंधाि संस्थाि, हररद्वार, उत्तराखंड
2. औषधीय पादप
• औषधीय पादप हमारे देश की स्वास््य पररचयाा परम्पराओं का मुख्य संसाधन
आधार हैं।
• व्यापार में 90% से अधधक प्रजातियां आज भी वनों से प्राप्ि होिी हैं।
• औषधीय पादपों और जडी-बूटीयों का भारिीय तनयााि अधधकांशिः कच्ची जडी-बूटटयों
और अकों क
े रूप में होिा है जो इस समय की जडी-बूटटयों/आयुष उत्पादों क
े तनयााि
का लगभग 60-70% है।
• आयुष क
े 95% से अधधक उत्पाद पादप आधाररि होने क
े कारण इसकी कच्ची
सामग्री क
े स्रोि को वनों से पररवतिाि कर कृ षष आधाररि करने की जरूरि है िाकक
यह लम्बे समय िक चलिा रहे।
• बाजार में आने वाली दवाइयां भारी धािुओं िथा अन्य षवषैली अशुद्धधयों से युक्ि
होिी हैं जजनकी पूतिा औषधीय पादपों से हो सकिी है।
• यह क
े वल कृ षष मागा क
े माध्यम से ही संभव है।
• भारि का षवश्व हबाल व्यापार में लगभग 17% भाग है।
• 120 बबललयन अमरीकी डालर क
े हबाल बाजार को देखिे हुये इसे बदलने की
आवश्यकिा है।
3. राष्ट्रीय औषधीय पादप बोडा (एनएमपीबी)
राष्ट्रीय औषधीय पादप बोडा का उद्देश्य
• भारि सरकार द्वारा नवंबर 2000 में एनएमपीबी की स्थापना
की गई।
• काया-
• औषधीय पौधों की पहचान, सूचीबद्ध
करना िथा उनकी गणना करना।
• औषधीय पौधों क
े बाहय स्थलीय एवं अंि-
स्थलीय कृ षष एवं संरक्षण को प्रोत्साटहि
करना।
• कृ षष एवं गुणवत्ता तनयंत्रण क
े ललए संलेखों
का षवकास।
• औषधीय पौधों, समथान नीतियों और
व्यापार, तनयााि, संरक्षण और खेिी क
े
षवकास से संबंधधि सभी कायाक्रमों का
समन्वयन करना।
• षवलभन्न आयुवेटदक धचककत्सा, अनुसंधान
और षवकास, लागि प्रभावी खेिी, उधचि
कटाई क
े बारे में षववरण उपलब्ध कराना।
• अनुसंधान गतिषवधधयों, शोध पत्र, आदेश,
स्वीकृ ि पररयोजनाओं पर संसदीय प्रश्नों से
संबंधधि जानकारी प्राप्ि कर सकिे हैं।
8. औषधीय पादपों की सहायक कृ षष
दसवीं पंचवषीय योजना में अनुदान सहायिा से कृ षष समथान का कायाक्रम कायााजन्वि ककया
गया है।
• कच्चा माल
• उपलब्धिा
• सस्िी दर
9. औषधीय पादपों की सहायक कृ षष
दसवीं पंचवषीय योजना में अनुदान सहायिा से कृ षष समथान का कायाक्रम कायााजन्वि ककया
गया है।
10. औषधीय खेिी ( Medicinal Farming ) से होने वाले लाभ
औषधीय खेिी में लागि अन्य
फसलों की िुलना में कम आिी है।
औषधीय खेिी में प्राकृ तिक आपदा
से होने वाले नुकसान का खिरा कम
होिा है।
जंगली जानवर इन फसलों को
नुकसान नहीं पहुंचािी है।
जडी-बूटटयों की खेिी ककसानों की
आय का बडा स्रोि बन सकिी है।
औषधीय खेिी को प्रोत्साटहि करने
से दवाओं की उपलब्धिा क
े मामले
में देश भी आत्मतनभार होगा।
औषधीय पादपों की सहायक कृ षष
11. कोरोना संक्रमण क
े दौर में औषधीय खेिी से हुआ ककसानों को लाभ
कोरोना महामारी क
े दौर में लोगों ने
अपनी इम्यूतनटी स्रांग करने को
आयुवेटदक दवाइयों का उपयोग बडे
पैमाने पर ककया गया।
इसक
े चलिे बाजार में मांग बढऩे से
औषधीय फसलें कर रहे ककसानों क
े
मुनाफ
े में इजाफ हुआ।
यूपी क
े सहारनपुर में करीब 95 हेक्टेयर
क्षेत्रफल में औषधीय फसलों िुलसी, सिावर,
घृि क
ु मारी (एलोषवरा), रूसा (कारडस
मेररनक लमल्क धथलसल), राखी बेल (पेसी
फ्लोरा), अल्फा-अल्फा (लुरसन) आटद की
खेिी की जा रही है।
कोरोना काल में औषधीय खेिी करने वाले
ककसानों ने अच्छा खासा मुनाफा कमाया है।
औषधीय पादपों की सहायक कृ षष
12. • औषधीय पौधों की
पहचान
• जीवन काल
• लमट्टी
• क्रय-षवक्रय
• बीज
• सरकारी अनुदान
• वैज्ञातनक षवधध
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
13. • औषधीय पौधों की
पहचान
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
16. • क्रय-षवक्रय
"ई-चरक"- यह एप्प जडी बूटी, सुगंधधि, कच्चे माल और उसकी जानकारी, औषधीय पौधों क
े
क्षेत्र में शालमल षवलभन्न टहिधारकों क
े बीच जानकारी का आदान प्रदान करने का एक मंच
है। ई-चरक संयुक्ि रूप से प्रगि संगणन षवकास क
ें द्र (सी-डैक), राष्ट्रीय औषधीय पादप बोडा
(NMPB), आयुष मंत्रालय, भारि सरकार क
े द्वारा षवकलसि ककया गया है।
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
17. • खरीदारों और औषधीय पौध क्षेत्र क
े षवक्र
े िाओं में आपसी संपक
ा बनाने क
े ललए एक वचुाअल
बाजार क
े रुप में काया।
• वचुाअल शोक
े स क
े रुप में औषधीय पौध क्षेत्र क
े उत्पाद और संबंधधि सेवाओं को प्रदलशाि करने
क
े ललए।
• प्रौद्योधगकी जानकारी, बाजार की जानकारी और औषधीय पौध क्षेत्र क
े अन्य संसाधनों क
े ज्ञान
भंडार क
े रूप में।
ई-चरक का उपयोग
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
• क्रय-षवक्रय
18. • उत्पादों/ सेवाओं क
े ललए बेहिर बाजार
• सही ग्राहक पहचान में समय और ऊजाा की बचि
• माल की सही कीमि जानना
• लाभ में उधचि टहस्सेदारी
• क्या और ककिना उत्पादन करने क
े ललए- बेहिर तनणाय
लेना
ई-चरक तनम्नललखखि िरीक
े से अपने उपयोगकिााओं की मदद करिा
है
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
• क्रय-षवक्रय
25. • सरकारी अनुदान
औषधीय खेिी को लेकर सरकार का प्लान और इससे ककसानों को लाभ
देश आत्मतनभार बनाने और ककसान की आय दुगुनी करने क
े उद्देश्य से सरकार देश में
औषधीय पौधों की खेिी पर जोर दे रही है। इसक
े ललए कई अलभयान की शुरुआि की गई
है। इसक
े िहि आमजन एवं ककसानों को औषधीय पौधे लगाने क
े ललए प्रोत्साटहि ककया जा
रहा है। इस कडी में बीिे टदनों आयुष मंत्रालय ने देशभर में 45 से अधधक स्थानों पर आयुष
आपक
े द्वार अलभयान शुरू ककया गया। आयुष राज्यमंत्री डॉ. मुंजापारा महेंद्र भाई ने आयुष
भवन में कमाचाररयों को औषधीय पौधे षविररि कर इस अलभयान की शुरुआि की गई। इस
अवसर पर एक सभा को संबोधधि करिे हुए डॉ. मुंजापारा ने लोगों से औषधीय पौधों को
अपनाने और अपने पररवार क
े एक अंग क
े रूप में उनकी देखभाल करने की अपील की।
षपछले डेढ़ वषों में न लसफ
ा भारि में, बजल्क पूरी दुतनया में औषधीय पौधों की मांग में बडे
पैमाने पर बढ़ोिरी देखने में आई है। यही कारण है कक ।अमेररका में अश्वगंधा िीसरा सबसे
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
26. • सरकारी अनुदान
औषधीय खेिी को लेकर सरकार का प्लान और इससे ककसानों को लाभ
अभियान क
े तहत ये औषधीय पौधे ककए जाएंगे वितरित
इस अलभयान की शुरूआि से जुडी गतिषवधधयों में 21 राज्य भाग ले रहे हैं और इस दौरान
दो लाख से अधधक पौधे षविररि ककए जाएंगे। इस अलभयान का उद्देश्य एक वषा में देशभर
क
े 75 लाख घरों में औषधीय पौधे षविररि करना है। इन औषधीय पौधों में िेजपत्ता,
स्टीषवया, अशोक, जटामांसी, धगलोय/गुडुची, अश्वगंधा, क
ु मारी, शिावरी, लेमनग्रास, गुग्गुलु,
िुलसी, सपागंधा, कालमेघ, ब्राह्मी और आंवला शालमल हैं।
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
27. • सरकारी अनुदान
औषधीय खेिी को लेकर सरकार का प्लान और इससे ककसानों को लाभ
अमृत महोत्सि क
े तहत ककसानों को बांटे गए औषधीय पौधे
आजादी का अमृि महोत्सव क
े मौक
े पर पुणे में औषधीय पौधे ककसानों को बांटे गए। जो
लोग पहले से जडी-बूटटयों की खेिी कर रहे हैं, उन्हें सम्मातनि ककया गया। इस अवसर पर
75 ककसानों को क
ु ल लमलाकर 7500 औषधीय पौधे षविररि ककए गए। इसक
े अलावा 75
हजार पौधे षविररि करने का लक्ष्य भी िय ककया गया है।
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
32. स्टेविया की खेती
स्टीषवया एक लोकषप्रय और लाभदायक औषधीय पौधा है। यह पौधा अपनी पषत्तयों की लमठास
क
े कारण जाना जािा है। इिना मीठा होने क
े बाद भी इसमें शक
ा रा की मात्रा नही होिी है। यह
एक शून्य क
ै लोरी उत्पाद है। यह मुख्य रूप से दक्षक्षण अमेररका में अधधक पाया जािा है। यह
मधुमेह वाले रोधगयों क
े ललए काफी लाभदायक माना जािा है। यह रोगी क
े शरीर में इंसुललन
बनाने में मदद करिा है।
इसकी अच्छी पैदावार क
े ललए
दोमट जमीन जो 6ph से 7ph क
े अंदर
होनी चाटहए एवं उधचि जल तनकास
वाली होना चाटहए। यह फसल सूखा
सहन नही कर सकिी इसललए इसकी
लसंचाई 10 टदनों क
े अंिराल में करना
चाटहए। साल भर में इसकी 3 से 4
कटाई होिी है उस कटाई में 60 से 90
जक्वंटल िक सूखे पत्ते प्राप्ि ककये जा
सकिे है।
अन्िरााष्ट्रीय भाव - 300 से 400 रूपये प्रति ककलो ग्राम
भारि में उधचि बाजार नही होने पर हम इसका अनुमातनि भाव - 80 रूपये ककलो मान ले
िो 60 जक्वंटल उत्पादन होने पर 4 से 5 लाख़ रूपये िक की आय प्रति एकड हो जािी है।
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
33. आटीमीभिया की खेती
आटीमीलशया एक बहुि गुणकारी औषधीय पौधा है। इसका उपयोग मलेररया की दवाई इंजेक्शन
और टेबलेट्स बनाने में होिा है। इसकी बढ़िी मांग को देखकर भारि में सीमैप (cimap) ने वषा
2005 से इसकी खेिी करवाना और रेतनंग देने की शुरूआि की है।
इसकी खेिी करने क
े ललए
नम्बर टदसम्बर में नसारी िैयार करना
पडिी है। और फ़रवरी क
े माह में इसको
खेि में लगाना पडिा है। इस फसल को
बहुि काम खाद् पानी की जरूरि पढ़िी
है। इससे को वषा में 3 बार उपज प्राप्ि
कर सकिे है। प्रति बीघे में ढाई से साढे
िीन जक्वंटल पषत्तयां तनकलिी है।
पषत्तयों को भाव - 30 से 35 रूपये ककलो
फ़ायदा - 9000 से 10000 प्रति बीघा
लागि - 15 से 20 हजार प्रति एकड
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
34. लेमन ग्रास की खेती
गमा जलवायु वाले देश लसंगापुर, इंडोनेलशया, अजेंटीना, चाइना, िाइवान, भारि, श्रीलंका में
उगाया जाने वाला हबाल पौधा है। इसकी पषत्तयों का उपयोग लेमन री बनाने में होिा है। इससे
तनकलने वाले िेल का उपयोग कई िरीक
े क
े सौदया प्रसाधन एवं खाद्य में तनम्बू की खुशबू
(फ्लेवर) लाने क
े ललए होिा है।
अप्रैल मई माह में इसकी नसारी िैयार
की जािी है। प्रति हेक्टेयर 10 ककलो
बीज काफी होिा है। जुलाई अगस्ि में
पौधे खेि में लगाने क
े लायक हो जािे
है। 45 से 60 सेमी की दूरी पर प्रति
एकड में लगभग 2000 पौधे लगाए जािे
है। इस फसल को बहुि ही कम
लसंचाई की जरूरि होिी है। पहली कटाई
120 टदनों क
े बाद िथा दूसरी और
िीसरी कटाई 50 से 70 टदनों क
े
अंिराल में होिी है।
प्रति एकड में लगभग 100 ककलो ग्राम
िेल का उत्पादन होिा है।
िेल की कीमि – 700-900 रूपये/ककलो
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
35. ितािि की खेती
इस औषधध का उपयोग शजक्ि बढ़ाने, दूध बढ़ाने ,ददा तनवारण एवं पथरी संबंधधि रोगों क
े
इलाज़ क
े ललए ककया जािा है।
10 से 50 डडग्री सेजल्सयस उत्तम माना
जािा है। इसक
े ललए खेि को जुलाई
अगस्ि माह में 2-3 बार अच्छी जुिाई
कर लेना चाटहए। तिम जुिाई (अगस्ि)
क
े समय 10 टन सडी हुई गोबर की
खाद् प्रति एकड लमला लेना चाटहए।
बुआई क
े ललए प्रति एकड 5 ककलो बीज
की आवश्यकिा होिी है।
बीज का मूल्य – 1000 ककलो ग्राम
गीली जडों का उत्पादन प्रति एकड 300
से 350 जक्वंटल
सूखीजडों की कीमि 250 से 300 प्रति
ककलो
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
36. तुलसी की खेती
िुलसी का पौधा जजिना पूजनीय है उससे कई ज्यादा उसमे औषधीय गुण होिे है। िुलसी क
े
पत्ते िेल और बीज को बेचा जािा है। िुलसी कम पानी और कम लागि में ज्यादा फ़ायदा देने
वाली औषधीय फसल है।
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
37. एलोिेिा की खेती
इसका एलोवेरा को षवलभन्न भाषाओं में अलग-अलग नाम से पुकारा जािा है, टहन्दी में
ग्वारपाठा, घृिक
ु मारी, घीक
ुं वार, संस्कृ ि में क
ु मारी, अंग्रेजी में एलोय कहा जािा है।
उपयोग - पेट क
े कीडों, पेट ददा, वाि षवकार, चमा रोग, जलने पर, नेत्र रोग, चेहरे की चमक
बढ़ाने वाली त्वचा क्रीम, शेम्पू एवं सौन्दया प्रसाधन िथा सामान्य शजक्िवधाक टॉतनक।
औषधीय पादपों की कृ षष जानकारी
38. उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
सुगंधबाला Pavonia odorata Willd.
ऊचाई - 1 मी
शाकीय पौधा
जड 42.5-50 सेमी लम्बी, 6 लममी
मोटी, धचकनी, भूरे रंग की
सबसे आश्चया की बाि यह है कक इसकी
सुगंध कस्िूरी की िरह होिी है
उपयोग
कडवा, छोटा, लघु, रूखा और ठंडे िासीर का होिा है। यह षपत्त और कफ कम करनेवाला,
पाचक शजक्ि व खाने की रुधच बढ़ाने वाला, जलन व बार-बार प्यास लगने की इच्छा कम
करने वाला िथा घाव को जल्दी सूखाने में मदद करनेवाला होिा है। इसक
े अलावा सुगंधबाला
उल्टी, टदल की बीमारी, बुखार, क
ु ष्ट्ठ, अल्सर, नाक-कान से खून बहना, खुजली िथा जलन से
राहि टदलाने में मदद करिा है।
धालमाक अनुष्ट्ठानों में, धूप-अगरबत्ती िथा हवन सामग्री बनाने में।
4000 से 9000 फीट िक की ऊ
ं चाई आसानी
से उगाया जा सकिा है
39. वन अजवायन Trachyspermum roxburghianum H.Wolff
माचा अप्रैल माह म पौधों को
किार से किार में बोया जािा
है।
पौध की दूरी 30×30 सेमी. रखी
जािी है।
पांच माह में पषत्तयां एवं फ
ू ल
आने पर ऊपर क
े 15 सेमी. क
े
मुलायम िनों को काट ललया
जािा है। पषत्तयों को छाया में
सुखाकर िुरंि वायुरोधी वायुरोधी
डडब्बों में बंद ककया जािा है।
उपयोग
खाद्य पदाथा, ओषधध, सौदंय साधन एवं सुगंध।
4000 से 10000 फीट िक की ऊ
ं चाई वाले शेत्रो में पाया
जािा है।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
40. कपूर कचरी Hedychium spicatum Sm.
पुराने क
ं दों को माच-अप्रैल में
खेि में 60×60 सेमी. की दूरी
पर रोषपि करिे हैं।
लगभग एक माह बाद कल्ले
तनकल जािे हैं।
फसल 2-3 वषा क
े बाद क
ं दों
को खोदकर छाया में सुखाकर
संगृहीि करिे हैं।
उपयोग
दवा, सुगंध उद्योग िथा सोंदया प्रसाधनों में।
5000 से 7000 फीट िक नम छायादार जंगलो में प्राकृ तिक
रूप से।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
41. बच Acorus calamus L.
बलुई दोमट लमट्टी इसकी खेिी
क
े ललए उपयुक्ि होिी है।
बीज क
े ललए राइजोम का
उपयोग ककया जािा है। इसक
े
दो िीन टुकडों को 30×30
सेमी. क
े अंिराल में लगाया
जािा है।
दो वषा क
े बाद इसकी जडों को
खोद ललया जािा है। साफ कर
छोटे-छोटे टुकडों में काटकर
सुखाया जािा है।
उपयोग
पेट क
े रोग, जीवाणुरोधी, गले सम्बंधधि और लीवर रोग आटद।
6000 फीट िक नम भूलम में नदी नाले क
े ककनारे एक गीली भूलम में पाया जािा
है।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
42. सफ
े द मूसली Chlorophytum borivilianum Santapau & R. R. Fern.
बबजाई राइजोम िथा अंगुली क
े
आकार क
े जडों से की जािी है।
मानसून क
े प्रारंभ में जून-जुलाई
में ऊ
ं ची क्याररयों में 30×30
सेमी. की दूरी पर लगाना
चाटहए।
माह नवम्बर – टदसम्बर में जब
क
ं द सफ
े द से भूरे हो जाएाँ िो
क
ु दाल की सहायिा से खोद
लेना चाटहए।
क
ं दों को बहिे पानी में धोकर
धूप में सुखाकर नमी रटहि
भण्डारण करिे हैं।
उपयोग
दवा (टॉतनक), बलवधाक।
3500 फीट िक रेिीली दोमट जीवाश्म मृदा िथा
गमा िथा नमीयुक्ि जलवायु उपयुक्ि है।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
43. सिावर Asparagus racemosus Willd.
खेिी बीज व कांड द्वारा की जािी है।
जून-जुलाई में नसारी डालकर बीज बोना चाटहए।
अगस्ि में पौधं िैयार हो जािी है।
खेि में 60×60 सेमी. पर रोषपि कर देिे हैं।
रोपण क
े 16-18 माह बाद जब पौधं पीला होने लगे िब
इनकी जडों की खुदाई कर धोने क
े पश्चाि चीरा लगाकर
ऊपरी तछलका उिार लेना चाटहए िथा 2 टदन धूप में
सुखाकर भंडाररि करना चाटहए।
उपयोग
बलवधाक, लकवा, मूत्र सम्बन्धी रोगों में, गटठया में।
पविीय इलाक
े , मध्यम पहाडडयां एवं िराई
क
े ऊ
ं चे इलाक
े इसकी खेिी क
े ललए उपयुक्ि
हैं।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
44. सपागंधा Rauvolfia serpentina (L.) Benth. Ex Kurz
बुआई बीज, जड व िने की कलम
लगाकर की जा सकिी है।
यह 18 माह की अवधध की फसल है।
अगस्ि में पौधं िैयार हो जािी है।
नसारी में 3×1.5 मीटर की क्याररयां
बनाकर अप्रैल-मई में 8-10 सेमी. की
दूरी पर लाइनो में बोना चाटहए।
रेि एवं खाद क
े लमश्रण से ढक देने से
15-20 टदन में अंक
ु रण हो जािा है।
जुलाई में पौधारोपण 30×30 सेमी. की
दूरी पर कर देना चाटहए।
जडों को खोद कर छल साटहि खोद क
े
सुखाकर भंडाररि कर लेिे हैं।
उपयोग
उच्च रक्िचाप, अतनद्रा रोग, उन्माद, इत्याटद।
तनचली पहाडडयां एवं िराई क
े ऊ
ं चे इलाक
े
इसकी खेिी क
े ललए उपयुक्ि हैं।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
45. षपप्पली Piper longum L. खेिी बीज अथवा कटटंग लगाकर की जा सकिी है।
कटटंग को माचा-अप्रैल में थैली म लगाया जािा है।
मई िक जड िथा पषत्तयां आ जािी है।
खेि में 60×60 सेमी. की दूरी पर गड्डे बनाकर
रोषपि ककया जािा है।
एक गड्डे में दो पोंधे लगाना चाटहए।
फल काले हो जाय िो उन्हें िोडकर 4-5 टदन धूप
में सुखाना चाटहए।
फल वषा में 3-4 बार िोडे जािे हैं।
उपयोग
मसाले में, खांसी आटद रोगों में उपयोगी है।
गमा एवं आद्र जलवायु, िराई भाग फसल क
े
ललए उत्तम है। पविीय इलाकों में 3000 फीट
िक उगाई जा सकिी है।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
46. अश्वगंधा Withania somnifera (L.) Dunal
बबजाई साधे बीज अथवा पौधं िैयार करक
े
की जा सकिी है। बबजाई जुलाई माह में की
जािी है ।
नसरी हेिु 5 ककलो बीज एक हेक्टेयर क
े
ललए उपयुक्ि है।
लगभग 6 सप्िाह क
े बाद पौधं को खेि में
60×60 सेमी. की दूरी पर रोषपि करना
चाटहए।
150 से 170 टदन में फसल कटने योग्य हो
जािी है।
उपयोग
जड टॉतनक क
े रूप में, गटठया वाि, खांसी में उपयोगी।
बलुई एवं बलुई दोमट लमट्टी जजसमें जल भराव
न हो एवं सूखे एवं कम वषा वाले गमा भाग
उपयुक्ि हैं।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
47. धगलोय Tinospora cordifolia (Willd.) Hook.f. & Thomson
मैदानी गमा िथा तनचले पवािीय इलाकों में
बेल क
े रूप में सहारा लेकर चढ़िी है।
जून-जुलाई माह में इसकी कलम लगाकर
लसचाई करिे रहना चाटहए।
फरवरी-माच में जब पषत्तयां झडने लगे िो
बेल को नीचे से एक फ
ु ट छोडकर काट लेिे
हैं।
उपयोग
डातयबटीज, रोग प्रतिरोधकिा बढ़ाने िथा ज्वर
आटद में लाभदायक।
िने को छोटे टुकडों में काटकर छाया में
सुखाकर बाजार में बेचा जािा है।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
48. घृिक
ु मारी Aloe vera (L.) Burm.f.
फसल जल भराव युक्ि स्थान को
छोडकर प्रत्येक मृदा में हो सकिी
है।
60×60 सेमी. की दूरी पर सकसा
लगाया जािा है।
8 माह पश्चाि पोंधों से िैयार
पषत्तयों को काट ललया जािा है।
उपयोग
पेट सम्बन्धी षवकारों में,त्वचा क
े रोगो में, रोग
प्रतिरोधक िथा सोंदया प्रसाधनों में।
पविीय इलाकों में 4000 फीट िक एवं िराई
क
े ऊ
ं चे खेि इस फसल क
े ललए उपयुक्ि हैं।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
49. उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वनओषधधयााँ
धचरायिा Swertia chirayita (Roxb) H.Karst. फसल लगभग एक वषीय है।
माच-अप्रैल में इसकी बबजाई सीधे
अथवा नसरी लगाकर की जा
सकिी है।
नसरी हेिु 200-300 ग्राम
बीज/हेक्टेयर प्रयाप्ि है।
30×30 सेमी. की दूरी पर रोषपि
करना चाटहए।
जनवरी-फरवरी सम्पूणा फसल को
उखाड कर भंडाररि ककया जािा है।
उपयोग
दीघकालीन मंद ज्वर, जीणा ज्वर, अन्य ज्वर
िथा लीवर की बबमाररयों में।
6000-9000 फीट िक की ऊ
ं चाई वाले इलाकों
में बहुिायि में होिा है।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
50. बडी ईलायची Elettaria cardamomum (L.) Maton
रोपण फरवरी-माचा में ककया जािा
है।
वषा में दो बार प्रथम पुष्ट्प आने से
पूवा िथा दूसरी बार फल िोडने क
े
बाद तनराई-गुडाई की जानी चाटहए।
उपयोग
मसाले, यकृ ि, दन्िशूल आटद षवकारों में इसका
प्रयोग ककया जािा है।
6000 फीट िक नम स्थानों में, दोमट लमट्टी
में कृ षष की जािी है।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
51. रीठा Sapindus mukorossi Gaertn.
बीज द्वारा नसारी िैयार की जािी
है।
कफर वषा ऋिु में इसे बंजर भूलम
में स्थानांिररि ककया जािा है।
रोपण क
े 5 वषा बाद फल देना
शुरू करिा है। कफर 60 से 70
वषा िक फल देिा है।
उपयोग
फल, ऊनी कपडो की धुलाई, हबल हबाल शेम्पू में
प्रयुक्ि कककये जािे हैं।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
52. िेजपाि Cinnamomum tamala (Buc.-Ham.) T.Nees &
C.H.Eberm.
माचा-अप्रैल में बीज को छोटी 3×1.5
मी. की क्याररयों में रेि एवं गोबर
की खाद लमलाकर बबखेर टदया जािा
है।
हल्का पानी डालकर पुलाव से क्याररयों
को ढक टदया जािा है।
जुलाई-अगस्ि में गहरे गड्डे में 10
फीट की दूरी पर लगाना लगाना
चाटहए।
एक बार लगने क
े बाद यह 100 वषा
िक रहिा है।
उपयोग
मसाले, दवा, सुगजन्धि िेल आटद में।
6000 फीट िक की ऊ
ं चाई में सुगजन्धि पषत्तयों एवं
छाल वाला वृक्ष होिा है। छाल से दालचीनी बनिी
है।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
53. आंवला Phyllanthus emblica L.
कृ षष योग्य और अनुपयोगी दोनों प्रकार
की भूलम में उगाया जा सकिा है।
पोधों का प्रवधान बीज द्वारा नसरी
िैयार कर अथवा कलम लगाकर ककया
जािा है।
िैयार पौधं को वषाा ऋिु में
स्थानांिररि ककया जािा है।
चार वष से फल देना आर करिा है।
उपयोग
फल अम्लषपत्त को कम करिा है, कब्ज हटािा
है, कफ दूर करिा है िथा मूत्र शोधक है।
5000 फीट िक की ऊ
ं चाई िक पाया जािा है।
उत्तराखंड में कृ षषकरण की संभावना वाली महत्वपूणा वन-
ओषधधयााँ
54. सामान्य घर क
े बाग़ में उगने वाली ओषधधयााँ
िुलसी
Ocimum
tenuiflorum
L.
खांसी, दमा, दस्ि, बुखार, पेधचश,
गटठया, नेत्र रोग, अपच,
गैजस्रक रोग आटद।
श्यामा िुलसी
Ocimum
sanctum L.
पुदीना
Mentha
arvensis L.
एन्टीसेप्टीक, ददा तनवारक, हजम शजक्ि
बढ़ाने में, गटठया, उल्टी रोकने में आटद।
पषत्तयों का काढ़ा बनाकर पीने से
कफ, सदी-जुकाम, एवं बुखार में
आराम लमलिा है। बीज का सेवन करने से
पाचन शजक्ि मजबूि होिी है। बीज से
तनकलने वाले िेल का उपयोग साबुन बनाने
में ककया जािा है, जो कक त्वचा संबंधी रोगों
क
े उपचार में उपयोग होिा है।
55. सामान्य घर क
े बाग़ में उगने वाली ओषधधयााँ
पत्थरचट्टा
Kalanchoe
pinnata (Lam.)
Pers.
मूत्र षवकार, बवासीर, लसर ददा, घाव को
भरने में, गुप्िांग संक्रमण से बचाने में,
रक्िचाप, पथरी, फोडे,
दांिो क
े ददा आटद।
लहसुन
Allium sativum L.
हदय रोग, कोलेस्रॉल, सदी व फ्लू, पेट की
बीमारी, आंखों क
े ददा, कान क
े ददा आटद
रोगों की धचककत्सा
हेिु एवं स्मृति वधाक आटद।
धतनया
Coriandrum
sativum L.
मधुमेह, वृक्क षवकार, कोलेस्राल,
रक्िाल्पिा, अतिसार,
एलजी, लसरददा,
नक्सीर, नेत्र रोग,
पेट ददा, मुंहासे,
अशा, पाचन शजक्ि
60. िुलसी की खेिी करिा है िो उसे
13180 रुपये प्रति हेक्टेयर क
े टहसाब
से अनुदान
सिावर की खेिी करिा है िो उसे
27450 रुपये प्रति हेक्टेयर क
े टहसाब
से अनुदान
एलोवेरा की खेिी करिा है िो उसे
18670 रुपये प्रति हेक्टेयर क
े टहसाब
से अनुदान
सरकारी योजनाएं