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कीट िनयंतण
रासायिनक िनयंतण: चूंिक फसल पर तना मक् ‍खी, चकभृंग, माहो हरी इल्‍ली लगभग एक साथ आकमण है अत:
पथम िछडकाव 25 से 30 िदन पर एवं दूसरा िछडकाव 40-45 िदन पर फसल पर आवश्‍य करना चािहए।
िनयंतण के िलए esVkMksj uked dhVuk’kd dh700-800 ml माता 700 से 800 लीटर
पानी मे घोलकर िछडकाव करना चािहए। । कई पकार की इिललयां पत्‍ती, छोटी फिलयो और फलो को खाकर
नष्‍ट कर देती है।
जैविवक िनयंतण: कीटो के आरिमभक अवस्‍था मे जैविवक कट िनयंतण हेतु बी.टी एवं ब्‍यूवेरीया बैविसयाना आधिरत
जैविवक कीटनाशक 1 िकलोगाम या 1 लीटर पित हेक् ‍टेयर की दर से बुवाई के 35-40 िदनो तथा 50-55 िदनो
बाद िछडकाव करे। एन.पी.वी. का 250 एल.ई समतुल्‍य का 500 लीटर पानी मे घोलकर बनाकर पित
हेक् ‍टेयर िछडकाव करे। रासायिनक कीटनाशको की जगह जैविवक कीटनाशको को अदला-बदली कर डालना
लाभदायक होता हैव।
1. देशी गाय का मट्ठा 5 लीटर ले । इसमे 3 िकलो नीम की पत्ती या 2 िकलो नीम खली डालकर 40 िदन तक सडाये िफर 5
लीटर माता को 150 से 200 िलटर पानी मे िमलाकर िछडकने से एक एकड फसल पर इलली /रस चूसने वाले कीडे िनयंितत
होगे ।
2. लहसुन 500 गाम, हरी िमचर तीखी िचटिपटी 500 गाम लेकर बारीक पीसकर 150 लीटर पानी मे घोलकर कीट
िनयंतण हेतु िछडके ।
3. 10 लीटर गौ मूत मे 2 िकलो अकौआ के पत्ते डालकर 10 से 15 िदन सडाकर, इस मूत को आधा शेष बचने तक उबाले
िफर इसके 1 लीटर िमश्रण को 150 लीटर पानी मे िमलाकर रसचूसक कीट /इलली िनयंतण हेतु िछटके।
इन दवाओ का असर केवल 5 से 7 िदन तक रहता हैव । अत: एक बार और िछडके िजससे कीटो की दूसरी पीढ़ी भी नष हो
सके।
के चुआ खाद छायादार सथान मे 10 फीट लमबा, 3 फीट चौडा, 12 इंज गहरा पका ईट सीमेनट का ढांचा
बनाये । जमीन से 12 इंच ऊं चे चबूतरे पर यह िनमारण करे । इस ढांचे मे आधी या पूरी पची (पकी) गोबर कचरे
की खाद िबछा दे । इसमे 1 न्1 न्1 फीट मे 100 के चुऐ डाले । इसके ऊपर जूट के बोरे डालकर पितिदन सुबह,
शाम पानी डालते रहे । इसमे 60 पितशत से जयादा नमी ना रहे दो माह बाद यह खाद बन जायेगी । िजसका 15
से 20 िकटल पित एकड की दर से इस खाद का उपयोग करे।
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बोनी से पूवर बीजोपचार से िमलती हैव अचछी पैवदावार
By: Zonal Public Relations Office- Gwalior- Chambal Zone
बीजारूढ़ रोग कारको के उनमूलन के दो पमुख उपाय है। बीज के साथ िमले रोगजनक अंशो को अलग करना
और फफूं द नाशक दवाओ से बीजो का उपचार। बीज से रोगजनक अंश दूर करने के िलए नमक के 20 पितशत घोल (20
िकलो नमक 100 िलटर पानी) मे बीज को डुबोये। रोगजनक अंश जो बीज के साथ िमले रहते है वे बीज से हलके होते है। ये
सभी पानी मे उतर आते है और हलके व खराब बीज पानी मे तैवरने लगते है। सावधानी पूवरक पानी को िनथारकर रोग जनक
अंशो एवं हलके खराब बीजो को अलग कर लेना चािहए। तलहटी मे बैवठे सवसथ्य-भारी बीजो को तीन से चार बार पानी मे
धोकर सुखा ले और िफर फफूं द नाशक दवा से बीजोपचार करना चािहये।
बीजोपचार के िलए दो पकार की फफूं द नाशक दवाये काम मे लाई जाती है। अदैविहक फफूं द नाशक दवाओ के
उपचार से बीज की बाहरी (ऊपरी) सतह पर मौजूद रोग नष हो जाते है। पमुख अदैविहक फफूं द नाशक दवाओ मे थायरम,
केप्टान, डायफोलटन, पारा,युक दवाये(सेरेसान एगोलाल, जी.एन.), िजनेब(डायथेन एम-45) आिद।
दैविहक फफूं द नाशक दवाओ के उपचार से बीज के भीतर रहने वाले रोग नष िकये जाते है। िवटोवेक्स,
बेवेसटीन, बेनलेट, ट्रायकोडमार व िबरडी आिद पमुख दैविहक फफूं द नाशक दवाये है।
बीजोपचार की िविध: बीजोपचार के िलए एक यंत , बीज सिमश्रण यंत(सीड ट्रीिटग ड्रम) का उपयोग िकया
जाता है। इस ड्रम मे िजतने बीज को उपचािरत करना हो, उसके िलए आवश्यक दवा की माता बीज के साथ ड्रम मे डाल दे
और उसके मुंह को अचछी तरह बंद कर दे। 10 से 15 िमनट तक ड्रम को घुमाये। इससे बीज पर दवा की हलकी परत चढ़
जायेगी और इस पकार उपचािरत बीज की बोनी की जा सकती हैव। यिद बीज सिमश्रण यंत उपलब्ध न हो तो िमट्टी के एक
घडे मे बीज एवं उतनी माता के िलए आवश्यक दवा डाल दे। घडे के मुंह को मोटे कागज की सहायता से बंद कर दे। िफर घडे
को 15 िमिनट तक अचछी तरह िहलाये, िजससे बीज पर दवा की परत चढ़ जाये।
रबी की फसलो मसलन गेहूं, चना,मटर, अलसी, मसूर, सूरजमुखी, एवं अनय सभी सागभाजी को पौध गलन
रोग से बचाने के िलए डायथेन एम-45 थायरम,डायफे लेटान,वेिवसटन,वेनलेट ट्रायकोडमार िबरडी आिद मे से कोई भी दवा
पित िकलोगाम बीज मे 3 गाम के िहसाब से पयुक की जानी चािहये।
शुलक बीजोपचार के अलावा बीजोपचार के िलए पानी मे घुलनशील फफूं द नाशक दवाओ का भी उपयोग
िकया जाता हैव। इस िविध के िलए िकसी िमट्टी अथवा प्लािसटक के बतरन मे आवश्यक माता मे पानी एवं दवा लेकर घोल बना
ले। इस घोल मे लगभग 10 िमिनट तक बीज डुबोकर रखे। बाद मे बीज िनकाल कर बोनी करे। यह िविध खासकर आलू एवं
गन्ने के बीजोपचार के िलए उपयोगी हैव।
साबधािनयाँ- बीजोपचार करते समय हाथो मे रबर के दसताने पहनने चािहए, साथ ही हाथो-पावो मे चोट
आिद न हो। उपचािरत बीज को िकसी गीली जगह पर न रखे। िजतनी आवश्यकता हो उतने ही बीज की माता उपचािरत
करे। उपचािरत बीज को घरेलू उपयोग मे न ले। दवा खरीदते समय बनने एवं समािप की ितिथ अवश्य देखे। बीजोपचार बंद
कमरे मे न करे व उपचारिरत बीज कार भण्डाररण न करे। बीजोपचारर के पश्चारत हारथ, पैर व मुख को सारबुन से दो तीन बारर
अच्छी तरह धो ले।
view(’zone जैिवक खारद बनारने की िविध
अब हम खेती मे इन सूक्ष्म जीवारणुओ कार सहयोग लेकर खारद बनारने एवं तत्वो की पूित हेतु मदद लेगे । खेतो मे रसारयनो से
ये सूक्ष्म जीव क्षतितग्रस्त हुये है, अत: प्रत्येक फसल मे हमे इनके कल्चर कार उपयोग करनार पड़ेगार, िजससे फसलो को पोषण
तत्व उपलब्ध हो सके ।
दलहनी फसलो मे प्रित एकड़ 4 से 5 पैकेट रारइजोिबयम कल्चर डारलनार पड़ेगार । एक दलीय फसलो मे एजेक्टोबेक्टर
कल्चर इनती ही मारत्रार मे डारले । सारथ ही भूिम मे जो फारस्फोरस है, उसे घोलने हेतु पी.एस.पी. कल्चर 5 पैकेट प्रित एकड़
डारलनार होगार ।
खारद बनारने के िलये कुछ तरीके नीचे िदये जार रहे है, इन िविधयो से खारद बनारकर खेतो मे डारले । इस खारद से िमट्टी की
रचनार मे सुधारर होगार, सूक्ष्म जीवारणुओ की संख्यार भी बढ़ेगी एवं हवार कार संचारर बढ़ेगार, पारनी सोखने एवं धाररण करने की
क्षतमतार मे भी वृध्दिध्द होगी और फसल कार उत्पारदन भी बढ़ेगार । फसलो एवं झारड पेड़ो के अवशेषो मे वे सभी तत्व होते है,
िजसकी उन्हे आवश्यकतार होती है :-
नारडेप िविध
नारडेप कार आकारर :- लम्बारई 12 फीट चौड़ारई 5 फीट उंचारई 3 फीट आकारर कार गड्डार कर ले। भरने हेतु सारमग्री :-
75 प्रितशत वनस्पित के सूखे अवशेष, 20 प्रितशत हरी घारस, गारजर घारस, पुवारल, 5 प्रितशत गोबर, 2000 िलटर पारनी ।
सभी प्रकारर कार कचरार छोटे-छोटे टुकड़ो मे हो । गोबर को पारनी से घोलकर कचरे को खूब िभगो दे । फारवडे से
िमलारकर गड्ड-मड्ड कर दे ।
िविध नंबर -1 – नारडेप मे कचरार 4 अंगुल भरे । इस पर िमट्टी 2 अंगुल डारले । िमट्टी को भी पारनी से िभगो दे । जब पुरार
नारडेप भर जारये तो उसे ढ़ारलू बनारकर इस पर 4 अंगुल मोटी िमट्टी से ढ़ारंप दे ।
िविध नंबर-2- कचरे के ऊपर 12 से 15 िकलो रॉक फारस्फे ट की परत िबछारकर पारनी से िभगो दे । इसके ऊपर 1 अंगुल
मोटी िमट्टी िबछारकर पारनी डारले । गङ्ढार पूरार भर जारने पर 4 अंगुल मोटी िमट्टी से ढारंप दे ।
िविध नंबर-3- कचरे की परत के ऊपर 2 अंगुल मोटी नीम की पत्ती हर परत पर िबछारये। इस खारद नारडेप कम्पोस्ट मे
60 िदन बारद सब्बल से डेढ़-डेढ़ फु ट पर छेद कर 15 टीन पारनी मे 5 पैकेट पी.एस.बी एवं 5 पैकेट एजेक्टोबेक्टर कल्चर को
घोलकर छेदो मे भर दे । इन छेदो को िमट्टी से बंद कर दे ।
बीजोपचारर
1. प्रित एकड़ बीज हेतु 3 से 5 लीटर देशी गारय कार खट्टार मठ्ठार ले । इसमे प्रित लीटर 3 चने के आकारर के बरारबर हींग पीस
कर घोल दे । इसे बीजो पर डारलकर िभगो दे तथार 2 घंटे रखार रहने दे । उसके बारद बोये । इससे उगरार िनयंित्रत होगार ।
2. 3 से 5 लीटर गौ मूत्र मे बीज िभगोकर 2 से 3 घंटे रखकर वो दे । उगरार नहीं लगेगार । दीमक से भी पौधार सुरिक्षतत रहेगार।
मटकार खारद
गौ मूत्र 10 लीटर, गोबर 10 िकलो, गुड 500 ग्रारम, बेसन 500 ग्रारम- सभी को िमलारकर मटके मे
भकर 10 िदन सड़ारये िफर 200 लीटर पारनी मे घोलकर गीली जमीन पर कताररो के बीच िछटक दे । 15
िदन बारद पुन: इस कार िछड़कारव करे
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भूिम कार चयन एवं तैयाररी: अिधक हल्‍की रेतीली व हल्‍की भूिम को छोड्कर सभी प्रकारर की
भूिम मे सफलतारपूवर्वक की जार सकती है परन्‍तु पारनी के िनकारस वारली िचकनी दोमट भूिम सोयारबीन के
िलए अिधक उपयुक्‍त होती है। जहारं भी खेत मे पारनी रूकतार हो वहारं सोयारबीन न उगार,
भूिम dh तैयाररी :--- ग्रीष्‍म कारलीन जुतारई 3 वषर्व मे कम से कम एक बारर अवश्‍य करनी चारिहए।
वषारर्व प्राररम्‍भ होने पर 2 यार 3 बारर बखर तथार पारटार चलारकर खेत को तैयारर कर लेनार चारिहए। इससे
हारिन पहुंचारने वारले कीटो की सभी अवस्थारएं नष्‍ट होगे। ढेलार रिहत और भूरभुरी िमटटी वारले खेत
सोयारबीन के िलए उत्‍तम होते है। खेत मे पारनी भरने से सोयारबीन की फसल पर प्रितकूल प्रभारव पड़तार
है अत: अिधक उत्पारदन के िलए खेत मे जल ‍िनकारस की व्यवस्थार करनार आवश्‍यक होतार है। जहारं तक
संभव हो आखरी बखरनी एवं पारटार समय से करे िजससे अंकुिरत खरपतवारर नष्‍ट हो सके।
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बीजदर:
1. छोटे दारने वारली िकस्‍मे– 70 िकलो ग्रारम प्रित हेक्‍टेयर
2. मध्‍यम दारने वारली िकस्‍मे– 80 िकलो ग्रारम प्रित हेक्‍टेयर
बोने कार समय: जून के अिन्तम सप्‍तारह से जुलारई के प्रथम सप्‍तारह तक कार समय सबसे उपयुक्‍त है।
बोने के समय अच्‍छे अंकुरण हेतु भूिम मे 10 सेमी गहरारई तक उपयुक्‍त नमी होनी चारिहए। जुलारई के
प्रथम सप्‍तारह के पश्‍चारत बोनी की बीज दर 5-10 प्रितशत बढ़देनीचारिहए।
पौध संख्‍यार: 4–5 लारख पौधे प्रित हेक्‍टेयर ‘’40 से 60 प्रित वगर्व मीटर‘’ पौध संख्‍यार उपयुक्‍त है।
जे.एस. 75–46, जे.एस. 93–05 िकस्‍मो मे पौधो की संख्‍यार 6 लारख प्रित हेक्‍टेयर उपयुक्‍त है।
असीिमत बढ़ने वारली जे.एस. 335 िकस्‍मो के िलए 4 लारख एवं सीिमत वृध्दिद वारली िकस्‍मो के िलए 6
लारख पौधे प्रित हेक्‍टेयर होने चारिहए।
बोने की िविध: यथारसंभव मेड़ और कूड़ (िरज एवं फरो बनारकर सोयारबीन बो;s।
सोयारबीन की बौनी कताररो मे करनी चारिहए। कताररो की दूरी 30 सेमी. ‘’बौनी िकस्‍मो के िलए‘’ तथार
45 सेमी. बड़ी िकस्‍मो के िलए उपयुक्‍त है। 20 कताररो के बारद कूड़ जल िनथारर तथार नमी संरक्षतण के
िलए खारली छोड़ देनार चारिहए। बीज 2.5 से 3 सेमी. गहरारई त‍क बोये। बीज एवं खारद को अलग-अलग
बोनार चारिहए िजससे अंकुरण क्षतमतार प्रभारिवत न हो।
बीजोपचारर: सोयारबीन के अंकुरण को बीज तथार मृध्ददार जिनत रोग प्रभारिवत करते है। इसकी रोकथारम
हेतु बीज को थीरम यार केप्‍टारन 2 ग्रारम कारबेन्‍डारिजम यार थारयोफे नेट िमथारईल, 1 ग्रारम िमश्रण प्रित
िकलो ग्रारम बीज की दर से उपचारिरत करनार चारिहए अथवार ट्रारइकोडरमार 4 ग्रारम एवं कारबेन्‍डारिजम 2
ग्रारम प्रित िकलो ग्रारम बीज से उपचारिरत करके बोये।
कल्‍चर कार उपयोग: फफूँ दनारशक दवारओ से बीजोपचारर के पश्‍चारत बीज को 5 ग्रारम रारइजोिबयम एवं
5 ग्रारम पी.एस.बी.कल्‍चर प्रित िकलो ग्रारम बीज की दर से उपचारिरत करे। उपचारिरत बीज को छारयार
मे रखनार चारिहए एवं शीघ बौनी करनार चारिहए। ध्‍यारन रहे िक फफूँ दनारशक दवार एवं कल्‍चर को एक
सारथ न िमलारऐं।
समिन्वत पोषण प्रबंधन: अच्‍छी सड़ी हुई गोबर की खारद (कम्‍पोस्‍ट) 5 टन प्रित हेक्‍टेयर अंितम
बखरनी के समय खेत मे अच्‍छी तरह िमलार दे तथार बोते समय 20 िकलो नत्रजन, 60 िकलो स्‍फु र, 20
िकलो पोटारश एवं 20 िकलो गंधक प्रित हेक्‍टेयर दे। यह मारत्रार िमटटी परीक्षतण के आधर पर घटारई
बढ़ारई जार सकती है तथार संभव नारडेप, फारस्‍फो कम्‍पोस्‍ट के उपयोग को प्रारथिमकतार दे। रारसारयिनक
उवर्वरको को कूड़ो मे लगभग 5 से 6 से.मी. की गहरारई पर डारलनार चारिहए। गहरी कारली िमटटी मे िजक
सल्‍फे ट, 50 िकलो ग्रारम प्रित हेक्‍टेयर एवं उथली िमिटटयो मे 25 िकलो ग्रारम प्रित हेक्‍टेयर की दर से
5 से 6 फसले लेने के बारद उपयोग करनार चारिहए।
खरपतवारर प्रबंधन: फसल के प्राररिम्भक 30 से 40 िदनो तक खरपतवारर िनयंत्रण बहुत आवश्‍यक
होतार है। बतर आने पर डोरार यार कुल्‍फार चलारकर खरपतवारर िनयंत्रण करे व दूसरी िनदारई अंकुरण होने
के 30 और 45 िदन बारद करे। 15 से 20 िदन की खड़ी फसल मे घारंस कुल के खरपतवाररो को नष्‍ट
करने के िलए क्‍यूजेलेफोप इथारइल एक लीटर प्रित हेक्‍टेयर अथवार घारंस कुल और कुछ चौड़ी पत्‍ती
वारले खरपतवाररो के िलए इमेजेथारफारयर 750 िमली. ली. प्रित हेक्‍टेयर की दर से िछड़कारव है। बोने के
पूर्व र नींदानाशक के प्रयोग मे फलुक्‍लोरेलीन 2 लीटर प्रित हेक्‍टेयर आखरी बखरनी के पूर्व र खेतो मे
िछिड़के और पेन्‍डीमेथलीन 3 लीटर प्रित हेक्‍टेयर या मेटोलाक्‍लोर 2 लीटर प्रित हेक्‍टेयर की दर से
600 लीटर पानी मे घोलकर फलैटफे न या फलेटजेट नोजल की सहायकता से पूर्रे खेत मे िछिड़काव  करे।
तरल खरपतव ार नािशयो के प्रयोग के मामले मे िमटटी मे पयारप्‍त पानी व  भुरभुरापन होना चािहए।।
िसचाई: खरीफ मौसम की फसल होने के कारण सामान्‍यत: सोयाबीन को िसचाई की आव श्‍यकता
नहीं होती है। फिलयो मे दाना भरते समय अर्थारत िसतंबर माह मे यिद खेत मे नमी पयारप्‍त न हो तो
आव श्‍यकतानुसार एक या दो हल्‍की िसचाई करना सोयाबीन के िव पुल उत्‍पादन लेने हेतु लाभदायक
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पौध संरकण:
कीट िनयंतण:: सोयाबीन की फसल पर िनम्‍निलिखत कीटो का प्रकोप होता है
: तना मक्खी : इसे स्टेम फ्लाई भी कहते हैं। इसकी इल्ली हल्के पीले रंग की व  मक्खी काले चमकीले रंग
की होती है। इसका प्रकोप पौधे सह नहीं पाते, मर जाते हैं या दानो की संख्याव जनकमहोजाताहै।
ब्ल्यूर् बीटल : दूर्सरा प्रमुख कीड़ा है नीला या काला भृंग या ब्लूर् बीटल। यह पौधो के ऊपरी भाग से
िनकलने व ाली नाजुक पित्तियो और केद्रीय (बीच) भाग को खाता है। इससे पौधे की बढ़व ार रुक जाती है।
गडरल बीटल : फसल थोड़ी-सी बड़ी होने पर गडरल बीटल के प्रकोप की आशंका होती है। इसे चक भृंग भी
कहा जाता है। इससे फसल का िव कास रुक पौधा टूर्ट जाता है। फसल कटने के बाद भी यह भाग खेत मे
पड़ा रहता है। अर्गले व ष र सोयाबीन बोने पर पुनः प्रकोप हो जाता है। इस कीट का िनयंतण जरूरी है।
अर्धर कुंडलक : हरी इल्‍ली की प्रजाित िजसका िसर पतला एव ं िपछिला भाग चौड़ा होता है, सोयाबीन
की ये इिल्लयाँ पित्तियो के हरे भाग को खुरचकर इस तरह खा जाती हैं िक पित्तियो की नसे (िशराएँ) ही
बच रहती हैं। इिल्लयाँ फूर्लो को अर्िधक माता मे खा जाएँ तो अर्फलन की िस्थित आ जाती है।
हीिलयोिथस : चने की यह इल्ली सोयाबीन पौधे की सभी अर्व स्थाओ मे नुकसान पहुँचाती है। इस कीट
के व यस्क का रंग मटमैला, पीला या हल्के धूर्ल के समान होता है। इसे प्रारंिभक अर्व स्था मे िनयंितत करे।
तंबाकूर् की इल्ली : यह मटमैले, हरे रंग की होती है। शरीर पर पीले, हरे या नारंगी रंग की धािरयाँ पाई
जाती हैं। पेट के दोनो तरफ काले रंग के धब्बे पाए जाते हैं। ये पौधे के सभी भागो को काटकर खाती हैं। ये
पौधो का हरा भाग खा जाती हैं।
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कृ िष गत िनयंतण: खेत की ग्रीष ्‍मकालीन गहरी जुताई करे। मानसूर्न की व ष ार के पूर्व र बोनी नहीं करे।
मानसूर्न आगमन के पश्‍चात बोनी शीघ्रता से पूर्री करे। खेत नींदा रिहत रखे। सोयाबीन के साथ ज्‍व ार
अर्थव ा मक्‍का की अर्ंतरव तीय खेती करे। खेतो को फसल अर्व शेष ो से मुक्‍त रखे तथा मेढ़ो की सफाई
रखे। सोयाबीन फसल के खेत के चारो ओर कोई भी प्रपंची फसल (टेप कॉप) मूर्ँग, उड़द, चौला,
िहबीस्कस आिद लगाने चािहए। कीड़े आकिष त होकर इन फसलो पर आकर इकटे हुए कीड़ो को दव ा
िछिड़ककर मार िदया जाता है।
रासायिनक िनयंतण: बुआई के समय थयोिमथोक् ‍जाम 70 डब्‍लूर् एस.3 ग्राम दव ा प्रित िकलो ग्राम
बीज की दर से उपचािरत करने से प्रारिम्भक कीटो का िनयंतण होता है अर्थव ा अर्ंकुरण के प्रारम्‍भ होते
ही नीला भृंग कीट िनयंतण के िलए 700-800 ml माता 700 से 800 लीटर पानी मे घोलकर
िछिड़काव  करना चािहए। । कई प्रकार की इिल्लयां पत्‍ती, छिोटी फिलयो और फलो को खाकर नष ्‍ट कर
देती हैं। चूर्ंिक फसल पर तना मक्‍खी, चकभृंग, माहो हरी इल्‍ली लगभग एक साथ आकमण करते हैं
अर्त: प्रथम िछिड़काव  25 से 30 िदन पर एव ं दूर्सरा िछिड़काव  40-45 िदन पर फसल पर आव श्‍य
करना चािहए।
जैिव क िनयंतण: कीटो के आरिम्भक अर्व स्‍था मे जैिव क कट िनयंतण हेतु बी.टी एव ं ब्‍यूर्व ेरीया
बैिसयाना आधिरत जैिव क कीटनाशक 1 िकलोग्राम या 1 लीटर प्रित हेक्‍टेयर की दर से बुव ाई के 35-
40 िदनो तथा 50-55 िदनो बाद िछिड़काव  करे। एन.पी.व ी. का 250 एल.ई समतुल्‍य का 500 लीटर
पानी मे घोलकर बनाकर प्रित हेक्‍टेयर िछिड़काव  करे। रासायिनक कीटनाशको की जगह जैिव क
कीटनाशको को अर्दला-बदली कर डालना लाभदायक होता है।
1. गडरल बीटल प्रभािव त केत मे जे.एस. 335, जे.एस. 80–21, जे.एस 90–41 , लगाये
2. िनदाई के समय प्रभािव त टहिनयां तोड़कर नष ्‍ट कर दे
3. कटाई के पश्‍चात बंडलो को सीधे गहराई स्‍थल पर ले जाव े
4. तने की मक्‍खी के प्रकोप के समय एन.पी.व ी. का िछिड़काव  शीघ्र करे
(ब)रोग:
1. पत्‍तो पर कई तरह के धब्‍बे व ाले फफूर्ं द जिनत रोगो को िनयंितत करने के िलए काबेन्‍डािजम 50
डबलूर् पी या थायोफे नेट िमथाइल 70 डब्‍लूर् पी 0.05 से 0.1 प्रितशत से 1 ग्राम दव ा प्रित लीटर पानी
का िछिड़काव  करना चािहए। पहला िछिड़काव  30 -35 िदन की अर्व स्‍था पर तथा दूर्सरा िछिड़काव  40
– 45 िदनो की अर्व स्‍था पर करना चािहए।
2. बैक्‍टीिरयल पश्‍चयूर्ल नामक रोग को िनयंितत करने के िलए स्‍टेप्‍टोसाइक्‍लीन या कासूर्गामाइिसन
की 200 पी.पी.एम. 200 िम.ग्रा; दव ा प्रित लीटर पानी के घोल के िमश्रण का िछिड़काव  करना
चािहए। इराके िलए 10 लीटर पानी मे 1 ग्राम स्‍टेप्‍टोसाइक्‍लीन का िछिड़काव करनाचािहए।
3. गेरूआ प्रभािव त केतो (जैसे बैतूर्ल, िछिदव ाडा, िसव नी) मे गेरूआ के िलए सहनशील जाितयां लगाये
तथा रोग के प्रारिम्भक लकण िदखते ही 1 िम.ली. प्रित लीटर की दर से हेक्‍साकोनाजोल 5 ई.सी. या
प्रोिपकोनाजोल 25 ई.सी. या आक्‍सीकाबोजिजम 10 ग्राम प्रित लीटर की दर से टायएिडमीफान 25
डब्‍लूर् पी दव ा के घोल का िछिड़काव  करे।
4. िव ष ाणु जिनत पीला मोजेक व ायरस रोग व  व ड व ्‍लाइट रोग प्राय: एिफ्रिडस सफे द मक्‍खी, िथ्रिप्‍स
आिद द्वारा फैलते हैं अर्त: केव ल रोग रिहत स्‍व स्‍थ बीज का उपयोग करना चािहए एव ं रोग फैलाने
व ाले कीड़ो के िलए थायोमेथेक्‍जोन 70 डब्‍लूर् एव . से 3 ग्राम प्रित िकलो ग्राम की दर से उपचािरत करे
एव ं 30 िदनो के अर्ंतराल पर दोहराते रहे। रोगी पौधो को खेत से िनकाल दे। इथोफे नप्राक् ‍स 10 ई.सी.
1.0 लीटर प्रित हेक्‍टेयर थायोिमथेजेम 25 डब्‍लूर्जी,1000ग्रामप्रितहेक् ‍टेयर।
5. नीम की िनम्‍बोली का अर्कर िडफोिलयेटसर के िनयंतण के िलए कारगर सािबत हुआ है।
फसल कटाई एव ं गहाई: अर्िधकांश पित्तियो के सूर्ख कर झड़ जाने पर और 10 प्रितशत फिलयो के
सूर्ख कर भूर्री हो जाने पर फसल की कटाई कर लेनी चािहए। पंजाब 1 पकने के 4–5 िदन बाद, जे.एस.
335, आिद सूर्खने के लगभग 10 िदन बाद चटकने लगती हैं। कटाई के बाद 2–3 िदन तक सुखाना
चािहए जब कटी फसल अर्च्‍छिी तरह सूर्ख जाये तो गहराई कर दनो को अर्लग कर देना चािहए। फसल
गहाई थ्रिेसर, टेक्‍टर, बैलो तथा हाथ द्वारा लकड़ी से पीटकर करना चािहए। जहां तक संभव  हो बीज के
िलए गहाई लकड़ी से पीट कर करना चािहए, िजससे अर्ंकुरण प्रभािव त न हो।
अर्न्‍तव रतीय फसल पदित: सोयाबीन के साथ अर्न्‍तव रतीय फसलो के रूप मे िनम्‍नानुसार फसलो की
खेती अर्व श्‍य करे।
1. अर्रहर + सोयाबीन (2:4)2. ज्‍व ार + सोयाबीन (2:2)
Soybean module 1
This module includes information on:
benefits of soybean fallow cropping
pre-season checklist
activity planning calendar
Why grow soybeans in the cane fallow specially in the case of narsinghpur
?
There are a number of real benefits including:
• break soil borne disease cycles from continuous cane monoculture. There is a consequent
improvement in soil health and increases in root extension and the efficiency of nutrient
and water uptake.
• the legume crop’s ability to fix atmospheric nitrogen and supply this nutrient to the
following crop. With recent large increases in fertiliser prices, legume nitrogen can be a
cost effective way of supplying nitrogen.a general increase of 15-30% in the following
plant cane crop yield.
• providing a source of valuable organic matter (OM). Oganic matter:is an important driver
of biological diversity
• improves the cation exchange capacity (CEC) of the soil and improves the ability of the
soil to hold nutrients
1. enhances the water holding capacity of the soil
2. reduces surface crusting
3. improves water infiltration and earthworm populations.
4. an opportunity to control specific weeds prevalent in cane monoculture.
5. an opportunity to improve cash flow with grain production.
• environmental benefits from reduced inorganic fertiliser inputs and a reduction
in soil erosion.
Breaking the cane monoculture with legume fallow cropping is one of three fundamental
principles of an ‘integrated farming system’ promoted by the research findings of the
Sugar Yield Decline Joint Venture (SYDJV).
• The other two philosophies involve the implementation of:controlled traffic
systems (matching row spacing to machinery wheel centres)reduced/zero tillage
(to conserve organic matter and maintain soil structure)
2.
Pre-season checklist
Ensure you have access to the necessary machinery required for soybean production (bed-
formers, planters, fertiliser applicators, sprayers, harvesters etc).
Determine which soybean variety you require and order seed and inoculant early. As a guide,
assume 60 kg/ha planting rate then determine the final sowing rate using seed size and
germination % information for the seed you purchase.
Determine likely crop protection products (herbicides, insecticides and desiccants) needed for the
season and order in advance.
Know where you will sell your grain crop. Consider making marketing arrangements before
planting.
Consider which crop you intend to plant after your soybeans.
.
Soybean activity planning calendar for a summer planted crop
Month
Activity
Apr/may
cut cane from light, sandy soil types early to reduce root knot nematode numbers
•
soil test blocks according to soil type after cane harvest •
determine soybean seed variety, quality and availability with supplier •
germination test is done of available seeds
Soil testing is done and arrangement of fertilizers according to the soil testing report .
june/
Apply organic manures , fertiliser and vermicompost as per soil test •
adhere to seed inoculation (rhizobium) procedures •
apply pre-emergent herbicide as required
determine desired row spacing •
spray with knockdown herbicide to control sacharam spontanium , •
•
July •
spray with knockdown herbicide to control weeds, repeat if necessary •
Check field if girdle beetle attack than apply insecticides
Use amezothaper for weed control
Protect crop from semi looper and apply triazophos .
August
• Non flowering due to semi looper than protect and spray Matka Khad
ensure availability of crop protection products •
sep
monitor crops for disease and insects once a week until fruiting •
make the ‘green or grain’ decision based on market outlook, water availability, weather predictions and input costs
relative to potential returns
Crop protect from girdle beetel and spray Neem based product
•
Oct
monitor twice a week for disease and insects during flowering, pod formation and seed development
•
initiate integrated pest management (IPM) program if required •
check status of harvesting and transport contractors •if 90 % pod is grey than harvest the crop .
•
i

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Insect control in august

  • 1. कीट िनयंतण रासायिनक िनयंतण: चूंिक फसल पर तना मक् ‍खी, चकभृंग, माहो हरी इल्‍ली लगभग एक साथ आकमण है अत: पथम िछडकाव 25 से 30 िदन पर एवं दूसरा िछडकाव 40-45 िदन पर फसल पर आवश्‍य करना चािहए। िनयंतण के िलए esVkMksj uked dhVuk’kd dh700-800 ml माता 700 से 800 लीटर पानी मे घोलकर िछडकाव करना चािहए। । कई पकार की इिललयां पत्‍ती, छोटी फिलयो और फलो को खाकर नष्‍ट कर देती है। जैविवक िनयंतण: कीटो के आरिमभक अवस्‍था मे जैविवक कट िनयंतण हेतु बी.टी एवं ब्‍यूवेरीया बैविसयाना आधिरत जैविवक कीटनाशक 1 िकलोगाम या 1 लीटर पित हेक् ‍टेयर की दर से बुवाई के 35-40 िदनो तथा 50-55 िदनो बाद िछडकाव करे। एन.पी.वी. का 250 एल.ई समतुल्‍य का 500 लीटर पानी मे घोलकर बनाकर पित हेक् ‍टेयर िछडकाव करे। रासायिनक कीटनाशको की जगह जैविवक कीटनाशको को अदला-बदली कर डालना लाभदायक होता हैव। 1. देशी गाय का मट्ठा 5 लीटर ले । इसमे 3 िकलो नीम की पत्ती या 2 िकलो नीम खली डालकर 40 िदन तक सडाये िफर 5 लीटर माता को 150 से 200 िलटर पानी मे िमलाकर िछडकने से एक एकड फसल पर इलली /रस चूसने वाले कीडे िनयंितत होगे । 2. लहसुन 500 गाम, हरी िमचर तीखी िचटिपटी 500 गाम लेकर बारीक पीसकर 150 लीटर पानी मे घोलकर कीट िनयंतण हेतु िछडके । 3. 10 लीटर गौ मूत मे 2 िकलो अकौआ के पत्ते डालकर 10 से 15 िदन सडाकर, इस मूत को आधा शेष बचने तक उबाले िफर इसके 1 लीटर िमश्रण को 150 लीटर पानी मे िमलाकर रसचूसक कीट /इलली िनयंतण हेतु िछटके। इन दवाओ का असर केवल 5 से 7 िदन तक रहता हैव । अत: एक बार और िछडके िजससे कीटो की दूसरी पीढ़ी भी नष हो सके। के चुआ खाद छायादार सथान मे 10 फीट लमबा, 3 फीट चौडा, 12 इंज गहरा पका ईट सीमेनट का ढांचा बनाये । जमीन से 12 इंच ऊं चे चबूतरे पर यह िनमारण करे । इस ढांचे मे आधी या पूरी पची (पकी) गोबर कचरे की खाद िबछा दे । इसमे 1 न्1 न्1 फीट मे 100 के चुऐ डाले । इसके ऊपर जूट के बोरे डालकर पितिदन सुबह, शाम पानी डालते रहे । इसमे 60 पितशत से जयादा नमी ना रहे दो माह बाद यह खाद बन जायेगी । िजसका 15 से 20 िकटल पित एकड की दर से इस खाद का उपयोग करे। d`f"k jlk;u bLrseky djrs le; lko/kkfu;k %& 1- bLrseky djrs le; ’kjhj dk dksbZ Hkh vax [kqyk u j[ks 2- bLrseky djrs le; rEckdw chMh dk laou u djs A 3-bLrseky djrs le; viuk gkFk ‘eqWg ]ukd ,ao vk[k ij nLrkus ‘ekLd ‘]p’ek /kkju djs A 4- dhVuk’kd fNMdko ds ckn vius ‘’kjhj dks lkcqu ls /kks ysA
  • 2. 5- dhVuk’kd fNMdko ls ;fn dksbZ ijs’kkuh gks rks rqjar fpfdRld dh lykg ys a 6- cPpks ls dhVuk’kd dk fNMdko u djok;sa Lksk;kohu dh 97&52 fdLe dh fo’ks’krk, Dzek ad fo’s’rk, igpku 1 Oht i= vuqiLfFkr ikS/k ozf/kh e/;e iRrh dk vkdkj - jax- gjkiu uqdkyk vaMkdkj- e/;e gjk Qwy dk jax lQsn Qyh jks,nkj ikS/k mpkb 58&60 ls-eh- 100 xkze Cht dk otu- ,ao vkdkj 9&10xkze- xksykdkj VsLVk dk jax Ikhyk v/kids oht dk jax e/;e ukfHk dk jax Xkgjk dkyk Qwy vkus dk le; 42&45fnu ifjiDork vof?k 98&102fnu Ohekfj;ks ds izfr jks/kdrk Ihyk ekstkbd ok;jl- dkyj jkV dhVks ds izfr jks/kdrk Ruk {ksnd xMZy ohVy-v/kZdq.Myd rEokdw bYyh Lkgu’khyrk Lwk[kk ds izfr lgu’khy [kkn; lsjpuk 20&21 izfr’kr rsy- 39&41 izfr’r dkoksZgkbMzsV vadqj.k {kerk mPp vadqj.k {kerk igys 3 ekg rd 90 izfr’kr okn es 85izfr’kr mit 25&30fDoVy @gS-
  • 3. Lksk;kohu dh 95&60 fdLe dh fo’ks’krk, Dzek ad fo’s’rk, igpku 1 Oht i= mqiLfFkr ikS/k ozf/kh Rhoz- lh/kk iRrh dk vkdkj - jax- gjkiu Xksy- xgjk gjk Qwy dk jax oSxuh Qyh jks,nkj ugh- -4 nkus okyh Qyh ikS/k mpkb 45&50 ls-eh-- 100 xkze Cht dk otu- ,ao vkdkj 13&15kze- xksykdkj VsLVk dk jax Ikhyk v/kids oht dk jax Xgjk ukfHk dk jax /kwlj Qwy vkus dk le; 32&34fnu ifjiDork vof?k 82&88fnu Ohekfj;ks ds izfr jks/kdrk Ihyk ekstkbd ok;jl- dkyj jkV dhVks ds izfr jks/kdrk Ruk {ksnd xMZy ohVy-v/kZdq.Myd uhyh ohVy bYyh [kkn; lsjpuk 18&21 izfr’kr rsy- 38&40 izfr’r dkoksZgkbMzsV vadqj.k {kerk mPp vadqj.k {kerk igys 4 ekg rd 78&82 izfr’kr okn es 85izfr’kr mit 18&20fDoVy @gS-
  • 4. बोनी से पूवर बीजोपचार से िमलती हैव अचछी पैवदावार By: Zonal Public Relations Office- Gwalior- Chambal Zone बीजारूढ़ रोग कारको के उनमूलन के दो पमुख उपाय है। बीज के साथ िमले रोगजनक अंशो को अलग करना और फफूं द नाशक दवाओ से बीजो का उपचार। बीज से रोगजनक अंश दूर करने के िलए नमक के 20 पितशत घोल (20 िकलो नमक 100 िलटर पानी) मे बीज को डुबोये। रोगजनक अंश जो बीज के साथ िमले रहते है वे बीज से हलके होते है। ये सभी पानी मे उतर आते है और हलके व खराब बीज पानी मे तैवरने लगते है। सावधानी पूवरक पानी को िनथारकर रोग जनक अंशो एवं हलके खराब बीजो को अलग कर लेना चािहए। तलहटी मे बैवठे सवसथ्य-भारी बीजो को तीन से चार बार पानी मे धोकर सुखा ले और िफर फफूं द नाशक दवा से बीजोपचार करना चािहये। बीजोपचार के िलए दो पकार की फफूं द नाशक दवाये काम मे लाई जाती है। अदैविहक फफूं द नाशक दवाओ के उपचार से बीज की बाहरी (ऊपरी) सतह पर मौजूद रोग नष हो जाते है। पमुख अदैविहक फफूं द नाशक दवाओ मे थायरम, केप्टान, डायफोलटन, पारा,युक दवाये(सेरेसान एगोलाल, जी.एन.), िजनेब(डायथेन एम-45) आिद। दैविहक फफूं द नाशक दवाओ के उपचार से बीज के भीतर रहने वाले रोग नष िकये जाते है। िवटोवेक्स, बेवेसटीन, बेनलेट, ट्रायकोडमार व िबरडी आिद पमुख दैविहक फफूं द नाशक दवाये है। बीजोपचार की िविध: बीजोपचार के िलए एक यंत , बीज सिमश्रण यंत(सीड ट्रीिटग ड्रम) का उपयोग िकया जाता है। इस ड्रम मे िजतने बीज को उपचािरत करना हो, उसके िलए आवश्यक दवा की माता बीज के साथ ड्रम मे डाल दे और उसके मुंह को अचछी तरह बंद कर दे। 10 से 15 िमनट तक ड्रम को घुमाये। इससे बीज पर दवा की हलकी परत चढ़ जायेगी और इस पकार उपचािरत बीज की बोनी की जा सकती हैव। यिद बीज सिमश्रण यंत उपलब्ध न हो तो िमट्टी के एक घडे मे बीज एवं उतनी माता के िलए आवश्यक दवा डाल दे। घडे के मुंह को मोटे कागज की सहायता से बंद कर दे। िफर घडे को 15 िमिनट तक अचछी तरह िहलाये, िजससे बीज पर दवा की परत चढ़ जाये। रबी की फसलो मसलन गेहूं, चना,मटर, अलसी, मसूर, सूरजमुखी, एवं अनय सभी सागभाजी को पौध गलन रोग से बचाने के िलए डायथेन एम-45 थायरम,डायफे लेटान,वेिवसटन,वेनलेट ट्रायकोडमार िबरडी आिद मे से कोई भी दवा पित िकलोगाम बीज मे 3 गाम के िहसाब से पयुक की जानी चािहये। शुलक बीजोपचार के अलावा बीजोपचार के िलए पानी मे घुलनशील फफूं द नाशक दवाओ का भी उपयोग िकया जाता हैव। इस िविध के िलए िकसी िमट्टी अथवा प्लािसटक के बतरन मे आवश्यक माता मे पानी एवं दवा लेकर घोल बना ले। इस घोल मे लगभग 10 िमिनट तक बीज डुबोकर रखे। बाद मे बीज िनकाल कर बोनी करे। यह िविध खासकर आलू एवं गन्ने के बीजोपचार के िलए उपयोगी हैव। साबधािनयाँ- बीजोपचार करते समय हाथो मे रबर के दसताने पहनने चािहए, साथ ही हाथो-पावो मे चोट आिद न हो। उपचािरत बीज को िकसी गीली जगह पर न रखे। िजतनी आवश्यकता हो उतने ही बीज की माता उपचािरत करे। उपचािरत बीज को घरेलू उपयोग मे न ले। दवा खरीदते समय बनने एवं समािप की ितिथ अवश्य देखे। बीजोपचार बंद
  • 5. कमरे मे न करे व उपचारिरत बीज कार भण्डाररण न करे। बीजोपचारर के पश्चारत हारथ, पैर व मुख को सारबुन से दो तीन बारर अच्छी तरह धो ले। view(’zone जैिवक खारद बनारने की िविध अब हम खेती मे इन सूक्ष्म जीवारणुओ कार सहयोग लेकर खारद बनारने एवं तत्वो की पूित हेतु मदद लेगे । खेतो मे रसारयनो से ये सूक्ष्म जीव क्षतितग्रस्त हुये है, अत: प्रत्येक फसल मे हमे इनके कल्चर कार उपयोग करनार पड़ेगार, िजससे फसलो को पोषण तत्व उपलब्ध हो सके । दलहनी फसलो मे प्रित एकड़ 4 से 5 पैकेट रारइजोिबयम कल्चर डारलनार पड़ेगार । एक दलीय फसलो मे एजेक्टोबेक्टर कल्चर इनती ही मारत्रार मे डारले । सारथ ही भूिम मे जो फारस्फोरस है, उसे घोलने हेतु पी.एस.पी. कल्चर 5 पैकेट प्रित एकड़ डारलनार होगार । खारद बनारने के िलये कुछ तरीके नीचे िदये जार रहे है, इन िविधयो से खारद बनारकर खेतो मे डारले । इस खारद से िमट्टी की रचनार मे सुधारर होगार, सूक्ष्म जीवारणुओ की संख्यार भी बढ़ेगी एवं हवार कार संचारर बढ़ेगार, पारनी सोखने एवं धाररण करने की क्षतमतार मे भी वृध्दिध्द होगी और फसल कार उत्पारदन भी बढ़ेगार । फसलो एवं झारड पेड़ो के अवशेषो मे वे सभी तत्व होते है, िजसकी उन्हे आवश्यकतार होती है :- नारडेप िविध नारडेप कार आकारर :- लम्बारई 12 फीट चौड़ारई 5 फीट उंचारई 3 फीट आकारर कार गड्डार कर ले। भरने हेतु सारमग्री :- 75 प्रितशत वनस्पित के सूखे अवशेष, 20 प्रितशत हरी घारस, गारजर घारस, पुवारल, 5 प्रितशत गोबर, 2000 िलटर पारनी । सभी प्रकारर कार कचरार छोटे-छोटे टुकड़ो मे हो । गोबर को पारनी से घोलकर कचरे को खूब िभगो दे । फारवडे से िमलारकर गड्ड-मड्ड कर दे । िविध नंबर -1 – नारडेप मे कचरार 4 अंगुल भरे । इस पर िमट्टी 2 अंगुल डारले । िमट्टी को भी पारनी से िभगो दे । जब पुरार नारडेप भर जारये तो उसे ढ़ारलू बनारकर इस पर 4 अंगुल मोटी िमट्टी से ढ़ारंप दे । िविध नंबर-2- कचरे के ऊपर 12 से 15 िकलो रॉक फारस्फे ट की परत िबछारकर पारनी से िभगो दे । इसके ऊपर 1 अंगुल मोटी िमट्टी िबछारकर पारनी डारले । गङ्ढार पूरार भर जारने पर 4 अंगुल मोटी िमट्टी से ढारंप दे । िविध नंबर-3- कचरे की परत के ऊपर 2 अंगुल मोटी नीम की पत्ती हर परत पर िबछारये। इस खारद नारडेप कम्पोस्ट मे 60 िदन बारद सब्बल से डेढ़-डेढ़ फु ट पर छेद कर 15 टीन पारनी मे 5 पैकेट पी.एस.बी एवं 5 पैकेट एजेक्टोबेक्टर कल्चर को घोलकर छेदो मे भर दे । इन छेदो को िमट्टी से बंद कर दे ।
  • 6. बीजोपचारर 1. प्रित एकड़ बीज हेतु 3 से 5 लीटर देशी गारय कार खट्टार मठ्ठार ले । इसमे प्रित लीटर 3 चने के आकारर के बरारबर हींग पीस कर घोल दे । इसे बीजो पर डारलकर िभगो दे तथार 2 घंटे रखार रहने दे । उसके बारद बोये । इससे उगरार िनयंित्रत होगार । 2. 3 से 5 लीटर गौ मूत्र मे बीज िभगोकर 2 से 3 घंटे रखकर वो दे । उगरार नहीं लगेगार । दीमक से भी पौधार सुरिक्षतत रहेगार। मटकार खारद गौ मूत्र 10 लीटर, गोबर 10 िकलो, गुड 500 ग्रारम, बेसन 500 ग्रारम- सभी को िमलारकर मटके मे भकर 10 िदन सड़ारये िफर 200 लीटर पारनी मे घोलकर गीली जमीन पर कताररो के बीच िछटक दे । 15 िदन बारद पुन: इस कार िछड़कारव करे
  • 7. Lksk;kohu dh [ks ती भूिम कार चयन एवं तैयाररी: अिधक हल्‍की रेतीली व हल्‍की भूिम को छोड्कर सभी प्रकारर की भूिम मे सफलतारपूवर्वक की जार सकती है परन्‍तु पारनी के िनकारस वारली िचकनी दोमट भूिम सोयारबीन के िलए अिधक उपयुक्‍त होती है। जहारं भी खेत मे पारनी रूकतार हो वहारं सोयारबीन न उगार, भूिम dh तैयाररी :--- ग्रीष्‍म कारलीन जुतारई 3 वषर्व मे कम से कम एक बारर अवश्‍य करनी चारिहए। वषारर्व प्राररम्‍भ होने पर 2 यार 3 बारर बखर तथार पारटार चलारकर खेत को तैयारर कर लेनार चारिहए। इससे हारिन पहुंचारने वारले कीटो की सभी अवस्थारएं नष्‍ट होगे। ढेलार रिहत और भूरभुरी िमटटी वारले खेत सोयारबीन के िलए उत्‍तम होते है। खेत मे पारनी भरने से सोयारबीन की फसल पर प्रितकूल प्रभारव पड़तार है अत: अिधक उत्पारदन के िलए खेत मे जल ‍िनकारस की व्यवस्थार करनार आवश्‍यक होतार है। जहारं तक संभव हो आखरी बखरनी एवं पारटार समय से करे िजससे अंकुिरत खरपतवारर नष्‍ट हो सके। vadqj.k ijh{k.k %- twu ds izFe lIrkg es VkV ds 1 +fQV pkSdksj VqdMk ysdj mles lks;kohu ds 100 oht ykbu es j[dj ml VqdMs dks ikuh ls xhyk dj ns o jkst xhyk djrs jgs 5 fnu ckn vadqfjr nkuks dks fxu ys ;fn budh la[;k 70 ls vf?kd vkrh gS rks gh cht dk bLrseky djs A mRre tkfr dk pquko% e?; izns’k dh tyok;q gsrw mi;qDr tkfr;k ts ,l 335,ao 93-05 ts ,l 95-60 ts ,l 9752 gs A iajrq ;g “h ?;ku j][kk tk; dh ,d gh fdLe dks ckj ckj ugh mxk;k tk; rFkk 2 ls 3 fdLes yxkus ls tksf[e dks de fd;k tk;A बीजदर: 1. छोटे दारने वारली िकस्‍मे– 70 िकलो ग्रारम प्रित हेक्‍टेयर 2. मध्‍यम दारने वारली िकस्‍मे– 80 िकलो ग्रारम प्रित हेक्‍टेयर बोने कार समय: जून के अिन्तम सप्‍तारह से जुलारई के प्रथम सप्‍तारह तक कार समय सबसे उपयुक्‍त है।
  • 8. बोने के समय अच्‍छे अंकुरण हेतु भूिम मे 10 सेमी गहरारई तक उपयुक्‍त नमी होनी चारिहए। जुलारई के प्रथम सप्‍तारह के पश्‍चारत बोनी की बीज दर 5-10 प्रितशत बढ़देनीचारिहए। पौध संख्‍यार: 4–5 लारख पौधे प्रित हेक्‍टेयर ‘’40 से 60 प्रित वगर्व मीटर‘’ पौध संख्‍यार उपयुक्‍त है। जे.एस. 75–46, जे.एस. 93–05 िकस्‍मो मे पौधो की संख्‍यार 6 लारख प्रित हेक्‍टेयर उपयुक्‍त है। असीिमत बढ़ने वारली जे.एस. 335 िकस्‍मो के िलए 4 लारख एवं सीिमत वृध्दिद वारली िकस्‍मो के िलए 6 लारख पौधे प्रित हेक्‍टेयर होने चारिहए। बोने की िविध: यथारसंभव मेड़ और कूड़ (िरज एवं फरो बनारकर सोयारबीन बो;s। सोयारबीन की बौनी कताररो मे करनी चारिहए। कताररो की दूरी 30 सेमी. ‘’बौनी िकस्‍मो के िलए‘’ तथार 45 सेमी. बड़ी िकस्‍मो के िलए उपयुक्‍त है। 20 कताररो के बारद कूड़ जल िनथारर तथार नमी संरक्षतण के िलए खारली छोड़ देनार चारिहए। बीज 2.5 से 3 सेमी. गहरारई त‍क बोये। बीज एवं खारद को अलग-अलग बोनार चारिहए िजससे अंकुरण क्षतमतार प्रभारिवत न हो। बीजोपचारर: सोयारबीन के अंकुरण को बीज तथार मृध्ददार जिनत रोग प्रभारिवत करते है। इसकी रोकथारम हेतु बीज को थीरम यार केप्‍टारन 2 ग्रारम कारबेन्‍डारिजम यार थारयोफे नेट िमथारईल, 1 ग्रारम िमश्रण प्रित िकलो ग्रारम बीज की दर से उपचारिरत करनार चारिहए अथवार ट्रारइकोडरमार 4 ग्रारम एवं कारबेन्‍डारिजम 2 ग्रारम प्रित िकलो ग्रारम बीज से उपचारिरत करके बोये। कल्‍चर कार उपयोग: फफूँ दनारशक दवारओ से बीजोपचारर के पश्‍चारत बीज को 5 ग्रारम रारइजोिबयम एवं 5 ग्रारम पी.एस.बी.कल्‍चर प्रित िकलो ग्रारम बीज की दर से उपचारिरत करे। उपचारिरत बीज को छारयार मे रखनार चारिहए एवं शीघ बौनी करनार चारिहए। ध्‍यारन रहे िक फफूँ दनारशक दवार एवं कल्‍चर को एक सारथ न िमलारऐं। समिन्वत पोषण प्रबंधन: अच्‍छी सड़ी हुई गोबर की खारद (कम्‍पोस्‍ट) 5 टन प्रित हेक्‍टेयर अंितम बखरनी के समय खेत मे अच्‍छी तरह िमलार दे तथार बोते समय 20 िकलो नत्रजन, 60 िकलो स्‍फु र, 20 िकलो पोटारश एवं 20 िकलो गंधक प्रित हेक्‍टेयर दे। यह मारत्रार िमटटी परीक्षतण के आधर पर घटारई बढ़ारई जार सकती है तथार संभव नारडेप, फारस्‍फो कम्‍पोस्‍ट के उपयोग को प्रारथिमकतार दे। रारसारयिनक उवर्वरको को कूड़ो मे लगभग 5 से 6 से.मी. की गहरारई पर डारलनार चारिहए। गहरी कारली िमटटी मे िजक सल्‍फे ट, 50 िकलो ग्रारम प्रित हेक्‍टेयर एवं उथली िमिटटयो मे 25 िकलो ग्रारम प्रित हेक्‍टेयर की दर से 5 से 6 फसले लेने के बारद उपयोग करनार चारिहए। खरपतवारर प्रबंधन: फसल के प्राररिम्भक 30 से 40 िदनो तक खरपतवारर िनयंत्रण बहुत आवश्‍यक होतार है। बतर आने पर डोरार यार कुल्‍फार चलारकर खरपतवारर िनयंत्रण करे व दूसरी िनदारई अंकुरण होने के 30 और 45 िदन बारद करे। 15 से 20 िदन की खड़ी फसल मे घारंस कुल के खरपतवाररो को नष्‍ट करने के िलए क्‍यूजेलेफोप इथारइल एक लीटर प्रित हेक्‍टेयर अथवार घारंस कुल और कुछ चौड़ी पत्‍ती वारले खरपतवाररो के िलए इमेजेथारफारयर 750 िमली. ली. प्रित हेक्‍टेयर की दर से िछड़कारव है। बोने के
  • 9. पूर्व र नींदानाशक के प्रयोग मे फलुक्‍लोरेलीन 2 लीटर प्रित हेक्‍टेयर आखरी बखरनी के पूर्व र खेतो मे िछिड़के और पेन्‍डीमेथलीन 3 लीटर प्रित हेक्‍टेयर या मेटोलाक्‍लोर 2 लीटर प्रित हेक्‍टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे घोलकर फलैटफे न या फलेटजेट नोजल की सहायकता से पूर्रे खेत मे िछिड़काव करे। तरल खरपतव ार नािशयो के प्रयोग के मामले मे िमटटी मे पयारप्‍त पानी व भुरभुरापन होना चािहए।। िसचाई: खरीफ मौसम की फसल होने के कारण सामान्‍यत: सोयाबीन को िसचाई की आव श्‍यकता नहीं होती है। फिलयो मे दाना भरते समय अर्थारत िसतंबर माह मे यिद खेत मे नमी पयारप्‍त न हो तो आव श्‍यकतानुसार एक या दो हल्‍की िसचाई करना सोयाबीन के िव पुल उत्‍पादन लेने हेतु लाभदायक है s पौध संरकण: कीट िनयंतण:: सोयाबीन की फसल पर िनम्‍निलिखत कीटो का प्रकोप होता है : तना मक्खी : इसे स्टेम फ्लाई भी कहते हैं। इसकी इल्ली हल्के पीले रंग की व मक्खी काले चमकीले रंग की होती है। इसका प्रकोप पौधे सह नहीं पाते, मर जाते हैं या दानो की संख्याव जनकमहोजाताहै। ब्ल्यूर् बीटल : दूर्सरा प्रमुख कीड़ा है नीला या काला भृंग या ब्लूर् बीटल। यह पौधो के ऊपरी भाग से िनकलने व ाली नाजुक पित्तियो और केद्रीय (बीच) भाग को खाता है। इससे पौधे की बढ़व ार रुक जाती है। गडरल बीटल : फसल थोड़ी-सी बड़ी होने पर गडरल बीटल के प्रकोप की आशंका होती है। इसे चक भृंग भी कहा जाता है। इससे फसल का िव कास रुक पौधा टूर्ट जाता है। फसल कटने के बाद भी यह भाग खेत मे पड़ा रहता है। अर्गले व ष र सोयाबीन बोने पर पुनः प्रकोप हो जाता है। इस कीट का िनयंतण जरूरी है। अर्धर कुंडलक : हरी इल्‍ली की प्रजाित िजसका िसर पतला एव ं िपछिला भाग चौड़ा होता है, सोयाबीन की ये इिल्लयाँ पित्तियो के हरे भाग को खुरचकर इस तरह खा जाती हैं िक पित्तियो की नसे (िशराएँ) ही बच रहती हैं। इिल्लयाँ फूर्लो को अर्िधक माता मे खा जाएँ तो अर्फलन की िस्थित आ जाती है। हीिलयोिथस : चने की यह इल्ली सोयाबीन पौधे की सभी अर्व स्थाओ मे नुकसान पहुँचाती है। इस कीट के व यस्क का रंग मटमैला, पीला या हल्के धूर्ल के समान होता है। इसे प्रारंिभक अर्व स्था मे िनयंितत करे। तंबाकूर् की इल्ली : यह मटमैले, हरे रंग की होती है। शरीर पर पीले, हरे या नारंगी रंग की धािरयाँ पाई जाती हैं। पेट के दोनो तरफ काले रंग के धब्बे पाए जाते हैं। ये पौधे के सभी भागो को काटकर खाती हैं। ये पौधो का हरा भाग खा जाती हैं। vQyu dh leL;k dh jksdFkke % ,sls [ksr ftues dh izR;sd lky vQyu
  • 10. dh leL;k vkrh gS ogk vf?kdrj v/kZdqaMyd dhV dk izdksi gksrk gS A bldh jksdFkke ds fYk;s Dyksjik;jhQkl 1-5yh- ;k Vzzk;tksQkl 800 fe- yh- nok izfr ,dM dk fNMdko djs A igyk fNMdko oqokb ds 18ls 20fnu ckn rFkk nwljk fNMdko 28ls 30fnu okn dj कृ िष गत िनयंतण: खेत की ग्रीष ्‍मकालीन गहरी जुताई करे। मानसूर्न की व ष ार के पूर्व र बोनी नहीं करे। मानसूर्न आगमन के पश्‍चात बोनी शीघ्रता से पूर्री करे। खेत नींदा रिहत रखे। सोयाबीन के साथ ज्‍व ार अर्थव ा मक्‍का की अर्ंतरव तीय खेती करे। खेतो को फसल अर्व शेष ो से मुक्‍त रखे तथा मेढ़ो की सफाई रखे। सोयाबीन फसल के खेत के चारो ओर कोई भी प्रपंची फसल (टेप कॉप) मूर्ँग, उड़द, चौला, िहबीस्कस आिद लगाने चािहए। कीड़े आकिष त होकर इन फसलो पर आकर इकटे हुए कीड़ो को दव ा िछिड़ककर मार िदया जाता है। रासायिनक िनयंतण: बुआई के समय थयोिमथोक् ‍जाम 70 डब्‍लूर् एस.3 ग्राम दव ा प्रित िकलो ग्राम बीज की दर से उपचािरत करने से प्रारिम्भक कीटो का िनयंतण होता है अर्थव ा अर्ंकुरण के प्रारम्‍भ होते ही नीला भृंग कीट िनयंतण के िलए 700-800 ml माता 700 से 800 लीटर पानी मे घोलकर िछिड़काव करना चािहए। । कई प्रकार की इिल्लयां पत्‍ती, छिोटी फिलयो और फलो को खाकर नष ्‍ट कर देती हैं। चूर्ंिक फसल पर तना मक्‍खी, चकभृंग, माहो हरी इल्‍ली लगभग एक साथ आकमण करते हैं अर्त: प्रथम िछिड़काव 25 से 30 िदन पर एव ं दूर्सरा िछिड़काव 40-45 िदन पर फसल पर आव श्‍य करना चािहए। जैिव क िनयंतण: कीटो के आरिम्भक अर्व स्‍था मे जैिव क कट िनयंतण हेतु बी.टी एव ं ब्‍यूर्व ेरीया बैिसयाना आधिरत जैिव क कीटनाशक 1 िकलोग्राम या 1 लीटर प्रित हेक्‍टेयर की दर से बुव ाई के 35- 40 िदनो तथा 50-55 िदनो बाद िछिड़काव करे। एन.पी.व ी. का 250 एल.ई समतुल्‍य का 500 लीटर पानी मे घोलकर बनाकर प्रित हेक्‍टेयर िछिड़काव करे। रासायिनक कीटनाशको की जगह जैिव क कीटनाशको को अर्दला-बदली कर डालना लाभदायक होता है। 1. गडरल बीटल प्रभािव त केत मे जे.एस. 335, जे.एस. 80–21, जे.एस 90–41 , लगाये 2. िनदाई के समय प्रभािव त टहिनयां तोड़कर नष ्‍ट कर दे 3. कटाई के पश्‍चात बंडलो को सीधे गहराई स्‍थल पर ले जाव े 4. तने की मक्‍खी के प्रकोप के समय एन.पी.व ी. का िछिड़काव शीघ्र करे
  • 11. (ब)रोग: 1. पत्‍तो पर कई तरह के धब्‍बे व ाले फफूर्ं द जिनत रोगो को िनयंितत करने के िलए काबेन्‍डािजम 50 डबलूर् पी या थायोफे नेट िमथाइल 70 डब्‍लूर् पी 0.05 से 0.1 प्रितशत से 1 ग्राम दव ा प्रित लीटर पानी का िछिड़काव करना चािहए। पहला िछिड़काव 30 -35 िदन की अर्व स्‍था पर तथा दूर्सरा िछिड़काव 40 – 45 िदनो की अर्व स्‍था पर करना चािहए। 2. बैक्‍टीिरयल पश्‍चयूर्ल नामक रोग को िनयंितत करने के िलए स्‍टेप्‍टोसाइक्‍लीन या कासूर्गामाइिसन की 200 पी.पी.एम. 200 िम.ग्रा; दव ा प्रित लीटर पानी के घोल के िमश्रण का िछिड़काव करना चािहए। इराके िलए 10 लीटर पानी मे 1 ग्राम स्‍टेप्‍टोसाइक्‍लीन का िछिड़काव करनाचािहए। 3. गेरूआ प्रभािव त केतो (जैसे बैतूर्ल, िछिदव ाडा, िसव नी) मे गेरूआ के िलए सहनशील जाितयां लगाये तथा रोग के प्रारिम्भक लकण िदखते ही 1 िम.ली. प्रित लीटर की दर से हेक्‍साकोनाजोल 5 ई.सी. या प्रोिपकोनाजोल 25 ई.सी. या आक्‍सीकाबोजिजम 10 ग्राम प्रित लीटर की दर से टायएिडमीफान 25 डब्‍लूर् पी दव ा के घोल का िछिड़काव करे। 4. िव ष ाणु जिनत पीला मोजेक व ायरस रोग व व ड व ्‍लाइट रोग प्राय: एिफ्रिडस सफे द मक्‍खी, िथ्रिप्‍स आिद द्वारा फैलते हैं अर्त: केव ल रोग रिहत स्‍व स्‍थ बीज का उपयोग करना चािहए एव ं रोग फैलाने व ाले कीड़ो के िलए थायोमेथेक्‍जोन 70 डब्‍लूर् एव . से 3 ग्राम प्रित िकलो ग्राम की दर से उपचािरत करे एव ं 30 िदनो के अर्ंतराल पर दोहराते रहे। रोगी पौधो को खेत से िनकाल दे। इथोफे नप्राक् ‍स 10 ई.सी. 1.0 लीटर प्रित हेक्‍टेयर थायोिमथेजेम 25 डब्‍लूर्जी,1000ग्रामप्रितहेक् ‍टेयर। 5. नीम की िनम्‍बोली का अर्कर िडफोिलयेटसर के िनयंतण के िलए कारगर सािबत हुआ है। फसल कटाई एव ं गहाई: अर्िधकांश पित्तियो के सूर्ख कर झड़ जाने पर और 10 प्रितशत फिलयो के सूर्ख कर भूर्री हो जाने पर फसल की कटाई कर लेनी चािहए। पंजाब 1 पकने के 4–5 िदन बाद, जे.एस. 335, आिद सूर्खने के लगभग 10 िदन बाद चटकने लगती हैं। कटाई के बाद 2–3 िदन तक सुखाना चािहए जब कटी फसल अर्च्‍छिी तरह सूर्ख जाये तो गहराई कर दनो को अर्लग कर देना चािहए। फसल गहाई थ्रिेसर, टेक्‍टर, बैलो तथा हाथ द्वारा लकड़ी से पीटकर करना चािहए। जहां तक संभव हो बीज के िलए गहाई लकड़ी से पीट कर करना चािहए, िजससे अर्ंकुरण प्रभािव त न हो। अर्न्‍तव रतीय फसल पदित: सोयाबीन के साथ अर्न्‍तव रतीय फसलो के रूप मे िनम्‍नानुसार फसलो की खेती अर्व श्‍य करे।
  • 12. 1. अर्रहर + सोयाबीन (2:4)2. ज्‍व ार + सोयाबीन (2:2) Soybean module 1 This module includes information on: benefits of soybean fallow cropping pre-season checklist activity planning calendar Why grow soybeans in the cane fallow specially in the case of narsinghpur ? There are a number of real benefits including: • break soil borne disease cycles from continuous cane monoculture. There is a consequent improvement in soil health and increases in root extension and the efficiency of nutrient and water uptake. • the legume crop’s ability to fix atmospheric nitrogen and supply this nutrient to the following crop. With recent large increases in fertiliser prices, legume nitrogen can be a cost effective way of supplying nitrogen.a general increase of 15-30% in the following plant cane crop yield. • providing a source of valuable organic matter (OM). Oganic matter:is an important driver of biological diversity • improves the cation exchange capacity (CEC) of the soil and improves the ability of the soil to hold nutrients 1. enhances the water holding capacity of the soil 2. reduces surface crusting 3. improves water infiltration and earthworm populations. 4. an opportunity to control specific weeds prevalent in cane monoculture. 5. an opportunity to improve cash flow with grain production. • environmental benefits from reduced inorganic fertiliser inputs and a reduction in soil erosion. Breaking the cane monoculture with legume fallow cropping is one of three fundamental principles of an ‘integrated farming system’ promoted by the research findings of the Sugar Yield Decline Joint Venture (SYDJV). • The other two philosophies involve the implementation of:controlled traffic systems (matching row spacing to machinery wheel centres)reduced/zero tillage (to conserve organic matter and maintain soil structure) 2. Pre-season checklist Ensure you have access to the necessary machinery required for soybean production (bed- formers, planters, fertiliser applicators, sprayers, harvesters etc). Determine which soybean variety you require and order seed and inoculant early. As a guide, assume 60 kg/ha planting rate then determine the final sowing rate using seed size and germination % information for the seed you purchase. Determine likely crop protection products (herbicides, insecticides and desiccants) needed for the season and order in advance. Know where you will sell your grain crop. Consider making marketing arrangements before planting.
  • 13. Consider which crop you intend to plant after your soybeans. . Soybean activity planning calendar for a summer planted crop Month Activity Apr/may cut cane from light, sandy soil types early to reduce root knot nematode numbers • soil test blocks according to soil type after cane harvest • determine soybean seed variety, quality and availability with supplier • germination test is done of available seeds Soil testing is done and arrangement of fertilizers according to the soil testing report . june/ Apply organic manures , fertiliser and vermicompost as per soil test • adhere to seed inoculation (rhizobium) procedures • apply pre-emergent herbicide as required determine desired row spacing • spray with knockdown herbicide to control sacharam spontanium , • • July • spray with knockdown herbicide to control weeds, repeat if necessary • Check field if girdle beetle attack than apply insecticides Use amezothaper for weed control Protect crop from semi looper and apply triazophos . August • Non flowering due to semi looper than protect and spray Matka Khad ensure availability of crop protection products • sep monitor crops for disease and insects once a week until fruiting • make the ‘green or grain’ decision based on market outlook, water availability, weather predictions and input costs relative to potential returns Crop protect from girdle beetel and spray Neem based product • Oct monitor twice a week for disease and insects during flowering, pod formation and seed development • initiate integrated pest management (IPM) program if required • check status of harvesting and transport contractors •if 90 % pod is grey than harvest the crop . • i